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जन-रत्न
तीर्थंकरोंकी माताओंके चौदह स्वप्न
+are, अनादिकालसे संसारमें यह नियम चला आरहा है कि, जब जब किसी महापुरुषके, इस कर्मभूमिमें आनेका समय होता है तभी तब उसके कुछ चिन्ह पहिलेसे दिखाई दे जाते हैं। इसी भाँति जब तीर्थंकर होनेवाला जीव गर्भमें आता है तब उस विदुषीको यानी तीर्थकर जब गर्भम आते हैं तब उनकी माताओंको चौदह स्वप्न आते हैं । सब तीर्थकरोंकी माताओंको एकहीसे स्वप्न आते हैं । स्वप्नमें जो पदार्थ आते हैं उनके दिखनेका क्रम भी समान ही होता है । केवल प्रारंभमें फर्क हो जाता है । जैसे ऋषभ देवजीकी माता मरुदेवीने पहिले वृषभ-बैल देखा था: अरिष्टनेमिकी माता शिवादेवीने पहिले हस्ति-हाथी देखा था आदि । ये स्वप्न चौदह महास्वप्नोंके नामोंसे पहिचाने जाते हैं। जो पदार्थ स्वप्नमें दिखते हैं उनके नाम ये हैं (१) वृषभ (२) हस्ति ( ३ ) केसरी सिंह (४) लक्ष्मी देवी (५) पुष्पमाला (६) चंद्रमंडल (७) सूर्य (८) महाध्वज (९) स्वर्ण कलश (१०) पद्मसरोवर (११) क्षीरसमुद्र (१२) विमान (१३ ) रत्नपुंज और (१४) निर्धूम अग्नि
ये पदार्थ कैसे होते हैं उनका वर्णन शास्त्रकारोंने इस तरह किया है।
[१] वृषभ-उज्ज्वल, पुष्ट और उच्च स्कंधकला, लम्बी और सीधी पूँछवाला, स्वर्णके घूघरोंकी मालावाला और
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