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REATMACHAR
HERECARNATANAMATPATANCERNEARHI
श्री जिनाय नमः अथ वीसस्थानकनो रास
श्री जिनहर्षजी कृत
เนะ-มาปัดลงบนไอสปันไอนไข
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प्रस्तावना.
प्रस्ता
॥१॥
सर्वे जैन बंधुओने मालम थाय जे आ वीसस्थानकनो रास घणा दिवस अयां उपावी बहार पामवानी अमारी नत्कंग हती; अने ते नत्कंग हवे पार पमी . आ वीसस्थानकना रासना कर्ता श्री जिनहर्षजी महाराज ने; तेओ महान खरतर गबना आचार्य महाराज श्री शांति हर्ष गणिना NA शिष्य ; तेमनी कवित्वशक्ति घणीज सारी; केमके तेमणे गुर्जर नाषानी कवितामां नप मिति नवप्रपंचनो रास तथा आ वीसस्थानकनो रास बनाव्यो . अने तेमां रहेली अद्भुत कविता - तथा उपदेशनो रहस्य तेमनुं महान पंमितपणुं जणावी आपे . आ वीसस्थानकना रासमां दरेक स्थानक- स्वरूप आबेहुब वर्णवेलुं ; तथा ते दरेक स्थानक आराधवाथी जे जे माणसोने तीर्थंकर पदवी मलेली, तेओनी कथा पण घणा विस्तारथी तथा रस नपजावे एवीरीते दाखल करेली . वली आ ग्रंथ कवितात्मक होवाथी वाचवाश्री, तथा सांजलवाथी अत्यंत रस अने आनंद नपजावे N] तेवो . तेम आ ग्रंथमां सर्व जैनी नाश्ओने अत्यंत उपयोगी तथा आराधन करवा लायक एवां वीश स्थानकोनुं वर्णन करवामां आव्यु बे; अने ते वीसमांथी एक स्थानक, पण संपूर्ण रीते अने, Salशुनावथी आराधन करवाश्री परम पुरुषार्थ जे मोद, तेनुंसाधन करीशकाय . अने ते पुरुषार्थ Nal
साधवो, ए आपणुं मुख्य कर्तव्य . माटे सर्व जैनी नाश्त्रो आग्रंथ वांचीने तथा सांजलीने ते मोद
मेलववामा प्रयत्न करशे, अने आ वीसे स्थानकोनुं शुनावश्री साधन करशे, एवा हेतुथी अमोए Soआ ग्रंथ उपावी प्रसिह कर्यो ने. अने ते वांचवाशी खातरी थशे के, ते टरेक स्थानक mmmm
॥
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जुदा भव्य जीवोए मोक्षपद मेलव्युं बे. माटे दरेक जैन बंधुओ ने मारी विनंति वे के, आश्रमां आपेलां दृष्टांतो प्रमाणे वीसस्थानक आराधीने अमारा जैन बंधुओ पोतानो आ दुर्लन मनुष्य जन्म सफल करीने मोक्षपद मेलवशे. इत्यलं विस्तरे .
भीमसिंह मागेक.
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आ ग्रंथना गाउथी ग्राहको थइ आश्रय आपनार साहेबोना मुबारक नामो.
नाम.
नकल.
हीरजी
७५ शेठ ठाकरसी तेजपाल २५ शेव शामजी खीमजी १३ शेव डुंगरसी १३ शेव लधा मालसी १३ शेव वरसंग देवसी Ա बाइ पुरवाई
गाम.
( कोठारावाला )
(मंजल रेलमीया )
( सुथरी )
( नलीया )
रुपीया.
१५०
Այ
२६
२६
२६
( परजान )
( ते शेव वरसंग देवसीना बेहेन ) १०
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वीश
॥२॥
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विषय.
१ वीसस्थानक तपनो महिमा
२ जिनपूजानुं स्वरूप
३ श्रावकोने उपदेश
४ स्नात्रपूजानुं स्वरूप ५ देवपालराजानी कथा
६ गुरुनुं माहात्म्य ७ आठ दृष्टिं स्वरूप
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८ सिडनुं स्वरूप ..... ९ हस्ती पालराजानी कथा..... १० गुरुमहाराजनी देशना
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- १३ आचार्य पदनुं माहात्म्य ..... १४ पुरुषोत्तम राजानी कथा १५ एक योगीनी कथा
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पेहेलुं अरिहंत पदस्थानक
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११ प्रवचन पद्नुं माहात्म्य १२ जिनदत्त शेठ तथा हारप्रभानी कथा
अनुक्रमणिका.
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बीजुं सिपदस्थानक
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त्रीजुं प्रवचनपदस्थानक
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बोथुं श्राचार्य पदस्थानक.
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४. 509 0.
७
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१५ १६
१८
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DOPODO
अनु०
11911
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विषय.
....
१६ मूर्ख तापसनी कथा १७ गुरु महाराजे आपेली देशना
१८ स्थविरपदनुं स्वरूप तथा माहात्म्य १९ पद्मोत्तर राजानी कथा २० इंद्रजालीनी कथा
२१ बहुश्रुतनुं स्वरूप तथा माहात्म्य २२ महेंद्रपाल राजानी कथा...... २३ तीर्थनुं स्वरूप २४ गुरुनी देशना
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| २५ तपनुं माहात्म्य तथा स्वरूप
| २६ वीरभद्र व्यापारीनी कथा
२९ ज्ञाननुं माहात्म्य | ३० नीगोदनुं स्वरूप
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२७ ज्ञाननुं स्वरूप तथा माहात्म्य २८ जयंतदेव ऋषिनी कथा
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पांचमुंस्यविरपदस्थानक
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स्थान
सातमुं तपस्वी स्थानक
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मुं ज्ञानपदस्थानक
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५४
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विषय.
नवमुं दर्शनपद (सम्यक्त्वपद) स्थानक ३१ सम्यक्त्वचें माहात्म्य तथा स्वरूप.... ३२ हरिविक्रम राजानी कथा
दशमुं विनयपदस्थानक ३३ विनयर्नु माहात्म्य तथा स्वरूप .... ३४ धनशेठनी कथा
अग्यारभु आवश्यक पदस्थानक |३५ आवश्यकनुं माहात्म्य तथा स्वरूप ३६ अरुणदेवनी कथा ३७ लक्ष्मीदेवीनुं वृत्तांत .... ३८ अरुणदेवर्नु पूर्व भवतुं वृत्तांत
व्रत पदस्थानक Re|३९ शीलनुं स्वरूप तथा माहात्म्य
४० चंद्रवर्म राजानी कथा .... ४१ चंडा प्रचंडानुं वृत्तांत ४२ विद्युल्लतानुं वृत्तांत
.... श्रीमतीनुं वृत्तांत
तेरमुं शुन्नध्यान पदस्थानक. ४४ ध्यानचें स्वरूप तथा माहात्म्य .... ४५ हरिवाहन राजानी कथा
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विषय.
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चौदमुं तपपद स्थानक ४६ तपनुं स्वरूप तथा तेनो महिमा ४७ कनककेतु राजानी कथा ४८ गुरुमहाराजनी देशना ....
पंदरमुं सुपात्रदान पदस्थानक ४९ सुपात्र दाननुं स्वरूप तथा माहात्म्य
५० हरिवाहन राजानी कथा.... Rel१ मिथ्यात्वादिकनु स्वरूप ....
विच्च पदस्थानक PER वैयावच्चनु स्वरूप तथा माहात्म्य ... ५३ जीमूतकेतु राजानी कथा
गुरुनी देशना .... ५५ जीमूतकेतुना पूर्वभवर्नु स्वरूप
सत्तरमुं संघ पदस्थानक ५६ संघर्नु माहात्म्य तथा स्वरूप ५७ पुरंदर राजानी कथा .... ५८ पद्ममाला अने मालतीनुं स्वरूप .... |५९ बंधुमतीनुं वृत्तांत ६० गुरुनी देशना ...
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विषय.
अढारमुं अपूर्वश्रुत पदस्थानक ६१ अंगोपांगर्नु स्वरूप ६२ सागरचंद्रनी कथा ६३ विद्याधरीओनुं स्वरूप .... ६४ कुलकोडीनुं स्वरूप ....
ओगणीस, श्रुतनक्ति पदस्थानक S६५ आगमोतुं माहात्म्य ....
आगमोनुं तथा पूर्वोठे स्वरूप ६७ रत्नचूडनी कथा ६८ चारमित्रोनी कथा ... मिथ्यादृष्टि पंडितनुं वृत्तांत
प्रवचन प्रत्नावनां पदस्थानक ७० प्रवचन प्रभावनानुं माहात्म्य तथा स्वरूप .... २०७१ मेरुप्रभराजानी कथा ....
७२ गुरुनी देशना .... ७३ निर्मलध्वज वादीनुं वृत्तांत ७४ कलश ७५ जाहेरखबर .... .... ....
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श्री आदिनाथाय नमः॥
अथ श्रीजिनहर्पजी कृत वीशस्थानकनो रास प्रारंभः।
॥दोहा॥ सकलसिदिसंपति करण, हरण तिमिर अज्ञान॥त्रणे कालना जिन नमुं,गाणी नाव प्रधान ॥१॥ महाविदेहें विचरता, वंदूं जिनवर वीश ॥ संघ चतुर्विध आगलें, धर्म कहे जगदीश ॥२॥ Balनमतां नवनिधि पामियें, जपतां पातक जाय॥प्रजंतां शिवपद दिये, खांम तणी खलन्याय॥३॥
श्रीजिनपद प्राप्ति नणी, हवू तप नचाहि॥ वीश स्थानक नामें का, श्रीजिनागममांहि ॥४॥ valचार नेद जिनधर्मना, दान शील तप नाव, सुखाराम अमृत जलद, नव दुःख सायर नाव ॥५॥
ढाल पहेली चोपाश्नी देशी॥ | दान सुपात्रे निर्मल शील, तप अनेक शुन्न नावन लील, नव समुश्प्रवहण नपदिस्या, चार धरम नवियण मन वस्या ॥१॥ दान तणा नाख्या त्रण नेद, अन्नय दान ए जारा नमेद, धर्मो पग्रह दान तृतीय, जिनवर एद कह्या हित जीय ॥२॥ ब्रह्मन्नेद अष्टादश धार, सर्वधर्ममाहे शिरदार, बाह्य अन्यंतर शोचीजोय, तपना नेद कह्या एमदोय॥३॥ नत्तम मन धरीय परिणाम, सत्यक्रिया स्वाध्याय सुगम,नाव धरम माहे परधान, नावें बहफल होय निदान॥धादानशील तप जप अनुष्ठान,नाव विना निष्फल बहुमान,शाल दाल नोजन बहुति, लवण विना निस्वादजहुँति
|तप अनेक जिनशासन मांदि, तेह प्रसिद्ध कडा जिनराहि, पण एवीशथानक समकोय, तप नही
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स्थान
॥१॥
वीश
हीये विमासी जोय ॥ ६॥ आराधे एथानकवीश, नर नारीनाव निशदीश, अरिहंतादिक माहे तेह, तीर्थंकर पद लहे गुणगेह ॥ ७ ॥ अरिहंत सिंह पवयंग गुरुं- थेरै, बहुसुय तपसी नही को फेर, एह तणुं वात्सल्य करेह, ज्ञानंतणो नपयोग धरेद ॥ 6 ॥ दंसणे विणयं । आवश्यक- एह, शील व्रतेशुं धरीये नेह, क्षण कण धरीयें मन शुलध्यान शुद्ध
सुपौत्र- दीजें दान ॥ ए ॥ वैय्यावंच- सुसंघ, समाँधि, ज्ञान अपूव ग्रहण अप्याधि | Pal श्रुतैनी नक्ति सुसक्तें करे, प्रवचन- दीपावे बहुपरे ॥ १० ॥ वीशे थानक सेवे,
काय, एहथी जिनवर पदवी प्राय ॥ मुक्ति तणां सुख, पामे सही, एहवी वात जिनेश्वर कही। Isalu ११ ॥ प्रथम चरम जिनवर नासीया, ए थानक सघलां फासीया ॥ मज्कीम बावीशे sal
जिनवरें, एक दोई त्रण सघला चरे॥१२ ॥नव्यजीव नपकारह लणी, साधन करवा स्वारथ ||
तणी, प्रगट देखामया ए दृष्टांत, तास स्वरूप कहुं गुणवंत ॥१३ ॥धर्म जिनेश्वर दो प्रकार, साधु stallश्रावकनो कटो विचार ॥ समकित शुद्धन्नणी निसदीस, आराधवा थानक वीस ॥१४॥ समकित शक्रियाफल होय. जिनशासनमें बोल्यं जोय. समकित कान सहित गण खाण. एहथी बीजां
कष्ट अनाण ॥ १५ ॥ दान शील तप पूजा जेह, तीरथ यात्रा दया करेह, श्रावकपणुं व्रतपणुं सुन्नेय, Ival समकित मूल महाफल देय, ॥ १६ ॥ सघलेही थानकें संकेत, सम्यग् दर्शन निर्मल हेत ॥ करवी ISBI जिनवर पूजा त्रिकाल, अई जिनहर्ष प्रथम ए ढाल ॥१७॥
___ अथ प्रथम श्रीअरिहंतपद स्थानक प्रारंन्नः॥
दोहा॥ त्रण्यकाल पूजे जिको, विगत दोष जिनराय, ते सीजे नव तीसरे, सात आठ न लंघाय ॥१॥
स
॥१॥
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तीन संज पूजा करे, समकित शोधे तेह ॥ पामे श्रेणिकनी परें, गोत्र तीर्थंकर देह ॥॥ श्रीजिनवर अर्चा करे, एकसो आठ प्रकार ॥ वन्दे देव शकस्तवें, पांचे प्रेम अपार॥३॥तत्र व्य भावें करी,INE
पूजा दोय प्रकार ॥ व्य पूज च्यादिकें, नावाझा जिनधार ॥४॥ यतः ॥ दुविहा ॥ जिणंद पूत्रा दिव्वे नावेय तथ्य दव्वंमि ॥ दव्वेहिं जिणंद पूत्रा, जिणाणा पालणं नावो ॥१॥ नकोसहव्वथयं, आरहिआ जाइ अच्चुअं जीवा ॥नावश्यएण पाव,अंत मुहत्तेण निव्वाणं ॥२॥
॥ ढाल वीजी ॥ नणदलनी देशी॥ | विघ्नोपशमनी पहिलमी, जिननी पूजा सार हो सुंदर ॥ बीजी अच्युदय साधनी, त्रीजी निवृतिकारहो सुंदर ॥१॥ श्रीजिनपूजा विधि सुणो॥ ए आंकणी ॥ सुणतां थाय नमेद हो सुंदर
जिनपूजा हितकारिणी, टाले नवदुःख खेदहो सुंदर ॥ श्री०॥॥ विघ्नशमे अंगपूजथी, अद्भुते Salगुण सुख होयहो सुंदर।मुक्ति लहे नाव पूजश्री त्रिविध पूजा गुण जोयहो सुंदर॥श्री३॥पंचोपचार - Salपूजना, पूजा अष्टोपचार हो सुंदर॥त्रीजी पूजा जिनतणी, सर्वोपचार विचारहो सुंदर॥श्री॥धाकुNaIसुम अक्त चंदन करी, धूप दीप ससनेह हो सुंदरपंचोपंचार पूजाकही जिननी करवीएहहोसुंदर॥श्री
||कुसुम अर्कत गंधं दीपनी, धूप नैवेद्य फूल नीर हो सुंदरअष्टोपचार करम हणी, पूजा एह relगंन्नीर हो सुंदर ॥ श्री०॥६॥न्हवण चंदेन वस्त्र नूषणा, फल बलि दीपक नाट हो सुंदर ॥ गीत
अनोपम आरती, सर्वोपचार गहघोट हो सुंदर ॥ श्री० ॥ ७॥ एहवीजो न करी शके, पूजा विस्तर दाख हो सुंदर, तो अक्त दीपादिके, पंच वस्तुकनी साख हो सुंदर ॥ श्री० ॥ ७॥ स्नान विलेपेन नूषणा, कुसुम वासं धूप दीपं हो सुंदर, फैल तंदुल पैत्र पूगिकी, नैवेद्यं वारि समीप हो sal सुंदर ॥ श्री॥ए वसन चैमरत्र दीपंतां, वाजि गीत समृद्धि हो सुंदर ॥ नाटक स्तुति जिन
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वीशवर तणी, कीजें कोशनी वृद्धि हो सुंदर ॥ श्री०॥१०॥ए एकवीश प्रकारनी, पूजा प्रनुनी जाण-II
स्थान हो सुंदर ॥ सुरपति सुरगणशुं करे, नाव नक्ति हित आग हो सुंदर ॥ श्री० ॥११॥ जे वल्लन ॥शा
आपण नणी, पाये वस्तु सुत्नेव हो सुंदर ॥ते प्रनु आगल जोमीयें, पूजाविधि सुणो देव हो सुंदर ॥ श्री॥१२॥शयन वस्त्र मूकी करी, पहेरी वस्त्र पवित्र हो सुंदर, पूर्वदिशि बेसी करी, जपे ।
परमेष्टी मंत्र हो सुंदर ॥ श्री० ॥ १३ ॥ अपवित्र अथवा पवित्रपणे, सुस्थित कुस्थित वास हो salसुंदर ॥ जाप करे नवकारनो, थाये पापनो नाश हो सुंदर ॥ श्री० ॥ १४ ॥ अंगुलअग्रे जे जप्यो, ISA
मेरु लंधी करे जाय हो सुंदर ॥ जेह जपे संख्या विना, निष्फल जाप सुथाप हो सुंदर॥श्रीण॥१५॥ salमुनिवर थानक जश् करी, अथवा पोताने गम हो सुंदर ॥ निज पातक धोवा नणी, करे आवश्यक sal ताम हो सुंदर श्री॥१६॥एक राईबीजो देवेसी, पाखी चनमासी चार हो सुंदर ॥ संवैचरी जिनवर
कह्यां, पंचावश्यक सार हो सुंदर ॥ श्री॥१७॥आवश्यक विधिसुं करी, जाये (जनवर गेह हो सुंदर ॥
तीन वार निसिही कहे, देखी जिनवर देह हो सुंदर ॥ श्री ॥१७॥ द्र तजे आशातना, निश Ra हास्य विलास हो सुंदर । थुक कलह विकथा तजे, न करे नोजन वास हो सुंदर ॥ श्री ॥१॥
नमस्कार जिननें करी, फल अक्षत लेश नूर हो सुंदर, ढोवे श्रीजिन आगलें, पामे सुख नरपूर हो सुंदर॥श्री०॥३०॥ तीन पूंज जिन आगलें, थापे पुण्य पवित्र होसुंदर ॥शशी जेम सुधि करवा नणी, ज्ञान दर्शन चारित्र हो सुंदर॥श्री० ॥१॥ दक्षिण नर वामें स्त्रीया, ढींचण नूमि लगाय हो सुंदर, चैत्यवंदन प्रनु आगलें, करे जिनहर्ष सुन्नाय हो सुंदर ॥ श्री०॥५॥ सर्वगाथा॥५॥ ॥शा
॥दोहा॥ श्रीजिनवरथी वेगली, हाथ षष्ठि रहे दार, नव कर जघन्य रहे वेगलो, एह अवग्रह धार ॥१॥
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salजिनवरदेव जुहारीनं, करी पंचांग प्रणाम, बेसे गुरु वंदी करी, टाले आशातना ताम ॥२॥पाल
गठी बांधे नही, लांबा न करे पाय, पग नपर पग नवि धरे, निकट न बेसे आय ॥ ३ ॥ दृष्टि न्यसी गरु सनमखें. चित्त करीक गम, धर्म शास्त्र श्रवणे सणे. नवसते परिणाम यथा शक्ति नगरी करी, गुरुने मुख पचख्खाण ॥ विरति करे आरंननी, पाले श्रीजिनआग ॥५॥
__ ढाल त्रीजी ___ अलबेलानी देशी ॥विरति विना दाता नरा रे लाल, तिर्यंच योनि लहंत सुविचारी रे, हस्त्यादिक थई सुख लहे रे लाल, बंधण माहे रहंत सुविचारी रे ॥ १॥ नक्ति करो नगवंतनी रे लाल, पालो शुआचार ॥ सु॥ नीत करणी किरिया करो रे लाल, राखो शुइ व्यवहार सु॥ ॥२॥ विरति तिर्यंच नवि दुवे रे लाल, दाता नरक न जाय सु० ॥ जीवतणी राखे दया रे लाल ॥ दीण न पामे आय सु०॥न ॥३॥ न करे न करावे कदा रे लाल, नीचहीरा व्यापार सु॥ पुण्यानु-IN सारिणी पापथी रे लाल, लछि वधे न किवार सु॥न॥४॥ तेली कसा कलालशं रे लाल, चर्मकार लोहार सु॥ अर्थागम थाये घणो रे लाल, तोहि न करे व्यापार सु ॥ न ॥५॥sa श्रावक श्रध्धावंत जे रे लाल, इणि परें करे व्यवहार सु॥ साचे मारग अनुसरे रे लाल, कू, कपट परिहार सणान॥६॥ देहरासर थापे घरे रेखाल. शल्य रहितनं देख सवामभाग सौधेयथी रेलाल,शुन्न दिवसेंसुविशेष सु॥नणा॥ सार्ध्व हस्त ऊंचो करे रे लाल, नूमिथकी निर्धार सु ilपूर्वोत्तर दिशि सन्मुखे रे लाल, दक्षिण विदिशि निवार सुवाना॥धन प्राप्ति पूरवदिशि रेलाल,अगपनि खूण संताप सुणामृत्यु लहे दक्षिण दिशेरेलाल, नैऋतें नपश्व व्याप सु०॥ ॥९॥पुत्र मरण
पच्छिम दिशे रे लाल, वायव्ये संतति नाश सुणालान्न घणो नत्तरदिशेरे लाल, ईशाने धर्मवास सु॥
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स्थान
नणारा देहरासरन शुन्न दिने रे लाल, करे प्रतिष्ठा खास सुणाखरचे व्य तिहां घणुं रे लाल, परे सहनी आश ॥सु०॥न ॥१॥ प्रजा श्रीजिनराजनीरे लाल, करे निरंतर प्रात स धोयां पहेरी धोतीयां रे लाल, निर्मल कर निज गात सु० ॥ न ॥ १२ ॥ निर्मल पट नलपर धरे रे लाल, विधिशुं श्रीजिनबिंब सु० ॥ पुष्पोदक पूरे करी रे लाल, अनिषेकं अविलंब सु॥ न ॥१३॥ पूत मनें पूतातमा रे लाल, जिनवरशुं चित्त लाय सु॥ सूत्र पाठ एहवो कहे रे लाल,
नन्नो रही प्रनु पाय सु॥न ॥१४ ॥ यतः ॥ बालत्तणमि सामिय, सुमेरु सिहरम्मि कणयNAकलसेहिं ॥ तिअसा सुरेहिं न्हविक, ते घना जेहिं दिछोसि ॥१५॥ तथा च ॥ चक्रे देवेंद्रराजैः
सुरगिरिशिखरे योऽनिषेकः पयोभि, नृत्यंतीनिः सुरीनिललितपदगतैस्तुर्यनादैः सुदीप्तैः ॥ कर्तुं
तस्यानुकारं शिवसुखजनकै मैत्रपूतैः सुकंन्नै, बिवं जैनेशांतं सुविविधवचनतःस्नापयाम्यत्र। Na काले ॥ अर्थः-पूर्वे सुरगिरि (मेरुपर्वत) ना शिखरपर नृत्य करती एवी देवांगनाओ सहित सुरें। Sal सुंदर मनोहर पदनी अंदर रहेला अतिप्रदीप्त एवा तुर्य आदि वाजीत्रोना नादयुक्त जे अनिषेक
गायनुं दुध तथा नाना प्रकारना जलथी करयो हतो तेनुं कारण के जे शिवसुख (मोक्ने नत्पन्न करनार, ते अनुकरण करवा माटे मंत्रोथी पवित्र सुंदर कलशोए करी अतिशांत एवा श्रीजिन
अनुना बिंब (मूर्ति ) ने आ समयने विषे विविधप्रकारनां वचनो (स्तवनो) वमे हुं स्नान sal करावं बु. ॥ १६ ॥ ढाल ॥ नक्ति युक्ति पोता तणी रे लाल, दधि दुग्धादिक सार सु० ॥
करे अनिषेक जिनेश्नो रे लाल, शांत नणी सुविचार सुन ॥ १७ ॥ न्हवरावे गोखीरशुं| सारे लाल, प्रनुने नक्ति विश ल सुण ॥ खीरधवल निर्मल रस रे लाल, सुर नुवनें चिरकाल
सु॥न ॥१०॥ दैधिकुंनें जिनवर नणी रे लाल, जे सीचे नव्यलोक सु० ॥ दिव्यरूप
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लीधरो रे लाल, ते नपजे देवलोक सु॥न ॥ १७ ॥ घृत अनिषेक जिणंदने रे लाल, जेह ITalकरे धरि राग सु॥ते सुर सुरनि शरीरनो रे लाल, थाये वर महानाग सु॥न ॥ २०॥ अति | alपवित्र वस्त्रं करी रे लाल, मृदु सुगंध सावधान सु ॥ जल लूहि जिनविंबर्नु रे लाल. आपे परमनिधान सु॥न ॥१॥ केसर श्रीखंमें करी रे लाल, माहे मेली घन सार सु०॥ जिनवरने नाले करे रे लाल, प्रथम तिलक श्रीकार सु॥न ॥ २२ ॥ पगे ढींचग कर बे खन्ना रे लाल, मस्तक नाल सुरंग सु॥ कंठे हृदय नदेर तले रे लाल, कीजें तिलक नवअंग सु॥न ॥२३॥ नवे अंग पूजा करी रे लाल, पी विलेपि अंग सु ॥ कुसुम सुगंधी मल्लिका रे लाल, टोमर
कुसुम सुरंग सु॥ न ॥ ३२ ॥ एक फूले न करे धिा रे लाल, कलिका न दे कोय सु॥sa salपंकज पत्र बे नेदथी रे लाल, हत्या पातक होय सु० ॥ न० ॥ २५ ॥ पुष्य पमयुं निज हाथथी
रे लाल, नूमि लागुं अथ पाय सु॥ निज मस्तक नलपर रह्यं रे लाल, तीण पूजा नवि थाय Sal Salसु ॥ न॥ २६॥ नीच जने फरस्यां दुवे रे लाल, कीटक वींध्यां जोय सुण ॥ मलिन वस्त्रे
धरयां हुवे रे लाल, तीण पूजा नवि होय सुण ॥ न ॥ २७ ॥ तेह कुसुम न चढाववां रे लाल. अगर धूप सुपवित्र सु ॥ जिनवर हाथें मूकीयें रे लाल, फल अहिवेली पत्र सु॥ न ॥॥ केशर चंदन प्रहसमे रे लाल, कुसुम तणी मध्यान सु० ॥ धूपं दीप संध्या समे रे लाल, पूजा त्रिकाल प्रधान सु ॥ न ॥ ए ॥ सर्वगाथा ॥ ७ ॥
दोहा॥ अदत नज्वल तंदुले, रचें अष्ट मंगलीक, दर्पण मुख प्रन्नु आगलें, मंगल मले नजिक ॥१॥ यतः ॥ दर्पण नदासण वधमाण सिरिवछ म वरकलसा ॥ सश्यिय नंदावतो, लिहिया अठछ|
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वीश०
॥४॥
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मंगलया ॥ २ ॥ दोहा ॥ वास धूप दीपादिनी, पूजा करे प्रधान, नैवेद्य मूके आागले, आरात्रिक बहु मान ॥ ३ ॥ दूध दहीं घृत आदिके, खाजां मोदक सार, चंदन श्रादिक नाजनें, प्रशन पूज अवधार ॥ ४ ॥ गोल प्रमुख खादिम सहू, सोपारी फल पत्र, फूल पगर दीपक करी, स्वादिम पूज विचित्र ॥ २ ॥ लवण नीरहीयारती, नट वाजित्र गंधर्व ॥ जे कीजें जिन आगलें, अग्र पूजा ते सर्व ॥ ६ ॥
ढाल चोथी |
बेटी नली रे जणी तुं आज ॥ए देशी ॥
श्रावक करेजी, पूजा विधिनो जाण ॥ लवण नीरनी आरती जी, मंगल दीपक आण रे? || निविका पूजो श्री जिनराय || जे पूजे जिनरायने जी ते जिन सरिखा थायरे ॥ भणाए कल । ॥ इव्यपूज इणि परें करीजी नावपूजा करेदेव || निस्सिही निज मुख नचरीजी, नूई पूंजि जली ठेव रे ॥ ज० ॥ ॥ २ इरियावदीया पक्किमी जी, विधिशुं करी रे विचार ॥ मुझ त्रिक विधिशुं करि जी सुधा दश अधिकार रे || || ३ || नदरे कुपर थापीयेंजी, कर करी कोशाकार | माहोमांदे रची आंगुली जी, योग मुझ सुविचार रे ॥ ज० ॥ ४ ॥ चार अंगुल आगल सही जी, पाबल प्रांगुल तीन, राखे चरण इसी परें जी जिनंमुद्रा लयलीन रे ज० ॥ ५ ॥ कर गर्जित करी सारिखा जी, जोगीजें निज जाल ॥ मुक्ताशुक्ति जालीयें जी, मुझ ए सुविशाल रे ज० ॥ ६ ॥ निज पंचांग नमामीने जी, विधिशुं वांदे देव ॥ नत्तम इलि परे साचवे जी, श्रीजिनवरनी सेव रे ज० ॥ ७ ॥ नव्य परव दिवसें रचे जी, मन धरी अधिक जगीश ॥ शुचि एकवीश प्रकारनी जी, पुजे श्रीजगदीश रे ॥ ज० ॥ ८ ॥ अष्ट प्रकारी नित करे जी, नत्तम वस्तु संयोग ॥ जे जे प्रभुनें चढावी यें जी, ते ते लहीयें भोग रे ॥ ॥ ए ॥ जश्ये चैत्य जुहारवा जी, ग्राम तथा वली जेद ॥ अशुचि
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॥धा
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राह मूकी करी जी, शुचि अंशुक पहिरेह रे ॥ न ॥ १० ॥ जश्ये एहवं चिंतवीय जी, चोथNal तणुं फल होय ॥ नग्यो पामे उठनुं जी, अठम नद्यत जोय रे ॥ भ० ॥११॥ दशम तणुं चाल्यां
थकांजी, हादश चरण विचार, अर्ध मास मारग विचे जी, दीठे मास विचार रे ॥ न॥१२॥ salपोहोतो जिन नुवनंतरें जी, फल पामे षटमास ॥ जिनगृह मांहे पेसतांजी, संवघर फल तास रे॥ Nar ॥१३ ॥ आपे जाम प्रदक्षिणा जी, सो वरसां फल होय ॥ सहस वरस पूजा की जी, पूजो
ए फल जोय रे ॥ न ॥१३॥ मनें करी नपराजीयजी, पुष्य तणां फल एह ॥ तो प्रत्यक्ष पूजा sal थकीजी, पुण्य जिनहर्ष अव्ह रे॥न ॥१५॥
दोहा॥ जिनवर प्रतिमा पूजीये, पुण्य होय सो नपवास ॥ सहस्र विलेपन पामीयें, माला लक्ष सुवास॥१॥ गीत नृत्य आगल करे, थाये पुण्य अनंत ॥ स्नात्रोछवनो विधि हवे, कांक कही पावंत॥शा
___ ढाल पांचमी ॥ चाइ धन्य सुपन तुं, धन्य जीवी तोरी आजाण देशी | पूरव तथा नुत्तर, दिसे प्रनालीबाजोग ॥ बुधे करिऊपरें पूजी प्रतिमा गुणपोठ ॥ पंचतीर्थी तथा वीसवटो मांफीजें तिलकादिक
तलकाादक युक्त, अंग हर्षे धरीजे॥१॥ कृतस्नान पवित्र, श्रावक Caझावंत जेह, पट्ट धो शुचि जल करे, पवित्र गुण गेह ॥ ते नपरें मूके, चार कलश नृतनीर sal
माहे मेल्हे कुसुम, कपूर चंदन रस धीर ॥२॥ वर वस्त्र आबादी जे ते कलश सनूर ॥बे पासे sal balपाणी, केरी धारा पूर ॥ करिने नत रासण, धरि जयणासुं नेह ॥ नन्ना अश् श्रावक, गाथा पत्नणे व Pal एह ॥३॥ गंन्नीरस्वरें, मुक्तालंकार विकार॥ए आर्या कहिनें, नतारे अलंकार ॥ अवणीय कुसुमा,
हरणं निर्माल्य नतारे ॥ विधि जाण आगममें, विधि सघलोहि विचारे, ॥४॥ बालत्तण सामिय,
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शश
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Salगाथा एह कहे॥ एक कलशें करीय, पखाल संखेप पूजे ॥ विस्तारें जो पहिलां, पूज्यां होय नाह
Sal निर्माल्यानरण, नतास्या विण गुण गाह ॥ ५ ॥ अंगुठे जिननें, करी पखाल पूजीजें, पठी कुसु॥५॥
मांजलि, प्रारंनी फल लीजें ॥६॥वली त्यार पठी एक, श्रावक थाल ग्रहे ॥ स्नात्र कारकना । Sal हाथ, शुचि जल धोवरावे ॥धूपावीने चंदन, सेती चरचीजें, तसु हाथ कुसुमांजली दे॥ नही
रहीजें ॥ ७॥ नमो अर्हसिक्षा, चार्योपाध्याय गुणीजें,॥ पठी पवित्र नदक लेश, अंग पखालि sal
नणीजें ॥ए गाथा कहि शिर, कुसुमांजलि मूकीजें ॥श्म सात वार कुसुमांजली प्रभुनें दीजें ॥ Nalu G॥ पठी तो प्रभुजीने जल, नो अनिषेक करीजें ॥ नमोर्हसिध्धा कही, विणयनयरी नच्चरोजें। शिरीषन्न जनम अनिषेक कलश ए जाणो ॥ नमोऽर्हत्सिदाचार्योपाध्याय वखाणो ॥ ए॥ एक
श्रावक कलश धारकना कर धोवरावे॥वली अगर धूपावें, चंदनसुं चरचावे॥ तेह एक श्रावक, सुविधे alखमासण देई ॥ श्रीजिनवरने वली,श्रावक ते वांदे॥१०॥ जलनृत कलशापि श्रावकनें ले ॥ valअंतरपट ढांकी, हृदय आगल राखेई ॥ सहुने ए कलश देवानो विधि जाणेवी ॥ श्रेयः पल्लव ए, Valकाव्य मुखें आणेवी ॥११॥ इत्यादिक पाठ, कही एक कलशे धार ॥ जिम होय तिम पंचामृतनो ||RE
करे पखाल ॥ पठी अनिषेक तोय, धारा ए श्लोक कहीजें ॥ एह कलश विशुइ धारानो अनिषेक Ial कीजें ॥१२॥ अंग खूदणे खूही, चंदन कुसुम पूजीजें, पठी आरति मंगलदीवो घृत कलश नरी-IVE sali ॥ माटी मी घी, कपूर गोल अचाएं॥ कुंकावटी ए सहु, वस्तु मेलीसुविहाणुं ॥१३॥ पहेली
आरती मंगल, दीवो घृत पूरी ॥ प्रगट कीजें नव, नवनां पातक चुरी ॥ बिहुँ आगले कुंकु, केरोटी स्वस्तिक कीजें ॥ बिहुँ आगल ढगलो, चोखानो ढोईजें ॥१५॥ ते ढगला नपरें पूगीफल मूकी-| जे प्रतिमानी वाम, दिशे आरती धरीजें ॥१५॥ मंगल दीवो दक्षिण नागें दुःख ठेलो, मंगलदीवा
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मांदे, गुलनी वाटी मेल्हो ॥ १६ ॥ बेहू एक पट नपर मूके नवि चूके ॥ यारार्तिक आागल, मृतिका मीतुं मूके ॥ कारक धारक बिहुँ, नावें उना थाये ॥ नपणेन मंगल पुष्प, वृष्टि करी बेसाये ॥ १७ ॥ कृष्णागुरुने घन, सार जागला लेइ ॥ जिनवरनें वाम, अंगे तेह धरे ॥ कारकनें हाथे, आपे लूए विशेष ॥ वार तीन तेहनी, वृष्टि करे सुविशेष ॥ १८ ॥ श्रहं पनिगा पसर, गाथा कही ए आठ ॥ लूस पाणी कारक, नच्चारे सूधो पाठ ॥ त्यार पटी आरती, पूजाविधि सुविचार | धारकनें नना, राखी कारक त्यार ॥ १७ ॥ इवामिखमासमणो कही जिननें वंदी || रात्रिक हाथें, आपे मन आनंदी || मरगय मणि घमिय, विशाल गाहात्रिक जाण ॥ जगतो दक्षिण, पाथी जिन परमाल ॥ २० ॥ फेरे वार अढी, उतारि माजागें ॥ मूकीजें त्यार पटी, मंगल लेवो रागें ॥ पूजी इच्छामि खमासमणो देइ वंदे ॥ धारक हाथे आपे, निज पाप निकंदे ||२१|| वली तिलक करीजें, फूलहार घालीजें ॥ लूंगणकां श्रीजिननें, धारकनें वली कीजें ॥ मंगलेंदी वो मांहें, मूकीजें घनसार ॥ कोस बीसंग्यि, स्सवि वे गाह नदार ॥ २२ ॥ ए गाथा जगतां मंगल दीप नतारे || स्नात्रोव इम करतां, शुजयतिने विस्तारे | ए स्नात्र तपोविधि, अल्प को उल्लासें, शास्त्रे बहुविधि बे, इम जिनहर्ष प्रकाशे ॥ २३ ॥
दोहा ॥
एम स्नात्र पूजा करे, जिनवर आागल आय ॥ चैत्यवंदन जावें करे, पांचे अंग नमाय ॥ १ ॥ | पदस्थ ध्यान शुद्धतमा, परमेष्टी नवकार ॥ नमो अरिहंताणं जपे, हरषें दोय हजार संपद पद चरण, संपूरण लय लाय ॥ चंदन कुसुम तंडुल करी, पूजे श्री जिनराय ॥ दंत पूजा करे, जक्ति सहित पट मास || वावित संपति ते लहे, पातक जाये नाश ॥
३ ॥ एम रि ४ ॥ फूल दीप
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॥ २ ॥ अथवा
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॥६॥
अक्षत प्रमुख, फल सोपारी धूप ॥ जे पूजे जिनबिंबनें, आणी नाव अनूप ॥ ५ ॥ वस्त्र पवित्र
पहेरी करी, लाख जपे नवकार ॥ ते तीर्थंकर पद लहे, पहोंचे मुक्ति मोकार ॥६॥नामाकृति व्य Kalनावजिन, जेह जपे नवकार ॥ कलेश तेहगति चारना, पामे नही निरधार ॥ ७॥ दिव्य वस्तु लेश
करी, पूजा अष्ट प्रकार ॥ करे तेह पूजा लहे, त्रिन्नुवन मांहे नदार ॥ ७॥ जेहवी मीठी सेलमी
साकर आंबा खातेहथी मीगं सुख लहे, अधिकां अधिकां नाख॥णाक्ष नाव आनंदशें, नमसValकरो जिनराय ॥शकस्तव आदिक करी, जिनवरना गुण गाय ॥१०॥ देवपाल जिम नोगवी, राज्यतणा सखन्नोगातीर्थकर पदवीलही, पामि मुक्ति संयोग ॥११॥
ढाल बट्ठी __ चोपाईनी देशी ॥णहीज नरत सुक्षेत्र मोकार, नगर अचलपुर श्रीअवतार ॥ लोक सुखीन । दाता घणो, यश व्याप्यो जगमा तेह तणो ॥१॥ राजा सिंहरथ तिहां राजीयो, राय गुणेकरी ते गाजीयो॥ न्यायें प्रजापाले सही, गाले अन्याय न्यायने ग्रह। ॥ ३ ॥ दास कीया वैरी सपराण, को न लोपे जेहनी आण॥ हय गय रथ पायदानो धणी, तेहनें घर लखमी घणी ॥ ३॥ कनक-Na माला नामें रा।
। रागिनी, शीलवती महोटा नागनी ॥ विश्व तीनना गण जे कठ्या, जास शरीरं आवास Saरया ॥४॥ देव तणे नपचारें करी, पुत्री एक थइ गुण नरी ॥ मनोरमा नामें गुणवती, कामी Raजननां मन मोहती ॥५॥ जाणे लखमीनो अवतार, जेहनां रूप तो नही पार ॥ नागकुमारी
अपनर रंन, जेदने देखी लहे अचंन्न ॥६॥तिणपुर शेठ वसे जिनदत्त, जेहने घरे ने परिगल वित्त जाणे प्रत्यक्ष धनद समान, राजावं पण बहुमान ॥ ७॥ सम्यक्दृष्टि माहे प्रधान, नपगारी आपे बहु दान ॥ जेहने घर नित देदेकार, दुर्बल दुखियानो आधार ॥॥ देवपाल तेहनें घरे दास, नूपाला
॥६॥
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Silन्वय नुत्पति तास ॥ सहु जीवनो तेह कृपाल, श्रीजिनधर्मतणो प्रतिपाल ॥ ॥ नत्तम गुरु
संगति जिनधर्म, जाएयो जेणे सघलो मर्म ॥ गुरुनी संगति करे निहाल, मिथ्यामतिनां काढे
साल ॥ १० ॥ गुरुनी संगति फेमे पाप, गुरुनी संगते टले संताप ॥ गुरु संगते विद्या पामीय, SENTरु संगते अनमी नामीयें ॥११॥ गुरुनी संगत तत्त्वविचार, गुरुनी संगत धर्म अपार ॥ गुरुनी
संगते जस जयवाद, गुरुनी संगते घणो संवाद ॥१२॥ गुरु संगतिथी माने लोक, गुरु संगतिथी जाये शोक ॥ गुरुनी संगति टाले दोष, गुरु संगतीथी लहीये मोद॥१३॥ गुरुनी संगतिना गुण घणा, में कम कहेवाये तेह तणा ॥ नत्तम गुरुनी संगति अश, कुमति कुसंगति सघली गई॥ १५ ॥ शेगाव तणे गोकल निशि दीश, चारे सारे धरी जगीश ॥ एक दिने धण लेश निज साथ, कांबल नढण NEलाठी हाथ ॥ १५ ॥ शतु माती वरसाला तणी, गम ठाम वहे नदीयां घणी ॥ गाजे गाज धके
मेह,, शेठ तणुं धण चारे तेह ॥ १६ ॥ नीर तणे जोरेंधड दम्यो , नदी तणो तट त्रूटी पमयो॥मां sal
युगादि मूरति नीसरी, देखीने आंखमीयो ठरी॥१७॥चिंतामणि जाणे आव्यो हाथ, कल्पवृदने । Balघाली बाथ ॥ मुखना माग्या पासा ढल्या, प्रनु दीग मुझ वांवित फल्यां ॥ १७ ॥ रलीयायत
मनमांहे थयु, अशुन्न कार्य हवे दूरे गयुं ॥ त्रिन्नुवन नाथ मख्या इंणे ठाम, तो मुज वंबित सीधा काम ॥१५॥ पुण्य प्रगट थयु माहारं आज, नयणें दीग श्रीजिनराज ॥ प्रगट्यो आज अखूट निधान, पामी कंचनमणिनी खाण ॥ ३० ॥ पुण्य विना पण बीजो देव, दरिसण नापे न मले सेव ॥ तो विन्नुवनना स्वामि तणां, दरिसण लहीयें जो पुण्य घणां ॥ १॥ तनमांहे निज मन न समाय, देखी देखि हर्षित थाय ॥ सहु नांग्यो कुःखनो आमलो, कहे जिनहर्ष हवे सनिलो ॥२२॥
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वीश
॥७॥
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दोहा ॥
पवित्र गम जोई करी, श्रापुं मूरति एह ॥ दरिसण जिम नित्य प्रत्ये करूं, पवित्र करूं निज देह ॥ १ ॥ तृणमय वेश्म करी तिहां, जाणे संसद ठाय ॥ पीठ करी सरिता तदें, श्राप्या आदिराय ॥ २ ॥ दरिस मूरतिनां करी, जमवुं ए मुज नीम ॥ दरिस विा जमवुं नहीं, जां जीवुं त्यां सीम ॥ ३ ॥ पक्षी अष्टमी आदिक परव, तेहनें विषे विशेष ॥ देवपाल नग्रन्नावथी, अभिग्रह लीधो एष ॥ ४ ॥ चारे सुरभि नित प्रत्यें, अर्चे यदि जिद || चंदनशुं चरचे सदा, व्य नाव होय बंद ॥ ५ ॥
॥ ढाल सातमी ॥ चोपाईनी देशी ॥
जलधर वरसे मूशलधार, दिवसें थई गयो घोर अंधार ॥ जल एकार्णव कीधी धरा, रात दिवस न रहे एक जरा ॥ १ ॥ सात दिवस लगे ऊमी इम थर, पूजा करवा न शके जइ ॥ श्रनिग्रहथी पण नवि ले ग्रास, सात श्रया तेहने उपवास ॥ २ ॥ जिनपूजा धरतां मन ध्यान, क्लिष्ट करम खपाव्यां निदान || वृष्टि निवृत्ति यश तिए गह, कुशीभूत थयो नीरप्रवाह ॥ ३ ॥ नतगे दिवस श्रये आठमें, पूजा करवा गयो तिले समे । नक्ति करि जिनवर पूजीया, ततक्षण पाप करम धूजीयां ॥ ॥ ४ ॥ भक्ति मुग्ध निर्मल शुभमति, जिन ग्रागल पनले वीनति ॥ खमजो तुमें कमा आधार, त्रिभुवन स्वामी करुणागार ॥ ५ ॥ सप्त दिवस में पूज्या नही, मंद जाग्य स्वामी हुं सही ॥ ताहरां दरिस विणमुज तात, गया अनर्था वासर सात ॥ ६ ॥ निष्फल दिवस गया जिनपति, जिम अरण्य मांहे मालती ॥ निष्फल नागरवेली जेम, वासर सात गया मुज तेम ॥ ७ ॥ भलो दिवस नगियो मुऊ प्राज, आज लघुमें त्रिभुवनराज ॥ जागी जाग्यदशा मुजवाह, नयरों दीठा श्रीज
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स्थान
॥ ७ ॥
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गनाद ॥ ८ ॥ तुं साहिब तुंहि वचल सही, पुण्यें ताहरी सेवा लही ॥ हुं हवे थयो कृतारथ स्वाम, हुं बलिहारी ताहारे नाम ॥ एए ॥ साहिब तुं मुऊ प्राण आधार, देखी पामुं हर्ष अपार ॥ नय देखूं नही मूरति, अन्नपान जावे नहीं रति ॥ १० ॥ एवी नक्ति वशें वीनती, कीधी देवपाल जिन मती ॥ ते सांगली मनमें गहगही, कोइक देवी प्रत्यक्ष थइ ॥ ११ ॥ ऋषभदेवनी शासन सुरी, ढुं | देवी हुं चक्केसरी ॥ ताहारी भक्ति सुखी में घी, हुं प्रत्यक्ष यश तुज जणी ॥ १२ ॥ वांबितवर | मुऊ पासे माग्य, जाग्यां हवे शुभ ताहारां जाग्य॥ हुं तुऊ तूठी पुं राज, सदुना वांबित करहुं काज ॥ १३ ॥ इह लौकिक फल वाल्हां होय, चाहे इह लौकिक सडु कोय || केटलेएक दिवसें तुज राज, वह होशे वधती तुम लाज ॥ १४ ॥ जावपूजा श्री जिनवर तणी, भक्ति जावें तें कीधी घणी ॥ खुशी श्रई हुं देखी भक्ति, राज्य लेहेशे तुं तेहनी शक्ति ॥ १५ ॥ एम कही देवी यर अदृश्य, वांबित फलशे मुऊ अवश्य || देवपाल मन हर्षित थयो, दुःख सघलोही हवे मुज गयो ॥ १६ ॥ प्रभुनें करी पंचांग प्रणाम, जाल तिलक रज कीधो ताम ॥ नोजन करवा ग्राव्यो घरे, जिनवर ध्यान दीयामां धरे ॥ १७ ॥ शेंठें आदर देश घणो दीधो परमान्नें पारणो ॥ तिरा अवसर ति नगर उद्यान, मुनि दमसार क्रिया सुप्रधान ॥ १० ॥ धरता मनमें निर्मल ध्यान, पाम्या निर्मल केवलज्ञान ॥ देव निकट वासी तिएण वार, श्राव्या महिमा करण अपार ॥ १७ ॥ कीधुं कंचन कमल विशाल, | नपरें बेठा काक कमाल || पूर्वाचल नपर जेम सृर; शोने तिम केवली सनूर ॥ २० ॥ सिंहरथ राजा वंदन जली, आाव्या ऋद्धि ले प्रापणी ॥ अंते नर परिजन परिवार, हियमे धरतो हर्ष अपार ।। | ॥ २१ ॥ पांचे अभिगम नृप साचवी, बेठो आागल वांदी स्तवी, द्ये उपदेश तदा केवली, कहे जिनहर्ष जाये दुःख टली ॥ २२ ॥
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॥दोहा॥
स्थान केवलज्ञानी परम गुरु, मुनिवर श्रीदमसार ॥ राजा परजा आगलें, नाखे धर्म विचार ॥१॥ alमीठी साकर जेहवी, वाणी परम रसाल ॥ सान्नलतां मन नल्लसे, हीयमे हर्ष विशाल ॥२॥ संशय टाले मन तणा, बूजे सहु नरनार ॥ एहवी वाणी नपदिशे, नवियगने हितकार ॥ ३॥
ढाल आठमी॥ चतुर चित्त चेतो रे ॥ ए देश। ॥ . श्रीगुरु एणी परें उपदिशे नवि बूमोरे, ए संसार असार नविक प्रतिबूझो रे॥सार नही इसमें l किश्यो नण॥ दुःखनो ए नंमार न ॥१॥ अश्रिर पदारथ नतपन्या न ॥ दीसे ते सहु जाय Nalन ॥ जलपर्पोटानी परें न ॥ कणमें खेरु थाय न ॥ २ ॥ धन धन करता सदु गया न
धन न गयुं किण साथ न ॥ कोण राणा कोण राजवी न ॥ गया पसारी हाथ न ॥३॥sal Isalकाया पण ए कारमी न ॥ विणसंतां नहीवार ॥ न ॥ समे पमे कण एकमां न० ॥ जेम Ral
सनतकुमार जण ॥४॥ नारी ए ले माहरी न ॥ मतको जाणो एम न॥ निजस्वारथ अण-IN Valपूगते भ ॥ तोमी नाखे प्रेम न ॥ ५ ॥ स्नेह घणो मायमी तणो न ॥ जीवथकी पणहोय Saro॥ चल्वणी मांगयो मारवा न ॥ ब्रह्मदत्तने जोय न॥६॥ वालो लागे पुत्रने नाN Balजनम संबंधे बाप न ॥ अवयव द्या पुत्रना न कनककेतु कीयो पाप न ॥॥ पिता पुत्रने ।
कारणे न ॥सुखना करे नपायन ॥ वैरवशे नृप कोणि ना हणीन श्रेणिक राय नाना
नेह न कीजें कारमोन ॥ किणहीशुं चित्त लाय न ॥ वाल्हा ते वैरी हुवे न ॥ ताय नाय Palकोण माय न ॥ ए ॥ मनुष्य जन्म पामी करीन॥ गेमी सयल नपाधि न ॥ दुःखकारण
॥जा जाणी सहुन ॥ मनमां धरो समाधि न ॥१॥माणस जन्म दुर्लन्न अन॥ वली जिनना
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षित धर्म न ॥ सामग्री पण दोहिली न ॥ तजवो मिथ्या नर्म न ॥ ११॥ आवखं सोम salवरसनुन ॥ अर्ध्व रात्रिमा जाय न०॥ तदर्घ बाल युवानमें न ॥ जरा व्याधि दुःखमांहि ॥ ar ॥१२॥ निष्फल जाये आव न ॥ धर्म विना इण रीत न० ॥ पण प्राणी जाणे नही ॥ मान॥ मोह मगन मदप्रीत न॥ १३॥ एक जनम सुख कारणे न ॥ नरकायुष कल्पांतन
तो किम पातक कीजीयें न ॥नय गंमी निचांत न ॥ १४ ॥ पातकनां फल पामूआ न॥ जनम मरण दुख होय न ॥ नमे घणो संसारमें न ॥ शरण न पाये कोय न॥ १५॥ शरपुं एक जिनधर्मनुं न॥ महोटो एह महंत न॥ जेहथी दुर्गति नवि पमेन॥ पामे सुख्ख
अनंत न ॥१६॥ धर्म करो जेम निस्तरोन ॥ कहियुं केवली एम न० ॥ धरम करो जिनहर्षशुं Sar ॥ जिम पामो सुख खेम न ॥१७॥ सर्वगाथा ॥ २० ॥
दोहा॥ Sal सानली एहवी देशना, प्रतिबूझ्यो नरराय ॥ पूरे नगवन् माहरूं, केटलुंएक ने आय ॥msal Valकहे ताम मुनि केवली, तुज आयुष दिन तीन ॥ एहवं वचन सुणी करी, नूप श्रयो मनखीन॥२॥
पश्चात्ताप करे इश्यो, में सेव्या विषय सवाद ॥ मातोपद ऐश्वर्यमां, रातो घणे प्रमाद ॥३॥ सुकृतमें
कीधां नहीं, परन्नव सुखने काज ॥ वृथा जनम में हारियां, कीधां पाप अकाज ॥४॥ जिनमूरति । Salप्रासाद जिन, करया न पूज्या साध ॥ दुस्तप तप न समाचरयां, खोयो जन्म अगाध ॥५॥
ढाल नवमी ॥शील कहे जग हुँ वमो॥ ए देशी॥ सहु साखें राजा करे, पळतावो निजमन मांहेरे ॥ मंदिर लागो बारणे, शं कारीजें हवे सारे॥ सहु॥१॥ मुनिवर ये आशासना, मधुर। वाणी राजाने रे। तीन दिवस तो घणा, परतावोक
दिवस तो घणा, पळतावो करे!
