Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मस्तव : परिशिष्ट विशेष से-अभ्यवसायविशेष से कम का उदयावलिका में आकर फल देना उदीरणा कहलाती है। ___ कर्मोदय के विषय में यह विशेष रूप से समझ लेना चाहिए कि सम्यक्त्वमोहनीयकर्म का उदय चौथे से लेकर सातवें गुणस्थान तक, तीर्थकर नामकर्म का रसोदय तेरहवें और चौहदवें गुणस्थान में और प्रदेशोदय चौथे गुणस्थान से प्रारम्भ होता है।
उदययोग्य १२२ प्रकृतियाँ हैं और उनके उदय के निमित्त लगभग निम्नलिखित हो सकते हैं। इन निमित्तों के साथ जोड़े गये अविनाभावी शब्द का अर्थ 'साय में अवस्य रहने वाला' करना चाहिए ।
(१) केवलज्ञान-अधिनाभावी प्रकृति-तीर्थरनामकर्म । १ (२) मिश्रगुणस्थान-अविनाभावी –मिश्रमोहनीय । (३) क्षयोपशमसम्यक्त्व-अधिनभावो-सम्यक्त्वमोहनीय । १
(४) प्रमत्तसंयत-अविनाभादो-आहारकशरीर, आहारक-अंगोपांग।
(५) मिथ्यात्योदय-अविनाभावी -सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, आतपनाभकर्म, मिथ्यात्वमोहनीय ।
(६) जन्मान्तर-अविनाभावी-नरकानुपूर्वी, मनुष्यानुपूर्वी, तिथंचानुपूर्वी, देवानुपू: ।
(७) अनन्तानुबन्धोकषायोदय-अविनाभावो-अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, स्थावर, एकेन्द्रियजाति, द्वीन्द्रियजाति, श्रीन्द्रिय. जाति, चतुरिन्द्रियजाति नामकर्म ।
(८) अप्रत्याख्यानावरणकषायोक्य-अविनाभावी-अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, देवगति, देवायु, नरकगति, नरकाय, वैक्रियशरीर, वैक्रिय-अंगोपांग, दुर्भग, अनादेय, अयश कीतिनाम | १३