Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 175
________________ १४० कर्मस्तव : परिशिष्ट सम्यक्त्वमोहनीय के उद्देलक को बतायुष्क अनेक जीवों की अपेक्षा १४१ की, एक जीव की अपेक्षा १४० की तथा अबद्धायुष्क के १३६ की तथा मिश्रमोहनीय के उद्देलक को बद्धायक अनेक जीवों की अपेक्षा १४० को और एक जीव की अपेक्षा १३९ की और अबद्धायुष्क के १३८ प्रकृतियों की सत्ता होती है। तिर्यचति-इस गति में तीर्थंकरनामकर्म की सत्ता होती ही नहीं है। अतः अनेक जीवों की अपेक्षा १४.७ की और एक जीव की अपेक्षा उसी गति को बाँधने वाले के १४४ की और अन्य गति को बाँधने वाले के १४५ की और अबतायुष्क को १४४ प्रकृतियों की सत्ता होती है । ___ आहारकचतुष्क की सत्तारहित बद्धायुष्क अनेक जीवों की अपेक्षा १४३ की, एक जीव की अपेक्षा उसी गति को बांधने वाले के १४१ की तथा अबदायुष्क के भी १४१ प्रकृतियों की सत्ता होती है । सम्यक्त्वमोहनीय का उद्वेलन करने वाले बद्धायुष्क अनेक जीवों की अपेक्षा १४२ की, एक जीव की अपेक्षा उसी गति का बन्ध करने वाले के १३६ की और अन्य गति का बन्ध करने वाले के १४० प्रकृतियों की सत्ता होती है तथा मिश्रमोहनीय उद्वेलक बद्धायुष्क अनेक जीवों की अपेक्षा १४३ की तथा अन्य गति की आयु बाँधने वाले एक जीव की अपेक्षा १३६ की एवं उसी गति की आयु बाँधने वाले के १३८ की तथा अबद्धायुष्क को भी ५३८ प्रकृत्तियों की सत्ता होती है। तेजस्कायिक, वायुकायिक में यदि आहारकचतुष्क का उद्वेलन करे तो १४० की तथा सम्यक्त्वमोहनीय की उद्वेलना करे तो १३६ की और उसके बाद यदि मिश्रमोहनीय की उद्वेलना करे तो १३८ की और तदनन्तर देवद्विक अथवा नरकद्विक की उद्देलना करे तो १३६ प्रकृतियों की व अनेक जीवों की अपेक्षा १३८ की सत्ता होती है और उसके बाद वैझियषट्क के घटाने पर १३० की, उच्चगोत्र कम

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