________________
कमंस्तव
शरीर पर्याप्ति पूर्ण हो जाने के बाद बादर पृथ्वीकायिक जीवों के आतपनामकर्म का उदय हो सकता है पहले नहीं। लेकिन सासादन सम्यक्त्व को पाकर जो जीव बादर पृथ्वीकाय में जन्म ग्रहण करते हैं, वे शरीरपर्याप्ति को पूरा करने के पहले ही पूर्वप्राप्त सास्वादन सम्यक्त्व का वमन कर देते हैं, यानी बादर पृथ्वीकायिक जीवों को जब सास्वादन सम्यक्त्व की सम्भावना होती है सब आतपनामकर्म का उदय संभव नहीं है और जिस समय आतफ्नाभकर्म होना संभव होता है, उस समय उनके सास्वादनसम्यक्त्व संभव नहीं है । इसी कारण सासादन गुणस्थान में आतपनामकर्म का उदय नहीं माना जाता है ।
मिथ्यात्व का उदय पहले मिथ्यात्व गुणस्थान में ही होता है । दूसरे, तीसरे आदि आगे के गुणस्थान में नहीं । अतः पहले मिथ्यात्वगुणस्थान के चरम समय में सूक्ष्म से लेकर मिथ्यात्व पर्यन्त पूर्वोक्त पाँच प्रकृतियों का विच्छेद हो जाने से दूसरे आदि आगे के गुणस्थानों में उदय नहीं होता है ।'
इस प्रकार पहले गुणस्थान की उदययोग्य ११७ प्रकृतियों में से उक्त सूक्ष्म आदि पाँच प्रकृतियों के कम होने से ११२ प्रकृतियों का उदय दूसरे गुणस्थान में होना चाहिए था किन्तु औपशमिक सम्यक्त्व से च्युत (पतित) होकर सासादन गुणस्थान में आकर टिकने वाला जीव नरकगति में नहीं जाता है, किन्तु मिथ्याल प्राप्त कर ही जाता है । इसलिए नरकगति में जाने वाले जीव को सासादन गुणस्थान नहीं होने से नरकानुपूर्वी का उदय नहीं होता है। नरकानुपूर्वी का उदय वक्रगति से नरक में जाने वाले जीवों को होता है। परन्तु उस अवस्था में उन
१. मिच्छे मिच्छादाद सुहमति .........."उदयघोच्छिण्णा ।
मिथ्याष्टि गुणस्थान में मिय्यात्व, आतप, सूक्ष्मादि तीन-इन पात्र प्रकृतियों की उदयव्युच्छित्ति होती है। -गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, २६५