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कर्मस्तव
त्रिक और संज्वलनतिक कुल छह प्रकृतियों का विच्छेद नौवें अनिवृत्तिबादरसंपराय गुणस्थान के अन्तिम समय में होने से दसवें-सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में ६० प्रकृतियाँ उदययोग्य हैं तथा संज्वलनलोभ का दसवं गुणस्थान के अन्त में विच्छेद हो जाने से ग्यारहवें-उपशान्तमोह गुणस्थान में ५६ प्रकृतियाँ उदययोग्य मानी जाती है तथा इन २६ प्रकृतियों में से ऋषभनाराचसंहननद्विक का विच्छेन्द्र ग्यारहवें गुणस्थान के अन्त में होता है। .
विशेषार्थ-इन दो गाथाओं में आठवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें गुणस्थानों में उदययोग्य प्रकृतियों की संख्या और उन-उनके अन्त में व्युच्छिन्न होने वाली प्रकृतियों के नाम बतलाये हैं ।
सातवें गुणस्थान से आग के गुणस्थान श्रेणी आरोहण करने बाले मुनि के होते हैं और श्रेणी का आरोहण वह मुनि करता है, जिसके सम्यक्त्वमोहनीयकर्म का उपशम या क्षय हो जाता है, दूसरा नहीं। जब तक सम्यक्त्वमोहनीयकर्म का उदय रहता है, तब तक श्रेणी आरोहण नहीं किया जा सकता है। जो जीव सम्यक्त्वमोहनीय का उपशम करके श्रेणी आरोहण करता है, उसको उपशमशेणी वाला और जो क्षय करके श्रेणी आरोहण करता है उसको क्षपकश्रेणी बाला कहते हैं।
इसीलिए मातवें गुणस्थान में उदययोग्य ७६ प्रकृतियों में स उसके अन्तिम समय में सम्यक्त्वमोहनीय का उदयविच्छेद हो जाता है तथा श्रेणी आरोहण की क्षमता आदि के तीन संहनन वाले जीवों के ही होती है और अन्तिम तीन संहनन वाले मंद विशुद्धि वाले होते हैं एवं उनकी क्षमता श्रेणी आरोहण करने योग्य नहीं होती है । इसलिए अन्तिम संहननत्रिक --अर्धनारांचसंहनन, कोलिकासंहनन और सेवार्त