Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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द्वितीय कर्मग्रन्थ
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शमन करते हैं, वे उपशमक और जो चारित्रमोहनीयकर्म का क्षपण करते हैं, वे क्षपक कहलाते हैं। मोहनीयकर्म की उपशमना अथवा क्षपणा करते-करते अन्य अनेकों कर्मों का भी उपशमन या क्षपण करते हैं।
(१०) सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान- इस गुणस्थान में सम्पराय अर्थात् लोभकषाय के सूक्ष्म खण्डों का ही उदय होने से इसका 'सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान' ऐसा सार्थक नाम प्रसिद्ध है। जिस प्रकार घुले हुए गुलाबी रंग के कपड़े में लालिमा ( सुर्खी) सूक्ष्म - झीनी सी रह जाती है, उसी प्रकार इस गुणवर्ती जीन संबन के सम्म खण्डों का वेदन करता है ।
इस गुणस्थानवर्ती जीव भी उपशमक अथवा क्षपक होते हैं। लोभ के सिवाय चारित्रमोहनीयकर्म की दूसरी ऐसी प्रकृति ही नहीं होती, जिसका उपशमन या क्षपण नहीं हुआ हो । अतः जो उपशमक होते हैं, वे लोभकषाय का मात्र उपशमन और जो क्षपक होते हैं, वे लोभकषाय का क्षपण करते हैं ।
सूक्ष्म लोभ का वेदन करने वाला चाहे उपशमश्रेणी अथवा क्षपकश्रेणी पर आरोहण करने वाला हो; यथाख्यातचारित्र से कुछ ही न्यून रहता है । अर्थात् सूक्ष्म लोभ का उदय होने से यथाख्यातचारित्र के प्रगट होने में कुछ कमी रहती है ।
इस गुणस्थान की काल स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है।
(११) उपशांत-कषाय- शेतराग छद्मस्त्र गुणस्थान- जिनके कषाय उपशान्त हुए हैं, राग का भी सर्वथा उदय नहीं है और जिनको छद्म (आवरणभूत घातीकर्म) लगे हुए हैं, वे जीव उपशान्त - कषाय- वीतराग