Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 205
________________ १७० कमस्तव : परिशिष्ट अन्योन्याभ्यास' करने पर अर्थात् उनके अलग-अलग ढेर लगाकर फिर उनका परस्पर गुणा करने पर जो संख्या आये, उसमें से एक दाना कम करने पर असंख्यात का तीसरा भेद उत्कृष्ट परीतासंख्यात कहलाता है। ४. असंख्यात के तीसरे भेद की राशि में एक दाना मिलाने पर असंख्यात का चौथा भेद जघन्य युक्तासंख्यात बनता है। एक आवली में इतने ही असंख्य समय होते हैं। ५. चौथे और छठे के बीच को संख्या को मध्यम युक्तासंख्यात कहते हैं। ६. असंख्यात के चौथे भेद के सरसों की राशि को परस्पर गुणा करने से प्राप्त राशि में से एक दाना निकालने पर असंख्यात का छठवों भेद उत्कृष्ट युक्तासंख्यात कहलाता है। ७. छठे भेद के सरसों की राशि में एक दाना मिलान पर जघन्यासंख्यातासंख्यात कहलाता है। ८. सातवें और नौवें भेद के बीच की संख्या मध्यमाससंख्यातासंख्यात है। ६. सातवें भेद की सर्षपराशि का अन्योन्याभ्यास करने से प्राप्त राशि में से एक दाना कम करने पर प्राप्त होने वाली राशि उत्कृष्टासंख्यातासंख्यात कहलाती है। १. अन्योन्याभ्यास और गुणा में अन्तर पाँच को पांच से गुणा करने पर ५४५=२५ होते हैं। और अन्योन्याभ्यास करने से ३१२५ होते हैं । सर्वप्रथम ५-५-५-५-५ इस तरह को पांच को पांच जगह स्थापित करके फिर एक दूसरे से गुणा किया जाता है जैसे ५४५=२५, २५४५= १२५, १२५४५-६२५, ६२५४५=३१२५ ।

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