Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 191
________________ १५६ कर्मस्तव परिशिष्ट बांधी गई देवायु और उदयमान मनुष्यायु के सिवाय बाकी की दो आयु के बिना १४६ की और एक जीव की अपेक्षा अबद्धायुष्क को सद्भाव ( विद्यमान सत्ता की दृष्टि से १४५ की ओर सम्भव (यदि आयुबन्ध सम्भव हो तो उस आयु के साथ) सत्ता की दृष्टि से अनेक जीवों की अपेक्षा अन्य गति की आयु बाँधी हो तो १४६ की और उसी गति की आयु बाँधी हो तो १४५ प्रकृतियों की सत्ता होती है। उनमें भी जो जीव तीर्थंकर नामकर्म की सत्ता के बिना के हों तो उनको १४८, १४६, और १४५ के बदले अनुक्रम से १४७, १४५ और १४४ प्रकृतियों की सत्ता होती है। हारकचतुष्क की हो तो १४, १४६ और १४५ के बदले में क्रमशः १४४, १४२ और १४१ प्रकृतियों को सत्ता होती है तथा तीर्थकर नामकर्म और आहारकचतुष्क- इन पाँच प्रकृतियों की सत्तारहित जीवों के १४५ १४६ और १४५ के बदले १४३, १४१, और १४० प्रकृतियों की सत्ता होती है । विसंयोजक - यहाँ भी ऊपर कह गये अनुसार हा सत्ता समझना, लेकिन उसमें अनन्तानुबन्धीचतुष्क को कम कर देना चाहिए। अर्थात् जहाँ १४५, १४७, १४६, १४५, १४४, १४३, १४२, १४१ और १४० प्रकृतियाँ बताई गई है, उनके बदले अनुक्रम ०१४४, १४३, १४२, १४५ १४०, १३८, १३८, १३७ और १३६ प्रकृतियों की सत्ता कहना चाहिए । श्रेणी से गिरने वाले जीवों को भी इसी प्रकार सत्ता समझनी चाहिए । (२) क्षायिक सम्यक्त्वी उपसमश्रेणी बालों में अनेक जीवों की अपेक्षा पूर्वबद्धायुष्क जीवों के दर्शनमप्तक और तियंत्रायु और नरकायु के सिवाय १३६ प्रकृतियां सत्ता में होती हैं और अद्वायुष्क के १३८ प्रकृतियों की सत्ता होती है । यहाँ आयुष्क का बन्ध होना संभव नहीं है । क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करने के पूर्व अवाक हो और

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