Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मस्तव . तक बह मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं करता, अर्थात् जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह आवलिकाओं तक सास्वादन भाव का अनुभव करता है. उस समय जीव सास्वादन सभ्यग्दृष्टि कहा जाता है । औपमिक सम्यक्त्व वाला जीव सास्वादन सम्यग्दृष्टि हो सकता है, दूसरा नहीं ।
उक्त कथन में पल्योपम--सागरोपम का प्रमाण इस प्रकार समझना चाहिए।
एक योजन लम्बे, एक योग, गोडे का पोसन गहरे गोगाकार कृप की उपमा से जो काल गिना जाए. उमे पल्योपम कहते हैं तथा दस कोड़ाकोड़ी पल्योपम का एक मागरोपम होता है ।
सास्वादन गुणस्थान की समयस्थिति जयन्य एक समय और उत्कृष्ट छह आबलिका काल की है ।
(३) मिश्र गुणस्थान- इसका पूरा नाम सम्यन्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान है। किन्तु संक्षेप में समझने के लिए मिश्र गुणस्थान कहते हैं।
मिथ्यात्वमोहनीय के अशुद्ध, अर्द्ध शुद्ध और शुद्ध- इन तीनों घुजों में से अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय न होने से शुद्धता और मिथ्यात्व के अर्द्ध शुद्ध पृद्गलों के उदय होने मे अशुद्धतारूप जब अर्द्ध शुद्ध पुंज का उदय होता है, तब जीव की दृष्टि कुछ सम्यक् (शुद्ध) और कृष्ठ मिथ्यात्य (अशव) अर्थात मिश्र हो जाती है। इसी से वह जीव सम्यकमिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि) तथा उसका स्वरूपविणेष सम्मिथ्याष्टि गुणस्थान (मिश्र गुणस्थान) कहलाता है ।
इस गुणस्थान के समय बृद्धि में दुर्बलता-सी आ जाती है, जिससे जीव सर्वज्ञप्रणीत तत्त्वों पर न तो एकान्त रुचि करता है और न एकान्त अरुचि । किन्तु नारिकेल द्वीप में उत्पन्न मनुष्य को अर्थात् जिस द्वीप में प्रधानतया नारियल पैदा होता है, वहाँ के निवासियों