Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
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करने पर १२६ को और मनुष्यद्विक को कम करने पर १२७ प्रकृतियों को सना होती है।
उक्त सत्ता तेजस्कायिक, वायुकायिक में से आये हुए अन्य तिर्यंचों के भी अल्पकाल के लिए होती है। अन्य स्थावरों को १३० प्रकृतियों की सत्ता तेजस्कायिक और वायुकायिक में से न भी आये हों तो भी होती है तथा १३० प्रकृतियों की सत्ता वाला मनुष्याय का बन्ध करे तो १३१ प्रकृतियों की भी सत्ता होती है। ___ मनुष्यगति----इस गति में अनेक जीवों की अपेक्षा बायुष्क को १४६ की एवं एक ही गति की आयु बांधने वाले अनेक जीवों की अपेक्षा १४६ की तथा उसी गति को बांधने वाले ऐसे अनेक जीवों की अपेक्षा १४५ की और अबदायुष्क के भी १४५ प्रकृतियों की सना होती है। ___ आहारकचतुष्क की सत्ता बालों को पूर्वबसायु अनक जीवों की अपेक्षा १४७ की और तद्गति की आयु को बांधने वाले को १४४ की एवं अन्य गति को बाँधने वाले को १४५ की और अबढायुरुक को १४४ प्रकृतियों की सत्ता होती है।
यदि सम्यक्त्वमोहनीय का उद्वेलन करने वाला बद्धायुरुक हो तो अनेक जीवों की अपेक्षा तीर्थकरनामकर्म, आहारकचतुष्क और सम्यक्त्वमोहनीय के बिना १४२ की एवं एक जीव की अपेक्षा अन्य गति की आयु का बन्ध करने वाले को १४० की तथा उसी गति का बन्ध करने वाले को १३६ की और अबद्धायुष्क को मो १३६ की तथा देवद्विक या नरकद्विक की उद्वेलना की हो तो बद्धायुष्क अनेक जीवों की अपेक्षा तीर्थङ्करनामकर्म और आहारकचतुष्क के सिवाय १४३ प्रकृतियों की सत्ता होती है।
यदि सम्यक्त्वमोहनीय की उदवेलना करे तो १४२ की तथा नरक