Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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द्वितीय कर्मग्रन्थ
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भिन्न-भिन्न और प्रत्येक समय के जघन्य अध्यवसाय से उस समय के उत्कृष्ट अध्यवसाय अनन्तगुण विशुद्ध समझने चाहिए तथा पूर्व-पूर्व समय के उत्कृष्ट अध्यवसायों की अपेक्षा पर पर समय के जघन्य अध्यवसाय भी अनन्तगुण विशुद्ध समझने चाहिए ।
आठवें गुणस्थान का समय जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त प्रमाण है ।
(६) अभिवृत्ति गुणस्थान- इसका पूरा नाम अनिवृत्ति-वादरसंपराय गतस्थान है ! इसमें हार (स्थूल) राय ( कषाय ) उदय में होता है तथा सम समयवतां जीवों के परिणामों में समानता ही होने, किन्तु भिन्नता न होने से इस गुणस्थान को अनिवृत्ति- चादर-संपराय गुणस्थान कहते हैं ।
इस गुणस्थान को जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है और एक अन्तर्मुहर्त के जितने समय होते हैं, उतने ही अध्यवसायस्थान इस गुणस्थान के होते हैं। क्योंकि नौवें गुणस्थान में जो जीव -सम समयवर्ती होते हैं, उन सबके अध्यवसाय एक से अर्थात् तुल्यशुद्धि बाले होते हैं । इसी प्रकार नौवें गुणस्थान के अन्तिम समय तक दूसरे. तीसरे आदि तुल्य समय में वर्तमान कालिक जीवों के अध्यवसाय समान ही होते हैं और समान अध्यवसायों का एक ही अध्यवसायस्थान होता है । अर्थात् इस गुणस्थान का जितना काल है, उतने ही उसके परिणाम हैं। इसलिए प्रत्येक समय में एक ही परिणाम होता हैं। अतएव यहाँ पर भिन्न समयवर्ती परिणामों में सर्वथा विसद्गता और एक समयवर्ती जीवों के परिणामों में सर्वथा सदृशता ही होती है तथा इन परिणामों द्वारा कर्मों का क्षय होता है ।"
१. ण पिवति तहाचि य परिणामेहि मिट्टो जेहिं ।। ५६ ।। होति अणियट्टिणी ते पडिममयं जेस्सिमेक्क परिणामा । विमलयर शाण हुयवसिहाहि विदिष्ट कम्मवणा ॥ ५७ ॥ गोम्मटसार, जीवकाण्ड ५६-५७