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द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
१६५ कर अन्य प्रदेश पर पहुँच जाता है तो उस प्रदेश मात्र के अतिक्रमण के परिमाण के बराबर जो काल पदार्थ की सूक्ष्म वृत्ति रूप समय है, वह कालद्रव्य की समयरूप पर्याय है।
व्यवहारकाल के भेद व्यवहारकाल का सबसे सूक्ष्मतम अंश समय है। इस समय के पश्चात ही अन्य उत्तरवर्ती काल की गणना होती है। यह गणना इस प्रकार है
असंख्य समय की आवली (आवालका) होती है और २५६ आव. लिका का एक क्षुल्लकभव (सब से छोटी आयु, और कुछ अधिक सत्रहभवों जो साधिक ४४४६ आवलिका प्रमाण होते हैं, का एक प्राणश्वासोच्छ्वास होता है। सात प्राण का एक स्तोक, सात स्तोक का एक लव, साढ़े अड़तीस लत्र की एक घड़ी, दो घड़ी का एक मुहूर्त, तीस मुहर्त की एक दिन-रात्रि ।
एक मुहूर्त में ६५५३६ क्षुल्लकभव होते हैं और १६७७७२१६ आलि. कार्य होती हैं । एक दिन-रात्रि के अनन्तर १५ दिन-रात का एक पक्ष, दो पक्ष का एक मास, दो मास की एक ऋतु, तीन ऋतु का एक अयन (छह मास), दो अयन का एक वर्ष, पाँच वर्ष का एक युग, दो युग का एक वर्ष दशक और इस वर्ष दशक के उत्तरोत्तर समय में १० से गुणा
१. आधुनिक समय गणित के अधुसार उच्छवास, स्तोक, लव का प्रमाण इस
प्रकार समक्ष सकते हैंसंख्यात आवली ! सकेंड एक उच्छवास । ७ उच्छवास=५ सेकेण्ड स्तोक । ७ स्तोक =३७६१ सेकेण्ड=लब । साढ़े अड़तीस लव२४ मिनट (घड़ी)।
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