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द्वितीय कर्मप्रन्थ : परिशिष्ट
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प्रकार है और सम्यक्त्वमोहनीय का उद्वेलन करने के बाद ही पहले गुणस्थान में मिश्रमोहनीय का उद्वेलन होता है। ___ जीव सामान्य की अपेक्षा मिथ्यात्व गुणस्थान में प्रकृतियों की सत्ता बतलाने के पश्चात् चार पतियों की अपेक्षा अनादि और सादि मिथ्यादृष्टि जीवों के प्रकृतियों की सत्ता बतलाते हैं। उनमें से अनादि मिश्यादृष्टि की अपेक्षा चारों गतियों में कर्मप्रकृतियों की सत्ता का कम इस प्रकार है - ___ नरकगति :-इस गति के जीव मनुष्य और तियंच इन दो आययों को ही बांध सकते हैं। अतः उक्त दो आय और भुज्यमान नरकायु ये तीन आयु अनेक जीवों की अपेक्षा से सत्ता में हो सकती हैं तथा अनादिमिथ्यात्टी के पहले कहे गये आठ भेड़ों में से असपर्याय-प्राप्त ऐसे चार भेद ही यहाँ हो सकते हैं। अतः अनुक्रम मे तीसरा, चौथा, सातवाँ और आठवाँ -- इन चार भेदों की सत्ता नरकगति में पूर्वबद्धायुष्क को अनेक जीवों की अपेक्षा से सम्यक्त्वमोहनीय आदि सात तथा देवायु के बिना १४० प्रकृतियों की सत्ता होती है । सम्भवसत्ता में भी उक्त कथनानुसार ही सत्ता होती है तथा एक जीव को अपेक्षा १३६ की तथा अबद्धायुष्क को १३८ प्रकृतियों को सत्ता होती है।
तिमंचगति-इस गति में अनादि मिथ्यात्वी के पूर्वोक्त आठों विकल्प हो सकते हैं और तदनुरूप ही सत्ता भी हो सकती है। परन्तु इतना विशेष है कि असपर्याय-प्राप्त जीव तेजस्कायिक और वायुकायिक पर्याय को प्राप्त करता है, तब देवटिक अथवा नरकटिक का उद्वेलन करे तो अन्य गति में नहीं जाने वाला होने से तद्योग्य देव, मनुष्य और नरकायु तथा अनादिमिथ्यात्वी होने से सम्यक्त्वमोहनीय आदि सात प्रकृतियाँ कुल बारह प्रकृतियों के सिवाय एक जीव की अपेक्षा १३६ प्रकृतियों की तथा पहले कहे गये देवद्विक अधवा नरकद्विक -