________________
कमंस्तव
में बन्ध, उदय और सत्तारूप में रहने वाले कर्म भी नहीं रह पाते हैं. नष्ट हो जाते हैं।
इस प्रकार नौवें गुणस्थान में सत्ता प्रकृतियों का कथन करने के पश्चात आगे की गाया में दसवें और बारहवें गुणस्थान की सत्ता प्रकृतियों की संख्या और उन-उनके अन्त में क्षय होने वाली प्रकृतियों के नाम बतलाते हैं।
सुहमि दुसय लोहन्तो खीणदुचरिमेगसय दुनिहलाओ।
नवनवा चरमसमए चजबसणनागवियन्तो ॥३०॥ गाथार्थ- (नौवें गुणस्थान के अन्त में संज्वलन माया का क्षय होने से) सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में १०२ प्रकृतियों की सत्ता रहती है तथा इसी गुणस्थान के अन्त में संज्वलन लोभ का क्षय होने से क्षीणमोह गुणस्थान के द्विपरम समय तक १०१ प्रकृतियों की और निद्राद्विक का क्षय होने में अन्तिम समय में ६ प्रकृतियों की सत्ता रहती और अन्तिम समय में दर्शनावरणचतुष्क तथा ज्ञानावरणपंचक, अन्तरायपंचक का भी क्षय हो जाता है। विशेषार्थ गाथा में क्षपक श्रेणी की अपेक्षा वर्णन किया गया है और क्षपक श्रेणी मांड़ने वाला दसवें गुणस्थान से सीधा बारहवें गुणस्थान को प्राप्त करता है। अतः दसर्वे के बाद बारहवें गुणस्थान में कर्मप्रकृतियों की सत्ता आदि का कथन किया गया है।
दसवें गुणस्थान में १०२ प्रकृतियों की सत्ता रहती है। इन १०२ प्रकृतियों में से अन्तिम समय में संज्वलन लोभ कषाय का क्षय हो जाने से बारहवें गुणस्थान में १०१ प्रकृतियों की सत्ता रहती है । लेकिन यह १०१ प्रकृतियों की सत्ता इस गुणस्थान में द्विचरम समय पर्यन्त ही