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होती है, किन्तु तत्काल ही यहाँ उसका बन्ध होने से सत्ता भी होती है। अतः सभी जीवों की अपेक्षा पूर्वबद्धायु वाले जीवों के १४८ प्रक्रतियों की सत्ता होती है ।
कर्मस्तव परिशिष्ट F
अवद्धायु वालों को भी सभी जीवों की अपेक्षा से १४८ प्रकृतियों की सत्ता होती है। इसका कारण यह है कि चारों गतियों में आयुकर्म का बन्ध नहीं करने वाले ( अवन्धक) जीव होते हैं। अमुक एक गति की अपेक्षा से १४५ प्रकृतियों की सत्ता होती है ।
विशेष रूप से विचार करने पर इसके दस विभाग हो जाते हैं(१) तीर्थंकर नामकर्म की सत्ता वाला ( पूर्वचद्धायु) सादिमिथ्यात्वी, (२) तीर्थकर नामकर्म की सत्ता वाला (अबद्धायु) सादिमिध्यात्वी, (३) आहारकपक की पाव (पूर्व) सदिमिथ्यात्वी, (४) आहारकचतुष्क की सत्ता वाला (अबद्धायु) सादिमिथ्यात्वी, (५) तीर्थकरनामकर्म और आहारकचतुष्क की सत्तारहित ( पूर्वबद्धायु) सादिमिथ्यात्री, (६) तीर्थंकर नामकर्म और आहारकचतुष्क की सत्तारहित (reaायु) सादिमिथ्यात्वी, (७) तीर्थंकरनामकर्म और आहारकचतुहक की सत्तारहित सम्यक्त्वमोहनीय उद्वेलक (पूर्वबद्धायु) सादिमिध्यात्वी, (८) तीर्थंकर नामकर्म और आहारकचतुष्क की सत्तारहित सम्यक्त्वमोहनीय उद्वेलक ( अबद्धायु) सादिमिध्यात्वी, (६) तीर्थकरनामकर्म और महारकचतुष्क की सत्तारहित सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय उद्वेलक (पूर्वद्धायु) सादिमिध्यात्वी, तथा (१०) तीर्थंकरनामकर्म और आहारकचतुष्क की सत्तारहित सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय उद्वेल (अबद्धाय ) सादिमिध्यात्वी ।
जिनको तीर्थकर नामकर्म की सत्ता होती है, उनको आहरकचतुष्क की सत्ता इस मिथ्यात्व गुणस्थान में होती ही नहीं है। उक्त दस भेदों में सत्ता इस प्रकार समझनी चाहिए।