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कर्मस्तव प्राप्त होता है और उस प्रकार के सम्यगदृष्टि वाले जीव को क्षायो पमिक सम्यग्दृष्टि कहते हैं। जिन्होंने सम्यक्त्व की बाधक मोहनीय कर्म की प्रकृतियों का पूर्णतया क्षय करके सम्यक्त्व प्राप्त किया है, वे क्षायिक सम्यग्दृष्टि कहलाते हैं । ___ उक्त तीनों प्रकार के सम्यगदष्टि जीवों में में उपशम औरक्षायोपशामिक सम्यक्त्वी तो उपशमश्रेणी और क्षायिक सम्यग्दृष्टि क्षपश्रेणी को मोड़ते हैं। जो जीव क्षपकोणी मांड़ने वाले हैं, वे तो सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं । लेकिन उपशमश्रेणी वाले जीवों को यह सम्भव नहीं है। इसीलिए उनका पतन होना मम्भव है । श्रेणी का क्रम आठवें गुणस्थान से शुरू होता है।
लेकिन जिन जीवों ने अभी कोई श्रेणी नहीं माड़ी है और अभी चौथे से लेकर सातवें गुणस्थान में वर्तमान है, ऐसे आब यदि गि सम्यक्त्वी हैं और इसी भव से मोक्ष प्राप्त करने वाले नहीं है तो अनन्तानुबन्धीचतुष्क और दर्शनमोहनिक-कुल सात प्रकृतियों का क्षय होने से चौथे से लेकर सातव गुणस्थान पर्यन्त उनके १४१ प्रकृतियों की सत्ता मानी जाती है। क्योंकि किसी भी अचरमशरीरी जीव को एक साथ सब आयुओं की सत्ता न होने पर भी उनकी सत्ता होना सम्भव रहता है, इसीलिए उनको सब आयओं की सत्ता मानी जाती है। इसलिए चौथे से लेकर सातवें गुणस्थान पर्यन्त चार गुणस्थानों में क्षायिक सम्यक्त्वी जीव को १४१ प्रकृतियों की सत्ता मानी जाती है ।
जो जीव वर्तमान काल में ही क्षपकणी कर सकते हैं और चरमशारीरी हैं, लेकिन अभी अनन्तानुबन्धीचतुष्क और दर्शनमोहनिक का भय नहीं किया है, उन जोबों की अपेक्षा १४५ प्रकृतियों की सत्ता मानी जाती है और जिन्होंने उक्त अनन्तानुबन्धी चतुष्क आदि सात प्रकृतियों का क्षय कर दिया है, उन जीवों के १३८ प्रकृतियों की सत्ता होती है