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द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
एक जीव की अपेक्षा अन्य गति की आयु बांधने वाले को १४० की तथा उसी गति की आयु बाँधी हो तो १३६ की द अबद्धायुष्क को भी १३६ की सत्ता होती है। जिसको तीर्थङ्कर नामकर्म की सत्ता न हो, उसे अनुक्रम से १४१, १३६ और १३८ की मत्ता तथा आहारकचतुष्क न हो तो क्रमशः १३८, १३६ और १३५ प्रकृतियां सत्ता में होती हैं। आहारमचतुष्क मौर तीर्थ लानकर्य रे पर मारुतियां सत्ता में न हों तो १४२, १४० और १३६ के बदले क्रमशः १३.७, १३५ और १३४ प्रकृतियों की सत्ता होती है।
अब क्षायिक सम्यक्त्वी की अपेक्षा चौथे गुणस्थान में प्रकृतियों को सत्ता बतलाते हैं।
क्षायिक सम्यग्दृष्टि को अनेक जीवों की अपेक्षा पूर्वबद्धायुक को १४१ की और एक जीव की अपेक्षा अन्य गति की आयु बांधने वाले को १३६ को और उसी गति की आयु बांधने वाले को १३८ की तथा अबद्धायुष्क को भी १३८ प्रकृतियों की सत्ता होती है ।
यदि तीर्थंकरनामकर्म की सत्ता न हो तो १४५, १३६ और १३७ के बदले क्रमशः १४०, १३८ और १३६ प्रकृतियों की सत्ता होती है । यदि आहारकचतुष्क सत्ता में न हो तो १४१, १३६ और १३८ के बदले १३७, १३५ और १३४ की तथा तीर्थकरनामकर्म और आहारकचत्ताक कुल पाँच प्रकृतियाँ सत्ता में न हों तो १४१, १३६ और १३८ के बदले श्रमशः १३६, १३४ और १३३ प्रकृतियों की सत्ता होती है।
औपमिक आदि तीनों प्रकार के सम्यक्त्व की अपेक्षा चौथे गुणस्थान में कर्मप्रवातियों की सत्ता बतलाने के अनन्तर अब मतियों की अपेक्षा कर्मप्रकृतियों की सत्ता का कथन करते हैं। ___ नरकगति-इस गति की कुछ अपनी विशेषताएं हैं। जैसे कि इस गति के जीवों के देवायु की सत्ता नहीं होती है। जिनको तीर्थंकर.