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तुं श्याने रे || स० ॥ २ ॥ कोमी वरस लगें तप तपे, पुण्य नपार्जित अन्य कोई रे ॥ अंतर मुहूरत मांहे ते, निवें मुनिने फल होइ रे ॥ स० ॥ ३ ॥ तो पण दवमां राजवी, शुद्ध समकित पूर्वक धारो ||रे || देशथकी श्रावक तणां, द्वादश व्रत चिंतें विचारो रे ॥ स० ॥ ४ ॥ सम्यगदृष्टिनुं करयुं, थोडहीं तप सुप्रमाणो रे ॥ श्राये तेहथी निर्जरा, कर्माष्ट ती होये हालो रे स० ॥ ५ ॥ सम कितशुं धर्म आदरी, राजा केवलीनें वंदी रे ॥ निज परिवारे परवरयो, आव्यो मंदिरें आनंदी रे स० ॥ ६ ॥ राजा मनमां चिंतवे, संवेग रखें पूरालो रे ॥ कोनें आएं साहेबी, कोइ राज तो नहीं रालो स० ॥ ७ ॥ स्तोक प्रावखुं माहरूं, ए राजधुरा कोण धारे रे ॥ पुत्र नहीं कोई माहरे, राजा इम चित्त विचारे रे ॥ स० ॥ ८ ॥ इम चिंता करतां थकां राज्याधिष्ठायिक देवी रे || प्रत्यक्ष आकाशें रही, पंच दिव्य नृप प्रगट करेवी रे ॥ स० ॥ ए ॥ पंच मिली द्ये जेहनें, तेहनें कन्या परगावी रे ॥ राज्य देजे तुं तेहनें, देवी गइ एम बतावी रे ॥ स० ॥ १० ॥ सचिवादिक नृपें तिम करयो, देवपाल जलि दियो राजो रे || श्री जिनपूज प्रन्नावथी, सीधां मनवांबित काजो रे ॥ स० ॥ ११ ॥ परगावी नृपें दीकरी, मनोरमा मोहनगारी रे ॥ केवली कन्हे महोत्सवें, संयम लीधो सुविचारी रे। स॥१२॥ चारित्र बेदिननुं सूधुं, पाब्यं ते निरतिचारो रे । पहेले देवलोकें सुर थयो, सिंहरथ राजा अणगारो | रे ॥ स० ॥ १३ ॥ एक दिवसनी पण जली, तपस्या समता नियोगें रे || पूर्व कोमी सेव्याथकी, क्युं नहीं समता संयोगें रे ॥ स० ॥ १४ ॥ निर्मोही एक दिन तयुं, समतायें चारित्र पाले रे ॥ मोक्ष न पामे जो कदा, तो पण सुरनव न निहावे रे ॥ स० ॥ १५ ॥ यतः ॥ प्रतिद्वंति क्षणार्थेन, साम्यमालंब्य कर्म तत् ॥ यन्न हन्यान्नरस्तीव्र, तपसा जन्मकोटिनिः ॥ १६ ॥ अर्थ - जे कर्मने करोमो जन्म पर्यंत | करेलां तपथी पुरुष मटामी शक्तो नथी ते कर्मने मात्र मननासाम्यनुं आलंबन करीने अर्घाकानी
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अंदर मटाने बे. " एवीते श्रीमाचार्यना योगशास्त्रमां कहेलुं बे. " हवे देवपाल नरिंदनी, मंत्रीश्वर शेठ सामंतो रे । कोइ न माने आगन्या, निज कुल बल गर्व वदंतो रे ॥ स० ॥ १७ ॥ नृप चिंते श्रापुं नवा, महामात्य शेठ सामंतो रे । शमन याये मूलगा, थाये नतपात अनंतो रे ॥ | स० ॥ १८ ॥ प्रतिहार मूकी करी, तेकाव्यो शेठ नरिंदे रे || अभिमानें ग्राव्यो नहीं, जिनदर्ष क | आनंदे रे ॥ स० ॥ ११७ ॥ सर्वगाथा ॥ २३१ ॥
दोहा ॥
राजा दूनमनें थइ, तटिनी तटें गयो ताम् ॥ जिहां जगनाथ कुटीरमां, करे वीनती श्राम ॥ १ ॥ राज्य दियो मुऊनें प्रनो, जोजन घृतविरा जेम || महाऐश्वर्य प्रभावविण, प्रसन्न यइ दियो केम ॥ ॥ २ ॥ जो दीयो तो करि मया, माहारो करो प्रताप । सहुको माने प्रागन्या, दहदिशि की रति व्याप ॥ ३ ॥ मुऊनें कोइ न लेखवे, माने नही मुज आण ॥ नगर तणो राजा थयो, न करे कोइ प्रणाम ॥ ४ ॥ राजानी जो ग्रागन्या, शीश न धारे लोक ॥ तो होलीना राय जिम, पामी पदवी फोक ॥ ५ ॥
ढाल दशमी || चोपाइनी देशी ॥
देवी आवी ततक्षण आम, देवपालनुं करवा काम ॥ वत्स मकर तुं खेद लगार, वात करूं ते हियमें धार ॥ १ ॥ माटीनो एक वारण करो, चढीने वाडी संचरो || सदु कोइ विस्मय पामशे, तुझने आवी शिर नाम || २ || देव प्रभावें हाथी तेह, जीव सहित थाशे तसु देह || लोक मानशे ताहारी प्राण, मनश्री दूरें मूकी मारा || ३ || पण जिनें पूजा मनरंग, करजे सावधान नबरंग, कामगवी जेम दुःख कापशे, तुझने कामित फल प्रापशे ॥ ४ ॥ देव वचन इशुं सांजली, राजानी पूगी मन
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शि०
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रुली ॥ बिंब सुनतें पूजा करी, घर ग्राव्यो विस्मय मन धरी ॥ ५ ॥ कुंभकार बोलावे नरेंड, प्रापो | मृन्मय करी गजें ॥ ऐरावण सारिखो अंग, हिमाचल आकार उत्तंग || ६ || तरत करी प्राप्यो | कुंजार, अवनीपति हुन असवार || देव शकर्ते चाल्यो असवार, गाजं तो करतो आवाज ॥ ७ ॥ बाहिर चाल्यो रमवा जणी, मृन्मय गजें बेसी पुरधणी ॥ युगाधीश नमवा आवियो, भक्ति करे वा मन जावियो ॥ ८ ॥ जिनवर बिंब नमी पंचांग, पृथिवीपति निज मननें रंग ॥ केलि करे लीला ये राय, सहुजन देखी विस्मय श्राय ॥ ए ॥ देखो माटी गज चालियो, इा राजायें ए शुं कियो ॥ ए तो कोइ न जाणे गूज्ज, इाशुं किम पोहोंचाये फूफ ॥ १० ॥ क्रोध मान सहुना नपशम्या, शेव सामंत यावीनें नम्या ॥ जेहने सानिध्यकारी देव, तो अमनें पण करवी सेव ॥ ११ ॥ ए रुठो नतारे नीर, पहिरावे सहुनें जंजीर ॥ एहनी कुनजर थाये लगार, तो कोइ नहि राखण हार ॥ १२ ॥ जे महोटा कीधा जगदीश, तेहशुं न बने करतां री ॥ एहना पोतां पुण्य अपार, पुण्यें पाम्या राज्य जंकार ॥ १३ ॥ श्रवी नृपनें लागा पाय, कर जोमी कहे सुण महाराय || जे श्रममां दे वी खता, बखस बखस अवनीना पिता ॥ १४ ॥ महोटानें शुं कहियें घणो, अविनय खमजो प्रभु श्रम तणो ।। मानी आएण सहु ततकाल, सुखें राज्य पाले देवपाल ॥ १५ ॥ शेठ पोतानो जे जिएगदत्त, तेहडावी तेजी तुरत ॥ महामात्य पदवी तसु दीध, सहुतणो ते नायक कीध ॥ १६ ॥ शेठ तणो बे मुज उपगार, ते उपगार हि ये संभार ॥ गुण कीधो लोपे नही जेह, महियलमांदे मोटा तेह ॥ १७ ॥ श्रोमोही कीधो नृपगार, मोहोटा माने करी अपार ॥ न्हानो सो याये वरुबीज, पण विस्तार करे तेहीज ॥ १८ ॥ मंत्रीनें शिर थापी जार, पोतें राज्य जोगवे सार ॥ वात न जाणे दुःखनी किसी, हृदयनक्ति जिनवरनी वसी ॥ १५ ॥ जिनदत्त शेठ धैर्य गुण घरी, महामात्य पद पामी करी ॥ करे लोकनें
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॥१णा
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बहु नपगार, नार लह्यो पण नहिय लगार ॥ ॥ मोहोटा ते न करे अहंकार, मोहोटा चाले नमी अपार ॥ मोहोटा ते परमेश्वर किया, मोहोटे मोहोटा गुण कालीया ॥१॥ प्रजा तणो राजा प्रतिपाल, वैरीजननो जाणे काल ॥ थयो जिन हर्ष श्श्यो नूपाल, पूरी यश ए दशमी ढाल ॥२॥ सर्वगाथा॥॥
॥दोहा॥ al पुर नद्याने अन्यदा, साधु तो परिवार॥ गामनगर पुर विहरता, आव्या मुनि दमसार ॥१॥
केवलानी नासकर, गति अगतिना जाण ॥ सर सेवित निज पद कमल, गुणमणि परमनिहाण R ॥ राजा आव्यो वांदवा, सामंत मंत्रि सहित ॥ साथे नारि मनोरमा, निर्मल जेहनुं चित्त ॥३॥
देई तीन प्रदक्षिणा, वांदी श्रीगुरुराय यथायोग्य बेग सहू, गुरु सन्मुख चित्त लाय ॥४॥ कनक sdकमल उपर रह्यो, जाणे नग्यो नाण ॥ देवा मांझी देशना, मीठी अमिय समाण ॥५॥
ढाल अगीयारमी ॥ जंबूहीप मकार, पुरहथियानर ॥ ए देशी॥ | त्रिनुवननो आधार, जलनिधि जलधर, अर्क इंदु आधारिया ए॥ सुर नर असुराधीश, तेहनी संपदा, आपे सुख गुणगारिया ए॥१॥ चिंतामणि सुरधेनु, सुरवृक्षादिक, सहु आधीन धरम तणे ए॥ श्रीजिनधर्म पसाय, शिवसुख शाश्वतां, लहियें सदगुरु श्म नणे ए॥२॥ शुक्लपद जेम चं, अधिक कला वधे, धरमथकी तेम संपदा ए॥सिंहथकी जेम श्वान, नासे बीहतो, तेम नासेस
आपदा ए॥३॥ साधु श्रावकनो धर्म, बिहुँ ने कह्यो, मूल सम्यक्त्व वखाणी ए॥ श्रीजिनवभरनी नक्ति, दियमे नल्लसे, समकित निर्मल जाणीयें ए॥४॥बे प्रकार जिनन्नक्ति,व्यतःनावतः,
अनेक पूजा पहेली कही ए ॥ आझाराधन तास, स्तवना नावना, ए बीजी पूजा सही ए॥५॥
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त्रीश
॥११॥
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आद्य पूजा नत्कृष्ट, कल्पावधि तणा, सुख आपे संशय नहीं ए ॥ नावन्नगतिथी होय, फल सम्यक परें, महा नदयपद स्थिति लही ए ॥ ६ ॥ यतः ॥ नकोसं दव्वश्रयं श्राराहिय जाइ अच्चुयं जाव | नावण्यएल पावर, अंतमुदुत्ते निव्वाणं ॥ ७ ॥ मेरुस्स सरिसवस्तय, जत्तिय मित्तंतु अंतरंहोइ ॥ दव्वथयं जावथय, अंतरंत नियंणेयं ॥ ८ ॥ ढाल ॥ सात्विकी राजसीनक्ति, तामसी इतित्रिधा, मन अभिप्राय विशेषथी ए ॥ श्रीजिनवरनी नक्ति, करतां पामीयें, फल मनवंबित जेहथी ए ॥ एए ॥ निर्मलगुणनी श्रेणि, श्री अरिहंतनासुं, मन रातो जेहनोए ॥ जेदी साते धात, रंग न उतरे, उपसर्गे पण तेहनोए ॥ १० ॥ जिनसंबंधी काय, अर्थे सहु धन, आपे जे नव्य प्राणीयाए ॥ करे निरंतर नक्ति, महामहोत्सवें, ते जगमांहे वखाणीयाए ॥। ११ ॥ शक्त्यनुसारें भक्ति, जिनवरनी करे, निःस्पृह आशय मनधरीए | तेह सात्विकी भक्ति, थाये मुनिकहे, लोकक्ष्य फल ये खरीए ॥ १२ ॥ इह लौकिक फल प्राप्ति, देतें जेह करे, अथवा लोक रंजन जीए ॥ अथवा निजवृत्त्यर्थ, कहीयें राजसी, जाणो नक्ति जिनवर ती ॥ १३ ॥ दुसमणनां कय काजें, आपदा टालवा, काजें अज्ञान मनवसीए | अथवा धरी अहंकार, मत्सर मनधरी, नक्ति कहते तामसीए ॥ १४ ॥ रजस्तमोमयी नक्ति, सर्व प्राणीजणी, पांमतां ते सोहेलीए ॥ उत्तम सात्विकी भक्ति, राजसी मध्यमा, जघन्य जाणवी तामसीए ॥ तत्त्व ताजे जाण, ए नवि आदरे, युक्ति करी गुरु परिसीए । १६ ।। अथवा पंच प्रकार भक्ति, जिणंदनी, पुष्पादिक अर्चा करे || राखे श्री जिनंख्य, यात्रा नत्सव, जिन आशा मस्तक घरेए ॥ १७ ॥ दिधा जक्ति जिनराय, अथवा मनधरो, पहेली तो आनोगथीए ॥ अनांनोगथी अन्य, सर्वोत्तम श्राद्य, बीजी बहुगुण योगश्री ॥ १८ ॥ जिन गुएानोपरज्ञात, सुविधि शुभमती, तेहना जाव जला कए ॥
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स्थान०
॥११॥
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आदरशुं जिन पूज, करे ते या जोगे, व्यस्तुति पातक दहे ॥ १७ ॥ एहश्री चारित्र लाज, थाये अनुक्रमें, कर्माष्टक बल निर्दलेए ॥ तेमाटे जलेजावें, इहां प्रवर्त्तवो, सम्यग् दृष्टि नवि खले ए ||२०|| पूजा विधि प्रज्ञात जिनगुएा नवि जाणो, पण शुभ परिणामे करेए ॥ कही यें ते प्रणांनोग व्यस्तव सही, इम जिनहर्ष समुच्चरेए ॥ २१ ॥ सर्वगाथा ॥ २८४ ॥
दोहा ॥
" जिनगुण थानक नवि लह्यां, तोपण गुरानो खेत ॥ बोधिलाजनी शुद्धिनर, जावविशुः वे हेत ॥ १ ॥ अशुनय जावी दुवे, आगल जास कल्याण ॥ प्रमुलिय गुण मुझथकी, प्रीतिवधे सुप्रमाण ॥ २ ॥ जिनदेखी देषी दुवे, निबिरुकर्म संसार, मरणसमें रोगी नाणी, श्वा अपथ्य आहार ॥ ३ ॥ धर्मबिंब जिनवरतणो, अशुननाव जय प्राण ॥ तेमाटे प्रद्वेषनो, वर्जे लेश प्रमाण ॥ ४ ॥ मित्रां बलों तारों कही, दीता मिथ्यादृष्टि ॥ थिरों कांत सूरज्या, प्रन सोमा चारे सुदृष्टि ॥ ५ ॥ त्र गोमेय वली काष्ट कहि, दीपक अगनि विचार || रत्नं नक्षत्र वि ईदुर्मा, ते सारिखी धार ॥ ६ ॥ योगदृष्टिमां कह्यो, आग्दृष्टि अधिकार || करे नक्ति ए सारिखी, जिनवरनी हितकार ॥ ७ ॥ पुदगलमांहे लदे, अथवा तिए नवमांहि ॥ करो नक्ति कोमल पणे, हियमेधरी नचाहि ॥ ८ ॥ श्रीजिननक्ति वधारवा, प्रथम स्थान शुभभाव ॥ करो तीर्थकर पद दीयण, तारण नवजल नाव ॥ ५ ॥
ढाल बारमी ॥ सारकर सारकर सामी सीमंधरा ॥ ए देशी ॥
"देशनां सांजली राय मनमां रली, केवलि मुनि तो पाय लागे ॥ हाथ जोडी करी अंगमोमी करी, शुद्ध सम्यक्त्व जिनधर्ममागे ॥ देश ॥ १ ॥ श्राश्वत नावियो, गेहनिज आवियो, हेम जिन
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IN राय मंदिरकरायो ॥ दंडधज कलश लहकंत नंचा घणा, माहे जिनराजनो बिंब थाप्यो ॥देशाशा
पात्र अरिहंतने गमे धन प्रापियें, रतनमय पात्र अमृत सरिखो।नुक्तिनां मुक्तिनां सुखदिये नरनणी सुरगवी सुरमणि अधिक लेखो॥ देश ॥३॥रायदेवपाल गुणमाल थानक प्रथम, सुपरें सेवे घणु । नाव रूमे, मन वचन काय पूजे त्रिजगनाथने, पाप भवन्नवतणां खूब सूझे देश ॥४॥ चैत्य अरिहंतना गमगमें करया, जेह कैलास सरिखा बिराजे ॥ कीध प्रतिष्ट महोत्सवें केवली, हेममय बिंब अतिरूप गजे॥ देश ॥ ५ ॥ रत्नमाणिक्य गांगेयना आन्नरण, शोन्नता कीध मन चोर लीधो ॥ स्नात्र नत्सव करेनक्ति तेहना, सफल निजजन्म घणि नात कीधो ।
घाण नात कीधो ॥ देश valu ६ ॥ आणजिन नानी राण पाले सदा, वृद्धिजिनच्य नाना प्रकारें ॥ नक्ति
सामीतणी तेह करे अतिघणी, तीर्थयात्रा करे विधे सारे ॥ देशणा॥दोष जेहथी गया, दीनपाली दया, साधु गुणवंतनी करे सेवा ॥ अशन पानादि आहार थे ए षणी, मुक्तिना सुख तणी जासु al हेवा ॥ दे ॥ ७॥ प्रथम थानक जगन्नाथनी भक्तिशृं, राजनां काज गंमी आराधे ॥ बांधीन तीर्थ कर गोत्र देवपाल नृप, जेहथी पुण्यनी कोटि वाधे ॥ दे॥ ए॥ किणहीक अवसरे देवी पनोरमा, करण क्रीमा चली रायसाथे॥आगले चालतां एक नरपेखीयो, काष्ठनोनार जेणे ली माथे॥ दे० १०॥रागिनी तेहने देखी मूर्नालही, सीत नपचार करी चेत वाल्यो॥रायपूळे तसुं ए अयो तुज किशुं, प्रागन्नव ज्ञानथी में संन्नाल्यो॥ दे ॥ ११ ॥ नारि नाखे महाराय तुमे सांजलो एह पति माहरो काष्टधारी ॥पागले नव हुतो पण दरिडी दुखी, दुष्ट कर्ता करम काष्टहारी॥ देश
॥१२॥ Salu१॥ एह साथे गश् अन्यदारन्यमें, काष्ट लेवा नणी में निहाल्यो ॥ गिरिनदीने तटें बिंब जिन
रायनो, प्रश्रम शुचिनीरशुं ते पखाल्यो ॥ दे ॥१३॥ फूल हाथें धरी बिंब पूजा करी, अक्तिशुं में
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जानु पाय नमीया ॥ चिनमें प्रीति पाणी घणी प्रत्नु तणी, नावना लावतां, अशुन गमीया॥दे Sannyाएहने में कह्यं मधुरवाणी करी, एह प्रतिमा जगन्नाथ केरी॥स्वामी प्रगमीकरी जन्म लफलो
करो,मानतुं मानतुं शीखमेरी ॥दे ॥१॥देवना देवना देवनी बिंबए, लोक परलोक आनंदकारी॥ पाप नवकोटि कृत जाये नमतां थकां, पति नमो माहरूं वचन धारी ॥ दे॥१६॥ अन्नव्य ए जीव lमुज वचन नविसदह्यो,माहरा वचन सुणी क्रोध नरियो॥ तुहिज सुखणी दुजे नमीने पाषाणने, Kalएम अवहेलतां ते नमरियो॥ दे ॥१७॥ आसताधर्मनी आवतां दोहिली,तिम जिनरायनी नक्तिनावें॥दोकमाविण जिनाधीशनो धर्म , कहे जिनहर्प लीधो न जीवे॥ देण॥१८॥सर्वगाथा॥३१॥
॥दोहा॥ प्राणनाथ पहेली परें, दुःख अनुलवे अनिष्ट ॥ नदरपूरणा दोहिली, थाये करमविहिष्ट ॥१॥ तिहांपण दारिडी हतो, वहेतो मूली नार ॥ इहां पण तेहवोदिज अयो, करम न मेले लार ॥२॥ पाम्यां सुकृतोदय थकी, में ए परमैश्वर्य ॥ नंचुं कुल पामी वली, पुण्यतणा आश्चर्य ॥३॥
ढाल तेरम। ॥शोर रागण गीयते ॥ __राजा सांजली ते वाणी, मीठी पीयूष समाणी ॥ विस्मित थइ तास बोलावे, ते काष्टहारक Sellतिहां आवे ॥ १ ॥ नृप सुणतां राणी भाखें, तेहनें पूरवन्नव दाखे ॥ जिनधर्म कहे हित salआणी, ते आगल नृप शुनवाणी ॥२॥ पाउल तें धर्म न कीधो, ते दान सुपात्रं न दीधो ॥ जिन
नक्ति न कीधी कहीये, जेहश्री कुल संपनि सहीयें ॥५॥ हवे कांक कर पुण्या३, जिनन्नाव Salनगति चित्तला ॥ एहश्री तुजने सुख पाशे, दुःख जनम जनमनां जाशे॥४॥ जिनधर्म जगत
हितकारी, तेहनें कह्यो नृप उपगारी ॥ ते वचन न मान्यां पापी, सुकृतवल्ली जेणे कापी ॥ ५ ॥
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स्थान
वीशण
अन्नव्य हुए जे कम, श्रद्धा निश्चे नही धर्मे ॥ दूर्नव्य पुरुष जे कोश, तेहने पण श्रइन दो ॥६॥
नव्यने सद्दहणा आवे, शुधर्मनी वात सुहावे, आसन्न सिक्षिक नरनारी, सहहे करे ते विचारी ॥७॥ ॥१३॥
धर्मरत्नने योग्य न दीगे, धरणीधव जाण्यो धीगे॥नीनो आतम संवैगे, आव्यो निज मंदिर वेगे Sandदेवसेन नामें ज्येष्ठ पुत्र, राखे जे घरनो सूत्र ॥ महाराणी मनोरमा जायो, मुकतामणि salकुंखें जायो।ए । नरयौवन ते परणायो, बल प्राक्रम अयो सवायो ॥ राज्यन्नार धुरंधर जाणी,
राज्ये थाप्यो नलट आणी ॥१०॥ देवपाल मनोरमा राणी, वैराग्ये नत्तम प्राणी ॥ श्रीचंझन्न गुरु पासें, संयम लीधो नल्लासें ॥ ११ ॥ दुष्कर तप जे आराधे, सूधो मोद मारग साधे ॥ रजकतणी नतारे, निजपरजन आतम तारे ॥१२॥ नव पूरव अंग इग्यारे, राय ऋषि नणिया अधिकारे ॥ नित्य प्रते करे सूत्र सज्जाय, पाले जयणा षट्काय ॥१३॥ तिहां पण जे पहेलुं थान,अरिहंतनी नक्ति प्रधान ॥करे विधिशं ते ऋषिराय, गुरुगोदित चित्त लगाय॥१४॥ जे अतिशय चोत्रीश धारी.IST सहु विश्वनें आनंदकारी ॥ एहवा अरिहंतने ध्यावे, जेहथी उत्तमपद पावे ॥ १५ ॥ जिनप्रतिमा त्रिनुवन मांहें, कीधी अणकीधी नबाहें ॥ निज हृदयकमल धरी वंदे, वंदी मनने आनंदे ॥१६॥
आशातना दूरे टाली, अरिहंतादिक सुख आली ॥ गुणकीर्तन करे सहूना, इंम पातक बाले जूनां Ran१७ ॥ पंचकल्याणक जिनकेरां, हू जिहांपुण्य घणेरां ॥ ते तीरथ नूमि कहावे, तिहां पण ऋषि
वांदण जावे ॥१७॥श्म पहेलुं पद आराध्यु, जिनन्नक्तियकी मनवाध्युं ॥ षष्टाष्टम आदि माप्तांत, दुस्तप तप कर्या एकांत ॥१॥ निर्दूषण चारित्र पाली, अंत अगसण उजवाली ॥ अनुक्रमें मुनि काल करीने, श्रीजिनवर ध्यान' धरीने ॥२०॥ प्राणत स्वर्गे जर रहीया, सुरना सुख तिहां बहुधा
॥१३॥ लहीयां ॥ हवे श्रमणि मनोरमा जेह, आराध्युं संयम देह ॥ १॥ तपकरतां चित्त नमेदं, नारीनो
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वेद न दे ॥ते पण पहोती तेणे गमें, या मित्रपणे सुखपामे ॥ २२॥ तिहांथी नृप चवी सुसने, नपजशे महाविदेहें। तीर्थंकर पदवी लदेशे, राणी जीव गणधर थाशे ॥ २३ ॥ श्म प्रथम
थानक आराधे, विधिशुं ते शिवपद साधे ॥ सुख पामे तेह अनंता, श्म कहे जिनवर गुणSrilवंता ॥ २५॥ पहेलो थयो ए अधिकार, तेरे ढालें सुविचार ॥ गाथा तीनसे चालीश, वांचो मनsalधरीय जगीश ॥ २५ ॥ श्रीदेवपाल क्षितिपाल, कीधी जिनन्नक्ति विशाल ॥ जिनहर्ष सुणीवृत्तांत, सेवो थानक गुणवंत ॥ २५ ॥ इतिश्री विंशतिस्थाने प्रथम स्थानकं समाप्तम् ॥ सर्वगाथा ॥३५॥sa
अथ धितीय श्रीसिपद स्थानक प्रारंनः ॥
॥दोहा॥ Sal सकलकर्मना क्लेशथी, मूकाणा महानाग ॥ चिदानंद पद शाश्वता, लागे को न दाग ॥१॥ salलोक अग्र दे रह्या, लही अनंती ऋद्धि॥जस्म किया बाली करम, परम आतमा सिद्धिाशयतः पध्मातं सितं येन पुराणकर्म, यो वा गतो निर्वृति सौधमूर्ध्नि ॥ ख्यातोऽनुशस्तो परिनिष्ठितार्थो, यः
सोस्तु सिद्धः कृतमंगलो मे ॥ १॥ अर्थः-जेणे पुरातन कर्मनुं ध्यान करेलुं अथवा जेणे प्राचीन alशुक्ल कर्म ध्यानधारा दीपकरेलुंजे अने जे परमनिर्वृति एटले मुक्तिरूप महेलना शिखरपर
गयेलो तेमज जे विख्यात अनुशासन रुप ने तथा जेमणे पूर्णज्ञान युक्त अर्थ जाणेलो तेवो सिवर्ग, मने मंगल कर्ता थाओ ॥२॥ दोहा ॥ करवो समरण ध्यानसुं, प्रतिमा वंदन तास ॥ नाम जाप पूरण नमण, करीयं धरी नल्लास ॥ ३ ॥ अवर्णवाद आशातना, वर्जी नर सुविवेक ॥
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वीश
॥१४॥
| सदा भक्ति करवी जली, घरी मनमांदे टेक ॥ ४ ॥ अरिहंत पण जेहनें नमे, आठ करमकृतनास ॥ पनरभेद वे सिद्धना, कोसा समरे नहि तास ॥ ५ ॥
ढाल पहेली ॥ चोपानी देशी ॥
निरंजन चिदानंद स्वरूप, लोकाग्र पहोता जेह रूप || सिमांहेबे चार अनंत, वली जे सादि अनंत स्थितिवंत ॥ १ ॥ गुण एकवीश सिद्ध भगवान, परम इश पर आत्म प्रमान ॥ एक सिद्ध तिहां सिद्ध अनंत, बाधा मांहोमांहे न हुंत || || जनम मराना दुःख नही जिहां, केहनो जय न पराभव तिहां ॥ कलेश तणो पण नहीं लवलेश, सिद्ध रह्या जिहां करी निखेस ॥ ३ ॥ केलिथं जनी परें प्रसार, सुख संसार तणां किहां सार ॥ किदां लोकाय थका नतपन्न, सिद्ध तणो वैभव | सुख धन्य ॥ ४ ॥ सिद्धतला गुण तीन प्रतीत, तोपण आठ कह्या गुण प्रीत ॥ समकित नाएा दंसण दाखीयें, वीर्य सूक्ष्म अवगहा जाखीयें ॥ ५ ॥ अगुरुलघुनें अन्याबाध, सिद्धता गुण आठ अगाध ॥ पनरेनेदें थाये तेह, नाम कहुं तेहना गुणगेह ॥ ६ ॥ जिने अंजिननें ती गृहिलिंगी अन्यलिंग स्वतीर्थ ॥ पुंस्त्री क्लीब प्रत्येक स्व बुद्ध, वो "धित एक अनेक विशुद्ध ॥ ॥ ७ ॥ सिइनक्तिना जे रागीया, तीरथ पुंमरीक सोनागीया ॥ अष्टापद सम्मेत गिरिंद, श्रीगिरनारादिक गुणवृंद ॥ ८ ॥ सितणां एथानक कह्यां, तीरथ यात्रा कारक नमह्यां ॥ करे आतमा) नित्य निर्मलो, फटिक तणीपरें होइ नजला ॥ ए ॥ ऋपेन थया अष्टापद सिद्ध, चंपा वासुपूज्य गुणऋ६ ॥ पावा वेईमान अरिहंत, श्रीने मीसर गिरि उजंत ॥ १० ॥ ए टाली तीर्थंकर जेद, जाइ जरा मरण करे बेह ॥ श्री सम्मेत शिखर गदगदी, वीश तीर्थंकर सीधा सही ॥ ११ ॥ चैत्री पूनम दिन गुणनरथा, पंचकोमी मुनिशुं परिवरया || पुंडरीक संलेहा करी, शत्रुंजय पहु ॥
तीर्थ,
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॥१४॥
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शिवपुरी ॥ १२ ॥ ते कारण यात्रा तेहनी, परम पवित्री दुवे देहनी ॥ मुक्ति निलय बे एहनुं नाम, पाप जाये करतां परणाम ॥ १३ ॥ यात्रा सहस्र पुण्यजे होय, अन्यतीर्थ गयाथी जोय ॥ शत्रुंजयनी यात्रा एक, पुण्य तेटलो धरी विवेक ॥ १४ ॥ पगले पगले जाये ताप, नवकोमीनां कीधां पाप ॥ पुंमरीकनी यात्रा करे, विधिशुं जे मानव संचरे ॥ १५ ॥ कोमी वरस जे तीर्थ अन्यत्र, दान दया तप प्रमुख विचित्र ॥ प्राणी बांधे जे सत्कर्म, शत्रुंजय ते मुहूर्त्त सुधर्म ॥ १५ ॥ नमो सिद्धाएं जपीयें जाप, सिद्धपदवी आपे श्रव्याप ॥ कहे जिनहर्ष सिधनुं ध्यान, करे दोय सहस्र अनुमान ॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥ २२ ॥
दोहा ॥
मूकाये जव सहस्रथी, सिद्धनणी नमस्कार ॥ जावें जेद करे नवि, बोधिलान विस्तार ॥ १ ॥ हवे एह थानक करी, सिनक्ति प्रांत ॥ विधि पामी गुरु मुखथकी, सम्यग दृष्टि प्रशांत ॥ २ ॥ सिद्धस्थानकनें विषे, श्रीजिनबिंबस्वरूप ॥ मांगीनें अरचे स्तवे, हस्ती पाल जेम नूप ॥ ॥ ए यानक प्राराधतां तीर्थकृत्कर्म दुर्द्धन ॥ ते पामें त्रीजे जवे, अरिहंत रिद्धि सुलन ॥ ४ ॥ ढाल बीजी ॥ कपुर होये प्रति नजलो रे ए देशी ॥
इंजिनरत सुखेत्रमां रे, सांकेत पाटल नाम | प्रत्यक्ष सुरपुर सारिखुं रे, जाणे लखम । धाम रे ॥ १ ॥ नविय सेवो थानक एह || बीजा थानकनी कथा रे, सांजलजो घरी नेह रे न ए आंकली. राजकरे राजा तिहां रे, हस्तिपाल नरें || प्रभुता जेहनी प्रतिघणी रे, तेजें जाणे सुरेंद्र रें न २ ॥ सुजस दसे दिसे विस्तरयो रे, रविकर जेम जगमांहि ॥ न्यायें निज पाले प्रजा रे, अरि मूक्या अवगाहि रे ज० ॥ ३ ॥ चैत्र नामें मंत्री सरू रे, बुद्धि तो नंगार ॥ दान मानघर जेहनें
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रे, लोक तो आधार रे ॥ ज० ॥ ४ ॥ नूप आदेशें अन्यदा रे, जीम नरेसर पास ॥ आव्यो ते चंपापुरी रे, राजकाजें उल्लास रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ मंत्रीश्वर नगरी तणी रे, शोभा अतिशयवंत ॥ जोतो वासुपूज्य देहरे रे, आव्यो हर्षधरंत रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ जिनवरनी स्तवना करी रे, हृदयधरी आनंद ॥ पुष्य तणे प्रयोगं मख्या रे, श्रीधर्मघोष मुणिदं रे ॥ ज० ॥ ७ ॥ सुंदर सूरति जेहनी रे, रूपें जाणे अनंग || देखी हग सीतल दुवे रे, याये प्रफुल्लित अंग रे ॥ ज० ॥ ८ ॥ मूरति जाणे धर्मनी रे, हरषित थयो मंत्रीश ॥ विनय सहित प्रणमी करी रे, बेगे घरीय जगीश रे ॥ ज० ॥ जाएगी तेहनी योग्यता रे, ज्ञानतणो नृपयोग ॥ ते आगल दीये देशना रे, जहथी टले शोक रे ॥ ज० ॥ १० ॥ इणि संसार कंतारमें रे, जमतां जे थया श्रांत ॥ धर्म अमृतसर सारिखो रे, कर्म लाघवी लहंत रे ॥ ज० ॥ ११ ॥ जीवतणी पाले दया रे, परम धरम कह्यो तेम ॥ प्राणीनें निज प्राणथी रे, बीजो प्रिय नही जेम रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ एक राख्यो प्राणीनें जेरों रे, त्रिभुवन राख्यो तेण । एक हस्यो त्रिभुवन हयो रे, जंतु नहणवा केण रे ॥ ॥ १३ ॥ सूक्ष्म बादर एकेंडीनां रे, पंचिंड़ियना दोय ॥ संज्ञी असंज्ञी मेलीयें रे, द्वित्रि चनरिंदिय जोय रे ॥ ज० ॥ १४ पर्यापता अपर्यापता रे, करतां ए सदु श्राय ॥ चन्द्स थानक जीवनां रे, एह कह्यां जिनराय रे ॥ ज० ॥ १५ ॥ ए सहनी रक्षा करे रे, धरमीजे नर होय ॥ निज प्रातम पर आतमा रे, फेर न जाणे कोय रे ॥ ज० ॥ १६ ॥ परशासनेऽय्युक्तं ॥ यत्र जीवः शिवस्तत्र, न नेदः शिवजीवयोः ॥ न हिंस्यात्सर्वभूतानि, शिवनक्तिसमुत्सुकः ॥ १ ॥ परशासनने विषे कह्युं बे. अर्थ:-- ज्यांजीव बे त्यां शिव बे शिवने अनो जीवनो भेद नथी. तेमाटे शिवनी भक्ति कर वामां नत्सुक थएला माणसे सर्वप्रालियोनी हिंसा करवी नहि ॥ ढाल || जीवदयाथी आतमा रे,
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स्थान
॥१५॥
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निश्चयें निर्मल होय ॥ पाणीए अंग पखालतां रे, हिंसा मेल न धोय रे ॥ ० ॥ १७ ॥ संसारीश्री वेगला रे, सिद्ध तथा जे जीव || जन्मजरादिक क्लेशश्री रे, मूकाला ते अतीव रे ॥ ज० ॥ १८ ॥ अनंत ज्ञान दर्शन अबे रे, वीर्यानंद अनंत ॥ चिदानंद सहू समा रे, कर्मतणो की यो अंत रे ॥ ज० ॥ ११७ ॥ लोकायें जश्नें रह्या रे, परुवुं नहीं वली जास ॥ सिद्धक्षेत्र तेहनें कह्युं रे, सिद्धतणो जिहां वास रे ॥ ज० ॥ २० ॥ शोना जेहनी प्रतिघणी रे, सुख्ख अनंतानंत || जीनें कोइ न कही शके रे, इम जिनहर्ष कदंत रे ॥ ज० ॥ २१ ॥
दोहा ॥
सुरनर असुरादिक तणां, सुख सघलाये मेलि ॥ तेदयकी शिवसुख तणी, अनंतगुणी बे के लि ॥ १ ॥ जिलें अमृत रस चाखियो, बीजो रस न सोदाय || तेम शिवसुख जाएयां जिले, बीजां नावेदाय || २ || जहां एक सितमा, तिहां अनंता होय ॥ पण अमूर्त पणायकी, बाधा न लहे कोय ॥ ३ ॥ सिती अवगाहना, ऋणसयां तेीश ॥ धनुष त्रिनागें करी अधिक, कही नतकृष्टी | इश ॥ ४ ॥ नंगा हाथ त्रिनागथी, चार हाथ गणि लेह ॥ सितली अवगाहना, मध्यम जाखी एह ॥ ५ ॥ जधन्य सिद्ध अवगाहना, अष्टांगुल एक हाथ ।। कूर्मापुत्रादिक तणी, एम कही जगनाथ ॥ ॥ ६ ॥ सिध्यानथी जीवनां, जाये दुःकृत कोटि ॥ जेम अमृतना बिंदुश्री, जाये तीव्र विषचोटि ॥ प्रतिबिंबित निज श्रात्मशुं सिद्ध निहाले जेह ॥ त्रिजगपूज्य पद संपदा, ततक्षण पामे तेह ॥ ८ ॥ ढाल त्रीजी ॥ चतुर सनेही मेरे लाल || ए देशी ॥
इत्यादिक देखणा गुरु कीधी, श्रवणे अमृतनी परें पीधी ॥ मंत्री धर्मघोष गुरु वंदी, जाखे इम | मिथ्यात्व निकंदी || १ || सिक्ति सम श्रावक केरा, व्रत आपो जांगे जवफेरा ॥ धर्मले सदगु
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वीशण
स्थान
रुनी पासे, राज्यकाज करि वल्यो नलासें ॥२॥ गुरुनें बंदी निजपुर आयो, राय चरण प्रणमी सुख पायो । नृप नाखे अचरिज को दीगे, तिणि नगरी ते कहे मुज मीगे ॥३॥ मंत्री कहे सानल महाराजा, चंपा नृपना अधिक दीवाजा ॥ चंपानां मंदिर अतिसोहे, जाणे देव नुवन। मनमोहे ॥४॥जोतां लोयण तृपति न पामे, दाता नोकता धा धामें ॥ श्रीवासुपूज्य जिनेश्वर
राजें, पुरमांहे प्रासाद बिराजें ॥ ५ ॥ जगत्र नणी आह्लाद नपावे, त्रिन्नुवन जेहनी पूज रचावे ॥ Ra त्रैलोक्यसुंदर नाम कहावे, अद्भुत शोना नयण सोहावे ॥६॥ जेहनी शोना इंश निहाली,
एडवो सोचे निज मन वाली॥मज विमान शोना नहीं एहवी.श्रीजिनग्रहनी शोनाजे Sal त्रैलोक्यनेत्रने कामणगारी, मणिनी प्रतिमा सुंदर सारी ॥ जेहनी नपमा कही न जावे, नूषित salदिव्यानरण सुहावे ॥ ७ ॥ में जिनवरनी प्रतिमा देखी, सफल कियां निज नयण विशेषी ॥
पुण्योदयश्री दरिसण पाम्यो, नावनगतिरों में शिर नाम्यो ॥ तिहां श्रीधर्मघोष मुनिराया, तास समीपें दरिसण पाया ॥ पयप्रणमी वेगे गुरु आगें, हियो धर्मतणी मति जागे ॥१०॥ श्रीगुरु सिद्धस्वरूप वखाएयो, में पण गुरु सुपसायें जाएयो॥ मंत्री नृपनें कहो न दे, जिम | निर्मल रीतामां हे ॥ ११ ॥ प्रतिबिंबी साहातपणेथी, राये दीगे हरष घणेथी॥ राजा मनमें एम विचारे, ते गुरु कहीयें इहां पधारे ॥१२॥राय मनोरथ सफला करवा, तम हरवा ॥ धर्मघोष बहु साधु संघाते, समवसरया वनमांहे प्रनातें ॥१३॥ राजा गुरुर्नु आगम जाणी, गती तुरत हरये नराणी ॥ मंत्री साधे नूपति आया, विधिशुं वंदी मुनिवर पाया॥१॥सिम स्वरूप सहित गुरु नासे, करुणामय जिनधर्म प्रकाशे ॥ धर्मतणा ले दोय प्रकारा, साधु श्रावकन करो विचारा ॥१५॥ समकित सहित धर्मजिन नाख्यो, मुक्तितणो दायक ते दाख्यो । राजा
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६॥
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तह धर्म प्रादरियो, वांदी पूरे नृप हित नरीयो॥१६॥ सितणी केम नक्ति करीजें, श्रीगुरु तुमथी नेद लहीजें ॥ सिद्धसिङ्नां नयण न दीसे, पयजिनदर्ष नमुं केम शीसें ॥१७॥
दोहा॥ नयणे दीसे तेहनी, सेवा कीधी जाय ॥ चरणे नमीये तेहने, पूजीज तसु पाय॥१॥ रूप रेख Silकाया नहीं, अगम अगोचर सिद्ध ॥ सेवा पूजा तेहनी, शीपरें जाये कि ॥२॥ गुरु नांखे सुण
राजवी, आत्म निरंजन एह ॥ सिद्धस्वरूपसुं मिश्र करि, निःकषाय जितदेह ॥ ३ ॥ जे ध्यावे| शुझातमा, तेहशुं मन लयलीन ॥ सिद्धस्थानकने विषे, रह्या जेह स्वाधीन ॥ ॥ नमस्करि नावें
करी, पूजा धिा प्रकार ॥ सिइनक्ति तेहने हुवे, घातिकर्म कयकार ॥५॥ त्रिजगनाथ पद संपदा, salअनुक्रमें पामे तेह ॥ सुख अनंतां ते लहे, जेह तणो नहि बेह ॥६॥
ढाल चोथी ॥ वैरागी थयो । ए देशी ॥ al एहवू सान्नली नूपतीरे, धरी मनमें सुविचार ॥ सिइनक्ति पद गुरुकन्हे रे; कीधो अंगीकार रे ॥ १ ॥ धन्यधन्य ते नरा, आराधे जिनधर्मो रे ॥ धर्मे सुख मले, नांजे नवन्नय नर्मो रे ॥ धन्य० ॥ २ ॥ राजा आव्यो निजघरे रे, प्रणमी मुनिना पाय ॥ सिध्यान बहुमानशुं रे, करे।
सथिर चित्त लायो रे ॥ध ॥३॥ स्थान पवित्रजे सिद्धनां रे. समेतशिखर परमुख ॥ यात्रा Salकरे शुरुआतमा रे. टालवा नव दुख्खो रे ॥ध ॥४॥ पूजे जेहनें जग सहू रे, शत्रुजय सिद्ध
खेत ॥ मंत्रीशुं नृप आवीयो रे, यात्रा धरी बहुहेतो रे ॥ ध० ॥ ५ ॥ नमोसिशणं पद जपें रे, राय सदा तेणे गम ॥ संन्नारि सहु सिस्ने रे, क्रूर करम कय कामो रे ॥ध ॥ ६ ॥ सिद्धन्नक्ति । करता थका रे, धरतां निर्मल ध्यान ॥ करम तीर्थकर बांधियु रे, शिवसुख केरुं निधानो रे ॥ध ॥
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वीशण Sailu ॥ इंम पाली व्रत नजला रे, राज्य पाली चिरकाल ॥ चैत्रमंत्रीयुत गुरुकन्हे रे, चारित्र प्रद्यु
स्थान मनपालो रे ध॥७॥ समिति गपति सूधी करे रे, टाले पंचप्रमाद ॥ साध धरम पाले नलो रे, ॥१७॥ न करे रसना स्वादोरे ॥ध ॥ ए ॥ समता सागर गुण नरया रे, ममता नही लवलेश ॥ तप
किरिया पुष्कर करे रे, टाले कर्म कलेसो रे ॥ध ॥ १०॥ महानुन्नाव मोटा यती रे, रति न sa salलागे रे पाप ॥ पाप नतारे मूलगां रे, करे निरंजन जापो रे॥ध ॥११॥राजऋषीश्वर शुद्धधीरे
नणीया अंग इग्यार ॥ सिझमूर्ति नमवा लगीरे,समेतशिखर तेणीवारो रे॥ध०॥१२॥ चाल्या ले SElगुरु आगन्यारे, भक्त तणो करी त्याग।इंसनामांस्तुति करी रे, धन्यधन्य मुनि महाभागोरे॥ध०१३ sal समेतशिखर नेट्याविना रे, न लीये जे आहार ॥ तेह वचन नवि सद्दह्यो रे, स्वर्गी अग्निकुमारो Raरे ॥ घ० ॥ १४ ॥ कीधा तेणे देवता रे, नपसर्ग अनेक प्रकार ॥ समतावंत मुनीने रे, अति ।
आकरा अपारो रे ॥ध ॥ १५ ॥ कुधा पिपासानी व्यथा रे, कीधी अधिकी रे तेण ॥ सामान्य salजन न सहीशके रे, प्राण न बूटे जेणरे ॥ध ॥ १६ ॥ बेमासी तपस्या श्रई रे, हुन हीण
शरीर ॥ सुरकृत सहु व्यथा खमी रे, न चख्या साहस धीरो रे ॥ध ॥१७॥ सिनक्ति मूकी। Halनहीं रे, न कीयो तेहशुं रोस । समता मांहे मुनि रह्या रे, नरिया गुणमणिकोसो रे॥ धरा INEllप्रगट यो सर ततकणे रे.धरी चित्त प्रीति विशिष्ठ ॥ तुरत व्यथा तनु संहरीरे, कीधी रत्ननीINE
वृष्टि रे ॥ध ॥ १५ ॥ नाकी मुनिपायें पमी रे, पहोतो निज आवास ॥ सिह मूर्ति वंदी करी रे, पारण कीधो बे मासो रे ॥ ध ॥ २० ॥ राज ऋषि आराधियो रे, संयम निरतिचार ॥ अंतसमय ॥ अणसण करी रे, अच्युत सुरथयो सारो रे ॥ ध ॥ १ ॥ तिहांधी चवी विदेहमां रे, तीर्थकरनी ऋद्धि ॥ जगदानंदी पामशेरे, सिद्धं थाशें सिद्धो रे॥ध ॥ २२॥ मंत्रीपण सुर तिहां थई रे,
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चवी विदेह मोकार || गणधर थाशेजिनतणो रे, पहिलो धर्म आधारो रे ॥ ध० ॥ २३ ॥ हस्तिपाल राजा तणुं रे, चरित्र पवित्र सुखकार । सांजली हृदय घरी करी रे, प्राणी नाव अपारो रे ॥ध॥२४॥ सिद्ध जक्ति थानक सदा रे, बीजो ए दितवंत ॥ आराधो जले जावशुं रे, ईम जिनदर्ष कहंतो | || ध० ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ।। १०२ ।। इति श्री विंशतिस्थाने द्वितीयस्थानकं समाप्तम् ॥ श्री तृतीय प्रवचनपद स्थानक प्रारंभः ॥
॥ दोहा ॥
कपटोमी सुविवेकियें, करवी प्रवचन नक्ति ॥ चार भेद प्रवचन तणा, श्रमण संघ निजशक्ति ॥ १ ॥ पूजनीक जिन त्रिजगें, जिनमें ते पूजनीक || भक्ति तेहनी कीजीयें, जावघरी तहकीक ॥२॥ तीर्थकृत्कर्म नपार्जवा, मूल बीज वे एह ॥ श्रीप्रवचननी जक्तिथी, तीर्थंकर थया जेह ॥ ३ ॥ इा प्रवचन पूजे थके, नथी न पुज्युं जेह ॥ संघकी अनेर, पूजा योग्य न तेह ॥ ४ ॥ यनाव बे नेदश्री, तेहनी नक्ति विचार || प्रथम भक्ति जेम कीजीयें, सुराजो ते अधिकार ॥
ढाल पहेली ॥ जनी हेजो रे दीशे नाहलो रे एदेशी ॥
अंतःकरण निर्मल प्रतिउजलां रे, निरवद्य जसुव्यापार || त्रिकरण शुछें जेह पाले सदा रे, चारित्र निरतीचार ॥ १ ॥ प्रवचन केरी रे भक्ति करो घणी रे, पामो जिम शिवराज || संघ चतुर्विध नांख्यो शास्त्रमां रे, जिन सरिखो जिन राज ॥ प्रव० ॥ २ ॥ आचरणा पण जेहनी नजली रे, कपट रहित शुधचित्त || दशविध धर्मतणी धारे धुरारे, परिग्रह ग्रंथ रहित ॥ प्र० ॥ ३ ॥ सहित सत्तावीशे सुगुणेंकरीरे, समताना अंकार, समिति गुपति शुद्धि नीति साचवेरे, अप्रतिबंध विहार ॥ प्र० ॥ ४ ॥ त्री जे प्रहरे रे जाये गोचरी रे, टाले दोष बियाल | पांच मंगलनां दोष टाली करी रे,
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वीश०
॥१॥
*त्रत्रमा
जोजन करे सुकुमाल ॥ प्र॥ ५ ॥ कालें कालें रे जे किरिया करे रे, बोमी अंग प्रमाद || सुविहित साधु ती सामाचारीरे, पाले न करे विवाद ॥ प्र० ॥ ६ ॥ साधु साधवी एहवा ते जणी रे, कल्पकालोचित जाण ॥ न्यायागत अशनादि वशभली रे, वस्त्र पात्र परिमाण ॥ प्र० ॥ ७ ॥ इत्यादिक आपे बहु जावशुं रे, धर्मतणो प्रवद्वं ॥ श्री जिनशासन तणी प्रभावनारे, करे तजी मनदंन ॥ प्र० ॥ ॥ श्रीजिनगृह जिन प्रतिमा कारवेरे, बिंब प्रतिष्ठारे सार । तीर्थतली यात्रा विधिशुं करे रे, खरचे व्य | अपार ॥ प्रा||आचार्यादिक पदनुत्सव करेरे, करे पुण्यनां रे काज ॥ न्यायोपार्जित निज संपति करी रे, वली श्रावक शिरताज ॥ प्रण१णागुण एकवीशे रे करी विराजतारे, पाले जे व्रत वार ॥ सामायिक पोसह विधिशुं करी रे, पक्किमणुं दोयवार ॥ प्र० ॥ ११ ॥ नियम संज्ञारे रे चन्द चतुरपणेरे, जीवादिकना रे जाण ॥ जाणे अर्थ सहु आगम तणारे, पाले जिनवर प्रा ॥ प्र०॥१२॥ानक्तिकरे एहवा श्रावकतणी रे, ||देइने बहुमान ॥ जोजन पेरे मीगं जावतांरे, आपे वस्त्र प्रधान ॥ प्र० ॥ १३ ॥ चंदन कुसुमादिक पूजा करेरे, आपे सरस तंबोल || साहमीवत्सल बहुजांते करेरे, राखे एम रंगरोल ॥ प्र० ॥ १४ ॥ सीदाता देखी साहमी जणी रे, करे सहाय नृपगार सादमी सगपण धर्मविना नहीरे, जाणे | श्म निरधार ॥ प्र० ॥ १५ ॥ धर्मथकी मगताने थिरकरिरे, थापे धर्मनी राह ॥ विनयकरे धर्मों गुएावंतनोरे, वलीथाये गुण ग्राह ॥ प्र० ॥ १६ ॥ अनुमोदे नत्तमना गुणनलीरे, करे वैयावच तास ॥ | साहमीनां मनरंजे जगतिशुं रे, करे जिनहर्ष प्रकाश ॥ प्र० ॥ १७ ॥
॥ दोहा
जाप जपे शुद्ध भावभुं नमः श्रीप्रवचनाय ॥ ईणी पदस्थ ध्यानें करी, आतम निर्मल श्राय ॥ १ ॥ तन्मय आत्मा थइकरी, घ्यावे निरंतर जेह ॥ ते सुरंगति सुख अनुभवी, अनुक्रमें मुगति लहेह ॥ २ ॥
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अरिहंत दर्शन सारिर्खु, प्रवचन संघस्वरूप ॥ पंमितनर जाणे इशुं, आणी बुद्धि अनूप ॥ ३ ॥ तत्र बृद्ध शिशु ग्लाननी, शिष्य तपस्वी साध ॥ कटप्यवस्तुशुं अनुदिनें, करे सुनक्ति अगाध ॥ ४ ॥ साधु करे अथवा गृही, तीर्थकर श्रिकाम ॥ ते त्रीजेनव जोगवी, लहे अजरामर गम ॥ ५ ॥ ढाल बीजी ॥ ढाल नींबश्यानी देशी ॥
खेत्र रतमां प्रति दीपतूं, पुर वसंतपुर नामोजी ॥ वसंत तणीपरें शोना जेहनी, जेम शोहे प्रारामोजी ॥ खे० ॥ १ ॥ अरियण साधी रे वशें किया जेणे, तेज प्रताप दिलंदोजी ॥ जय टाले पाले निज प्रज जली, अवनिपति अरविंदोजी ॥ खेत्र || २ || एक दिवसे तगेपुर व्यवहारियो, नाम तास जिनदासोजी ॥ समकित धारी रे जे पूतात्मा, लखमी तणो निवासाजी ॥ खे० ॥ ३ ॥ राजा माने रे जेहने प्रतिघणो, धर्मीमां सिरदारोजी ॥ दीन दुखीनं रे जे उपगारियो, पुरमा जस विस्तारोजी ॥ खे० ॥ ४ ॥ जिनदासी जिनदासी तसु प्रिया, गुणपण तेहवा नासेजी || शीलवती गुणवंती कामिनी, विलसे विषय विलासोजी ॥ खे० ॥ ५ ॥ परमविवेकी रे चित्तविनयी नयी, सुत तेहनो जिनदत्तोजी ॥ अद्भुत सुरति रे रूप सोहामणो, यौवन वय मय मत्तोजी ॥ खे० ॥ ६ ॥ चंशतप विद्याधर अधिपशुं, मित्राइ थइ तासोजी || विद्या ते दीधी बहु रूपिणी, रहे हो निसि पासोजी || खे० ॥ ७॥ किाइक अवसर मित्र बहु मली, गया नद्यानें तेहोजी नाटक तिहां कराव्युं रंगशुं, जोवे परम सनेहोजी ॥ खे ॥ ८ ॥ एकनर तिहां प्रवीने ननो, चित्रपट हाथे लेइजी ॥ जिनदत्तेदी गे चित्राम ते वचन कहे हित देश्जी ॥ खे० ॥ एए ॥ चित्रदेखी मुज हयरुं नलसे, सीतल नया वरंतोजी ॥ चंचल मनमें व्यापे मोहनी, सांजल तुं गुणवंतोजी खे० ॥ १० ॥ रूप अनोपम ए कहे केहनुं, फूलित यौवन जासोजी ॥ नरी सुरी हि कुमरी
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वीश
॥१॥
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किन्नरी, मुजनें तेह प्रकाशोजी ॥ खे० ॥ ११ ॥ ते नर जाखे चंपा नगरीयें, धनावह सारथ वाहोंजी || | धनद सरिखो रे धन संपतिकरी, दिन दिन अधिक ना होजी ॥ खे० ॥ १२ ॥ पुण्यतया कर्त्तव्य सदा करे, दोइ वस्तु गृह सारोजी ॥ अतिसुंदर निर्मल एकांवली, मोतीनो हारोजी ॥ खे० ॥ १३ ॥ बीजी नाग्य सौभाग्यवती सती, रूप गुणे अभिरामोजी ॥ कन्या हारमना कुलमंडिणी, निरुपमतेनुं नामोजी ॥ खे ॥१४॥ राकापतिवदनी मृगलोयणी, रतिसरसती अवतारोजी ॥ गजगति मल पति चाले चमकती, गुणनो नावे पारोजी ॥ खे० ॥ १५ ॥ देवकन्या सारिखी कन्यका, यौवन सन्मुख थायोजी ॥ तीन जुवनमांहे शोधी न मीले, दीठी आवे दायोजी ॥ खे० ॥ १६ ॥ वर विज्ञान दीयो मुज देवता, देखी तेहनो रूपोजी ॥ में चित्र्युं बे ए चित्र पाटीयें, निजवृत्ति काजें |स्वरूपोजी ॥ खे० ॥ १७ ॥ तास वचन जिनदत्तें सांजल्युं, मोह्यो रूप निहालीजी ॥ कहे जिनदर्ष दोनयण खुंची रह्यां, मोहें शुभगति गालीजी ॥ खे० ॥ १८ ॥ सर्वगाथा. ॥ ४५ ॥
॥ दोहा ॥
निजकंदोरो मणिजड्यो, जिनदतें दीघो तास ॥ लीयुं चित्र ते पासथी, बांधी तेहशुं प्राश || १ || घर आवी बेठो हवे, मन लागुं ते साथ ॥ लीन थइ गयो यातमा, जिम लोभी मन थ॥ २ ॥ काम तज्यां व्यापारनां, चूक्यां घरनां काम ॥ खागा पीला खेलणा, मूकी बेगे ताम ॥ ३ ॥ बाप कहे रेदी करा लाख वित्त व्यय कीध ॥ जोला शुं जाएगी करी, एह चित्र तें लीध ॥ ४ ॥ कोण धूतारे तुज जली, देइ ए चित्राम ॥ केरु कंदोरो लइगयो, मूकाव्या सदुकाम ॥ ५ ॥ धन दोहितुं नृपावतां, तुं जागे नही पूत || एहवा सोदा जो करीश, तो पामीश घरसूत्र ॥ ६ ॥ फासू ए धन विश्वो, बाप कमायुं जेह ॥ पण दोहितुं वे मेलतां, तुं नवि जाणे तेह ॥ ७ ॥ विष सरिखुं लाग्यं वचन,
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चमक्यो चित्त निरीह ॥ तेजी न सहे ताजणो, पाखर नसहे सिंह ॥ ८ ॥ ॥ ढाल ॥ त्रीजी ॥ कंत तमाकु परिहरो ॥ए देशी ॥
सूत विलखो यो, सांजली कुवचन तेह मोरालाल || घरबोमी जानं परो, इणमां नही संदेह मो० ॥ शे० ॥ १ ॥ बापजणी धन वालहुँ, धन उपर दीयुं चित्त मो० ॥ प्रीति जिसी धनशुं धरे, तिसी न मुऊशुं प्रीति मो० ॥ शे० ॥ २ ॥ स्वारथ सदुनें वालहो, विणस्वारथ नही काम मो॥पुत्र कमावे तो जलुं, नही तो अखुटनाम मो|| शे० ॥ ३ ॥ नाह वाल्हो नारी जणी, जो लावे घाट घमावि मो० ॥ मायमी पण कहे पुत्र, जिम तिम करी घन ब्याव मो० ॥ शे० ॥ ४ ॥ यतः - मइके प्रागें धरे कबु आपके, त्यों त्यों कहे मेरो पुत कमान ॥ सैा संबंधी कै काम जो प्रावै तो दोस्त हमारो कहै भैया सान ॥ नारीकौ जो कबु घाट घमावै तो, नारी कहे मेरो नाह खटान || स्वास्थको सब नेह जसा विरा स्वारथ जाणिकै जै है वटान ॥ धन माने राजा प्रजा, धनशुं सहुने प्रीति मो० ॥ वांक किशो मुज बापनो, जगनी एहज रीति मो० ॥ ० ॥५॥ बापतणूं तो धन हवे, मुजने खावा नीम मो० ॥ घन परिघल लावुं नहि, घरे नावुं तां सीम मो० ॥६॥ एहवुं मनमांहे धरी, साहसीक बलवंत मो० ॥ आधी रातें एकलो, नीसर्यो बुद्धिवंत मो० ॥ शे ॥७॥ यतः - साहसीयां लबी हुवे, नहु कायर पुरसांह || काने कुंडल रयणमय, कल कज्जल नयलाह | ॥ढाल ॥ चालतो चंपा पुरीगयो, सार्थवाहने गेह मो० ॥ सुरतरु दीगे सुपनमें, देखी वाध्यो नेह मो० ॥ शेण ॥ ८ ॥ प्रीति घरी बहु चित्तमें, आदर दियो अपार । मो० ॥ आसन बेसण आपियां, नत्तमनो आचार मो० ॥ शे० ॥ ए ॥ यतः - सज्जन श्रव्या प्रादुला, आपे चार रतन्न || पाणी वाणी बेसणुं, आदरसेंती अन्न ॥ १ ॥ ढाल || सुगुएा गया परदेशमे, तिहांपण मुहधो मो० ॥ गुण देखी गुणवं
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स्थान
माचार मो॥ तास गुणे आका
वीण तने, आदर ये सङ कोय मो० ॥ शेण ॥१०॥ यतः-पान पदारथ सुगुणनर, वणतोल्यां वेचाय ॥
जिमजिम चंपे गूंयमी, त्यूं त्यूं मूल मोघेरां थाय ॥ ११ ॥ यतः॥ गुणाः सर्वत्र पूज्यंते, किमाटोपैः ॥३०॥ Salप्रयोजनं ॥ विक्रियते न घंटानि वैः कीरविवर्जिताः॥१॥ अर्थः-सर्वस्थले गुणोज पूजायचे
आबरोधी शुप्रयोजन डे ? दुधवगरजी गायो घंटाओ (टोकरीयोवमे) वेंचाती नयी० ॥१॥
ढाल ॥ रहे सदा सुखशुं तिहां, नाखे धर्म विशेष मो० ॥ कुटुंब सहु धरमी कीयो, देश धर्मोपदेश Salमो ॥ शेण ॥ १२ ॥ सहुन्नणी वाल्दो थयो, सहुने आव्यो दाय मोग् ॥ एकसोनुं ने शापुरुष, जिहां तिहां गया पूजाय मो० ॥ शेण ॥१२॥ ढांक्या गुण नत्तम तणा, तोही परगट होय मो० ॥ कस्तुरी शो वींटणे, बांधी महके तोय मो॥शेण ॥ १३ ॥ शेठ धनावह जाणीयो, नत्तमकुल
॥ तास गणें आकर्षियो. हृदयानंद अपार मो० ॥ १४ ॥ सारथवाह मन चिंतवे. Salशी पूरीजें वात मो० ॥ नत्तमकुलनो ए अने, जीन जणावे जात मो॥शेण ॥१५॥ हारप्रन्नाSilकन्यानणी, परणावी धरी प्रीत मोगा नबव करि जिनदत्तने, सारथवाह सुरीत मो॥ शे॥१६॥
नानायौतक दानशू, संतोष्यो जामात मो॥ वाघा घरेणां नवनवां, ताजां दीधां तात मो ॥ शेण Hal१७॥ सुखिया नर जिहां तिहां सुखी, पुण्य तणे सुपसाय मो पुण्य विहूणा प्राणिया, जिहां तिहां दुःखिया श्राय ॥ मो॥शे॥१७॥ यतः॥ सर्वत्र वायसाः कृष्णा, सर्वत्र हरिताः शुकाः॥ सर्वत्र दुःखिनां दुःखं, सर्वत्र सुखिनां सुखं ॥ १५ ॥ अर्थः-सुखियाओने सर्व ठेकाणे सुख मले में दुःखिया ज्या जाय त्यां तेमने दुःखज होय . कागमा सर्वजगोए काला अने पोपट सर्व ठेकाणे नीलाज होय . ढाल ॥ केटलाएक दिन तिहां रह्यो, आग्रहशुं जिनदत्त मो० ॥ चाल्यो हवे
१ वरकन्याने पहेरामणी दायज विगेरे करियावर
॥
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सहुशुं मली, घणुं दीयुं वली वित्त || मो० ॥ शे० ॥ २० ॥ शेठ वलावी दीकरी, वाब्ही रूमी रीत | मो० ॥ रथ सेजवाली पालखी, देइ राखी प्रीत मो० ॥ शे० ॥ २१ ॥ श्राप्यो हार एकावली, मुक्ताफलनो अमोल मो० ॥ एकहार रत्नावली, जेहनें नही कोइ तोल मो० ॥ शे० ॥ २२ ॥ चल्यो वसंतपुरवर जणी, साधे लेइ निजनार मो० ॥ चाकर नफर साथे घणा, ऋद्धि तणो विस्तार मो शे० ॥ २३ ॥ प्रतिमाधर एक निरखीयो, विद्याधर मुनिराय मो० ॥ कहे जिनहर्षशुं कामिनी, लागा मुनिने पाय मो० ॥ शे० ॥ २४ ॥ सर्वगाथा ॥ ७५ ॥
॥ दोहा ॥
प्रतिमा मूकीकरी, धर्मलाज तसु दीध ॥ आगल वेगे विनयशुं, विधिशुं वंदा कीध ॥१॥ धर्म देखना मुनिपति, आपे पात्र निहाल ॥ नरनारी एकाग्रचित्त, वाणी सुणे रसाल ॥ २ ॥ गुरु वाणी जे सांजले, तन मन जीव लगाय ॥ बहु गुण पामे आतमा, जवजवनां दुःखजाय ॥ ३ ॥ दीपक सरिखां गुरुवयण, हीयमे न वसीयां जाह ॥ वतां चर्म निज लोयणे, जग अंधारो ताह ॥४॥ प्राणी गुरुवारी सुली, आणी जाव अपार ॥ घाणी केरा बेल ज्युं, न करे ते संसार ॥ ५ ॥ ढाल चोथी ॥ बिंदलीनी देशी ॥
वेगे जिनदत्त व्यवहारी, बेटी हारमना नारीहो ॥ सद्गुरु धर्म कहे ॥ धर्म कहे हित प्राणी, मीठी अमृत समा वाणी हो | स० ॥ १ ॥ धर्मश्री धर्म लहीजें, वली धर्मश्री धन पामीजें हो ॥ स० ॥ धर्मश्री सुरसुख सोहिलां, सुख मुगतितणां नही दोहिलांहो । स० ॥ २ ॥ धर्म दया एकनेर्द, ज्ञानक्रिया द्विधा नमेदेंहो ॥ स० ॥ ज्ञान दर्शन चारित्र, त्रण दें धर्मपवित्र हो । स० ॥ ||| ३ || दानादिक चारे गेंदें, व्रत पांच करम नछेदेहो ॥ स० ॥ षमावश्यक पालो, नय सात जाणी
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वीश अजवालो हो । स॥४॥ आठे प्रवचन माता, नव तत्त्व जाणो गुणज्ञाता हो ॥ स ॥ दशविध
धर्मयतिनो, एहशुं मन राखो लीनो हो।सायालदमी कल्पलतार्नु, एतो कुसुम करी मानो हो ॥३१॥ killnसादान सुफलथी थाय, पुण्यबीज थकी दुःख जाय हो॥सण॥६॥नत्तमकुल नं।रो
संपति नोगी हो॥सणाजस आयुर्बल जामे, वांका अरि पाये नामे हो।सणा॥विद्या वचन विलासा,
धर्मे पूराये आसा हो॥साकांतार समुश्मां तारे,आपदथी पार नतारे हो।सणाजादुःकृत नवनवनां l salकापे,सुरन्नुवन तणां सुख आपे हो।सणावली मुगति तणां सुख साधो,जेमनरहे नवथी बाधो हो।
सal Salutणाम सांजली मुनिनी वाणी, वाणी हियमामें आणीहो सणानावें प्रणमें करजोमी, पूरे मुनिने
