Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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अर्जुन
प्राचीन चरित्रकोश
अर्जुन
दिग्विजय-वनवास के पहले, राजसूययज्ञ के समय | था, तब द्वारपाल ने इसे रोका, तथा यहीं दिग्विजय रोकने इसने किये दिग्विजय की कल्पना निम्नांकित वर्णन से के लिये कहा। क्यों कि, उत्तर कुरू देश में सब चीजें आएगी। प्रथम कुलिंद देश के राजा को जीता । आनत अदृश्य है। तब अर्जुन धर्मराज की. सत्ता को मान्यता तथा कालकुट देशों पर सत्ता स्थापित कर, सुमंडल राजा | ले कर वापस आ गया, तथा इन्द्रप्रस्थ में प्रविष्ट का पराजय किया। आगे चल कर, उसे साथ लेकर, शाकल- | हुवा (म. स. २३-२५)। द्वीप तथा प्रतिविध्य पर आक्रमण किया। उस समय
वनवास--वनवास में पाशुपतास्त्र प्राप्ति के लिये, शाकलाहीप के तथा सप्तद्वीप के सब राजाओं को अर्जुन ने
इन्द्रकील पर्वत पर अर्जुन ने तपश्चर्या की तथा शंकर को जीता तथा उनके साथ प्राग्ज्योतिष देश पर आक्रमण
| प्रसन्न कर लिया। किरातवेष में आये शंकर से इसने किया। वहाँ भगदत्त के साथ अजुन का आठ दिनों तक मकवध पर से युद्ध किया तथा अंत में उससे पाशुपतास्त्र भयंकर युद्ध हुआ। अन्त में जब भगदत्त ने कर देना
प्राप्त किया। पाशुपतास्त्र का रहस्यपूर्ण ज्ञान इसने शंकर स्वीकर किया, तब अर्जुन ने कुबेर के प्रदेश पर आक्रमण
से प्राप्त किया (म. व. ३८.४१)। अन्य देवों ने भी किया। वहाँ के सब राजाओं से कर वसूल कर, उलूक देश
अर्जुन को अनेको अस्त्र दिये (म. व. ४२)।तदनंतर इन्द्र पर आक्रमण किया । उलूक देश के राजा का नाम बृहन्त
के निमंत्रण के कारण, उससे भेजे गये रथ में बैठ कर, यह था। उने युद्ध में पराभूत कर तथा कर ले कर, उसके
स्वग गया। वहाँ इन्द्र ने अर्जुन का काफी सम्मान कर सहित सेनाबिंदु पर आक्रमण किया, तथा गद्दी से उसे
अपने अर्धासन पर इसे जगह दी। वहाँ अर्जुन ने पदच्युत किया। तदनंतर मोदापूर का वामदेव, सुदामन तथा
अनेक अस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की। इस प्रकार इसने उत्तर उलूक के राजाओं को इकट्ठा कर के उनसे कर
अपने पांच वर्ष स्वर्ग में बिताये । इन्द्र के कथनानुसार, वसूल किया । तदनंतर पंचगण देश को जीत कर सेना
वाद्य बजाना, नृत्यकला तथा गानकला की भी शिक्षा बिंदू के देवप्रस्थ नगर को यह गया। वहाँ से इसने राजा
इसने ली। इस काम में चित्रसेन नामक गंधर्व का पौरव विश्वगश्व पर आक्रमण किया। उसे जीत कर, पर्वत
अत्याधिक उपयोग हुआ (म. व. ४५.६)। एकबार में रहनेवाले सात उत्सवसंकेत गणों को जीता, तदनंतर |
अर्जुन के पास उर्वशी ने संभोगयाचना की । परंतु इसने काश्मीर के वीरों को जीता तथा दस मांडलिकों के साथ
उसे नाही कर दी। इससे क्रोधित हो कर, 'तुम लोहित को जीता। त्रिगत, दाव तथा कोकनद से कर ले
नपुंसक बनोगे,' ऐसा शाप उसने अर्जुन को दिया । परंतु कर अभिसारी नगरी जीती। उरगा नगरी के रोचमान
इन्द्र ने उसे बताया कि, अज्ञातवास के समय एक वर्ष को जीता । चित्रायुध का सिंहपूर नगरी ध्वस्त किया । तद
तक तुम नपुंसक रहोगे, तथा इस शाप का तुम्हें उपयोग नंतर सुा तथा चौल देश उध्वस्त कर के, बाल्हीक देश में
ही होगा (म. व. परि.६)। इंद्र ने लोमश के द्वारा प्रविष्ट हुआ । वह देश जीत कर, कांबोज तथा दरद देश
अर्जुन का समाचार भी अन्य पांडवों को भेजा । अर्जन हस्तगत किये । उत्तर की ओर के दस्युओं को हस्तगत कर |
| कुछ कालोपरांत अपने बांधवों के बीच आते ही, के, आगे लोह, परम कांबोज तथा उत्तर ऋषि को अर्जुन ने
अज्ञातवास का समय आया। अज्ञातवास के लिये जीता। ऋषिक देश में भयंकर युद्ध करना पडा, परंतु अन्त
द्रौपदी को विराटनगर तक कंधों पर ले जाने का कार्य में विजय प्राप्त हो कर, मयूरवर्ण तथा शुकोदरवर्ण अश्व
अर्जुन ने किया (म. वि. ५)। करभार के रूप में प्राप्त हुए । इस प्रकार, निष्कुटसहित
___ अज्ञातवास-अज्ञातवास में अर्जुन ने बृहन्नला नाम हिमालय जीत कर, अर्जुन श्वेत पर्वत पर आ कर रहने
तथा नपुंसकत्व का स्वीकार किया, तथा स्वयं ही को द्रौपदी लगा (म. स. २४)। वहाँ से, किंपुरुषावास देश पर
की परिचारिका बता कर, उत्तरा को नृत्यगायनादि सिखाने आक्रमण कर के, राजा द्रुमपुत्र से कर वसूल किया। हाटक
का काम पाया । आगे जब विराटादि सब लोग, दक्षिणदेश में जाकर, सामनीती से, गुह्यक के पास से कर लिया।
गोग्रहण में मग्न थे, तब दुर्योधनादि ने उत्तरगोग्रहण मान सरोवर पर ऋषियों द्वारा निकाली गई नहरें
| किया। रजवाड़े में अकेला भूमिज्य (उत्तर) ही था। देखीं । गंधर्वो के देशों पर आक्रमण कर के, तित्तिरिकल्माष
उसके पास सारथि न था। बृहन्नला सारथ्य कर सकती तथा मंडूक नामक उत्तम अश्व करभार के रूप में प्राप्त किये। | है यह ज्ञात होने के पश्चात् वह युद्ध के लिये निकला। तदनंतर जब यह हरिवर्ष पर आक्रमण करने जा रहा | परंतु ऐन समय पर घबरा कर, रथ से कूद कर भागने
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