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द्वितीय कर्मग्रन्म : परिशिष्ट गुणस्थानों में कर्म प्रकृतियों का बन्ध, उदय,
उकोरमा, सत्ता का विवरण बन्ध प्रकृतियाँ १२०, उदय व उदीरणा प्रकृतियाँ १२२, सता प्रकृतयाँ १४८ ओघ-सामान्यरूप से विना किसी विशेष गुणस्थान व जीव विशेष की विवक्षा के कथन।
बन्ध-विवरण ओष मूलप्रकृति -
उत्तरप्रकृति १२० (१) ज्ञानावरण ५, (२) दर्शनावरण ६, (३) वेदनीय २, (४) मोहनीय २६, (५) आयु ४, (६) नाम ६७, [पिंड प्रकृतियां ३६, प्रत्येक प्रकृतियाँ ८, सदशक १०, स्थावरदशक १० =६७] (७)
गोन २, (८) अन्तराय ५-१२० १. मिथ्यात्व
उसर ११७ तीर्थकर और आहरकद्विक (आहारक शरीर, माहारक अंगोपांग नामकर्म) का बन्ध नहीं
होता। २. सास्वादन मूल ८
उ० १०१ नरकत्रिक (नरकगति, नरकायु. नरकानुपूर्वी) जाति-चतुष्क (एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय) स्थावरचतुष्क (स्थावर, सुक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण नाम हुंडसंस्थान, मेवातसंहनन, आतपनाम, नपुंसकवेद, मिथ्यात्वमोहनीय =१६ प्रकृतियों का बन्धविच्छेद मिथ्यात्व गुण