अंग मोमीहो॥स ॥१०॥ नगवन् किणे धर्म प्रणीत, ए धर्म परम मित्र प्रीतहो साऋषी नाषे salनत्तम प्राणी, ए धर्मनी वात बखाणी हो॥ स ॥११॥ जेम थया केवलज्ञानी, अरिहंत परम सुख-IN
दानी हो स० ॥ तेरो ए धर्म प्रकाश्यो, सह सुखनं कारण नास्यो हो ॥ स ॥१२॥शेठ कहे प्रन्न । Salकरीयें, शे पुण्ये ते पद लहिये हो स॥ तीर्थकर पद पामे, नर तुं सांनल हितकामे हो स॥ Malm१३॥ अरिहंतादिकनी नक्, वीशथानक निजनिज सक्तैहो स॥ तेमांहे अधिकुं जाण्यु, त्रीजुं
पद संघ वखाण्यु हो ॥ स ॥१५॥ सुविवेकी निजहिते ग्राही, संघ नक्ति करे नतमाही हो स०
निश्वदम करी मनसूधो, आराधे नाव विसूधो हो ॥ स॥१५॥ यतः ॥ गुणानामिह सर्वेषां, रत्नाKalनामिव रोहणः॥ श्रीमान् श्रमणसंघो, यमाधारः परमोन्नुवि ॥१॥ अर्थः-जेम आ पृथ्वीनेविषे
सघला रत्नोना आधारस्थानरूप रोहणगिरि.तेम सघला गणोनो परम आधार रूप प्रा श्रीमान्
श्रमण संघ.॥१॥ ढाल ॥ निर्मल केवलझानी, अरिहंत परमपद दानीहो सण ॥ नमस्तीर्याय Ilकहंता, करे नमस्कार गुणवंता हो ॥स॥१६॥ सर्वपुण्य एकपासे, एकदिसि संघन्नक्ति नल्लासे हो ।
॥१॥
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| स० ॥ एकदिसि सदु तीरथ आलो, एकदिशि पुंकर गिरि जाणो हो स० ॥ १७ ॥ शेठ विशाख इलनामी, कीधी संघनक्ति मामी हो स० ॥ तिरान्नव देवें दीधो, चिंतामणि रत्न प्रसिद्धो हो स० ॥ ॥ १८ ॥ निर्मल निज श्रातम श्राय, संघ गौरव करे सदाय हो स० ॥ सम्यक्त्व करे शुद्ध धोइ, अरिइंत तपद होइ हो स० ॥ १७ ॥ वली पूर्वजवें गुणवासी, जिनपवयण भक्ति नलासी दो स० ॥ जिनहर्ष जिणंद पाम्यो, यथा संभव सहु शिर नाम्यो हो स० ॥ २० ॥
॥ दोहा ॥
जिनदत्त एवं सांजली, थयो विशेषे नाव ॥ त्रीजूं थानक आदरयुं, गुरुपासे लहि दाव ॥ १ ॥ त्यारपठी बहु नक्तिशुं, ते मुनिवरने श्रेष्टि ॥ शुद्ध कराव्यं पारणुं, जावनगति शुनदृष्टि || २ || निजघरे आव्यो अनुक्रमें, लेइ काफी रिद्धि ॥ सज्जन सह आनंदिया, देखी तास समृद्धि ॥ ३ ॥ संघनक्ति नित साचवे, पोषे उत्तम पात्र ॥ तपस्वी ज्ञानि बालादिनी, सेवा करे सुपात्र ॥ ४ ॥ कल्पे मुनिने तेहवं, वस्त्र पात्र आहार ॥ वहोरावे शुद्ध एषणी, औषध वस्ति विचार ॥ ५ ॥
ढाल पांचमी || होमतवाले साजनां ॥ एदेशी ॥
इनिज शकतें साचवे, संघनक्ति सकल सुख करणी रे | नरक कपाटनी आगली, वली मुक्ति | महेल नीसरणी रे ॥ इम० ॥ १ ॥ श्री जिनवर प्रणमी करी, वंदे मुनिवर आचारी रे ॥ सुणे सढ़गुरु देशना, शुं कहे देखणा मकारी रे ॥ इम ॥ २ ॥ तीर्थंकरनी संघनी, सूरिनी ऋषि तपकारी रे। नक्ति करचे बहुमान्यता, याये दर्शन शुद्ध विचारी रे ॥ २० ॥ ३ ॥ पोषे मूर्ख कुटुंब, जे दुर्गतिमां पहुचावे रे ॥ धर्मी पोषे संघनें, दुर्गति दुःख दूरे नसावे रे ॥ इम० ॥ ४ ॥ घृतमिश्रित जोजन करी, अज्ञानी ते देह वधारे रे | पंमितते प्रवचन जणी, सुरसुख शिवसुख विस्तारे रे ॥ इम० ॥ ५ ॥
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श
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आपे सुधन कुपात्रने, जेम कुपथ्य रोगी नें परानवे रे ॥ मुखें इसि लागे पढे, परिणामे दरदी हुवे रे || इम० ॥ ६ ॥ जिसे भ्रमण संघनुं नलुं, वात्सल्य अनघ प्रदरियुं रे ॥ जनम सफल कीधो जेणें, संपदशुं निजघर जरीयुं रे || इम ॥ ७ ॥ पात्र दान फल सांजल्युं, श्रीगुरुपासें जिन| दत्ते रे || भक्ति करे प्रवचन तणी, निजवित्त वावे शुभचितें रे ॥ इम० ॥ ८ ॥ हार हतो रत्नावली, त प्रानृत नृपनें कीधो रे ॥ राजा रलीयायत थर, पद श्रेष्टि तणो तस दीधो रे । म० ॥ ॥ दानें नूत वशैं हुवे, दानें माने सहुकोय रे ।। दानें अरियल उपशमे, दानें राजा वश होय रे ॥३म ||१णा पुरमां देइ नद्घोषणा, जिनदत्तने तेमावे रे ॥ सम्यकदृष्टि संघनी, मनरंगें भक्ति करावे रे || इम० ॥ | ॥ ११ ॥ आशा पूरीयें तेहनी, मागे ते तेहनें आपे रे । नाकारो न करे कदी, दुःखियानां सहु दुःख कापे रे ॥ इ ॥ १२ ॥ मान श्रयुं पुरमां घणुं, पृथिवीपतिनें सुपसायें रे || लक्ष्मी निजकुल नाग्यश्री, कहो केहनें मान न थायें रे ॥ इम० ॥ १३ ॥ दानकी जस विस्तर्यो, सहुजाणे देश| विदेशें रे || रागी श्री जिनधर्मनो, संघभक्ति करे सुविशेषे रे इम० ॥ १४ ॥ शुद्ध व्यवहारें श्री वधे, | विधिशुं ते दान समापे रे || पाले अरिहंत आगना, परुतानें धर्मे थापे रे ॥ ० ॥ १५ ॥ देव सज्जामां एकदा, कीधी सुरनाथ प्रशंसा रे || अहो अहो धन्याग्रणी, जिनदत्त श्रेष्ठि अवतंसो रे ॥
० ॥ १६ ॥ जक्ति करे श्रीसंघनी, निजशक्ति तणे अनुसारें रे । नहि अहंकारी कदाग्रही, तेहनी जइयें बलिहारी रे ॥ इम० ॥ १७ ॥ श्वचन न सही शक्यो, रत्नशेखर सुर सुविचारी रे ॥ कपट रूप श्रावक थइ, श्राव्यो मंदिर तेशिवारी रे ॥ इम० ॥ १८ ॥ जयला करतो चालतो, श्रावकें श्रावकनें दीगे रे ॥ जिनदत्त सादामो आवियो, देखी दृग श्रमीय पश्ठो रे ॥ इम० ॥ १७ ॥ वांदीनें पूबे इश्युं, महानाग्य आव्या शेकाजें रे ॥ पवित्र कयुँ, मुज प्रांगणुं, तुम दरिसण पामीयें पुण्ये रे| म
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स्थान०
॥२२॥
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॥३०॥नले पधारया साहमी, मुजने तुमे पावन कीधो रे ॥ पुण्योदय कामो यो माहरे, तुमे आवी दरिसण दीधो रे ॥श्म ॥१॥ तेह कहे में सोनल्यो, तुं संघन्नक्तिनो रागी रे ॥ सम्यग्दृष्टि अणुव्रती, तुज जोवाने मति जागी रे॥श्मण ॥ २२॥ मातपिता प्रेरयो घणो, दुःखवात se तणो अपहारु रे ॥ हार एकावली याचवा, हुं आव्यो बुं ते सारं रे ॥श्म ॥ २३ ॥ तुं दानी शिरसेहरो, तुं सायर करुणा केरो रे ॥ वारंवार कहे श्शुं, जिनहर्ष सफलकर फेरो रे ॥श्मणाश्मा
॥दोहा॥ | तुंतो नत्तम शापुरुष, नकरे पथ्थगनंग ॥ पथ्यणनंग करे जिको, तेह पशु विणशृंग ॥१॥ दाता ना न कहे कदी, आपंतां नबरंग ॥ शांतिजिणेसर आपीयुं, नपगारी निजअंग ॥ ॥ हुं आव्यो आशा करी, पूरो माहारी आश ॥ तुमनें शुं कहीये घj, जूवो हीये विमास ॥३॥ मागणथी। मरणुं नलु, पण मागण म दीन ॥ पण प्रेरयो नारीतणो माणु श्र धीठ ॥४॥ नारी कहे जी
नही, विण एकावलि हार ॥ के पहेलं एकावली, के प्राण करूं परिहार ॥ ५॥ स्नेह तेह नपरNE Silघणो, नारी प्यारी मुज ॥ ताहरे घरते सनिब्यो, मागणाव्यो तुज ॥६॥
॥ ढाल ही धनधन संप्रति साचो राजा ।। अदेशी ॥ सांनली वचन सकरुणां तेहनां, कहे ताम जिनदत्त रे ॥ हारतणो श्यो आश्रय स्वामी, ए सहु तुम वित्त रे ॥ सां ॥१॥ कामधेनु सुरकुंन सरीखो, तेहनें आप्यो हार रे ॥ जूवो गौरव निजसाह साहमीनो, करतां न कीयो विचार रे ॥ सां॥२॥ नाकी तास औदार्य देखीने, मनमां विस्मित थाय रे ॥ए अधिको साहामीनो नतो, ३६ प्रशंस्यो न्याय रे॥ सां ॥३॥ ए एकावलि हार अमूलिक, ते किम दीधो जाय रे ॥ जाण पीगण नही मुज साथे, राखी ब्रांति न कायरे॥ सांग
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वीश
॥२३॥
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॥ ४ ॥ धनधन ए मोटो जगमांहे, ए सरिखो नही कोई रे । ए दाता गुणज्ञाता साचो, खुशी थयो गुण जो रे || सां० ॥५॥ पुष्पवृष्टि कीधी शिर नपरे, देव थयो साक्षात् रे || शेठ ती स्तवना करी इणिपरें, धन्यपिता धन्य मात रे ॥ सां॥ ६ ॥ धन्य धन्य तुं सुकृति प्रतिपालक, जिनशासन प्रवतंस रे ॥ प्रवचननी तुं मक्ते रातो, तें नजवाल्यो वंश रे ॥सां० ॥ ७ ॥ श्रावकनामतली सदनक्तें, दीयो अपूरव हार रे || श्नणी तें कीधो साचो, धन्य धन्य तुज अवतार रे ॥ सां० ॥ ८ ॥ लक्ष्मीवंत घणा नर |दी से, तो गाढी संचेरे ॥ तुतो लखमीने वावरतो, किमही हाथ न खंचे रे ॥ सां० ॥ एए ॥ स्तवना इसी परे सुरवर करीनें, रत्नचिंतामणी देइ रे ॥ पाये लागी गयो सुरनुवनें, जइ सुरपतिने कहेश रे | सां० ॥ १० ॥ चिंतामणि पामी सहु संघना, मनना वांवित पूरे रे || इछाहार जिमावे जावे, सहुना दारिद्र्य चूरे रे ॥ सां० ॥ ११ ॥ जिनदत्तशेव करी जव सफलो, रत्नप्रन गुरु पासें रे ॥ पूर्वी पोतानी नवस्थिति इम, चननाणी मुनि जातेरे ॥ सां० ॥ १२ ॥ पहिले ग्रैवेयकें सुर श्राशे, पामीश ऋद्धिमहंतो रे || तिहांथी महाविदेह क्षेत्रमांहे, तुं श्राइश अरिहंतो रे । सां० ॥ १३ ॥ ऋद्धि जोगवी अरिहंत तणि तिहां, पहोचीश मुक्ति मोकाररे ॥ वचन सुणी श्रीगुरुनां एहवां, पाम्यो हर्ष अपार ॥ सां० ॥ १४ ॥ साते खेत्रें उत्तम लखमी, निजहायें शुं वावेरे ॥ शेव करी सफली पामीने, मन शुभभावना जावे रे || सां० ॥ १५ ॥ नारी बहुव्यवहारी साधें, गुरुपासे आदरियो रे ॥ संयम शुद्ध क्रियाशुं पाले, शास्त्रतलो थयो दरियो रे || सां॥ १६ ॥ नक्तिकरी प्रवचननी शकतें, तिहां पा अधिके जावेरे || शुद्ध प्राहार पानादिक प्राणी, आपे सहुने सुहावे रे || सां० ॥ १७ ॥ पदवी तीर्थंकरनी | समता, रसमांहे वश कीधी रे ॥ प्रथमग्रैवेयक पाम्यो मुनिवर, देवतणी रिद्धि सीधी रे ॥ सां॥१८॥
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॥२३॥
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तिहांथी चवी विदेह खेत्रमां, नामें जगदानंदी रे ॥ नावि तीर्थंकर हितवत्सल, त्रिभुवन जन आनंदी रे || सां० ॥ ११७ ॥ हारमना प्रनुगणधर थाशे, तेपण मुक्ति जाशे रे ॥ अक्षय अव्यय था नक लदेशे, लोकाग्रें जइ रहेशे रे || सां० ॥ २० ॥ एम तृतीयपद जक्ति तयुं फल, सांजली जिनदत्तकेरो रे । भक्ति करो प्रवचननी कहे जिन, हर्ष सुमतिनें प्रेरो रे ॥ सां० ॥ २१ ॥ इति श्रीहितीयस्थानानंतरं तृतीयस्थान समाप्तम् ॥
॥ अथ चतुर्थ आचार्य पदप्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
हवे यो स्थानक कहुं, मुक्ति सुसाधन नूत ॥ राजधानी सडु सुखतली, शुद्धधर्मनो दूत ॥ १ ॥ निरवद्य विद्यायें पवित्र, मंत्र सिद्धिनुं बीज ॥ गुरुनी भक्ति विवेकिये, करवी एहीज नीत ॥ २ ॥ जिनवरनी नक्तैकरी, पूर्वखपावे कर्म ॥ नमस्करे प्राचार्यनें, सिद्धिमंत्रादिक धर्म ॥ ३ ॥ द्विधानक्ति छ्यनावथी, तत्र विशुद्ध व्यखेत्र ॥ कालोचित अन्नपान वली, वस्त्रपात्र सुनिहेत ॥ जावसुं कंवलौषध प्रमुख, दान एह व्यक्ति || एपण पुण्योदय जली, थाये अधिकी शक्ति ॥ ५ ॥
ढाल पहेली ॥ क्रीमा करी घरे आवियो । एदेशी ॥
धन सारथवा दीयुं मुनिने दान विशुद्धो रे ॥ पाम्यो समकित निर्मलो, जेहवो सुरनिनो दूधो रे ॥ १ ॥ जक्ति करो श्रीगुरुतली, गुरुनक्तें मुक्ति लहीजें रे || आचारजनें अनुदिनें, सेवे ते जाए कहीजें रे ॥ ज० ॥ || जाव जगति विधिशुं सही, वारु वंदन बार श्रावर्तोरे ॥ देइ तीन प्रदक्षिणा, वारू पातक करे निवर्तो रे ॥ ज० ॥ ३ ॥ गुरुनें करे विश्रामणा, वारू नीर पखाले
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वीपायो रे ॥त्रयत्रिंशति आशातना, वारू टाले करीय नपायो रे ॥न ॥४॥ गुण उनीश सूरी- स्थानण
Raशना, वारू ते नावे मनमाहे रे ॥ गुरु नाषित किरिया करे, वारू मनमें धरी नबांहे रे॥ ॥श्चा Salm५॥ नमो आयरियाणं जपे, वे सहस्र गमण लव तापो रे ॥ कनकवरण शोले जिना, वारू
Siवंदण पूजण जापो रे॥न ॥६॥ चनदसें बावन मली, वारू गणधर वांदे त्रिकालो रे ॥ सूरी Nalsत्रीश गुणें नर्या,पंचाचार विशालो रे ॥ ॥ ७ ॥मुख आगल परपू, वारू सदगुरु
सदगुण गावे रे ॥ गुरुनी पाले आगना, वारू इणीपरें नक्ति नपावे रे ॥ भ० ॥ GNal आपद मांहे प्राणीने, वारू दान दीये बहुमान रे ॥ संघनगति बहुपरें करे, जेम पुरुष नत्तम राजान रे॥न ॥ ॥ तथाहि ॥ इणहीज नरतखेत्रमां, वारूख्याति जेनी जगमाहे रे ॥ नाम पुरी पदमावती, वारू शोन्ने घनवंत शाहें रे ॥न॥१॥ पुरुषोत्तम नूपति तिहां, वारू राज्य निकंटक पाले रे॥श्तणीपरें आपणी, वारू सुखें प्रजा रखवाले रे॥न ॥११ ॥ जेहना गुणनुवि । विस्तरया, वारू रविकर जिम विस्तारो रे ॥ सुमति मंत्रीसर जेहने, वारू सुमतितो र
मारो रे॥न॥१२॥ गुरुजोगें, आ जन्मथी, वारू तत्वातत्वना जागो रे॥धर्म करे श्रावकतणो,वारू समकित कीयो प्रमाणो रे ॥न ॥१३॥ मंत्री राजा जिनमती, वारु धर्मे रंगाणी नीजी रे॥ salधर्मथकी चूके नहीं, जो इंश् चलावे खीजी रे ॥न ॥१५॥ एकदिन पूजा जिनतणी, प्रतिमा हर्ष NAसमाजेरे ॥ नृप बेठो सिंहासणे, वारु सुरपति जिम बिराजेरेनणाराशेठ सामंत मत्रीसरू,चरण नमी नृपकेरा बेग निज निज थानके,वारूप्रेमधरी अधिकेरा रे॥ ॥१६॥ तिणे अवसर आव्यो
॥श्वा तिहां,वारू विद्यावंत कपाली रे॥रौनामें नमतो थको, वारू कम कपटइंजाली रेनिण॥१७॥राजाने आवी करी, वारू दीधी तेणें आशीशो रे॥सुणि जिनहर्ष यो घणो, वारू रलीयायत अवनीशोरेन
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॥दोहा॥ योगी बेठो नृपसन्ना, तेह प्रत्ये राजन ॥ कुशल खेम पूठी करी, संतोषी बहु मान॥१॥ योगी कहे महाराजजी, ताहारा राज्य मोकार ॥ मुजने श्रेय कल्याण , सहु ताहारे आधार ॥२॥ राय कहे योगी नणी, तुं निस्पृह शिरताज ॥ मुज पासे आव्यो सही, ते कहेने शे काज ॥३॥ कहे कपाली राय सुण, विद्या मुज पास ॥ ते विद्या मुज साधतां, हुआ षटमास ॥४॥नत्तर साधक नवि मल्यो, सत्ववंत गुणवंत ॥ साहसीकने परगजु, तिणे कारणे नमंत ॥५॥
__ढाल वीजी ॥ आदर जीव दमा गुण आदर ॥ एदेशी ॥ . तं नपगारी राय सण्यो में. तेणे आव्यो तज पासजी॥ नत्तम जे थाये अलवेसर, प्ररे सहन
आसजी ॥ तुंनप० ॥१॥ वृद फले ठे परने कारण,परकारण जलधारजी॥परकारण नगे दिवसेसर, salटालण जग अंधारजी ॥ तुं ॥२॥ परनपगारते पुण्य कहीजें, परपीमा ते पाप जी ॥ कोडिग्रंथनो Nalए परमारथ, कह्यो परमेश्वर आपजी ॥३॥ तिमपर कारण सज्जन माणस, लीधोठे अवतारजीusal
जगमांहे नजमाल श्रयाने, करवा परनपगारजी ॥ तुं॥४॥ राजेसर जग नपगारी, ताहरी
करे सहु आशजी॥ प्रारश्रिया पीडे नही नत्तम, मेल्हे नही निराशजी ॥ तुं ॥ ५॥ तुज सुप-1 Nalसायें विद्या सिके, कर मुझने नपगारजी ॥ विद्यादायक था राजेसर, तुजने कहुं वारवारजी॥ तु Salm६ ॥ मंत्री कहे मिथ्यात्वी साथें, वात न करीयें रायजी ॥ मिथ्यात्वीनी संगति करतां, निश्चे।
अवगुण पायजी ॥ तुं० ॥ ७ ॥ समकित व्रतने दूषण लागे, पांच कह्या अतिचारजी ॥ ते टालीने समकित पालो, जिनश्रुत हृदय विचारजी ॥ तु॥ ७ ॥शंका कंखो तृतीय विगिनों, वली प्रशंसा प्रसंगजी ॥ ए अतिचार जागोगे साहेब, तो शुं तेहशुं रंगजी॥तुं॥णामंत्रीय वार्यो तोपण राजा,
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॥२५॥
लोप्यो वचन न तासजी ॥ जाणो तेम थाओ पण एहनी, किम मेटुं अरदासजी ॥ तुं ॥ १० ॥ अनित्यशरीर थकी जो न होवे, किणहीनों नृपगारजी । तो जीवीनें शुं तेणे कीधुं, मारी धरती नारजी ॥ तुं ॥ ११ ॥ सचिव वचन अवहेली चाल्यो, निशि योगी नें सार्थेजी ॥ प्रेतवनें एकाकी पोहोतो, खमगग्रही निजहाथेंजी ॥ तुं० ||१२|| होम सामग्री सघली करीनें, राजानें कहे एमजी ॥ एक मृतक जर प्राण नरेसर, कारज याये जेमजी ॥ तुं ॥ १३ ॥ तास वचन सुणी नूपति चाल्यो, पुरि परिसरें निरखंतजी ॥ साहसीक तरु शाखालंबित, दीगे मृतक महंतजी ॥ तुंणा१४॥ खरुगायें बंधन बेदीने, नाखे न परे तेहजी ॥ तीनवार राजा रजु बेखो, देवाधिष्ठित देहजी ॥ तुं ॥१५॥ त्यारें नृप वृक्ष नपर चढियो, नतारेवा तासजी ॥ पुण्योदयथी सुर नृप कुलनी, जाखे वचन विलासजी || तु ॥ १६ ॥ पर नपगारी तुं हितकारी, जगततणो आधारजी ॥ तुजनें मारी कनक पुरुष ए, करशे एह विचारजी ॥ तुं ॥ १७ ॥ सावधान ते माटे थाजे, रहेजे तुं हुशियारजी ॥ ॐजाप एथी योगी जालें, धूम वरण श्राकारजी ॥ तुं ॥ १८ ॥ देव वचन साधुं चित्त धारी, राय थयो सावधानजी ॥ मृतक लेइ योगीनी पासें, श्राव्यो तिदां राजानजी ॥ तुं ॥ ११० ॥ स्नानकरावी जलशुं शबनें, पूज्यां तेहनां अंगजी ॥ मनमांहे बीहे नही केहथी, नृप जिनहर्ष अनंगजी ॥तुं ॥२॥
॥ दोहा ॥
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| ॥२५॥
खगदी दक्षिण करें, अगनि कुंरुनी पास ॥ बेो कपटी चुपबनी, चिंते पूगी आस ॥ १ ॥ विद्यानो योगी करे, अष्टोत्तर शत जाप ॥ ध्यानलीन मनमौनशुं, होमे वस्तु सपाप ॥ २ ॥ पाणिपद्मशुं नृप तदा, अभ्यंजे शबपाय || जालस्थल योगीतणे, धूम तेज देखाय ॥ ३ ॥ संभारयो
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तेणे देवता, तस्यादेशो कार॥ वैरिवृंदनां बलहरे, ध्यान करे तेणीवार ॥ ४ ॥ ॐकार माहात्म्यथी, विद्या पूरण जाप ॥ शब नछि पहियो वली, राजा पुण्यप्रताप ॥५॥
ढाल त्रीजी॥ नाचे इं६ आनदशुं इंशणीगावे गीतो रे ॥ एदेशी॥ पुण्य अधिक जग जाणिये, पुण्य अरियण दयथायो रे ॥ पुण्ये धन संपति मले, पुण्य सकल विद्यायो रे॥ पु॥१॥राजा पुण्य प्रत्नावथी, शब पमियो तिणिवारो रे ॥ योगी मनमां चिंतवे, विधि भइ न्यून विचारो रे ॥ पुण् ॥॥ फरीने जप मांझीयो, वली परियो तिमहिंजो रे ॥ लोटे ते ध्यानश्री, वलीवली थाये खीजो रे ॥ पुण्॥३॥ योगी नृपनें मारवा, विद्यादेवी ध्याये रे ॥ जोगी मांहे नाखीयो, अग्नि तणे कुंमे साही रे॥ पुण् ॥४॥ योगी सोवन पुरिसो, बलीथयो तत
कालो रे ॥ सिद्धि न हुवे परशेहथी, पुण्यप्रबल नूपालो रे ॥ पु० ॥५॥ यतः ॥ द्रुांति ये महावात्मेन्यो, द्रुह्यंत्यात्मनएवते।सूर्येदुशेहकज्ञहुः,शीर्षशेषोऽनवन्न किं ॥१॥ अर्थः-जेओ महात्माओनो Na
वह करे तेयोपोताना आत्मानोजह करे सूर्यनाशेहकरनार राहने मस्तक मात्रज रद्य नहि शुः “सारांश परशेह करनार आत्मशेहि . राहुने सूर्यचंनो शेह करवाथी धडजवाबाद माथु बाकी रा"ढालाहर्ष विषाद लढ्या बिन्हे, राजाएं मनमांहे रे॥अहोअहो विद्यातणो, जुओ प्रन्नाव नमा रे॥ पु०॥६॥ गुप्तगम ले थापियो, कनकपुरुष राजानो रे ॥ निज मंदिर आवी करी, सूतो निज्ञवानो रे॥ पु॥७॥ प्रातसमे मंत्रीनणी, राय कही सहु वातो रे ॥ स्वर्णपुरुष घर आणियो, अक्षय माल कहातो रे ॥ पुण् ॥ ७॥ वसुधा वसुधारा हवे, वरसे वसुधा ईशो रे ॥ दारिश्य ताप सहतणा, टाले धरीय जगीशो रे ॥ पु ए॥ श्रीजिनचैत्य कराविया, खरच्युं व्य अपारो थापी प्रतिमा कनकनी, समतानो आधारो रे ॥ पुण्॥१०॥ पवित्र हृदय पुण्येंकरी, पाखीनो उपवासो
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वीरे॥राय करी सूतो सुखें, दीगे सुपन विलासो रे ॥ पु०११॥ किणहिक नगरीमा वसे, कला
ISElकुशल बहु सेवी रे॥ करे तपस्या तापसी, वंकुली रत्नादेवी रे ॥ पु० ॥१॥ ते पासें नृप कन्यका ॥६॥
Salएक विवेक सुजाणो रे ॥ शास्त्र पाठ नद्यम करे, शीखे नाग विनायो रे ॥ पु० ॥ १३॥ रूपअ-sal वाधिक रलियामगुं, सुरकन्या अवतारो रे ॥ घमी विधिना लेकरी, तीन नुवनना सारो रे ॥ पु Salm१५ ॥ जे नर तेहने परणशे, तेहy नाग्यविशाल रे ॥ तीन वरग तेहनें हुशे, म चिंते नूपाल
रे ॥ पु॥१५॥ जाग्यो देखी एहवं, मंत्रीने तेमायो रे ॥ सहु विरतांत सपनतो,राजायें संन्नलायो sal aरे ॥ पु ॥ १६ ॥ पाणिग्रहण नत्सुक थयो, मंत्री कहे सुण रायो रे ।। शो प्रत्यय सुपनें लही, वस्तु-Nal तणो न नपायो रे ॥ पु०॥ १७ ॥ वातपित्त कफ चिंतथी, सुण्यो निष्फल श्राय रे ॥ मूरख तापसनी कथा, कहुँ जिनहर्ष सुणाय रे ॥ पुण् ॥१०॥
॥दोहा॥ Nal एक धनपुर नामे नलो, गाम समृद्धि विशाल ।। तपसी एक तापस वसे, करे तपस्या बाल ॥१॥ Salसिंह केसरीया लाडवा, मग्नरा नरपुर ॥ सुपनमांहे दीग तेणें, मन हरषित थयो नूर ॥ ३ ॥
नव्यो प्रात श्रयो जिसे, वदन कमल विकसंत ॥ शिष्य वर्ग तेमी कहे, मूरखमांहे महंत ॥ ३ ॥ ग्रामलोक तेमी करी, लावो सहु समुदाय ॥नोजन सहुनें आपशु, लावो ते बोलाय ॥४॥ शिष्य कहे तापस नणी, अहो तपोधन एह ॥ लोक सहुआव्या मली,योनोजन सुसनेह ॥५॥साग्रमी
॥२६॥ मनोजन तणी, मठ दीसे नही काय ॥ गुरुने ते नाखेश्श्युं, लोक रहे के जाय ॥ ६ ॥ नरयो अ
मठ मोदकें, दीग सुपनामांहिं॥ करीश नक्तितिणे मोदकें, शामाटे ते जाय ॥ ७॥ एह वात लोकें सुणी, तापसनी तेशिवार ॥ मांदोमांहे हसता सहू, कुधित गया घरबार ॥७॥
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॥ ढाल चोथी । शारद सार दयाकरि देवी ॥ एदेशी ॥
इलिपेरे सुपनुं न हुवे साचुं, सुपनार्थे शुं राचोजी ॥ संशय सत्यासत्य सही बे, निश्चय इदा नही बे जी ॥ १ ॥ मंत्रीएं वचन कह्यां समजावी, नृपमन वात न जावीजी || स्त्री नृपं बाले मूरख मृगवनना, हठ मेले नही मननोजी ॥ २ ॥ दानशाला मंत्री मंगावी, अनुपम ठगण करावीजी ॥ जणती वे तापसी पासें, राजकन्या नल्लासेंजी ॥ ३ ॥ तेमांहें एहवुं चित्र कराव्युं, नगरी वन मठ नावेजी ॥ सत्रागारें जे जे श्रावे, नोजन तास करावेजी ॥ ४ ॥ नोजन विविध प्रकार जिमावी, मंत्रीपासे आवीजी ॥ पूढे देशावरनी वातो, नवि नवी विख्यातोजी ॥ ५ ॥ एकदिवस कोइ परदेशी, पंथी बे सुविशेषेजी ॥ कंथा पंकित पहेरी श्राव्या, मंत्री तास जिमाव्याजी ॥ ६ ॥ जिमतां प्रांसु नाखे नयणे, पूबे मंत्रीशुन वयणेजी || शे कारण तुमें प्रांसुं नाखो, साधुं मुजनें जाखोजी ||७|| स्वादुवंत जोजन तुमनें दीधुं, गौरव नज्वल कीधोजी ॥ दुःखनुं कारण कोई न जाणुं, शामाटे दुःख प्राणोजी ॥ ८ ॥ तेह कहे सांजल हो जाइ, जिमण खोट न कांइंजी ॥ पण ए चित्र देखी श्रम नगरी, सांप्रत अमनें समरीजी ॥ एए ॥ ते जणी अमने कुंटुंब सांभरियो, हयको दुःखशुं जरीयोजी । तेणे ए प्रांसु नयो पमीयां, परदेशें प्रथमीयाजी ॥ १० ॥ पूबे नगरी सचिव तुमारी, केहवी सुंदर सारीजी ॥ कोई अचरिज ख्याल तमासो, तिहां दुवे तो नासोजी ॥११॥ तेह कहे मंत्री सुण वातां, उत्तरदेश विख्याजी, प्रियंकरा नगरी तिहां राजे, सुरनगरी सम राजेजी महीपाल राजे तिहां राजा, वाजे जसनां वाजांजी ॥ प्रजा इतणीपरें पाले, जय सहुकोना टालेजी ॥ १३ ॥ पद्मश्री तेहने घर पुत्री, जाणे विधिएं चित्रीजी ॥ हिकुमरी सुरकुमरी कहियें, गुरानो पार न लहियेंजी ॥ १४ ॥ रूप अनोपम अधिक बिराजे, देखी अपवर लाजे जी ॥ तीन
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वीश
नुवनमें एहवी कन्या, कोइ नही कृतपुन्याजी ॥ १५ ॥ विद्या नणी कुमरी नल्लासें, बे तापसणी
बतापतयारस्थान पासेंजी ॥ नणी गुणी सरसतिनें तोलें, मधुरवचन मुख बोलेजी ॥ १६ ॥ एहवी सांजली तेहनी ॥४॥
वाणी, सुवर्णदान दीयुं जाणीजी ॥ तेह स्वरूप राजाने आगे, जई कां मनरागेंजी ॥ १७ ॥ पांथ sd
वृत्तांत सुणी राजापण, मनमां हरषित पायेजी।कौतुक जोवा नृप नमाह्यो,राज मंत्रीने नलायोजी valn १७ ॥ सुपन सत्य निज अचरिज पामी, चाल्यो नत्तम नर स्वामीजी ॥ वायुतणीपरे न रहे
साह्यो, जोवा कुमरी नमायोजी ॥१॥ स्थावरजंगम तीरथ वाटें, वांदे नृप गहगार्टेजी ॥अनुक्रमें INIनगरी पामी ख्याली, थई जिनहर्ष खुशालीजी ॥२०॥
॥ दोहा ॥ तिणीनगरी नद्यानमें, मणिनो महेल अनूप ॥ देवन्नुवन सरिखो रच्यो, पुत्री कारण नूप ॥१॥ तहां कुमरी दीठी नृपें, बे तापसणी पास ॥ राजा मनमां चिंतवे, ऐऐ पुण्यप्रकाश ॥ २ ॥ केए जगदानंदिनी, केसी लावण्य सुगेह ॥ केतुपूर्णानिधान , काम नृपतिनुं गेह ॥ ३॥ के अपवर
आकाशथी, आवी जोवा ख्यालोके तो कोश्क किन्नरी, आवी ईहां चाल ॥४॥ अथवा हुं आव्यो alsहां, नली थई ए वात ॥ जे सुपनें दीठी दुती, ते दीठी सादात ॥ ५ ॥
ढाल ॥ पांचमी ॥ गलिनी देशी ॥ उठी नावना मन धरो ॥ एदेशी ॥ | राजकन्या निजघर गइ, तापसणी पासे थई, तन्मयी, शास्त्रकथा करि नवनवीए ॥ तेणे अवसर Pal नृप आवीथो, पुष्प पाणि सोहावियो, नावि बेगे आगल गुण स्तवीए ॥ १ ॥ राजाने देखी करीnen
तापसणी हरखें नरी, तनुसिरी, गंगाजल जिम निरमली ए॥ तापसणी नृपनें कहे, कहेनें ववतुं alकिहां रहे, गुण वहे, विनयतणो तुं वलि वली ए ॥२॥राय प्रमोद धरी करी, कुसुम सुगंधी कर।
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धरी, दिल तरी, पूजा चरण सोहामणां ए ॥ वात सुगो तुमनें कहुं, पद्मावती नगरी रहुँ, नमहुँ, कौतुक जोवा ते घणांए ॥ ३ ॥ चरणकमल नमवा जली, रन वन मुंइ लंघी धणी, तुमतली, सेवा करवा आवियोए । उत्तमनर जाली करी, वे तापसी हितधरी, बहुपरि, जोजन सरस करावी - योए ॥ ४ ॥ जोजन कीधानंतरें, नयानें एक तरुवरें, सुख नरें, तास वचन पामी करी ए ॥ रतनपट्टिका नपरें, जइ सूतो निश करे, अवसरे, ग्राव्यो तिहां एक ननचरी ए ॥ ५ ॥ नृपनें सूतो निरखीयो, सूरति देखी हरखीयो, परखीयो, ए मनमथसमो नर हीए ॥ जो जोशे मुज कामिनी, एहनी कांति सोहामिणी, रागिणी एहतली श्रासे सहीए ॥ ६ ॥ एकजमी बांधी करें, रूपनारीनुं ते करे, इणि परें, ते कामकरी आागल गयोए || देखो काम विटंबणा, शुं नकरे कामीजला, जामला, जेही काम दूरें रह्यो ए ॥ ७ ॥ नारी के आवीए, देखी कांति सोहावीए, जावीए, मनमां एम विचारणाए । जो मुज कंत निहालसे, प्रेम सही मुज टालशे, पालशे, एहशुं सुख नरनवतां ॥ ८ ॥ वली तेणे बांधी औषधी, पुरुष रूपथ्र्यो सूधी, मनवधी, प्रीति घणी आगल चलीए ॥ जाग्यो राजा तेणेसमें, जमी निहाली अनुक्रमें, मनरमे, पाणी पद्म वे अटकलीए ॥ ए ॥ मनमां प्रचरिज पामीए, ते नरना स्वामीए, जामीए, ए कारण दीसे किसुंए || पुरुष रूप जडी बोमेए, पाणिथकी मनकोमेए, मुखमोने, वनिताकार दुवे तिसोए ॥ १० ॥ वाम हाथथी बीजीए, सुंदर रूप निरखीजीए, रीजीए, प्रातमरूप निहालीए | हरख लहयो मनमां घणो, फल्यो मनोरथ मनतो, आपणो, पूर्व पुण्य संभालीयोए ॥ ११ ॥ गुप्तगमें जमी राखी, नृपकन्यानो अभिलाखी, नवि दाखी, किणहीज आागल वातमीए ॥ हवे तापसी पासें ए, आव्यो राय नल्लासें ए, आए, गमवा तिहांकले रातकीए ॥ १३ ॥ रूप भूपनुं
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वश
॥२८॥
नाली ए, तिम सौभाग्य निहाली ए, बालीए, मन जोवे आकृति जली ए॥सांनल वछ कहे तापसी तुज शोना भूपति जिसी, मनवसी, तुज सुरति पुण्यें मली ए ॥ १३ ॥ तुतो गुणनो गाको ए, लबी लीलानो लामो ए, आमो ए, हवे परुदो राखे किसो ए ॥ राय कहे सुण स्वामिनी, तुमेगे सदगति गामिनी, कामिनी, तुमें जिनहर्ष साधन हुसो ए ॥ १४ ॥
॥ दोहा ॥
पुरुषोत्तम पदमावती, नगरीनो रखवाल | सुपने दीगे आवीयो, देखेवा नृपबाल ॥ १ ॥ परा पुष्योदय माहरो, प्रगट थयो प्राचीन ॥ दरिसण पाम्यो तुम तयुं, आरति जंजन दीन ॥ २॥ कन्यारागी जालीनें, राजानें तेलीवार ॥ रन्नदेवी कहे तापसी, कुमरी तणो विचार ॥ ३ ॥ ततो नरद्वेषिणी, राजन् राजकुमार ॥ करग्रह किाही पुरुषशुं, माने नहीं अवधार ॥ ४ ॥ ते कन्या अहंकारिणी, किम पराशे गुणवंत ॥ तास कदाग्रह देवता, मूकावी न शकंत ॥ ५ ॥
ढाल ॥ बट्टी ॥ चोपाइनी देशी ॥
चरण नमीने जाखे राय, परणसे स्वामिनी तुम पसाय ॥ स्त्रीनुं रूप करी गुणगेह, निजवश करशुं कन्या तेह ॥ १ ॥ तापसणी कहे नृपनें एम, स्त्रीनुं रूप करीश तुं केम || जेथी थाये नारि रूप, बे मुज पासें जमी अनूप ॥ २ ॥ राय देखामी जटिका तेह, तापसणीने घरी सनेह ॥ प्रतिहतलो पामी प्रदेश, लेवेगे नारीवेश ॥ ३ ॥ कुमरी आवी थई प्रजात, चरण नमीनें पूढे वात ॥ ए बेटी कोण नारी जो देखी हर्ष याये ते घणो ॥ ४ ॥ सांभल कुमरी नाखें तेह, मुजनाइनी तनया एह ॥ नाम सुलोचना बे गुणवती, रहेने नगरी पद्मावती ॥ ए ॥ श्रावी मुजनें मलवा जली, प्रीति एहनें मशुं घणी ॥ तेहनी कांति निहाली करी,
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कुमरीनी आंखमी यो वरी ॥ ६ ॥ रूपें दीसे देवकुमारि, रंजा अपबराने अनुहार || देखी हृदय कमल नलसे, रविदेखी जेम पंकज इसे ॥ ७ ॥ एहनुं रूप विधाता करीयुं, जेवुं त्रिभुवनमां नविजकीयुं ॥ विस्मय पामी कहे स्वामिनी, ए मुजनें आपो कामिनी ॥ ८ ॥ एहनें देखीनें संतोष, नपजे प्रेम तो बहुपोष ॥ माहरी पासें जो रहे एह, तो मुज मनमां वधे सनेह ॥ ए ॥ तापसली कहे वाई सुलो, एहनें काम घरेबे घणो ॥ रदेतां एहनें नवि पूरवे, अमने मली चालशे हवे ॥ १० ॥ माय कहुं तुमनें परुव, एहनें राखो पायें पहुं । जिम करीनें मास बमास, राखो आई माहरी पास ॥ ११ ॥ ईशुं कीजें गुणगोठकी, तो थाये मुज सफली घमी ॥ उत्तम मारासनो मेलाप, थाये तो टाले तन ताप ॥ १२ ॥ कहे तापसी घरी उल्लास, तें जो कीधी श्रम अरदास | जा बहिनी रहे कुमरी पास, नृप कन्यानें गयो आवास ॥ १३ ॥ गुणवंतानें आदर याये, गुणवंता जिहां तहां पूजाये ॥ गुणवंताने माने सदु, गुणवंता गुण पामे बहु ॥ १४ ॥ गुणवंतानें इयो पर - देश, गुणवंतानें नमे नरेश ॥ गुणवंतानें मुखें भारती, सदुको नतारे आरति ॥ १५ ॥ नाना ग्रंथ कथारस स्वाद, निशदिन करे बाकी प्रमाद || सुधास्वादें जिम तृप्ति न होइ, तृप्ति न पामे कुमरी जोइ ॥ १६ ॥ राजा राजकन्याशुं वात, करतां नेदी साते धात ॥ खीरनीर परे लागी प्रीत, मांदो | मांहे मलीयां चित्त ॥ १७ ॥ यतः ॥ कीरेणात्मगतोदकाय हि गुणा दत्तापुरा तेखिलाः, हीरे तान | मवेक्ष्य तेन पयसा ह्यात्मा कृशानौ हुतः ॥ गंतुं पावकमुन्मनस्तदभवद् दृष्ट्वा च मित्रापदं युक्तं तेप जलेन शाम्यति पुनमैत्री सतामीदृशी ॥ १ ॥ प्रथम दूधें पोतानी अंदर रहेला नज्वलता आदि सघळा गुणो, पोता साथे मलेला पाणीने प्राप्या. तेपटी दूधने विषे थयेला तापने जोइ ते पाणिए पोतानुं अंग अमिनेविषे होम्युं, एरीते मित्रनी आपत्ति जोइ दुध अग्निप्रत्ये जवा उत्साह युक्त श्रयुं
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al" एटले उन्नरावा लाग्यु" तेफरीथी पाणीवमे शांत प्रायने एटले उन्नरातुं अटकेले; माटे सत्पुरु- स्थान षोनी मित्राई एवी बने पकवाली होय रे ॥१॥ ढाल ॥ एकदिन राजा अरधी रात,
राजकन्याने पूरे वात ॥ पुरुष षिणी किम अश् सखी, ए यौवनवय शुंकरे दखी ॥ १७ ॥ salसांनल बहेनी कहुं विरतंत, नर नपर मुजष अत्यंत ॥ जातिस्मरणतणे प्रन्नाव, राजा पूछे alपामी दाव ॥१॥केम श्रयं जातिस्मरण ज्ञान, प्ररवन्नव दीठो जिएगध्यान ॥ लाजकरी कुमरी
नचरे, मृवाणी मुखें अमृत करे॥ २० ॥ देखी करि मिथुन संनोग, मांहोमांहे प्रीति संयोगsa Salराय कहे मांझीने वात, मुज आगल कहे गुणविख्यात ॥ १ ॥ तद्यथा ॥ हस्तिमिथुन विंध्याचल sal वनें, निबिडस्नेह रहे एकमनें ॥ अन्य दिवस तिण वन विकराल, दावानलनी नगी जवाल॥२२॥ Valबाले तरुवर मोटां काम, जाणे आवी जमनी धाम ॥ मरण तणो लय पामी जीव, नाग दहदिशि Stall करता रीव ॥ २३॥ नखरखेत्र निहाले सदु, तिहां आतीने नन्ना बहु ॥ सूकर व्याल मृगादिक Stallक्रूर,थयुं जिनहर्ष गम नरपूर ॥२४॥
॥दोह॥ । हस्तिमिथुन देखीकरी, जीवनर्या ते गम॥ अनुकंपा प्राणी तणी, भावी मनमा ताम॥१॥तेह Naगम गेमीकरी, मिथुन गयु अन्यत्र ॥ दावानल बलतो थको, आवी पोहोतो तत्र ॥२॥ करि मूकी Salकरिणी नणी, बलवा केरी नीति ॥ ते क्यांही नासी गयो, मूढ न पाली प्रीति ॥३॥ कोण केहनो
वालो सगो, कोण केहनो परिवार ॥ जाये नन्ना मेलीने, मृत्यु आवे जेणीवार ॥ ५॥ सुखनीवेला | सहु सगुं, सहुनो वधतो नेह ॥ दुःखनी वेला देखीनं, तुरत देखामे देह ॥ ५॥ वजपको शिर
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धात्रीने, पुरुष नपाा जेण ॥ प्राणकाळ पोतातणी, नारी ढमी तेण ॥६॥ पुरुष सरिखो पापीयोsal जगमां को न दिछ ॥ दया नही जेहने हिये, पुरुषां मुह म दिछ ॥७॥
॥ ढाल ॥ सातमी। इंझर आंबा आंबलीरे ॥अथवा हरषन्नर हमशुं बोलजोजी ॥ एदेशी॥
एहवं मनमांध्यावतांहो,नतार्यो तेणें नेह॥शुन्नध्याने दवजालमेंरे,तिहां करिणी मुश्तेह,हरख बेहेनी सुगजो रे, तुं तो नागरी चतुर सुजाण, तुंतो माहरा जीवन प्राण,मूकी मननी सहकाण, तुज sal
आगल कहूं हित आण ॥ हरखशुं॥॥ अनुकंपाना नावथीहो, हुं थई राजकुमारि ॥ तेमाटे चाहुँ । Salनहीं रे, हुं वरवा नर तार ॥ ह ॥३॥ जातिसमरण नपन्युं हो, सांजली तेह स्वरूप ॥ महोटुं फल
करूणा तणुं रे, मनमांहे विचारे नूप ॥ ह॥४॥ पशु होतो नव पाउलेहो, प्राणी त्राण अन्निप्राय Na Sen तास प्रत्नावें दुं श्रयो रे, श्रीमंत सदुनो राय ॥ ह॥५॥ जो करूणाशुनज्ञानशुं हो, आवे हृदय
मोकार, बोधिलान नवअंतरेरे, पामे निश्च नरनार ॥ ह ॥ ६॥ यतः॥ महतामपि दानानांका-val Palलेन कीयते फलं॥नीतान्नयप्रदानस्य.कृय एव न विद्यते॥न अर्थः-महोटां दानोनं फल, पण काले
करीने कीलयायचे. परंतु नयपामेला प्राणिने अन्नयदानना पुण्यफलनो लय श्रतोज नथी ॥१॥ Salun ढाल ॥ निजाकार गोपन करी हो, तापसणीने अंत ॥ आवीने कन्यातऍरे, सघलुंही कां वृत्त
त ॥ ह॥७॥ हस्ती सस्नेहें करी हो, सुंमें सीतल वारि ॥सींचे तनु करिणीत' रे, पतिनगती
गुणधार ॥ ह ॥ ७॥ वली प्रिया निजजाणीनेहो, पोतेपण दवमांह ॥ बलीमून ते हाथियो रे, salदुःख पामे प्रेम अगाह ॥ ह ॥ ए॥ लिखीयो चित्रपट तापसी हो, चतुर पुरुष स्त्रीसाहे ॥ ते चित्रपट देखामियो रे, सघलीह नगरी माहे ॥ ह ॥ १०॥ दीगे ते चित्रपाटीयोहो, नृप कन्या sd तेणीवार ॥ विस्मय पामी पूछियो रे, शुंछे नर सुविचार ॥ ह ॥ ११ ॥ पद्मावती नगरी तणो हो,
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ते कहे राय प्रधान | सोमवंशी करुणा निलो रे, नृप पुरुषोत्तम नाम ॥ ८० ॥ १२ ॥ पूरवजव दस्ती डुतो हो, विंध्याचल वनमांदे ॥ पाम्यो मृत्यु दवानले रे, अंगी रक्षा सुपसादे ॥ ० ॥ १३ ॥ राजानी पदवी लही हो, जाती समरण पामि, प्राच्य प्रिया स्त्री जाणवारे ॥ चित्र लिख्युं नरस्वामी ॥ हणा१४।। माहरे हायें प्रापी यो हो, में सहु पृथिवी मां हि ॥ देखाड्यो चित्रामएरे, सदु पर मूक्या अवगाहि ॥ इ० १५ रूप सुधारस सारिखुंहो, नेत्रपुढे ते पीध ॥ काया ताप गली गयोरे, कुमरी मन रूपें दीध ॥ ० ॥ ||| १६ || तेह स्वरूप जाएयुं सहूहो, पद्मश्रीनें तात ॥ सामग्री विवाहनीरे, सहु कीधी स्वर्ग विख्यात ॥ ० ॥ १७ ॥ हयदल पयदल मंत्रवी हो, साथै बहुपरिवार || पद्मावती नगरी प्रत्येरे, मोकले | पुत्री तेलीवार || इ० ॥ १८ ॥ तात चरण प्रणमी करीहो, प्रणमी माता पाय ॥ मात पिता दीये शीखमीरे, कुमरीने कंठे लगाय ॥ ० ॥ १९७ ॥ धर्मगुणाधिकनें विषे हो, मकरे पुत्री प्रमाद् ॥ मुक्ति दायक ए जीवनेरे, टाले जवना विषाद || ह० ॥ २० ॥ जीवतणी जयला करे हो, पाले निर्मल शील ॥ शील न पाले प्राणीयारे, परजव दुःख जव हील ॥० ॥ २१ ॥ पतिनुं मान लही करी रे, मकरे गर्व गुमान ॥ सधला उत्तम गुणतणुं रे, ए गर्व गमाने मान ॥ ० ॥ २२ ॥ नक्तिकरी जिनवर ती हो, नमजे साधु महंत ॥ दान सुपात्रें आपजेरे, थाजे पुत्री गुणवंत ॥ ह० ॥ २३ ॥ निज गुरुणी बे तापसी रे, चरणे नाम्युं शीष | बाइ सुखी थायजेरे, जिनहर्ष दीधी आशीष ॥ इ० ॥ २४ ॥ सर्वगाथा ॥ १७८ ॥
॥ दोहा ॥
राजा
तापसी वाद करी, लेइ नृप आदेश ॥ कुमरी चली नगरी प्रत्यें, साथै साथ विशेष ॥ १ ॥ पण स्त्री वेषधरी, तापसणी पाय लाग ॥ तुम सुपसायें मातजी, फली युं माहारुं नाग ॥ २ ॥
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लेई आशीष चल्यो नृपति, नूषित नारी रूप ॥ शास्त्रविनोद कथा सरस, रीजवतो मन नूप ॥३॥ अनुक्रमें पद्मावती, नगरीतणे नद्यान ॥ कुमरी आवी नतरी, जाणे देव विमान ॥४॥ नारीरूप त्यजीकरी, सुतम संध्याकाल ॥ आव्यो मंदिर आपणे, लब्धलक नूपाल ॥५॥ | ॥ ढाल ॥ आग्मी शहेरनढुं पण सांकडं रे॥ एदेशी ॥ अथवा एणी अवसरें तिहां मुबर्नु । रे॥ एदेशी॥
राजमंदिर राजानणी रे, आव्यो देखी लोक रे ॥ पुरयाइ जुओ, रलीयायत सहुको श्रया रेलाल ॥जेम रविदेखी कोकरे॥ पु० ॥रा ॥१॥ए आंकणी॥शेठ सामंत सुमंत्रवी रे, लागा।
आवी पाय रे॥ पुण् ॥ पुरमांहे ओत्सव भयो रेलाल, नलें पधारया राय रे ॥ पु॥ | रा॥२॥ राजा मंत्री आगलें रे, सघलो कहयो वृत्तांत रे॥ पुण्॥ नक्तिकरी सहुसाथनी रेलाल, नोजन करयां बहु नांत रे ॥ पु॥रा ॥३॥शुनमुहूरत लगने नले रे, कुमर परण्यो l राय रे ॥ पु०॥ मनश्वा सफली थ रेलाल, पुण्यतणे सुपसाय रे ॥ पुण् । राण॥४॥ पद्मश्री श्रीसारखी रे, पुरुषोत्तम सादात रे ॥ पु० ॥ विषयतणां सुख नोगवे रेलाल, नवि जाणे दिनरात रे॥ पु० ॥रा ॥ ५ ॥ सिंहसुपन दीठो हतो रे, गरन समय अन्निराम रे ॥ पुण् ॥ पद्मश्री पुत्र जनमीयो रेलाल, पुरुषसिंह दीयुं नाम रे ॥ पुण॥रा॥६॥ पुत्र जनम राजा घरें रे, वागा ढोल नीशान रे ॥ पु॥ वांटी पुरमां वधामणी रेलाल, गोलन्नीलां सुप्रमाण रे॥ पुण् ॥ रा ॥७॥ शोल शणगार सजी करी रे, नाचे नवनव पात्र रे॥ पु॥ गावे गीत सोहामणां रेलाल, कुमरतणी
पडे यात्र रे ॥ पुरा ॥८॥घर घर तोरण बांधीयां रे, घर घर वलीवरमाल रे ॥ पु० ॥ घर घर REनत्सव अतिघणा रेलाल, नलें आव्यो नृपवाल रे॥ पुण्॥रा ॥ए ॥ आनंद राजा पामीयो रे,
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॥३१॥
पुत्रतणुंमुख जोरे॥पुणा नरनव हवे लेखे गणे रेलाल, मायझी हरषित होय रे ॥ पुणारा॥१॥ सुरतरु जेम नंदनवनें रे, सुरीपमामे वृद्धि रे ॥ पुण्॥पंचधाव नंदननणी रेलाल, पाले तेम समृदिरे॥ पुण्॥राण॥११॥लोग विषय संतति नणी रे, जाणि कटुक विपाकरे॥पु॥नोगवता रलीयामणा रेलाल, जेहवां फल किंपाकरे ॥पुणारा ॥१२॥ पद्मश्रीधरमातमा रे, जाणे धर्म विचार रे, ॥पुणा परवदिवस जाणीकरी रेलाल, अब्रह्मनो परिहार रे॥ पुण्रा ॥ १३ ॥ जीवदया पाले घणी रे,
आपे अढलक दान रे॥ पु०॥ जिनवरनी सेवा करे रे लाल, मुनिवरने बहुमान रे ॥ पुण् ॥ राण Nalnाविद्यावये विद्या घणी रे, सकल शास्त्र अभ्यास रे ॥पु० ॥अल्पान्यासें आवमी रे लाल, कला
बहोतेर जासरे ॥ पुराण ॥१५॥ यौवन वय प्रापत आयो रे, रुपें अमर कुमार रे ॥ पुण॥ शूर सुधीर पराक्रमी रेलाल, उत्तमगुण नंडार रे ॥पुणारा१६॥ जास विशिष्ट गुणसंपदा रे, आठ कन्या समरूप रे॥॥पुणाकुमरनणी बहु नत्सवें रेलाल, परणावी ते नूप रे ॥ पुण् रा॥१७॥दाघज्वर कालांतरे रे, महावेदनी जास रे ॥ पुण्॥ पद्मश्रीने नपनी रेलाल, कर्मतणो नही नाश रे ॥ पु॥रा ॥१७॥ नोगवतां ते वेदनी रे, राणी बूटा प्राण रे॥ पु॥ काल न मूके केहने रेलाल, कोण राजा कोण रांक रे ॥ पु॥ रा॥१ए ॥ तास वियोग मूढातमा रे, रोवे निशदिन राय रे ॥ पु० ॥ प्रेमतणे परवश पम्यो रेलाल, जूरिजुरि पंजर थाय रे ॥पु॥ ५० ॥ तेणे दुःखे नृपने वीस- रे,
राज्यतणां सहु काज रे ।। पु० खाणांपीणां खेलणां रेलाल, गेमी सहुनी लाज रे ॥ पुण्॥राण Haln १ ॥ नदासीन अहनिशि रहे रे, राणीतणे वियोग रे ॥ पुण् ॥ कहे जिनहर्ष कीयो घणो
रेलाल, राणी केमे सोगरे । पु॥रा॥२२॥
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॥दोहा॥ तेणे अवसर आव्या तिहां, चननाणी अणगार ॥ देवमुनीश्वर विचरता, करता बहु नपगार au॥ राजा आव्यो वांदवा, अनिगम सांचवी पंच ॥ वांदी बेगेनक्तिशुं, बोडी सकल खल खंच ॥ र ॥ पुरवासी आव्या घणा, सुरणवा श्रीगुरुवाण ॥ आचारज ये देशना, प्राणीने हिताण३
॥ ढाल ॥ नवमी ॥ वीबियानी देशी ॥ अथवा प्राणीवाणी जिनतणी ॥ एदेशी॥ गुरु आपे इणिपरे देशना, दोहिलो मानुष अवतार रे ॥ देश आरजकुल आरोग्यता, आवखु वली पूरण धार रे ॥ गुण॥१॥ बुद्धिधरमनी संपदा, धरमें वली ऐक्य नाव रे ॥ दोहेली सामग्री धर्मनी, लहेवी नवसायर नाव रे ॥ गुण ॥२॥ चनरासी लख योनिमां, दोहिलो मानव अवतार रेए जीव नमी रह्यो तेहमां, कुल कोमी लाख मोकाररे ॥ गुण ॥ पृथिवि पाणी वन्हि वायरा, सात सात प्रत्येके जाण रे ॥ दशलाख प्रत्येक वनस्पति, साधारण चनद वखाण रे ॥ गुण ॥ ४॥
वे बे लाख विकलेंश्यिा , देवता नारकी तिर्यंच रे ॥ चार चार लाख एहना, गणो नर चौदलाख Nasण संच रे ॥ गु० ॥५॥ अनंतपुदगल आवर्तमां, कीधां प्राणी केश्वाररे ॥ संसार समुश्पूरो
नयो, प्रत्येकें कहे गणधार रे ॥ गुण ॥ ६॥ संसारी नमतो एहमां, कर्मलाघवधी लयां चाररे ॥ ए परम अंग दोहिलां, ते पाम्या एह विचाररे ॥ गु०॥॥ मानुषपणो श्रुतधर्मनो, सद्दहणाsa संयम वीर्य रे ॥ नर जन्मसार पामी करी, व्रतनियम धरो धरी धैर्य रे ॥ गुण ॥ ॥ आत्मनिर्मल
तपशीलरों, यो अन्य सुपात्रं दान रे ॥ जीम मृत्यु न होवे फेरथी, लहो अविचल सुख निधानरे॥ Salगुण ॥ ५ ॥ नर सुरनां सुख बहु नोगव्यां, एवं जीवे वार अनंतरे ॥ तोहीपण तृपतो नवि अयो,sa
नदीयें जिम नदीयांकंतरे ॥गुण॥१॥जे सांसारिक सुख नोगवी, आगल लहीयें बहू दुःखरे॥ते सुख
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वीश
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॥ ३
तहमां न गणीये, नर राचे ते मूरख्ख रे॥गुण॥११॥ईणे संसार असारमें, सारने एक श्रीजिनधर्म रे॥ जिनधर्मविना क्य नवि होवे, महादुष्ट अष्ट ए कर्म रे ॥ गुण ॥१॥ ते धर्म अ बे प्रकारनो, पंचमहाव्रत मुनिवर धार रे॥ सुरनां सुख लहियें जघन्यथी, नत्कृष्टो मुक्ति दातार रे ॥ गुण ॥१३॥ बीजो वली धर्म श्रावक तणो, अणुव्रत शिवाव्रत सार रे ॥ नत्कृष्टो लहीयें बारमें, देव नूवनें अव-IN तार रे ॥ गुण ॥ १४ ॥ कामधेनु कल्पसुरमणी, एक नवनां आपे सुख्ख रे ॥ ए धर्म नवान्नव सुख दीये, कापे नवनवना दुख्ख रे॥गुण ॥१५॥ सांसारिक दुःखथी आतमा, मूकाये धर्म पसाय रे॥ समकित सहित जो कीजीयें, जिनहर्ष कहे ए नपाय रे ॥ गुण ॥१६॥
॥दोहा॥ एहवी सांजली देशाना, श्रीगुरुतणी विशुद्ध ॥ मीठी अमृत सारखी, ततहण नृप प्रतिबुझ॥ SE१॥ दुःखत्रय आवर्तमां, नमियो प्राणी मुन्ज ॥ करुणानिधि तारो हवे, शरण आव्यो हुँ तुज॥ Sel ॥ जिम सुख देवाणु प्पिया, मा पमिबंध करेह ॥ गुरु आदेश लेई करी, आव्यो राय घरेह ॥Na Nar३॥ साते खेत्रे वावयु, वित्त सुवित्त नरेश ॥ श्रीजिनन्नक्ति करी घणी, संघन्नक्ति सुविशेष ॥४॥
राज्य धुरायें थापियो, पुरुषसिंह कुमार ॥ मंत्री सहित सनबर्वे, नृप आव्यो तेणीवार ॥ ५॥ गुरुपासे आवी करी, बे जण दीक्षा लीध ॥ गुरुपासे शीखी क्रिया, षष्टाष्टम तपकीध ॥ ६ ॥ दुष्कर व्रत तप आदरयु, समिति गुप्ति प्रति पाल ॥ गुण सत्तावीशें करी, शोनित नित्य विशाल ॥ ७ ॥ राजऋषि नव पूर्वधर, धरे व्रत अप्रमत्त ॥ एक दिवस मन चिंतवे, श्रुतजल निर्मलचित्त ॥७॥
du३॥ ॥ ढाल ॥ दशम। ॥ वीर सुणो मोरी वीनति, कर जोमी हो कहुं मननी वात के ॥ एदेशी ॥ LI गुरु गिरुआ गुरु गुणधरा, गुरु आपे हो ज्ञान लोचन सार।गुरु दुर्गति जावा न ये, परदेशी हो ।
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LATOROLOROTOCHLORONCY
जेम केशीकुमार ॥ गुरु ॥१॥ लाख क्रोमथी पण घणा, जो कीजें हो गुरुने नपगार ka
ओसिंगल अश्एं नही, गुरुकेरो हो महोटो प्रतिकार ॥ गुण ॥२॥ मात पिता सुत कामिनी, निजअर्थे हो इहां करे नपगार ॥ इह परनव स्वारथविना, नपकारी हो गुरु करुणागार ॥ गु॥ Vlu ३ ॥ मातपिता गुरु ते भला, ते साचा हो वाला जगमांहि ॥ शास्त्रोपाय देई करी,
जे काढे हो दुर्गतिथीसाहि ॥ गुण ॥४॥ मनमां एहवं चिंतवी, संवेगीहो शु साधु महंत ॥ कीधो अन्निग्रह गुरुतणो, में करवं हो वात्सल्य निव्रत ॥ गुण ॥५॥ त्रिविध त्रिविध आशातना,
गुरु केरी हो टाले तेत्रीश ॥ मथनी पुण्य सायरतणी, गुरुन्नक्तिहो शुद्ध साधु मुनीश ॥ गुण an६ ॥ देशकालोचित्त जोश्ने, नात पाणीहो औषधनें वस्त्र ॥ वात्सल्य करे इत्यादिकें, गुरुकेलं हो
नवतरूवर शस्त्र ॥ गुण ॥ ७ ॥ अंगमर्दकनी परे करे, गुरू मुनिनोहो मईन सुप्रसाद ॥ अवसर
जाणीने करे, वली जाणीहो नत्सर्ग अपवाद ॥ गुण ॥ ॥ षटत्रिंशत् गुण गुरुतणा, नित्य ध्यावेsa Salहो निज हृदय मोकार ॥ मुखें परपूवें स्तुतिकरे, सहु आगेंहो कही गुरुआचार ॥ गुण ॥ ए॥श्म
सुसमाधि सिद्धांतनी, मुनिपाले हो आज्ञा सुप्रमाण ॥ लीनात्मा ते ध्यानमां, दांतिधारी हो नहीं। ममता माण ॥ गुण ॥ तीर्थकरपद संपदा, नपावेहो गुरु नक्ति तेह ॥ सर्वधर्मनुं मूलने, निशि दीवसे हो करे विनय सनेह ॥ गुण ॥११॥ईणी अवसर सुरनी सन्ना, मांहे बेगहो इंद्रे कीध प्रशंdस ॥ नक्ति परमगुरुनी करे, मुनिराजा हो धनधनीकुलवंश ॥ गुण ॥१२॥ क्षेत्र नरतमाहे जेहवो
गुरु नक्तोहो पुरुषोत्तम साध ॥ तेहवो बीजो कोई नहीं, जगजोता हो मुनिगुणो अगाध॥ गुण Ram १३ ॥ सांप्रत हमणां को नहीं, सीतल ताही जसु हृदय निकोप ॥ ईम गुरुन्नक्ति समाचरे, जे
आपे हो त्रिनुवनमें ओप ॥ गुण॥ १५ ॥ईम निसुणी कोई देवता, ईर्षालु हो मिथ्यात्वी कोई॥
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स्थान
Avi आव्यो पुरुषोत्तम जिहा, मुनिरूपे हो ते प्रवर्तक होई ॥ गुण ॥१५॥ दोष प्रगट करतो घणा, वली
कहेतो हो नाना अपवाद ॥ कटुक वचन मुख लांखतो, नपजावे हो पगपग विषवाद ॥ गुण ॥१६॥
नितुरपणे करे तर्जना, वली निंदे हो मुनिवरनी जात ॥ नावन्नगति गुरु नपरें, नवि जाये हो तेहISelनी तिलमात ॥ गु० ॥१७॥ तीन प्रदक्षणा देई करी, सुरें प्रणम्या हो मुनिवरना पाय ॥ ईश्स्व-Sal Isal रूप कही करी, ते नाकी हो निजनाकें जाय ॥ गुण ॥१॥ गुरुवात्सल्य, विनयें करी, जेणे पाल्यो
हो अन्निग्रह मुनिराय ॥ निःस्पृह शुभ संयमधरी, तप करीने हो शोषी निजकाय ॥ गुण ॥ Nal all श्रीगुरुराज नमो कही, जेणे कीधुं हो अनशन एक मास ॥ अच्युत सुरलोकं थयो, सुर महोटो
हो तिहां कर्यो विलास ॥ गुण ॥ २०॥ तिहाथी चवी विदेहमा, पाशे नावि दो तीर्थकर तेह ॥ श्रीsa Kalगुरुन्नक्ति प्रत्नावथी, राखो गुरुनोहो ईम नक्तिसुं नेह ॥ गुण ॥१॥ पुरुषोत्तम नरपतित', सुणी
श्रवणे हो ए चरित्र रसाल, तीर्थकर गुरुन्नक्तिथी, पद पाम्योहो जिनहर्ष विशाल ॥ गुण ॥ २२ ॥Sal Isalइतिश्रीविंशतिस्थाने चतुर्थ पुरुषोत्तमं कथानकं नृप चरित्रं समाप्तम् ॥
॥ अथ पंचमं स्थविरपदम् ॥
॥दोहा॥ हवे पंचम थानक विषे, लोक लोकोत्तर नेद ॥यविरतणा गुण पामवा, करवा नाक्त नमद॥१॥ प्रथम अविर लौकिक कह्या, मातपितादिक वृह ॥ एहनी पण नगति करो,बे नव सुखनी लिहिाशा गुणे वृद्ध वय वडजे.करेनक्ति नन्नास ॥ बेजव सख पामे सही.करयो शास्त्रमा व्यास ॥३॥ alमातपितादिक वृद्धनें, करे नमस्कार जेह ॥ तीर्थयात्रा फल ते लहे, दिन दिन करतो तेह ॥ ४ ॥ सुण लोकोत्तरवृद्ध हवे, पंचमहाव्रत धार ॥ चित्तवृत्ति निःसंगता, मुनि जगत आधार॥पातप विवेक
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२२॥
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श्रुत अर्थधर, संयम यम धृतिध्यान ॥ प्रमुख गुणेकरी शोन्नता, तेहनें दीजें मान ॥ ६ ॥ अविर तेह प्रशंसियें, नत्तमजे गुणवंत ॥ पलितांकुर न प्रशंसी, श्मनांखे नगवंत ॥ ७॥
