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द्वितीयकमन्त्र
हवं गुणस्थान के द्विरम समय में हो जाने से अन्तिम समय में मनुष्यत्रिक, सत्रिक, यशः कीर्तिनाम, आदेयनाम, सुभगनाम, जिननाम, पंचेन्द्रियजातिनाम तथा साता अथवा असाता वेदन इन १३ प्रकृतियों की सत्ता रहती है । इन १३ प्रकृतियों की सत्ता भी चौदहवं गुणस्थान के अन्तिम समय में क्षय हो जाने से आत्मा निष्कर्मा होकर मुक्त बन जाता है ।
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विशेषार्थ - उक्त तीनों गाथाओं में तेरहव और चौदहवं गुणस्थान में सत्तायोग्य प्रकृतियों की संख्या और क्षय होने वाली प्रकृतियों के नाम संज्ञाओं आदि के द्वारा बतलाये गये है |
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बारहवें गुणस्थान की सत्तायोग्य ६६ प्रकृतियों में से दर्शनावरण आदि की १४ प्रकृतियों का क्षय हो जाने में तेरहवं गुणस्थान में प्रकृतियाँ सत्तायोग्य रहती हैं। ये ८५ प्रकृतियाँ तेरहवें गुणस्थान के अतिरिक्त चौदहवें गुणस्थान के द्विचरम समय (अन्तिम समय से पहले) तक रहती हैं। इनमें से ७२ प्रकृतियाँ भी चौदहवें गुणस्थान के द्विचरम समय में क्षय हो जाने में अन्तिम समय में १३ प्रकृतियाँ ही सत्तायोग्य रहती हैं। उनका भी क्षय अन्तिम समय में हो जाने से आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर लेती है ।
तेरहवें और चौदहवे गुणस्थान की ८५ प्रकृतियां योगनिमित्तक बन्ध, उदय और सत्ता वाली हैं । बारहव गुणस्थान तक मिथ्यात्व, अविरत कषाय के निमित्त से बंधन वाली प्रकृतियों का क्षय हो जाता है और योग के कारण जिनकी सत्ता रहती है, वे तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में नष्ट होती हैं । इन योगनिमित्तक प्रकृतियों में भी अधिकतर काययोग से सम्बन्ध रखने वाली हैं और योगों का निरोध हो जाने से चौदहवें गुणस्थान के द्विचरम समय में कुछ जीवविपाका कुछ क्षेत्रविपाकी प्रकृतियों के साथ मुख्य रूप से पुद्गलविपाकी