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कर्मस्तत्र : परिशिष्ट
करने पर शत, सहल, लाख, करोड़, अरब, खरब आदि की संख्या निकलती जाती है, जिसे साधारण तौर पर सभी जानते हैं। __जैन समय गणित में सामान्य ज्ञान से आगे के समय की गणना करने के लिए पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित आदि का नामोल्लेख किया है और उन सब में अन्तिम नाम शीर्ष प्रहेलिका है। इनमें ८४ लाख वर्षों का एक पूर्वांग होता है और ८४ लाख को ८४ लाख से गुणा करने पर एक पूर्व का प्रमाण निकलता है । जिसमें ७० लाख करोड़ वर्ष होते हैं। ऐसे २८ बार गुणा करने से ५४ अंकों पर १४० बिन्दियाँ आ जाती हैं, जिसे शीर्ष प्रहेलिका कहते हैं। यहाँ गणित संख्यात की सीमा समाप्त हो जाती हैं और इसके आगे का काल पल्योपम, सागरोपम आदि उपमाओं के द्वारा समझाया है । पल्योपम-सागरोपम की व्याख्या
पल्योपम और सागरोपम का शास्त्रों में अतिसूक्ष्म रूप से विचार किया गया है। जिज्ञासु जन विशेष ज्ञान के लिए शास्त्रों के सम्बन्धित अंश देख लेवें । यहाँ तो संक्षेप में उनका संकेत किया जा रहा है।
शास्त्रों में पल्योपम और सागरोपम के काल प्रमाण को उदाहरण द्वारा समझाया गया है । उक्त उदाहरण इस प्रकार है
चार कोस (एक योजन) लम्बा, चौड़ा और गहरा कुआ एक-दोतीन यावत सात दिन वाले देवकुरु उत्तरकुरु युगलिकों के बालों के असंख्य खण्ड करके उन्हें दबाकर इस प्रकार भरा जाये कि वे वाल१. (क) काल का विचार जम्बूद्वीप पन्नत्ति कालाधिकार में संग्रहीत है ।
(ख) अनुयोगद्वार १३८ से १४० । (ग) प्रवचनसारोद्वार-द्वार १५८ गाया १०१८-१०२६ ।