ढाल पहेली ॥ कोश्लो परवत धुंधलो रे लो ॥ ए देशी ॥ नक्ति करो गुणवंतनी रेलो, जिम थान गुणवंतरे भाइमा ॥ रत्नाधिकनें वांदतां रेलो, निर्जरा अर्थ एम रे नाश्मा ॥ नक्ति० ॥१॥ बाल ग्लानादिक साधुनां रेलो, संयम योग सीदायरेना यथायोग्य साहाज्य दिये रेलो, थिरकरि थविर कहाय रे ना॥ ॥॥ यतः॥ थिरकरणीपुण
रो, पंचतिव्वाचारिएसु अथ्थेसु ॥ जोजण्यसीयश्जई, संतबलोतं घिरं कुण ॥१॥ ढाल | तेहने शु६ अन्नपान ये रे लो, शुश्वसतिने पात्र रे भा॥ नैषज्य वस्त्रादिक दिये रे लो, करे विश्राaमण गात्र रे ॥ ना ॥ न ॥ ३॥ करे विनय पर्युपासना रेलो, देखी साहामो जायरे ॥ना॥ वलतां बोलावे वली रेलो, वाट देखामे आय रे ॥ नाणानामाआदर आपे नगीने रेलो, आसन मांमे आगरे ॥ना ॥ जोमीकरी विनयांजली रेलो, बोलावे नली वाण रे ॥ ना ॥ नायाबार आवर्त वंदणां रेलो, प्रधरिय नमाह रे ना॥ सुखसंयमयात्रातणं रेलो, पाये जे निर्वाह रे ॥ना न ॥ ६ ॥ यत्र कालदिकें रेलो, करे नक्ति उचित रे ना ॥ कर्त्ता सहु सुख श्रेयनुं रेलो, बोधबीज प्रापत्त रेना ॥ न ॥ ७ ॥ स्थविरत्नक्तिथी पामियें रेलो, शिवतरुनु ते बीजरे ना ॥
कोटवाल नयसारनी रे लो, परें लहे बोधबीज रे ॥ भा ॥ न ॥ ७॥ यतः ॥ वस्त्रं पात्रं नुक्त जापानं पवित्रं, स्थानं ज्ञानं नेषजं पुण्यहेतु ॥ ये यचंति स्वात्मन्नावैकसारं, ते सर्वांगे सौख्यमासा-JOD
दयंति ॥१॥ अर्थः-जे मनुष्यो, पुण्यकारणमाटे पोताना नावथी अत्यंत सार रूप अर्थात् एक स्वात्मजाव तेज जेनीअंदर साररुपले, एमजागी जेम बने तेम. स्थविर श्रमणादियोने वस्त्र, पात्र,
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वीशअन्नपान, पवित्र स्थान, ज्ञानना साधन रूप, पुस्तक अनै औषध विगेरे आपेले तेओ सर्वांग सुखने ।
स्थान पामेले ॥॥ढाल ॥ स्थविरक्तिलणी करे रेलो. दो सहस्रनो जाप रेना॥नमोलोए सव्वा साहूणं रेलो, जाये नवना ताप रे ना ॥ न ॥ ए ॥ सर्वजिने परिवारने रेलो, वांदे उलट आण रे ॥ ना ॥ सांप्रत समय विदेहमां रे लो, प्रवर्त्तमान गुणखाण रे ना ॥ न ॥ १० ॥ नत्कृष्ट बे कोमी केवली रे लो, बे कोमी सहस्र मुणिंद रे ना ॥ शुद्ध संयम पाले सदा रेलो, वांदे धरिय आणंद रे ना ॥ न ॥ ११ ॥ मुनिगुणनी अनुमोदना रेलो, करतां ते गुण होय रे ना॥ तेगुण साधु तणा सुणो रेलो, नाखो कशमल धोइ रे ना ॥ न ॥ १२ ॥ षट्वत षटकाय रकणा Nal
रेलो, निग्रह इंडी लोह रे ना ॥ नावविशुई पमिलेहणा रे लो, करण विशुदि सोह रे नान NI १३ ॥ संयम युक्त क्षमा धरे रेलो, मण वय काय जीपंत रे ना ॥ सीतादिक पीमा सहे रेलो,
सहे उपसर्ग मरणांत रे ना ॥ न ॥ १४ ॥ सत्तावीश गुण साधुना रेलो, अनुमोदना करे तासरे । Kalना ॥ कहे जिनहर्ष लहे घणो रेलो, एहथी लील विलास रे ना ॥ न ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ II पर्यायें विंशति वरस, आठ वरस वयमान ॥ श्राय श्रुते समयांगधर, स्थविरविद्या सुप्रधान ॥ १॥ SEL
थविर जेह त्रिहुँनेदनां, अन्नादिक ये तास ॥ बहु नक्तं वात्सल्यता, लहे नज्वल गुणवास॥२॥ Raटाली नीचैर्गोत्रने, पामे ते ततकाल ॥ तीर्थकर संपद यथा, पद्मोत्तर नूपाल ॥३॥ ढाल बीजी॥ रामचंके बाग, चांपो मोहोरी रह्योरी॥ एदेशी॥
॥३ ॥ इणहीज जरत मोझार, नगरी वणारसी सोहे ॥ घणा कण ऋदि समृद्धि, सहुजननां मन मोहे ॥१॥ पद्मोत्तर नूपाल, जस पाय नरिंद नमेरी ॥ निजमुख न्याय करंत,दूर अन्याय गमेरी
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॥ २ ॥ जीत्यो रूपें काम, तायें अनंग नयोरी ॥ जाको देखी प्रताप, रवि आकाश गयोरी ॥ ३ ॥ चंदमंगल मुखज्योति, सो तो बीन लइरी ॥ सुरपति सुप्रसन होइ, आपणी ऋद्धि दरी ॥ ४॥ गज अंगज मन जास, नारि श्रीनर मेरी ॥ स्वांतविना नृपगार, उत्तम गुण उपमेरी ॥ ५ ॥ पुनरपि शुनानिधान, सुंदर एक पुरी ॥ जय राजा करे राज, बहुत गजें तुरी ॥ ६ ॥ पद्मिनी जाणे साक्षात्, पद्मिनी तास सुता ॥ और कुमुदिनी नाम, शुनगुण रूपयुतारी ॥ ७ ॥ जास प्रबल सौभाग्य, भाग्य अनूप जरीरी ॥ गजपुर सिंहरथ राय, जीत्या सकल अरीरी ॥ ८ ॥ तसुघर कन्या दोइ, भोगावती पहिलीरी ॥ विक्रमेवती गुणवंत, सोहे रूप जलीरी ॥ एए ॥ कन्या धन्या चार, पद्मोत्तर नृप केरो, चित्रपट देखी रूप, मोहयो मन अधिकेरो ॥ १० ॥ आइ स्वयंवरा चालि, | सुकृत नदय करीरी ॥ पद्मोत्तर नृप चार, परणी प्रेम घरीरी ॥ ११ ॥ शोक परस्पर प्रीति, जानेके |सहु बहिनीरी ॥ द्वेष नही तिलमात, शोना बहु लहिनीरी ||१२|| मैत्र्यादि भावना सँग, ज्युं संयत व्रत पामेरी ॥ चार नारीशुं राय, त्युं सुख रति कामयेरी ॥१३॥ एकदिन कोशालनाथ, कामी सुग्रीव सुणीरी ॥ राणी रूप निधान, उपमा जास घणी ॥ १४ ॥ पद्मोत्तर सुखवास, जोगवे चार नारी ॥ इसी स्त्री नबे कोइ || त्रिभुवनमांहि नारीरी ॥ १५ ॥ | तेसुं लाग्यो मन राग, कांता कांति नली ॥ कुबुधी पठायो दूत, पतिशुं तुं मति मिलीरी ॥ १६ ॥ पद्मोत्तर नृप पास, दूतें वचन कह्योरी ॥ मंगावे सुग्रीव राय, तुज नारी मोरी ॥ १७ ॥ पद्मोत्तर कहे ताम, फूटो तास हीयोरी ॥ जे द्ये आपली नारी, धिग धिग तास जीयो ॥ १८ ॥ कामी देखे नाहीं, निशिदिन अंध मयोरी ॥ काढ्यो दूत विदारी, | निज प्रभु पास गयोरी ॥ १९५ ॥ वचन सुीयां दूत, राजा क्रोधें जार्योरी ॥ देइ नगारे जेरि, लशकर | सज्ज करचोरी ॥ २० ॥ चाल्यो नृप सुग्रीव, पद्मोत्तर निसुण्योरी ॥ सैन्य सज्यो तेरों नूरी, अहिपती
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वीशणसीस धूण्योरी ॥ १ ॥ आपण साहामां आश्, लशकर दोय मिल्यारी ॥ यु करे मली योध,
alकिणेही न जाये कल्यारी ॥ २२ ॥ रण दारुण जयो जेर, नासी सुग्रीव गयोरी ॥ नारी शील ॥३ ॥
नाव, नृप जयवाद नयोरी ॥ २३ ॥शील अधिक जगमांहि, शीलें नय नाजेरी ॥ कहे जिनहर्ष प्रताप, शीले जग गाजेरी ॥ ॥
॥दोहा॥ शीलें संकट सवि टले, शीलं टले कलेश ॥ शीलें जस कीरति घणी, वाधे देशविदेश ॥ १ ॥sa शीलें अरि पोहोचें नही, शीलें सीतल आग ॥ नूतन्नयंकर शीलथी, जय जाये सहु नाग ॥२॥
चारे शीलवती सती, चारे महिमावंत ॥ चारे गुणकामणे करी, वशकीधो निज कंत ॥ ३ ॥ मधु. salकर मोद्यों मालती, पलक न गेमे संग ॥ तिम राणीशुं रायनो, लागो रंग सुरंग ॥ ४॥ विषय सुखशुं राजा अपि, राची रह्यो चिरकाल ॥ मग्न अझ गयो रूपमें, चिंते नहीं नूपाल ॥५॥
ढाल त्रीजी ॥ फागनी देशी ॥ सुरती महीनानी ॥ एक दिवस राजाने,मलवा आव्यो कोय ॥शर्मा इंजालिक, विद्याधारक सोय॥फरिफरि जाये रायनें,आपे मुजरोतासाखडगपाणि नर,रुप कीयो नली आकृति जास॥१॥दोहा॥जास प्राकृति नली
देखी सोहे, जेहनुरूप सहु मांहे सोह॥वस्त्र आन्नरण अंगे बनाया, सहुसन्नामांहिं जाणे देव आया ॥२॥ bilu चाल ॥ दिव्यस्त्री एक पासे, सासे अद्भुत रूप ॥ साथे ले राय सन्नायें, नेव्यो जाई नूप ॥तहनें देखी राय, कहे कोण ने तुं वीर ॥ ए युवती मन गमती कोण ले साहस धीर ॥३॥
Salm३॥ ॥चोपाई॥ कोण कामनी साथै दीसे, जेहनें देखतां नयणां हीसे ॥ रंना किंवा कामनारी, किसी
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निपमा एहनें देनं विचारी ॥॥ चाल ॥ किसे प्रयोजन तुं, आव्यो दरबार मोकार ॥ करजोमी निजशीष नमावी, कहे तेह तेणिवार ॥ हुँ विद्याधर बुं महा, राय मणिप्रन नाम ॥ एह सुलोचना प्राणप्रिया, माहारी सुखगम ॥५॥ सुखतणी गम ए मुजनारी, एह नारि घणी मुज्ज प्यारी
एहविना जे दिन रात जाये, मुजन्नणी तेह षटमास पाये ॥६॥ एहनो विरद वियोग, खमी न salशकुं क्षणमात ॥ एहनें राखू नयणा, आगल हूं दिनरात ॥ महारुं ए जीवन, एहनुं है जीवन
प्राण ॥ पारेवा पारेवी, नीपरें प्रीति सुजाण ॥ ७॥ जाणे लीलावनें ख्याल कीजें एह जातीहती घणेकसाजे॥ माहरो अरी वजदाह नामें, खेचरे ए हरि नोग कामें ॥ ७॥ ते विद्याधर साथै, करी संग्राम नरेश ॥ बाली ए सुकुमाली, वाली यौवन वेश ॥ ते वैरी मुजने इहां, हणवा आवे ने राय|कोपतणा आटोप नरयो,हीयमे न समाय ॥ ए॥ तेह न समे किमे कोपनरीयो, तास नलव्यो । बल जाणे दरीयो॥ तेनणी माहरी एह नारी, सरण राखो तुमे कृपाधारी ॥ १० ॥ एहवो न को नही जिहां, राखु सुंदर नार ॥ एहवी नारी देखी, सहूनें वधे विकार ॥ तुं राजसर Nal श्सर, परनारीनो वीर ॥ तुजगुण गंगाजल, नज्वल निर्मल जिम खीर ॥ ११॥ यतः॥ शास्त्रंसुनिश्चितधिया परिचिंतनीयं, स्वात्मीकृताऽपि युवतिः परिरहणीया, ॥ आराधितोऽपि नृपतिः परिशंकनीयः, शास्त्रे नृपेच युवतौच कुतःस्थिरत्वं॥१॥अर्थ-सारीरीते निश्चित बध्विमेशास्त्रनं परिचिंतन करवू अर्थात् शास्त्रसारीपेठे विचारेलुं होय तो पण तेनुं वारंवार मनन करवं, पोताने आधीन करेली स्त्री- पण चोतरफथी रक्षण करवं, सारीरीते सेवेला राजानी पण शंका राखवी; शास्त्र, राजा, अने युवान स्त्रीने विषे स्थिरपणुं क्यांधी होय ? एटले ए कहेली वस्तुओ वश प्रश्ने एम जाणवू नहि. ॥१॥
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वीशण
॥ चोपा॥
स्थान Salनिर्मला गुण विचारि, ताहेरि शरण एह माहारी ॥ तेह अरिसाथ रण करण जावं, तुम सुप्रसाद Isalजसवाद पानं ॥१५॥ चाल ॥ एहवं कही नारीने, मूकी राजा पास ॥ तेह गयो क्षणमांहिं, क्यायहीं धरिय नल्लास ॥ बहिनतणीपरें करी नृप, थापी निजआवास ॥ तेटले नन्न मंगलथी, चरण Na
पड्यां नूर तास ॥१३॥ नुजदंग परचम पमीयां, अंग सहु वृतफल जेम जमीयां ॥ रायदरबारमें । सहु देखे, अयो विस्मय सहुने अलेखे ॥१५॥ चाल ॥अंगतणा अवयव, देखी विद्याधर नार ॥ ओलखीया निजपतिना, यतना करि तिणवार ॥ ते नारि नगी, जूठी करि सबल पोकर ॥ मूरी रे
९ मूठी, मूओ मुज जरतार ॥१५॥ दोहा ॥ माहरा पति तणां, अंग ए नूपति, एहने साथै हवे,याSalश हुं सती ॥ काष्ट चित्ता तुमे मुज करावो, वार सुविचार प्रन्नुजी म लावो ॥ १६॥ चाल ॥
राजामात्य प्रमुखनी, आज्ञा ले तेह ॥ अग्नि प्रवेश करीने, बाली बाली देह ॥ विस्मय धरतो, दुख्ख, करतो, नृप बेठो जाम ॥ धसमसतो हसतो, विद्याधर आव्यो ताम ॥१७॥ तामते कामनी राय पासे, आवी मागे प्रिया द्यो नलासें ॥ राय मन खेद पामी विमासे, एह तो वात दीसे तमासे ॥ १७ ॥ विद्याधर आगले सहु, नाखी वात विशेष ॥ तुजके तुज नारी, कीधो अगनि प्रवेश ॥ तीव्रदुखार्त श्रइ, विद्याधर नाखे ताम ॥ तुम सरिखा शरणागत, वत्सल करुणा धाम ॥ १५ ॥ न्यायनी रीत तुं राय जाणे, तुज नणी लोक न्याये वखाणे ॥ शेष जिम नु नार साहे, तेम तुं धरणीनो नार वाहे ॥ २० ॥चाल ॥ मोटा जेह महोत, बोले किम वाचा तेह ॥ वाचा खेमे नही किमही, जो मे निज देह ॥ लोक सहू ताहरे, आधार विचार नरेश ॥ तुं जगबंधव न्याय,
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धरमनिधि तणो निवेश ॥ २१ ॥ लाजीयो राजीयो चित्तमाहे, वचन सुणि तेहना हृदय दाहे ॥ प्रतिवचन तास न शकंत देश, राय जिनहर्ष बहु शरम हो ॥॥
॥दोहा॥
ततकण ते बाला तिहां, बालादित्य समान ॥ विस्मय करती सह नणी. आवी जाणि निधान ॥१॥ निजपति वामांगें जश्, नन्नी तरुणी तेह ॥ राजा पूजे नरनणी, किशो कीयो ते एह Son॥ तुजने नृप प्रतिबोधवा, विद्या कीघी एह ॥ विषय माहे राची रह्यो, नारी रूप गुणेह ran ३॥ दृष्ट नष्ट कण एकमां, नृप जिम ए इंजाल ॥ तिम स्त्री राज्य विनूति ए, पाये सहु विसराल ॥४॥ आपण नोग न गेमीयें, रहीये तेहसुं लाग॥ तो गेमे आपण नणी, तेहरों केहवोराग sa
___ ढाल चोथ॥ रागमल्हार ॥ चिंतामणि महारी चिंता चूर ॥ एदेशी॥ | राजा मनमां धरयो संवेग, राणी सुख जाएयो नदवेग ॥ जेहवू दीवुमें इंजाल, तेहq ए सहुत सुख विसराल ॥१॥ कोमी सोनैया दे तास, जालकनी पूरी आश ॥ अन्यदिवस तेणे नगरी
नद्यान, आव्या देवप्रन्न सुरिप्रधान ॥॥ राय चाल्यो नमवा गुरु पाय, नगरलोक पण साधे श्राय॥ valतीन प्रदक्षिण दे नूप, बिधिशुं वांद्या चितनी चूंप ॥३॥ आगल बेग लोक नरेश, मधुरस्वरे मुनि Nो नपदेश ॥ जिम बपैयो पामी मेह, हरखे तिम हरखे सहु तेह ॥४॥ यथा ॥ लज्जातो नयतो sal
वितर्क विधितो मात्सर्यतः स्नेहतो, लोनाद्येच हानिमान विनयात् शृंगार कीादितः॥ दुःखात्कौIsal तुक विस्मयाद् व्यवहृते वात्कुलाचारतो, वैराग्याच नजति धर्मममलं, तेषाममेयंफलम् ॥ ५॥
लाजथी.नयथी वितर्कना प्रकारथीएटतर्कवितर्कथी.मात्सर्त्यथीतांपारको नत्कर्ष सही काय Salनहि तेाश्री, स्नेहश्री, लोनश्री, हठी, अनिमानश्री, विनयथी, शृंगार अने कीर्ति विगेरेश्री, एटले|
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वीश
॥३७॥
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शारीरीक शोजाना रजोगुणथी के कीर्ति वधे ते आदि हेतुप्रथी, दुःखथी, कौतुकश्री के रमुजी थी, कोइ कोइ विस्मय आश्चर्यथी, व्यवहारथी, जावथी, के कुल परंपराना आचारथी, अने वैराग्यश्री निर्मल धर्मनुं सेवन करे बे, तेमने अप्रमेय (मली शके नहि ते अपार) फल मले बे. पूर्वढाल ॥ धर्म सुण्यो दीठो पण जोइ, कृत कारित अनुमोदित हो || राजा सुलि पावन करे एह, आसप्तम कुल नहिं संदेह ॥ ६ ॥ सांजलि मुनिनी देसा सार, मनमां हरख्यो राय अपार ॥ करजोमी मोमी निजगात, पूरव नवनी पूबे वात ॥७॥ पुण्य कीयुं पूरवजव किशुं, राज्यतणुं सुख पाम्यो इश्युं ॥ ए रमणी ए लील विलास, जेहथी पूगी मननी श्राशा। गुरु कहे ताहरु निसु वृत्तंत, नंदनपुर शंख इन्य रहंत ॥ तासघरें तेनो तुं दास, नंदन नामें उत्तम वास ॥८॥ विकसित अंबुज व्रज संघात, गृहप्रत्ये दीगे तुजनें जात ॥ तेह | कमल देखी गहगहे, चार कन्या तुजनें इम कहे || || कमल विमल सौरन संभार, एहनें हस्त कमलबे | सार ॥ अरिहंतनी पूजानें योग, एह कमलनो थाये जोग ॥१०॥ शांतात्मा सुरा वचन विलास, नंदन वचनो जाखे तास ॥ जलुं नलुं तुमें बोल्याएह, एह वचनशुं अधिक सनेह ॥ ११ ॥ अंघोली तनु निर्मल एह कीयो, कन्या वचनें प्रति प्रेरियो || श्री जिनवरनी पूजाकरी, निर्मल नाव हृदयमां घरी ॥ १२ ॥ बीज सुठामें वाव्यं यथा, जल सुवायुनें योगें तथा सहस्र गुणुं जिम वाधे धान, तिम नांवें पूजा सुप्रधान ॥ १३ ॥ यतः ॥ श्रेयस्तनोति दुरितानि निराकरोति, लक्ष्मीं करोति शुनसंचय मात नोति ॥ पूज्यत्वमानयति कर्मरिपून्निदंति, पूजा जिनस्य रचिता निजभावसारं ॥ १ ॥ अर्थःजेम बने तेम पोताना उत्कृष्ट जावधी रचेली ( करेली ) श्री जिननी पूजा, कल्याणनो विस्तार करेबे, पापनुं निराकरण करेबे, लक्ष्मीनी वृद्धि करेबे, पूण्यसंचयनो वधारो करेबे, पूजनीयपणुं प्रपे बे, अने कर्मरूप शत्रुओने इले बे. ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ करि तास अनुमोदन रही, कन्या चारे मन
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स्थान
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गहगई ॥ तिरों पुण्यें नृप थयो विचार, चार थइ ए ताहरी नार ॥ १४ ॥ अल्पधर्म पण जाव सहित, जो कीजें करीरी निर्मल चित्त ॥ परजव पामे सुखनी श्रेया, त्रिभुवन पूजा लहे गुण तेा ॥ ॥ १५ ॥ गुरुनां वचन सुखी ततखेण, जाति समरण पाम्यो तेल || पाम्यो तत्क्षण नृप संवेग, गुरु वांदी श्राव्यो घर वेग ॥ १६ ॥ पद्मशेखर नामें सुतजेह, निजपाटे थापी लेई तेह | सहु चैत्य जे जिनवर तरणा, की अठ्ठाइ महोत्सव घणा ॥ १७ ॥ दीक्षा लीधी दयिता साथ, करी महोत्सव गुरुनं हाथ || जलिया रिखी इग्यारह अंग, विधिशुं हृदय घरी नवरंग ॥ १८ ॥ निजगुरुपासें सुयो विचार, ज्येष्ट भक्ति जवफल तिथिवार ॥ वय पर्याय सूत्रार्थ गरीष्ट, तपसीनी करे भक्ति विशिष्ट ॥ ॥ ११५ ॥ बोकी कपट निपट अहंकार, तेहनें थाये लान अपार || क्लिष्ट कर्म निःशेष पखाल, निर्मल आत्मा करे ततकाल ॥ २० ॥ नच्चैर्गोत्र आस्वादी स्वच्छ, पामे तीर्थकर पद लबि ॥ अजर अमर स्थानक ते लहे, कहे जिन हर्ष सुगुरु इम कहे ॥ २१ ॥
॥ दोहा ॥
सांजलि मुनिवर एह, हृदय घरी बहु प्रीत ॥ लीधो अनिग्रह एहवो, मुनिवर चोखे चित्त ॥ १ ॥ प्रथम ज्येष्ठ अणगारनी, जोजन भक्ति करेह ॥ त्यार पटी जोजन करूं, निश्चय एम धरेह ॥ २ ॥ नक्ति यथाशक्त करूं, मुनिवर तणी विशेष ॥ अन्न पान औषध प्रमुख, जीवुं तां निःशेष ॥ ३ ॥ यति प्रशंसा सदु करे, गुरु पण करे प्रशंस ॥ धन्य धन्य महानाग्य तुं, तें नजवाल्यो वंश ॥ ४ ॥ गतिसारी मति तुज ती, जली नपनी एह ॥ आपे गुरु आदर घणो, वाघे गुणें सनेह ॥ ५ ॥ ढाल पांचमी ॥ सुमेरी सजानी रजनी न जाये रे ॥ ए देशी ॥ जे जे वे मुनि गुजरीया रे, ज्ञान चारित्र दर्शन दरीयारे ॥ वचसा तपसा श्रुत संपूरा रे,
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वीश
॥३८॥
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| उपसर्ग परीसह सदेवा शूरा रे ॥ १ ॥ आपे तेहनें आहार पाणी रे, नवनव औषध नेषज प्राणी रे ॥ वस्त्र पात्रादिक जे जोइजें रे, राजऋषीश्वर मन नवि खीजे रे ॥ २ ॥ जे जे मुनि मागे ते ते आपे रे, संयमयात्रा थिरकरी थापे रे । दिनदिन नयम चमते चरुतो रे, मन परिणाम न थाये परुतो रे || ३ || एकदिवस सुरपति सुरमांहे रे, स्तुति करे मुनिनी मन नमांहे रे ॥ सुपि रत्नांगद देव सुहृष्टि रे, साधु भक्ति जेहनी उत्कृष्टि रे ॥ ४ ॥ देमांगद मिथ्यात्वी सुरशुं रे, जइ परिक्षा आपण करशुं रे ॥ आव्या भुवि नर रूप करीनें रे, पोतनपुरवर चित्त घरीनें रे || || राज ऋषीश्वर देखी जाखे रे, मित्रनली हेमांगद दाखे रे ॥ सर्व तपोधन जगमां जोतां रे, काया राखे शुचिजल धोतां रे ॥ ६ ॥ दुःकरव्रत पाले ब्रह्मचारी रे || नहीं परिग्रह ममता अधिकारी रे || रावनवासी रहे। नदासी रे, बेपरवाहि सदा निरासी रे ||७|| जैन मुनि सहु दीसे माग रे, शौचाचार थकी नपराग
॥ बाहिर मांहे मेला दीसे रे, एहवा देखी मन किम ही से रे ॥ ८ ॥ हसीकरी रत्नांगद बोले रे, रहे तुं नाइ मूरख तोले रे | अज्ञानी अवतीने वखाणे रे, मुनीता गुएा तुं नवि जाणे रे || || क्षमा दया गुण एहमां लहीयें रे, तप जप संयम शुं सुपवित्र कहीयें रे ॥ शिव तपस्वी अधिक कहावे रे, मुनिनी शोलमी कलायें नावे रे ॥ १० ॥ निंदास्तुति बे जानी जाए। रे, राज ऋषीश्वर मनमां नाणी रे ॥ कोप न कीधो तपक्षय कारी रे, राग न आण्यो बंध विचारी रे ॥ ११ ॥ कीर युगलनो रूप बनायो रे, शौच तपस्वी पारों आयो रे || सूमी आागल जाखे सूमो रे, ए तापसनो तप बे कूको रे ॥ १२ ॥ तपोधन ए शैव कहावे रे, अविवेकी स्त्री पासें रहावे रे ॥ जक्ष्य अनयनो भेद न जाणे रे, पशूपमान करुणा ना रे ॥ १३ ॥ क्रूर वचनें शुके निंदा कीधीरे, तापसनी मति कालि करी दीधी रे ॥ एह वचन सुणि क्रोध वधारयो रे, कोपें शैवें सूमो मारयो रे ॥ १४ ॥ वचन कहे
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॥३८॥
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रत्नांगद मोगं रे, शैव जैन मुनिना गुण दीग रे ॥ कोमी वरस अर्जित तप बाले रे, हिंसा क्रोध वन्हि मुनि टाले रे ॥ १५ ॥ देवमायायें बहु नपसर्गा रे, आपे मुनि कोमे कर्मवर्गा रे ॥ ज्येष्ट नक्तिथी किमही न चुके रे, लीधो पण सापुरष न मूके रे ॥ १६ ॥ मिथ्यात्व मोहनीनो कय कीधो रे, नपशम योगें समकित लीधो रे ॥ हेमांगद थयो धर्मनो रागी रे, मिथ्यात्वी उपर रुचि नागी रे ॥ १७ ॥ प्रत्यक्ष अ सुर मुनि पाय लागे रे, समतासागर तुज गुण जागे रे ॥ सुरपति ताहारी ख्याति वधारी रे, अमे परीक्ष्यो तुं गुणधारी रे ॥ १७ ॥ श्म कही पोहोता ते निजगमें रे, मुनि वात्सल्य करे हित कामें रे ॥ तीर्थकत्कर्म बांधी वैरागीरे, सुरथयो शुकें अति वमन्नागी रे ॥ १५ ॥ तिहाथी चवी महाविदेह मजारी रे, पद्मोत्तर लहेसे अवतारी रे॥श्रीअ-IA रिहंतनी पदवी पामी रे, मुगति तणां सुख लहेशे स्वामी रे ॥ २० ॥ श्म सांजली वृक्ष वात्सल्य की रे, पद्मोतरनी परें फल लीजें रे॥ साधुन्नक्तिथी बहुगुण लहियें रे, कहे जिनहर्ष सदा गहगहीयें रे॥१॥ इति पंचम स्थानके पद्मोत्तर नृप कथा समाप्ता॥
अथ षष्ट स्थानके महेंपालनृपकथा प्रारंनः॥
॥दोहा॥ हवे उठा थानक तणो, सान्नलजो अधिकार ॥ पाठक आचार्यादि सहु, बहुश्रुत जे अणगार॥१॥ विधिशुं वात्सल्य कीजीयें, तिहां श्रुतना बे नेद ॥ बशबद्ध वखाणिया, मनधरी टालो खेद ॥२॥ श्रुत उवादस अंगजे, ब कहीजें तेह ॥ महानिशीथ निशीथ वलि, नेद अब लहेह ॥ ३ ॥ जे श्रुत गुरुपासें नणे, विधिशुं योग वहेय ॥ उद्देश समुद्देश आगन्या, पूर्वक विनय करेय ॥४॥ कालिक नत्कालिक वली, वहु सूत्रार्थ बेनेद ॥ अंग अनंग प्रविष्ट मुख, कह्या अनेक सुन्नेद ॥५॥ते
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॥३८॥
सूत्रार्थ प्रधीत जे, बहुश्रुतते सुविवेक ॥ द्वादशांग दश पूर्वधर, आदिक जेद अनेक ॥ ६ ॥ तेहनी नक्ति करे जली, वस्त्र पात्र अन्न पान ॥ यथा उचित दानें करी, पोषे देइ मान ॥ ७ ॥ रामो नवद्यायाणं तथा, रामो चनद्दस पुवीण ॥ ए पदनो गुणलो करे, दोय सहस्र प्रवीण ॥ ८ ॥ विधिवंदन विश्रामणा, आपे बहु सनमान ॥ नामकर्मोदय तीर्थकर, थाये नृदय प्रधान ॥ ए ॥ भक्ति करे बहुश्रुत तणी, जली वस्तुशुं जेह ॥ महेंद्रपाल नृपनी परें, जिनपद पामे तेह ॥ १० ॥
ढाल पहेली ॥ ते मुज मित्रामि डुक्करुं ॥ एदेशी ॥ अथवा ॥ हवे राणी पद्मावती ॥ देश ॥
सोपारक पाटण नलुं, इणी जरत मोकार || महेंइपाल राजा तिहां, बहुविद्या आधार॥ सो॥१॥ मिथ्यात्वी दर्शन तथा नृप जणी या ग्रंथ । विनयी गुरु सेवा करे, चाले तेहनें पंथ ॥ | सो० ॥२॥ कला कुशलपण तेहवो, तेहनो परिवार ॥ राय जिसो परजा तिसी, लोकोक्ति विचार ॥ सो० ॥ ३ ॥ सद्गरु योग अनावश्री, माने मिध्यात् ॥ पंचनूतथी नृपजे, आतम ए वात ॥ सो॥४॥ यतः॥ विना गुरुन्यो गुण नीर - धिन्यो, जानाति धर्म न विचक्षण । पि ॥ आकर्ण दीर्घोज्वललोचनोपि, दीपं विना पश्यति नांधकारे ॥ १ ॥ | पूर्वढाल || वाचाथी वाचस्पति, सरिखो परधान ॥ जिनधर्मी पूतातमा, नृपनुं बहुमान ॥ सो० ॥५॥ तास सहोदर शुनमति, नामे श्रुतशील ॥ प्राणथकी पण वालहो, नृपर्ने सुखसलील || सो० ॥ ६ ॥ गान करंती एकदा, मातंगीनी नार ॥ कानें कुंरुल कनकना, दामिनी चमकार || सो० ॥७ ॥ मुख पंकज पंजक इसे, रूपें सुरनार ॥ राजा देखी मोहियो, व्याप्यो तन मार ॥ सो० ॥ ८ ॥ इंगित नाव जाएगीकरी, श्रुतशील नरेश | मीठो अमृत सारिखो, आपे नपदेश || सो० ॥ ए ॥ जे नर उत्तम वंशना, कामे नीच नार ॥ लहे नीच गति ते सही, पूरयों पातक भार ॥ सो० ॥ १० ॥
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॥३॥
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मंदिर व्यसन निवासनुं, कज्जल कुल श्याम ॥ परनारी संग बोकीयें, जेअपजसनुं गम ॥ सो० ११ राजा वारे अन्यनें, जो करे अन्याय ॥ राजा नीति चाले नहीं, कोने कही यँ जाय || सो० ॥ १२ ॥ रूप श्रयुं तो शुं थयुं, पण ज्ञाति सोपाक || मीगं सुंदर दीसतां, पण विष किंपाक ॥ सो० ॥ १३ ॥ संग इसो ए नारिनो, जेहवो कौंचनो संग ॥ इह परभव दुःख पामियें, अपवित्र दुवे अंग ॥ सो० १४ ॥ तोपण कामदवालिए, तपियुं नृप मन्न ॥ वचनजलें बांटयुं घणुं, टाहाडुं न श्रयुं तन्न || सो० ॥ १५ ॥ राज्यातली अधिष्ठायिका, समरी मंत्रीस ॥ देवीयें रोगें रायनें, पीमयो निसिदीस ॥ सो० ॥ १६ ॥ तेरो रोगें पीड्यो को, नृप करे विलाप ॥ तापें जिम जख टलवले, मातुं जाएयुं पाप || सो० ॥ १७ ॥ राजा विरम्यो पापथी, जाएयो मंत्री जाम || देखी कीधो रायनें, निरोगी वली ताम ॥ सो० ॥१८॥ राजा चिंते मन तणुं, लागुं मुज पाप ॥ कहे जिनदर्ष फिरी फिरी, करे पश्चात्ताप ॥सो गाणा ॥ दोहा ॥
धान, पापापम् नृपाय ॥ श्रुत शील सलीलसुं, सांजल श्रीमहाराय ॥ १ ॥ लोक कहे लौकी कमें, जलनां तीर्थ अनेक | काय शुद्ध श्राये तहीं, स्नान कीयां अविवेक ॥ २ ॥ अंतर्गतनां पाप जे, जलधोयां नवि जाय ॥ सुरानांगणी परें, प्रशुचि जावे न राय ॥ ३ ॥ तथापि पंमित पांचशे, पूबेवा परजात ॥ श्रात्म पाप उतारवा, निर्मल करवा गात ॥ ४ ॥ प्रात समे तेम | वीया, पंकित सना मोकार ॥ पाप मुक्ति पूढे नृपति, ते बोल्या तेशिवार ॥ ५ ॥
ढाल बीजी ॥ वात न काढो हो व्रततणी ॥ ए देशी ॥
राय सुलोपंति कहे, गंगाजलमां न्हायें रे ॥ गंगानुं पाणी पीयें, पातक दूर पलाये रे ॥ राय० ॥ १ ॥ वेद पुराण सुगो कथा, अग्निहोम जो कीजें रे || शास्त्रोदित दानें करी, पातक दूर
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वीण गमीजें रे॥राय॥२॥ नर्मदानी माटी तणो, काया लेप करीजें रे॥ व्रतपालीजें तपकीजें, कष्ट स्थान
कायाने दीजें रे ॥ रा ॥३॥ अमश तीरथ जो करे, अमदधान जो खायेरे॥पापकर्म कादव अकी, ॥४ ॥
Relप्राणी निर्मल पाये रे ॥रा॥४॥ ते जन पापथी शुभ होवे, दाने हिंसाकारी रे॥ जाये पाप प्रबSalनता, मन पातक तप हारी रे ॥रा० ॥ ५ ॥ सोम सूरज वायें करी, मारगनी शुद्धि पाये रे ॥ गात्र Valशुद्धि निर्मलजलें, सत्ये मन अघ जाये रे ॥रा॥६॥श्म अनेकविधि पंमितें, नृपनें कही देखाडी
रे ॥ सम्मत मत ए तुम तणो, केम कहो संन्नाली रे॥रा ॥ ॥ तेह कहे राजा नणी, साचोए Raअवधारोरे॥शास्त्र तणी रीतें की,मननोनरम निवारो रे॥रा ॥तास परीक्षाकारणे, अन्य दिवस
नृप लासे रे ॥ दुग्धकुंभ पुण्य कारणे, मगावी विप्र पासे रे ॥ रा ॥ ए ॥ लोने दोन्नानृत
हीया, अंगकुंन्न सह लेश रे॥ रात्रं मूक्या नृप घरे, तुल्य बुद्धि आवे रे ॥रा ॥१०॥ पाणी Ralप्रात निहालियो, राजा सहुने नाखे रे ॥ लोग्नें श्रया सहु आंधला, कपटी लज्जा पाखें रे॥ राण NOT११ ॥त्रपा नही तुमनें किसी, वचनशुदिकिम लहिये रे ॥ मूढ बुद्धिना तुमे धणी, साचा कीम
सदहीयें रे ॥१२॥ तिणे अवसरें तिणे पुरवा, श्रीषेण मुनिवर आया रे ॥ महिमोदधि । Nalगुणसागरू, सेवे मुनिवर पाया रे ॥रा ॥१३॥ राजा आव्यो वांदवा, हयगय बहु परिवारे रे ॥
पाय नमी देसन सुणी, वचनते हियो धारे रे ॥रा ॥१५॥ करजोमी नृप वीनवे, तुमने पूडं
स्वामी रे ॥ मन पातक केम बूटिये, दाखो अंतर्यामी रे ॥राण ॥१५॥ शुद्वि कही बे प्रकारनी, Nalबाह्य अन्यंतर काय रे ॥ बाह्य शुद्धि जल जम कहे, अंतर शुद्धि न थाय रे ॥राण ॥ १६ ॥ माटी
जल अग्नियें करी, धर्म शोधन नवि थाये रे ॥ ज्ञान ध्यान तप पाणी, शोधन पाये प्राये रे ॥ रा Man१७ ॥ सत्यबुद्धिशुड़ितपतणी, इंघिय निग्रह करीयें रे॥करुणा सह प्राणी तणी, ए शुहि मन ।
॥४
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धरिये रे ॥ रा० ॥ १७ ॥ कामराग मद मोहिया, नारी मोहं वींध्या रे ॥ जलें न शुद्धि तेहनी दुवे, स्नान तीरथ सदु कीधां रे ॥ रा० ॥ १७ ॥ अंतरना मल शोधवा, ज्ञान क्रिया जिन दाखी रे || नाव तीरथमां फीलीयें, त्रिकरण शुद्ध राखी रे ॥ रा० ॥२॥ यतः ॥ आलोचना निंदनगर्हणानिः, सम्यक् क्रिया बोधतपोनिरुयैः ॥ तत्पापकर्मा स्रजत स्त्रिधापि, स्मादुर्विशुद्धिं खलु दुष्कृतानां ॥१॥ अर्थः- मन, वचन अने काया एत्रएयश्री पापकर्म करनार मनुष्यनां दुष्कर्मोनी, शुद्धि आलोचला, पोतानी निंदा अने पोतानी गर्हणा ए त्रण प्रकारथी, अने सम्यक् क्रिया, ज्ञान अने नम्र एवा तप वने ते प्रथम कहेला दुष्कृतनी शुद्धि श्रायबे एम ज्ञानि पुरुषो कहेबे. पूर्व ढाल || न करे याश्रव सेवना संयम निर्मल पाले रे ॥ समता मुनि मनमां घरे, क्लिष्ट करम सहु टाले रे ॥ ० ॥ २१ ॥ संवरधारी तपकरे, आाठ करम मल धोवे रे ॥ कहे जिनहर्ष विशुद्धता, मुहूर्त्त मांहे होवे रे || रा० ॥ २२ ॥
॥ दोहा ॥
सांगली गुरुनी देशना, अमृत पान समान ॥ श्रुत शीलं संयम ग्रह्यो, संवेगी शुभ ध्यान ॥ १ ॥ दीक्षा लीधी सांगली, मुज सुत शील प्रधान ॥ देषधरि गुरु नपरे, दुर्गति तणुं निदान ॥ २ ॥ मुहूर्ते प्रतिबोध करी, उतारयो नृप रोष ॥ आव्या तिरापुर अन्यदा, चारित्रधर निर्दोष ॥ ३ ॥ सीतलचंद्र तणीपरें, पाले शुद्ध आचार ॥ आचारज श्रुतकेवली, समंतन अणगार ||४|| मंत्री प्रेर्यो रायते, श्राव्यो गुरुनी पास | पाय नमी श्रीसूरिना, बेगे घरी उल्लास ॥ ५ ॥
ढाल त्रीजी ॥ साधुजी जले पधारया आज ॥ ए देशी ॥ • अथवा प्रचित्त धरीनें अवधारो मुज वात ॥ ए देशी ॥
परषद बेटी बहुपरेंजी, गुरु आगल सुसनेह ॥ गाजे मिष्ट स्वरें करीजी, जिम. आशाढी मेह ॥ १ ॥
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वीश ॥४१॥
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सुगुरुजी आपे धर्मोपदेश, सांजले लोक नरेश ॥ सु० ॥ ए आंकणी ॥ मत्तयश्व कुंजरवराजी, राज्य तथा सुख जोग ॥ रमणी गयगमणी जलीजी, गमता सुत संयोग ॥ सु० ॥ २ ॥ कानें कुंरुल रयणनांजी, घरणे नूषित अंग ॥ धर्मतणां फल ए सहुजी, दिनदिन नवला रंग ॥ सु० ॥ ३ ॥ धर्मथकी धन संपजेजी, धर्मै लील विलास ॥ धर्मे काया निर्मलीजी, धर्मे पूगे आस ॥ सु० ॥ ४ ॥ धर्मे मंदिर मालियांजी, धर्मे गोख आवास ॥ धर्मे बंधव मन समाजी, धर्मै सहु जगदास || सु० ॥ ॥ ५ ॥ जेही सहु सुख पामियेंजी, राखे तेहशुं प्रीति ॥ तेह कृतज्ञ शिरोमणीजी, तेहनी नत्तम रीति ॥ सु० ॥ ६ ॥ धर्म करे जिनवरतणोजी, मनमें धरिय नष्ठांहि ॥ तेहनगी साहाज्य करेंजी, ते मोटा जगमांहि ॥ सु० ॥ ७ ॥ धर्म करे ते नरमणीजी, मूढ करे अंतराय ॥ द्वेष वहे ते नृपरेंजी, ते दुख जाजन थाय ॥ सु ॥ ८ ॥ धर्म करे करतां जणीजी, जेह करे नजमाल ॥ ते पामे सुख संपदाजी, जोगोपभोग विशाल ॥ सु० ॥ ए ॥ स्वछ कलेवर ज्यां लगेंजी, जां इंप्रिय नही हीएए ॥ जरा वेगली ज्यां लगेंजी, ज्यां लगेंगे प्रयु न खीएए ॥ सु० ॥ १० ॥ व्याधि वधी नहीं अंगमैजी, धर्म यतन करो ताम ॥ घरलागुं कून खणोजी, ते उद्यम किा काम ॥ सु० ॥ ११ ॥ वाणी गुरुनी सांजलीजी, मीठी अमृत प्राय ॥ जयंतकुमर राज्यें या पियोजी, उत्सव पूर्वक राय ॥ सु० ॥ ॥ १२ ॥ महेंपाल नृप मंत्रीशुंजी, गुरु चरणे प्रवेय ॥ चित्तचोखे चारित्र ग्रहयुंजी, मुक्तिपंथ पाथेय ॥ सु० ॥ १३ ॥ राज्य ऋषीश्वर गुरु कन्हेंजी, नलियां अंग इग्यार ॥ गीतारथ जाण्या सहुजी, निश्वयनय व्यवहार ॥ सु० ॥ १४ ॥ गमांहे मुनिवर घणाजी, तपसी | बहुश्रुतवंत ॥ धर्मोत्सुकराजेश्वरुजी, दया विनय विलसंत ॥ सु० ॥ १५ ॥ महेंद्रपाल ऋषि अन्यदाजी, देशना देता सार || विधिशुं वीश थानक तलोजी, गुरुमुखें सुल्यो विचार ॥ सु० ॥ १६ ॥
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॥४१॥
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हरको ए माहेलोजी, जो आराधे एक, सम्यक नाव धरी करीजी, आणी दिये विवेक ॥ सुस valu१७॥ निःकंपोदय संपदाजी, श्रीजिनवरनी तास । नत्तम पुण्य प्रत्नावश्रीजी, वश थाये सुवि
लास ॥ सु॥ १७ ॥ श्रीगुरु वचन दिये धरीजी, कृत मुनि अनिग्रह नीम ॥ बहुश्रुतनुं वात्सल्य करुंजी, जां जीवं तां सीम ॥ सु ॥ १५ ॥ पूरवधर बहुश्रुत नणीजी, वस्त्र पात्र अने आहार ॥
औषध नैषज जोश्येंजी, ते आपे असगार ॥ सु ॥ २०॥ नावें करे विश्रामणाजी, करे वैयावच salसार ।। राज ऋषीश्वरसोद्यमीजी, कहे जिनहर्ष विचार ॥ सु॥१॥ सर्वगाथा ॥२॥
॥दोहा॥ । शक्रसन्नामां अन्यदा, कीधी धनद प्रशंस ॥ महेपाल राजा तणी, धन्य ऋषी अवतंस ॥१॥ धन्यगृही घर जेहनें, पगलां करे मुनीं६॥ पवित्र करे शुक्षतमा, श्रुतधर सुगुण यती ॥२॥ धनधन तेपण राजऋषि, श्लाध्य जनम महानाग ॥ बहुश्रुत मुनिवरर्नु सदा, करे वात्सल्य संन्नाग ॥३॥ पामी पात्र सुन्नावशें, आपे जे आहार ॥ सद्गतिर्नु बंधन करे, सफल करे अवतार ॥४॥
ढाल चोथ। ॥ अढीयानी देशी ॥ val धनद वचन सुणी ताम, मुनिवरना गुणग्राम ॥ देखू तो खरुंए, जश् परीक्षा करूं ए॥१॥ देव ।
प्रश्न शाह, नज्जेणीपुर मांद ॥ घेर ले रह्यो ए, वहु आदर लह्योए ॥२॥ कोश्क मुनिवर ग्लान, कोहला पाक प्रधान, तेहनें कारणे ए, मुनि चल्यो हितघणेए॥३॥र्याशुं मुनिराय, तेह तणे घर जाय। धर्मलान तसु दीयोए, शेठे निरखियोए॥धानठ्यो शेठ सुजाण, बोल्यो मीठी वाण ॥ पूज्य पधारीय ए,
मुज निस्तारीयें एयानत्तरासणशुंआय,वांदे ऋषिना पाया|आज पावन थयोए,पाप सहुगयो ए॥६॥ Salपूज्य पधारया जेह, काम कहो मुज तेह।।जेकांइ जोश्येए, ते त्यो सोहियेंए।कोहला पाकनें काज,
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स्थान
वाशण आव्योढुं हुं आज॥जो दुवे एषपीए, आपो मुनपीए॥७॥मुजघर ले बहुपाक, व्योमुनिवर कहे ॥३॥
चाक ॥ लाव्यो जश् करीए, मन उलटधरीए॥णा अनिमिष नयण निहाल, सुर जाएयो ततकाल॥ सुरपिंड ए सहीए, मुज कल्पे नहींए ॥१०॥ तिहांधी चाल्यो अणगार, सुर कोप्यो तेणिवार ॥ सघले अनेषपीए, कीधो तेन्नपीए ॥ ११॥ पाक न पामे शुः, वोहोरे नहीं विरुः ॥ मुनि घर घर
नमेए, भरियो नपशमें ए॥१२॥ अनुक्रमें मुनिवर तेह, सुर सारथवाह गेह ॥ आव्यो मुनिवरुए Valमनजोवे सुरुए ॥ १३॥ पाम्यो पाक निरदोष, कीधो पुण्यनो पोष ॥ दान सुपात्रं दीयोए, धन्य INएहनो जीयोए ॥१४॥रलियायत सर होय. सरतणे घरे सोय॥ रत्नवर्षण थयोए,'
लह्योए ॥ १५ ॥ प्रत्यक्ष सुरवर पाय, लागे मुनिवर पाय ॥ धनद प्रशंसियोए, मुजमन हीसीयोए Rel१६॥ धन्यधन्य तुज अवतार, धन्यधन्य तु अगार ॥ मुनि वेयावच्च करेए, कोश पुण्ये नरेए
॥ १७ ॥आव्यो सनिली वात, जंगम तीरथ जात ॥ मुजनें ए थए, भवनावठ गए vilu १७ ॥ सफल यो अवतार, दीगे तुज दीदार ॥ आज आनंद अयाए, पाप दूरे गयाए ॥ १ ॥ Ka स्तवना करे श्म देव, चरणे लागी हेव । सुरलोकं गयोए, सुर पावन अयोए ॥श्णा अर्जित अरिहंत
कर्म, राज ऋषीश सुधर्म ॥ वात्सल्य मनधरयो ए, बहश्रतनो करयोए ॥ १॥ नवमे सुरथयो ताम, ग्रैवेकें अन्निराम ॥ तिहांथी चवीकरीए, विदेहें अवतरीए ॥ २२ ॥ श्राशे जिनवर तेद, श्रुतशील मुनिवर जेह ॥ थाशे गणधरुए, सहुने सुखकरूए ।॥ २३ ॥ महेपाल नूपाल, सन्निलि चरित्र रसाल ॥ बहुश्रुतनो करोए, वात्सल्य मन धरोए ॥ २४ ॥ मनमां धरे आणंद, कहे जिनहर्षमुणिंद ॥ वात्सल्य कीजीयें ए, शिवपद लीजीयें ए ॥ २५ ॥ इति षष्ठस्थानके महेंपाल नृप कथा ॥
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निका
॥ अथ सप्तम स्थानके जयंत नृप कथा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
दवे सातमे थानकें, दुस्तरतर तपकार ॥ कर्म निर्जरा कारणे, करवुं गौरव सार ॥ १ ॥ तपसीनी पूजा करे, विनय प्रणाम सत्कार || निबिरुकर्म ढीलां करे, कृष्ण परें सुविचार ॥२॥ बाह्याभ्यंतर भेदथी, तपना दोय प्रकार || कर्मनिकाचित निर्जरा, जेहथी थाये अपार ॥ ३ ॥ बाह्याभ्यंतर तप अगनि, दीप्यमान शुभाइ || कर्म जस्म बाली करी, दुर्जर पण कामांइ ॥ ४ ॥ नृपवासादिक बाह्यतप, पोढा तास प्रकार || अासानें नगोदरी, वृत्ति संक्षेप विचार ॥ ५ ॥ चोथुं तप रस त्यागनुं, काय कलेस संजोय ॥ बधुं कह्युं संलीता, एह बाह्य तप होय ॥ ६ ॥
धन्य सुपन तुज, धन्य जीवि तोरी प्राय ॥ ए देश ॥
ढाल चोथी ॥
तत्र असणं चारे, आहार तो परित्याग ॥ ते अणसानां बे, भेड़ कह्या वीतराग ॥ इतवेरनें बीजो, यावत कथिक प्रमाण । तत्र पहिलो तेहनो, परिमित काल वखारा ॥ १ ॥ उपवास चतुर्थादिक, षममास पर्यंत ॥ हवे यावत् कथिक, तथा त्रण भेद कहंत ॥ पाद पोपगमन, इंगित मरण सुविचार, नाम नत्तपरिज्ञा, त्रीजो एह विचार ॥ २ ॥ सिंहादिक जयथी, त्रासे नहि व्याघात ।।। पादपनी परें, हलावे नहीं निजगात ॥ चारे आहार, तो करवो परिहार | गीतारथ पाखें, नकरे एह विचार ॥ ३ ॥ हवे बीजो निर्व्याघात, निसुणि अधिकार ॥ चत्तारि वरस तप, करे विचित्र प्रकार ॥ चत्तारि वरस वली, विगय तणो परिहार ॥ इत्यादिक युक्त, करे संलेहा सार ॥ ४ ॥ नवुं बसुं विचरुं, इटली नूंह सीम ॥ अशनादिक चारे, आहारतणो लइ नीम ॥ चाणक्य तलीपरें, परीसह दुःख ही पासे, काया नवर्त्तन, न करावे किणपासें ॥ ५ ॥ दवे नक्त परिज्ञा, त्रिविध
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वीशण चतुर्विध क, आहार त्यागादिक, तेहना नेद अनेक ॥ परपासें नियम, ते प्रतिकर्म करावे ॥ जिम
तिम करीने चित्त, चंचल गम रहावे ॥ ६ ॥अथ नणोदरीया, व्यन्नावें बे प्रकार ॥ पहिली उप॥३॥
गरण, नक्त पानादि विचार ॥ उपगरण विना, संयमनो श्राय अन्नाव ॥ दशवैकालिकमां, दाख्यो श्रीजिनन्नाव ॥ ७ ॥ यतः॥ जंपि वळव पायंवा, कंबलं पाय पुत्रणं ॥ तंपि संयम ल ठा, धरंति परिहरंतीय ॥ १ ॥ ढाल पूर्वली ॥ उपगरण तेह, जेहथी पाये नपगार ॥ संयमनी पाये, वृद्धि समृद्धि अपार ।। चनदेश्री अधिका, राखे जो अणगार ॥ अधिकरण जाणीने, करे तेहनो परिहार ॥ ॥७॥ हवे नक्तपान करता निज निज आहार ॥ तेहथी नणो लीजें आहार विचार ॥ बत्रीश
कवलें, नरनी कूख नराय, अठावीश कवलें, नारीने तृप्ति थाय ॥ ए॥ यतः॥ कवलाणय परिNaमाणं, कुक्कमि अंम पमाण मित्तंतु ॥ जोवा अविगय वयणो, कवलं निख्खवर वीसथ्यो ॥ १ ॥
ढाल॥ एहथी नणो आ, हार करे नरनार॥ नणोदरी कहीयें, नेद पंच मनधार ॥ ते अष्ठ दुवालस,cal Salसोलसनें, चनवीस ॥ कांश्क नणा, कैतीस कह्या वीसें ॥१०॥नावोनो दरता, कहीये त्याग
कषाय ॥ क्रोधादिक करतां, हाण संयमनी श्राय ॥ जिणवयण नावणा, नपर धरीय राग ॥ पर नाव नोंदरियां नाखी श्रीवीतराग ॥ ११ ॥ हवे त्रीजुं तप ते, वृत्ति संक्षेप कहीजे, मुनिनें तो गोचर, अन्निग्रह रूप लहीजें ॥ श्रावकने चनदह, नियम च्यादि संक्षेप ॥ अन्निग्रह व्यं क्षेत्र, कालं नाव निर्लेप ॥ १२ ॥ व्यथी निर्लेपादिक ग्रहवो आहार. आज अमक ऽव्य लेश सार असार ॥ क्षेत्रोनिग्रह वली, निज ग्रामे परग्राम ॥ निश्चय गृह आवलि, नियम घरे लई नाम ॥ १३ ॥ कालोभिग्रह हवे, मुनिवर करे संन्नाल ॥ पहिली बीजी त्री, जी पोरसिने काल ॥ गातो रोतो बे, गे उपराठो देश ॥ इत्यादिक नावा, निग्रह
३॥
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सहु जाणे ॥ १४ ॥ रसें त्याग हवे घृत, दूध दही पकवान ॥ गुल तेल उनक, विगय नाखी सुप्राधन ॥ खीरादि करे षट, विगय तणो जे त्याग ॥अनुदिन विकृति न लिये आणा वीतराग ॥१५॥ यतः ॥ दूध दही विगश्न, आहारे । अनिख्खयां ॥ अरश्अ तपो कम्मे, पाव समणुत्ति वुच्च ॥१॥ विगयं विगइनीन, विगगयं जो अनुंज साहु ॥ विग विगय सहावा, विग विगयं बला जो ॥२॥ ढाल ॥ श्रावकजे हादश, व्रतधारी॥शुः समकित धारी, सदगुरु सेवा Stlकारी ॥ तेहने बलवीर्य, सक्तिकेरे अनुसारे ॥ दिन पर्वतणे वि, कृति रस लेवा वारे ॥ १६॥ वीरा
सण आदिक, काय कलेस विचारी॥ते काय कलेस, अशेष संसार निवारी ॥ मन वचन कायानु रोध हुवे गुणकारी ॥ जिनहर्ष मुगतिना, सुखनो ए अधिकारी ॥१७॥
॥दोहा॥ रोग हणाये आसणे, प्राणायामें पाप ॥ प्रत्याहारें मुनिहणे, मन विकार संताप ॥१॥ हवे सुणो संलीनता, तास नेद कह्या चार ॥ इंख्यि कषाय तिम योग वली, विविक्त चरिया धार॥२॥ फरसेंक्ष्यि दोषे करि, विम सूअरमें जाय॥वाघ होय जीहा वसे, घ्राणवसे अहिथाय ॥३॥ लोयण वसें पतंगियो, श्रवण दोष मृग होय ॥ मरण लहे इण कारणे, ए पंचेंशिय जोय ॥ ४ ॥ इंघिय जीपे ते नणी, नत्तम नर मतिमंत ॥ काय केशव्रत नियम सहू, जे विण फोकट हुंत ॥५॥
___ ढाल पांचमी ॥ जंबूजननी श्म नणे॥ एदेशी ॥ | इंडियने वा जे पड्या. जागी तास विपाकाठान्दादिक संदर विषय.नतारेवी बाक॥१॥सण सुण सुंदर प्राणिया, इंघिय वशन पमीश, तपकरी बार प्रकारनु, श्म शिवपंथ लहीश ॥ सुण ॥ ॥२॥राग ष करवा नही, एहने विषे सदीव ॥ए इंश्य संलीनता, जालो नविका जीव ॥ सुण
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वीशण ३॥ नदय कषाय निरोधता, नदय श्रयो करे फोक ॥ तेह कषाय संलोनता,जाणो धरमी लोक ॥ स्थान
सु॥॥कुशल योग नदीरणा, अकुशल योग निरोध ॥ कहीयें जोग संलीनता, चाले करीनुं ॥४॥
शोध ॥ सु॥५॥ विविक्तचर्या स्त्री पशु, पंग नज्जित गम ॥ ब्रह्मचारी नर तिहां वसे, जिहां salन व्यापे काम ॥ सु॥६॥ यतः॥ आरामुजाश्सु, थी पसु पंमय विवज्जि ए गणे ॥ फलयाणं
गहणं, तह नणीअं एसपिजणं ॥१॥ इति बाह्य तपः॥ अस्य फलं ॥ पोरसि चनथ्थ उठे, कान Salकम्मखवंति जंमुणिणो ॥ तं नो नारय जीवा, वास सय सहस्स लख्खेहिं ॥१॥ नमुआ दस
महिं, मुणिणो कम खवंति जे गुत्ता ॥ तं नो वास सयाई, कोमाकोमीहि नरेश्या ॥२॥ Salo नरायाण जीवा, खवंति बहू एहि वास सहस्तेहिं, तं खलु चनथ्थ नो, जीवो ISAIनिरयरह सुहन्नावो ॥३॥ अथान्यंतरं तपः॥ यथा ढाल पूर्वली ॥ पायचित्त विनय करे, या-15 salवच्च साय ॥ ध्यान नस्संग्ग उन्नेदए, अन्यंतर कहिवाय ॥ सु० ॥ ७॥ पातक जेह बेदे al सहू,ते कहीये प्रायवित्त ॥आलोयण आदिक कह्या, दश प्रकार शुन्नचित्त ॥ सु० ॥ ॥
सिद्ध मेश्यए. सुर्यं धम्मेय साह वग्गोय ॥ आयरिय नवजए, पर्वंयणे दंसेणे Raविण ॥१॥ विचरं ता अरिहंतजे, सिदे मुक्तिसु प्रसाद रे।।चैत्यादिक प्रतिमा कही श्रुतसाायिक
आदरे ॥ गाथा ॥ ढाल ॥ धर्म सुचारित्र धर्मते, तेहना साधु आचार ॥ आचारज गबना घणी, त्रीश गुणना धार ॥ सु० ॥ ए ॥ नणे नणावे सिद्धंत जे, कहीये ते नवजाय ॥
॥धा संघे असेस प्रवचन कह्यो, दसणां समेकित पाय ॥ सु॥१०॥ दश प्रकारें विनय सही, करे नक्ति बहुमान ॥ अवर्णवाद बोले नही, जस बोले सुप्रधान ॥ सु० ॥ ॥ ११ ॥ टाले दूर आशातना, विनय कह्यो संखेप ॥ विनय मूल धर्मर्नु, टाले नवना लेप ॥ सु० ॥
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॥ १२ ॥ हवे वेयावच्च सांजलो, धर्म साधन सुप्रमाण ॥ श्राचारज नवजाय नो, धेरै तर्वैस्सी गिलास || सु० ॥ १४ ॥ शिष्यं श्रने सामी तणो, कुलंगणं संघ सुजाण ॥ वेयावच्च ए दशतलो, करवो धरी जिन प्राण || सु० ॥ १५ ॥ पंच प्रकार सकायनो, वाचना प्रवेना दोय ॥ प्रवर्तन अनुप्रेदाए, धर्म कथानो जोय ॥ सु ॥ १६ ॥ वली प्रार्त्त रोई ध्यान वे, धर्म ध्यान शुक्लै ध्यान ॥ ध्यान चतु ए कह्यां, जाव सुणो हवे कान ॥ सु० ॥ १७ ॥ राज्योपयोग शयनासनें, वंदन स्त्री गंध माल ॥ मणि रत्न भूषण विषे, इवा घरे विशाल ॥ सु० ॥ १८ ॥ मोह धरे ए नपरें, न टले मन अभिलाख || दायक तिर्यंच योनीनुं, प्रार्त्त ध्यान ते दाख || सु० ||१|| बेदन दहन अंजल तणो, मारण बंध प्रहार ॥ अनुकंपा यावे नहीं, ए रौइ ध्यान विचार ॥ सु० || २० || सूत्र अर महाव्रततणो, बंध प्रमोद विचार || गति प्रगति प्राणी दया, ए धर्मध्यान प्रकार ॥ सु० ॥ २१ ॥ जेहना इंयि विषयश्री, उपरांग अधिकार ॥ शुभयोगें मृत प्रातमा, शुक्लध्यान संचार ॥ सु० ॥ ॥ २२ ॥ आरति तिर्यंचगति दीये, रौइ नरक धर्म देव ॥ शुक्लध्यान गति मोहनी, इम जिनहर्ष कदेव || सु० ॥ २३ ॥
॥ दोहा ॥
संसारदुखी मूकावे जेह ॥ अष्ट कर्मनो कय करे, शुक्ल धर्म ध्यावेह ॥ कायायें कीधो नही, पापतणो व्यापार ॥ प्रारत ध्यान थकी थयो, दाडुर नंदमणियार || २ || हिंसा कर्म करचा विना, प्राणी नरकें जाय ॥ तंदुलमत्स तणीपरें, रौद्रध्यान कहेवाय ॥ ३ ॥
ढाल बी ॥ धनधन संप्रति साचो राजा ॥ ए देशी ॥
ज्ञानी मुनिवर इणिपरें जाखे, विषय कषाय जे पासें रे ॥ दुष्ट ध्यान मनमांहे घ्यावे, ते दुर्ध्यान
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वीश०
॥४५॥
॥
विलासे रे ॥ ज्ञानी० ॥ १ ॥ चार कषाय इंडिय जेणे जीता, सिद्धांतामृत पीता रे || सदगुरुनी सेवा तेणे कीधी, जीता एह वदीता रे ॥ ज्ञानी ॥ २ ॥ दोय भेद नत्सर्ग तला हवे, व्यनावश्री धारे रे यश्री नेद चतुर्धा त्यागे, गणदेह नपधि श्राहारे रे ॥ ज्ञानी० ॥ ३ ॥ नावकी तो अनेक प्रकारें, क्रोधादिक परिहार रे ॥ अथ नसास अष्टकायोत्सर्ग, सांजलि तसु फल सार रे || || ज्ञानी० ॥ ४ ॥ नगलीश लौख सहस्र त्रयासी, बिसय वली सतसेंहि रे ॥ पल्योपम सुर आयु निबर्डे, नवकारोत्सर्ग दिहि रे ॥ ज्ञा० ॥ ५ ॥ इगशग्लाख सहस पांत्रीशे, विसेय दोय पलि आन | रे || देवतो बांधे अधिकेरो, लोगस्स कानसग चान रे ॥ ज्ञा० ॥ ६ ॥ अशुद्ध जात पाणी गण काया, क्रोधादिक नित्य मेव रे ॥ इत्यादिकनो त्याग करीजें, त्याग कह्यो जिनदेव रे ॥ झा० ॥ ७ ॥ षटविध अंतर तप जे साधे, संयम समता जाव रे | अंतर वैरी तेह खपावे, लागे नही दुख घाव ||रे ॥ ज्ञा ॥ ८॥ इत्याभ्यंतरतपः ॥ एवंविध द्वादश तपधारी, तपसी जे गुणवंत रे ॥ तेहनी नक्तिकरे निज शक्तें, तेहथी मुक्ति लहंत रे ॥ ज्ञा० ॥ ए ॥ पूर्वाचल सारिखा तपसी, ते जीवो चिरकाल रे ॥ नलगे छादश तप रवि श्रातम, तिमतिमि करे विसराल रे ॥ ज्ञा० ॥ १० ॥ श्रमोसही विप्पोसही श्रादिक, तप महिमाथी एह रे ।। लब्धि अनेक हुवे जे माहे, तपसी कहीये तेह रे ॥ ॥ ११ ॥ खीरासव मदुप्रासव लब्धि, संभिन्न श्रोताजा णि रे ॥ जंघा विद्या चारण मुनिवर, तपसी गुणनी खालिरे ॥ १२ ॥ | कर फरसे कुष्ठादिक जाये, आशीविष मुखवाणी रे॥ तपसीना तप महिमोदयथी, श्राये नृपश्व हाणि रे ॥ ज्ञा||१३|| महोढुं रूप करे लख जोयस, लघु कुंथूआकार रे ॥ चैत्यजुहारे जेह शाश्वतां, तपस्वी ते | अणगार रे || झा० ||१४|| सुरनर जेहनी सेवा सारे, भक्ति करें बहुमान रे ॥ वासुदेव चक्रधर पाय प्रणमे, पण न करे अभिमान रे ॥ ० ॥ १५ ॥ दुष्कर जे तप करे निरंतर, कीधी काया की रे ॥
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राग शेष नाणे मनमांदे, समता रस लयलीन रे ॥ज्ञा ॥१६॥ पांचे इंची जेणे वस कीधी, टाल्या विषय कषाय रे ॥ कहे जिनहरष सदा हुं प्रणमुं, ते तपसीना पाय रे ॥झा ॥१७॥
॥दोहा॥ एहवा तपस्वी ते नगी, आणी हरष अपार ॥ औषध वसति पात्रवस्त्र, आपे जे जे सार ॥१॥ Salकरे नक्ति बहु नावÓ, त्रीजे नव लहे तेह ॥ अरिहंत पदनी संपदा, तेहनों नावे देह ॥शाअरिहंतNaना सुख नोगवी, पोहोचे मुक्ति नोफार ॥ वीरन व्यवहारीये, लह्यो जिमजिनपद सार ॥३॥ |
॥ढाल सातम। ॥ हराया मनलागो । एदेश।। नगरी विशाल अतिनली, देश अवंती इंद रे नविका मनराखो ॥ कौतुक पूजाये जिहां, सकलत्र मुनिवर वृंद रे॥ नविका ॥१॥ मनराखो जिनधर्मशुं, हीयमे धरी आनंद रे ।। न ॥ ए आंकणी तेह पुरीमाहे रहे, वृषन्न दास धनवंत रे ॥ न ॥ मान घणुं राजा तगुं, कीरति कमला कंत रे॥ न ॥ २ ॥ दान गुणेकरी दीपतो, सहुमांहे शिरदार रे ॥ न ॥ सहुमांहे नन्नत घणो, मेरु तणो अवतार रे ॥ न ॥ ३ ॥ तास घरे सुंदरी प्रिया, वीरमती गुणधामरे ॥न नाग्यवती सूधी सती, रूपवती अनिराम रे ॥ न ॥ ४ ॥ तेहने सुत रलियामणो,NE वीरनइ अन्निधान रे ॥ न ॥ सकलकला कौशल अयो, जाणे सहु विज्ञान रे ॥न ॥ ५ ॥
