Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्यस्तव
ही होता है, भवस्थान-जन्मस्थान में नहीं होता है। अतः उदय का अभाव होने से अयोगि गुणस्थानवर्ती आत्मा के द्विचरम समय में ७३ प्रकृतियों का और अन्तिम समय में १२ प्रकृतियों का क्षय होता है । अर्थात् देवद्विक आदि पूर्वोक्त ७२ प्रकृतियाँ, जिनका उदय नहीं है, जिस प्रकार द्विचरम समय में स्तिकसंक्रम द्वारा उदयवती कर्मप्रकृतियों में संक्रान्त होकर क्षय हो जाती हैं, उसी प्रकार उदय न होने से मनुष्यत्रिक में गर्मित मनुष्यानुपूर्वी प्रकृति भी विचरम समय में ही स्तिबुकसंक्रम द्वारा उदयवती प्रकृतियों में संक्रान्त हो जाती है। अतः द्विचरम समय में उदयवती कर्मप्रकृति में संक्रान्त मनुष्यानुपूर्वी की सत्ता को भी चरम समय में नहीं मानना चाहिए । इसीलिए चौदहा गुणस्थान के अन्तिम समय में १३ प्रकृतियों के बजाय १२ प्रकृतियों का क्षय होना मानना चाहिए !
इस प्रकार चौदहवं गुणस्थान में सत्ता विच्छेद के मतान्तर का संकेत करने के बाद ग्रन्थकार ग्रन्थ का उपसंहार करते हैं कि जिन्होंन सम्पूर्ण कर्मप्रकृतियों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त कर लिया है और जो देवेन्द्रों द्वारा अथवा देवेन्द्रसूरि द्वारा वन्दना किये जाते हैं, उन परमात्मा महावीर की सभी वन्दना करो।
गुणस्थानों में कर्मप्रकृतियों के बन्ध, उदय और सत्ता तथा उनउनके अन्त में क्षय होने आदि की विशेष जानकारी परिशिष्ट में दी गई है।