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द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
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१३६ प्रकृतियों की और उसी गति को आयु को बांधन वाले जीव को १३८ प्रकृतियों की सत्ता होती है ।
( 4 ) अनादिमिध्यात्वी, सपर्याय प्राप्त, अबद्धाशुष्क भव्य जीव की कर्मप्रकृतियों की शता का विकार जाता है - (१) सद्भावसत्ता (२) संभवसत्ता |
जो जीव उसी भव में मोक्ष प्राप्त करने वाले हैं और विद्यमान कर्मप्रकृतियों की सत्ता वाले हैं, उन दोनों प्रकार के जीवों का समावेश सद्भावसत्ता में और जिन जीवों के आयु बन्ध संभव है, उन जीवों का समावेश सम्भवसत्ता में होता है ।
सद्भावसत्ता वाले जीवों के सम्यक्त्वमोहनीय आदि सात तथा तीन आयु – इन दस प्रकृतियों के सिवाय १३८ प्रकृतियों की सत्ता होती है । उनके सिर्फ भुज्यमान आयु हो होती है ।
संभवता वाले जीवों में (१) अनेक जीवों की अपेक्षा चारों आयुओं को गिनने से सम्यक्त्वमोहनीय आदि मात प्रकृतियों से रहित १४१ प्रकृतियों की सत्ता होती है। (२) एक जीव की अपेक्षा अन्य गति की आयु बाँधने वाले को १३६ प्रकृतियों की तथा (३) उसी गति की आयु बाँधने वाले को १३८ प्रकृतियों की सत्ता होती है ।
इस प्रकार अनादिमिथ्यादृष्टि की अपेक्षा सत्ता बतलाने के अनन्तर अब सादिमिथ्यादृष्टि के कर्मप्रकृतियों की सत्ता बतलाते है -
जो सम्यक्त्व प्राप्त करने के अनन्तर संक्लिष्ट अध्यवसाय के योग से गिरकर पहले गुणस्थान में आया हो, उसे सादिमिथ्यात्वी कहते हैं। इनमें से कितने हो श्रेणी से पतित और कितने ही सिर्फ सम्यक्त्व मे पतित होते हैं। सम्यक्त्व प्राप्त करने के बाद अनन्तानुबन्धी की विसंयोजना कर जो यहाँ आते हैं, उन्हें अनन्तानुबन्धी की सत्ता नहीं