Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

Previous | Next

Page 128
________________ कर्मस्तव उक्त ५५ प्रकृतियों में से भी ज्ञानावरणपंचक-मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानाबरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण, तथा अन्तरायपंचक-दानान्तरयय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, वीर्यान्तराय और दर्शनावरणचतुष्क-चक्षुदर्शनावरग, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरण कुल मिलाकर चादह प्रकृतियों का उदय बारहवें गुणस्थान के अन्तिम समय से आगे नहीं होता है । अतः तेरा सयोगिकेवली गुणस्थान में ४१ प्रकृलियाँ उदययोग्य मानी जानी चाहिए थीं। लेकिन तेरहवें गुणस्थान की यह विशेषता है कि तीर्थकरनामकर्म का बन्ध करने वाले जीवों के इसका उदय इस गुणस्थान में होता है। अन्य गुणस्थानों में तीर्थरनामकर्म का उदय नहीं होता है। अत: पूर्वोक्त उदययोग्य ४१ प्रकृतियों के साथ तीर्थकरनामकर्म को मिलाने से कुल ४२ प्रकृ. तियों का उदय तेरहवं गुणस्थान में माना जाता है। गाथा में तेरहवें गुणस्थान में उदययोग्य प्रकृतियों की जो संख्या बतायी है उसमें तीर्थकरनामकर्म के उदय का संकेत आगे की गाथा में 'तित्युदया' पद से किया गया है। अब आगे की गाथाओं में तेरहवें गुणस्थान में क्षय होने वाली और होता है। उनके मतानुसार पहले से ही ५५ प्रकृतियों का उदय बारहवें गुणस्थान में होता है । छठे कर्मग्रन्थ में भी क्षीणमोह गणस्थान में निद्रा का उदय नहीं बताया गया है । १. तुलना करो वीणकसायदुचरिमे णिद्दा पयला य उदयवोच्छिण्णा । णाणंतरायदसयं दसणयसारि चरिमम्हि ।। -गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, २७० २. तित्यं केवलिगि ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251