यौवन पाम्यो अनुक्रमें, जाणे रतिपति रूप रे ॥नणानारी जनने मोहनी,नपावे ते अनूप रेणानणा Vain ६॥ हवे पमिनी खंग पत्तने, श्रावक सागरदत्त रे ॥न ॥ व्यवहारी धर्मातमा, जेहनें घरे
बहु वित्त रे ॥ न ॥ ७ ॥ सम्यग्दृष्टि शिरोमणी, अद्भूत तेज प्रकाश रे ॥ न ॥ स्त्रीरत्नगर्ना तेहनें, नाम यथारथ तास रे॥न॥ ७ ॥ सुगुणयुता तेहनी सुता, प्रियदर्शना इण नाम रे ॥
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श्रीश
॥४६॥
>>>>>£££EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEDE
ज० ॥ शास्त्र कला जाणे सहु, रूपें रति अभिराम रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ यौवनवय प्रापूति थइ, नरमन | मोहन वेलि रे ॥ ज० ॥ शशिवदनी मृगलोयणी, चाले गजगति गेलि रे ॥ ज० ॥ १० ॥ वीरन गुण सांगली, शेव सागरदत्त साह रे ॥ ज० ॥ प्रियदर्शना कन्या तो, मेल्यो तेहशुं विवाह रे ॥ ज० ॥ ११ ॥ तात आदेश ले करी, लेइ जान विशाल रे ॥ ज० ॥ परणी जर प्रियदर्शना, प्रियदर्शना गुणमाल रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ पंच विषय सुख भोगवे, प्यारी नारी संग रे ॥ ज० ॥ मधुकर लीणो मालती, तिम लीलो सर्वांग रे ॥ ज० ॥ १३ ॥ कहे वीरन चलुं हवे, शेव कहे चित्तलाइ रे ॥ ज० ॥ वाब्दी अमनें दीकरी, विरह न खमाणो जाय रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ एक पलक पण एहनें, दीगविण न रहाय रे ॥ न तुमनें पण नवि मोकलुं, यो निज जान चलाय रे ॥ ज० ॥ १५ ॥ जान चलावी आपणी, पोतें रह्यो तिले गम रे ॥ ज० ॥ सासरीयो सरगा पुरी, तेही पण अभिराम रे ॥ भ० ॥ १६ ॥ एक दिवस मन चिंतवे, वीरभद्र गुणवंत रे ज० ॥ ससराना घरमा रह्यां, लाज लक्षण सहु जंत रे ॥ ज० ॥ १७ ॥ स्त्री पीयर नर सासरें, रहेतां शोना जाय रे ॥ ज० ॥ इहां न रहेवो ते जणी, इम चिंतवी मनमांय रे ॥ ० ॥ १८ ॥ परदेशे जा करी, कला सफल करुं एह रे ॥ ज० ॥ फल पामुं संपदतयां, जिम करसा फल मेह रे ॥ ज० | ॥ १५ ॥ केटलाएक दिन त्यां रही, मीठे वयले ताम रे ॥ ज० ॥ निज नारीनं इम कहे, तुं मुज | सुखनुं गम ॥ ० ॥ २१ ॥ जीव वदे नहीं मूकतां, तुजनें वाहाली नार रे ॥ ज० ॥ पण परदेशें जाइशुं, इहां न रहुं निरधार रे ॥ ज० ॥ २२ ॥ समजावी निज कामिनी, अनुमति लेइ तास ||रे ॥ भ० ॥ पुण्यपरीक्षा कारणे, चाल्यो जिनहरष उल्लास रे ॥ ज० ॥ २३ ॥
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॥ दोहा ॥
कीधुं रूपांतर प्रवर, गुटिका तो प्रयोग | सिंहल द्वीपं श्रवियो, पुण्य तो संयोग ॥ १ ॥ नगरमांहे जमतां थकां कला तो सुपसाय ॥ लोक सदु रागी कर्या, गुणथी आदर थाय ॥ २ ॥ गुणवंतानें मानियें, सहुने वल्लन होय ॥ मोतीमां जो गुएा दुवे, तो कंठ घरे सहकोय ॥३॥ शंख शेठ तेथे पुरवरें, एक दिन तेहनें हाट | वीरन बेठो जइ, धरतो मन गहगाट ||४|| शव ताम देखी करी, रूप कला गुणधार ॥ निजघर लेइ आवियो, गौरव की अपार ॥ ५ ॥
ढाल आमी ॥ निंदरमी वेरा हुई रही ॥ ए देशी ॥
सदा सुख पुण्यें पामीयें, पुण्यें लहियें हो श्रादर सनमान ॥ सदा || तेणें पुत्र करीनं मानियो, जूवो जुवो हो पुण्यफल असमान ॥ सदा ॥ १ ॥ पुण्य सघलाही सुखनो दातार || स० ॥ पुण्य गिरुन हो सदुनो आधार ॥ स० ॥ २ ॥ रत्नाकर राजा तिरोपुरे, राजे राजेहो शूरवीर अभंग ॥ ॥ तस पुत्री अनंग सुंदरी, गुणकेरी हो देखी मोह्यो अनंग ॥ स० ॥ ३ ॥ विज्ञान कला गुण चातुरी, सदु जाणेहो लौकिक विचार ॥ स० ॥ आलापे राग मधुरस्वरें, पाम्यो पाम्यो हो यौवन संज्ञार ॥ स० ॥ ४ ॥ वीरन सुली गुण तेहना, जोयेवा हो मनमें यइ चाह ॥ स० ॥ कन्या थर गोली प्रजावथी, जाणे अमरी हो जाणे अधिक सुहाव || स० ॥ ५ ॥ वीरन वराकृति अन्यदा, शंख कन्या हो साथै ते जाय ॥ स० ॥ नृप मंदिर अधिक नन्वादशुं, बेगे अगल हो देखी हर्षित थाय ॥स॥६॥ कुमरी करे वीणा लेइ करी, गायो गायोहो अमृत सम नाद ||सते नाद सुणी रंजी घणुं, पामी पामी हो मन परम प्राब्दाद ॥ स ० ॥ ७ ॥ नृप कन्या रूप निहालीनें, मांहो माहो यह प्रीति अपार ॥स०॥ गौरवशुं राखी निजकन्हे, तुज दरिश हो मुजनें सुखकार ॥॥॥ निशिदिन कुमरी पासेंरहे,
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गाहा गूढाहो काव्य कथा विलास ||स|| निजवंश कीधी कुमरी जणी, मन मलीयांहो अंतर नही तास ॥ स० ॥ एक दिन वीरन कहे इशुं, तुं तो कुमरी हो यइ यौवनवंत ॥ स० ॥ तुज रूप कला सफली हुवे, जो थाये हो तुज सरिखो कंत ॥ स० ॥ १० ॥ सरिखे सरिखो सखी जो मले, तो वाधेहो मनमें नबरंग ॥ स० ॥ प्रणगमतो जो प्रीतम मले, देखी देखी हो तो दाऊ अंग ॥ स ॥ ११ ॥ पंकितनें मन पंकित गमे, मूरखनें हो मूरखशुं प्रेम ॥ स० ॥ तुजने तुज सरिखो जोइयें, मूरखशुंहो दिन जाये केम ॥ स० ॥ १२ ॥ यतः ॥ कीजें कंत सुलख्खणो, जग सघलोही जोइ ॥ रमीयें निशिदिन रंगसुं, हीयमे दरषित होइ ॥ १ ॥ ढाल ॥ वलतुं कुमरी कहे सुरा सखी, वर लदी - हो जे लखीयो नाग ॥ स०॥ घरघर सुख दुख लखी या मले, विरा लखीयोहो किम लहीयें सुहाग || |स० ॥ १३ ॥ सहू रूमानी वांबा करे, कोण वांबे हो निखरो जरतार ॥ स० ॥ बवी रातें जे शिर लख्यो, ते लही यै हो निश्चय निरधार ॥ स० ॥ १४ ॥ यतः ॥ बडी रातें जे लख्युं, माथे देश दथ || दैव लखावे विहि लिखे, कुण मज्जेवा समथ्य ॥ १ ॥ ढाल ॥ कृत्रिमस्त्री कुमरीनें कहे, तुज सरिखोहो एक नर गुणवंत ||स|| देखाऊं जो तुं आदरे, मनगमतोहो कुलवंतो कंत ॥ स० ॥ १५ ॥ ॥ १५ ॥ नृप कन्या कहे इहां किहां थकी, तेथे कीधुं हो परगट निजरूप ॥ स० ॥ पामी विस्मय देखी करी, ए तो प्रगट्यो हो सुरकुमर सरूप ॥ स० ॥ १६ ॥ शुं देवतली माया यश, , के सुपनेहो रेखुं जंजाल | स० ॥ के आव्यो बलवा देवता, के तो कोइ हो वे ए इंजाल ॥ स० ॥ १७ ॥ वीरन कहे कुमरी सुणो, श्यो मनमांहो तुं करेरे विचार || स०॥ नृपकुमरी जमरीनी परें, त्यारे मोही हो केतकी अनुसार ॥ स० ॥ १८ ॥ श्रनिप्राय को निज मातनें, रायनें कह्यो हो राणी विर| तंत ॥ स० ॥ परगावी कन्या शुभदिनें, करी उत्सवहो पूगी मन खंत ||१|| मनमान्यो वर कुमरी
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लह्यो, वरें पामी हो मन मानी नार ॥ स० ॥ प्रत्यक्ष पुण्यनां फल एहवां, जूवो जूवो दो जिन| हर्ष विचार || स० ॥ २० ॥
॥ दोहा ॥
अथ लेखि जिनेंइनी, प्रतिमा चित्रपट सार ॥ मुनिवर रूप लखी करी, देखामे वार वार ॥ १ ॥ नृपमंदिर रहेतो थको, देश धर्म उपदेश ॥ अनंगसुंदरी धर्मनी, कीधी जाए विशेष ॥ २ ॥ वीरन मन चिंतवे, मुजने वे बहु मान ॥ तोपा रहेतां सासरें, महिमा घटे निदान ॥ ३ ॥ यतः ॥ उत्तमाः स्वगुणैः ख्याता, मध्यमाश्च पितुर्गुणैः ॥ प्रथमा मातुलैः ख्याताः, स्वसुरैस्त्वधमाधमाः ॥१ ॥ अर्थः- पोताना गुणोवमे जे विख्यात बे ते उत्तम जाणवा, पिताना गुणथी प्रसिद्ध ते मध्यम, मामा वडे विख्यात ते अधम ने ससराथी ख्यात बे ते अधमनी अंदर पण अधम जागवा ॥ अथवा स्वगुणश्री मलेली ख्याति पिताना गुणश्री श्रयेली प्रसिद्धता मध्यम बे मामाश्री मलेली विख्याति अने ससराथी थयेली विख्याति श्रधमथी अधम बे ॥ १ ॥ दोहा ॥ मनमां धारी एहवुं, लेइ नृप आदेश ॥ शंखशेग्नें पूर्वीनें, नमाह्यो निजदेश ॥ ४ ॥ वस्तु अमूलकशुं जर्यु, प्रवहण कर तैयार ॥ वीरनइ निजनारीशुं, धरतो हर्ष अपार ॥ ५ ॥
ढाल नवमी ॥ घरें प्रावोजी आंबो मोरियो । ए देशी ॥
प्रवण पूरयुं शूनमुहूरतें, सहुशुं करी शीख जुहार ॥ वीरन चाल्यो निजपुर नली, सायें बहुजननो परिवार || प्रव ॥ १ ॥ जरदरी ये पोहोंता जेटले, दुर्दैवत वशे ताम ॥ बूटा दह दिशिश्री वायरा, वाहाण न रहे एक गम ॥ प्रव० ॥ २ ॥ गाजे गयलांगा मेहलो, चढीया असमान कलोल ॥ पाणी चड्यां दरीयातणां, जाणे श्राशे जग बोल ॥ प्र० ॥ ३ ॥ कूप्रार्थनो कटका थयो, सढ
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NElबूटो त्रुटो बंध ॥ बूंबारव लोक सहु करे, कटके त्रटके सह संध ॥ प्र० ॥ ४ ॥ आथमतुं वाहाण valsगीपरे, वाजंतां पवन प्रचंग ॥ पुण्यहीण मनोरथनी परें, कमांहे श्रयो शतखंड ॥ प्रण ॥ IN सद्दर्शननीपरें पामियो, नृपपुत्री फलक प्रधान ॥तरती चीजे दिन नीसरी, धरती जिनधर्मनुं ध्यान। NEl॥ किणही कुलपति देखी करी,करुणार्दित मन श्रयुतासव्योआश्रमलेश आपणे,प्रिय पाखें अ-IN
धिक नदास॥प्र॥ ॥राखे तापस पुत्री परें,अद्भूत कायानी वास॥रूपें रंना नवयौवना, मकर ध्वज Raनोआवास॥प्रणाएकदिन कुलपति देखीकरी,मनमांह कीध विचार॥ए नारी ब्रह्मचारी नणी, हा-Sel
लाहल विष अवतार ॥ प्रणाणा सर्वांग सुचंग सोनागिणी, व्यापे देखी मनमोह।। एहनी संगति रूमी al
नहीं, जगमाहे न लहीयें शोह ॥ प्र० ॥१०॥ यतः॥ मदिराया गुणज्येष्टा, लोकध्य विरोधिनी॥ salकुरुते दृष्ट मात्रापि, महिला अहिलं जगत् ॥१॥ अर्थः--स्त्री मदिरा करतां गुणे करी मोहोटी तेम
आलोक परलोकनो विरोध करनारी के जे जोवामात्रमा जगतने घेखें करे ने सारांश मदिरा, पानथी मनष्य मत्त करे पण बेलोकने बीगामनारी स्त्री तो मदिरा करतां अधिक
के जेने जोतांज जगत् गांउथाय . ढाल।जिम अगनी समी लाखनो, थाये दणमांहे विनाश तपसी काया महाबली, तिम स्त्री संगें शीलनो नाश ॥ प्र॥११॥ यतः॥ हरि हर बना ण
जसा, सुर सुरपति बली याह । नारी नयण जबूकमे, कोण कोण नवि वलीयाह ॥१॥अथ salकुंमलीयो कवित ॥ महिला जग मोहण वेली हर परतख हरान विणन्नारथ विण जंगजुमि,
जीत्यो सकल जहान, जीत्यो सकल जहान गौरी रूपें गंगाधर,गोपी वशे गोविंद ॥ ब्रह्मा वश कीध अपवर, सरग मत्य पाताल, आणि निज किरे केली, कहे जिनदर्ष सुजाण, महिला जग मोहण वेली ॥१॥ गाथा ॥ आर्या ॥ संसारे हय विहिणा, महिला रूपेण मंमियं पासं ॥ बऊंति
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जाण माणा, आयमाणावि बज्छंति ॥ ३ ॥ ढाल || एहवुं मनमांहें विमासीनें, कुलपति कहे तेहनें एम ॥ पुत्री पहुंचा पद्मिनी, खंग पत्तन धरीय सनेह ॥ प्र० ॥ १२ ॥ इम कहि मूकी पुर परिसरें, तापस श्राव्यो निजगम ॥ यूथश्री ऋष्ट मृगीपरें, चलचित्त चकित थइ ताम ॥ प्र० ॥ १३ ॥ अरही परदी जमती की, पुरसरवर दीवी ताम ॥ निज पुण्योदयथी रजा, सुव्रता सुव्रता इसा नाम ॥ प्र० ॥ १४ ॥ ज्ञानें करी जाणि साधवी, वांदे जइ तेहना पाय ॥ धर्माशीष दीधी तेहनें मनमांहे हरप्रीत थाय ॥ प्र० ॥ १५ ॥ व कन्या तुं केहनी, केहनी कहेनें तुं नार ॥ ताहारां किहां पीयर सासरां, गणिनी पूढे तेशिवार ॥ प्र० ॥ १६ ॥ निजवात सहु कही नृप सुता साधवी सांजलि विरतंत || पौषधशालायें ले गई, कुमरी मनमें हरपंत ॥ प्र० ॥ १७ ॥ पुण्यशास्त्र जणे नृपनंदिनी, आस्तिक्य मन धरिय अपार ॥ समता अमृतरस स्वादथी, वीसरी गयो विषयविकार ॥ प्र० ॥ १८ ॥ श्रुतज्ञान तथा उपयोगथी, करे क्लिष्टकर्मनो नाश ॥ सिद्धांत अरथ जिमजिम धरे, तिमतिम श्राये अधिक उल्लास | प्र० ॥ १७ ॥ यतः ॥ जं अन्नालीकम्मं, खवेइ बहुआहिं वासकोमी हिं ॥ तं नाणी तिहि गुत्तो, खवेश नसास मित्तेां ॥ १ ॥ ढाल ॥ रूपाली बाली अन्यदा देखी प्रियदर्शना तास, गुरुणी ए को नारी कहो, जिनदर्ष जगे तुमपास ॥ प्र० ॥ २० ॥ ॥ दोहा ॥
सुन कहे साधवी, अनंगसुंदरी नाम ॥ वीरन श्रेष्ठी तणी, ए नारी अभिराम ॥ १ ॥ सिंहलनृपनी नंदिनी, सांजलि एहवी वात ॥ एह सपत्नी माहरी, हीयमे दरष जरात ॥ २ ॥ मीठे वयणे तेहनें, संतोषी धरी प्रीति ॥ बहिनी मंदिर आपणे, आवो रुकी रीति || ३ || लेइ आवी प्रिय दर्शना, आप बापनें गेह ॥ नक्ति करे बहु जांतशुं, आणी परम सनेह ॥ ॥ धर्म करे थिर मन
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करी, चोथ जक्त नित्य मेव | गणिनी पासे वे जली, जली गुणी करि सेव ॥ ५ ॥ झील लीलायें पालती, चोखे मन परिणाम | कीरति व्यापी नगरमां, करे सहु गुणग्राम ॥ ६ ॥ ढाल दशमी ॥ कालियो किरतार जणी शीपरें लखुं रे ॥ ए देशी ॥
पुण्यावें मनवांबित संपति मले रें, पुण्यें दुरित पलाय || पुण्यें सुजस जगतमां विस्तरे रे, पुण्यें वांबित थाय ॥ पुण्यः ॥ १ ॥ शेठ सागरदत्त महापुण्यातमा रे, पुत्रीनी परे तास ॥ नोजन नेपथ्य सार संभाल करे जली रे, प्रीति नपावे खास || पुण्य० ॥ २ ॥ वीरन सनज्ञेदय थकी रे, पाम्यो फलक तुरत || पार लह्यो दरीयानो साते वासरें रे, नारी विरह दहत ॥ ० ॥ ३ ॥ एला लविंग तमाल कपूर कोली नली रे, यांबा शव अनंत ॥ विरहा कुल जमे पण मन माने नही रे, स्त्रीविण रति न लड़ंत || पु० || ४ || दोहा || जिहां सुं मनलाएं जसा, तिहां विण खरा न सुहाय ॥ राग रंग गुण चातुरी, किमदी न आवे दाय ॥ १ ॥ ढाल || इसे अवसरे ते रत्नवल्लन विद्याधरू रे, श्रीरत्नपुर नाह || कीमा करवा तिहां कवियो रे, देखी यो नवाह || पु० ॥ प || देखी रूप कला गुण चातुरी रे, राज्यो खेचर तेह | वाली सुधारसशुं संतोपीयो रे, आव्यो निजगेह ॥ पु० ॥ ||| ६ || आदरशुं राख्यो विद्याधर मंदिरें रे, जक्तिकरे बहुजां ॥ पुण्यवंत सघले सुखी या दुवे रे, नित्य लहे नीरांत || || ७ || रत्नमना परगावी कन्या गुणवती रे, उत्सव करि तेणीवार ॥ गगन गामिनी | समग्र जोगिनी रे, विद्या दीधी सार ॥ ५० ॥ ॥ दोई विद्या साधी जिन ग्रागले रे, करी तप दस नृपवास वीरन पण विद्याधर थयो रे, परिघल पुण्य प्रकाश ॥ ॥ इलिपरें निज समकित निर्मल करे रे, सफमेल करे अवतार ॥ श्री जिननक्ति सुगुरुनी भक्ति करे सदा रे, संजरे पुण्य जंमार ॥०॥१॥तिहां श्री जिनवरनी यात्रा करे रे, रत्नप्रभा संघात || विद्याचारण साधु तणी सेवा करे रे, धर्मध्यान दिन रात
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Itam पुण् ॥११॥आनोगिनी विद्यायें जागी युग प्रिया रे, सुव्रता संयति पास ॥ निर्मलचित्तें शीलal
लीलायें पालती रे, करती शास्त्र अभ्यास ॥ पुण्॥१२॥ केटलाएकदिन विद्याधर नृपनें घरें रे,
सुख नोगवे सुजाण ॥ रत्नप्रना संघातें पांच प्रकारनां रे, दोगंदुक सुप्रमाण ॥ पु ॥१३॥ वीर-sa मन निजनारी लेश अन्यदा रे, कौतुक जोवा काज । पमिनीखंड आव्यो निजनारी जोयवा रे
शीलवती शिरताज ॥ पुण् ॥१४॥ सुव्रतोपाश्रय पासें मूकीने रे, रत्नप्रन्नाने तेह ॥देह चिंतानें मिसे वाकिहां गयो रे, वामन रूप करेह ॥ पु० ॥१५॥नमती जमती तेपण पुण्यप्रनावथी रे, आवी Salaपाश्रय ताम ॥ चरण नमी गुरुपीना बे पासें जश् रे, त्रीजी बेठी ठाम ॥ पु ॥ १६ ॥ धर्मोद्यम Na
तिहां बन्ने रहे रे, न करे पुरुष प्रसंग ॥ नयणे पुरुष न जोवे मख बोले नही रे. पाले शील अग्नंग ॥ पु०॥१७॥ नाम सुलख्खण नित्य पुरमांहे नमे रे, गाये मीगं गीत sal
कौतुक सूक्त कवित्व कथा कहे रे, रंजे सहुनां चित्त ॥ पु॥१७॥ रत्न प्रना अनंत सुंदरीने प्रिय-IN sal दर्शना रे, दुःख नोगवे समान ॥ तीन जणीने मांहोमां श्रश् प्रीतमी रे, एक मननें एक ध्यान ॥ Kalपुण् ॥ १५ ॥ पुण्यशास्त्र नणे बेठी त्रणे जणी रे, पूजे श्रीजिनराय ॥ दान सुपात्रं आपे परम
प्रमोदशुं रे, प्रणमे मुनिवर पाय ॥ पु०॥२०॥ पर्वदिवसें पौषध अप्रमादें करे रे, पमिकमj दोश्वार ॥ अवसर पामी सामायिक करे रे, करे सफल जमवार ॥ पु॥ २१ ॥ नमतो रमतो लानृप दरबारमा आवियो रे, देखी कला विज्ञान ॥रलीयायत जिनहर्ष श्रयो राजा घणो रे, राख्यो। देश मान ॥ पुण्॥२२॥
॥दोहा॥ कोश्क आव्यो कौतुकी, राजन सन्ना मोकार ॥त्रणे सतीतणी तिहां, वात कहे तिशिवार
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वीशsalu॥ साध्वीने पासे रहे, धर्मध्यान थिर स्वांत ॥ पुण्य शास्त्र बेठी नणे, मेटण नवनय ब्रांत स्थान
Em२॥ आकारें सरखी त्रणे, सुंदर सरखां रूप ॥ सती विषय अणवांगति, जाणे को न सरूप ॥३॥ आपणा Isal पुरुषे बोलावी थकी, बोले नहीं ते नार॥ यौवनमांहि जीतेंश्यिा, मौनवती अवधार ॥४॥काहांश्री
आवी मली, तीनेही कगय ।। अपञ्चर के मनुषणी, निरति पझे नहीं कांय ॥५॥ सांजलीने विस्मय अयो, सन्नामांहे कहे एम ॥ जे बोलावे ते नणी, पामे वंबित प्रेम ॥६॥ बीजो कोश न बोलीयो, कीधो कुब्ज प्रणाम । हुं बोलावं तेहनें, ते मुज साचुं नाम ॥ ७॥
ढाल आठमी ॥ नाहली विलूद्धि नवंना दीये रे ।। ए देशी ।। राग सिंधू आशा ॥
आव्यो पौषध शाला कूबमो रे, साथे नृप परिवार ॥ तीन प्रदक्षिण दे नावशुं रे, प्रणम्या Salयतिना पाय ॥ आव्यो ॥१॥ ढबम बम काया वामणो रे, मोहोटो पेट प्रलंब ॥ ग्रीवा लांबी Salसारसनी परें रे, होठ करनजिम लंब ॥ आ० ॥ २ ॥ कालो रूप कूरूप अदर्शणो रे, आवी बेगे Salबार ॥ आगल बेठी सघली परषदा रे, नृप बोल्यो तेणिवार ।। आ० ॥ ३ ॥ कुब्जकया कहे अच-d
रज कारिणी रे, नागर चतुर सुजाण ।। सान्नलतां सदुनां मन नल्लसे रे, बोल्यो नंची वाण ॥ ISIT U ॥ शेठ विशालानो वासी हुवे रे, वृषन्नदास इणनाम ॥ वीरत्न नामें सुत तेहनो रे, सकल
al कला अभिराम ॥ आ ॥ ५ ॥ तेहतणा गुण कहीयें केटला रे, पाटण पद्मिनी अंग ॥ सागरशेठ Salतणी परणी सुतारे, प्रियदर्शना गयो उंग ॥ ॥६॥ रूपें रंना अपचर सारखी रे, वाली यौवन
॥ वेश ॥ सतीशिरोमणि मूकी पीयरें रे, नीकली गयो परदेश ॥ आ॥७॥ कुब्ज तणे मुखें सांजली वातमी रे, निज प्रीतमनी ताम॥पामी हर्ष कहे प्रिय दर्शना रे, बलिहारी तुज नाम ॥ आ० ।। Gal ते वीरन किहां कूबमा रे, ते मुज वात सुणाय ।। सुगजो बोली ने एक कामिनी रे, कालें सुणा
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वीश आय ॥ ० ॥ एए ॥ बीजे, दिवस सुलक्षण आवियों रे, आाव्या सहु नरराय ।। अति नत्सुक आवी प्रियदर्शना रे, आगल वात सुखाय ॥ ० ॥ १० ॥ नमतो ते सिंहल द्वीपें गयो रे, तिहां रत्नाकर राय ॥ अनंग सुंदरी कन्या तेहनी रे, रूपें रति कदेवाय ॥ आ ॥ ११ ॥ जोएवा कुमरीनें कारणे रे, गुटिका गुण सुविलास ॥ रूपकरी नारीनुं शोभतुं रे, पहोतो तास आवास ॥ ॥ १२॥ वीणारा रंजी कूंअरी रे, अनुक्रमें परणी तास ॥ प्रवहण बेसी तिहांथी चालीयो रे, धरतो चित्त उल्लास ॥ श्र० || १३|| एटली बात कही बेसी रह्यो रे, अनंग सुंदरी नार ॥ बोली कहेनें आगल शुं प्रयुं रे, दाखव तेह विचार ॥ ० ॥ १४ ॥ बोली बीजी सुजो सहु रे, आवेजो परजात ॥ सांजलवानी जो इच्छा दुवे रे, नड्यो नृप संघात ॥ आ ॥ १५ ॥ त्रीजे दिन वली आव्यो कूबको रे, लोक मख्या तेशिवार || अनंग सुंदरीनं प्रियदर्शना रे, आवी बेठी त्यार ॥ ० ॥ १६ ॥ नांगुं प्रवहण नरदरिया वच्चे रे, वीरनई सातमें दीस ॥ फलकग्रहीनें बाहेर नीसरयो रे, सबलो पुण्य जगीश || प्रा० ॥ १७ ॥ रत्नवल्लन खेचर घर आएगी यो रे, देखी गुणनिधि तास ॥ रत्नप्रन्ना पर गावी दीकरी रे, विद्या दीधी दोय खास ॥ ॥१८॥ गगनगामिनी अन्य भोगिनी रे, नारी सहित इहां श्राइ ॥ रत्नमना नारीनें मूकीनें रे, गयो तेसे कीध अन्याय ॥ ० ॥ १५ ॥ रत्न मना क तुज पायें पहुं रे, हवे किहां गयो मुज दाख ॥ कहे जिनहर्ष कुब्ज कहे सुराजो रे, त्रीजी बोली
भाष || आप ॥ २० ॥
॥ दोहा ॥
करजी कहुं कुबा, थाम्रो तुज कल्याण ॥ वात कहेनें एटली, तुं केम जागे जाण ॥ १ ॥ कुब्ज कहे मुज ज्ञान बे, जाणुं तास पसाय ॥ स्वर्ग मृत्यु पातालमां, जाणुं जे ते याय ||२|| स्वामी
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स्थात्रा
वीण रत्नप्रना कहे, लागुं ताहारे पाय ॥ जो ज्ञानी तुं खरो, तो मुज कंत बताय ॥ ३ ॥ कुब्ज कहें
सहु देखतां, प्रगट करूं तुज कंत ॥ आणुं जिहां दुवे तिहां श्रकी, माहरी शक्ति अचिंत ॥ ४ ॥ ॥५ ॥ बांधी तिहां कणे पटकुटी, मांहे आसण श्राप ॥ जन प्रत्यय ऊपजाववा, करवा बेगे जाप ॥५॥
ढाल नवमी ॥ चतुरसनेही मोहना ॥ ए देशी ॥ धनधन कुब्ज कलानिलय, ए कोई अवतारी रे ॥ अचरज जोवे सहु मली, जोवे तीने नारी सारे ॥धन ॥ १॥ पलकवारमा पेखतां, प्रगट करयुं निजरूपरे॥रलीयायत नारी अइ, हरख्या सदु
नर नूप रे ।। ध ।। २ ।। शेठ सागरदत्त हरखीयो, एहनुं पुण्यन्नंमारो रे ॥ निज मंदिर ले
आवीयो, गौरवशुं तेणिवारो रे ॥धण॥३॥ सासु लीये नवारणां, ससरो करे वधाइ रे ॥ साली कीधां Naखूबणां, साला मलीया धाव रे ॥ध० ॥ ४ ॥ क्षमा कृपा मैत्री करी, शोने जिम मुनिरायो रे ॥isal
वंदा, तिम वीरत्नशोनायो रे॥धणायाराजा रलीयायत अयो, कीधो तास पसायो रे ॥पुरमाहे मान्यो घणो, पुण्यें रिहि लहायो रे॥ध० ॥६॥ सुरनीपरें सुख नोगवे, तीन Salनारीशुं वीरो रे ॥ नगरमांहे जस विस्तरयो, निर्मल जिम गोखीरो रे ॥ध ॥ ७॥ आव्या तिहां
अढारमा, अन्यदिवस अरनायो रे ।। श्रीसर्वज्ञ समवसरया, सह प्राणीना नाथो रे ॥ध ॥ GRE
सुर असुरें सेवा करे, त्रिगमामांहे बिराजे रे ॥ तीन बत्र शिर नपरें, देवदंउन्नी वाजे रे ॥ धन Ranए ॥ बेठी बारह परषदा, वीरत्न निजनारी रे॥सागरदत्तशुं आवीया, त्रिकरण दोष निवारी रे॥ SU॥ १० ॥ सर्व नाषा अनुगामिनी, मीठी अमृत जेवी रे ॥ नगवन् धर्मदेशना, सानले हर देही ॥१॥
रेध ।। ११ ॥ चनगतिमाहं दोहिली, मनुष्य तणी गति जाणी रे ॥ ते पामी तिम कीजीयें, जेम नरक न जाये प्राणी रे ॥ध ॥ १३ ॥ सर्व सुखाकर जाणीयें, धर्म जगतमां सारो रे ॥ तेहनी
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नत्पत्ति मनुष्यथी, मनुष्य तेणे अधिकारो रे॥ध० ॥ १५ ॥ तीव्र दुःखाकुल नारकी, सुर बहु विषय सवादी रे ॥ तिर्यंचमाहे अज्ञानता, मनुष्य धर्म अप्रमादी रे ॥ध ॥ १५॥ मानुष्य नव पामीकरी, साधक सुर शिवदान रे ॥बे मांहे एक न साधीयो, मरण समे परतावे रे ॥ध ॥ १६ ॥ सुख वांक सहु जीवते, अक्षय मोद मजारो रे ॥ तेतो ज्ञानक्रिया थकी, तास यतन चित्त धारो रे॥ ध० ॥ १७ ॥ दीधी जिनवर देशना, सर्वविरति श्रया के रे ॥ केश देसविरति श्रया, श्म जिनहर्ष कहे रे ॥ध० ॥१८॥
॥दोहा॥ | अंग मोमी कर जोमीने, प्रणमी प्रनुना पाय ॥ सागरदत्त सुचित्तसुं, कहे नमो जिनराय ॥१॥ लोकालोक प्रकाशकर, ताहरुं ज्ञान अनंत ॥ स्वामी ताहरा ज्ञाननो, कोइ न पामे अंत॥२॥ज्ञान दिवाकर ताहरो, करे मिथ्यातम दूर ॥ संशय वृक्ष नपाडवा, जाणे नदीनो पूर॥ ३॥ समता सागर स्वामि तुं, गुणागर निकलंक ॥ ताहरूं शरणुं जेनहे, पाय तेह निशंक ॥४॥ स्तवना करी जिन रायनी, पूठे सदुनी शाख ॥ वीरत्न पूरवनवे, शुं पुण्य कीधुं नाख ॥ ५ ॥
॥ ढाल १० मी ॥ करलेणां घमी दे रे ॥ ए देश। ॥ | श्रीजिनवर कहे शेठने, सोनल तुं विरतंत ॥ आ नवश्री नव तीसरेही, नगररतनपुर वसंत॥१॥ salसुगुण तुं सुगी ले रे, सुगी ले रे माहरी वाणि ॥ सुगुण ॥ सुगी ले रे गुणनी खाणि ॥ सुगुणा
ए आंकणी ॥श्रावक तिहां जिनवास रे, निर्धनपणे गुणवंत।सत्यव्यवहार समाचरे धर्मार्थे सत्व वंत ॥ सु॥२॥चौमासी नपवासी रे, अनंतनाथ नगवंत ॥ पारण दिन तेहने घरे, आया महि मावंत ॥ सु ॥ ३ ॥ देखी तिणे व्यवहारीये, आणी नाव अपार ॥ दान दीयो बहु मानसुं, शुक्ष
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पाणी आहार ॥॥॥ बार कोमी सोवन तणी, वृष्टि श्रश् ततकाल ॥ देव संबंध व्यसुं, यो धनवंत विशाल॥सुणा॥ते दानार्जित पुण्यश्री, ब्रह्मलोके अवतार ॥पामी सुरनी संपदा, नावे कहेतापार सु॥६॥चवी करी सूरलोकथी, वीरत्न अयो एह ॥ पामी एहवी संपदा, पुण्यतणो नहि बेह ॥ ॥ ७ ॥ श्रज्ञा आणीने दिए, अल्प सुपात्रे दान ॥ तोपण अद्भुत फल दुवे, नांखे एम नगवान् ॥ सु॥ ॥ पुण्यानुबंधी पुण्यश्री, लहीएं सुख अपार ॥ सुरसूख बहु रुहि पामीएं, शिवसुख अवधी विचार ॥॥धर्मश्रद्वाऐ साधीएं, बहु धने धर्म नहोय॥साधु निकंचन श्रध्या, सुरपुर जातां जोय॥ सु ॥१॥सह धन श्रद्धा विना, जे आपे नर कोय ॥ जेम तुष वाव्यानी परें, ते सहु निष्फल होय॥ सु॥११॥परदुख नपजावे नहीं, धरे नहीं खल नाव ॥ सज्जन मारग अनुसरे, अल्प बहुफल पाव।। सु॥१॥ पूर्वनव निज सनिली, वीरन तिणीवार ॥ नमस्करी जिनने कहे, वीनतमी अवधार॥
सु ॥ १३॥नोगतणुं फल माहरे, हवे जीवीश केटलो काल ॥ कृपा करी मुजने कहो, गे स्वामि Salदीनदयाल सु॥ १४ ॥ दान दीयुं तें जिनन्नणी, तास पुण्य संयोग॥वरस तीनसें तुं हजी, अनुपम मनोगवसे नोग ॥ सु ॥ १५॥ नोगतणा फलनो सही, ज्यारे थाशे अंतात्यारे चारित्र आवशे, तुज Salपोतें गुणवंत॥ सु ॥ १६ ॥जिनन्नाषित एहवं सुणी, वीरत्न प्रनु पाय॥प्रणमी निजघर आवीयो,
ससरासुं तन नाय ॥ सु॥ १७ ॥ केटलाएक दिन सासरे, नव नव नोग विलास ॥नोगवतो
सुखसुं रहे, पुष्य पूगे पास ॥ सु० ॥ १७ ॥नक्ति करे अरिहंतनी, साहमीवत्सल सार ॥ नृप Salजिनहर्ष मिली करी, सागर अनुमतिधार ॥ सु० ॥ १५॥ सर्वगाथा ॥
॥दोहा॥ वीरन्नद्र तीहांधी चल्यो, धरतो हर्ष अपार ॥ त्रण कलत्र साथे करी, रुहि तणे विस्तार ॥१
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कुशलक्षेमें आवीयो, पुरी विशाला मांहि ॥ पिता पूत्रने आवतां, नत्सव कियो नगहि ॥२॥मात पिता चरणे नमी, नपजावीओ नमेद ॥ विरह हतो बहुदिवसनो, टलियो सघलो खेद ॥ ३ ॥त्रण मावदुअर सासुतणे, पाए पडी जगीस ॥ अविचल जोडी तुमतणी, श्राजो कोमी वरीस ॥४॥ निज मंदिर सुखसुं रहे, करे सदा जिन नक्ति ॥ गृहस्थ जन्म सफलो करे, दान दिए बहु शक्ति ॥ ५ ॥
॥ ढाल ११ मी॥ मारु रागे॥ अष्टापद समेत शिखर बहु नावसुं रे, मात पिताने ताम, कीधी रे कीधी रे जात्रा पुत्र साहा ज्यथी रे ॥१॥ निरतिचारे देश विरति पाली करी रे, वीरत्नश्नां मावीत्र, पोहतां रे पोहतां रे सुरपुर Relअगसग नचरीरे ॥२॥वीरन्नने नगर शेठ न थापीओ रे, निर्मल जस जिम खीर, निज धन Vाधन रे दुखित जन दुख कापीओरे ॥ ३ ॥ गिरि कैलास सरीखु प्रन्नुनुं देहरुंरे, पुरे कराव्युं वीर,
जाणे रे जाणे रे सोहे त्रिन्नुवन सेहरूं रे ॥४॥त्रणपुत्र त्रणेय वनिताए, जनमीया, वीरदेवे, वीर-15 देत वीरचंदरे, नामे पुण्ये पामीएंरे ॥५॥ तीनपुत्रने नार देश निज घरतणो रे ॥ त्रण प्रिया 2 संघात, विरतीओ विरतीयोरे नोगथकी मन जे तणो रे ॥ ६ ॥ श्रीलमुझ सुत सायर गुरुपासे NAI जरे ॥ पंचसया परीवार, दीक्षा रे दीदारे वीरत्न संग्रही रे॥॥संजम पाले टाले दुषण जेहनारे, नणे प्रर्वगत शास्त्र, मननां रे मननां रे निरमल परिणाम जेहनारे॥७॥ तपसी केरी नक्ति
तणां फल सांतल्यां रे, अन्य दिवस गुरुपास, सुणतां रे सुणतां रे रोम रोम सहु परधल्यां रे ॥णाNa IS विषयथकी विरमी मुनि तप काया सहेरे, मोक्तणां फलकाज,ते फलरे तेफलरे तत्त्ववेदी अंगश्री लहेरे Isalnातेजोलेश्यादिक महाघोरा मुनिन्नणीरे, थाये लब्धि अनेक, दुस्सह रे दुस्सह रे खमी न शके ISA
पण सुरधणी रे ॥ ११ ॥ तेहज मुनिवर धन्या मान्या जगतमें रे, दुस्तप तप तपे जेह, निस्पृह रे
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वोश
स्थान
५३॥
निस्पृह रे जस काजे न करे किमे रे ॥१५॥ क्षेत्रकाल अविरोधे शु अशनादिकें रे, तपस्वीनी sal करे नक्ति, कियो रे कियो रे शक्ति अधिक नद्यम के रे ॥१३॥ राजहंसीनी परे लक्ष्मी तीर्थ-Ral शनी रे, रमे पाणीकज तास, जाप्यो रे जाण्यो रे नव आगामी गुण खनी रे, ॥ १४॥ वीरत्न मुनि वचन सुगुरुनुं सांजली रे, तपसी यती वात्सल्य, करवा रे करवा रे अन्निग्रह लीधो मन रली रे ॥ १५ ॥ हवे तपसी मुनिवरनी नक्ति करे सदा रे, अर्शन यांनौषधि वस्त्र, आणी रे आणी रे ये सहु ते इप्सित मुदा रे (सुदारे इति पागंत रे)॥ १६ ॥ नव कलपी सुविहारे गुरुसुं विहरतो रे, sal वीरत्न ऋषिराय, आव्यो रे आव्यो रे शालिग्रामें र्या शोधतोरे ॥१७॥ मासतणो नपवासीal पुण्ये आवीयो रे, तिहां मुनिचं सुरिंद, आतम रे आतम रे शुभ संयमसुं नावीया रे ॥ १० ॥al
तेह अतिथि निज गुरु राखी करी रे, पारण अर्थे आप, आसन रे आसन रे, नगरे पहोतो गोचरी रे Val Vilm १७ ॥ अंतराल ततकाल नवी मुनि अतिक्रमी रे, गुरु प्रयोग आहार, विहरीरे विहरीरे पागे
वलीयो संयमी रे ॥ २० ॥ वीरन्नद्र मुनि पागे वलीयो जेटले रे, देव परीक्षा हेत, सरीता रे सरीतारे पूर नो जल तेटले रे ॥२१॥ दरीया जिम दुत्तर पूर नदतणो रे, नतरी न शके कोय, Sal पागले रे आगः रे कहे जिनहर्ष हवे सुणो रे ॥२२॥
॥ दोहा॥ आवी शीघ्र शके नहि, लोक कहे तिणीवार ॥ घणो काल सरितातणो, रदेशे पूर अपार ॥१॥ तेमाटे किण इक घरे, यहां करो आहार ॥ पूर नहि पागे पळे, करजो पठे विहार॥२॥मु नि चिंता मनमें करी, करे ते पश्चात्ताप, गुरु नोजन कीधा विना, हूं केम जमूं आप ॥३॥ नाग्यसंयोगें।
॥५३॥
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माहिरे, आव्या मुनिचंद सूर ॥ मास खमण उपवासिया, मुज गुरु पण नूर ॥ ४ ॥ एहने तप पारगुं, जश् न शकुं गुरुपास ॥ मुनिपति गुरु नुख्या हो, इणिपेरे रह्यो विमास ॥५॥
॥ ढाल १२ मी ।। जननी मन आशा घणी ॥ एदेशी॥ वीरन्नद्र मुनि चिंतवे, हवे कहूं किम करिये रे॥ पुण्यपोचे नहि माहरूं, पुण्यविण केम तरियरे ॥ वी॥१॥पूर नदी विचमें वहे, अयो ए अंतरायो रे ॥ ज न शकुं हुं शुं करूं, मनमें एम पठतायो रे Mal वी॥२॥ प्रायें पुण्यवंत नरनणी, तपस्वीने काजे रे॥नोजन सामग्री होवे, सफली ते गजे रे॥ वी० ॥३॥ गुण त्रीशे शोनता, पूरवना अधिकारी रे ॥ दुःकर तप करि अग्रणी, नव कल्प विहारी रे ॥ वी॥४॥ नर नारी प्रतिबूझवे, देशना अमृत धारो रे ॥ एहवा अतिथि पुपये मले एम करे विचारो रे॥ वी० ॥५॥णीपरे नावना नावतां, साधुजिनो घ्यानो रे॥ करतां सुरक्षा प्रत्यक्ष अयो, देश्ने बहु मानो रे॥ वी० ॥६॥ पाए लागू प्रेमसुं, धन धन तुज अवतारो रे ॥ साधु नपर नक्ति ताहरी, साची गुण धारो रे ॥ ७॥ पूर नदीनो में करयो, कीधोति तुज अंतरायो रे ॥ खमजोस्वामी तुमे प्रनु, मोटो तुं मुनिरायो रे॥ वीणाजा पूर नदीनो संहस्यो, आव्यो गुरुपासेरे ॥ सुर पू. श्रीगुरुप्रत्ये, पाय प्रणमी नल्लासे रे ॥ वी॥ ए॥ मुनि नावना एsal नावतो, फल पाम्यो कहे, रे॥ कर्मतीर्थकर निर्मबुं, आगे लहेशे एहबुं रे॥ वी० ॥ १० ॥ दान दया तप जप क्रिया, धरम कारज गमे रे ॥ जेहवी पाये नावना, फल तेहबुं पामे रे॥वी॥११॥ यतः ॥ ज्ञाने ध्याने दाने, मौने देवार्चने तथा तपसि ॥ यदि निर्मलो न नावो, तदा हुतं नस्मनि समग्रम् ॥ अर्थः-ज्ञान, ध्यान, दान, मौनव्रत तथा तप अने देवपूजनने विषे जो निर्मल नाव थाय नहि तो सघj नस्मने विषे होम्या जेवं निष्फल ॥ मंत्रे तीर्थे गुरौ देवे, स्वाध्याये नेषजे
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वीश
स्थान
॥५
तथा ॥ यादृशी नावना यस्य, सिदिलवति तादृशी ॥२॥ मंत्र, तीर्थ, गुरु, देव, स्वाध्याय तथा
औषधनेविषे जेने जेवी नावना होय तेने तेवी सिहि थाय रे ॥२॥ हृष्ट श्रयो सुर सांजली, गुरुने । ॥
पाये लागी रे ॥ निज पानक गयो देवता, समकित मति जागी रे ।। वी ॥ १ ॥ गुरुने कराव्यु पारगुं, बहु नक्ति धरीने रे ॥ एम वात्सल्य करे मुनिनु, चित्त चोऱ्या करीने रे ॥ वी० ॥ १३ ॥sh
संयम आराधी करी, अच्युतं श्रयो देवरे ॥ तपसीनुं करीयुं जेणे, वात्सल्य नितमेव रे ॥ वी Salm १४ ॥ आगामी नवे श्रायसे, महाविदेह मोकारो रे ॥ तीर्थकर पद पामशे, वीरन्नद्र विचारोरे
॥ वी० ॥ १५ ॥ श्रीवीरन मुनिनीपरें, जिनहर्ष आराधो रे ॥ सप्तम थानक नावसुं, शिवसुखी फल साधो रे ॥ वी० ॥ १६ ॥ इति सप्तमस्थानके वीरत्न श्रेष्ठी कथा ॥
॥ दोहा ॥ अथ अष्टम स्थानक कहे, जे सुविवेकी होय ।। क्लिष्ट कर्मनी निर्जरा, जे नर वांठे कोय ॥ १ ॥ सदानुष्ठान संपूर्ण फल, तासु प्रदायक अह ॥ तेह निरंतर नावसुं, ज्ञान उपयोग करेह ॥ २ ॥ वरस कोमी बहु नारकी, कर्म खपावे जेह ॥ ज्ञानी स्वासोवासमां, त्रण गुप्तीसुं तेह ॥ ३ ॥ ठ अठम दुवालस, करे अनाणी शुद्ध ॥ बहु गुण होये एहथी, झाने युक्त विशु ॥४॥ आत्म | तत्व विचारणा, सम्यग्ज्ञान संयोग ॥ दुर्जरकर्मतणो सही, तत्क्षण होय वियोग।।जिनवर नक्त Ralक्रिया विषे, ज्ञानतणो नपयोग ॥ महा निर्जरा कारणे, कयो विशुद्ध त्रियोग ॥ ६ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ वेगे पधारो मोहोलथी॥ एदेशी ॥ feel तेह ज्ञान जिनवर कह्यो, मति श्रृंत अवधि विचार ॥ मनपर्याय केवल करी, ए अया पंच प्रकार Slu तेह ॥१॥नेद कह्या मति ज्ञानना, अग्यावीश प्रकार ॥ मन लोयणे टाली करी, व्यंजना-II
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२४
वग्रह चार ॥ तेह ॥ २ ॥ अर्थावग्रह देहाडपाय, नारणा इंडिय इस ॥ मनखटसुं ए ४ जोमीए, चारसुं प्रय्यावीश ॥ ते० ॥ ३ ॥ चौद नेद श्रुत ज्ञानना, अक्षरे संज्ञां दाख ॥ सम्यग सौदिसपर्यन, सनार्गम एक जिननाख ॥ ते ॥ ४ ॥ अंग प्रविष्ट साते यया, सांते नर संघांत ॥ अनुगामी मानेसुं, तृतीय मेली प्रतिपात ॥ ते ॥ ५ ॥ मेलीजें प्रतीपक्षसुं, पट विधि अवधी कहाय ॥ रीजु मति विपुंल दें करी, बेविध मन पर्याय ॥ ते ॥ ६ ॥ सकलावरण रहित करी, एकविध केवल | सार ॥ त्रोपकार निजपर जली, श्रुत उपयोगांधिकार ॥ ते० ॥ ७ ॥ यतः ॥ मूकं ज्ञानचतुष्टयं स्वविषयं नैवाभिधातुं क्षमं । दक्षं चात्मपरंप्रकाशनविधौ सम्यक् श्रुतं दीपवत् ॥ तद्धाने ग्रहणे श्रुतस्य न पुनः शेषाणि कश्चित्कमो, दातुं ज्ञानवराणि निर्मलगुण प्राप्तान्यपि प्राणभृत् ॥ १ ॥ अर्थः- मतिज्ञान, अवधिज्ञान मनःपर्यवज्ञान ने केवलज्ञान ए चार ज्ञान, मूक (मूंगांवे ) तेथी ते स्वविषयने एटले पोताना विषयने, कहेवा माटे समर्थ नथी, अने श्रुतज्ञान जे बे ते दीवा - नी पेठे पोताने अने परने प्रकाशित करवामां दबे अर्थात् श्रुत ज्ञान, आत्मविषय अने पर विषयने प्रकाशित करे बे तेमज ते मतिप्रादिचतुर्विधज्ञाननो तथा श्रुतज्ञाननो परित्याग करवामां वा
४ व्यंजनावग्रह स्पर्शेद्रिय व्यंजनावग्रह. १ रसेन्द्रिय व्यंजनावग्रह -घ्राणेंद्रिय व्यंजनावग्रह ३ श्रोत्रेद्रिय व्यंजनावग्रह ४ - २४प्रकारना अर्थावग्रह आप्रमाणे छे. स्पर्शेन्द्रिय अर्थावग्रह, रसेन्द्रिय अर्थावग्रह, घ्राणेंद्रिय अर्थावग्रह प्राणेंद्रिय अर्थावग्रह. ३ चक्षुरिंद्रिय अर्थावग्रह ४ श्रोत्रेंद्रिय अर्थावग्रह. ५ अतिद्रिय अर्थावग्रह. ६ एम छभेदे अर्थावग्रह जाणवो. तेमज ६ भेदे करी इहा केवी. ६ अने ६ भेदेकरी अपाय केवा तेज प्रकारे ६ भेदें धारणा केवी एम २४ धया अने प्रथम प्रथम कहेल व्यंजनावग्रह मली २८ भेदे मतिज्ञान छे.
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वाडा
स्थान
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तेना ग्रहणने विषे सारीरीते को पण समर्थ नथी, एटले निर्मल गुणथ। प्राप्त श्रयेला एवां ते मति आदि चार ज्ञान अने श्रुत ज्ञानने को प्राणी आपवा माटे समर्थ नथी० ॥१॥ तिहां बेनेदार
श्रुतज्ञानना, नांख्या बहाबढ ।। बंध दुवालस अंगते, तविपरीत अबद॥ ते ॥ ७॥ सूत्र अर्थ N Balतदुनय करी, तहेना त्रण प्रकार ॥ ते श्रुत शान नपयोगथी, पाये बहु नपगार ॥ ते ॥ ॥ अन्य
नपयोग विना सदु, व्य रुपानुष्ठान ॥ सम्यक् श्रुत नपयोगशुं, करे ए विधि विधान ॥ ते ॥ १० ॥
यतः ॥ सम्यक् श्रुतोपयोगेन, व्य क्षेत्रानु सारतः॥ योविधत्ने क्रियाकांम, तांझवाझबरं सुधीः॥ १॥ Salअर्थः-सारीरीते श्रुतना उपयोगवमे इव्य अने केत्रने अनुसार जे बुझ्मिान पुरुष क्रियाकामना
तांडवना आडंबरने करे. जयंतदेव ऋषिनी परें, तीर्थंकर श्रीपामी ॥ सहुजनने हितकारिणी,
लाने सिह सुठाम ॥ ते ॥ ११ ॥ तथाही ॥ कोसंबी नगरी तिहां, जयंत देव नूपाल । सीमामा al Salजीत्या तिणे, न्यायी जन प्रतिपाल ॥ ते ॥ १५ ॥ धाता सरजे दरिद्रिया, नृप हरे दरिEि
विषाद ॥ राय विधाता सर्वदा, मांहो मांहि विषाद ॥ ते॥१३॥ अंतेनरसुं परिवों, वामी बाग Na नद्यान ।। वापीमांहि अनुदिन, मीनध्वज अंगमान॥ ते ॥१४॥ चंदन अगर मिश्रित करी, कस्तुरी घन सार । पत्रसुं जल केलि करी, कहे जिनहर्ष अपार ॥ ते ॥ १५ ॥
॥ दोहा॥ । अन्य दिवस जलकेलि करी, निज श्वाए राय ॥ हरखे मंदिर आवतां, मारगमां निरमाय ॥ १॥ कनक कमल बेग श्रका, सन्नामांहे नपदेश ॥ विश्ववंदे पग जेहना, दीठा ताम नरेश ॥२॥ केवल झानी नास्कर, जसो देव मुनि नाम ॥ राजा गजथी नतरी, वांदी बेगे ताम ॥ ३॥ करजोमी विनयी नमी, सनमुख प्रापी दृष्टि ॥ गुरुनी वाणी सनिली, श्रवणे अमृत वृष्टि ॥॥
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ढाल बीजी॥ वणजारानी ॥ देशी॥ नव्य प्राणीरे मानवनो अवतार, पामंता ए दोहिलो नव्य प्राणी रे, तिण माहे वली सार, आरज कुल नांख्यो भलो ॥ न० ॥ १ ॥ सुणी सुगुरुनी वाणी, ज्ञान हियामें आपीए ॥ ॥ कृत्यअक्रत्य पिगणी झानथकी सहु जाणीए ॥॥॥ न ज्ञानकी चारित्र, दूषण रहित समाचरि॥ न ॥ ज्ञानसुं नीत्य पवित्र, आतमने नज्वल करे ॥ ॥ ३ ॥ मन बांध्यु नवि जाए, ज्ञाने बांध्यु मनरहे ॥न ॥झानीनरजगमांहे, आदरमान घणो लहे ॥ न ॥४॥ शिवपद पामे जेह तपण झानथकी सही ॥न॥झाने नूषित देह, विणन्नूषण शोना लही॥ न ॥५॥ ज्ञानी ज्ञान प्रमाण, देखी नांखे निर्मलो॥ न ॥ जाणे किस्युं अयाण, ज्ञान विना ते आंधलो॥ ॥६॥ ते Na नर पशु प्रमाण, ज्ञान हिये नहीं जेहने न ॥ लोचन मोटां जाण, पण अंधारूं तेहने ॥ ॥ ॥Na alअज्ञानी नर जेह, चोराशी लखमें फिरे ॥न०॥ नव नव वेष धरेह, नव मंझप नाटक करे॥ON NAG॥ अज्ञानी बहु लोक, दीसे ज्ञानी श्रोमला ॥ न ॥ जेता तारा होए, चंद न होवे तेटलाsa vala ॥ ए॥ क्षण राचे कण माहे, विरचे वस्तु सहु विषे ॥ना कपि परे चंचल पाए, किमपिन Naअज्ञानीविषे ॥ न॥१०॥ तिमिर ग्रस्त अज्ञान, विषयामिष लंपट श्रया, जीव नमे बहुमान,
नाना जोनि दुःखलया ॥न ॥ ११॥ अज्ञानी आचार, शुभ अशुभ जाणे नही ॥ न ॥ न मोद दुवार लहे, वात इसी ज्ञानी कही ॥ भणाशाअज्ञाने अपवित्र, सदा रहे मन जेहनुं ॥न ॥ अंतर मेल विचित्र, दूर न थाये तेहy ॥नण॥१३॥ ज्ञान वॉ संसार, ज्ञान दीपक सरी कडं।न॥ फेमे पाप अंधार, ए जिनहर्षे सद्दयुं ॥न ॥१४॥
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॥दोहा॥ वीश
राजा सनिली देशना, प्रणमी मुनिना पाय ॥नगवन ढुं अज्ञान मय, के ज्ञानी कहो ताय ॥ ॥५६॥ INIगुरु भांखे राजें तुं, चूनर्ता रहे दूर ॥ प्रायें कोश्क देवता, ने अज्ञाने पूर ॥२॥ मुआं प्रत्ये मरतां
प्रत्ये, जरातंकनृत देह ॥ देखी वासन नपजे, केम होए ज्ञानी तेह ॥ ३ ॥ विषय विषे व्याकुल पणुं, जो ज्ञानीने होय ॥ ज्ञानी अज्ञानीतगो, त्यारे फेर न कोय ॥ ४ ॥ गुरुनां वचन सुणी इस्यां,
लघु संवेग विचार ॥ जयवर्मानामें अनुज, न्यायधर्म धुरधार ॥॥ राजपदें श्रापीकरी, जयंत Salदेव नरराय ।। नत्सवसुं संयम धर्यो, श्री गुरुपासे आय ॥ ५॥
॥ढाल ३ त्रीजी ॥जीहो जाण्यु अवधि प्रयुंजीने ॥ ए देशी ॥ Sel जीहो पंचमहाव्रत नचर्या, जीहो त्रिविध त्रिविध तेणीवार ॥ जीहो संजम सींह तणीपरें, Saजीहो पाले निरतीचार॥१॥महामुनि ते मोटाअगार,जीहो चारित्र पाले नजलोजीहोज्ञानसहित भाविचार ॥ महा॥ जीहो श्रीगुरुनी सेवा करे, जीहो गुरुसु करे विहार ॥जीहो दुस्तप तपने पारणे sal
जीहो नीरस करे आहार ॥ म ॥॥ जीहो हादशांग मुनिवर नण्यो, जीहो सूत्र अरथ मनन्नाव जीहो शिथिल थयो चारित्रविषे, जीहो मोह करम अनुभाव ॥ म ॥ ३ ॥ जीहो मनमश्रयुं मन जेहनु, जीहो शाता गारवमांहि ॥ जीहो खुतो कीच प्रमादमां, जीहो जोग अथिर थयो ताहि ॥मण Elnam जीहो चौद पर्वि आहारता, जीहो मन नाणी जे होय॥जीहो पमे प्रमादतणे वशे, जीदो चन। मांहि जोय ॥ म
जीदो निज्ञ विकथा जीन कह्या, जीहो मदिरा विषयकषाय॥Mu६॥ Balजीहो पमे जीव संसारमां, जीहो ए ए पंचपमाय ॥ म ॥६॥ जीहो इत्यादिक आगमत',
जीहो रहस्य कही गुरुराय, ॥ जीहो राजऋषि प्रतिबोधियो, जीदो तज्यो प्रमाद अन्याय ॥ म
।
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Nalu ७ ॥ यतः ॥ सुखेन बोध्यते ज्ञानी, नैवाझानी पुमान्क्वचित् ॥ अयत्नान्मार्ग मायाति | ISHIचकुष्मान्नेतरे पुनः॥ अर्यः--शानीने सुखें प्रतिबोधी शकाय डे पण अज्ञानी पुरुषने को स्थले पण
बोध करी शकातो नयी. केमके नेत्रवालो माणस वगरश्रमें मार्ग प्रत्ये प्राप्त पाय ठे पण नेत्रहीन मार्गमां श्रमविना आवतो नश्री. जोहो हवे प्रमाद सहु तजी, जोहो करे क्रिया सावधान ॥ जीहो जयंत देव मुनिवर ग्रह्यो, जोहो अन्निग्रह शुन्न परिणाम ॥ म ॥ ॥ जीहो आजपनी करवो
सदा, जोहो ज्ञानतयो नपयोग ॥ जोहो निज्ञ विकया परिहरी, जीहो तजी कषाय संयोग ॥ Ralम ॥ ए॥ जीहो संयम योगविषे हवे, जीहो राज ऋषीश्वर तेह ॥ जोहो ज्ञानोपयोग विस्तार तो
जीहो काले क्रीया करेह ॥म॥१॥जीहो त्रण गुप्ति गुप्तातमा, जीहो नारंम जीम अप्रमत्त ॥ जोहो निशदिन श्रुतनपयोगसुं, जोहो राजी राख्यु चित्त ॥ म ॥ ११॥ जीहो पांच सुमति पाले मानली. जीहो राखे योग विश॥ जीहो आठ कर्म हवा नगी. जीहो मनिवर मामयं यह म॥ १२॥ जीहो बखतर पहेयु शीलनु, जीहो जीन आज्ञा शिरटोय ॥ जीहो चरण करण सेना सजी, जीहो करवा अरिनो लोप ॥ म० ॥ १३ ॥ जोहो बारह नावना नमरा, जोहो सुयश घुरे निशाण ॥ जोहो हादश अंगो हाथिया, जीहो वहता अरथ सुदान ॥मण॥१॥जीहो कमातगुं खम्गुं प्रयु, जीहो दुस्तप तप करवाल ॥ जीहो ध्यान अश्व नपरे चढ्यो, जीहो चाबख चित्त रसाल ॥ म ॥ १५ ॥ जीहो ज्ञानतणा गोला वहे, जीहो संयम शुक बाण ॥ जीहो र्यागुण अति आकरो, जीहो वचन सुतीखां वाण ॥ म ॥ १६ ॥ जीहो सैन्य मोहराजात', जीहो दश-sal दिशि गयुं पलाय ॥ जीहो जयंत बार जगमें थयो, जीहो जयंत देव मुनिराय ॥ म॥१७॥al जीहो साधुपरीका कारणे, जीदो विस्मय धरी अनूप ॥ जीहो आव्यो ६६ करी तिहां,
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वोश
॥५७॥
DID
CACCCCECEEEEEEEEEEEEEEEE
जीहो स्वर्ग अंगनारूप ॥ म० ॥ १८ ॥ जीहो दिव्याभरणें शोजती, जीहो करती विविध विलास ॥ जीदो हाव जाव करे घणा, जीहो करती हास्य विलास ॥ १७ ॥ जीहो नृपने नोलववा नली जीहो यौवनतणे उन्माद || जीहो काम वचन कह्यां कामिनी, जीहो ल्यो प्रभु यौवन स्वाद ॥म ॥ २० ॥ जीहो हुं मोही तुजरूपसुं, जी हो इंतली हुं नार ॥ जीहो जोगवो सुख संसारनां, जीहो करो सफल अवतार || म० ॥ २१ ॥ जीहो हुँ आवी आशा करी, जीहो मकरिश श्रशाभंग ॥ जी हो मेरुतणी परे मुनि रह्यो, जीहो कहे जीनहर्ष अभंग ॥ म० ॥ २२ ॥ सर्वगाथा || २ || ॥ दोहा ॥
? ॥
त्यापटी कीधुं वली, रूप विप्रनुं खास ॥ घरको हाथे लाकमी, ग्राव्यो मुनिनी पास || नमस्कार ऋषिने कही, बेगे आगल तास ॥ प्रावखं मुफ केटलुं, जगवन् तेह प्रकाश ॥२॥ सम्यग ज्ञानप्रयुंजीने, कहे सांजलो सुरराय ॥ कांइक प्रोढुं आजथी, वे सागरबे आय ॥ ३ ॥ प्रत्यक्ष थ वासव कहे, धन्य धन्य तुं अणगार ॥ सुरस्त्री वचनें नवि चल्यो, न जज्यो विषय लगार ॥ ४ ॥ तुज सरिखा मुनिवरतला, चरण नमे सहु कोय ॥ जीए जीत्युं मन आपणुं, तासदास जग होय ॥ ५॥ ॥ ढाल ४ श्री ॥ कुमरी बोलावे कुवमो ॥ ए देशी ॥
पूबे जगवन् कहो, जीव निगोद विचारो रे, ॥ श्रीजीनमतमांहे दुवे, तेह कहो निरधारो रे ॥ इ ॥ १ ॥ गोला असंख्याता कह्या, असंख्य निगोद गोलोरे ॥ एकेके निगोद में, जीव अनंतनो टोलो रे ॥ २ ॥ नेला मरे नेला नपजे, जेला शरीर निपावे रे || श्वासोच्छवास नेला लिए, आहार जेला सहू पावे रे ॥ ५ ॥ ३ ॥ आहार साधारण सहुनी, साधारण आण पाणोरे ॥ साधारण जीवो तणुं, साधारण लक्षण जाणोरे ॥ इ ॥ ४ ॥ जीम लोहनो गोलो धम्यो, थाय
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अनि संकाशो रे ॥ पावक प्रणीत सह हुवे, तिम निगोद प्रकाशो रे ॥॥ ॥श्म होये ते असंख्याता, देखी न शकीएं तेहो रे॥ दीसे शरीर निगोदनां, अनंत मेला होय देहो रे ॥॥६॥N लोकाकाश प्रदेशमां, कं निगोद जीव हुवे रे ॥ इणीपरे मवतां थकां, थाये लोक अनंतोरे इंज्ञा असंख्य जोयण मान लोकजें, जोयण अंगुल असंख्यातो रे ॥ असंख्य अंश अंगुलतणा, अंश गोला असंख्यातो रे ॥३६॥ ॥ गोलो असंख्य निगोदीओ, जीव निगोद अनंता रे॥ जीव असंख्य प्रेदेशीयो, नांख्यो श्रीनगवंता रे ॥ ॥ ए॥ एक प्रदेशे कर्मनी, अनंत वर्गणा थाय रे वर्गणानंत परमाणुंआ, अणु अनंत पर्याय रे ॥६६॥१०॥ लोकस्वरूप ए एहवं, नावीजें मन-NA
माहे रे ।। श्रीजिनवरनु नपदिश्यु, मुनि कयुं परम नत्साह रे ॥ ६६ ॥११॥ इत्याकरणी निगो-sa Palदनो, मुनिवर मुखश्री विचारो॥ प्रितिमान् सुरपति थयो, स्तवनां करे अपारो रे ॥ ६ ॥१॥
दे त्रण प्रदिक्षणा, प्रणम्या ऋषिना पायो रे ॥ कर जोमी ६६ विनवे, गुरुपासे आयो रे ॥ ३॥ Salu १३॥ तेणे मुनि ज्ञान प्रयोगश्री, नगवन शुं फल पाम्युं रे॥ तीर्थंकर नाम निबंधीयुं, गुरु कहे
तेणे शिर नाम्युं रे ॥ ६ ॥१४॥ पाये नमी राजऋषितणा, गयो सुरलोके दिवेशो रे ॥ ज्ञान प्रयोगें ते करे, किरीया जिन नपदेशो रे ॥॥१५॥ चारित्र पाली अनुक्रमे, महाशक अयो देवalलोके रे ॥ चवि विदेहे जिन दोशे, करशे सुरनर सेवो रे॥६६ ॥१६॥ एम जयंत क्षितिपालनो, श्रवणे सुणी वृत्तांतो रे ॥ कहे जिनहर्ष यतन करे, ज्ञानोपयोगें संतो रे ॥३६॥ १७ ॥
इति अष्टम स्थानके जयंतराज ऋषिकथा ॥
॥दोहा॥ हवे नवमा थानकतणो, सांजलजो अधिकार ॥ सम्यकदर्शन पालवू, त्रिधा शुद्ध सुविचार ॥१॥
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वाडा जेहना जेहवा गुण हुवे, जाणो तास स्वरूप ॥ देव गुरुधर्मने विषे, सम्यक श्रद्धारूप ॥ २ ॥ अरि
स्थान हंत देव सुसाधुगुरु, केवलि नाषित धर्म ॥ त्रण तत्व ए सहदे, ते सम्यक्त्व अकर्म ॥ ३॥ ते ॥पना
सम्यक्त्व अनेकधा, हुवे परिणाम वशेण॥ऐग ऐति वीहा चनविहा, पंचविह दस विद श्रेणी ॥५॥ धर्मतत्व रुचि एविधि, दुविहे निसर्ग उपदेश ॥ दायक क्षयोपशम केवली, नपसमि कृतिविशेष E॥ ५ ॥ कीजें स्वास्वादन युक्त, थाये चार तिवार ॥ वेदक समकित युक्तसुं, थाए पंच प्रकार ॥६॥
॥ ढाल पेहेली ॥ देशी चोपाश्नी॥ _दशप्रकार समकित हवे सुणो, निसर्ग रुची नुपदेशरुचि गुणो॥ आझारुचि सूत्ररुचि अवधार,
