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कर्मस्तव का बन्ध होता है । इसके बाद पुरुषवेद, संज्वलन क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया और संज्वलन लोभ इन पाँच प्रकृतियों में से एक-एक प्रकृति का बन्धविच्छेद क्रमश: नौवें गुणस्थान के पाँच भागों में से प्रत्येक भाग के अन्तिम समय में होता है।' इनके बन्धविच्छेद के क्रम को नीचे स्पष्ट करते हैं। ___ नौवें गुस्थान के पहले भारत में बाकी गई २२ प्रकृतियों में स पुरुषवेद का विच्छेद पहले भाग के अन्तिम समय में हो जाने से दूसरे भाग में २१ प्रकृतियों का बन्ध होगा। इन २१ प्रकृतियों में से संज्वलन क्रोध का विच्छेद दूसरे भाग के अन्तिम समय में होता है। अत: इससे बाकी रही हुई २० प्रकृतियों का बन्ध तीसरे भाग में होता है। इन २० प्रकृतियों में से संज्वलन मान का विच्छेद तीसरे भाग के अन्तिम समय में हो जाने से चौथे भाग में १६ प्रकृतियों का बन्ध होगा और चौथे भाग के अन्तिम समय में संज्वलन माया का विच्छेद हो आने से पांचवें भाग में १८ प्रकृतियों का बन्ध होता है । अर्थात् नौवें गुणस्थान के पांचवें भाग में १८ प्रकृतियों का बन्ध होता है । __ इस प्रकार इन १८ प्रकृतियों में से भी संज्वलन लोभ का बन्ध नौवें गुणस्थान के पांचवें भाग पर्यन्त होता है और इस भाग के अन्तिम . समय में संज्वलन लोभ का बन्धविच्छेद हो जाने से दसवें गुणस्थान में १७ प्रकृतियों का बन्ध होता है ।
इस प्रकार आठवें, नौवें और दसवें गुणस्थान में बन्धयोग्य प्रकतियों की संख्या और नामों का कथन हो जाने के बाद आगे की गाथा
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१, तुसना करोपुरिसं चदु संजलणं कमेण अणियटिट पंचभागेसु ।
-गोम्मठसार, कर्मकार, १०१