________________
कर्मस्तद
विशेषायं - पूर्व गाथा में उपशमश्रेणी की अपेक्षा से कर्मप्रकृतियों की सत्ता बतलाई गई है। अब इस गाथा में क्षपकश्रेणी की अपेक्षा से कर्मप्रकृतियों की सत्ता बतलाते हैं ।
१०
जो जीव वर्तमान जन्म में क्षपकश्रेणी को मोड़ने वाले हैं और चरमशरीरी हैं, अर्थात् अभी तो जो औपशमिक या क्षायोपशमिक सम्यक्त्री ही हैं, लेकिन क्षपकश्रेणी को अवश्य ही मांड़ने वाले तथा इसी जन्म में मोक्ष पाने वाले हैं, उनको मनुष्यायु को ही सत्ता रहती है । अन्य तीन आयुओं की सत्ता नहीं रहती है और न उनकी सम्भव - सत्ता भी है। इसलिए इस प्रकार के क्षपक जीवों की अपेक्षा चौथे स लेकर सातवें गुणस्थान पर्यन्त चार गुणस्थानों में नरकायु, तियंचायु और देवाय को सत्तायोग्य १४८ प्रकृतियों में से कम करने पर १४५ कर्मप्रकृतियों की सत्ता होती है ।
लेकिन अनन्तानुबन्धचतुमक और दर्शनमोहत्रिक का क्षय करने से जिन्हें क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त है और इस भव के बाद दूसरा भव नहीं करना है, ऐसे जीव चौथे गुणस्थान से ही क्षायिक सम्यक्त्वी होकर क्षपकश्रेणी करते हैं तो उन जीवों की अपेक्षा में अनन्तानुबन्धीचतुष्क और दर्शनमोहत्रिक इन सात प्रकृतियों का क्षय होने से तथा वर्तमान मनुष्यायु के सिवाय शेष तीन आयु की भी सत्ता न होने से सत्तायोग्य १४८ प्रकृतियों में से उक्त दस प्रकृतियों को कम करने मे १३८ प्रकृतियों को सत्ता मानी जाती है। यह १३८ प्रकृतियों की सत्ता चौथे गुणस्थान मे लेकर नौवें गुणस्थान के प्रथम भाग पर्यन्त समझनी चाहिए ।
परन्तु जो जीव वर्तमान जन्म में क्षपकश्रेणी नहीं कर सकते, अर्थात् अचरमशरीरी हैं, उनमें से कुछ क्षायिक सम्यक्त्वो भी, कुछ औपशमिक सम्यक्त्वी और कुछ क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी भी होते