बीअरुचि अन्निगमरुचि विस्तार ॥१॥ किरियाँरुचि कहीए आग्मी, संक्षेप रुचि नवमी नपशम॥ Salधर्मरुचि दशमी नच्चरे, अनुक्रमें लहीये ते कीण परें॥२॥ नवमां नमतां घणां आवर्त, पाद चरम SEI पुद्गल परावर्त ॥ सनी पणंदी पर्यापतो, वधते परिणामें थयो तो॥३॥ मोहनी सीतेर कोमाकोमी
नाम गोत्रनी वीश वीश जोमी ॥ त्रीश कोमी कोमी थिति चारनी, आयु सागर तेत्रीश लारनी Sailuu ॥ असंख्य नाग पढ्योपम हीण, सागर कोमाकोमी प्रवीण ।।एक मूकी बीजी खेपवे, सघली Isalहिजिनवर एम यवे ॥ गिरिशिर नपलतणीपरें जीव, यथा प्रवृत्ति करणे सदीव ॥ अणानोग परे Sal
आवेश, गंगीतणे देसंमि वसे ॥ ६॥ गंगीनेद अ दुर्नेद, निविझ गूढ गंठी जेम वेद ॥ कर्मजनित
बंधन आकरां, जीवतणे पोते ने खरां ॥ ७॥ अन्नव्य आवी हां वार अनंत, च्य श्रुत लहे समsalकित न लहंत ॥ बांधे जेष्ट स्थिति ते वली, नमे रमे चनगति मोकली ॥ ७ ॥ अपूर्व कर्ण मोघरने sal ॥ jधाय, ग्रंथी नेद करे शुन्न नाय ॥ अंतर मुहूर्ते पहोतुं तेह, अनिवृत्तिकरणविषे गुणगेह ॥ NET अंतर करण करी महानाग, करे मिथ्यात्व स्थिति बे नाग ॥ अंतर मुहरत प्रमाणे तेह, हेग्ली
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i
थिति सुहन्नाव खवेद ॥१० ॥ अंतरकरणे गुण गावतो, प्रथम समय इणिपरे वर्ततो॥ नखर देश वली नोये चरे, नला वन दवनी परें ॥११॥श्म अनुदय श्रयो मिबित, जीव लहे नप. शम समकित ॥ चवी नपशम समकितश्रकी, प्रते मिथ्याती न पहोंतो शकी॥१२॥तास विचाले sal षट आवली, सास्वादन समकित लहे वली ॥ अथवा करे उपशम समकिते, पुंजत्रिका मिथ्यात्वह प्रते ॥ १३ ॥ प्रयोगपरीणामवशे अत्यंत, मयण कोवाने इष्टांत ॥ शुक्ष अर्ध अने शुभ अशु, तिहां पहिलो वर्ततो बुद्ध ॥ १५ ॥ दायोपसमकित थाये सही, बीजे मिश्र वात जिन कही। मिथ्यादृष्टि त्रीजे पुंज, ईम नांखे गणधर गुणगुंज ॥१५॥ मिच्छमवह पुगल परिअह, समकित नण्यु सागर गसठ ॥ अंतर मुहरत मिश्र वखाण, जघन्य Nal नत्कृष्ट कह्यो सर्वाण ॥ १६ ॥ नपशमिक आवे पंचवार, असंख्य क्षयोपशम सुविचार ॥ कलष अंबु सारीखुं हुंत, कयोपशम नांख्यो नगवंत ॥ १७ ॥ निर्मल सलिलतणीपरे जाण, उपशम सम-sal कित हियडे आण ॥ कायिक समकित सुण गुणवंत, विमल सलिल निर्मल अत्यंत ॥ १८ ॥NE क्षयोपशम नपशमिक समान, अथ विशेष सनिलो सुजाण ॥ नपशमिक वेदे न प्रदेश, एक मिथ्या-10 त्वतणो लवलेश ॥१ए ॥ सासायणोव संमियाडंत, पंचवार नत्कृष्ट गणंत ॥ वेद कषायक एको वार, असंख्य खोवसम निरधार ॥ २०॥ समकित गुण पामे गुणवंत, पलिय पहुते श्रावक हुँत usa चरणोवप्तम कयें अनुक्रमी, सागर संख्यांतर संजमी॥१॥ जेहनो दूर तीर नतार, प्रवहण फूटो जलधि मझार ॥ बुझता नरने तिणिवार, फल्या सायण सरण विचार ॥ २२ ॥ तिम संसार जलधी दुतीर, जनममरण दुखजल गंन्नीर ॥ जीवनणी जीहां शरणे होय, समकित आसायण Nal तुं जोय ॥ ३३ ॥ जेम दुकाल काल अवगणी, अशनविहीण कुडित नरनणी ॥ तुरत मिले आवी
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श
ए
परमन्न, मनमां जाणे हुं धन धन्न || २ || तिम ए दुसम काल अजीव, बहुल प्रमादी सघला जीव || दुषित ने जिन हर्ष दुवंत, समकित अमृत मन दुखंत ॥ २५ ॥
॥ दोहा ॥
मणीमांहे चिंतामणी, तरुवर सुरतरुतत ॥ कामगवी गोवर्ग में, सहुगुणमें समकित ॥ १ ॥ सम्यग कायोपशमिक, दर्शन कायक तेम ॥ चिंतामणी दुर्लन लही, जव वारिधिमें जेम ॥ २ ॥ शुद्ध हृदय नर जेह धरे, जपी पंच प्रतिचार | हरिविक्रम नृप कुमर जिम, लहे जिनपदवी सार || २ || जिनपदवी हंसी परे, करपंकज शोनंत ॥ शिवसंपत्ति सहोदरी, अविचल सुखदीयंत ॥ ४ ॥ ॥ ढाल २ जी ॥ सुए बेहेनी पीयुको परदेशी ॥ ए देशी ॥
इहिज भरत क्षेत्र में सोहे, हस्तीनागपुर वारू रे ।। हरिषेण नामें तिहां राजेसर, गुण संपत्ति नो धारुरे ॥ ई० ॥ १ ॥ श्री जिन पूजा रचे विस्तारे, साधुसेवा नित सारे रे ॥ समकित हृदयथकी न वीसारे, दान दीये चित सारे रे ॥ ३० ॥ २ ॥ न्याय रीते निज परजा पाले, जयोपश्व सहु टाले रे॥मान अरिजन केरां गाले, प्रभुता बल देखा मे रे ॥३०॥३ ॥ तेदने गौरी गौरी राणी, रूपें जाणे इंझली रे | बोले मीठी अमृत वाणी, विदुषे तास वखाली रे ॥ ३० ॥ ४ ॥ निर्मलशील धरे निजांगे, के लिकरे पियु संगेरे || धर्म करे हलि मलि नबरंगें, मन वच काय अनंगें रे ॥ ३० ॥ ५ ॥ तास पुत्र जाणे सोवन पुरिसो, हरिविक्रम हरी सरीसो रे ॥ मातपितानो आज्ञाकारी, पुरमें ख्याति वधारी रे ॥ ३० ॥ ६ ॥ पितु आदेशथकी नृपकन्या, सर्व कला गुणधन्या रे ॥ राजकुमर वर अधिक जगीसे, अनुक्रमें परणी बत्री से रे ॥ ३० ॥ ७ ॥ तेहसुं विषय तणां सुख माणे, नदयास्त मन न जाणे रे ॥ देवतली परे दिवस गमावे, परिघल पुण्य गमावे रे
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स्थान
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॥३॥७॥ अन्य दिवस पापोदय योगें, काया पीमी रोगे रे ॥ रोगनोग अरथीया अघनो, आग कोढ नतपन्नो रे ॥णा ॥ रांकतणीपरे अहनिस पोकारे, घोरे आनंद वधारे रे ॥ रोगे करी सर्वांगें पीमयो, सघली नाव नीमयो रे ॥३०॥ १० ॥ एक निमिष शाता नवि पामे, उस्सह दुख न विसमेरे ॥ रात दिवस इस सरिखा जावे, सयण सहु दुख पावरे ॥३०॥११॥ नारी बत्रीशे दुखसनरी रोती, आंसु करे जिम मोती रे ॥ नरआंसु पाणीसे धोती, पियुमा मुख सामु जोती रे॥
॥ १२॥ वैद्य विद्याविद करे घणार, औषध बुहि घणारे ॥ निफल श्रया सह गुण नाव्यो, alजिम कुपात्र वित्त वाव्यो रे॥३०॥१३॥ पुरवर यद धनंजय नामें, नामें वांगित पामे रे ॥अक्त तेज यवनं परमां, ख्याति घणी यस सरमांरे॥३०॥१४॥ रोग पीमाए कमर पीमागो. मिथ्यातो मुंफागो रे ॥ मनमांहे स्वयमेव विचार्य, यदे हियामां धार्यु रे ॥३०॥१५॥ जो काया Na नीरोगी श्राशे, आमय सघला जाशे रे॥ तो हुँ ताहरी यात्रा ए आविश, अन्न पडे हुं खाश्श रे॥ Ram १६॥ ताहरो महिमा ले जग मोटो, वात नहि ने खोटी रे॥ सेवक वत्सल कहुं शिर नामी, रोग
गयो मुज स्वामी रे ॥ ३० ॥१७॥ तादरि पूजा बहुत प्रकारें, करशुं नन्सव सारे रे ॥ करूं जिनहर्ष विनती तुमने, करो निरोगी मुझने रे ॥ ३० ॥ १७ ॥ सर्वगाया ॥४॥
॥दोहा॥ नोग चमाविश नवनवा, करशुं ताहरी जात ॥आरतियो जोवे नहि, पुण्य पापनी वात ॥१॥ अग्नि सरखी आकरी, वेद खमी न जात ॥ क्रूरव्यथाएं आकलो, मान्यो श्म मिथ्यात ॥२॥
॥ ढाल त्रीजी ॥ मारी सखी रे साहेली ॥ ए देशी ॥ तिण अवसर तिण नगरी आरामे, मुनीश्वर वंदू नामें रे ॥ गुरु परनपकारी, केवल ज्ञानदिवाकर
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वीश
स्वामी, समवसर्या हितकामी रे ॥ गुण ॥ १ ॥ जीवदयामय बहुगुणधारी, पडिवोहे नारनारी स्थान
रे । गुण ॥ सुरकृत कंचन कमल विराजे, बेग मुनिपति गाजे रे ॥ गुण ॥ ॥ हरिषेण नृप गुरु ॥६॥
आगम जाणी, हरख्यो नत्तम प्राणीरे ॥ गुण ॥ अंबुद ध्वनि शुणिजेम कलापी, नृप यो आनंद Salव्यापी रे ॥ गु० ॥ ३ ॥ ले राजा निजै सुत लारे, आव्यो बहु परिवारे रे ॥ गुण usa Balमुनिपासे आव्यो मन रागे, विधिशुं पाये लागे रे ॥ गुण ॥४॥ दुतां कुमरनां जे ऋज कागं, गुरु
दर्शनश्री नाग रे ॥ गु ॥ मृग नासे जेम मृगपति आगे, रवि देखी तम नागे रे ॥ गुण ॥५॥ अमृतरस जेम सींची काया, नृपसुत तिम सुख पाया रे ॥ गुण॥ शीतलनाव श्रयो सर्वांगे,
मुनि प्रगम्या मनरंगें रे ॥ गु॥६॥ जिन पूजन मुनिवंदन कीधुं, दान सुपात्रं दीधुं रे ॥ गुण Naनावे पुण्यकारज अनुसरतां, तुरत फलें श्छ करता रे ॥ गु०॥ ७ ॥ हवे केवली अज्ञान हरेवा, IS
तेहने प्रतिबोधेवा रे ॥गुण॥ जेह कर्म इहां प्राचरिये, तेवा परनव लहियें रे ॥ गुण ॥ वृक्ष तगुं
जेम मूल सिंचाये, फल शाखाए थाये रे ॥गु॥ आरंन्यो नपदेश उगहे, मी अमृत पाहे रे Nau गु॥७॥ जिस दिवते जिग वेला करिये, जिरावय में आचरिये रे ॥ गुण पातक पुण्य करम नपायें, तिम तस्योदय पाये रे॥ गु॥ १० ॥ पापयकी दुख तीव्र लही में, मारप्रहार सहीजें रे
गु॥ एह जागी पाप न करिये, पर पीमा परिहरिये रे ।। गु॥११॥ पातक कर्म करिने प्राणी, नरक यातना खाणी रे॥ गु॥ तेह अनुनूय मनुष्य इहां पाये, नानामय पीडाये रे ॥ गुण ॥१॥ सर्वप्राणिनी जे करे हिंसा, पापिमांहे प्रशंस्या रे ॥ गु॥ वार घणी जे पामे राजा, नवअंतर sal | ॥६॥ दुख कामां रे ॥ गुण ॥१३॥ दान दया संयम जिन सेवा, सदगुरुवचन सुणेवा रे ॥ गुण ॥ तपजपयी पुण्योदय थाये, तेहयी रोग पलाये रे ॥ गुण ॥१५॥ इणि अवसर पूढे नृप जायो।
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Ral श्रीगुरुने मन नायोरे ॥ गुण ॥ पूर्वनवें शां पातक कीधां, जिणें एहवां दुख दीघां रे ॥ गुण ॥१५॥
यौवन मांहि लह्यो ए नारी, रोगनोग अपहारी रे ॥ गुण ॥ केवल ज्ञानी प्रनु श्म बोले, करुणा सायर तोले रे ॥ गुण ॥ १६ ॥ पूर्व विदेहविषे गुणवंतो, श्रीपुर रिहिसमेतो रे ॥ गुण ॥ पद्मनामें राजेश्वर हुँतो, सबल अधमें तो रे ॥ गुण ॥ १७ ॥ जीवतणी हिंसा ते करतो, नित आहे
फरतो रे ॥ गुण ॥ मदिरा मांसतणो आहारी, कुगतितणो अधिकारी रे ॥ गुण ॥ १७॥ एकStal दिवस आहेमो करवा, प्राण प्राणिना हरवारे ॥ गुण ॥ नीकलतां मारगमां दीगे, प्रतिमाधर salमुनि मीगे रे ॥ १५ ॥ कुंते करिने कुपित अनामी, मांगा जेम नपामी रे ॥ गुण ॥ साधुन्नणी
चंचो नगल्यो, पमतोनोंय अफाल्यो रे ॥ गुण ॥ १५ ॥ तिणें पापि ते मुनिवर मार्यो, परन्नव Salदुख न विचारयो रे,॥गुणा दुर्गतिगामी जे नर थाये, पाप करीने कमाये रे ॥ गुण॥२०॥ मंत्री शेठ
सामंत विशेषी, प्रौढ पुरुष जे देखी रे ॥ गुण ॥ ऋषिहत्या कीधी इणे पापी, पापें देह संतापी रे ॥ गुण ॥ २१॥ एह अन्याय कियो इणे राजा, वाज्यां दुर्गति वाजांरे ॥ गुण ॥ एहने पा सहु । पीमाये, रावरानीपरे थाये रे ॥ गुण ॥ १२ ॥ राजथकी तेहने नठामी, काढ्यो पुरथी पामीरे ॥ गु॥ पुंडरीक तसु सुत सुख दायी, थाप्यो राज्य सुन्यायीरे ॥गुण ॥ २४ ॥ अति नग्र पुण्य पाप जे कीजें, इहां फल तुरत लहीजें रे ॥ गुण ॥ कहे जीनहर्ष सुणो नरनारी, वात एह निरधारी रे ॥ गुण ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ॥ ७॥
॥दोहा॥ इणि अवसर तेणे अन्यदा, नमतां वनह मोकारकोप करी पापी कियो, मुनि मारवा विचार॥१॥ यमरूपी करवाल ग्रही, आव्यो ऋषिनी पास ॥ तेजोलेश्या पतित मुनि, मूकी बाख्यो तास ॥॥
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वीशस्वामी, समवसर्या हितकामी रे ॥ गुण ॥ ॥ जीवदयामय बहुगुणधारी, पडिवोहे नारनारी स्थान
बारे ॥ गुण ॥ सुरकृत कंचन कमल विराजे, बेग मुनिपति गाजे रे ॥ गुण ॥ २ ॥ हरिषेण नृप गुरु ॥६ ॥ INIआगम जाणी, हरख्यो नत्तम प्राणीरे ॥ गुण ॥ अंबुद ध्वनि शुणिजेम कलापी, नृप श्रयो आनंद
व्यापी रे ॥ गु० ॥ ३ ॥ ले राजा निजे सुत लारे, आव्यो बहु परिवारे रे ॥ गुण ॥bal Selमुनिपासे आव्यो मन रागे, विधिशुं पाये लागे रे ॥ गुण॥॥ हुतां कुमरनां जे ऋज कागं, गुरु Naदर्शनश्री नाग रे ॥ गु० ॥ मृग नासे जेम मृगपति आगे, रवि देखी तम नागे रे ॥ गुण ॥ ५॥
अमृतरस जेम सींची काया, नृपसुत तिम सुख पाया रे ॥ गुण ॥ शीतलनाव श्रयो सर्वांगे, मुनि प्रणम्या मनरंगे रे । गु॥६॥ जिन पूजन मुनिवंदन की , दान सुपात्रं दीधुं रे॥ गुण ॥ नावें पुण्यकारज अनुसरतां, तुरत फलें श्च करतारे ॥ गु०॥ ७ ॥ हवे केवली अज्ञान हरेवा, तहने प्रतिबोधेवारे ॥ गुण॥ जेह कर्म इहां आचरिये, तेवा परनव लहियें रे ॥ गुण ॥ वृक्ष तगुं|
जेम मूल सिंचाये, फल शाखाए पाये रे ॥गु॥ प्रारंन्यो नपदेश उगहे, मी अमृत पाहे रे salu गु॥७॥ जिस दिवते जिग वेला करिये, जिसवय में आचरिये रे ॥ गुण पातक पुण्य करम
नपायें, तिम तस्योदय प्राये रे ॥ गु॥ १० ॥ पापयको दुख तीव्र लही में, मारप्रहार सहीजें रे Soluगुण॥ एहवू जाणी पाप न करिये, पर पीमा परिहरिये रे ॥गुण ॥११॥ पातक कर्म करिने प्राणी,
नरक यातना खाणी रे॥ गु॥ तेह अनुनय मनुष्य इहां श्राये, नानामय पीडाये रे ॥ गुण ॥१॥
सर्वप्राणिनी जे करे हिंसा, पापिमांहे प्रशंस्या रे ॥ गु॥ वार घणी जे पामे राजा, नवअंतर ॥६ ॥ Salदुख काम रे॥ गुण ॥१३॥ दान दया संयम जिन सेवा, सदगुरुवचन सुणेवा रे ॥ गुण ॥
तपजपयी पुण्योदय थाये, तेहयो रोग पलाये रे ॥ गुण ॥१५॥ इणि अवसर पूछे नृप जायो
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श्रीगुरुने मन जायेोरे ॥ गु० ॥ पूर्वजवें शां पातक कीधां, जिणें एहवां दुख दीघां रे ॥ गुण ॥१५॥ यौवन मांहि लह्यो ए जारी, रोगनोग अपहारी रे ॥ गु० ॥ केवल ज्ञानी प्रभु इम बोले, करुणा सायर तोले रे ॥ गु ॥ १६ ॥ पूर्वविदेहविषे गुणवंतो, श्रीपुर रिद्धिसमेतो रे || गु० ॥ पद्मनामें राजेश्वर ढुंतो, सबल अधर्मे खुंतो रे ॥ गु० ॥ १७ ॥ जीवतणी हिंसा ते करतो, नित आहे फरतो रे ॥ गु० ॥ मदिरा मांसतणो आहारी, कुगतितो अधिकारी रे ॥ गु० ॥ १८ ॥ एकदिवस आहेको करवा, प्राण प्राणिना हरवारे ॥ गु० ॥ नीकलतां मारगमां दीगे, प्रतिमाधर | मुनि मीगे रे ॥ ११७ ॥ कुंते करिने कुपित अनामी, मांगा जेम नपामी रे || गुण || साधुजणी नंचो नबाल्यो, परुतो जोंय फाल्यो रे ॥ गुण् ॥ १७ ॥ ति पापि ते मुनिवर मार्यो, परभव दुख न विचारयो रे, ॥ ॥ दुर्गतिगामी जे नर थाये, पाप करीने कमाये रे || गु० ॥ २० ॥ मंत्री शे सामंत विशेषी, प्रौढ पुरुष जे देखी रे ॥ गुण || ऋषिहत्या कीधी इणे पापी, पापें देह संतापी रे || गु० ॥ २१ ॥ एह अन्याय कियो इ राजा, वाज्यां दुर्गति वाजांरे ॥ गु० ॥ एहने पापें सह पीमाये, रावानी परे थाये रे || गु० ॥ २२ ॥ राजथकी तेहने नठामी, काट्यो पुरश्री पामीरे ॥ गु० ॥ पुंडरीक तसु सुत सुख दायी, थाप्यो राज्य सुन्यायीरे ॥ ० ॥ २४ ॥ अति नम्र पुण्य पाप जे कीजें, इहां फल तुरत लहीजें रे ॥ गु० ॥ कहे जीनदर्प सुगो नरनारी, वात एह निरधारी रे o || २ || सर्वगाथा ॥ ८ ॥
॥ दोहा ॥
अवसर ते अन्यदा, जमतां वनह मोकार । कोप करी पापी कियो, मुनि मारवा विचार ॥ १ ॥ यमरूपी करवाल ग्रही, आव्यो ऋषिनी पास ॥ तेजोलेश्या पतित मुनि, मूकी बाल्यो तास ॥ २ ॥
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वोशण नरक सातमे नारकी, मरी श्रयो नरराय ॥ आयु जलधि तेत्रीशनु, धनुष पांचशे काय ॥ ३॥al स्थान
उख अनेक तिहां नोगवे, कहेतां नावे देह ॥के जाणे ते प्राणियो, के ज्ञानी जाणे तेह ॥ासाते ॥६१॥
al नरके पापश्री, नमियो वे बे वार ॥ कृष्णलेशी महापातकी, पाम्यो दुख अपार॥॥ तिर्यग् योनि-Sal तणेविषे, नमियो वार अनंत ॥ तीव्र दुःख तिहा नोगव्यां, वशे अज्ञान महंत ॥ ६ ॥
॥ ढाल ४ श्री ॥ इमर आंबा आंबली रे ॥ एदेशी॥ Nal अकाम निर्जरा योगश्री रे, कर्म खपाव्यां नूर ॥ सिंधुदत्त शेठी तणोरे, सुत यो शुल अंकूर Nailu॥चतुर नर हिंसानां फल जोय, ए तुंहि साथे दुख होय॥चगाएतो हिंसा म करजो कोय॥चाsa
गुणसुंदर गुण आगलो रे, मातपिता दिवं नाम, प्राणीनपर तेहनो रे, दयातणो परिणाम ॥ च Pralne॥ नुख्याने आपे सदा रे, हृदय धरी शुनध्यान ॥ सहुदानमांहे शिरे रे, अन्नदान सुप्रधान ॥ NElच ॥३॥ सप्तसहस्र वाजी दिए रे, गोकुल आपे जोय ॥ रजत कनक आपे धरा रे, अनसमुं नहि Na valकोय ॥ च ॥ ४॥ अन्ने मन तृपतुं हुवे रे, अन्न वाधे वान ॥ अन्ने तप जप सानले रे, अन्ने प्रन्नुनु ।
ध्यान॥चणा॥अन्ने कीर्तियश वधे रे, अन्ने लहियें मान ॥ अन्ने पुण्यपरंपरा रे, सहु सुखतणुं निदान Hal च ॥ ६ ॥ अन्न सहुने वालहुं रे, सहुनो अन्न आधार ॥ अन्न मुनिवर पोषिये रे, लहिये नवनो पार ॥ च ॥ ७॥ दान सहु जग जोवतां रे, अन्नदान शिरदार ॥ गुणसुंदर बहु मानशुं रे, दे नत्तम आचार ॥ च॥७॥श्म करतां बहु दिन श्रया रे, प्रांते गेडी नोग ॥ लीधी दीक्षा तापसी
योग ॥ च० ॥ ॥ कपटरहित तप आकरां रे, पाले तापस तेह ॥ तापमा ताढ तृष नूखनां रे, सहे परीसह देह ॥ च ॥१०॥ पुण्य करी तापस मरी रे, तुं यो राज कुमार ॥ रूपें रतिपति सारिखो रे, सोन्नागी गुणधार ॥ च ॥११॥ पूर्वं तें बहु लोगव्यां रे, ऋषि
॥६
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हत्याना पाप ॥ यौवनमांहे शेषथी रे, ए लह्या रोग संताप ॥ च॥१२॥ अन्य नणी जे दुख Salदिए रे, निश्चें दुख लहे तेह ॥ तेमाटे दुख केहने रे, दीजें नहि गुणगेह ॥ च० ॥१३॥ जे दीजें ते
पामिएं रे, लगिएं वाव्युं तेह ॥ दुख दीधां दुख पामियें रे, तेमें किशो संदेह ॥ च ॥१५॥ तत्व
शुश्रषाए करी रे, मुनिवंदन सुविशाल ॥ शेष कर्म निःशेषथी रे, कय पाम्यां तत्काल ॥ चण| salu१५॥ कर्मतणी अणुवर्गणारे, वीण असंख्या थाय ॥ तत्वशुश्रूषा नव्यने रे, नावकी कहेवाय
च॥१६॥ तत्वशश्रषाने विषेरे, जेहनो शनपरिणाम ॥ क्लिष्टकर्मनी वर्गणारे, कण एकमें खपे ताम ॥ च ॥ १७ ॥ मिथ्यात्व मोहनी कर्मनो रे, क्योपशम थयो तास ॥ जिनन्नाषित धर्मने विषे रे, पाम्यो रुचि नल्लास ॥ च॥१७॥ गुरु रत्नाकरथी तिहां रे, सम्यक रत्न लहंत ॥ हरिRaविक्रम नृपशुं हिये रे, परम मोद वहंत ॥ च ॥ १७॥ गुणदोषादि समकीतना रे, बोधन्नणीsa
गुरुराय ॥ देवा मांमी देशना रे, अमृतसम सुखदाय ॥ च० ॥ २०॥ बेप्रकारे जिन NA धर्मनुं रे, नांख्युं समकितमूल ॥ तीर्थंकर पदवी दीजीएं रे, मोद करण अनुकूल ॥ च ॥१॥ नमी नमी नवसमुश्मा रे, अनंत पुद्गलावर्न ॥ शेष कोमा कोमी अधिनी रे, स्थिति करी अष्टा
प्रवर्ग । च० ॥ २२ ॥ अर्ध पुजलावर्नमें रे, शेष नवस्थिति आण ॥ समाकत पाम Salकीधे ग्रंथिभेद जाण ॥ च ॥ २३॥ तीहां अनेकविधि कह्यो रे, गुण अनंत शोनंत ॥ दायक संपद Nalमोदनो रे, कायक आदि कहंत ॥ च ॥श्था इत्यादिक सुणि देशनारे, हरख्यो हृदय कुमार ॥ कहे जीनहर्ष सम्यक्त्वना रे, संन्नलाव्या अतिचार ॥ च० ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ॥ ११ ॥
॥दोहा॥ घरे आव्या गुरु वांदिने, राजा प्रजा कुमार ॥ पाले समकित निर्मलुं, अविचल सुखदातार ॥ १॥
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वीप
स्थान
तास विशु विधित्सया, करे धर्मनां कृत्य ॥ नक्ति करे जिनराजनी, नलट नावें नित्य ॥ २ ॥
मुनिवर वंदे नावसूं, करे तीर्थनी जात्र ॥ प्राणिनी करुणा करे, आपे दान सुपात्र ॥३॥ स्वामी-1 ॥शा
वात्सल्य साचवे, खरचे द्रव्य सुगम ॥श्म नदारवृत्तें करी, समकित निर्मल पाम ॥४॥ यद धनंalजय अन्यदा, महिष कुमरनीपास ॥ मागे पण ते नवि दिए, जीनधर्मी गुणरास ॥५॥
॥ ढाल ए मी॥ पंचनरतारी नारी द्रुपदी रे ॥ए देशी॥ | एकदिन वनवासी जती रे, वांदी वल्यो कुमार रे ॥ निजआवासें आवतो रे, यहें दीगे तेवार
रे॥ एक० ॥१॥ दुर्जन जिम दुष्टातमा रे, देखी जाग्यो क्रोध रे ॥ अग्नितणीपरे धमधम्यो रे, जाग्यो । KI वैर विरोध रे॥एक ॥२॥ मुजर नपामी करी रे, आव्यो मारण तामरे ।। कुमर सुकृत नल्लासथी रे,
नन्नो रह्यो तिण गम रे॥ एक ॥३॥ कुमरनणी कहे पापियो रे, दे मुजने सैरनेय रे ॥ नहि तो sal तुजने मारशुं रे, बोल्यो हिये खलेय रे ॥ एक ॥॥ गयवर दशन तणी परे रे, नत्तम नरना बोल रे ॥ बोल्यो जे पाले सही रे, ते जगमांहि अमोल रे ॥ एक ॥५॥
॥कवित्त ॥ चाल उप्पयनी पूर्व दिशा पालटे, अरक नगे पश्चिम दिशि, सदा काल कलियुगें, अग्निज्वाला वरसे शशि ॥ सायर तजे मरजाद, अमल गिरि होय चलाचल, पावक शीतल नजे, पुहवी जो जाय रसातल ॥
नाग धणे कदा,धरा नपर नीचे गया. जिनहर्ष तोहि नव पालटे, नत्तम पुरुष बोख्या Salवयण ॥ १ ॥ हजु श्श नव तजे, कंठ राख्युं हालाहल, हजू धरा निजपीठ, धरे कूरमा महाबली
हजु समुराखियो, पेटमंही वमवानल ॥ हजू पंगू सारथी, तास नह गेमे पिंगल ॥ जलधर नारी ना तजे, तमित महा दुष्ट हजु नजे ॥ जीनहर्ष तेम सजन जिके, निज अंगीकृत
॥६
॥
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DECO
॥ ७ ॥ सह
किम तजे ॥ २ ॥ पूर्वढाल || बोल्यो ते मूकुं नहि रे, लेशुं ताहरी पासे रे, जिम जाणे तिम आपशुं रे, शुं रह्यो मनमां विमासे रे || एक ॥ ६ ॥ कुमर हृदय करुणानरयुं रे, साहसवंत सुवीर रे ॥ ( पाठांतरे सुधीर रे ) प्राणितणो वध नहि करूं रे, प्राणांते पण धीर रे । एक कोइ वांबे जीववुं रे, मरण न वांबे कोइ रे ॥ किम हलियें जीवने रे, हृदय विमासी जो रे || एक ॥ ८ ॥ धिक् धिक् तुज देवत्वने रे, धिक् धिक् तु ऐश्वर्य रे ॥ न वांबे तुं जीवनो रे, तुजने नहि ए वर्य रे ॥ एक० || || जीवहिंसा दुख दायिनी रे, दुर्गति तो निवास रे, दो दणावे जीवने रे, नरकतली गति तास रे ॥ एक० ॥ १० ॥ देव दानव मानवतणां रे, करुणा सागरमांदे रे ॥ हृदय मज्जन जेहनां करे रे, स्तववा योग्य नत्सांहे रे ॥ एक० ॥ ११ ॥ ज्ञानि मुनि सुप्रसादथी रे, रोग गया लइ दाव रे || जोले हिये मत भूलजे रे, इहां नहि ताहरो दाव ॥ एक ||| १२ | आमिषस्वादी देवता रे, महिषामिषशुं प्रीत रे । एतो दुर्गतिदायिनी रे, तें कीधी विपरीत रे ॥ एक ॥१३॥ तेहनां वचन खुली इसां रे, कोपातुर थयो यह रे || मोगरघाए पापिए रे, ताड्यो कुमर प्रत्यक्ष रे ॥ एक० ॥ १४ ॥ बेद्या वृक्षतणी परे रे, भूमें पढ्यो कुमार रे । तोपण प्राणहिंसा विषे रे, मन श्रयुं नहि लगार रे || एक० ॥ १५ ॥ शीतल वायु प्रसंगथी रे, चेत लह्यो तसु देह रे ॥ ड्यो मुक्त मूर्छा श्री रे, सेवकसुं सुसनेह रे ॥ एक० ॥ १६ ॥ आपदमांदे दयापणुं रे, जागी हृदय मोरे ॥ विस्मय पाम्यो देवता रे, वचन कहे तेणीवार रे || एक ॥ १७ ॥ माहरे हवे महिषे सर्यु रे, पण प्रणाम करी मुऊ रे ॥ जा निज मंदिर जीवतो रे, नहि तो मेलुं नहि तुऊ रे ॥ एक० ॥ १८ ॥ मुजने नमतां ताहिरो रे, जाशे सकल कलेश रे ॥ इहां जीनहर्ष हिंसा नथी रे, तूठो तुज सुख देश रे || एक || १७ || सर्वगाथा ॥ १३५ ॥
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स्थान
वीण
॥दोहा॥ कितिनृतपुत्र कहे सुं, मिथ्यात्वी सुरनाम ॥ जीवहिंसामां जे रहे, न करूं तास प्रणाम ॥ १ ॥ ॥३॥ श्रीअरिहंत नमी करी, नमे अवरने कूण ॥ अमृत आस्वादी कवण, पीवा वांछे खूण ॥२॥ दया Ba
धर्म जो तुं धरे, समकित पूर्वक देव ।। तो ताहरुं गौरव करूं, साहमीनी करूं सेव ॥३॥ एहवा वचन सुणी करी, परम शांत श्रयो स्वांत ॥ जाणे अमृत धारसू, सिंच्यो यह महंत ॥ ४॥ विग-5 लितकोपो सुर थयो, मूक्युं दूर मिथ्यात ॥ शुइ सम्यक्त्वदृष्टि भयो, तजी जीवनी घात ॥५॥
॥ ढाल उठी। सीमंधर स्वामी उपदिशे । एदेशी।। राग कालहरो॥ समकित धर्म प्रन्नावथी, यह श्रयो सुप्रसन्नो रे ॥ तेहना अनुचरनी परे, साहाज्य करे एकमन्नो Baरे॥सणाणाअनमी नर तेपण नमे, शीष चरणे नमावे रे । धर्मे सुर सेवा करे, लछी तेमी अलावे sal
रे॥ स ॥२॥ मोटां मंदिर मालियां, धर्मे सेज सुरंगी रे धर्मे नारी पतिव्रता, धर्मे पुत्र सुरंगीरे॥ स॥३॥ धर्मे मयगल मलपता, ऐरावण सरीखा रे ॥ घूमर देता घोमला, मोटी जेहनी हेषा रे ॥ स॥४॥ धर्मे राज्य लहीजियें, धर्मे लील विलासो रे ।। धर्मे जग जश विस्तरे, जेम रविकिरण प्रकाशो रे ॥ स ॥ ५ ॥ हरिविक्रम निजबापर्नु, धर्मे पाम्यो राजो रे ॥ एकातपत्र पृथिवी विषे, कियो धर्म सम्राजो रे॥सणापाले राज्य ललीपरे, हरिविक्रम हरि जेसो रे ॥अन्यायीने आकरो, न्यायी उपर प्रेमो रे ॥ स ॥ ७॥ साध्या सहु सीमालिया, देशाधिप सहु जीत्या रे॥ अनमी राय नमाविया, गुण श्रया सकल विदिता रे ॥ स ॥॥ कलिंगदेशनो राजवी, यमस-RE६३॥ रिखो यमराजो रे ॥ मोटो राय पराक्रमी, सदुमांहे शिरताजो रे॥स ॥१५॥दु सहुने शिर सेहरो, मुजसरिखो नहि कोश् रे॥ में प्रचंड नुजबल करी, लाज सहूनी खोइ रे॥
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स ॥ १० ॥ हरिविक्रम राजातणी, आण न धारी माथे रे ॥ कटक लेश नृप चालियो,
युद्ध करण ते सा रे ॥ स० ॥ ११ ॥ खबर करावी तेहने, होजे तु दुशियारो रे Slu हरिविक्रम ई आवियो, करवा युद्ध करारो रे ॥स ॥ १२ ॥ के माने माहरी आगन्या, valके करे मुजसुं युहरे ॥ एहवां वचन सुणी करी, यमनीपरें श्रयो क्रोध रे ॥ स० ॥ निज लशकर
मेली करी, देश नगारुं चमियोरे॥ हरिविक्रम राजानसूं, आजी सामो अमियो रे ॥ स ॥१४॥
कटक बन्ने राजातणां, मांदोमांहि आफलियां रे ॥ शुर लमे सामे पगे, कायर घरमां वलिया रेस INR५॥ नाल गोला सहुदिश चले, धनुषथी बाण वळूटे रे ॥ विचे बरउ तिरी वहे, बखतर कमिया al Vफूटे रे ॥१६॥ तीखी तरवारो तणां, घाय सहे रायजादारे ॥ लमे पमे के आथमे, सहू नृपनें सादा
रे ॥ स ॥ १७ ॥ वारे हरिविक्रम तणी, यह धनंजय आव्यो रे ॥ तेह लडे यक्षराजसुं, सुरबल तास दिखायो रे ॥ स० ॥ १७ ॥ देवतणी संगते करी, नागो नृप जमराजो रे ॥ हरिविक्रमनो जय अयो, पुण्ये वाधे लाजो रे ॥ स ॥ १॥ ॥ मोढुं ढांकी नासी गयो, लीधो तेहनो देशो रे ॥ आण मनावी आपणी, जनपदमांहि नरेशो रे ॥ स ॥२०॥ जैन शैव शासन तिहां, न्यायोज्वल SI नृप थाप्योरे॥धर्म प्रवर्ताव्यो धरा.कंद अधर्मनो काप्योरे॥स ॥१॥हरिविक्रम घरे या जीत निशाण वजामी रे॥ साहाज्यकारी देवता, तास पुण्याश् जामी रे ॥ स ॥ २२ ॥ स्थिरता Sal जिनशासनविषे, प्रमुखगुणें करि पाले रे ॥ समकित निश्चल निर्मलु, दूषण पांचे टालेरे ॥ स I॥ २३ ॥ महाराज पदवी लही, हरिविक्रम नूपालो रे ॥ कहे जीनहर्ष पूरी थर, इण अधिकारे ढालो रे ॥ स ॥ ३१ ॥ सर्वगाथा ॥ १६ ॥
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वीश
॥६४॥
मनमनत्र
॥ दोहा ॥
सम्यकदृष्टि र प्रते, हर्ष नृपावण काज ॥ रायें कराव्यं देहरु, कंचनमय शिरताज ॥ १ ॥ उँचो जाणे मेरु गिरि, जइ लाग्यो आकाश ॥ दंग कलश सोहे ध्वजा, निर्मल फटिक प्रकाश ॥ ५ ॥ चंदकांत पाषाणनी, प्रतिमा परम उल्लास || थापी ऋपन जिांदनी, बीजी पण बहु खास ॥ ३ ॥ सिद्धाचल संमेत गिरि, श्री गिरनार प्रमुख || पूजे नक्ति जिनावलि, यात्रा करि लहे सुख ॥ ४ ॥ स्वामी वात्सल्य बहु करयुं प्राप्यां अढलक दान ॥ समकित कीधुं निर्मलुं, हरिविक्रम राजान ॥ ॥ ढाल मी ॥ मेरासाहिब हो शीतल नाथ के ॥ देश ॥
हवे राजा हो कीधो मनविचार के, राज घणा दिन पालियं ॥ हवे की जें हो आतम उपकार के, चित्त विषयथकी वालियं ॥ हवे ||१|| एटला दिन हो कीधो प्रारंभ के, पाप लाग्यां बहु राजनां एथी लहिएं हो दुर्गतिनां दुःख के, ते सुख कहो कि काजनां ॥ ६० ॥२॥ मनमांदे हो एम कीधो विचार के, धर्मकारज करूं हवे ॥ गुरुसंगें हो लेनं संयमनार के, पंम महाव्रत श्रोचरुं ॥ ० ॥ ३ ॥ चिंतवतां हो आव्या चंद मुनीश के रायतयां वांबित फल्यां ॥ घर प्रांगणा हो दूधे बुठा मेह के, मुद मांग्या पासा ढल्या ॥ ह० ॥ ४ ॥ राय चाल्यो हो मुनि वंदन काज के, हय गय बहु परीवारसुं ॥ गुरु दीधो हो वारु नृपदेश के, जाणे अमृत धारं ॥ ० ॥ ५ ॥ नवमांदे हो जमतां इस जीवके, चनगतिनां दुःख अनुभव्यां ॥ वली वसियो हो बहुकाल निगोद के, ते दुख किया जाए खम्यां ॥ ह॥ ६ ॥ करे प्रारंभ हो तीहां नहि पारके, परिग्रह मेले प्रति घणो ॥ पंचेंद्रिय हो हणे मांस आहार के, पामे दुख नारकतलो ॥ ८० ॥ ७ ॥ तिहां बेदन हो नेदन बहु मारके, घाणी घाली पीलियें, वली नवी मां हो शेके जेम धान के, पूरव निज कृते शीलियें ॥ ० ॥ ८ ॥ तीर्यचनी हो गतिमांहे
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जीव के, परवश दुःख घणां सहे॥ नूख तरश हो ताप शीत अनेक के, मार प्रहार बहु ॥ लहे द० Salmणानत्तम नव हो माणसनो जेह के, पुस्यवशें जो पामियो, तो तिहां पण हो दुष्कर निजधर्म के,
नत्तम कुल विश्रामियो ॥ द॥ १०॥ सांजलवो हो दोहिलो सिहांत के, सद्दहण पण दोहिली॥ सहु पामी हो सामग्री नोग के, गांठ तजी मनमांहिली ॥ ह ॥ ११ ॥ वाट पाडा हो धर्मधनना एह के, वारो तेरह काठिया ॥ ए आव्या हो करे बहुत नजामके, मारो तेह ने लाठीया ॥ दण ॥ १२॥णे जीवें हो पाम्या बहुवार के, राज्य लीला सुखसंपदा ॥ तोहि तृपतो हो न भयो तिलमात्र के, नित नूख्यो नित आपदा ॥ ह ॥ १३॥ जो आवे हो समता मनमांद के, तो तृपतो होवे आतमा ॥ सुखमाहे हो रहे मन सदीव के, जो गेमे सघली तमा॥ ह ॥ १५ ॥ श्म जाणी हो समता रसमां हे के, झिलो जिम शिवसुख लहो ॥ए मूको हो ममता दुख मूल के, सद्गुरुवाणी सद्दहो॥हण॥१५॥श्म दीधो हो नपदेश मुनीश के, सकल सन्ना सुणि गहगही।पुरी थई हो जिनहर्ष ए ढाल के, राय कहे अवसर लही ॥ ह ॥ १६॥ सर्वगाथा ॥ १६ ॥
॥दोहा॥ प्रनुतुम वाणी मुज रुची, जिम साकरशुं दूध ॥ तुमपासे हवे हुँ सहि, आदर व्रतीश शु॥ जिम सुख पाये तिम करो, म करो नृप प्रतिबंध ॥ करिये धर्म नतावलो, तो थाये संबंध ॥ma
वांदी नृप घरे आवियो, तेमी सहु परिवार॥निजसुत विक्रमसेनने, दियो राज्यनो नार॥३॥ले अनु-IN Salमति सहुतणी, घणे महोत्सवे राय ॥श्रीमुनिचंद्र मुनीशने, चरणे लाग्यो आय ॥४॥नवसमुझ salमां बूमतां, तारक तारो मुज॥ करुणासागर कर कृपा, चरण ग्रह्यां में तुज ॥५॥
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॥६
॥ ढाल मी॥ | वणकारा लाल चलण न देशुं ॥ एदेशी ॥
स्थान केवल ज्ञानी गुरुजी संयम आपो, कर्म कग्निकरां बंधन कापो, लाल के नवसिंधु माहे प्रव॥ Isalहण पाम्यो ॥ पुण्यसंयोगें में चरणे शिर नाम्यो ॥ लाल के ॥ १ ॥ संयम आपो |
मुजने शिष्य करि थापो लाल ॥ के नृप हरिविक्रम लाल संयम लीधुं, सिंहतणी परे ।
नत्तम कारज की, लाल ॥ के० ॥ सुमति गुप्ति लाल रुडिपेरे पाले, पंचमहाव्रतकेरां दूषण टाले Salलाल ॥ के ॥ ॥ जयणासुं बोले लाल जयणासुं चाले । मुनिवर शुढे मार्गे महाले ॥ लाल sal NEIT के ॥ विनय वैयावच लाल करे गुरुनी सदा ॥ सदु मुनिवरमां जेणे सोहे नपा लालके॥३॥
आलस मुकी लाल विद्या अभ्यासे, मुनि हरिविक्रम ज्ञानी निजगुरुपासे ॥ लाल ॥ के॥ अनुक्रमें
हादश लाल अंग अधीता, ज्ञानसहित करे किरिया विदिता लाल ॥ के ॥ ४ ॥ एकदिन देशनामे Sal Salनिजगुरु नाष्यो, वीश स्थानक तप अधिक प्रकाश्यो लाल ॥ के ॥ विधिसुं आराध्युं लाल बहु
दुख कापे, परनवे त्रिनुवन पतिनी पदवी समापे लाल ॥ के ॥ ५ ॥ तेमांहे नवमुं लाल श्रानक salजाण्यु, सर्व संपदनुं कारण निश्चे वखाएयूं लाल ॥ के ॥ त्रिकरण शुई लाल समकित धरिये ॥
नमो दंसस्स एहनुं समरण करिये लाल ॥ के० ॥ ६ ॥ सांजली नवमुं लाल स्थानक धरिये,
सर्वज्ञ नक्ति संघाते आदरिये लाल ॥ के० ॥ सदा निशंकित लाल आठ आचारें, शुद परिणाम Salपाले सुगुण विचारें लाल ॥ के ॥ ७ ॥ हरि विक्रम लालऋषि गुणलीणा, सर्वत्र नचित कृत्य प्रवी-II Kalyा लाल ॥के॥ निश्चल मनसूं लाल समकित पाले, मेरुतणी पेरे अमग न चाले लाल ॥ के G
Vा॥६॥ अन्यदिवस लाल श्रीपुर गुरू आव्या, नव्य प्राणिना मनमें अधिक सुहाया लाल।।केणानरतत्राधिप देवसुदृष्टि, हररव्यो देखी मुनिनी करणी नत्कृष्टि लाल कणाणा समकित थिरता लाल गुण अव
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Kalलोकी, धन धन मुनिवर लदेशे सुख परलोकीलाल ॥ के ॥ एहनां दर्शनथी लाल पाप पलाये,
एहना दर्शनथी समकित निर्मल थायेलाल ॥के॥१०॥इं चुकावे तो पण एह नहि केहन मूकाव्युं समकित पण नवि मूकेलाल ॥ के एहना गुण कहेतां लाल पार न लहिये, एहना गुण केता हश्मामां गह गहिये लाल ॥११॥ देवसन्नामें इणीपरे मुनिगुण गावे ॥ चरण नमे वारंवार सुहावे लाल के ॥ स्वामीना मुखथी सांजली तद्गुण खाणी ॥ विश्वानर सुरवर श्रदा न आणीलाल।कारशारूप करि सारथ पतिनुं तिहां आव्यो, सुंदर मंदिर कपटें ऋहिसवायोलाल कागोचरिए मुनिवर विचरंतां, हरिविक्रम र्या शोधंतांलाल के ॥१३॥ आव्या तेहने घरे मलपंता.
मांहे आव्या रे धर्मलान दियंता लाल ॥के ॥ कहे जिनहर्ष आदर बहु दीधो, आवो पधारो मुनिNIवर प्रणाम कीधोलाल ॥ के ॥ १४ ॥ सर्वगाथा ॥ २० ॥
॥दोहा॥ सार्थपति मुनिने कहे, वाचा सुधा समान ॥ मूक प्रव्रज्या मुनिपति, क्लेशकरी दुखथान ॥१॥ नीरस दीक्षा आईती, कोइ नदि सेवाय ॥ परन्नव सुख नहि एहथी, वाधे फोक कषाय ॥२॥ ए मुज कन्या गुणवती, सुरकन्या अवतार ॥ ते परणावं तुजन्नणी, आपुं व्य अपार ॥३॥
पाणी ग्रहण करी रहो, दनं सुंदर आवास ॥नोगवि सुख संसारनां, पूरो निजमन आस ॥४॥ Nalए सामग्री नोगनी, लहियें पुण्यसंयोग । तेह मली ने तुजन्नणी, गेम दुखा कर योग ॥५॥
॥ ढाल एमी ॥ प्रथम ऐरावण दीगेरे न यगे अमिय पश्गे एदेशी॥ | नोगयकी किम विरतो रे, घर घर निदाने फिरतो रे ॥ एकठे काणे सुख निरतो रे, दुःख पामिश तुं एम करतुं रे ॥ १॥ कष्ट धणुं फल श्रोई रे, जैनतणुं मत जोड़ेंरे ॥ बौः धर्म सुखदायी रे, कष्ट
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वोश
॥६६॥
AAAAAAAAAAAA
| जिदां नहि कांई रे || २ || अतिशय जे मांहे काको रे, ते सकल धर्मनो राजो रे ॥ ए धर्म करि अंगी - कार रे, जेहथी शिव सुख सार रे ॥ ३ ॥ इत्यादिक जोगयुक्ति रे, दर्शन अंतर व्यक्ति रे ॥ कपटें सुर चाल्यो मानो रे ॥ धर्मश्री न चल्यो शुभ ध्यानो रे ॥ ४ ॥ देवतली माया बोमी रे, प्रत्यक्ष |थयो कर जोमी रे || दिव्य नाटक मुख आगे रे, सुरवर करे मुनि रागें रे || || हरिविक्रम ऋषिरायो रे, | दृढसमकित चित लायो रे ॥ मुजवचनें नवि जागोरे, परमनक्ति पाये लागोरे ॥ ६ ॥ स्तुति करी सुरमन रागें रे, जो मुनिवर आगें रे ॥ धन्य धन्य तुज माह रे, तारा गुरानो अथाह रे ॥ ७ ॥ जन्मतणुं फल लीधुं रे, समकित निश्चल कीधुं रे ॥ जिनधर्म तें आराध्यो रे, तें शिव मारग साध्यो |रे ॥ ८ ॥ अन्यतीरथ सुविशेषी रे, अतिशय वैजव देखी रे ॥ ज्ञानिने पण प्राय रे, मूढ दृष्टिपं थायो रे ॥ एए ॥ पण तुं संयम रागी रे, भूख तृषा नवि लागी रे, ॥ हूं तुकवचणे लोभायो रे, तुं दृढ चित्त रहायो रे ॥ १० ॥ में तुऊदर्शन पायो रे, मुहर्ष थयो सवायो रे ॥ दर्शनथी सुख थाशे रे, | माहरां पातक जा रे ॥ ११ ॥ धन्य तुं जिनधर्म शीख्यो रे, धन गुरु जेणे तुऊ दिख्यो रे ॥ धन धन तुमे परीख्यो रे, धन हुं जेणे तुज इष्योरे ॥ १२ ॥ तीर्थकृत पदवी नपाइ रे, षट्जीव कायानुं त्रसाइ रे ॥ चारीत्र निर्मल पाली रे, दूषण प्रतीचारो टाली रे ॥ १३ ॥ इम स्तुति करी दिल बाकी रे, निज थानक गयो नाकी रे ॥ ऋषि सम्यक्त्व पूतात्मा रे, समगणे निज आत्मा रे ॥ १४ ॥ | सुर थयो विजय जगीसो रे, आयु अंनोधी बत्रीसो रे ॥ विजय विमानश्री चवीने रे, हरीविक्रमऋषि सुविनवे रे ॥ १५ ॥ पूर्व विदेहे उपजशे रे, जिनलायक पद लेहेशे रे ॥ समकित रहित निरागीरे, थाशे मुगती विभागी रे ॥ १६ ॥ हरिविक्रम ऋषि केरी रे, एह कथामृत वेरी रे ॥ सांगली
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स्थान
॥६६॥
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समकित पालो रे, जिन दर्ष कहे संभालो रे ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ २२७ ॥ इति नवमस्थानके दरिविक्रम नृपकथा ॥
॥ दोहा ॥
हवे दसमा थानक विषे, सुविवेकी नर जेह ॥ अरिहंतादिक तेर पद, तासविषे घरी नेह ॥ १ ॥ सर्व श्रेयनुं मूलबे, करवो विनय विशेष || पंचभेद सामान्यथी, तेह कर्तुं सुविवेक ॥ २ ॥ लोकोपचार पहिलो विनय, अर्थ निमित्त काम देत ॥ नव्य विनय तिम मोनो, विनय पंचगुण खेत ॥ ३ ॥ आदर अंजली जोगवी, आसन बेसरा दान ॥ विनवें प्रति पूजा करे, लोकोपचार समान ॥ ४ ॥ मिश्रवचन बंदें चलण, वितरण व्युत्थान ॥ अंजली आसन आपवुं, अर्थ विनय सुप्रधान ॥ ५ ॥ काम विनयन्नव्य इलिपरें, अनुक्रमे जाणो एह || मोक्ष विनय पण पंचधा, जांखुं सुराजो तेह ॥ ६ ॥ ढाल १ ॥ बखमानी देशी ॥ दंसण नाणे चरीत्रनो, तप उपचार करी ते ॥ सुरंगा सांजलो | मुख्य विनय ए जावो, पंच प्रकारे एम ॥ सु० ॥ १ ॥ व्य तला सदु नाव जे, जाख्या श्री जगवंत || सु० ॥ ते साचा करी सद्द, दंसण विनय कहंत ॥ सु० ॥ ॥ शीखे ज्ञान नणे गुणे, ज्ञाने कार्य करे ॥ सु०॥ ज्ञानी नवो बांधे नहीं, ज्ञान विनये कर्यो य ॥ सु० ॥ ३ ॥ आठ कर्म चय जेदथी, रिक्त करे जयमान ॥ सु० ॥ अन्य नवो बांधे नहीं, चारित्र विनय वखारा || सु० ॥ ४ ॥ तपें करी तम अप हरे, निज प्रातमने धीर ॥ सु० ॥ स्वर्ग मोक्ष सन्मुख करे, तप विनंति कहे वीर ॥ सु० ॥ ५ ॥ दवे नपचारे क्रमण दुवे, दुविध विनय संखेप ॥ सु० ॥ प्रतिरुप योगे प्रयुंजला, श्रणा सायल निर्लेप || सु० ॥ ६ ॥ प्रतिरुप विनय निश्चय करी, कायवचन मन योग ॥ सु०॥ अष्टचार दो नेदशुं
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वीश सुणे देश नपयोग । सु०॥ ७ ॥ वंचे अंजलि बेसणो, ये अनिग्रह कियकर्म ॥ सु० ॥ शुश्रूषां
स्थान सनमुख व्रजे, काँया अठ सुरम ॥ सु ॥७॥ हित मित अपुरंस अगुवाइ, वचन विनय प्रतिपन्न ॥६ ॥
॥ सु ॥ रुंधे अकुशल मनन्नणी, कुशल नदीरी मन ॥ सु ॥ ए॥ प्रतिरुप विनयशुं दाखीए, पर अनुवृत्ति सुजाण ॥ सु॥ अप्रति रुप विनय दुवे, केवलीने गुण खाण ॥ सु ॥ १० ॥ तुजने एक विनय कों, प्रतिरुप तीनप्रकार ॥ सु ॥ आणा सायण सुविनय तणा, बावनन्नेद विचार ॥ Nam ११ ॥तीर्थकर सिंह कुलें घाँ, संघ क्रियाँ धर्म नाण, ॥ सु० ॥ नाणी आयरीया प्रेरी, नव-Nal veीय गैणी प्रमाण ॥ सु॥१५॥ एतेरस पदनी करी, आण सायण बहु नेति ॥ सु० ॥ बहुत
माग गुणवर्णना, करे सदा एक चित्त ॥ सु० ॥१३॥ तेरस तिथयरादिकें, चनगुण होय बावन Sel
सुण ॥ विणय आणा सायण तणा, नेद कर्या प्रवचन ॥ सु० ॥१४॥ अरिहंत गुर्वादिकतणा, विनय sal sal यथोक्त करंत ॥ सु ॥ तीर्थंकरपद धनपरें, ते जिनहर्ष लहंत ॥ सुण ॥१५॥
॥दोहा॥ | नगरी इणहिज नरतमें, मृतिकावती सुनाम ॥ प्रत्यक्ष जाणे सुरपुरी, ऋहि वृद्धि अन्निराम Su१॥ गढ मढ मंदिर मालीयां, नंचा गोख सुरंग ॥ वसे लोक सुखीया सदु, करे केलि नवरंग॥॥Na
॥ ढाल २ जी ॥ महाविदेह केत्र सोहामणुं ॥ ए देशी राज्य करे राज तिहां, श्रीजितारि इनाम लालरे ॥ जेणे जीत्या अरिराजजी, जस वाध्यो गम गम लालरे ॥ १॥राज ॥ वसे सुदत्त श्रावक तिहां, आतम जास पवित्र लालरे ॥ दान NaI ॥६ ॥ REIसुपात्रे जे दीये, उत्तम जास चरित्र लालरे ॥ राण ॥ ॥ श्रावक मांहे अग्रेसरी, पाले समकित
शुभ लाल रे ॥ परम विवेकी सुव्रती, धर्मी निर्मल बुद्ध लाल रे ॥ राण ॥ ३ ॥ जाणे साचा सहहे,
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जीवा जीव विचार लाल रे ॥ श्रीजिन नक्ति करे सदा, नत्तम धरे अचार विचार लालरे ॥ राण an४॥ अंगज तेहने बे अने, धोरीधर गृह नार लाल रे ॥ धन नामें पहिलो नलो, बीजो धरण विचार लाल रे ॥ रा० ॥ ५॥ धन धर्मी शिर सिहरो, नत्तम गुणे विख्यात लाल रे ॥ पुरमाहेर शोना घणी, नक्त पण पितुमात लाल रे ॥ रा॥६॥धरण शरण पापी तो, जेहनो क्रूर परि
गाम लाल रे॥कर नजर पण तेहनी, जेहनी नहीं पुरमें माम लालरे ॥रा ॥ ७॥ कति कर्प-पत्र salरनी परें, धननी थर विस्तार लाल रे ॥ धरणतणी सघले घणी, अपकीर्ति अंगाल लाल रे । NETराण ॥ ७ ॥ सही न शके दुष्टातमा, करुण रहित स कुइ लाल रे ॥ धन धर्मा धारी प्रते,
हणवा जोवे बिलाल रे ॥ रा॥ए ॥ अवसर कीहां पामे नहीं, हणवा धनने ताम लाल रे॥ Salधरण कहे ना सुणो, वात कहुं अन्निराम लाल रे ॥ रा॥ १० ॥ आपणे वे सरखा श्रया, Nalव्य कमावण जोग लाल रे ॥ परदेशे धन अर्जवा, जईए मेलीनोग लाल रे ॥रा ॥११॥ विश्वत
धन बापर्नु, एटला दिन श्रया त्रात लाल रे ॥ हवे निज खाट्युं खाएं, जगमें लहीएं ख्यात Salलाल रे ॥ रा० ॥१२॥ अखटु बेटो बापने, वालो कदीय न होय लाल रे ॥ घर खुणे पमयो रहे, Halवात न पूजे कोय लाल रे ॥रा ॥ १३॥ परदेशे थाए आपणी, नाग्यानाग्य परीख लाल रे ॥
तेज वधे नही पुरुष, देशांतर विण श्ख लाल रे॥रा ॥ १४ ॥कौटिल्य तास अजाणतो, धन मन Na सरल स्वन्नाव लाल रे ॥ अनुज संघाते चालीयो, देशांतरमा ताव लाल रे रा॥ १५ ॥धनने धरण
कहे इस्युं, तुजने पुर्बु वात लाल रे ॥ सुख संसारे पापश्री, अथवा धर्मश्री ब्रात लाल रे ॥ राosa Nalm१६॥ सुख लहीएं वत्स धर्मथी, एहमें कीस्यो संदेह लाल रे ॥ दहींथकी जेम घृत दुवे, वचन Salकयुं धन एह लाल रे ॥रा ॥ १७ ॥ कारण सौख्य अनेकनु, धर्म एक तुं जाण लाल रे ॥ सर्वाथ
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श
॥६८॥
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साधननणी, जीम लक्ष्मी गुणखाण लाल रे || रा० ॥ १८ ॥ श्रहो माहात्म्य धर्मनुं, कोण कहेवा समर्थ लाल रे ॥ जास प्रजावें विश्वमां, इचित पामे अर्थ लाल ॥ रा० ॥ ११७ ॥ पूजाये नर धर्मश्री, काया नीरोग थाय लाल रे ॥ सुरसुख शिवसुख धर्मश्री, धर्में वांछित जोग लाल रे ॥ ॥ २७ ॥ नाइ मिथ्या शुं धरण कहे ते वार ॥ ॥ दी से सुखी अधर्मश्री, इस जिनहर्ष संसार लाल रे ॥रा० ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥
इम विवाद करतां ग्रकां, मांहोमांहि दोय || नेत्रार्पणनुं पण कीयुं, की यो विचार न कोय ॥ १ ॥ की इक गामे जइ करी, पूबचा लाक अजाण ॥ थाये धर्म अधर्मश्री, प्राणीने सुखजाए ॥ २ ॥ ते नांखे नास्तिकपणे, पापथकी सुख होय || पुरुषलोक जागे नहीं, पुण्य पाप फल कोय ॥३॥ धरण नेत्र धननां ग्रह्यां, न गएयो जात सनेह || पापी निजघर आवियो, वनमां मूकी तेह ॥ ४ ॥ मात पिता आागल कहुँ, व्याघ्र जख्यो धन प्रात ॥ वनमांहे सूतां कां हुं अहीं आव्यो तात ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ३ जी ॥ माता दजानी देशी ॥
एवात श्रवणे सुणी रे, मात पिता तेली वार ॥ मोहेवरों धेलां थयां रे, धनविण कुण आधार रे ॥ १ ॥ मन मोहन गारा, मारुं वाहलेशर दुख मेट रे || आवी मानुं दुख मटे रे, ॥मणाथ अचेत धरणी ढली रे || रोवे दुख घरी पाय ॥धन रीसावीने गयो रे कोइ लावो तास मनायरे ॥ म० ॥ २ ॥ वरसे प्रांसु लोयणे रे, जीम पानस जलधार || कण एकपण नवि विसरे रे, धन विण दुःख अपार रे ॥ ० ॥ ३ ॥ धन धन करतां मातने रे, लोजी जीम दीनजाय ॥ रात होये खट मासनी रे, तेतो की मही नवी जाय रे ॥ म० ॥ ४ ॥ नाह विना नारीयें तज्यां रे, अशन वसन शृंगार, बी याचंदतणीपरें रे, थई की मलिन अपार रे || म० ||५|| निशदिन झूरे गोरमी रे, जेम जोडी
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स्थान
॥६॥
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विणमेह ॥ कुलवंती ने कंतशुं रे, इक लाग्यो निबिक सनह रे ॥ म ॥ ६ ॥ नेहे दुख पामे घणुं रे, गनो पावक जेह ॥ धुखे न धुंवो नीसरेरे, एतो बली सुरंगी देह रे॥मणा॥मात पिता नारी सहुरे । धन विण न धरे धीर ॥ ऽखीयां निशदिन टलवले रे, जिम जल चारी विण नीररे ॥ म ॥ Unse हवे धनने वनदेवतारे, देखी पुण्य पवित्र ॥ दिव्यांजन संयोगयी रे, निर्मलकियां नयण विचित्र रे॥ म॥ ए॥ सांनिधकारी देवता रे, पाये पुण्य पसाय ॥ मेटे सघली आपदा रे, पुण्ये सुर किंकर थाय रे॥म॥१०॥ दीधुं अंजन देवता रे, ते लेश्ने ताम ॥ नगर सुन्नपुर आवियोरे, शेठ सुदत्त सुत धन नाम रे ॥म॥११॥ तिहां अरिविंद नरिंदनी रे,पुत्री प्रत्नावती नाम॥ सौन्नाग्यामृत वाहि
नी रे, गुणरुप कला अन्निरामरे ॥ म ॥१२॥ यौवनमां मृगलोयणी रे, पूरव पाप संयोग ॥ अंध Sales शिर रोगथीरे, जुओ कर्मतणा ए नोग रे ॥ मण॥१३॥ नगरमांहि पमहो फीरे रे, राज सुताने Saजेह ॥ करे कोई नर देखती रे, अर्धराज्य कन्या लहे तेह रे ॥मण॥१०॥ सुणी श्रवण नद्घोषणा रे,
धन आव्यो नृप पास ॥ करूं कुमरीने देखती रे, पाले जो वचन प्रकाश रे ॥म ॥१५॥ दीव्यांजन । Salअंजनथकी रे, लोयण श्रयां सतेज ॥ राजा रलिप्रायत श्रयो रे, कुंवरीनुं वाघ्यु हेज रे॥म ॥१६॥
राजा परणावी सुता रे, अर, आप्यु राज॥ सत्पुरुष पाले गिरारे, राखे पोतानी लाज रे।म॥१७॥sal स्वजन वर्ग धननुं सुणी रे, राज्य लान्नादि स्वरूप ॥ धरण विना हरख्यां सहुरे, नलसित थया रोम
कूप रे ॥ म ॥१७॥ राज्यतणी प्रनुता लही रे॥ए तो में न खमाय, धरण हियामां चिंतवे रे, मारु sal कोश्क करी नपायरे ॥ म ॥ १५॥ दुष्टात्मा कहे तातने रे, आपो मुज आदेश ॥ जावं हुं मलवा
नणी रे, मुज ना जिण देश रे॥ म ॥॥ नटुं थयु धन नगर्यो रे, तात तुमारे नाग ॥ कहे जिनहर्ष मिलुं जश्रे, नाश्सुं मारो राग रे ॥म ॥ ३१॥ सर्वगाथा ॥ ५ ॥
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वीश ॥दोहा॥
स्थान शेही शेह विचारीने, लेश जनकादेश ॥ मीलण मीशे हवा नमी, चाल्यो शीघ्र विशेष ॥१॥ alधन संनिधि पहुतो धरण, धनमन धरी जगीस ॥ मीलीयो नगी हित घणे, पण न धरी मन रीस Silm २ ॥ नत्तम संन्नारे नहीं, अवगुण कीधो जेह ॥ सायर जल शोषे अनल, पण नवी दाखे ।
ह ॥ ३ ॥ मोटा ते मोटा पुरुष, मोटा विरचे केम ॥ हर हालाहल जाणीयुं, तोही राखे । प्रेम ॥ ४ ॥ सज्जन दुर्जन नवि दुवे, तजे न आप स्वन्नाव ॥ ताव घाव कंचन सहे, पण न तजे कंचन नाव ॥५॥
॥ ढाल ४ चोथी ॥ मन मधुकर मोही रह्यो॥ ए देशी ॥ ना तुं नले आवियो, आज दिवस सुप्रमाण रे ॥ आज मनोरथ मुज फल्या, मिलियो जीवन Malप्राण रे ॥ ना ॥१॥ हश्मासुंनीकी करी, मिलियो धरणसुं धन्न रे॥ना बहुदिवसे मिल्यो,
नलसियो तन मन रे ॥नाइ ॥२॥ कुशल केम परिवारने, तुजने ने सुख वीर रे ॥ धरण कहे Call धन तुजविना, रहेतो हुं दिलगीर रे ॥ ना ॥३॥ तेमाटे मिलवा इहां, आव्यो बुं तुजने नाश Kारे ॥ सुंदर मंदिर मालियां, तुजविना न सुहा रे ॥ भाइ ॥ ४ ॥ धरणनणी कीधो धणी, अर्ध-NEL Naराज्य हित आणी रे ॥ राजापण मान्यो घणुं, धननो ना जागी रे ॥ नाश् ॥ ५॥ धरण रहे Isailsल जोवतो, हणवा अग्रज काज रे ॥ तेहने कुए मारी शके, रखवालो महाराज रे॥ ना ॥ ६॥ VIएकदिन नप अरिविंदने. एकांते कहे वात रे ॥ राय जमा जे करयो. पण हीणी
स्यो, पण ने हीणी जात रे नाश् ॥ ॥ रहेतो अमनगरी सुखे, धननामे चंमाल रे ॥ नगरी लोकन्नणी करे, आसन गेति । नूपाल रे ॥ नाइ ॥ ७॥नाजे भाखर नाजीया, तो मननीशी वात रे ॥ तास वचन सुणी नृप।
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कोप्यो, धननी करवा घात रे ॥ ना ॥ ए ॥ एक दिन रात अंधारमी, करी राख्यो संकेत रे ॥ राख्या धावमिया विचे, धनने हवा हेत रे ॥ नाश् ॥ १० ॥ राय तेमाव्यो धन नगी, जावा नट्यो जाम रे ॥ धरण कहे मुज मोकलो, ९ जाश्श तुज गम रे ॥ नाश् ॥ ११ ॥ अनुमति ले
धनतणी, चाल्यो धरीय नल्लास रे ॥ धावडिआए तत्कण तिहां, मारी नाख्यो तास रे ॥ना KA १५ ॥ यतः ॥ षन्निर्मासैस्तथापदैः षन्निरेव दिनैः किल ॥ अत्युग्रपुण्यपापाना मिदैव
