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कर्मस्तव : परिशिष्ट (१-२) अनादिमिथ्यात्वी, असपर्याय-अप्राप्त, पूर्वबद्धायुष्क और अबदायुष्क अभव्य जीवों के पूर्वोक्त इक्कीस प्रकृतियों के सिवाय १२७ प्रकृतियाँ सत्ता में होती हैं।
(३) अनादिमिथ्यात्वी, असपर्याय-प्राप्त, पूर्वबद्धायुष्क अभव्य जीव के भी अनादिमिथ्यात्वी होने से तद्विरोधी सम्यक्त्वमोहनीय आदि सात प्रकृतियां सत्ता में होती ही नहीं हैं तथा पूर्वबद्धायुष्क होने से अनेक जीवों की अपेक्षा १४१ प्रकृतियों की ससा और एक जीव की अपेक्षा विचार करने पर अन्य गति की आय का बन्ध करने वाले जीव को १३६ प्रकृतियों की तथा तदगति की आय का बन्ध करने वाले को १३८ प्रकृतियों को सत्ता होती है।
(४) अनादिमिथ्यात्वी, वसपर्याय-प्राप्त, अबद्धायुष्क अभव्य जीव के अनादि मिथ्यात्वी होने से सम्यक्त्वमोहनीय आदि सात प्रकृतियाँ सत्ता में होती ही नहीं हैं तथा अबद्धायुष्क होने से भुज्यमान आयू सत्ता में होती है। अतः शेष तीन आयु भी सत्ता में नहीं रहती हैं। इस प्रकार दस प्रकृतियों के बिना बाकी की १३८ प्रकृतियाँ सत्ता में होती हैं।
(५-६) अनादिमिथ्यात्वी, असपर्याय-अनाप्त, पूर्वबद्धायुधक भव्य तथा अबद्धायुष्क भव्य जीवों को अभव्य जीवों के लिए कहे गये पहले व दूसरे दो भंगों के अनुसार ही कर्मप्रकृतियों की सत्ता सगझनी चाहिए । अर्थात् उन अभव्य जीवों की तरह इन दोनों प्रकार के भव्य जीवों के भी १२७ प्रकृतियों की सत्ता समझनी चाहिए।
(७) अनादिमिथ्यात्वी, सपर्याय-प्राप्त, पूर्वबद्धायुष्क भव्य जीव के अनादिमिथ्यात्वी होने से सम्यक्त्वमोहनीय आदि सात प्रकृतियों के सिवाय अनेक जीवों की अपेक्षा से १४१ प्रकृतियों की तथा एक जीव की अपेक्षा विचार करने पर अन्य आयु का बन्ध करने वाले जीव के