Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मस्सव
(४) जिनको ब्रतों का ज्ञान नहीं है, किन्तु उनको स्वीकार तथा पालन करते हैं, ऐसे अगीतार्थ मुनि ।
(५) जिनको व्रतों का ज्ञान है, किन्तु उनको स्वीकार तथा पालन नहीं करते हैं । जैसे श्रेणिक, श्रीकृष्ण आदि ।
(६) जो व्रतों को जानते हैं, स्त्रीकार नहीं करते, किन्तु पालन करते हैं । जैसे अनुत्तर विमानवासी देव ।
(७) जो व्रतों को जानते हैं, स्वीकारते हैं, किन्तु पीछे पालन नहीं करते हैं। जैसे संविग्न पाक्षिक ।
सम्यक् ज्ञान, सम्यक गहण आर सम्यक् पालन से ही व्रत सफल होते हैं। जिनको प्रतों का सम्यक् ज्ञान नहीं, ब्रतों को विधिपूर्वक ग्रहण नहीं करते और जो व्रतों का यथार्थ पालन नहीं करते, वे घुणाक्षर न्याय से व्रतों को पाल भी लें, तो भी उसमे फल प्राप्ति सम्भव नहीं है ।
अविरत के पूर्वोक्त सात प्रकारों में से आदि के चार प्रकार के अविरत जीवों को प्रतों का ज्ञान ही नहीं होने से वे मिथ्यावृष्टि ही हैं। क्योंकि वे यथाविधि प्रतों को ग्रहण तथा पालन नहीं कर सकते, किन्तु उन्हें यथार्थ मानते हैं।
अविरत सम्यग्दृष्टि जीवों में कोई औपशमिक सम्यक्त्वी, कोई क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी और कोई क्षायिक सम्यक्त्त्री होते हैं।
इस गणस्थान में जन्म, मरण, आयुष्यबन्ध, परभव-गमन इत्यादि होता है।
(५) देशविरत गुणस्थान-प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय के कारण जो जीव पापजनक क्रियाओं से सर्वथा तो नहीं किन्तु अप्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय न होने के कारण देश (अंश) से पापजनक क्रियाओं से अलग हो सकते हैं, वे देशविरत कहलाते हैं।