Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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(२) खिड्डा-दुर्गति से आकर जन्म लेने वाला बालक पुनः पुनः रुदन करता है और सुगति से आने वाला सुगति का स्मरण कर हास्य करता है । यह खिड्डा (क्रीड़ा) भूमिका है ।
(३) पद बीमसा-माता-पिता के हाथ या अन्य किसी के सहारे से बालक का धरती पर पैर रखना पद बीमंसा है।
(४) उज्जुगत ---परों से स्वतन्त्र रूप से चलने की सामर्थ्य प्राप्त करना।
(५) सेख-शिल्प कला आदि के अध्ययन के समय की शिष्य भूमिका ।
(६) समण--घर से निकलकर संन्यास ग्रहण करना, समण भूमिका है।
(७) जिन---आचार्य की उपासना कर ज्ञान प्राप्त करने की भूमिका।
(८) पन्न-प्राज्ञ बना हुआ भिक्षु जब कुछ भी बातचीत नहीं करता ऐसे निर्लोभ श्रमण की भूमिका पम्न है । ___ इन आठ भूमिकाओं में प्रथम तीन भूमिकाएँ अविकास का और अन्त की पांच भूमिकायें विकास का सुचन करने वाली हैं । उनके बाद मोक्ष होना चाहिए।
उक्त पातंजल, बौद्ध और आजीवक मत की आत्मविकास के लिए मानी जाने वाली भूमिकाओं में जैनदर्शन के गुणस्थानों जैसी क्रमबद्धता
और स्पष्ट स्थिति नहीं है। फिर भी उनका प्रासंगिक संकेत इसलिए किया है कि जन्म-जन्मान्तर एवं इहलोक-परलोक मानने वाले दर्शनों ने आत्मा को कमबद्ध अवस्था से मुक्त होने के लिए चिन्तन किया है ।