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द्वितीय कर्मग्रन्य
गति और आयु, नीचगोत्र, उद्योत, तीसरी प्रत्याख्यानावरणकषाय चतुष्क का छेद होने तया आहारकद्विक को मिलाने से छठे प्रमत्तविरतगुणस्थान में इक्यासी प्रकृतियों का उदय होता है और छठे गुणस्थान की उदययोग्य प्रकृतियों में में स्त्यानद्वित्रिक और आहारकद्विक इन पाँचों प्रकृतियों को कम करने पर सातवें अप्रमत्तविरतगुणस्थान में छिहत्तर प्रकृत्तियों का उदय है।
विशेषार्थ- इन चारों गाथाओं में सासादन गुणस्थान, सम्यग्मिय्यादृष्टि (मिथ) गुणस्थान, अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, देशविरत गुणस्थान, प्रमत्तसंयत गुणस्थान और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान की उदययोग्य प्रवातियों की संख्या मौत-सा ने अत में विच्छिन्न होने वाली प्रकृतियों को बतलाया है। ___ पहले गुणस्थान में जो ११७ प्रकृतियाँ उदययोग्य हैं, उनमें से सूक्ष्मत्रिक -सूक्ष्मनामकर्म, अपर्याप्तनामकर्म, साधारणनामकर्म तथा आतपनामकर्म, और मिथ्यात्वमोहनीय-ये पाँच प्रकृतियाँ मिथ्यात्व के कारण ही उदय में आती हैं । किन्तु सासादन गुणस्थान में मिथ्यात्व का विच्छेद हो जाने पर इन पांच प्रकृत्तियों का उदय नहीं होता है। ___ इसके अतिरिक्त दूसरी बात यह है कि सूक्ष्मनामकर्म का उदय सूक्ष्म जीवों को, अपर्याप्तनामकर्म का उदय अपर्याप्त जीवों को और साधारणनामकर्म का उदय साधारण जीवों को ही होता है। परन्तु सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण जीवों को न तो सासादन गुणस्थान प्राप्त होता है और न कोई सासादनसम्यक्त्व को ही प्राप्त करता है और न सासादनसम्यक्त्व प्राप्त जीव सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण रूप में पैदा होता है, अर्थात् सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण जीव मिथ्यात्वी ही होते हैं।