Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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न
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कर्मस्तव : परिशिष्ट
(७) तीर्थकरनामकर्म और आहारकचतुष्करहित सम्यक्त्वमोहनीय के उद्देलक पूर्वबद्धायुष्क सादिमिथ्यात्वी जीवों में सभी जीवों की अपेक्षा तीर्थकरनामकर्म, आहारकचतुष्क और सम्यक्त्वमोहनीय के सिवाय १४२ प्रकृतियों की तथा एक जीव की अपेक्षा तद्गति की आयु का बन्ध करने वाले को १३६ प्रकृतियों की और अन्य गति की आयु बांधने वाले को १४० प्रकृतियों की सत्ता होती है।
(८) तीर्थकरनामकर्म और आहारकचतुष्क की सत्तारहित सम्यक्त्वमोहनीय उद्वेलक अबद्धायुष्क सादिमिथ्यात्वी जीव चारों गतियों में होते हैं। इसलिए तीर्थंकरनामकर्म और आहारकचतुष्क व सम्यक्त्वमोहनीय के सिवाय अनेक जीवों की अपेक्षा १४२ प्रकृतियों की और एक जीव की अपेक्षा १३९ प्रकृतियों को सत्ता होती है।
(६) तीर्थकरनामकर्म और आहारकचतुष्क की सत्तारहित सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय उद्वेलक पूर्वबद्धायुष्क सादि मिथ्यात्वी जीव के अनेक जीवों की अपेक्षा तीर्थकरनामकर्म और आहारकचतुक, सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय के सिवाय १४१ प्रकृतियों को, एक जीव की अपेक्षा उसी गति को बाँधने वाले के १३८ की और अन्य गति को बाँधने बाले के १३६ प्रकृतियों की सत्ता होती है।
(१०) तीर्थकरनामकर्म और आहारकचतुष्कविहीन, सम्यक्त्वमोहनीय और मित्रमोहनीय उद्वेलक अबद्धायुगक सादिमिथ्यादृष्टि जीव चारों ही गतियों में होने से अनेक जीवों की अपेक्षा सात प्रकृतियों के सिवाय १४१ प्रकृतियों को और एक जीव की अपेक्षा १३८ प्रकृतियों की सत्ता होती है। ___ आहारकचतुष्क की सत्ता वाला सम्यक्त्वमोहनीय की सत्तासहित पहले गुणस्थान में होता है। तीर्थकरनामकर्म की सत्ता वाला भी इसी