Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
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(३) यह गुणस्थान ऊपर से नीचे गिरने वाले को ही होता है ।
इस गुणस्थान में सामान्य से पूर्ववद्वायु और अश्रद्धायु- इन दो प्रकार के जीवों के द्वारा सत्ता का कथन किया जाएगा। उनमें भी आहारकचतुष्क की सत्ता वाले और आहारकचतुष्क को सत्तारहितइस प्रकार चार भेद हो जाते हैं ।
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इन भेदों में कर्मप्रकृतियों की सत्ता इस प्रकार है
(१) आहारकचतुष्क की सत्तासहित पूर्वद्धायुक सास्वादन गुणस्थानों में पीवों की ४७ की और एक जीव की अपेक्षा अन्य गति की आयु बाँधने वाले को १४५ की और उसी गति की आयु बांधने वाले को १४४ की और अनेक जीवों की अपेक्षा १४५ प्रकृतियों की सत्ता होती है ।
(२) आहारकचतुष्क की सत्तासहित अबद्धायुष्क सास्वादन गुणस्थानवर्ती जीवों में अनेक जीवों की अपेक्षा १४७ की और एक जीव की अपेक्षा १४४ प्रकृतियों की मत्ता होती है ।
(३) आहारकचतुष्क की सत्तारहित पूर्वबद्धायुष्क सास्वादन गुणस्थानवर्ती जीवों में अनेक जीवों की अपेक्षा १४३ की, एक जीव की अपेक्षा अन्य गति की आयु बाँधने वाले को १४१ की तथा उसी गति को आयु बाँधने वाले को १४० की तथा अनेक जीवों की अपेक्षा १४१ प्रकृतियों की सत्ता होती है ।
(४) माहारकचतुष्क की सत्तारहित अबद्धायु सास्वादन गुणस्थानवर्ती जीवों में अनेक जीवों की अपेक्षा १४३ की और एक जीव की अपेक्षा १४० प्रकृतियों की सत्ता होती है ।
सामान्य से कथन करने के बाद अब गतियों की अपेक्षा सास्वादन गुणस्थानवर्ती जीवों को प्रकृतियों की सत्ता बतलाते है ।