जायते फलम् ॥ १ ॥ अर्थः-आजगतने विषेज अति नग्रएवां पुण्य पापर्नु फल, उमासे तथा गर alपखवामियामां के उदिवसोनी अंदरज खचित थाय ॥१॥ पूर्वढाल ॥ नरके गयो मरि सातमे, Ralपापी पोहोतुं पापरे ॥ जेहवां कर्म करयां हता, तेहवा लह्या संताप रे ॥ना ॥ १३ ॥ धन निक
कलंक पुण्यातमा, नपकारी जग जोय रे ॥ कष्ट टल्युं मरवा तणुं, धर्मथकी जय होयरे ॥ भात San १५ ॥ तेह स्वरूप जाणी करी, आव्यो मन संवेगे रे ॥ मात पिता तेमावियो, सहु आव्यां मलि
वेगे रे ॥ नाइ ॥ १५ ॥ मलयकेतु निजपुत्रने, राखि जनकनी पासे रे ॥ नुवनप्रन्न मुनिवरकने, दीक्षा लीधि नल्लासे रे॥ नाइ ॥ १६ ॥ अंग नपांग सहू लण्या, पाले साधु आचार रे ॥ नाव साधु शुद्धातमा, समिति गुप्ति आधार रे ॥ भाइ ॥ १७ ॥ निर्वाण साधक योगने, साधे अनिशsa जेह रे ॥ सम सघला प्राणीविषे, साधु कहीजें तेह रे ॥ नाइ ॥ १७ ॥ संयुक्त दात्यादिक गुणे, नूषित गुण मैञ्यादि रे ॥ सदा चार तेहने, नावे साधु अप्रमादी रे ॥ ना ॥१॥ सर्वगाथाए।
॥ दोहा ॥ सूत्र अर्थ जाणे सहु, करे ग्रामादि विहार ॥ धनऋषि सुगियो अन्यदा, गुरुमुख एह विचार॥
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वश
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॥ ढालपी ॥ इलिपरे कंबल कोइ न लेशे ॥ एदेशी ॥
विनय करी गुरु संतोषे जावे, तेहथी अनुपम ज्ञान लहावे ॥ तेहथी निर्मल समकित आवे, तेहथी चारित्र परम सुहावे ॥ १ ॥ तेहथी संवर तेथी तपस्या, तेहथी निर्जर थाय अवश्या | तेही अष्ट करम दय थाये, तेहथी केवल ज्ञान लहावे ॥ २ ॥ मुक्ति श्री संगम हुवे तेहथी ॥ सुख अनंत लहे वलि जेही ॥ विनयमूल कारण सदु सुखनों, टालण जन्ममरण जवदुखनो ॥ ॥३॥ बासव भेद विनयना जेह, मैन वंच कोय चौद कहेह ॥ ननो थोये तेहने देखि, आव्या साहमो जॉय विशेषि ॥४॥ अंजलि जोकि शीर्ष नमावे, पोते प्रासन मांगे जावे, आसन अनिग्रह नक्तें वंदे ॥ |पर्युपासना करि आनंदे ॥ ५ ॥ जातां सार्थ श्रइ बहुलावे, कायिक प्रष्टंघा विनय कहावे ॥ वचन चतुर्धा पथ्येसुं तोले, मृदु टप ॉलोची बोले । सदसत् मनवृत्ति हुंती, मननो विनय द्विधा धरि खंति ॥ संघकुल गएण गणि धर्म वखाणुं ॥ पंच परमेष्टि पद ए जां ॥ ७ ॥ ज्ञॉन क्रियों स्थविराज्ञा वलि, आशतना ए दशनी टालि || स्तुति सन्मान नक्ति बहु करियें, तेरह चार गुण प्रादरियें ॥ ८ ॥ प्रथम चौद बावन जेजे, वे मेल्यां बासठ गुण लीजे ॥ निरतिचारें मुनि ते करतो ॥ अरिहंत पदवी लहे आचरतो || || सांजलि एहवी गुरुनी वाली || महामुनीश्वर यति गुणखाणी ॥ एहवो अभिग्रह धनमुनि लीधो, श्रीगुरु केरे वचनें वींध्यो ॥ १० ॥ मन वचन कायाए करवो, विनय | परमेष्ट्यादिकनो धरवो ॥ वली विशेषे गुरुपदकेरो, परमकल्याण करण अधिके ॥ ११ ॥ चारज एम करे प्रशंसा, धन्य धन मुनीश्वर अवतंसा ॥ विनयकरण तत्पर गुणधारी, सफल जनम करवा सुविचारी ॥ १२ ॥ बाह्यतपें तनु क्लेश पमाने, युग कोटी जम जन्म गमाये || मुक्ति नपाय विनय नवि जाणे, ते जिनहर्ष सहित अनाणे ॥ १३ ॥
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स्थान०
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॥ दोहा ॥
सगुनो राजा विनय, जिनशासन कहेवाय ॥ राम दम आदिक गुण सदु, ते विण निष्फल श्राय ॥ १ ॥ विनय थकी आदर लहे, सहुने विनय सुहाय ॥ विनय करंतां मानवी, पर पोताना थाय ॥ २ ॥ इह लोके सुख विनयथी, तिर्यंच पण पामंत ॥ मनुष्यनुं कहेतुं किसुं, जे गुण विनय वहंत ॥ ३ ॥ ननय पक्ष शुद्धातमा करी विनय अभ्यास ॥ प्राकृत मुनिनो किशो, चक्री वंदे तास ॥ ४ ॥ अरिहंतादि विषे यति, विधिसुं विनय करेह ॥ फल पामे उपवासनुं, नोजन करतो तेह ॥ ५ ॥
॥ ढाल ६ ही || देशी हमी रियानी ॥
विनय करे त्रिकरण शुद्धसुं, धन मुनिवर उल्लास | संवेगी || परमेष्ट्यादिक पद तणो, लेदेवा | शिवपुर वास ॥ वि० ॥ १ ॥ सं० ॥ श्रीगुरुसा विचरतां, संकेतपुरी उद्यान ॥ सं० ॥ आव्यो देव जुहारवा, आदिल चैत्य सुध्यान ॥ वि० ॥ २ ॥ सं ॥ करपंकज शिरांजली, सूत्र अर्थ शुरुपाठ ॥ सं ॥ पदसंपद निरती परे, बाला करमनां काठ || वि० ॥ ३ ॥ सं ॥ मन थिरता उपयोगसुं, निज अंधि नेत्र न्यास ॥ सं ॥ श्रवे इम जन देहरे, करवा कर्मनो नाश ॥ वि० ॥ ४ ॥ सं ॥ टाले सदु आशातना, घरतो जीनशुं प्रीत ॥ सं० ॥ चैत्य विनय इलिपरे करे, ते सघृत सुविनीत ॥ वि० ॥ ५ ॥ सं० ॥ विनय इत्यादिक चैत्यनो, करतो मुनिवर तेह | सं० ॥ श्रावे देव जुहारवा, धरणें तिहां गुण गेह ॥ वि० ॥ ६ ॥ सं० ॥ मुनि मन निश्चल जाएगवा, विनयविषय तिथि - वार ॥ सं० ॥ विनयथकी मूकाववा, उपसर्ग करे अपार ॥ वि० ॥ ७ ॥ सं ॥ नागेश नाग घणा करी, वींटया तास शरीर ॥ सं० ॥ तोही चैत्यविनयथकी, चूको नहींय सधीर ॥ वि० ॥ ८ ॥ सं० ॥
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वीश
॥७१॥
निश्चल मेरु तणि परे, विनय विषे मुनि देख ॥ सं० ॥ प्रत्यक्ष ययो पति नांगनो, मुनिपद नम्यो विशेष ॥ वि० ॥ ए ॥ सं० ॥ जिने जिने चैत्यादिकविषे, विनय करी ए मुनीं ॥ सं० ॥ एहनुं फल शुं पामशे, इम पूढे जोगीन् ॥ वि० ॥ १० ॥ सं । जिन पद इसे नपार्जियुं, सूरीश्वर कहे तास ॥ सं ॥ धरणें मुनि पायें नमी, पहोतो निज आवास । वि० ॥ ११ ॥ सं० ॥ आराधी धनसंयमी, संयम निरतीचार ॥ सं० ॥ अनुक्रमें सहस्रारि थया, सुर ऋद्धि नही अपार ॥ वि० ॥ १२॥ सं० ॥ तिहांथी चवि विदेहमां, धन नामें मुनिराय ॥ सं० ॥ विनय आराधनथी हुशे, जगदीश्वर | जिनराय ॥ वि० ॥ १३ ॥ सं० ॥ इलिपरें चरित्र धन ऋषिनुं, सांजलि दुरितापहार ॥ सं० ॥ विनय करी गुणवंतनो, त्रिभुवनजन सुखकार ॥ वि० ॥ १४ ॥ सं ॥ तीर्थंकरपदवी लही, विनयतो सुपसाय० ॥ कहे जिनदर्ष सहु जणी, विनय करो सुखदाय ॥ वि० ॥ १५ ॥ सं ॥ इतिश्री दशम स्थानके धनमुनिकथा समाप्ता ॥ १० ॥
॥ दोहा ॥
हवे थानक ग्यार, सांगलजो अधिकार ॥ तत्र ननयसंध्या विषे, षट् आवश्यक सार ॥ १॥ सूत्र अर्थसंपद सहित, विधिशुं थइ सावधान ॥ करवा मन निश्चल करी, धरि निर्मल शुभ ध्यान ॥ २ ॥ सामायिक चैनवीसत्यो, वंदण पमीकमाल || कानसग बठ्ठो वलि, आवश्यक पञ्चखाएण ॥ ३ ॥ त्रिविधा सामायिक तिहां, समेकित श्रुत चरित्र ॥ दुविध चरित आगारनो, तिम प्रण गार पवित्र ॥ ४ ॥ श्रपशमिकादिक दें करी, पहिलो पंचप्रकार || श्रुतसामायिक दूसरूं, द्वादश अंग विचार ॥ ५ ॥
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स्थान०
॥७२॥
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॥ ढाल १ ली ॥ चोपाईनी देशी॥ चारित्र सामायिक बेनेद, एक आगात् अणगार अखेद ॥ देशविरति तत्राद्य स्वरूप हादश व्रत आराधनरूप ॥१॥हितीय सावद्य व्यापार, वर्जन पंचमहाव्रत धार ॥ समिति गुप्तिविषे सावधान, अणगारिनु थाय प्रधान ॥ २॥ यतः॥ सावऊ जोगविरन, तिगुत्तो सुसऊन॥ नवनत्तो जयमाणो, आयासामाश्यं होई ॥ १ ॥ ज्ञानदर्शन चारित्र समान, आयो । लान समाय निदान ॥ अथवा आत्मपरें सहु प्राण, देखे तेह समाय वखाण ॥ ३ ॥ अपूर्व ज्ञान दर्शन चारित्र, पर्याय जोमी जे मित्र ॥ समय एव सामायिक धार, मूल गुणकरो जे आधार ॥ ४ ॥ गुण आधार सामायिक भाष, सर्व नावनो जिम आकाश ॥ चरणादिक । गुण सहित प्रवीण, नवि कहियें सामायिक हीण ॥५॥ते कारणे कह्यो जिनराय, सामायिक निश्चयसुं नपाय ॥ मन कायाना दोष अनेक, गमन रमण शिवपुर सुविवेक ॥६॥ यद्यपि सर्व चारित्र विचार, सर्व सावद्यतणो परिहार ॥ ते माटे सामायिक कह्यो, गुरु मुखन्नेद तेहनो लह्यो
॥७॥ पण ते बेदादिक सुप्रकार, नानान्नेद लहीयें सार ॥कहीयें प्रथम सामायिक तत्र, तेहना Ra दोय नेद ने यत्र ॥ ॥ इत्वर यावत्कथि कहिजे, ईश्वर स्वल्पकालसुं लहिजे ॥ प्रथम चरम
तीर्थकर वार, नरतैरावत क्षेत्र मोकार ॥ ॥ प्रथम शिष्यने यावत ओप, कीजें महाव्रत आरोप तावत्सीम पले शुन्नचित्त, दोपस्थापनीय चरीत ॥१०॥ गुरु शिष्यने व्रत दीध अतीव, यावत्कथिक दुवे जावजीव ॥ लरतैरावत के जाण, अजितादिक बावीश प्रमाण ॥ ११॥ तेहना साधुनणी जाणवो, नावें हश्मामां आवो ॥ तेहनो लान्न जिनागममांह ॥ एहवो जिनवर कह्यो । नगंह ॥१२॥ सामायिक नपधाती यथा, पहेलां दो करम गणे तथा ॥ मिथ्यात्व मोहिनी कर्म
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स्थानण
वीश जे सर्व, घातस्पईक वेदे गर्व ॥ १३ ॥ देशघाति स्पाईकसु अनंत, नछेदे गुण वृद्धि अनंत ॥ विशुद्ध
मान प्रतिसमय सुकाम, प्राणी शुन्न शुनतर परिणाम ॥१४॥ नावित सामायिकनो सार, पूर्वादर ॥॥ ते लहे ककार ॥श्म अनंत गुण व अको, विशुमान प्रति समये अको ॥ १५ ॥ लहेरे ।
फाटिक वर्णावलि, इणिपरे नाखे श्रीकेवली ॥ नावथकी सामायक लान्न, नव्यन्नणी माथाये शुन्न आन्न ॥ १५ || एकार्थिक तेहना चत्वार, सोमं समं सम्यक् एक धार salएक शब्द देशी नाषायते, कापी प्रवेशार्थे गीयते ॥ १७ ॥ विविध झय नावथी एह, तास विचार alसुणो गुण गेह ॥ द्रव्य सामायिक मधुर परिणाम, साकर आदिक झय सुनाम || १७ ॥ तुलारूढ
व्य थाये जेह, द्रव्य समं ते कहियें एह || खीरखंग जे युक्त सुव्य, इव्य सम्यक कहिये नव्य Salm १५ ॥ एकसूत्र मुक्ताफल माल, प्रोतन ते जाणो सुविशाल ॥ अर्थ व्य सामायिक तणो,
नवियण नावो हश्मे घणो || २० ॥ स्वातमदुख परिपरे दुख लहे, राग दोषं मध्यस्थे रहे||ज्ञानादिक त्रिक नक्ति सुभाय, आय पयोगन्नाव समाय ||२१|| जेहनो आत्मा होवे सारिखो, तप संयम
नियमें पारिखो ॥ तेह नणी सामायिक होय, एम केवलि भाषे सहु कोय || २२ ॥ त्रस श्रावर सहु salनूत समान, जेणे पाली दयानिधान ॥ इणिपरे भाषे केवलि नास, कहे जिनहष सामायिक तास Salm २३ ॥ सर्वगाथा ॥ २ ||
॥दोहा॥ श्रावक पण जे श्म करे, थाये श्रमण समान॥वारंवार यदा तदा,करे कणिक बहु मान॥१॥मन दुःप्रणिधानादिका, पांच त्यजि अतिचार ॥ श्वासकासादि कुरूपता, तीव्र दुःख दातार ॥२॥ आर्त रौद्र दूरे तजे, गंमे सावद्य कर्म॥ मुहूर्त्तमान समता धरे, करयो सामायिक धर्म ॥३॥
॥७॥
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ए पण श्रावकलोकने, लानन्नणी बहु होय ॥ ज्ञानी गीतारथ गुरु, शास्त्रे फल कडं जोय ॥४॥ लाख लाख दिनप्रते दिये, सोवन खांमी कोय ॥ तासपुण्य नहि तेटलु, सामायिक फल होय ॥५॥
॥ ढाल २ जी ॥ विलसे ऋद्धि समृद्धि मिले ॥ए देशी॥ सामायिक कर तुं समन्नावे, श्रावक एक मुहूर्त मन लावे ॥ एटला पल्योपमर्नु बांधे, नरनारी आव सांधे ॥१॥ कोमी वाणु लख गुण सही, पण वीस सहस नवसय सही ॥ पणवीस पल्य अम नाग करो, नपरे तेना तीन नाग धरो ॥॥ हवे चोवीश जिणंद नूपो, अन्वय नामोत्कीनरूपो ॥ नामस्तव ए पण बहु माने, पद संपद नपयोगे ध्याने ॥ ३॥ सार्थक दोए संध्याकाले नणे, तन मन श्रिर करि हित नाव घणे ॥ मोटो सुकृतोदय नणी पहुंचे, जगतमांहे तेहनी सोहन वचे ॥ ४ ॥ सूत्र अर्थ हृदय नपयोग धरी, चनवीसथो मनशुहिकरी ॥ जे नणे जतनशुं कर्म Salवहे, तीर्थंकर पदवि ते लहे ॥ ५ ॥ अथ वंदन नेद विधासुं गृहे, फिटा थोन्नं हादशावर्त कहे ॥
मस्तक नमणादिक प्रथमगणो, बीजे दोश् खमासमणो नमणो ॥ ६॥ त्रीजु वंदन बिहुने जाणो, तिहां प्रथम सयल संघने आगो ॥ बीजु वंदन श्रीसाधुनणी, त्रीजु पदधारक सुगुणनणी ॥ ७ ॥ अथ हादशावर्त वंदन क्रम, गुर्वादिकने करवा समकम ॥ ए पंच नामादि वाविशारे, चारशे बाणु शुद्ध नेद चारे ॥ ७ ॥ मन शुई श्रीजिन आणगृही,
क्लिष्टकर्म निर्जरा होइ सही॥ नीच गोत्र करे कृय कणमांहे, नच्चैर्गोत्र बंधे नगंहे॥ ए॥ यतः Seदण एणनंतेजीवे, किंऊणयई वंदणएणं नीया गोडं कम्म खवे ॥ नच्या गोमं निबंध सोहग्गं salचअप्पमिहयं आणाफलं चिघते दाहिनावं च गंजणप३ ॥ १॥ सत्यक् सुप्रकारे सुमति घणी,
वंदण कहियें गुणवंतनणी ॥ ते पामे सुख बहु खणखणमे, हरी परीकय कर्म करी ऋणमे
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वीश०
॥७३॥
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| ॥ १० ॥ दोए नमन करे वलि आघा जायं, कीय कर्म बार श्रावय कार्यं ॥ शिर चार वार नमिवो धरवो, त्राय गुप्ति प्रवेशण बे करिवो ॥ ११ ॥ एकवार निषमण करे, पण वीस आवश्यक इणिपरे । | किय कम करे जे सुगुरु जली, ते श्राये शिव सुरलोयधणी १२ ॥ परिकमणुं वे संध्या करवुं, मुनि श्रावकने हमे धर || विधिसुं गुरुने मुखें नेद लह्या, तेहना वलि पंच प्रकार कह्या ॥ १३ ॥ देवसि राज्य एपमिकमणो, इतरीय यावत्कविकं च सुणो ॥ परिख चनमासी संववरीयं, दुइ कर्म निर्जरा लाजकीयं ॥ १४ ॥ यतः ॥ पमिकमणेणं नंते, जीवे किंजायश परिक्रमणं वय बिदाई पिes | पहिय वय वयविदे पुराजीवे निरुदासवे असबलं चरिते व सुपवयण माया सुरुवरुपो अंपुरते सुप्पणिहि विहर5 || तथा आवस एसु ऊहजह कुरा पयतं हीराम इरितं तिविद करणो वऊतो तहतहसे निज्जरा होइ ॥ १ ॥ कायोत्सर्गतणा नेद गलो, चेष्टा अभिनव कायोत्सर्ग सुणा ॥ तत्र व्रत अतिचार विशुद्धि कीजे, चेष्टा कायोत्सर्ग दुकृत जांजे ॥ १५ ॥ जघन्ये अंतर मुहूर्त्ते याये, बीजो कायोत्सर्ग सुगुरु गाये ॥ कष्टाष्टक कर्मजयार्थ करे, श्रीबाहुबल मुनिराजपरे ॥ १६ ॥ आठ कर्म महायाने कीजे, तेमाटे ते जीर्ण काजे ॥ नट्या तप संयम करी सदा, निग्रंथ यया नज| माल मुदा ॥ १७ ॥ चार कपाय नायक जेहने, ते कर्मशत्रु वेद्या तेहने | कानसग्गा अनंग करे, | जय करवा चित्त नबगंद धरे ॥ १८ ॥ नत्कृष्टियो संवत्सरसीमे, अभिनव उत्सर्गे सुनी मे ॥ अध मुहूरत चेष्टा काल कह्यो, जिनदर्ष सदा हियमे नमो ॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥ ५२ ॥
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॥ दोहा ॥
वश्यक दवे, कडुं श्रुत प्रत्याख्यान ॥ तिहां श्रुतप्रत्याख्यानना, दोय जेद सुप्रधान ॥ १ ॥
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स्थान
| ॥७३॥
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॥ ढाल ३ जी ॥ जंबूहीपमझार ॥ ए देशी ॥ पूर्वश्रुत प्रत्याख्याननो, पूर्वश्रुत प्रत्याख्यान ॥ तत्राद्य नवम पूर्व ए, सांप्रत वर्ते सर्व ए॥१॥नोश्रुतप्रत्यख्यान, मूलोत्तरगुण प्रत्याख्यान ॥ विविध मिलिए, तत्र प्रथम देश सर्व दोए प्रकारनो॥ एक एक Salपण इत्वर वलीए॥२॥ यावत्कथिकं तत्र, पंचमहाव्रत प्रत्याख्यान, धम्मिलपरे ए ॥ यावत्कश्रिकसर्व साधुन्नणी दुवे,श्रावकपण अनुव्रत धरे॥३॥ देशगुण मूल, प्रत्याख्यान इत्वर, यावत्कथिक आराधिक ए, थाये मुनिने तत्र ॥ त्रिविध त्रिविध करी, प्रत्याख्यान समायिक ॥४॥ आगारीने पाए दुविध त्रिविध करी, ॥साधु श्रावकने श्म कर्यु ए ॥ करतां तास विनाग, श्रमण
तणां होवे पंच महाव्रत गुण गृह्यां ए ॥५॥ प्राणीवध मृषावाद, अदत्त मेहुण तिम परिग्रह ॥ salपंच पिगणिए, मूलगुण कहियाए श्रमण निग्रंथना, त्रिविध विविध शुं जाणिए ए॥६॥ नत्तर
गुण पचखाण, कहुँ सहु सानलो, तेहना नेद अनेक ले ए॥ अन्नतठ उठ अठमादि वली अन्यह
एहथी, दश प्रकारना जे अ ए॥ ७ ॥ नाम सुणो हवे तास, अपांगय मेकेंत कोटी संहीयं निवvalटियं ए॥ सागारं अांगार परिमाणं करूं। निर्विशेषं नाणियं ए॥ ७ ॥ दस विद ए पचरखाण Salसंकेत अहाय स्वयमेव अणु पालवो ए॥दाणुवे एस समाहे, जिम थाये तिम नावे पाप पखालवो ए
॥ ॥ नवकार पोरसि जाण, पुरीमढे कासणो, एगठाण आंबिल नपुंए ॥ अनिता चरम विचार अंनिगाहा विगश्यं, करतां लान होये घगुंए ॥ १० ॥ दो नेमुकार आगार, षट पोरंसीतणा, साते वयपुरी मढतणाए। एगासणाना आठ, संत एगगणनां, आठ आंबिलनां नहीं घणा ए॥११॥ हवे नितम्नां पांच उपाणी तणां, चरम चार मनधारीयें ए॥अनिंग्रह पंच चतारी, नीवीयें अपनव
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वोश
स्थान
॥७
॥
आगार संनारीयें ए॥१२॥आप्यानरणे पंच, थाये आगार चार चार बीजां तणां ए॥कीधेए । पचखाण, ढंकाए सही, सघलां आस्रव बारणां ए॥१३॥ आस्रव दे होये, व्यणं, तएहा ने हगथी होवे ए ॥ नपशम अतुल अपार, नपशमथी दुवे, शुक्ष पचखाण सुगुरु वचे ए ॥ १५ ॥ इति NA प्रत्याख्यातयः त्रीधोपयोगथी जे, आवश्यक सुधी, करीक्रिया शुक्ष्मन थइ ए ॥ अरुण देवपरें तेह, IST तीर्थकरपद, पामे सुख अविचल मयीए॥१५॥ तथाहि ॥णहीज नरत मोकार, नगर अनोपम,
मणिमंदिर नगर शोन्नादरीए ॥ न करे तम परवेश नित्य अहोनिश, अरिहंत मणि मंदिर करीब Elए ॥ १६ ॥ तीणपुरी वेरी काल, पालक लोकनो, मणि शेखर तिहां वितिपति ए ॥ नाम यथाSeal रथ जास, वांगित पूरवे, त्यागी त्यागशिरोमणिए ॥ १७ ॥ मणिमाला तसु नारि, मणिमाला SEL
जीसी, निर्मल शोना अति घणी ए ॥ शोनावे निशदीश पति वक्षस्थल, सद्गुणशील शोहामणी sal ए ॥ १७ ॥ तास पुत्र गुणपात्र, सदविद्यातलो, कला सहु अंगे वसे ए॥ अरुणदेव अन्निधान, तेज पराक्रम, देखी जन मन नल्लसे ए ॥ १७ ॥ सुमति सुमति तसु मित्र, मंत्रीश्वर सुत, सकल कार्य सखाश्यो ए ॥ सुख दुख सम सम प्रीति, कहे जिनहर्षसुं, दिन दिन प्रेम सुहाश्यो ए ॥ २० ॥ सर्व गाथा ॥ ३३॥
॥दोहा॥ मित्रसंघाते अन्यदा, यौवनवय सुकुमार ॥ गयो वसंतरमवानगी, कीमोद्यान मोकार ॥ १ ॥sa तिण वनमांहि वनस्पती, फूली फली अपार ॥ दी कन्या हींचती, सुरकन्या अवतार ॥ २ ॥उवा
॥ लावण्याद्भूत जेहनु, दीठी नयण नरेद ॥ तत्कण हृदय कुमारनु, विंध्यु काम शरेह ॥ ३ ॥ चित्रतणी परे चित्तहरी, मृगनयगी वरनार ॥ तो साक्षात् निहालतां, न वधे केम विकार॥ ४ ॥रू
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रति रंजा जिसि, नयन कमलदल जास ॥ कामी नर मृगकारणें, रच्यो विधाता पास ॥५॥ अहंका रीने श्राकरा, मानीने मबराल || ते पण महिला वश थया, महिला मोटी जाल ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ४ थी ॥ ऋषिनो वैयावच करे ॥ एदेशी ॥
aise विद्याधर ननचररुप, खेलतो तिली वनमांदे ॥ तिले अवसर आवियो ए, किाही वन गहनमां मेलियो एह ॥ कुमरमित्र संघाते संवादि० १ ति० ॥ युद्ध करी कुमर खग जीपीयो ए ॥ नोयें पड्यो करी प्राकंद | अति तीव्र पीमाथकी ए, होइ गयो बलमंद ॥ ति० ॥ २ ॥ जाइ असन वेग तेहनो ए, क्रोध करी वडवीर || पापी जीम दुर्गते ए, घातिय कूप गंजीर ॥ ति० ॥ ३ ॥ पुण्य प्रभावथी जइ पड्यो ए, अब्जलमांहे कुमार || कुप्रथकी निकल्यो ए, स्वस्थ यर के प्रकार ॥ ति० ॥ ४ ॥ कर्म अनुकूलश्री तिहां मिल्या ए, मित्रसुं परम सनेह ॥ देशांतर देखवा ए, चाब्या वे जण तेह || ति० ॥ ५ ॥ आगल प्रावतां निरखियो ए, लक्ष्मी देवी गृहपास ॥ नर एकतरु बांधियो ए, नईपद अधोमुख तास ॥ ६ ॥ तास समीपे करुणा स्वरें ए, रुदन करती सती एक ॥ बहु नूषरों शोजती ए, सुंदरगुण सुविवेक ॥ ति० ॥ ७ ॥ कुमर करुणानिधि प्रूबियो ए, तेहनारी जली ताम कुण ए नर किम लही ए, एह अवस्था अकाम ॥ ति० ॥ ॥ ते कहे स्वामी नचर तणो ए, माहरो वल्लन एह ॥ लक्ष्मीरमण कानने ए, सुमन सावचय करेह ॥ ति० ॥ || लक्ष्मी देवी इहां बांधियो ए, क्रोध करी मतिमंत || मूकावो ते हवे ए, विश्व नृपकारी तुं संत ॥ ति० ॥ १० ॥ तेहनां वचन श्रवणें सुणी ए, कुमर मुकावा तास ॥ लक्ष्मीसूरि पूजीने ए, आागले करे अरदास ॥ ति० ॥ ११ ॥ जयजय तुं कमला सती ए, जय जय जगत आधार ॥ सेवकने सुखदायिनी ए, जय जय सुगुणजंकार ॥ ति० ॥ १२ ॥ जय जय तुं जगदीश्वरी ए, ताहरी जगतमां ज्योति ॥
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तुझमाया सुपसायथी ए, अवगुण पण गुण पाय ॥ ति ॥ १३ ॥ प्रसन्न थानो परमेश्वरी ए, स्थान
सुरनर सेवित पाय । सहु आश ताहरी करे ए, जाए तुजथी सहु गेति ॥ ति ॥१॥ एहवी स्तुति Ralशुणि देवता ए, पद्मा प्रत्यक थई ताम ॥ वर माग वत्स एम कहे ए, तुजने रुचे अन्निराम ॥ तिosal Nan१५ ॥ हाथ जोमी कहे मातजीए, जो श्रयां तमे प्रसन्न ॥ मूको विद्याधर नगी ए, विश्ववत्सल
धन धन ॥ ति॥ १६॥ तत्कण खेचर मूकियो ए, प्रसन्न थ रमा ताम ॥ परनपकारने कारणे ए. देवसेवा करी आम ॥ ति ॥ १७ ॥ नवजन्मनी परे आपने ए, मान तुं खेचर राय usa कहे नरपति पुत्रने ए, डुं नमुं ताहरे पाय ॥ ति ॥ १७ ॥ तुं रत्नगर्ना ते करी ए.NA नूमि यश् गुणगेह ।। स्वार्थथकी पण घणुं ए, पारको अर्थ मन एह ॥ ति० ॥ १५ ॥ प्रत्युपकार अर्थे तिहां ए, कृतज्ञ खेचर पति ताम ॥ प्रज्ञप्ति आदिक दशे ए, दीध विद्या हित काम ॥ ति॥श्णा प्राप्त विद्या श्रीदेवी, प्रते ए, सादरे करि प्रणाम ॥ जिनहर्ष निजमित्रसुंए, चाल्या व्योमपंथ ताम ॥ ति ॥ २१॥ सर्वगाथा ॥ १० ॥
॥दोहा॥ आगल जातां निरखियुं, एकवन तरुवर श्रेण ॥ फल फूले करि शोभतुं, नंदन वन नपमेण ॥ REकंचन चैत्य सोहामगुं, तेवनमांहि विशाल ॥ शांतिनाथ जिनरायनूं, दी कुमर नूपाल ॥ २॥
स्नान करी निर्मलजलें, आव्या चैत्यमोकार ॥ हृदयकमल भावें नरयुं, नलट अंग अपार ॥३॥ प्रतिमा शांति जीणंदनी, सुविधं पूजा कीध ।। फुल सुगंध ले। करी, मानवनव फलसि६ ॥ ४ ॥ चैत्यवंदन विधिसुं कयु, वारणनव दुखताप ॥ नीसरणी शिव मेहेलनी, जल धोएवा पाप ॥५॥
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॥ ढाल ५ मी ॥ आदर जीव कमा गुण आदर || ए देशी ॥
स्तवन कहे हवे कुमर इसी परे, जय जय शांति जिणंदजी ॥ चिदानंदमय स्वामी प्रनो मम आपो परमानंद जी ॥ स्तवन ॥ १ ॥ विश्वसेन नरपति कुलदिनकर, अचरा नर श्रीहंस जी ॥ मनवांबित पूरण वर सुरतरु, वान वधारण वंशजी ॥ स्तवन ॥२॥ तुज आणा धारे जे मस्तक नावे त्रिभुवन नाराजी ॥ तिहने मस्तके सुरनर सघला, धारे प्राण प्रमाणजी ॥ स्त०॥ ३॥ पामे जोग रोग दुखवर्जित, पामे संपति सारजी ॥ तेनुं सुजस कपूरती परे, व्यापे जगतमोकारजी ॥ स्त० ॥ ४ ॥ ताहरी भक्ति फलित मुक्तामय दृढगुण सहित मोकार जी। हारती परे जास विराजे, वक्षस्थल वरनारजी ॥स्त || शा तुज स्वरूप ए सम्यकनावे, ध्यावे हृदय मोकार जी ॥ विश्वत्रय ऐश्वर्यती प्रभु, पदवि लहे निरघा - रजी ॥ ० ॥ ६ ॥ तन्मय मन श्राये जे नरनुं, कीर नीर जिम जोयजी ॥ ते निवें सुकृति नर कहियें, आसन सिद्धिक होयजी ॥ स्त० ॥ ७ ॥ सकल विश्वतम दूर गमावण, तुं प्रभु अर्कसमान जी ॥ गुण आगर सागर करुणानो, ताहरू निर्मल ज्ञान जी ॥ स्त || || आस्रव निवारण तारण जगनो, शांतिकरण शिवसाथ जी || शांति जिनेश्वर द्यो परमेश्वर, निजपदवी जगनाथजी ॥ स्त ॥ एए ॥ शांति कांति नासुर जगदीश्वर, स्तवना कीध विचित्र जी । भारती देवी कुमरे दीठी, मंगल मांहे तत्र जी ॥ स्त० ॥ १० ॥ कुमर विचक्षण लक्षण धारक, कोविद वचनविलास जी ॥ नमस्कार करी देवीने, स्तवना करे उल्लास जी ॥ स्त० || ११ || काव्य नाद वे पक्ष करीने, विचरे भुवन अतीवजी ॥ देवी सरस्वती हंसी माहरे, मानस सरमां सदीव जी ॥ स्त० ॥ १२ ॥ काव्य करे नर तुज सुपसायें, तुज सुपसायें बुद्ध जी ॥ मूरखने पण पंकित प्रभुता, आपे ज्ञान विशुजी ॥ स्त० ॥ १३ ॥ तुं महामाइ तुं वरदा, तुं विश्वमांहे विख्यात जी ॥ ताहरा
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वीश
॥७६॥
गुण सुरनर विद्याधर, सेवे त्रिभुवनमात जी ॥ स्त ॥ १४ ॥ स्तुति सुधास्वाद सारीखी, कीध । कुमरसुजाणी जी ॥ प्रसन्न या हंसासणि देवी, वर दीधुं कहे वाणी जी ॥ स्त॥ १५ ॥ शांतिमति कन्या परीने, मैत्री परमाल्हाद जी ॥ थाजे विद्याधरनो स्वामी, जोगवि जोगसवादजी ॥ स्त ॥ १६ ॥ निकलियो शांतीश्वरगृहथी, आगल दीवी अनूप जी ॥ शांतिमती कन्या गुणवंती, लावण्यामृत रूप जी ॥ स्त० ॥ १७ ॥ कुमर जमर चिंते मनमांहे, में दीठी नद्यान जी ॥ हृींचोले दींचंती रमती, सुरकन्या अनुमान जी ॥ स्त० ॥ १८ ॥ ते कन्या सुखसर्वस्व जीवित, पृथ्वी| मांहे प्रधानजी ॥ वर साधुं सरस्वतिमातानुं, श्रयुं जिनहर्ष निदान जी ॥ स्त ॥ १७ ॥
॥ दोहा ॥
हवे कुमर मन चिंतवे, धन धन खेचर तेह ॥ नपकारी मुजने थयो, कूपक नाख्यो जेह ॥ १ ॥ उत्तम अवगुण नवि गृहे, अवगुण गुण करि लेय | अगर अग्निमां बालतां, निजगुण प्रकट करेय ॥ २ ॥ पूरव पुण्योदयथकी, आायो इणिवनमांहि ॥ श्री जिन श्रीदेवीतणा, दर्शन श्रयां नगं हि ॥ ३ ॥ कन्या पण दीठो कुमर, कामदेव साक्षात् ॥ परम प्रीति वाधे हिये, रोमांचित श्रयुं गात ॥ ४ ॥ कुमरी अमरी सारिखी, अनिमिष नया निहाल | वर दीधुं परमेश्वरी, त्रिभुवन मांहे टाल ||५|| ॥ ढाल ॥ ६ ठ्ठी ॥ राजाजी ने पूवे जीलमी रे ॥ ए देशी ॥
लक्ष्मी वनश्री लेइ करीरे, नवलां चंपकनां फूलके ॥ कुमरी मन मोही रह्युं रे, गुंथी निजहाथे चूंपसुं रे, मन मोहन माल अमूल के || कु० ॥ मीग वचन सुधारस वांचतां रे, वाधे मन प्रीत विशेष के || कु० ॥ १ ॥ निज धात्री हाथे मोकल्यो रे, ते माला कागल ताम के || कु० ॥ कुमरे वांच्यो मनरंगसूं रे, नलस्यो मनपरिणाम के || कु० ॥ २ ॥ वैताढ्य दक्षिण श्रेणे जलो रे, शिव
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स्थान०
॥७६॥
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मंदिर नगर विशाल के ॥ कु० ॥ विद्याधर केरो राजियो रे, वजवेग सबल नूपाल के ॥कुण्॥ ॥ वजवेगा तेहनी कामिनी रे, गुणवंती पुत्री तास के ॥कु० ॥ नामें शांतिमती वरार्थिनी रे, नैमित्तिक वचन प्रकाश के ॥ कुण् ॥ ॥ निज तात आदेश ले करी रे, इणी बीज नवने रही आश्रे॥ कु० ॥ पूजें नित जिनवर सोलमो रे, पूजु वली सरस्वती माय के ॥ कुण् ॥ ५॥ आज पूर्ण पुण्योदय मुज श्रयो रे, प्रश्नारति आज प्रसन्न के ॥ कुण् ॥ तुमे वर आप्यो मुजने शहां रे, आज दिवस श्रयो धन धन के ॥ कु० ॥ ६॥ विवाह सामग्री सदु ग्रही रे, मुजतात आदेश प्रात के ॥ कु० ॥ सांजली आगम तामारमो रे, हर्षित नल्लसित गात के ॥ कु० ॥७
सुत करुणानिधि तमो रे, मुझनपर करिय पसाय के ॥ कु० ॥ एक रात तिहां वास Nalवसो रे, मुजने सुख द्यो महाराय के ॥ कु० ॥ ७॥ जागी पारथ एहवो रे, मनमांहे खुशी
यो ताम के ॥ कु० ॥ वांगित औषध वैये कयुं रे, विण श्रम सीधां मुज काम के ॥ कुण्॥NEl Nalचंपक माला कंठे ग्वी रे, प्रीति जिम वाहाली नार के ॥ कु० ॥ हश्मामांहे हर्षित भयो रे, ते सारal Balलहे किरतार के ॥ कु० ॥ १० ॥ निजनामांकित मुझी रे, मुकी नृपसुत गुणगेह के ॥ कु० ॥
धात्रीहाथें कन्यान्नणी, नीशानी परम सनेह के ॥ कुण् ॥ ११ ॥ वज्रवेग नृप तिहां आवियोरे,
दीगे नृपसुतने प्रात के ॥ ॥ निज नगरमांहेला गयो रे, नयणे यो अमृतपात के ॥ ० San १२ ॥ परणावी कुमरनणी सुता रे, करि नत्सव प्रेम अपार के ॥ कु० ॥ करमोचन राजा
आपियोरे, लक्ष्मीसुं राजनंमार के॥ कु० ॥१३॥ नाट्योन्मत्त खेचर तिण समे रे, उष्टाचार अपSalवित्र के ॥ कुण् ॥ हितकारी सुविचारी तिवं रे, हो सुमतिकुमरनो मित्र के ॥ कुण् ॥ १४ ॥ Ralप्रज्ञप्ति विद्या आणिने रे, दीधो मित्र कुमरने ताम के ॥ कु० ॥ पुण्यवंतनगी चिर नव रहे रे,
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स्थान
कय जाए आपद गम के ॥ कु० ॥ १५ ॥ विद्यासाधन करी अनुक्रमे रे, कुमरें कीधो संग्राम के ॥ कु० ॥ नाट्योन्मत्त खेचर जीतियो रे, देखाइयुं नुजबल ताम के ॥ कु० ॥ १६ ॥ विद्याधर श्रेणी तणो रे, नृप अरुणदेव बलवंत के ॥ कु० ॥ सर्वत्र जय श्राए धर्मश्री रे, धर्मे बहुलील लहंत
के ॥ कु० ॥ १७ ॥ सांजली धर्मदेशना अन्यदा रे, दयिता निजमित्रसंघात के ॥ कु ॥ चारणINIमुनि जयंत स्वामी कने रे, आनंद मनमांहि लहंत के ॥ कु० ॥ १७ ॥ तीर्थयात्रा विधिशुं करे रे,
हाथे पूजे जिनराज के॥कुण्॥ धरतुं समकित मनमां सदा रे, न करे प्राणिनो घात के॥कु॥१॥ दिये जे दान सुपात्रने रे, आपे मुनिने बहु मान के ॥ कुण् ॥ण पुण्ये जेम श्री पामियें रे, जिन-Sal Sal हर्ष धरे तसु ध्यान के ॥ कुण् ॥ ३० ॥ सर्वगाथा ॥ १० ॥
॥दोहा॥ - मुनिचरणे लागी करी, समकितसुं व्रत बार ॥शांतिमती देवी सहित, अारियां तिणिवार ॥१॥Sta व सह जिनालय शाश्वतां, अशाश्वतां पण जेह ॥ समकित निर्मल कारणे, देव जुहारे तेह ॥२॥a फल लीधुं साम्राज्य, अरुणदेव गुणवंत ॥ सुविवेकीनी संपदा, धर्मकार्य आवंत ॥३॥ वजवेगने आपियु, श्रेणी ध्वजनुं राज ॥ अरुणदेव खेचरपति, राणीसुं हितकाज ॥४॥ दिव्य विमान चमीर करी, बहु खेचर संघात ॥ नन्नमंडल नृपचालियो, वाजे पवित्रस्वात ॥५॥ ॥ ढाल मीनले पधार्या तुमे साधुजीरे ॥ एदेशी ॥
USTI श्रीमणीमंदिरनगरे आवियो रे, राय नत्सव करे बहु नांत रे॥नगरप्रवेश करावियो रे, मायबाट लही निरांतरे॥ श्री॥१॥विनय करी तातमातनो रे.कांचरण नम्या सविनीतरे ॥ वह सामने पाए पमी रे, कांश वाधी अधिकी प्रीत रे ॥ श्री० ॥ २॥ देखीरे अंगज संपदा रे, कांश मणीशे
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खर भूपाल रे || हर्ष हश्यामां पामियो रे, एहनां जूवो पुण्य विशाल रे || श्री० ॥३॥ निजपाटे नृप थपियो रे, निजपुत्र नली तिणीवार रे । पोते मुनिप्रन गुरुकनेरे, आदरियो संयमनार रे ॥ श्री० ॥ ४ ॥ अरुणदेव प्रजापरे रे, कांइ निज प्रजा पालंत रे ॥ न्याय धर्ममार्ग बेहने रे, कांइ देखा | हितवंत रे || श्री० ॥ ५ ॥ अनुक्रमें शांतिमती तसे रे, कांइ पद्मशेखर थयो पूत रे || राज्य धुरंधर गुनिलो रे, जे राखे घरनो सुतरे ॥ श्री ॥ ६ ॥ अन्यदिवस जातां थकां रे, श्रीमणिशेखर ऋषिराय रे | लीलोद्यान उद्यानमा रे, सहु कलुषरहित प्रमाय रे || श्री० ॥ ७ ॥ दीठो नयरो गुणनिलो रे, कांइ नगर बाहेर अणगार रे || जाति संजारी पावली रे, नृप अरुणदेव सुविचार रे ॥ श्री० ॥८॥ तथा हि ॥ शुक्तिमती नगरी वसे रे, एक वैद्य गृही धनवंत रे ॥ महा आरंभी पातकी रे, कांइ कूटोपदेश दीयंत रे || श्री० ॥ ए ॥ करे चिकित्सा लोकनी रे, एकदिवस तपोधन एक रे ॥ श्रव्यो गुरुनो मेव्हियो रे, जाणे साक्षात धर्मविवेक रे ॥ श्री० ॥ १० ॥ तास घरे औषधमणी रे, तेहने वैद्ये औषध दीध रे ॥ मुनिवरने तेणें सुऊतुं रे, नरभवनो लाहो लीध रे ॥ श्री० ॥ ११ ॥ वैद्य नपर हित प्राणिने रे, कां दीधो ऋषि उपदेश रे ॥ नपकारी धर्मारश्री रे, टाले सहुना क्लेश रे ॥ श्री० ॥ १२ ॥ प्रायें शास्त्र वैदक तणां रे, बहु आरंभ कारण तेह रे || पाप श्रुत एहने कह्यां रे, कोई दुर्गतिदायक एह रे ॥ श्री ॥ १३ ॥ शास्त्र चिकित्सक ज्योतिष घणां रे, वली वैदक धातुवाद रे || पात्र विना देवां नहि रे, बांधे पाप परंपरा स्वाद रे || श्री० ॥ १४ ॥ तोपण नद्र पुण्यातमा रे, ते विरति मुनिने काज रे ॥ कल्पौषधादिक आपवा रे, जेहथी लहियें सुख समाज रे ॥ श्री० | ॥ १५ ॥ आगामी जव पामियें रे, कांइ जेह थकी बोधबीज रे ॥ नरसुरनां सुख जेहथी रे, वली | मुक्तिदायक एहीज रे ॥ श्री० ॥ १६ ॥ यतः ॥ गृहिणां गृहधर्मस्य सारमेतत्परं स्मृतम् ॥ यथाशक्ति
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यो सुपात्रेन्यो दानं यध्वस्तुनः॥ १॥ अर्थः--गृहस्थोना गृहस्थाश्रमधर्मनुं एज परम सार- स्थान
रुप फल कहेलु ने जे शुध्वस्तुनुं यथाशक्ति दान आपq. सारांश के सुपात्रने शक्ति॥७॥
प्रमाणे सारी वस्तु, दान आपq ते गृहस्थोना गृह धर्मनुं परम साररुप फल शास्त्रोमां कहेलुं ॥१॥ Salत्यारपठी ते साधुने रे, करुणा हृदय शुक्ष्मान रे ॥ विविध औषध घे नावसुं रे, दे आदर ने सन- sal समान रे ॥ श्री ॥१७॥ पण आन्ध्याने मरी रे, थयो वानरमाहे प्रधान रे ॥ पति पांचशे वानरी-NEL Sral तणो रे, वनकीमा करे असमान रे ॥ श्री० ॥ १७ ॥शल्य सहित मुनि देखिने रे, पाम्यो जाति--
स्मरण ताम रे।साधु दीठे पण जंतुने रे, थाए शिव सुख गम रे ॥श्री॥१णाप्राग्नवना अन्न्यास | माथी रे, औषध पाणी कपिराय रे ॥ बांधी मुख चावी करी रे, गतशल्य कीधो मुनिराय रे ॥ श्रीCall Salu ० ॥ नवसायरना दुखतयो रे, कांश तत्कण पाम्यो पार रे॥ कहे जिनह जुओ तुमे रे, कांश Balसाधु नक्ति गुणकार रे ॥ श्री० ॥२१॥
॥दोहा॥ Sal धर्म कस्यो रे आगले, मुनिवर पुण्य अगम्य ॥ महीमंगल पीयूषश्री, चंदन वरसे अन्य ॥१॥ valमुनिदेशनाथी पामियो, बोधिलान्न कपि ताम ॥ तीन दिवस लगि पालियुं, सामायिक व्रत पाम Aalu ॥ अनशन आराधी करी, मुनिवर हृदय प्रशांति ॥ त्रण पथ्योपम आवखें, सौधर्मे सुरकांति Italu ३ ॥ अवधीज्ञान प्रयुंजिने, दीगे मुनिवर तेह ।। गुरुपासे लश् मूकियो, पाल्यो धर्म सनेह Sanा निजस्वरूप देवें कडं, ९ वानर प्रन्नु सोय ॥ तुम सुपसायें सुर अयो, नमी गयो सुर लोय॥mins ना
॥ ढाल मी॥ नदी यमुनाके तीर नमे दोय पंखियां ॥ ए देशी। तिहांथी चवी श्रयो देव अरुणदेव तुं हां, पाम्यां ए सुख पुण्य न जाये कृत किहां ॥ संन्नारी
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निजजाति नम्यो सुरवरजणी, मुकी प्रतिमा धर्मलान दीयो गली ॥ १ ॥ जाव धरी मुनि आगल बेगे राजीयो, घे उपदेश विशेष के जलधर गाजी यो। मीठी वाणी सरस के अमृत स्राविणी, जन्म मरण नवनीति अनीति विज्ञविली ॥ २ ॥ दुर्लभ पुष्प न्यग्रोध दुलह पय स्वातिनुं, दुर्लन मानुषजन्म नीरोगी जातिनुं || दुर्लन श्री जिनशासन धर्म जिदनो, दायक सुर नर ऋद्धि मुक्ति आनंदनो ॥ ३ ॥ कल्पद्रुम चिंतामणि दुक्कर पामतां, दक्षिणावर्त्त गवी सुर सुरघट कामतां । तेहथी पण महाराज न दुर्लभ जाणियें, त्रण तत्वनपर श्रद्धा जे प्राणियें ॥ ४ ॥ तत्र प्रथम सर्वज्ञ जिने - श्वर देवता, जेहने चोसठ इंड् सुरासुर सेवता ॥ अतिशय वर चोत्रीश जेहने दीपता, अष्टकर्म दलराग द्वेष नम जीवता ॥ ५ ॥ नववामे ब्रह्मचर्य महाव्रत पालता, चारित्रना अतिचार विचारी टालता | सावद्य सहु व्यापार तज्या पूतातमा, एहवा गुरुगुणवंत महातमा ॥ ६ ॥ दर्शधा धर्म कमदिक जिनवर जाषियो । शिवपदनो दातार सहु जग साखियो || एहवां तीने तत्व जिनागममां कह्यां, ए रत्नत्रय सम्यग् जावें सद्दह्यां ॥ ७ ॥ त्यारे नव परिपाक तेह नरने सही ॥ श्राये चारित्र योग वात जिनवर कही ॥ तत्र देशेने सर्व विरति चारित्र द्विधा ॥ श्राद्य गृहीने प्रोक्त जीसी मीठी सुधा ॥ ८ ॥ बीजुं चारीत्र सर्व विरति मुनिने हुवे, देश चारित्र आराध्य देव सुख अनु नवे ॥ सर्वविरति चारित्र थकी मुनिवर लहे, मुक्ति अनंतां सुख तिहां नित गहगहे || || निकषाय चा|रित्र मुहूरत पालतो, वैमानिक सुख अवश्य होये दुख टालतो || एहवी वाणी साधुतली श्रवणे सुणी, प्रतिबोध्यो नरराय पाय प्रणम्या मुली ॥ १० ॥ नवी निजगृह नूप चंपसुं वियो । पोतानो परिवार सहु बोलावियो || पद्मशेखर सुत राज्य महोत्सव थापियो । आदिवस जिननक्ति करी जव कापियो ॥ ११ ॥ श्री मनसूरि समीपे संयम आदरयो । समिति गुप्ति प्रतिपाल नाव
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वीसमता धस्यो । शांतिमती संवेग रसे संपूरिता, जितेंशिय ग्रहि दीख्ख कर्म बहु चूरतां ॥ १२ स्थान
हादशांग राजऋषि नण्या उलटघणे, स्थानकनां फल एक दिवस गुरुमुखें सुणे ॥ एकादश पद Na साधु सम्यग्नावें करी, ज्ञान अने नपयोगवंत नपशम धरी ॥ १३ ॥ त्रिधा शुःविधि आवश्यक किरिया करे, गणे नमो चारीत तीर्थकृत पद वरे ॥ आवश्यक नपयुक्त तास बहु निर्जरा, थाए Valगुरुजी पास सुणी श्रयो सादरा ॥ १४ ॥आवश्यक करे विशेष सदा शांतातमा, सामायकादिक किvalरिया मुकी तमा ।। सम्यग निर्मल हृदय शुन्न नपयोगें करी, करवा त्रिकरण शुक्ष् मया नद्यम धरी Ram १५ ॥ श्राये सामायिकथी संयम निर्मलो, चोवीसथे होए के समकित नजलो ॥ ज्ञानादिक गुण sa
सगण शक करवा नणी.वंदराने प्रतिप्रतिकरी सदगरुतणी॥ १६ ॥झानादिकथी चकं होये जो कीणी परें, निंदे आतम वली के पागे नसरे ॥ चरणादिक अतिचार टालेवा कारणे, करे कानसग
नेम के धाव पमी गणे ॥ १७ ॥ प्रत्याख्याने शुहि होवे तपनी सही, करे साधु निःउद्मपणे मन Naगह गह। ॥ सावधान सर्वत्र क्रिया नद्यम कीयो, तीर्थकरपद राजऋषि नपार्जियो ॥१॥ षटमासा विधि राजऋषीश्वरकेरमी, की। परीक्षा लक्ष्मी देवीएवमी ॥ सोगमे नपसर्ग घोर बिहामणा, कहे , जिनहर्ष सुजाण हवे सुगजो जणा ॥ १५ ॥ सर्वगाथा ॥ २० ॥
॥दोहा॥ हवे मीठे वचने करी, देवीरूप निधान ॥ साथे वृंद देवांगना, करती सुंदर गान ॥ १॥ योगी-IN श्वरना चित्तपण, देखी नजे विकार ॥ करजोमीण पर कहे, लक्ष्मी देवी तिवार ॥ २ ॥ हुँ आवी आशा करी, स्वामी करो पसाय ॥ कामानि काया दही, विषयामृतरस पाय ॥३॥ हाव नाव बहुपरें करी, कहे वचन गंजीर ॥ मुनिवरने लागे नहीं, जिम पथ्थरने नीर ॥ ॥ मधुर
॥७
॥
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गट था
वचने नेद्यो नहीं, कटुक वचन कहे ताम ॥ तीखां करवत सारिखां, अप्रिय निष्ठुर काम ॥५॥ नित्रं मुनिवर नणी, अन्ता नांखे दोष ॥ पण समता रसमे ग्यों, नाण्यो मनमा रोष ॥६॥
॥ ढाल मी ॥ मंगल कमलानी ए देशी ॥ राग व न आणीयो ए, कुडीयु फल तेहy जागीयो ए ॥ निर्मोही ममता नहीं ए, समता मनमें संग्रही ए॥१॥ काम वचन देवीतणां ए, कामीने चित्त सुदामणांए ॥ एपण मुनिने अलखामणां ए, लाग्यां जेम कौची विहामणां ए॥ ॥ व्रत अतिचार लगाडीयो ए, नहीं पमहो सुजस वगामीयोए॥ त्रिकरण शुद्ध विशेषसुं ए, आवश्यक दियमामें वस्युं ए ॥३॥ श्रीदेवी पर
पए, गुण देख। रलियायत दुइ ए॥ वांदे मुनिना पाय ए, कहे धन धन तं ऋषिराय ए॥untal जखमजे मुज अपराध ए, तुं गुणसायर ने साध ए॥ कर जोमी करे विनती ए, जगतारक हुँ ।
महोटो यति ए॥ ५॥ तुं सहुमें शिरदार ए, तें जीत्या मोह विकार ए॥तें वांग्या नहीं लोग ए, ते राख्यो निश्चल योग ए॥६॥धन धन तुं महानाग ए, ताहरे नहीं रोष न राग ए॥ ताहारे चरणे सुर नमे ए, तुज दरशन दी मन गमे ए॥ ७ ॥शब्दादिक गुण ग्राम ए, में कीधा अति अनिराम ए॥ न चल्यो चित्त लगार ए, ते देखीने अणगार ए॥७॥ रागष नवि आवियो ए,N मनमें समतारस नावियो ए॥ पूनमचंतणी परें ए, निर्मलगुण तुं मुनिवर ध दीसे वे जणाए, झ्यावश्यक कर्ता घणा ए॥पण नावावश्यकविषे ए, तुजसरीखा कोश्क दीसेए॥१॥ स्तवना करी बहु मान ए, चली देवी बहु सनमान ए ॥ नमी करी गुणग्राम ए, लक्ष्मी पहोती। निज गम ए॥११॥ चारित्र धर्म पाली करीए, अंतकाले अगसण नचरी ए ॥ सुर श्रयो स्वर्ग Sd वारमें ए, स्वर्गेश परें सुखमें रमे ए॥१॥ तिहांथी चविय विदेहमेंए, पामी जिनपदवी ते समे ए॥
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वीश
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जोगवीने मुक्तातमा ए, निश्चय परमातमा ए ॥ १३ ॥ निजशक्त मन नमहीए, आवश्यक आद रिये सही ए ॥ जिनपद प्राप्ति जेहथी ए, त्रिविध त्रिविध उपयोगश्री ए ॥ १४ ॥ अरुणदेव राजातो ए, सांगली दृष्टांत सुहामलोए सेवीजें अगियारमो ए, थानक जिनहर्ष मुक्ति रमोए ॥ १५ ॥ सर्वगाथा ॥ २२ ॥ इति एकादश स्थानके अरुणदेवनृपकश्रा ॥
॥ दोहा ॥
दश यानकविषे, जे सुविवेकी होय ॥ धरे शील निर्मलपरें, तास न गंजे कोय ॥ १ ॥ जिम नृपमां चक्री अधिक, देवमांहि देवें ॥ तेजवंतमां दिनमणी, ग्रहगणमांहि चं ॥ २ ॥ ऐरावण गजमांहि जिम, श्वापद मांहे सिंह ॥ व्रतमांहे जेम ब्रह्मव्रत, आमी वाली लीह ॥ ३ ॥ चिंतामणि कर तेहने, कल्पद्रुम तसु गेह ॥ कामधेनु घर प्रांगणो, शील समुज्वल तेह ॥ ४ ॥ देवी स्त्री तिर्यचणी, काम तो अनुराग ॥ करंण करांवण अनुमते, मनवच कायात्याग ॥ ५ ॥ खट त्रण साथै जोमतां, थाये नेद प्रढार | अथवा तीन प्रकारनो, कह्यो शील सुखकार ।। ६ ।।
॥ ढाल १ ली ॥ इंडर आंबा आंवली रे ।। ए देशी ॥
सदाचार पहिलो यथारे, बीजो सहस्र प्रहार || नव ब्रह्म गुप्तिसुं तीसरो रे, केवली को विचार ॥ १ ॥ नविकजन सांजलजो अधिकार, ए तो सुणतां जयजयकार ॥ एतो सुणतां दर्ष अपार, एतो वारमुं थानक सार ॥ एतो पालो निरतीचार ॥ ज० ॥ २ ॥ यतः ॥ शुद्ध समाचार मनिंदणिजं, सहस्स अहारस लरकणांच || जानिहाणं च महाचयंति, शीलंति हा केवलिलो वयंति ॥ १ ॥ परिहरवो सदु नारीनो रे, नव ब्रह्मचर्य समाध ॥ सहित मनोवंच कार्यनो रे, मुनिवर अव्याबाध ॥ ज० ॥ ३ ॥ कृंत कांरित अनुमोदना रे, वर्जन जाओ जीव || शील महाव्रत पालवं रे,
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स्थान०
आघा
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आणी नाव प्रतीव ॥ ज० ॥ ४ ॥ ग्रहमेधीने पण कह्यो रे, इत्वर अपरिग्रहित, विधवा वेश्यादिक तजे रे, निजनारीसुं प्रीत ॥ ज० ॥ ५ ॥ जावजीव लगें पालवं रे, पंच पर्वादिक नीम ॥ निजनारीनो पण करे रे, जांजीवे त्यां सीम ॥ ज० ॥ ६ ॥ शील लीला सहु पूरवारे, विविध धर्मनो सार ॥ देव दानव किन्नर नमे रे, जग सहु करे जुहार ॥ ज० ॥ ७ ॥ यतः ॥ इरति कुलकलंक लुंपते पापपंकम्, सुकृतमुपचिनोति श्लाध्यतामातनोति ॥ नमयति सुरवर्ग इंति दुर्गोपसर्ग रचयति अशुचि शीलं स्वर्गसौख्यं सलीलम् || १ || अर्थ:- पवित्र एवं शील, कुलना कलंकने मटाने बे, पापरुप गाराने दूर करे बे, सुकृतने वधारे वे, श्लाध्यता उत्कष्टता वा वखाणवायोग्यपणा नो विस्तार करे बे, देववर्गने नमावे वे, दुर्गम अर्थात् विकट एवा नृपसर्गने हणे वे, अने क्रीमा सहीत स्वर्ग सुख प्रापेबे एटले पवित्र एवं शील सर्वोत्तम देवपणुं पण आपे बे ॥ १ ॥ कनक भुवन जिनवरतयुं रे, नवुं नीपावे कोय || कनकती कोइ कोमी दे रे, शील अधिक तोही होय || ज० ॥ ८ ॥ मन वचन काया करी रे, जे पाले व्रत शील ॥ ब्रह्मकल्पे ते नृपजे रे, पामे सुर सुख लील ॥ ज० ॥ ए ॥ यतः ॥ काए। बंनचरें, घरंति सच्यान जे प्रसुक्ष्मणा ॥ कप्पंमि बनलोए, ताणं नियमेण नववा ॥ १ ॥ धारे यानक बारमुं रे, निर्मल निरतीचार ॥ चंश्वर्म राजापरें रे, पामे जिनपद सार ॥ भ० ॥ १० ॥ तथा हि ॥ इाहिज भरत क्षेत्र में रे, जिनग्रह करी पवित्र ॥ माकंदी पुरवर जनुं रे, शोना जास विचित्र ॥ ज० ॥ ११ ॥ चंवर्मा राजा तिहारे, शीतल चंड समान ॥ अरिगणने प्रति ताप करो रे, जाणे जासुर ज्ञान ॥ ज० ॥ १२ ॥ विनय सहित विद्या - थकी रे, संपदा दान विलास ॥ जायानी परें नृपतले रे, निश्चल रही आवास ॥ ज० ॥ १३ ॥ राणी तास चंशवल। रे, त्रिभुवन तिलकसमान ॥ रामतले घर जानकी रे, तिम गुण रुप निधान ||१४||
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स्थान
॥
2॥
वीणापुरुषोत्तम लक्ष्मीपरें रे, ते दयितासु राय ॥ प्रीति माने अन्य नारीसुं रे, विरतो नावे दाय ॥ नन
॥ १५ ॥ चननाणी तिहां अन्यदा रे, समवसर्या गुणनूर ॥ बहु मुनिवर परिवारसुं रे, श्रीचक्रेIsalश्वर नूर ॥ न ॥१७ ॥ मेरु शृंग जिम नजलुं रे, हेमसिंहासन तुंग ॥ तस आसन कीधु सुरे रे, Naबेग सूरी सुरंग ॥ न ॥ १७ ॥ वनपालके वधामणी रे, दीधी नृपने आय ॥ राजा मन हर्षित
थयो रे, आनंद अंग न माय ॥ न ॥ १७ ॥ हय गय पायक परीवर्यो रे, शेठ सामंत संघात ॥ कानगर लोकसं चालीयो रे, इंऽ जाणे साक्षात ॥ न॥१७॥ धर्मतणा जेरागियारे. गरुपरें हित जास ॥ ते जिनहर्ष आव्या सहु रे, धरता परम नलास ॥ न ॥ २० ॥ सर्वगाथा ॥ २६ ॥
॥दोहा॥ मारगमां नृप आवता, दायक नयनानंद ॥ कायोत्सर्ग रह्या मुनि, शमसिंधु सुखकंद ॥ १ ॥Sal देखी कनकनी दीधिति, सारीखा मुनि दोय ॥ चरण नमी गुरु पुबिया, नृप मन विस्मय होय Nain५ ॥ युग्म मुनीश्वर तुमतणा, तेजें झलके काय ॥ यौवनमा व्रत आदर्यु, किण कारण मुनिvilराय ॥ ३॥ गुरु भाखे महाराज सुण, वैराग्यकारण एह ॥ सत्यावीश गुण साधुना, धारक
समता गेह ॥ ४ ॥ दुष्कर तप आचरी, कर्म खपावा काज ॥ कायानी ममता तजी, महोटा ए ऋषिराज ॥ ५॥
॥ ढाल जी ॥ चोपाश्नी देशी ॥ Isa नामकुशस्थलपुर सुखदाय, शेठ मदन श्रेय सदन कहाय ॥ नगरमांहि जेनो विश्वास, राजा
मादिक पण माने तास ॥१॥तेह घरे नारी वली दोय, चंमाहितीय प्रचंमा होय॥मत्सर मांहो मांहे। Salघणो, थानक बे महापातक तणो ॥२॥ दिनप्रते कलह संघाते प्रीत, मांहो मांहे मले नहि चित्त ॥
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घणी संघाते पण वढवाम, जाणे चलती घरमे धाम ॥ अनुक्रमे घरथी लक्ष्मी ग, घणाकालथी हुती सही ॥ कलहे कलशानां जलजाय, कलहे नली वार नवि श्राय ॥ ॥ कलहे नाशे घरना देव, कलहोद्वेगवधे नितमेव ॥ कलहे वाघे जग अपवाद, कलहे वाधे मन विषवाद ॥ ५ ॥ कलदे पूरवज की रतिघटे, कलदे मांहो मांहे वढे ॥ कलहे तूटे प्रीत प्रतीत, कलहे अपजश होय फजीत ॥ ६ ॥ बहु दिन नारी प्रचंमाघरे, शेठ रह्यो सुखमें हित धरे ॥ एक दिवस मन घरी बलास, मदन गयो चंक प्रवास ॥ ७ ॥ चंगा विकटाकृति विकराल, मुसल उपाडी ततकाल ॥ मुक्यो क्रोधें करि मारवा, कोय न शके तेहने वारवा ॥ ८ ॥ तद्भयशेठ हिये थरहस्यो, नागे तुरत मनमरयो ॥ तेहने केमे प्रचरिजइस्यो | मुसल साप श्रइने धस्यो || || श्राव्यो शेठ प्रचंमा वास, आकुलमन गरियो नसास ॥ निज तन पीठी करती हती, नाह जणी नांखे गुणवंती ॥ १० ॥ श्राज नासिका पूरयो श्वास, प्रार्यपुत्र किम यया नदास || शिथिल वस्त्र आकुल व्याकुला, किहांथी श्राव्या नतावला ॥ ११ ॥ शेव कहे तुं सांभल नार चंका मुसल मुक्यो उतार ॥ सापथ आवेवे बतो, हुं नाठो तिहांथी बीहतो || १२ || राख्यराख्य मुजशरणे हवे, इसी परे दीनवचन मुखचवे ॥ मुऊने तेह साप मारो, तुजविण तेहने कुल वारशे ॥ १३ ॥ ॥ कथा करतां व्यो साप, काल जुजंगम जागो पाप ॥ जीपण आकृति बीदावतो, फुंकारा करतो धावतो ॥ १४ ॥ अंगोछर्त्तननो मलजेह, वर्त्ति करीने मुक्यो तेह | सापनी सामोतिशिवार, राखल पोतानो जरतार ॥ १५ ॥ विद्यामंत्र नली तत्काल, नकुलरूप थयो विकराल || क्रोध करीने मुक्यो तेह, नत विषहर हुंतो जेह ॥ १६ ॥ देखीने सामोदोमियो, सापतणे तिले नक्षण कियो ॥ मंत्रौपधिना एह प्रयोग, नासे थाए जेहथी रोग || १७ ॥ स्वस्थी नूत थयो तव शेठ, नारी अचरिज | दीगे ठेठ ॥ तेहने मंदिर वसियो रात, मन चिंते वे नारि कुजात ||१८|| मंत्र यंत्र औषधीनी जाए,
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श Rallसुकृत नाफत पातक खाण ॥ जो मुज नपरे करशे कोप, तो मुज जीवित करशे लोप ॥ १ स्थान
देशे मरण अकाले सहि, धर्म गरण पण श्राशे नहि ॥आरति रुझ्ध्यान अवगही, प्राण जाशे न्शा Silsर्गतिमही ॥ २० ॥ ते माटे इहां रहेवू नहि, मुह लेने जाश सहि ॥ जानं किण श्क बीजे.
