Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 204
________________ द्वितीय कर्मग्रम्य : परिशिष्ट एवं शलाका पल्य में एक-एक दाना डालते हुए जब शलाका पत्य इतना भर जाये कि उसमें एक दाना भी न समा सके और अनवस्थित पल्य भी पूरा भरा हुआ हो। उस स्थिति में शलाका पल्य से एक दाना प्रतिशलाका पल्य में डाले और फिर आगे के द्वीप समुद्रों में डालता जाये। जब वह शलाका पल्य खाली हो जाये तो फिर उसे पहले की तरह उत्तरोत्तर अधिकाधिक विस्तार वाले नये-नये अनवस्थित पल्यों की कल्पना करके उन्हें भरे। जब वे पूरे हो जाय नब एक दाना प्रतिशलाका पल्य में डालकर शेष दाने द्वीप समुद्र में डालता हुआ खाली करे। इस प्रकार अनबस्थित से शलाका और अनवस्थित शलाका से प्रतिशलाका पल्य को भर दे। उसके भरने के बाद एक दाना महाशलाका पल्य में डालकर पूर्व विधि से प्रतिशलाका पल्य को द्वीप समुद्रों में खाली करे । ऐसे अनवस्थित से शलाका, अनवस्थित शलाका से प्रतिशलाका तथा अनवस्थित शलाका-प्रतिशलाका मे महाशलाका को भरने पर जब चारों पल्य पूरे भर जायें तब उनके सरसों के दानों का एक ढेर लगाये । उस ढेर में से यदि एक दाना निकाल लिया जाये तो वह उत्कृष्ट संख्यात है। असंख्यात के नौ भेद इस प्रकार हैं १. उक्त उत्कृष्ट संख्यांत में यदि एक दाना और मिला दिया जाय तो वह असंख्यात का पहला भेद जघन्य परीतासंख्यात है । २. पहले और तीसरे भेद के बीच की संख्या असंख्यात का दूसरा भेद मध्यम परीतासंख्यात है। ३. असंख्यात के प्रथम भेद के दानों की जितनी संख्या है, उनका

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