Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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वालों के चार प्रकार हैं। जिन्होंने तीन संयोजनाओं का क्षय किया वे सोतापन्न, जिन्होंने तीन संयोजनाओं का क्षय और दो को शिथिल किया वे सकदागामी और जिन्होंने पाँच का क्षय किया वे औपपातिक हैं। जिन्होंने दसों संयोजनाओं का क्षय कर दिया वे अरहा कहलाते हैं ।
इनमें प्रथम स्थिति आध्यात्मिक अविकास काल की है। दूसरी में विकास का अल्पांश में स्फुरण होता है, किन्तु विकास की अपेक्षा अविकास का प्रभाव विशेष रहता है। तीसरी से छठो स्थिति बाध्यात्मिक विकास के उत्तरोत्तर अभिवृद्धि की है और वह विकास छटवीं भूमिका – अरहा में पूर्ण होता है और इसके पश्चात् निर्वाण की स्थिति बनती है ।
आजीवक मत में भी आत्मविकास को कमिक स्थितियों का संकेत किया गया होगा। क्योंकि आजीवक मत का अधिनेता मंखलिपुत्र गोशालक भगवान महावीर की देखा देखी करने वाला एक प्रतिद्वन्द्वी सरीखा माना जाता है। इसलिए उसने अवश्य ही आत्मविकास की क्रमिक स्थितियों को बतलाने के लिए गुणस्थानों जैसी परिकल्पना की होगी । लेकिन उसका कोई साहित्य उपलब्ध न होने से निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। फिर भी बौद्ध साहित्य में आत्मविकास के लिए आजीवक मत के आठ सोपान बतलाये हैं
(१) मन्द, (२) खिड्डा, (३) पद वीमंसा, (४) उज्जुगत, (५) सेख, (६) समण, (७) जिन, ( = ) पन्न |
इन आठों का मज्झिमनिकाय की सुमंगलविलासनी टीका में बुद्धघोष ने निम्न प्रकार से वर्णन किया है
(१) मन्द - जन्म दिन से लेकर सात दिन तक गर्भ निष्क्रमणजन्य दुःख के कारण प्राणी मन्दस्थिति में रहता है ।