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कमस्तव : परिशिष्ट
जिस राशि का अन्त नहीं आता, जो राशि समाप्त नहीं होती, उसे अनन्त कहते हैं ।
संख्यात, असंख्यात और अनन्त के भेद और उनकी व्याख्या नीचे लिखे अनुसार समझना चाहिए।
संख्यात के तीन भेद हैं- जधन्य मध्यम और उत्कृष्ट । 'एक' गिनती नहीं है। वह तो वस्तु का स्वरूप है, अत दो मे प्रारम्भ होने वाली गिनती को गणना कहते हैं यानी एक संख्या तो अवश्य है लेकिन गणना का प्रारम्भ दो से होता है, जैसे दो, तीन, चार आदि । इस गणना में दो संख्या को जघन्य संख्यात और तीन से लेकर उत्कृष्ट से एक कम तक की संख्या को मध्यम संख्यात कहते हैं ।
उत्कृष्ट संख्यात का स्वरूप इस प्रकार है- कल्पना से जम्बुद्वीप को परिधि जितने तीन पल्य (कुए) माने जायें अर्थात् प्रत्येक पत्य की परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताइस योजन तीन कोस १२८ धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक हो। एक-एक लाख योजन को लम्बाई चौड़ाई हो । एक हजार योजन की गहराई तथा जम्बूद्वीप की वेदिका जितनी (आठ योजन) ऊंचाई हो । इन तीन पल्यों के नाम क्रमशः शलाका, प्रतिशलाका एवं महाशलाका हो ।
सर्वप्रथम शलाका पत्य को सरसों में परिपूर्णरूप से भरकर में कल्पना से कोई व्यक्ति एक दाना जम्बूद्वीप में, एक दाना लवण समुद्र इस प्रकार प्रत्येक द्वीप समुद्र में डालते डालते जिस द्वीप या समुद्र में वे सरसों के दाने समाप्त हो जायें, इतने विस्तार वाला एक अनवस्थित पल्य बनाया जाये फिर उसे सरसों से भरकर एक दाना शलाका पल्य में डालकर पहले डाले हुए द्वीप समुद्र के आगे पूर्ववत डालता जाये । इस प्रकार बड़े विस्तार वाले अनवस्थित पल्यों की कल्पना करते हुए