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कर्मस्तव
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६६ प्रकृतियों में से वेदत्रिक और संज्वलनकषायनिक को कम करने पर दसवें गुणस्थान में साठ प्रकृतियाँ ही उदययोग्य हैं। ____ दसवें गुणस्थान में उदययोग्य इन साठ प्रकृतियों में से संज्वलन लोभ का उदय अन्तिम समय में विच्छेद हो जाता है। अतः संज्वलन लोभ कषाय को कम करने में शेष ५६ प्रकृतियों का उदय ग्यारहवें गुणस्थान में पाया जाता है और इन उदययोग्य ५६ प्रकृतियों में से ऋषभनाराचसंहनन, नाराचसंहनन इन दो संहननों का अन्त ग्यारहवें गुणस्थान के चरम समय में हो जाता है। क्योंकि उपशमश्रेणी ग्यारहवें गुणस्थान तक होती है और उस श्रेणी का आरोहण करने वाले आदि के तीनों संहनन बाले हो सकते हैं; किन्तु क्षपकश्रेणी वचऋषभनाराचसंहनन बाला करता है । इसलिए बारहवें गुणस्थान में एक-वज्रऋषभनाराचसंहनन ही होता है और शेष रहे ऋषभनाराचसंहनन और नाराचसंहनन का ग्यारहवें गुणस्थान के चरम समय में अन्त हो जाता है ।
ग्यारहवें गुणस्थान के बाद क्रमप्राप्त बारहवें--क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ गुणस्थान में उदययोग्य प्रकृतियों की संख्या और उसके अन्तिम समय में ज्युच्छिन्न होने वाली प्रकृतियों के नाम सहित तेरहवं -~सयोगिकेचली गुणस्थान में उदययोग्य प्रकृतियों की संख्या का निर्देश आगे की गाथा में करते हैं ।
- -- १. तुलना करो
................"अपुष्यम्हि । छत्व णोकसाया अणियट्टीभागमागेसु ।। बेदतिम कोहमाणं मायासंजलणमेव मुहुमंते । सुहुमो लोहो सो बजेणारायणारायं ।।
--गोम्मसार, कर्मकाण्ड, २६८-२६६