Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मव
क्रोध आदि उक्त चार कषायों को छोड़कर शेष ६३ प्रकृतियाँ छठे गुणस्थान में बन्धयोग्य मानी हैं ।
इस प्रकार चौथे, पांचवें और इसे गुणस्थान में बम्भयोग प्रकृतियों की संख्या आदि चतनाने के पश्चात् अब आगे की दो गाथाओं में सातवें अप्रमत्त गुणस्थान में बन्धयोग्य प्रकृतियों की संख्या, नाम और विशेषता समझाते हैं ।
तेवट्ठि पत्ते सोग अरइ अधिरयुग अजस अस्सायं । बुच्लिज्ज छच्च सत्त ब ने इ सुराजं जया निट्ठं ॥७॥ गुणसट्टि अप्पमते सुराउबन्धं तु जड़ इहागच्छे | अग्रह अट्ठावण्णा जं आहारगं बन्धे ॥५॥
गाथार्थ - ( शेष ६३ प्रकृतियों का बन्ध प्रमत्तसंयल गुणस्थान में होता है । शोक, अरति अस्थिरद्विक, अयशः कीर्तिनाम और असातावेदनीय - इन छह प्रकृतियों का बन्धविच्छेद छठे गुणस्थान के अन्तिम समय में हो जाने और आहारकद्विक का बन्ध होने से अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में ५६ प्रकृतियों का और यदि कोई जीव छठे गुणस्थान में देवायु के बन्ध का प्रारम्भ कर उसे उसी गुणस्थान मैं पूरा करता है तो उसकी अपेक्षा से अरति आदि पूर्वोक्त ६ प्रकृतियों तथा देवायु कुल सात प्रकृतियों का बन्धविच्छेद कर देने से ५८ प्रकृतियों का बन्ध होना माना जाता है ।
विशेषार्थ - सातवें अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में बन्धयोग्य प्रकृतियों की संख्या बतलाते हैं कि छठे गुणस्थान में बन्धयोग्य ६३ प्रकृतियों में से शोक, अरति, अस्थिरद्विक अस्थिरताम और अशुभनाम, अयश:कीर्तिनाम और असातावेदनीय - इन छह प्रकृतियों का बन्धविच्छेद
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