Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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वन्दे वी रम्
श्रीमद् देवेन्द्रसूरि विरचित
कर्मस्तव
[द्वितीय कर्मग्रन्थ
तह थुणिमो वीरजिणं मह गुणठाणेसु सयलकम्माई।
बन्धुदओदीरणयासत्तापत्ताणि खयियाणि ॥१॥ गाथार्थ-श्री वीर जिनेवर ने जिस प्रकार गुणस्थानों में बन्ध, उदय, उदीरणा और सत्तास्थान को प्राप्त हुए समस्त कर्मो का क्षय किया है, उसी प्रकार हम भी कर सकें, इसी आशय से उनकी स्तुति करते हैं । विशेषार्थ- इस गाथा में श्री वीरजिनेश्वर की स्तुति करते हुए ग्रन्थ' में वर्णन किये जाने वाले विषय का संकेत किया है।
स्तृति दो प्रकार से की जाती है... प्रणाम द्वारा और असाधारण गुणोत्कीर्तन द्वारा। इस गाथा में दोनों प्रकार की स्तुतियों का अन्तर्भाव है, क्योंकि असाधारण और वास्तविक गुणों का कथन स्तुति कहलाता है । सकल कर्मों का निःशेष रूप से क्षय करना भगवान महावीर का असाधारण और वास्तविक गुण है 1 उन्होंने कर्मों का जो क्षय किया है, वह किसी एक ही प्रकार की अवस्था रूप में विद्यमान कर्मों का नहीं किया है, अपितु बन्ध, उदय, उदीरणा, सत्तारूप समग्र अवस्थाओं में रहे हुए कर्मों का क्षय करके सच्चिदानन्दमय आत्मस्वरूप को प्राप्त