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कर्मस्तव : परिशिष्ट इन दो द्विकों में से बाकी रहे एक द्विक और वैक्रियचतुष्क-इन वैक्रियपटक का उद्वेलन करने पर १६० पति की पोल का ढेका करने पर १२६ की और मनुष्यद्विक की उद्वेलना करे तो १२७ प्रकृतियों की सत्ता होती है।
पृथ्वी, अप और वनस्पतिकायिक जीव नरकद्विक या देवाद्विक का उद्वेलन करें तो अनादिमिथ्यात्वी होने से सम्यक्त्वमोहनीय आदि सात
और देव तथा नरक में जाने वाला नहीं होने से दो आयु इस प्रकार कुल नौ प्रकृतियों के बिना अनेक जीवों की अपेक्षा १३६ की सत्ता होती है। क्योंकि कोई नरकद्विक का उद्वेलन करे और कोई देवद्विक का उद्वेलन करे, परन्तु अनेक जीवों की अपेक्षा दोनों द्विक सत्ता में होते हैं । अमुक एक ही प्रकार के द्विक का उद्वेलन करें तो ऐसे जीवों की अपेक्षा १३५ प्रकृतियों की तथा पूर्वबद्धायुष्क अनेक जीवों की अपेक्षा मनुष्यायु को बाँधने वाले को १३५ वी और तियंचायु बाँधने वाले और अबदाशुष्क के ५३६ प्रकृतियों की सत्ता होती है । यदि वैक्रियघटन को सद्धेलना की हो तो १३७ के बदले १३१ और १३६ के बदले १३० प्रकृतियों की सत्ता होगी। ___ पूर्वोक्त सत्ता सिर्फ तेजस्कायिक, वायुकायिक में ही नहीं समझनी चाहिए, किन्तु वहां से निकलकर आये हुए अन्य तियचों में भी अपर्याप्त अवस्था में अल्पकाल तक रहती है। अतः वहाँ भी सम्भावना मानी जा सकती है। शेष रह हुए तिर्यच जीवों के पहले कहे गये आठ विकल्पों में से तीसरे, चौथे, सातवें और आटव विकल्प के अनुसार भी होती है। ___ मनुष्यगति--इस गति में अनादिमिथ्यात्वी के पूर्वोक्त आठ विकल्पों में से तीसरा, चौथा, सातबा और आठवां ये चार विकल्प सम्भव हैं, अतः उसी के अनुसार प्रकृतियों की सत्ता समझ लेनी