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पर भी सम्यक्त्वमोहनीय की उदबेलना करने वाला विसंयोजक नहीं होता है ।
कर्मस्तव परिशिष्ट
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अब चारों गतियों की अपेक्षा मिश्र गुणस्थान में कर्मप्रकृतियों की ता बताते हैं ।
नरकगति - इस गति में सत्ता तो पूर्वोक्त क्रमानुसार ही होती है; परन्तु इस गति में देवायु की सत्ता नहीं होती है। अतः जहाँ देवायु को गिना गया हो, वहाँ एक प्रकृति कम गिननी चाहिए। जैसे कि अनेक जीवों की अपेक्षा १४ ७ प्रकृतियों की सत्ता बतलाई गई है, उसकी बजाय १४६ प्रकृतियों की सत्ता माननी चाहिए ।
इसी प्रकार तिर्यगति और मनुष्यगति में भी प्रकृतियों की सत्ता समझनी चाहिए | देवगति में यह विशेषता समझनी चाहिए कि इस गति में नरकायु की सत्ता नहीं होती है, किन्तु देवायु की सत्ता होती है । शेष नरकगति के अनुसार समझना चाहिए ।
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इस प्रकार मिश्र गुणस्थान में १३७, १३८, १३० १४० १४१, १४२, १४३. १४४, १४५, १४३, १४७ ये सत्तास्थान होते हैं ।
(४) अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान – इस गुणस्थान में सामान्य में १४८ प्रकृतियों की सत्ता होती है तथा एक जीव की अपेक्षा अन्य गति की आयु बाँधने वाले को सामान्यतः १४६ की और अपनी ही गति की आयु बाँधने वाले को १४५ प्रकृतियों की सना है ।
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सामान्यतः पूर्वोक्त सत्ता तो सभी प्रकार के सम्यक्त्वी जीवों की अपेक्षा कही है । परन्तु सम्यक्त्व के भेदानुसार सत्ता का विचार करने पर तो उपशमसम्यग्दृष्टि, क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि इन तीन प्रकार के सम्यग्दृष्टि जीवों की अपेक्षा भत्ता का विचार करना पड़ेगा ।