Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मस्तव परिशिष्ट
नरकगति - अनेक जीवों की अपेक्षा पूर्वायुष्क के १४६ की, एक जीव की अपेक्षा १४५ को और अबद्धायुष्क को १४४ प्रकृतियों की सत्ता होती है । माहारकचतुष्क की सत्ता न हो तो अनुक्रम से १४२, १४१, और १४० की सत्ता होती है ।
१४४
नरकगति के अनुसार ही तियंचगति, मनुष्यगति और देवगति में भी सास्वादन गुणस्थान वाले जीवों के प्रकृतियों की मत्ता समझनी चाहिए ।
इस प्रकार सास्वादन गुणस्थान में १४० १४१ १४२, १४३, १४४, १४५, १४६, और १४५ प्रकृतियों की मत्ता होती है ।
(३) मिश्र गुणस्थान - सास्वादन गुणस्थान के अनुसार ही इस गुणस्थानवर्ती जीवों के प्रकृतियों की सत्ता समझनी चाहिए। लेकिन इतना अन्तर है कि सास्वादन गुणस्थान ऊपर के गुणस्थानों से गिरने वाले को ही होता है, जबकि मिश्रगुणस्थान चढ़ने वाले जीवों को भी होता है।
मिश्रगुणस्थान में आहारकचतुष्क की सत्तारहित और आहारकचलुक की सत्तारहित- इन दो भेदों के द्वारा प्रकृतियों की सत्ता को स्पष्ट करते हैं ।
(१) आहारकचतुष्क की सत्तासहित मिश्रगुणस्थानवर्ती जीचों में अनेक जीवों को अपेक्षा पूर्वायुष्क के १४७ की और अन्य एक ही प्रकार की गति की आयु को बाँधने वाले जीवों की अपेक्षा १४५ की और उसी गति की आयु को बाँधने वाले अनेक जीवों की अपेक्षा १४५. की और एक जीव की अपेक्षा १४४ प्रकृतियों की सत्ता होती है तथा जिन्होंने अनन्तानुबन्धीकषायचतुष्क की विसंयोजना की हो तो उनके लिए चार प्रकृतियाँ कम गिननी चाहिए, अर्थात् १४७, १४५, १४४ के