________________
तीर्थंकर चरित-भूमिका
५-दुःखमा-यह आरा इक्कीस हजार वर्षका होता है । इसमें मनुष्य सात हाथ ऊँचे शरीरवाले और सौ वर्षकी आयु वाले होते हैं । इसमें केवल दुःखका ही दौरदौरा रहता है। सुख होता है मगर बहुत ही थोड़ा।
६ एकान्त दुखमा- यह भी इकोस हजार वर्षका ही होता है । इसमें मनुष्य एक हाथ ऊँचे शरीरवाले और सोलह बरसकी आयुवाले होते हैं । इसमें सर्वथा दुःख ही होता है ।
इस प्रकार छठे आरेके इक्कीस हजार वर्ष पूरे हो जाते हैं, तब पुनः उत्सर्पिणी काल प्रारंभ होता है। उसमें भी उक्त प्रकार ही से छः आरे होते हैं । अन्तर केवल इतनाही होता है कि, अवसर्पिणीके आरे एकान्त सुषमासे प्रारंभ होते है और उत्सर्पिणीके एकान्त दुःखमासे । स्थिति भी अवसर्पिणीके समान ही उत्सर्पिणीके आरोंकी भी होती है । पाठकोंको यह ध्यानमें रखना चाहिए कि ऊपर आयु और शरीरकी ऊँचाई आदिका जो प्रमाण बताया है वह आरेके प्रारंभमें होता है। जैसे जैसे काल बीतता जाता है वैसे ही वैसे उनमें न्यूनता होती जाती है
और वह आरा पूर्ण होता है तब तक उस न्यूनताका प्रमाण इतना हो जाता है, जितना अगला आरा प्रारंभ होता है उसमें मनुष्योंकी आयु और शरीरकी ऊँचाई आदि होते हैं । ___ ऊपर जिन आरोंका वर्णन किया गया है उनमें से तीसरे
और चौथे आरेमें तीर्थंकर होते हैं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com