________________
द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
१५६
74
१०५, १०२ और १०१ प्रकृति वाले ये चार विकल्प सम्भव नहीं हैं । १०६ का विकल्प पूर्वोक्त रीति से सम्भव नहीं है । परन्तु अन्य विकल्प तो दूसरे स्थान पर होने से सम्भव हो सकते हैं ।
(३) पुरुषवेदी श्रेणी प्रस्थापक - ऊपर कहे गये अनुसार ही सनास्थान होते हैं। प्रासंगिक रूप में सामान्यतः कथन कर अब विशेष रूप में विचार करते हैं।
पहले कहा जा चुका है कि पुरुषवेद का क्षय होने पर १०५, १०४, १०१ और १०० प्रकृतियों के विकल्प शेष रहते हैं। उनमें से संज्वलन क्रोध क्षय होने पर १०४, १०३. १०० और ६६ प्रकृतियों के ये चार विकल्प होते हैं । उनमें में संज्वलन मान का क्षय होने पर १०३. १०२, ६६ और ये चार विकल्प होते हैं । इसके बाद संज्वलन माया के क्षय मे दसवें गुणस्थान की शुरूआत होती है ।
-
इस प्रकार क्षपक को ३६६, १००, १०१, १०२ १०३. १०४, १०५. १०६, १०.५, १०८, १०६, ११० १११. ११२, ११३, ११४, १२५, १२६, १२३. १३०.१३२, १३४, १३७ और १३० - ये कुल २५ सत्तास्थान होते है तथा अनिवृत्ति गुणस्थान में पूर्वोक्त २५ सत्तास्थानों में से १८ से १३४ तक २३ स्थान तथा १३५ १३६,
7
१३७ १३८, १३० १४० १४१, १४२. १४३, १४४ १४५ १४६, १४७, १४८ – ये चौदह स्थान और मिलाने मे कुल मैंतीस सत्तास्थान सम्भावित हैं ।
(१०) सूक्ष्म पराय गुणस्थान – इस गुणस्थान में उपशमश्रेणी वालों को पूर्व गुणस्थान में कहे गये १३३ मे १४८ तक के कुल सोलह सत्तास्थान होते हैं। क्षपकश्रेणी वाले को नीव गुणस्थान के अन्त में संज्वलन माया का क्षय होने ने तीर्थकरनामकर्म और आहारकचतुष्क की मत्ता वाले को १०२ की और तीर्थंकर नामकर्म की सत्ता न हो तो