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कमस्तव : परिशिष्ट की तथा तीर्थंकरनामकर्म की सत्तारहित आहारकचतुष्क की सत्ता वाले के १३८ की सत्ता होती है । परन्तु तीर्थंकारनामकर्म तथा आहारकचतुष्क की सत्ता से रहित जीवों के १३४ को सत्ता होती है। ___क्षायिक सम्यक्त्वी अबिरतसम्यग्दृष्टि नारकी जीवों के दर्शनसप्तक सत्ता में होता ही नहीं है तथा चौथे गुणस्थान से कभी भी नहीं गिरने के कारण मनुष्याय का ही बन्ध करते हैं। अतः शष तीन आय उनको होती ही नहीं हैं । इसलिए उक्त नी प्रकृतियां के सिवाय अंक जीवों की अपेक्षा पूर्ववद्धायुष्क जीवों के १३६ की और अबद्घायुष्क के १३८ प्रकृतियों को सत्ता होती है। यदि तीर्थकरनामकर्म को सत्तारहित जीव पूर्वबद्धायुष्क हों तो १३८ को तथा अबद्धायक हों तो १३७ प्रकृतियों की मत्ता होती है । यदि तीर्थकरनामकर्म को सत्ता वाले हों तो आहारक चतुष्क के बिना पूर्वबद्धायुष्क के १३५ की तथा अबद्धायुष्क के १३४ की तथा तीर्थकरनामकर्म और आहारकचतुष्क ये पाँच प्रकृतियों न हों तो पूर्वबद्धायुष्क के १३४ की और अन्नद्धायुष्क के १३३ प्रकृतियों की सत्ता होती है।
तियंचगति - इस गति वाले जीवों के तीर्थंकर नामकर्म की सत्ता होती ही नहीं है । इसलिए उपशम सम्यक्त्वी अनेक जीवों की अपेक्षा पूर्वबद्धायुष्क को १४७ की, अन्य गति के आयुबन्धक को एक जीव की अपेक्षा १४५ की, अबद्धायुष्क तथा उसी गति के आयुबन्धक को १४४ की तथा आहारकचतुष्क की सत्ता न हो तो १४७, १४५ और १४४ के बदले १४३, १४१ और १४० प्रकृतियों की सत्ता समझनी चाहिए।
तियं चगति में अविसंयोजक और विसंयोजक-ये दो प्रकार नहीं होते हैं। क्योंकि पहले गुणस्थान में तीन करण करने से जो उपशम