Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 206
________________ द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट १७१ अनन्त के आठ भेद इस प्रकार हैं १. असंख्यात के नौवें भेद की संख्या में एक मिलाने पर अनन्त का पहला भेद होता है। जिसे जघन्य परीतानन्त कहते हैं । २. अनन्त के पहले और तीसरे भेद के बीच की संख्या मध्यम परीतानन्त कहलाती है । ३. अनन्त के पहले भेद की संख्या का अन्योन्याभ्यास करने में प्राप्त संख्या में से एक कम करने पर अनन्त का तीसरा भेद होता है । उसे उत्कृष्ट परीतानन्त कहते हैं । ४. अनन्त के तीसरे भेद की संख्या में एक मिलाने पर अनन्त का चौथा भेद जघन्य युक्तानन्त कहलाता है । ५. अनन्त के चौथे और छठे भेद के बीच की संख्या मध्यम युक्तानन्त है | ६. अनन्त के चौथे भेद की संख्या का परस्पर गुणा करने पर प्राप्त संख्या में से एक कम करने पर अनन्त का छठा भेव उत्कृष्ट युक्तानन्त कहलाता है । ७. अनन्त के छठे भेद की संख्या में एक मिलाने से अनन्त का सातवाँ भेद जघन्यानन्तानन्त कहलाता है । ८. जयन्यानन्तानन्त के आगे की सब संख्या अनन्त का आठवा भेद मध्यमानन्तानन्त कहलाता है । यह आठ भेद आगमानुसार हैं। किन्हीं आचार्यों ने उत्कृष्टानन्तानन्त' यह नौवाँ भेद माना है किन्तु वह आगम समर्थित न होने से विचारणीय है । १. अनन्त के सासवें भेद की संख्याओं को तीन बार गुणा करे फिर उसमें निम्नलिखित छह अनन्त वस्तुओं को मिलाये -

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