Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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ग्रन्थ का विषय-विभाग और रचना का आधार इस द्वितीय कर्मग्रन्थ में गुणस्थानों के क्रम में कमप्रकृतियों के बन्ध, उदय-उदीरणा और सत्ता का कथन किया गया है । अत: विषयविभाग की दृष्टि में इसके यही मुख्य चार विभाग हैं । बन्ध अधिकार में प्रत्येक गुणस्थानवर्ती जीवों की बन्ध योग्यता को, उदय, उदीरणा
और सत्ता अधिकार में क्रमशः उदय, उदीरणा और सत्ता सम्बन्धी योग्यता को दिखलाया है ।
इस ग्रन्थ की रचना प्राचीन कर्मस्तव नामक दूसरे कर्मग्रन्थ के आधार पर हुई है और उसका व इसका विषय एक ही है। दोनों में भेद इतना ही है कि प्राचीन कर्मग्रन्थ में ५५ गाथायें हैं और इसमें ३४ । प्राचीन में जो बात कुछ विस्तार से कही गई है, इसमें उस परिमित शब्दों के द्वारा कह दिया है।
प्राचीन के आधार से बनाये गये इस कर्मग्रन्थ का 'कर्मस्तव' नाम कर्ता ने ग्रन्थ के प्रारम्भ में उल्लिखित नहीं किया है, फिर भी इसका कर्मस्तव नाम होने में कोई सन्देह नहीं है। क्योंकि अन्यकर्ता ने अपने रचे तीसरे कर्मग्रन्थ की अन्तिम गाथा में नेयं कम्मत्ययं सोउं इस अंश से इस नाम का कथन कर दिया है ।
व्यवहार में प्राचीन कर्मग्रन्थ का नाम कर्मस्तव है, किन्तु उसको प्रारम्भिक गाथा से स्पष्ट जान पड़ता है कि उसका असली नाम 'बन्धोदयसत्त्व-युक्त स्तद' है। इसी नाम से गोम्मटसार कर्मकाण्ड में भी एक प्रकरण है। दोनों के नामों में कोई विशेष अन्तर नहीं है, दोनों में 'स्तव' शब्द ममान होने पर भी गोम्मटसार कर्मकाण्ड में स्तब शब्द का अर्थ भिन्न है। कर्मस्तव' में स्तव शब्द का मतलब स्तुति से है, जो सर्वत्र प्रसिद्ध है, किन्तु गोम्मटसार में स्तव का अर्थ