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द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
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अनन्त के आठ भेद इस प्रकार हैं
१. असंख्यात के नौवें भेद की संख्या में एक मिलाने पर अनन्त का पहला भेद होता है। जिसे जघन्य परीतानन्त कहते हैं ।
२. अनन्त के पहले और तीसरे भेद के बीच की संख्या मध्यम परीतानन्त कहलाती है ।
३. अनन्त के पहले भेद की संख्या का अन्योन्याभ्यास करने में प्राप्त संख्या में से एक कम करने पर अनन्त का तीसरा भेद होता है । उसे उत्कृष्ट परीतानन्त कहते हैं ।
४. अनन्त के तीसरे भेद की संख्या में एक मिलाने पर अनन्त का चौथा भेद जघन्य युक्तानन्त कहलाता है ।
५. अनन्त के चौथे और छठे भेद के बीच की संख्या मध्यम युक्तानन्त है |
६. अनन्त के चौथे भेद की संख्या का परस्पर गुणा करने पर प्राप्त संख्या में से एक कम करने पर अनन्त का छठा भेव उत्कृष्ट युक्तानन्त कहलाता है ।
७. अनन्त के छठे भेद की संख्या में एक मिलाने से अनन्त का सातवाँ भेद जघन्यानन्तानन्त कहलाता है ।
८. जयन्यानन्तानन्त के आगे की सब संख्या अनन्त का आठवा भेद मध्यमानन्तानन्त कहलाता है ।
यह आठ भेद आगमानुसार हैं। किन्हीं आचार्यों ने उत्कृष्टानन्तानन्त' यह नौवाँ भेद माना है किन्तु वह आगम समर्थित न होने से विचारणीय है ।
१. अनन्त के सासवें भेद की संख्याओं को तीन बार गुणा करे फिर उसमें निम्नलिखित छह अनन्त वस्तुओं को मिलाये -