Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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द्वितीय कर्मग्रन्थ परिशिष्ट
(१) तीर्थंकर नामकर्म की सत्तासहित पूर्ववद्धायुष्क सादिमिथ्यादृष्टि जीव के आहारकचतुष्क, तियंचायु और देवायु इन छह प्रकृ तियों के बिना १४२ प्रकृतियों की सत्ता होती है ।
(२) तीर्थकर नामकर्म की सत्तासहित अवद्धायुष्क सादिमिध्यादृष्टि जीवों के नरकाय को ही सत्ता वाले होने से शेष तीन आयुकर्म और आहारकचतुष्क इन सात प्रकृतियों के सिवाय १४१ प्रकृतियों की सत्ता होती है ।
(३) आहारकचतुष्क की सत्तासहित पूर्ववद्धायक सादिमिथ्यादृष्टि जीवों में अनेक जीवों की अपेक्षा तीर्थङ्कुरनामकर्म के मिवाय १४७ प्रकृतियों की और एक जीव की अपेक्षा उसी गति की आयु बाँधने वाले को १४४ की तथा अन्य गति की आयु बधिने वाले को १४५ प्रकृतियों को सत्ता होती है ।
(४) आहारकचतुष्क की सत्तासहित अवद्धा सादिभिध्यात्वी जीव चारों गतियों में भिन्न-भिन्न आयकर्म की सत्ता वाले होते है। अतः अनेक जीवों की अपेक्षा तीर्थकरनामकर्म के सिवाय १४३ प्रकृतियों की और एक जीव को अपेक्षा १४५ की सत्ता वाले होते हैं ।
(५) तीर्थकर नामकर्म और आहारकचतुष्क की सत्तारहित पूर्वaator सादिमिध्यात्वी जीवों में तीर्थकरनामकर्म और आहारकचतुष्क के बिना सभी जीवों की अपेक्षा १४३ की, एक जीव की अपेक्षा उसी गति की आयु बाँधने वाले के १४० की और अन्य गति की आयु बाँधने वाले के १४१ प्रकृतियों की सत्ता होती है।
(६) तीर्थकरनामकर्म और आहारकचतुष्करहित अवद्धायुष्क सादिमिध्यात्वी जीव चारों गतियों में भिन्न-भिन्न आय की सत्ता वाले होने से अनेक जीवों की अपेक्षा १४३ की और एक जीव की अपेक्षा १४० प्रकृतियों की सत्ता वाले होते हैं ।