गम, सुकृति आगम थाए ताम ॥२१॥ (हवं चिंति विशुद्धातमा, नारी घरनी मूकी तमा || चाल्यो देशांतर एकदा, सकाशी पुर पुहतो तदा ॥ १२॥ मनमें शेठ विचारे सुं, हवे मुजन्नय नहि Sil को किसुं ॥श्म जाणीने नगर निवेश, कहे जिनहर्ष कियो प्रवेश ॥ २३ ॥ सर्वगाथा ॥ ५ ॥
॥दोहा॥ नानु नामे तिहां शेठियो, रमाधाम अन्निराम ॥ वसे एक व्यवहारियो, सहुमे झाझी माम ॥isal Salu१॥ नानुमती तसु नारती, कंतन्नणी सुखकार ॥ दिग्गजनी परे दीपता, अंगज तेहने चार Mal sal॥ २ ॥ विद्युतलता पुत्रीप्रवर, विद्युल्लता चूति जास ॥ विद्याअनेक कलायुता, बहु विज्ञान विलास Sealln ३ ॥ बापन्नणी वाली घj, कन्या जीवन प्राण ॥ वरप्राप्ति मोटी अश, चिंते शेठ सुजाण Salin y ॥ वर जोन ए सारिखो, रूपवंत गुणवंत ॥ हाटे आव्यो तेटले, मदन भणी निरखंत ॥ ५ ॥
॥ ढाल ३ जी॥ आज प्रांगणमे पियु रमियो । रस ले विमलपुर नमियो, आज एकलडे वीसमियोरे चांदलिया ॥ ए देशी ॥ घर ले आव्यो alबोलाइ, बहु आदर चित लाइ ॥ ए मिलियो सबर जमाइरे, गुणनरिया ॥ १ ॥ गोत्रजें सहुsaleणामें कहियो, तुज घरमांहे जे रहियो ॥ पुत्री देजे गहगहियो रे ॥ गुण ॥ २॥ ते शेठ वचन ॥
सांन्नली, मुज सकल मनोरथ फलियो, वर जोतां आवी मिलियोरे ॥ गुण ॥ ३॥ बहु नत्सव करी| |परणा, पुण्ये वर कन्या पाश् । जुवो पुण्यतणी अधिकारे ॥ गुण ॥४॥ नव नारीसुं सुख लोगवे
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नोगवे बहु पुण्यसंयोगा ॥ प्रत्यक्ष देखो तमे लोगारे ॥ गुण ॥ ५॥ बहुदिन ससराघर वसियो, पंचेंbala सुखनो रसियो।निजघर जावा नलसियोरे।गुणा॥ पूरे नीज नवली नारी, नीज नगर नणी तिणीवारी ॥ चाल्यो धरी प्रेम अपारी रे ॥ गुण ॥ ७॥ दीधो मिश्रित कूरकरीने, दी एक पात्र नरीने ॥ पंथें संबल प्रीत धरीने रे ॥ गुण ॥ ७ ॥ एकाकी तिहांथी चलियो, वाटे एक तापस मलियो॥ अरधो ओदन तस दियो रे ॥ गुण ॥ ए॥ अन्नदान ए सहुने दीजें, शुन्न पात्रं विलंब न कीजें ॥ वित्त अनुसारें फल लीजें रे॥ गुण ॥ १० ॥ अन्नदान सहुमें मोटो, अन्नदाने न आवे तोटो, ए वचन म जाणशो खोटोरे ॥ गुण ॥ ११॥ मणि कंचन रयण घणांश, घोमा हाथीनी दाइ, सहु दानमें अन्न वमा रे ॥ गुण ॥ १२॥ ए हतनर दुःखित जाणी, अनुकंपा मनमें आणी, नक्तं शक्तं दीयो प्राणी रे॥ गुण ॥१३ ॥ देने नोजन कीजें, सुकृत नंडार नरीजें, नत्तम लक्षण जाणीजें रे ॥ गुण ॥ १४ ॥ एक सरोवर देखी वारु, बेठो शीरामणसारु, मन चिंते एम विचारु रे ॥ गुण ॥ १५ ॥ वली अतिथि आवे जो कोइ, मुज संन्नागी ते हो, परहो रह्यो जो रे ॥ गुण ॥ १६ ॥ तटेले ते तापस आयो, बकरो थइ के थायो, ते देखी अचरज पायो, रे ॥ गुण || १७ ॥ मनमांहिं शेठ विचारे, नवि थाये कोय संसारे, नर फीटी पशुय किवारे रे॥ गुण ॥१७॥ स्त्रीचरित्र सही ए दीसे, वातमली वीसवा वीसे, देखी ते मन किम हीसेरे, || गुण ॥ १५ ॥ ए नारी जग धूतारी, ए नारी दुर्गति बारी, ए नारी अवगुण गारी रे ॥ गुण ॥ ३० ॥ ए अथिर नारीनो नेहो, तृण नपरें लेपो जेहो, जिम आसु केरो मेहो रे ॥ गुण ॥ १॥ यतः ॥ गहचरिय, रविचरीय ताराचरियन चराचर चरिय ॥ जाणंति बुद्धिमंता, महिलाचरियं न जाणंती ॥१॥ मछपयं जलपंथे, आकाशे
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वीश
॥८३॥
| पंचियाण पर्यंती | महिलाए दियमग्गो, तिनवि लोए नही संति ॥ २ ॥ विरतिवि सवेल समाली, राती अमृत सही नाणी, जिनहर्ष कहे ए वाली रे ॥ गु० ॥ १२ ॥ सर्वगाथा ॥ ८४ ॥
॥ दोहा ॥
गोते काशीपुर, विद्युल्लता गृह प्राप ॥ कामण कारण जोयजो, जेथी वधे संताप ॥ १ ॥ तेकेमे बानो मदन, कातुक जोवण काम || घर बाहिर आवी लीयो, विजन गम विश्राम ॥ २ ॥ शुं करशे ए मेषने, विद्युल्लता मुज नारि ॥ मनमें अचरिज पामतो, जोवे नयण पसारि ॥ ३ ॥ ॥ ढाल ४ थी ॥ कालडां घमीदे रे । ए देशी ॥
विद्युलता घरे वियो, देखी तत्क्षण मेष ॥ श्रांनासु इढ बांधियो हो, प्राणी क्रोध विशेष ॥ चतुरनर सुपा लेरे, सुणले रे नारी वात ॥ चतुर० ॥ श्रधम नारीनी जात ॥ च० ॥ १ ॥ यष्टि मुष्टि निर्दयपणे, मारे पापणी तेह || बरका पाने बोकडोहो, वारी ए लोक मिलेह ॥ ० ॥ २ ॥ मुखें वचन एहवुं कहे, खाशे जेह करंब || बीजो पण एहेनीज परें रे, लदेशे ए घणी वीडंब ॥ च० ॥ ॥ ३ ॥ मारी नृपशांता थइ, वाचा सांगली तास ॥ मंत्र वादीयें मूलगो हो, कीधो रूप प्रकाश ॥ च० ॥ ४ ॥ लोकें तापस पूढीयो, एहशुं ताहरु रुप | मांडीने सघलुं कर्तुं हो, पोतातणुं स्वरूप ॥ ॥ च० ॥ ५ ॥ नयें प्रांत मनमां थयो, चिंते चित्तमां एम ॥ बेथी अधीकी ए घणी हो, कहो हवे कीजें केम ॥ च० ॥ ६ ॥ घरनो दाऊयो नीकल्यो, निगुणी बोमी नारि ॥ तेहथी चढती एहे मीली हो, किहां जश्एं किरतार ॥ च० ॥ ७ ॥ घरे जानं तो ते हणे, इहां तो मारे एह ॥ वाघ नदी विचमें पडयो हो, केम नगारुं देह ॥ ० ॥ ८ ॥ राक्षसी परें तेहने, बोमी चाल्यो ताम । केटलाक दीवसें गयो हो, नगरी हसंती नाम ॥ च० ॥ एए ॥ तिहां श्री ऋषन जिणंदनो, चैत्य मनोहर चंग ॥ चंद
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किरण सम नजलो हो, जाणे हेमगिरिंद ॥ च॥ १० ॥ अरिहंतनी प्रतिमा नमी, पाम्यो परमानंद ॥ तिहां आव्यो जिन पूजवा हो, धनदेव शेठ अमंद ॥चण॥ ११ ॥ मदनन्नणी पुर्बु तिणे, भांख्यो
सहु विरतंत ॥ कहे धनदेव इहां कीस्युं हो, कौतुक तुज गुणवंत ॥ च ॥१२॥ श्राये कुटील कुलNalawी, प्राये नारी जात, कपट घणुं साहस घणुं हो, एहनी अवली धात ॥ च॥ १३ ॥ सांजल INEIतुज आगल कहुँ, महारा घरनी वात ॥ ताप समं जिम ताहरो हो, शीतल पाये गात ॥ च ॥१m stil
धनपति श्हां व्यवहारीयो, सुकृतनो नंडार ॥ धनी सहुमांहे शिरें हो, नपकारी दातार ॥चण॥१५॥ Pal पुत्र तेहने बेथया, धनसारने धनदेव ॥ अनुक्रमें धनपति शेठीयो हो, काल करी थयो देव ॥च॥१६॥
धन पण ते साथे गयु, स्नेहीनी परेंताम।नाग्यविना धन नवि रहे हो, धनविण न वधेमाम ॥चण॥१७॥ Saबे नाइ जूदा श्रया, धनविण न रहे नेह ॥ कलह सदाघरमें दुवे हो, शोना जाये देह ॥ च॥१॥ Balस्त्रीनपर बीजी वली, स्त्री परण्यो धनदेव ॥ शोक्य परस्परें प्रीतडीहो, अति वधती नित्यमेव ॥
च॥१॥ नर्ता मनमां चिंतवे, अचरिज दीसे एह ॥ वेर शोक्यमांहे हुवे हो, तिहां तो न Sal दुवे सनेह ॥मणाश्णा बे नारी श्रीमंतनी, तिहां पण वढे अपार ॥ वढे नव अचरिज इहां कीश्युं sd
हो, निर्धन घरनी नारि ॥ च ॥ २१॥ मांहोमांहि एहने, दीसे प्रीति अपार ॥ तो जो गनो रही हो, शहां कोई विचार ॥ च ॥ २२॥ देह अपायननेमिशें, कपट करी तिणीवार ॥ वहेलो सुतो घरें जश् हो, कहे जिनहर्ष विचार ॥ च ॥ २३॥ सर्वगाथा ॥ १० ॥
॥दोहा॥ दृढवस्त्र वृतमुखकमल, कपट निंद करी शेठ ॥ सूतो घोरावे घj, नारी दी ३ ॥१॥ नांखे दयिता आदिमा, बहिनी पाओ सज्ज ॥ ढील मकर संप्रति तिहा, आपण जश्एं अज ॥२॥
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वीश
॥४॥
तास वचन प्रेर। थकी, लेइ सहु शृंगार ॥ जाएवा नत्सुक था, शोक्य संघाते त्यार ॥ ३ ॥ पुर वाहिर गइ वे जली, केमे चाल्यो नाह ॥ जिम ते स्त्री जागे नहीं, मन अचरिज नत्साह ॥ ४ ॥ बे नारी यांबे चमी, शेठे कौतुकी ताम ॥ श्राम्र मूलसुं बांधीयो, वस्त्रे अभिराम ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ५ मी ॥ लाबन दे मात मल्हार बहुगुएारयणभंडार ॥ एर्देश | ॥
मंत्रे मंत्री तास, श्राम्र चल्यो आकाश ॥ आज हो नारीरे वे चाली, अचरिज जोयवारे लो || धन देह वलग्यो जाए, मनमें विस्मय थाए | आज हो सुकृतरे लेई जाए, के लामो होएवा रे लो ? थाये जय जयकार, पुण्यें जगशिरदार ॥ श्राजहो पुण्यें रे, अणचिंतवी आवे संपदा रे लो ॥ पुण्यें पूगे यश, पुण्यें लीलविलास ॥ आज हो पुण्यें रे, टली जाए आपदा रे लो ॥ २ ॥ पुण्यें लहीयें जोग, पुण्यें सुखसंयोग । आजहो पुण्यैरे, धन ध्रुवनाके मंदिर मालियारे लो ॥ पुण्यें पुत्र विनीत, पुण्यें सहुसुं प्रीत || आज हो पुण्यें रे गुणवंती नारी सुकुमालिका रे लो ॥ ३ ॥ वचन कह्युं माहे, दक्षिणोदधि अवगाहे । आज हो पहुतो रे रत्नदीपें रत्नपुरे जइरेलो ॥ श्राम्र नद्याने मेलि, बे नारी गजगेलि | आजहो सुंदर रे सजी सोलें पुरमांदे गइ रे लो ॥ ४ ॥ ते पण नारीलार, आव्यो नगर मोकार || आजही तेली वेलाए पाणीग्रहणीतलो रे लो ॥ थाए महोत्सवसुत वसुदेवकेरो पुत ॥ आज हो श्रीदत्तरे इनामें कुमर सोहामणो रे लो ||५|| श्री पुजशेठ सुधाम, पुत्री श्रीमति नाम ॥ आज हो तेहसुं रे परोवा के लगनवेला थइरे लो ॥ वाजे वाजित्र कोम, बे घरे होमा होम | आजदो जोवारे नर नारी के तिदां मिलीयां केइ रे लो ॥६॥ धनदेव विस्मय पामि, | उत्सव देखण ताम । आजहो तेहने घरद्वारे के जइननो रह्योरे लो ॥ श्रीदत्त थर अस्वार, साथै बहु परिवार || प्राज हो जेटलें रे नमाह्यो के वर तोरणे गयोरे लो ॥ ७॥ पापोदय संजोग, तेटलें
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॥न्छ।
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Realथयो मृत्युजोग ॥ आजहो सहुको रे शोकातुर साजन जण अयारे लो ॥ पुत्रमरण वसुदेव, बह val दुख पाम्यो देव ॥ आजहो नारीरे दुख पामी निज निज घरे गया रे लो ॥ ॥ कर्म तणी गति valजोश, कर्म करे ते हो ॥आज हो बलीयो रे जगमांहि के कर्म थी को नहीं रे लोकर्म करे रायरंक
कर्मे लख्या जेह अंक ॥ आजहो कोरे नर टाली के न शके ते सही रे लो॥ ए ॥ सुर वाणी तिणीवार, एहवी अश् नदार ॥ आजहो कन्यारे परणावो के धनदेवने रे लो ॥ ए वर योग्य सुजाSalm, मिलीयो पुण्यप्रमाण ॥ आजहो एहने रे संजोगें के ए कन्या बने रे लो ॥ १० ॥ परणावी तिणीवार, श्रीमती कन्या सार ॥ आजहो जुओरे नरनारी के कर्मनी वातमी रे लो॥ किहां हसंती
तेह, किहां रत्नपुर एह ॥ आज हो कर्मे रे ए कन्याके आवीने जमी रे लो॥ ११॥ हवे बने ते Salनारि, पुरी जो तिणीवार, आज हो देखे रे ते नत्सव तिहां नन्नी रही रे लो॥ दीठो धनदेव जाम, Naमांहो मांहि ताम ॥ आजहो बहिनी आपणो पति दीसे सहीरे लो ॥ १२ ॥ रत्नपिमध्य नाग,
नरियो जलधि अथाग ॥ आज हो को रे आवी न शके आव्यो किमे रे लो ॥ अथवा सरिखो Salजोय, पण नों ने लोय ॥ आजहो आपणे रे मनमांहि नरम धर्यो श्मे रे लो ॥ १३ ॥ देखी
नत्सव तेह, नेत्रे वाध्यो नेह ॥ आज हो मनमुरे हवे कीg के निजघरे जायवा रे लो ॥ पुरबाहिर
ग तेह, कन्या वस्त्र लिखेह ॥ आजहो कुंकुमसूं एक श्लोक जणाववारे लो॥१॥तथाहि ॥ कुत्र Sal वसती रत्न पुरं, कः क्वासौ गगनमंझनश्चूतः॥ धनपति सुत धन देवे, विधेर्वशात्सुखकृतेश्चूतः॥१॥ Raअर्थः-रहेवान स्थल रत्नपुर कंही, अने आकाशने नूषणरूप अ आंबो शो ? " पण ते सर्व” धनपतिना पुत्र धनदेवनेविषे दैवयोगथी अर्थात् विधिवशयकी सुखने माटे ते आंबो श्रयेलो ॥ करी ऐहवं अनिशान, धनदेव बुद्धिनिधान ॥ आज हो तिहांथी निसरियो रे कार्यचिंतामिशे रे
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वोशणालो ॥ आव्यो केमे नार, गुप्तपणे तिणीवार, आजहो आंबोरे नडाड्यो के तिणें वनिता तिसें रे लो स्थान
Salm १६ ॥ निजना। अच, निजपुरे आव्यो शेठ॥आजहो पाब्ली रे निशि आवी सूतो सेजमी रे ॥
लो ॥ निशलही सुखमांदे, श्रयो जिनहर्ष नत्साह ॥ आजहो मनमांहे जाणे श्रइ सफली घमीरे लो॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥ १३ ॥
॥दोहा ॥ __ जेटले प्रात समय अयो, नारी दीठो नाथ ॥ रात्रे परण्यो ने किहां, कंकण बांध्युं हाय ॥ १॥ Halमांहोमांहे श्म कहे, नगर रतनपुरमांह ॥ श्रीमतीसुं एहनो, सही थयो विवाह ॥२॥ दोरो मंत्री allसुत्रनो, वृक्षने आदेश ॥ बांध्यो तिणें दक्षिणपगें, पोपटनो थयो वेश ॥ ३ ॥ पंजरमांही घालियो, sal तर्जे तास अपार ॥ उल करि बल करि तरे, पंडितने पण नार ॥ ४ ॥बे नारीको नाहलो, तेहने| किहांथी केम ॥ घरटी बेपमविच पम्यो, कण आखो रहे केम ॥ ५॥
॥ ढाल ६ ही॥ विमल जिन मादरे तुमशुं प्रेम ॥ ए देशी ॥ श्रीपुज प्रातसमये अयोजी, पुत्री वस्त्र आलोक, लिखियो कुंकुम अक्षरेजी ॥वांच्यो सुंदर श्लोक सुगुणनर जोजो नारीचरित्र ॥ कापे प्रीति पुरातनीजी, नारीरूप लवित्र ॥ सुगुण ॥१॥ वासी Sal
हसंती पुरतणोजी, मुज जमाइ तेह।इहां आवी मुज कन्यकाजी, परणीने गयो तेह॥सुणाशासागर Jalदत्त व्यवहारियोजी,करवा तिहां व्यापार ॥ दरिया वहाण पूरियांजी, शुनमुहूरत शुन्नवार ॥ सु०il ॥५॥ INE॥ ३ ॥ लेखहार तेहने दियोजी, श्रीपुज शेठ सुजाण ॥ कुशले केमें तिणपुरेजी, पहोतो पुण्य-12
प्रमाण ॥सणा॥ आप्यो कागल हारसंजी. भांख्यं श्रीपुजयुक्त ॥शेठ वचन नारं। सुणाजा, कपट बोली व्यक्त॥५॥ताम्रलिप्त नगरी गयाजी, प्रीतम प्राण आधार ॥महाराजाने कारणेजी, करवा काम
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अपार ॥ सु०॥६॥ चलंतां अमने श्म कह्योजी, श्रीमती रमवा काज ॥ सूमो रूमो गुणनिलोजी पंमित ए शुकराज ॥ सु॥७॥ कोश्क तिहां जातो हुवेजी, तेहने हाथे एह ॥ कनकपंज रे घालिनेजी, मोकलजो गुणगेह ॥ सु० ॥ ७॥ नलु अयुं तुमे आवियाजी, सूमो दीधो तेह ॥ श्रीमतिने आपजोजी, कहेजो कुशलसनेह ।। सु॥ ए॥ते लेश्ने निजपुरगयोजी, श्रीपुजशेग्ने दीध ॥ शेठे सुताने आपियोजी, प्रेम धरी तिहां लीध ॥ सु ॥ १० ॥ कीरे मन कन्यातणुजी, allज्यु कथाविनोद ॥ काव्यकवित प्रहेलिकाजी, नांखे परमप्रमोद ॥ सु॥ ११॥ जीवथकी पण sd वाहलोजी, श्रीमतीने ते कीर॥निशदिन राखे पोता कनेजी,तेहसूं सुखनो शीर॥सुण॥१॥श्रीमति । दीठो अन्यदाजी, दोरो तेहने पाय ॥ ते गेमयो हाथे करीजी ॥ तेहने पुण्यपसाय ॥ सु० ॥१३॥
सुंदररूप सोहामणुंजी, जाणे देवकुमार ॥प्रगट्यो धनदेव तत्कणेजी, हो सहु परिवार ॥ सुण Nalm१५॥ सघला विस्मय पामियाजी, ए श्रयो कवण प्रकार ॥ देखी प्रीतम श्रीमतीजी, पामी
हर्ष अपार ॥ सु ॥ १५ ॥ श्रीपुजशेठे आपियाजी, रहेवा प्रथम आवास ॥ सहु सामग्री नोग-IN नीरे, आपी करे विलास ॥ सु०॥ १६ ॥ केटलाएक दिन तिहां रहीजी, चाल्यो लेश नार ॥ पोतानी आव्यो पुरीजी, धरतो दर्ष अपार ॥ सु॥१७॥ कपटें कीधो तेहनेजी, तिणे नारी प्रतिपति ॥ अवगुण संन्नारथा नहिरे, नत्तमनी ए मति ॥ सु॥१७॥ निजप्रीतम धनदेवनाजी, स्वर्णथा
लमें पाय ॥ धोवे जलसूं श्रीमतीजी, अन्यदिवस चित लाय ॥ सु०॥ १५ ॥ते जल वृक्षा नाखि-sal Neयुंजी, नोयनपर तत्काल ॥ वधवा लागु चिहुं दिशेजी, वारिधि जिम सुविशाल ॥ सु० ॥ ३०॥
धनदेव लाग्यो बीहवाजी, देखी पाणी रास ॥ शक्ति पोतानी श्रीमतीजी, ततखिण शोष्यु तास ॥ salसु ॥ २१ ॥ मंत्रविद्यावादे करीजी,श्रीमती जीती तेह ॥ सेवा सारे बेजणीजी,अमथी अधिकी एह
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वीठा
॥६॥
San सु०॥ २२॥ तीने सरखी कामिनीजी, मांदोमांहि बहु प्रीत ॥ जय लागो बहु शेग्नेजी, अयो
दास्थान चकित चलचित्त ॥ सु ॥ २३ ॥ बंधव ते धनदेव ढुंजी, में कहि माहरी वात ॥ कहे जिनहर्ष विटंSalबना जी, पामी ने बहु नात ॥ सु ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ एहवी नारी मुजमिली, कर्मतणे संजोग । चलती हलती आपदा, चलतां हलतां रोग ॥१॥isal गेमी न शकुं नारीने, बीडं निशदीश ॥ नाहरथी जेम बाकरी, बीहे वीसवावीश ॥२॥ तुं दुख मनमां मत धरे, आरति चित्त म आण ॥ कुण कुण नारी न बेतर्या, राय राणां सुलतान ॥३॥ स्त्रीमन कुटील नदीपरें, चंचल चपल तुरंग ॥ नारी नदीने विश्वसें, ते लहशे दुःख अन्नंग ॥usal नारीनो विश्वासमो, मत को करो सुजाण ॥नोजन्नणी थोमो कीयो, मुंज मुकाव्यां प्राण ॥ ॥Nal
__ढाल मी॥ बीबी दुर पमीरहे लोकां नरम धरेगा ॥ एदेशी॥ मदन वचन तेहना सुणीने, चिंते एम मनमांहि॥धन धनते नर ण जगमांहे, जे राखे मनमाहि VE१॥ ममताजाल दूरेतजीजें समतामांहि रहीजें ॥धन धन ते नर ण जगमांहे, जे राखे मनमांहे stalurधीरज रहे नहीं नारीपागल, बल गेडे बलवंता॥नपशमथी चुकावे अबला, आपे अबती चिंता
॥ म ॥२॥ आंखतणे मटके मन मोहे, मुखमटके चित्त चोरे ॥ वयणे सुरनरने वश आणे, ए सहुमांहे जोरे ॥म ॥ ३ ॥ नारीनी ममता जे मूके, तेहतणी बलिहारी ॥ जंबु वयर कपिल थया बलीया, ते वश न पडया नारी ॥म० ॥ ॥ इम वैराग्य धरी ॥६॥ निजमनमें, गेमी ममता घरनी ॥ दीक्षा लीधी श्रीगुरुपाले, करणी समज्या नरनी ॥मर
५ ॥ मुनिपतिने वंदन नृप आव्यो, देखी बे मुनि पासे ॥ एसाथे दीदा किम लीधी, राजा
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एणीपरे नासे ॥ म ॥ ६ ॥ सूरी कहे सांजल अमे राजा, देव वंदण इहां आव्या ॥ सुणी देशना इणे अमारी, मनवैराग्ये नाव्या ॥ म ॥७॥ समता आणी ममता मूकी, चारित्रसुं। चित्त लाया ॥ निरतीचार महाव्रतपाले, महोटा ए ऋषिराया ॥ म ॥ ७ ॥ अंग अगियारे ।
नएया मुनीश्वर, गीतारथ गणवंता॥ पंच समितिने त्राणगुप्तिना, धारक थया निचंता ॥ म॥ Ram ए ॥ राय वली पूरे मुनिस्वामी, तुमें श्ये दीक्षा लीधी ॥ यौवनमांदि घर मूकीने, दुष्कर करणी
कीधी ॥ म ॥ १० ॥ गुरु नाखे में सुण महाराजा, त्रिविध त्रिविध शुन्नचित्ते ॥ सर्वजंतुनी रहा salकाजे, व्रत ली, इणि हेते ॥ म ॥ ११ ॥ धर्मार्थिए दीदा संग्रही ए, धर्मरक्षण षटकाया ॥ षट-IAL
कायानी रहा न होवे, गृहवासे महाराया ॥म॥१॥ धरटी, नखल, पाणी, थानक, चूलो ने Sal सावरणी ॥ षटकशाल एपंच गृहस्थ धरे, जीवदया किम करणी ॥ म ॥ १३ ॥ गृहस्थधर्म
सेवाथी पाये, जीवतणो वध मोटो॥ सूक्ष्म प्राणी रक्तथी नपजे, केवली वचन न खोटो।म॥१॥ salएक एक संयोगे स्त्रीने, नवलख प्राणीहिंसा ॥ ततखिण योनिसंसक्तं नपजे, थाये तास विध्वंसा ॥a
म ॥१५॥ मनुष्य असंख्याता पंचेंश्यि, नारी नरसंन्नोगें, मूर्गए नव प्राणतणा प्रन्नु ॥ पनवणा नपयोगे ॥म ॥ १६ ॥ होय विनाश जीव ते सहुनो, स्त्रीनरनोगें जाणो ॥ वेणुगतरुत शीलायो तातो, ए न्यायें मन आयो । म ॥१७॥ जगमांहि दीसे डे काका, नीतानयना दाता || पण मैथुनना त्यागथकी जग, थोमा अन्नयप्रदाता॥ म ॥ १७॥ सांजली ए उपदेश सुगुरुनो, प्रतिबूझ्यो नरराय ॥ मन वैराग्य धरीने नट्यो, प्रणमी श्रीगुरु पाय ॥ म ॥ १५ ॥ घरे आवी चंद्र
सेन कुमरने, राज्यधुरंधर स्थाप्यो ॥ प्रौढ महोत्सव जिनगृहे कीधो, दान बहु परे आप्यो ॥४॥ Vilm ॥ नत्सवसुं गुरु पासे आवी, राजा श्रीनरचंवर्मा ॥ उलटशुं संयम आदरियो, पायेवा शिव
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वीश
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शर्मा ॥ ० ॥ २१ ॥ सूत्रअर्थे अंग एकादश, राजऋषीश्वर लिया || समितिगुप्ति सूधी प्रतिपाले, कर्म खपावण रणीया ॥ ज० ॥ २२ ॥ एकदिवस नृपदेश दीयंतां, सुणीयो मुनिपतिकेरो ॥ वीशस्थानक सेवे जे पंकित, ते टाले जव फेरो ॥ म० ॥ २३ ॥ श्रीतीर्थंकर पद पामीने, शिवसुख ते आस्वादे || नरनारी सुविचारी अर्जे, सद्दर्शन अप्रमादें ॥ म ॥ २४ ॥ तेमांहे पण थानक अधिकुं, द्वादशमुं जिन कह्युं ॥ त्रिकरण शुद्ध निरंतर पाले, मनमांदे गहगदियुं ॥ म० ॥ २५ ॥ देव चलावे तो पण न चले, दोन न पामे किमही ॥ पवन घन जिनदर्ष दुवे पण, मेरु न कंपे किमरी ॥ ० ॥ २६ ॥ सर्वगाथा ॥ १०७ ॥
॥ दोहा ॥
पामर नर ते पण दिये, दान अनेक प्रकार ॥ वीर पुरुष पाली शके, शील महाव्रतसार ॥ १ ॥ निश्वय सघला दाननुं, जीवन औषध शील | शील चूकामणि सारिखो, शील महातप लील || २ || शीलें जगजस विस्तरे, शील सकल शृंगार ॥ शीलें सुर सेवा करे, शील त्रिजगाधार ॥ ३ ॥ सांगली शुनलेश्यातमा, नरचंश्वर्मा ऋषिराय ॥ आराधे निर्मलमनें, त्रिधा शील सुखदाय ॥ ४ ॥ सयन प्रमाद मुक्तातमा, शीतल रूक आहार | दृष्टि निवारी नारीना, रूपथकी निरधार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल मी ॥ साधुजी नले पधार्या आज ॥ ए देशी ॥
वरजे नारीतली कथाजी, जाति रूप कुल तास ॥ वर्णन न करे तेहनुंजी, वसे न नारीपास ॥ साधुजी शील घरे शुभचित्त, नव ब्रह्म गुप्ति सहित ॥ सा० ॥ १ ॥ रागधरी जोवे नहींजी, स्त्रीना हास विलास ॥ दृष्टि न जोमे दृष्टिसुंजी, जे करे शील विणास ॥ सा० ॥ २॥ पंचविषय विष सारिखाजी, शब्द रूप रेस फास || गंधे विषय ममता तजेजी, तष्णा न धरे तास ॥ सा० ॥ ३ ॥ मोद
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| स्थान०
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नहीं वांबा नहींजी, धरे नहीं तसु ध्यान ॥ नव ब्रह्म गुप्ति विषय सहिजी, सदा रहे | सावधान ॥ सा० ॥ ४ ॥ देव सनामें अन्यदाजी, वासव करे वखा ॥ नरचंवर्मा मुनिवरतणेजी, चरणे नमी गुणखाण ॥ सा ॥ ५ ॥ राजऋषीश्वर चिरंजीवो जी, कुल दीवो | शिरताज ॥ जेहनें जेदी नवी शकेजी, ब्रह्मचर्य सुरराज ॥ ६ ॥ सुरपतिवचन सुखी करीजी, विजयनाम सुर एक ॥ करण परीक्षा प्रावीयोजी, क्षेत्र जरत सुविवेक ॥ सा० ॥ 9 ॥ आदरसुं परगट की योजी, दिव्य देवांगनारूपवृंद ॥ रुप मनोहर जेहनुंजी, दीवे होय आनंद ॥ सा० ॥ ८ ॥ मुनिवर पासे आावीनेजी, अपसर लागे पाय || हाव भाव करी नव नवाजी, चूकावे मुनिराय ॥ सा० ॥ एए ॥ वनमांहि कानसग रह्याजी, अमम श्रमायी शांत ॥ अप्सर काम वचन कहेजी, कामी मनमें रात ॥ सा० ॥ १० ॥ स्वामी में देवांगनाजी, श्रावी तुमने जोय | जोइ सलू लोयजी, ब्रह्म साइमं सुख होय ॥ सु ॥ ११ ॥ तुमे तो करुणा रसन्नर्याजी, करवा सहुने उपकार || तो अमने पण आदरोजी, तुमसुं नेह अपार ॥ सा० || १२ || उत्तम नर तुम सारीखाजी पीमे नहीं प्रवीण | आशानंग न कीजीयेंजी, तुमसुं तन मन लीन ॥ सा० ||१३|| यौवन गयुं नवी आवशेजी, जिम तटिनीनुं नीर ॥ योग तजी जोग जोगवोजी, करी अमसुं सुख सीर ॥ सा०|| १४ || ब्यो लाहो यौवनतणोजी, मानो वचन ऋषिराय ॥ श्रोम में समजो घणुंजी, दिन दिन जोबन जाय ॥ सा० ॥ १५ ॥ वचनबाण नाख्यां घणांजी, साधु नृपावण दोन ॥ शीलकवच नेधुं नही जी निश्चल रह्यो थिर योन ॥ सु||१६|| दुर्वाते जिम नवि होनेजी, मेरुतलो मध्यभाग ॥ तिम मुनिवरना मननलीजी, रति न लागो दाग ॥ सा० ॥ १७ ॥ रलियायत मनमें थयोजी, अमृताशन तिथिवार || गुएागर्जित नक्तें करीजी, स्तवना करे नदार ॥ सा० ॥ १८ ॥ दानवीरा विद्यावीराजी,
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वीशतपवीरादि सुलन्न।बीजापण वीराघणाजी, ब्रह्मवीरा दुर्लन्नासाण॥१णायतः॥अह्नाय वह्नौ बहवोवि- स्थानः
शंति, शस्त्रैः स्वगात्राणि विदारयति ॥ कृछ्राणि चित्राणि समाचरंति,मारारिवीरं विरलाजयंति ॥१॥ nanमत्तेमकुंनदलने नुवि संति शूराः, केऽपि प्रचंममृगराज वधे प्रचंमाः ॥ किंतु ब्रवीमि नवतां बलि
नः पुरस्तात्, कंदर्पदर्पदलने विरला मनुष्याः ॥२॥ अर्थ-घणाएक एकदम अग्मिनेविषे प्रवेश करे । घणाएक शस्त्रोवमे पोताना शरीरनुं विदारण करे , अने केटेलाएक विचित्र प्रकारनां व्रतो । Nal(कादितप ) नुं सारीरीते आचरण करे परंतुकोश्क विरलाज कामदेवरूपी शूरा शत्रुने
जीति शकेले ॥ १ ॥ मदोन्मत्त एवा हाथीना गंमस्थलने फाडवामां शूरवीर पृथ्वीने विषे घणाअने केटलाएक प्रचंड सिंहना वधनेविषे पण सरसाइ धरावे तमारी पासे वधारे बलवान् शुं कडं परंतु कामदेवना गर्वनं दलन करवामां विरलाज मनष्यो ॥॥ नाकी श्रीगरुने नमीजी. पूरे विस्मित होय ॥शीललीला जिन मुनिवरेंजी, शुं फल पाम्युं लोय ॥ सा ॥ ॥ गुरु नांखे सुर सनिलो जी, जिनपद लहेशे एह ॥ निर्मल शील प्रन्नावथीजी, टाल्यो मन संदेह ॥सा॥१॥
नक्तं नमीराजऋषिनेजी, देव गयो देवलोक ॥ ते मुनिवर पण अनुक्रमेंजी, देव श्रयो ब्रह्मलोक ॥ Ralसा ॥ १२॥ त्यांथी चवि जिनवर होशेजी, महाविदेह मोकार ॥ विजय पुष्कलावतीमहिंजो,
लहेशे नवनो पार ॥ सा ॥ २३ ॥ शीलप्रन्नाव सुणी इस्योजी, हादशमुं पद एह॥कहे जिनहर्ष Salआराधशेजी, जिनपद लहेशे तेह ॥ सु० ॥ २४ । सर्वगाथा ॥ २२ ॥ इति छादश स्थानके नरPalचंद्रवर्मकथानकम् ॥ १२॥
valuना ॥दोहा॥ हवे स्थानक कहूं तेरमुं, समरस जलधि समान ॥ मांहि मन मनमुनि वरें, ध्याय एहवु शुन्न
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नत्रत्रत्र
ध्यान ॥ १ ॥ कण कणमांहिं ध्याववुं, हृदय कमल शुभ ध्यान ॥ आतम समता रोपवी, तजी प्रमाद दुर्ध्यान ॥२॥ प्रार्त्त रौ घ्य ध्यान तजी, धर्म शुकल शुतध्यान ॥ मनमांहे ते ध्यावेवा, सुख दुख दुरित निधान ॥ ३ ॥ आर्तध्यान तिर्यंचगति, रौड़ नरक गति होय ॥ धर्मध्यानश्री सुरगर, शुक्ल ध्यान शिवलोय ॥ ४ ॥ पंचविषयनो लोलपी, मोह प्रमाद सावधान ॥ जिनमतने प्रवलतो, नर ते आर्त ध्यान ॥ ५॥ खुशी होवे पर प्रापदा, महानिर्दय निशदीश || पाप करी हरखे घणो, रौइध्यान ते विष ॥ ६ ॥ जिनमुनि गुण कीर्तन करे, विनय शील संपन्न | संयम सूत्र सुं रक्त मन, धर्मध्यान धनधन्न ॥७॥खंति, मुत्ति, महवा, जव, जिनमतमांहि प्रधान ॥ इत्यादिक आलंबने, चढे सदा शुक्लध्यान ॥ ॥ ढाल पेहेली ॥ नवी नवी नगरी में वरो सोनार ॥ एदेशी ॥
शुभ ध्यानकेरा चार प्रकार, पिंकस्थादिक करो विचार ॥ कपट रहित समता सुं नूत, जवकोमी रज गमण प्रभूत ॥ १ ॥ देह रह्यो गतकर्म पवित्र, चंद प्रज्ञा ज्ञानींदु यत्र ॥ ग्रात्मैश्वर्य निहाले जेह, ध्यान पिंकस्थ कहीजें तेह ||२|| मंत्र तथा अकर शारीर, पद्मपत्र चिंते घरी धीर ॥ योगीश्वर गुरूने उपदेश, तेह पदस्थ ध्यान सुविशेष ॥ ३॥ पांत्रीश शोल अने पटपंच, चौदगणा ध्यावो शुभ संच ॥ परमेष्टि व्यापकने धन्य, वली गुरूने नपदेशे अन्य ॥५॥पंच परमेष्टि पदपण त्रीश, मनमें ध्याइ जें निशदीश ॥ अरिहंत सिद्धायरी योवझ्झाय, साहु एह सोलह कहेवाय ॥ ५ ॥ अरिहंत सिद्ध व ए नाखीया, असिया नसा पंच दाखीया ॥ अरिहंत चार सिद्ध तिम दोय, एक नॅकार कहीजें सोय ॥ ६ ॥ अथवा लोकालोक प्रमाण, कनकवरण आना मन प्राण || विद्या सहस्र स्थानक सदु देव, पूजित सर्व शांतिकर हेव ॥ ७ ॥ पंच परमेष्टि प्रथम सुवर्ण, तेहथी संभव निर्मलवर्ण ॥ ते ओंकार | सदा ध्याइयें, जेहथी मन वांवित पाइयें ॥ ८ ॥ अष्ट प्रातिहार्य सहित दिएांद, समवसरण बेठा
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वोश
॥णा
CO
जिनचंद ॥ तसु प्रतिमा रोपी ध्याइयें, ध्यान रुपस्थ हिये नावीयं ॥ एए ॥ परमानंद मही आतमा, सिद्ध, निरंजन परमातमा ॥ ध्यावे परमयोगीश्वर जेह, रुपातीत ध्यान गुणगेह ॥ १० ॥ ध्यानविधि श्रुत जेह सुजाण, ध्यानना ध्येय तथा फल जाए ॥ सामग्री विल सिद्ध न श्राय, कार्य | किवारे सुनाय ॥ ११ ॥ इंडिय सहित स्वमानसप्रतें, विषयथकी पांचे सस्मते ॥ धर्मध्यान काजें शुनमति, मन निश्चल राखे तेवति ॥ १२ ॥ विरति काम जोग स्वशरीर, परब्रह्मैक थाय जल खीर | स्वदेहस्थे इम ध्यावे सदा, शुद्ध नपाधि रहित मन मुदा ॥ १३ ॥ हृदयांनोजे थापी करी, परमेष्टीना पद मन धरी ॥ लयलीन श्रइ तेहसुं, ध्यावे इली परे बहु नावसुं ॥ १४ ॥ अरिहंत सघला कर्म विमुक्त, आठ प्रातिहार्यसुं युक्त ॥ केवलज्ञानी दिनकर स्वामि, समवसरण बेटा सुखधाम ॥ १५ ॥ ध्यानालंबन तेहनुं करे, अथवा जिनमूरति चित धरे ॥ निजमन थिर करी ध्यावे सदा ॥ सयल विकल्प तजी मन मुदा ॥ १५ ॥ सम्यक योगतणो अग्रणी, सध्यावे |परमात्मानणी ॥ नाथ निरंजनने निराकार, चिदानंद प्रभु जंगार ॥ १७ ॥ प्रबन्न पापतली शुद्धि होय, आधि व्याधि व्यापे नहि कोय ॥ परजव परमैश्वर्य लहाय, ध्यानपदस्थ थकी सिद्धि श्राय ॥ १८ ॥ अतीत गीतारथ अष्ट समृद्धि, ज्ञाता नर एहवो सुप्रसिद्ध || नाद बिंदु वपुशुद्धि सं| जोय, पिंमस्थ ध्यानयोगश्री होय ॥ १७ ॥ रूपस्य ध्यान लीनात्मा दमी, क्लिष्ट कर्मक्षयश्री उपशमी ॥ केवलज्ञान हे प्राणियो, राय पुण्याढ्य परे जालियो || २० || मूकी करी विकल्प कषाय, ध्याता रुपातीत पद् ध्याय ॥ चिदानंदमय थाए सहि, रूपाकार जिहा गुण नहि ॥ २१ ॥ जिम उत्तम श्रावक जे होय, ए थानक आराधे सोय ॥ तजे प्रमाद रागने द्वेष ॥ सामायिक व्रत करी
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स्थान०
॥॥॥॥
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विशेष ॥ २२ ॥ त्रसने स्थावर प्राणी रास, सर्वभूतं समता जास ॥ तेहने सामायिक दाखियो, केवली जिनदर्ष जाखियो || २३ || सर्वगाथा ॥ ३१ ॥
॥ दोहा ॥
जन्म लकनां पाप जे, नम्रतपें न खपाय ॥ समरसमें मन राखतां, खिरामे खेरू थाय ॥ १ ॥ शुक्ललेश्या शुद्धतमा, शुभध्याने सुप्रेम ॥ तीर्थंकर लक्ष्मी लहे, हरिवाहन नृप जेम ॥ २ ॥ ॥ ढाल २ जी ॥ दान नलट घरी नवियण दीजियें || ए देशी ॥
पुण्य संकेतपुरवर तिलो, सुरनरने अनुहार रे ॥ ऋद्धि समृद्धि सुमरे नस्यो, सज्जनने सुखका - ररे ॥ पु० ॥ १ ॥ तिहां हरिवाहन राजीयो, तेज प्रताप दिनराय रे ॥ हरि जिम अरि मृग नाजिया, निपुण निजमुख करी न्याय रे || पु० ॥ २ ॥ मेघवाहन युवराजियो, राय लघु जात रा. धीर रे ॥ विदुष विद्वेषी जली जे करे, सर्वदा यादर वीर रे ॥ ५० ॥ ३ ॥ नरपतिसें वश श्रइ रह्यो, नाना कीमारस स्वादरे ॥ धर्म न करें नृप भाषियो, निशदिन सेवे प्रमादरे ॥ पु० ॥ ४ ॥ अन्य दिवस तिहां श्राविया, चनज्ञानी गुणनूरिरे ॥ नव्यकमल दिनकर समा, शीलननामें सूरिरे ॥ पु० ॥ ५ ॥ मेघवाहन आव्यो वांदवा, सूरिजी सुविनीतरे ॥ शेठ सामंत व्यवहारिया, श्राविया धर्मनी रीतरे || पु० || ६ || दशावर्त्त देश वांदला, बेग गुरु यागले आइ रे ॥ तेटले धर्म देसा दीए, पहुचवा मुक्ति नपाय रे ॥ पु० ॥ ७ ॥ तेटले भवितव्यता वशे, तुरंग रमाववा काजरे ॥ राजा जातो तिहां आवियो, सांजली वाली घनगाज रे || पु० ॥ ८ ॥ वाजिकीमा तजि ततखिणे, | विस्मितात्मा नरनाह रे || आवी विनयसुं गुरुतला, नम्या पदकमल नृत्साह रे ॥ पु० ॥ ए ॥ मधुर अमृतरस स्त्राविणी, सगुण वाली सुविशेष रे ॥ जव्य प्राणी हितकारणे, सुगुरु आपे उपदेशरे ॥
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वीश
पुण् ॥ १० ॥ नर नव बुद्धिबल आवखं, देशकुल आरज गोतरे ॥ धर्म जे पाले जम नवि करे, स्थान
समु तजे पमयो पोतरे ॥ पु॥११॥ यतः ॥ येन प्रन्नुस्वजनवैवन्नदेहगेहे, चिंतातुरेण सुकृतं न ॥ ISE कृतं कदाचित् ॥ वैवाहिकव्यतिकराकुलितस्य तस्य, नो पाणिपीमितविधिः स्मृतिमाजगाम ॥१॥
आदित्यस्य गतागतैरहरहः संदीयते जीवितम्, व्यापारैर्वहुकर्मन्नारगुरुन्निः कालो न विज्ञायते ॥ Nal sal दृष्ट्वा जन्मजरा विपत्तिमरणं त्रासश्च नोत्पद्यते, पीत्वा मोहमयी प्रमादमदिरामुन्मत्तनूतं जगत् Nal॥ ॥ अर्थः-प्रन्नु, (स्वामी) स्वजन, वैनव, शरीर अने घरनेविषे चिंतातुर एवा जे पुरुषं को l
समये कांइ पण सुकृत कर्यै नथी तेवाएने विवाह संबंधि नत्सवमाटे व्याकुल चित्तवाला ते पुरुषने al विवाहवखते पाणिग्रहणनो प्रकार स्मरणमां पण पावतोनथी अर्थात् पुण्यहीनने स्वप्नेपण पाणिग्रहण al क्यांथी पाय दिन दिन प्रति सूर्यना नदय अने अस्तथी जीवित हीण थतुं जाय घणा कार्यना नारथी
बोजावाला व्यापारो वझे केटलो काल गयो ते जाणी शकातो नथी, लोकोनां जन्म जरा विपत्ति अने sal valमरण जो त्रास श्रतो नथी " तेथीनासे ने जे" मोहमय मदिरा पीश्ने जगत्, नम्मत्त श्रयेलु Nala.॥ ॥ पंचविषय पंचनी दमी, चार विकथा मन आणी रे ॥ सोल कषाय मद बे करया, श्रीजिvalनवाणी जाणी रे॥ पुण् ॥ १२॥ चार बत्रीशथी नपन्यो, हणे प्रमाद रिपु जेह रे ॥ते शहां मगध sd
वेशापरे, विजयध्वज लहे गुणगेह रे ॥ पु० ॥१३॥ राजगृह नगर सोहामj, पुण्यलक्ष्मी वालीला गेह रे ॥ मगधसेना नगरनायिका, तिहां रहे गुणवती तेह रे ॥ पु॥ १५ ॥ जास प्रसिद
रूपसंपदा, नगरमांहि बहमान रे॥अत्यवेश्या वलि तिहां रहे. सकल कलासप्रधान रे। ISI रूप सौनाग्य विद्या घणी, इंनी नारी अनुहारी रे ॥ नाम तेहy मगधसुंदरी, मार निहार गरी salनारीरे ॥ पुण्॥१६॥ रात दिवस थाय तेहने, मांहोमांहे विवाद रे॥ रूपकला नजरतणो, करे गर्व
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उन्माद रे॥ पु०॥ १७ ॥ तास नूपादिक सहु कहे, वचन वेश्यानणी तामरे ॥ राय हजुर नजरे कला, देखाडे इणगम रे ॥ पुण् ॥ १७ ॥ गीत नृत्यादि कौशलपणुं, मगधसेना तिणिवार रे । नृप-
II सन्नामांहे देखामियु, पण खुश। न श्रयो दरबार रे ॥ पुण्॥ १५ ॥अंगसौन्नाग्य अद्भुत कला, रंग-al मंझप प्रावी ताम रे॥कला देखामवा रायने, वेश्या मगधसंदरी नाम रे॥ पु० ॥ २० ॥ सोल शृंगार बनाविया, रत्नसोवन अलंकार रे ॥ विस्मय लोक देखी श्रया, कहे जिनहर्ष सुविचार रे ॥ ॥ पु ॥ १॥ सर्वगाथा ॥५॥
॥दोहा॥ कणयर फूल बंधे मुखें, सूक्ष्म सोश संघात ॥ विष लेपी तिणे नोंये ग्वी, करवा तेहनी घात॥१॥ कलिका तस सहकारनी, सर्वत नपरे तास ||मूकावी पोते सदा, मगधसेना गुरुपास ॥२॥ कर्णिREकार मूकी करी, पडे ब्रमरनी श्रेण ॥आंबानी कलिका प्रते, करे शब्द हर्षेण ॥३॥ मा मगध Na
सुंदरीतणी, प्रवर विदग्धा माह ॥ कहती अश् विचारीने, गीतमांहि एक गाह ॥४॥ कर्णिकार सुरत्नं नयां, नमरा मूकी दूर ॥ आंबाकेरी मांजरी, सेवे आइ हजूर ॥ ५॥ ते अन्निप्राय जाणी करी, वक्रोक्ति कोविदा तेह ॥ अप्रमत्त एणे तजी, सकल तेह गुणगेह ॥ ६॥
॥ ढाल ६ छ। ॥ मधुकरनी देशी॥ चरणन्यास करती की, नृत्य करे तिणिवार ॥ मनहर ॥ धरती पग लागे नही, जाणे सुरनी नार ॥ मनहर ॥१॥ गुरु नपदेशों संदरी, एमको नविक प्रमाद ॥म०॥ अप्रमादें वांन्ति। लदे, पामे जगजसवाद ॥ म ॥२॥र गुण॥ राग आलापे नव नवा, विच विच कथा कल्लोल ॥ म ॥ गावे गीत शृंगारनां, घुघरियां रण मोल ॥म॥३॥गु॥ वाजिन वाजे अति नला, मादल
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वीश
मुरज कसाल ॥ म ॥ कला देखावे आपणी, मगध सुंदरी बाल ॥म ॥४॥ गुण ॥ मगन थया स्थान
राजा प्रजा, सहु पाम्या आनंद ॥ रत्नहेम माणकदियां, रीमीतासनरीद ॥म॥गुण ॥ ५॥ सकल ॥ए॥
val कलावति नारिमें, सकल पण्यांगनामांह ॥ म ॥ए सरिखी कोइ नहि, राय कहे वाह वाह ॥ म ॥ san३॥ गुण ॥ जयपताका जय लहि, त्र चामर दियां राय ॥ म॥ गुरुने पण मान्यो घणुं, तेपण IN दान लहाय ॥ म ॥ ७॥ गुण ॥ लोके मगधसेनानणी, अपमानी तिम राय ॥ म । नाटक गुप्ता-Ral
बहु, लाघव लह्यो अपाय ॥ म ॥ ॥ गुण ॥ एम पुण्यकारजनेविषे, नकरे जेह प्रमाद ॥म ॥NEL लहे अन्नीष्ट सुख संपदा, वाजे सुयशनिनाद ॥ म ॥ ए॥गुण॥ गुरुपासे श्म सनिली, आव्यो
मन संवेग ॥म ॥ नृप अंतेनरसू तिहां, लीधो संयम वेग ॥म ॥१०॥ गुण ॥ युवराजा राज्ये Raस्थापियो, सचिवादिक तिणिवार ॥ म ॥ राजलकणे करि सोहेलो, मेघवाहन शिरदार ॥ मण
॥ ११ ॥ गुण ॥ हरिवाहन राजऋषिने, मेघवाहन नरराय ॥ म ॥ वांदी धर्म सम्यक्त्वसुं, आद-IVa रियो शुन्नन्नाव ॥ म ॥ १२॥ गुण ॥ हादशांग मुनिवर नण्या, श्रीनद्र मुनिपति तास ॥ म ॥ संवेगे शिरसेहरो, नज्वल जिम गुणकास ॥ म ॥ १३ ॥ गुण ॥ सन्निलियो व्याख्यानमें, वीशस्थानक उपदेश ॥ म॥ अरिहंत नक्तिमयातमा, जिनपदवी दानेश ॥ म ॥ १५ ॥ गुण ॥ तेमांहि थानक तेरमं. समतावासित चित्त ॥म॥आदरियेंशनध्यानसं. सम्यग्नावे नित्त ॥ म ॥१५॥ निज इंघिय जीती करी, सुधायोग कषाय॥मणाअन्यायसंग तजी करी, समता पूरितकायामण॥१६॥ Saly ॥ शुधर्म निर्मलपणे, ध्यावे मुनिवर ध्यान ॥ म ॥ आतमसुं मन जोमिने, विषय नणी अप
मान ॥ म॥१७॥ गुण ॥ध्यानान्यासथकी हुवे, विषय विमुख मुनिराय । म ॥ अंतर आतम
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नासतो, देखे आप समाय ॥ म० ॥१७॥ गुण ॥ तेहने दुख व्यापे नहि, व्यापे नहि विषव्याधिम लोकोत्तर श्री तेहने, लहे जिनहर्ष समाधि ॥ म ॥ १७॥ गुण ॥ सर्वगाथा ॥ ७॥
॥दोहा॥ | एहवी गुरुवाणी सुणी, आणी हश्मे रंग ॥ अनुपम थानक तेरमुं, करे राजऋषि अन्नंग ॥१॥ पंच प्रमाद तजी करी, हृदय धरी शुन्नध्यान ॥ निःकषाय मौनी सदा, रहे प्रतिमा धरि ध्यान ॥२॥ निःस्पृहैक शिरोमणि, सर्व प्रसंगविमुक्त ॥ सहे परीसह आकरा, समतारस संयुक्त ॥३॥दमा आर्जव मार्दव सहित, निलोनी निर्माय ॥ मन नज्वल लेश्या धरे, योगीश्वर थिरनाय ॥४॥ सुख दुखमां मन सारिखं, तपस्तेज दिने ॥ परमानंद निदाननी, इहां अनुन्नवे मुनीं ॥५॥
॥ ढाल ४ श्री॥ विमलाशिर तिलो ॥ए देशी ॥ ID सुरपति सुरनी सत्नाविचे, कीधी प्रशंसा ताम॥दोन्ने नहि मुनिध्यानश्री,चुकावे सुर ध्यान।।सुरण San१॥ मेरु चलाव्यो नवि चले, शेष न धूणे शीष॥ तिम मुनि न चले ध्यानश्री, जाणो विश्वा वीश Ram सु० ॥२॥ सुरपतिवचन सुणीकरी, सद्दहणा न धरेह ॥ एक अग्रमेषी इंश्नी, नूलोके आ-sa
वह ॥ सु॥३॥ साधे वृंद देवांगना, लेश रूपनिधान ॥ जाणे मोहराजात', कटक महाबलवान ॥ ४ ॥ सु० ॥ राजऋषीश्वर आगले, गावे मधुरां गीत ॥ मन नपजावण मोहनी अचल चलावे चित्त ॥ सु० ॥ ५ ॥ नृत्य करे ते बहपरें, कला देखावे कोम ॥ अंग नपांग दिखावती, पाय नमे कर जोक ॥ सु०॥ ६॥ जेह अल्पसत्वना धणी, कामतणो अन्निलाख ॥ ते देखी मन पीगले, अग्निमुखें जिम लाख ॥ सु०॥ ७॥ श्म नाटक कीधुं घगुं, कीधा वचन विलास ॥ चित मुनिनुं चूकाववा, श्म की, षटमास ॥ सुण ॥ 6 ॥ नेत्र नासाग्रे स्थापियां,
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वीश
॥२॥
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निश्चल ध्यान धरत ॥ हृदय वचन पण नवि धर्या, सामो नवि निरखंत ॥ सु० ॥ ए ॥ रूप प्रगट कीधुं शची, राय ऋषीश्वर पाय । स्तवना करि जावे नमी, सुरलोकें ते जाय ॥ सु० ॥ १० ॥ निर्मल परिणामें करी, संयम पाली शुद्ध ॥ समता सागर मुनिवरू, पापाश्रव संरुद्ध ॥ स० ॥ ११ ॥ जिनवर पद संपदतणुं, कर्म करी ऋषिराय ॥ सनत्कुमारे सुर थयो, इंइसमान गणाय ॥ सु० ॥ १२ ॥ तिहांथी चवी विदेहमें, थाशे जिनवर तेह || श्रीहरिवाहन नरपति, लदेशे सुख बेह सु० ॥ १३ ॥ जाखी निर्जराकारणे, समता घणी गरिष्ट || मुहूरतमांहि जे हणे, प्राणिकर्म अरिष्ट || सु० ॥ १४ ॥ हरिवाहन नृपनो सुणी, शुभ ध्यानोपरि वृत्त ॥ श्राराधो पद तेरमुं, कहे जिनदर्ष सचित्त ॥ सु० || १५ || सर्वगाथा ||१०|| इति त्रयोदश स्थानके हरिवाहननृपकथानकम् ॥
॥ दोहा ॥
हवे चौदमा स्थानकतणुं, सुणजो सुगुण स्वरुप | बार प्रकार तपने विषे, करवो यत्न अनूप ॥ १ ॥ जेदश्री विघ्नपरंपरा, श्राये क्षणमां नाश ॥ कामतणुं बल उपशमे, सुर सदु थाये दास ॥२॥ वश थाये इंद्रियगण, प्रगट करे कल्याण ॥ ऋधिवृद्धि जेही दुवे, करे कर्मनी हा ॥ ३ ॥ कर्म निकाचित खेपवे, लब्धि नृपावे जेह ॥ श्रागममांहे गणधरें, नांख्यं तपफल एह ॥ ४ ॥ कर्म निर्जरावे जिके, अन्नग्लायक साध ॥ सो वर्षे ते नारकी, सहतो नरकाबाध ॥ ५ ॥ कुधा ग्लाय न प्रह समे, யய் पर्युषिताशन होय ॥ अथवा प्राताहार ले, अन्नग्लायक सोय ॥ ६ ॥
॥ ढाल पहेली || देशी चोपाइनी ॥
तथा चतुर्थन मुनिवरा, कर्म खपावे जो श्राकरां ॥ दुःख जोगवतो ते नारकी, वर्ष हजारे कह्या तेथकी ॥ १ ॥ बठ नक्त तपस्या मुनिजली, थाए कर्मनिर्जरा घणी || वर्ष लाख नारकि
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स्थान०
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Salनवि लदे, गुरु गीतारथ इणिपरे कहे ॥ २ ॥ अष्टम नक्तं यतिवर आदरे, कर्म निर्जरा
जेटली करे ॥ वर्ष कोम पण ते नवि हुवे, नारकि जे बहु सुख अनुन्नवे ॥३॥ दशम करतां जेटलां कर्म, साधु खपावे नवन्नय कर्म ॥ कोमाकोकि वर्ष लगि तेह, न खपावे नारकी अबेह॥४॥ यतः॥ अष्ठम नक्तं कोमी, कोमा कोमिय दसम नमि॥ओपरं बहु निजजर देननूणं तवोन्नतिन ॥१॥ कर्मचमनंजणने काज, घिदोपम नांख्यो जिनराज ॥ बे प्रकार
तपविषे प्रमाण, म कर वृथा प्रमाद सुजाण ॥ ५॥ तपमान तप तीव्र मुनीश, नपशम शीतल Salरहे निशदीश ॥ ते तीर्थंकर लक्ष्मी वरे, कनककेतु राजानी परे॥६॥ तथाहि ॥नरत क्षेत्रमा Balशिरदार, शोन्नाधार कमालंकार ॥ कांपिल्यपुर नगर मन गमे, नागलोक जिम जानोगी रमे ॥ ७॥राजे तिहां दोगिभर्तार, प्रजापदानो प्रतिहार ॥ विश्वंनरनामें महाबली, पट
राणी तसु कनकावली।जानिपावी निजकरे जगदिश, शोने लक्षण जसु बत्रीश॥ दान व्यसन तेहने sd Nal कर घj, ते तो लक्षण नत्तम तj॥णामान घणुं आपे जरतार,तोपण न करे गर्व लगार ॥पति करे Na
तेम चाले सती, रूपें रति सरस्वती गुणवती॥१॥सत्रमा जिम परम पवित्र, पुत्र तेहने सुगण वि
चित्र ॥ कनककेतु तेहर्नु अनिधान, वैरिने शिर रिपु समान ॥ ११ ॥ वर्ष पांच तथा थयां सात, Balनवाकाजे मुक्या तात ॥ कला बहुतेर तणो अन्यास, कला आचार्य करावे तास ॥१२॥ नवा sal
नपर मन लयलीन, सकल कलामां श्रयो प्रवीण ॥ अनुक्रमें यौवन पाम्यो तेह, मोहनी कर्मोदयश्री Saजेह ॥ १३ ॥ धर्मथकी नपरांगे सहि, धर्मवात न सुहावे सहि ॥ बीजी कला घणी हद, धर्मविना
ते सघली रद ॥ १४ ॥ नृपने कुमर सुहावे नहि, सदा दुःकृत शोन्ने जेमांही ॥ सम्यक धर्म कला विण जेह, किसा कामनो अंगज तेह ॥ १५ ॥ अंगज मलने पण दाखिये, कायाश्री अलगो ना
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वश
॥३॥
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खियें ॥ अंगथकी बलि नपजे रोग || पण तेहनो न गमे संयोग ॥ १६ ॥ राजा मनमें चिंते इसुं, | पुत्र अधर्मी कीजे किसुं ॥ धर्मतली मति नावे किमे, वालो अंगज पण नवि गमे ॥ १७ ॥ अन्य दिवस पूरवर उद्यान, सूरि जस इति ज्योति प्रधान ॥ एहवा श्राव्या श्रुत केवलि, श्रीशांतिसूरि मन रलि ॥ १८ ॥ पटकायाना राखणहार, श्री सम्यक्त्व धर्म दातार । टाले नव जवना दुखदाह, मोक्षनगरना सारथवाह ॥ १५ ॥ समिति गुप्तिना पालाहार, गुण बत्रीशतला भंडार ॥ पंचमहात्रतना प्रतिपाल, कडे जिनदर्ष नमो त्रि काल || २० || सर्वगाथा ॥ २६ ॥
॥ दोहा ॥
राजा ही वधामणी, गुरु आाव्यानी ताम ॥ दीध वधाइदारने, मुहना माग्या दाम ॥ १ ॥ हय गय रथ पायक सजी, मुनि वंदन नरनाथ ॥ चाल्यो प्रति नत्साहसुं, कुमरनी लेइ साथ ॥ २ ॥ पांचे अभिगम सांचवी, देश प्रदक्षिणा तीन ॥ नरिंद मुनींइनली नम्यो, चरणे श्रइ रह्यो लीन ॥३॥ आगल वेठी पर्षदा, आगल बेठो राय ॥ पीवा मुनिनपदेश जल, चातक जिम चित लाय ॥ ४ ॥ विकथा दूर तजी करी, तजी बंघ परमाद ॥ गुरु सन्मुख जोइ रह्यो, तजी सयल विषवाद ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ॥ बीजी ॥ आदि जिद मया करो ॥ एदेशी ॥
स्थान
मुनिवर देशना, परनपगारी मुलिंदोरे ॥ मिथ्या तिमिर निवारवा, ए तो प्रगटयो जाणे ॥ दिदोरे ॥ ० ॥ १ ॥ धर्म विना सुख संपदा, जे चाहे लोक अन्नाणी रे ॥ घृत लेवाने कारणे, ते मूढ वलोवे पाणी रे ॥ ० ॥ २ ॥ नरनव लहेतां दुलहो, ते पामे पुण्यवसाये रे ॥ धर्म करे ॥३॥ नहीं जडमति, चिंतामणि ते गमाये रे ॥ ० ॥ ३ ॥ पामी नरजव दोहिलो, परमादे गमे निटोलो रे ॥ ते मूरख रजसुं नरे, सोवन थाल अमोलो रे ॥ ० ॥ ४ ॥ अमृत दीधुं देवता, तेहसुं चरण
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पखालेरे॥नार वहावे काठनो, गजराजतणो मद गालेरे ॥ आण ॥ ५ ॥ मोघु जे
कंचनथकी, ते चंदन मरख बालेरे ॥ कागनमावणकारणे. चिंतामणि करथी मारे रे Ma HT॥६॥ मोहनींदमें सुश् रह्यो, जमराणो माथे गाजेरे ॥ जागो जागो रे प्राणिया,
घमियाले घमि एम वाजे रे ॥ ॥ ७॥ धर्म सामग्री लही करी, कांश धर्म करो हितकाजे रे॥
पागले कोश् देशे नहि, आय कमायो खाजे रे ॥ आ ॥ ॥ इत्यादिक देशना सुणी, राजा पूरे Halकर जोमी रे॥ स्वामी अंगज माहरो, मांहे गुणनी कोमी रे॥ आ ॥ ए॥ पण जिनधर्मविषे SElकदा, एहनी मति किमहि न जागे रे ॥ श्रीजिनधर्मनी संपदा, लहेशे किंवा नहि आगे रे॥
आप ॥१०॥ यतिपति राजाने कहे, सांजल तुं गुणवंतो रे ॥म कर म कर मनमें वृथा, Ralतुं चिंता एह पुरंतो रे ॥ आ ॥ ११ ॥ जीव सह संसारमां, निज कर्मवशे ने रायो रे ॥ नविन
तव्यताए प्राणिया, सहु धर्मि अधर्मि थायो रे ॥ आ॥१५॥ कोइ नवितव्यता नणी, लंधी न
शके बलवंतो रे॥जेहने जाहां जावं हुवे, तेहने तेह सुजतो रे ॥आ ॥१३॥ रविनगे पश्चिम दिशे, salनिजपार तजे जलरासोरे ॥ मोले सुरगिरि वायरे, पण नवितव्यता नहि नाशो रे ॥ ॥ १४ ॥
कर्म कथा ए नृप शुन्न यदा, परिणाम तदा नव्य पाये रे ॥ धर्मविषे रुचि नपजे, अधर्मतणी मति Na जाये रे॥ ॥१५॥राय कहे स्वामी सुगो, तो करवी नहि किण कालो रे ॥रोगविगंग रोगिने, नोजननी क्रिया नुखालोरे ॥ आ॥१६॥ नूपतणी वाणी सुणी, इम वाचंयमपति नारखे रे॥ व्य क्षेत्रादिकसामग्री, पाखे नरधर्म न आखेरे ॥ आ ॥ १७ ॥ जिण काले पामवी, निवृति तिण काले पावे रे ॥ निवृत्त्युपाय विषय सही, नपक्रम व्यवहार कहावे रे॥ ॥ १७ ॥ राजन् सुण salsहां तुज नणी, संनलावं एक दृष्टांतो रे ॥ तीन मुनीश्वर आविने, पुण्या केवलि नगवंतो रे॥
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वीशo
॥४৷৷
CECECPLX
XXX
० ॥ १५ ॥ मुक्ति किवारे श्रमन्नणी, थाशे कहो जगदाधारो रे । इस हिज नवें मुनिवर तुमे, पोहुचशो मुक्तिमोकारो रे ॥ ० ॥ २० ॥ वचन न थाये अन्यथा, ज्ञानीनो किाही काले रे ॥ त्र मुनी निश्चय कर्यो, जिनहर्ष ए बीजी ढाले रे ॥ श्र० ॥ २१ ॥ सर्वगाथा ॥ ५२ ॥
॥ दोहा ॥
वर्ज्या मूकी करी, गृहस्थ थया अणगार ॥ विषयतणां सुख जोगवे, सुंदर परणी नार ॥१॥ नोग कर्म वलि कय श्रये, प्रांते पातक कर्म। आप आपणो निंदता, आयो मनमें धर्म ॥ २ ॥ त्रणें चारित्र आदर्य, शुक्ल ध्यान प्रमाण । त्रपये मुनियें केवल लधुं, पाम्या पद निर्वाण ॥ ३ ॥ सात कर्मनी स्थिति यदा, कोकाकोमि प्रमाण ॥ थाये त्यारे धर्मरुचि, धर्मविषे तुं जाण ॥ ४ ॥ ताहरो पण सुत अनुक्रमे, इसाहिज जन्म मोकार ॥ कीण होशे जव नाव मल, लदेशे धर्म विचार ॥ ५ ॥ त्रीजे नवे इहांथी हुशे, तुजसुत पुण्य प्रभाव | जिनवर होशे विदेहमें, जवजल तारण नाव ॥ ६ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ तो चढियो घण मानगजें ॥ ए देशी ॥
गुरुना वचन सुखी करी ए, प्रतिबोध्यो नरराय तो ॥ उत्सव करी निजपुत्रने ए, राज दियो | समुदाय तो ॥ १ ॥ मुक्ताफल जेम नजलुं ए, लीधो संयम सार तो ॥ पाप गमे जव कोमिनां ए, यया पुष्करतपधार तो ॥ २ ॥ चारित्र पाली नजलुं ए, धरतो निर्मल ध्यान तो ॥ कर्म खपावी घातियां ए, पाम्यो केवलज्ञान तो ॥ ३ ॥ कनककेतु राजा हवेएपाले न्यायें राज तो ॥ तेज प्रतापें आकरो ए, नमिया वैरिवाज तो ॥ ४ ॥ प्रजाती परे निज प्रजा ए, पाले टाले दुख तो ॥ राजलीला रमणीतणां ए, श्रहनिश जोगवे सुख तो ॥ ५ ॥ तीव्र दाहज्वर अन्यदा ए, पीड्यो राय शरीर तो ॥ तप्त तवा जिम तनु तपे ए, बांटे चंदन नीर तो ॥ ६ ॥ नयले नावे निश्मी ए, दुःख
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स्थान
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धरे सहु लोक तो॥ किणश्क मुखथी सोनब्यो ए, निशानर एक श्लोकतो ॥ ७॥ तद्यथा ॥ सुखाय सर्वजंतूनां, प्रायः सर्वाः प्रवृत्तयः॥ न धर्मेण विना सौख्य, धर्मश्चारंजवर्जनात् ॥१॥
अर्थः-घणुं करीने सर्वजंतुओनी प्रवत्ति सुखनेमाटे ने परंतु ते सुख, धर्म विना मलतुं Salनथी अने ते धर्म पण आरंनोने वर्जवाथी थाय . ॥ " सारांश के सुखार्थी पुरुषोए। Nalधर्ममां तत्परथकुं" ॥ सांजली मनमें नपन्यो ए, रायन्नणी संवेग तो॥ चितमाहेश्म चिंतवे ए,
मुकी सहु नगि तो ॥ ७ ॥ प्रातसमें व्रत आदरूं ए, तोमी माया जाल तो॥ आरंन गेहुं राजनो NA
ए॥ दुख पावकनी काल तो॥ ए॥ धर्म मनोरथ इणिपरे ए, करतां शीतल काय तो॥थ नींद Nalआवे सुखें ए, रोग गये सुख थाय तो॥१॥ प्रात श्रये पवित्रातमा ए, पथ्य क्रिया विधि कीध तो॥
सचिवादिक आगल कह्यो ए, रयणी वृत्तांत प्रसीध तो॥१॥ कंचण कोमी व्यय करी ए, देश सुपात्र
दान तो ॥ श्रीजिन नक्ति प्रजा करी ए.साहमिने सनमान तो॥ १॥ मलयकेत निजसतना sale, राज्यधुरंधर कीध तो ॥ गुरु श्रीशांतिसूरिकने ए, संवेगें व्रत लीध तो ॥१३॥ राय साथे व्रत
आदरयु ए, सचिव सेवक नमराव तो ॥ शीखे गुरुपासे सहु ए, साधु मारग धरी भाव तो ॥ १५ ॥ हादशांग भणतां का ए, जीते अनंग मुनिराय तो॥ गुरुवाणी सुणि अन्यदा ए, थानक तपफल थाय तो ॥१५॥ अरिहंतन्नक्ति सहित करे ए, वीशथानकतप जेह तो ॥ विधिसुं नावना नावतो ए, जिनपद पामे तेह तो ॥१६॥ तेमांहे पद चौदमुं ए, मुकी करी सर्वाश तो ॥ विधिशुं जे तप आदरे ए, जिनपद पाये तास तो॥१७॥ नपमितदोष शरीरना ए, जिम लंघनथी जाय तो ॥ तिम दुप्कर तपस्या करी ए, कर्मतणो कय थाय तो ॥१०॥ सांजलि मुनि गुरुमुख श्सुं ए, अन्निग्रह लीधो घोर तो ॥ हादशन्नेदें तप करूं ए, ज्यां लगे काया जोर तो॥१५॥ चोथथकी मांझी करी
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वीश
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ए, वधतुं अवधि व मास तो ॥ देववदुं विधिशुं वली ए, त्रण वेला उल्लास तो ॥ २० ॥ नित्सवतें लहुं जेहवो ए, जात पाणी निर्दोष तो ॥ प्रांबिल तप ते पारणे ए, करूं जिनदर्ष संतोष तो ॥ २१ ॥ सर्वगाथा ॥ १७ ॥
॥ दोहा ॥
तप करतो इम करूं, मुनि संतोषानंद ॥ वपुस्तेज दिन दिन वधे, जिम ग्रीष्मे जलधि अमंद || १ || साधुविहारें विहरता, शंखपुरीतणे नृपांत ॥ नृष्णकाल उनी धरा, मुनि पोहोता एकांत ॥ २ ॥ माथे तावक तमतमे, वेलु दाऊ पाय ॥ तिहां लीधी प्रतापना, सूरज सन्मुख थाय ॥ ३ ॥ गुणश्लाधा तेहनी करी, सज्ञामांहि सुरराय ॥ करे वंदना नक्तिसूं, मुनिने शीश नमाय ॥ ४ ॥ कनककेतु महाराज ऋषि, तपसी साधु महंत || जात पाणि ले एषणी, प्रशु६ न ले प्राणांत ॥ ५ ॥
॥ ढाल चोथी ॥ साहेबा मोतिको हमारो ॥ ए देशी ||
मुनि गुणकीर्तन खाएयुं, वरुणसुरें मनमां न प्राएयुं ॥ तेहनी जइ करूं परीक्षा, साधुनी जर करूंजी | कान सुसी खोटी पण थाए, नयरों दीठी साची मनाए ॥ ते० ॥ १ ॥ रागी अबता गुण जाखे, रागी थोडो गुएा बहु दाखे ॥ जो देखुं नहि श्रापणे नयरों, तो न पतीजो किसके वयणें ॥ ते ॥ २ ॥ सुरपतिने कुल मोहे चडी बोले, ते बोले जेहवो इसे तोले || जीजी सहु एहने मुखें जाखे, एहनुं मन सहु सेवक राखे ॥ ते || ३ || जिम तिम बोले पण न विमासे, इम बोलतां अपजस श्राशे ॥ साहेब बोले सदु कहे साधुं हुं एहने वचनें नवि राचुं ॥ ० ॥ ४ ॥ वरुणानिध लोकपाल तिवारे, जरत अवनी मुनिपास पधारे ॥ अशुद्ध आहार कियो सुर सघले, जेथी विशुद्ध
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किहां न मले ॥ ते ॥ ५ || जाज्वल्य खदिरागार संकाशा, वाटे वेलु कीध प्रकाशा ॥ सूर्यत । Silशिरपग दाऊता, मुनि विचरे र्या शोधंता॥ ते ॥६॥ घरघर बहार आहार सदोषी ॥ देखी
मुनि न लिये संतोष। ॥ इणिपरे सुर षटमास कुन्नायो, तोपण आतम समता नाव्यो॥ते॥ सत्वतणो सागर गुणागर, साधु सुखाकर ऐह न नागर॥ मेरुतणी परे अमग मगे नहि, पवनपरी-IN सह जो दुवे किमही ॥ ते॥॥ नाम घनंजय तिहां व्यवहारी, सहु पुण्यवंत मांहे शिरदारी सहु पौरजनने नपगारी, प्रियवादी पुरमें जसधारी॥ते ॥ ए॥ शुभत्रिधा ब्रह्मव्रत ते पाले, तेहनां दूषण जाणी टाले ॥ देव करी न शके नपसर्गा, शीलयकी नासे दुखवर्गाते॥रणादेवोपसर्ग संसर्ग जाणीने, ज्ञानोपयोगथकी आणीने ॥ तेहने घरे आहार निमित्ते, गुरु मोकले मुनि अप्रमत्तें । ते
॥११॥ तेहने घरे शुधान्न गृह्यु जब ॥ वरुणें हेमवृष्टि कीधी तब॥ प्रत्यक्ष यश् मद मान विगेमी,sa Nदेव नमे चरण कर जोडी ॥ ते ॥ १२ ॥ स्तवना करे मुनीश्वर केरी, नावन्नक्ति आणी अधिकरी॥
धन धन तं मनिराज ऋषीश्वर, नरवर किन्नर वंद्यो विस्तर॥ते ॥१३॥स्फाटिक तणीपरे निर्मल- योगा, रहित कषाय रहित दुखसोगा ॥ धन धन धन तुं समताधारी, ते पर आशा दूर निवारी ॥ ते॥ ॥१४ ॥ ३६ स्वरूप सकल संन्नलावी, वरुण नमे श्रीगुरुने आवी ॥ दुस्तप तप ए ऋषितुं स्वामी, शुं फल लेहेशे कहो हितकामी ॥ ते ॥ १५ ॥ चौदमुं पद शुन्न तपस्या कीर्छ, तीर्थंकरपद एणेलीधुं।वचन सुणी प्रणमी मुनि पाया, वरुणदेव देवलोके संधाव्या ॥ ते॥१६॥ मुनि पोता चोथे देवलोके, देवतणां सुख तिहां अवलोके॥ अनुक्रमे तिहांथी चवी विदेहे, जिनपद लेशे परम सनेहे।
॥१७॥चिदानंदपद लहेको स्वामी, राजऋषीश्वर महिमाधामी॥चनदमपद जिनहर्ष आराधे॥कनककेतु जिम जिनपद साधे।।ते॥१॥सर्वगाथा॥१७॥इति श्रीचतुर्दश स्थानके कनककेतु कथा नकम्॥
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स्थान.
वीण
॥दोहा॥ पनरमा स्थानकविषे, नक्ति राग बहु मान ॥ दान सुपात्रे आपq, सर्व श्रेय निदान॥१॥दान मूल ॥ ६॥
सदु धर्मनु, महिमाकेळं स्थान ॥ दान बीज कीर्त्तितगुं, बदमी, फल दान ॥॥ पदवि स्वर्ग अपवगनी, नहि दोहिली तास॥शालिन्नश्नीपरे दिए, पात्रं दान नलास ॥३॥पात्र तिहां नांख्यां इसां, व्य भावथी दोय॥हृदयविचारी झानसूं ,तत्वजाग जे होय॥धारत्नकनकरूपातणां, व्यवहारीनां पात्र॥सर्वे तिम नत्तम हुवे,यपात्र शुनगात्र॥॥धातुपात्रताम्रादिना,मध्यमपात्रकहाय॥वलीलोहादिकधातुना, घर घर जघन्य लहाय ॥६॥ मृन्मय आदिक पात्र जे, अन्य गृहिनां जाण।कुपात्र पात्ररूचे दुवे, व्याप्ति झान प्रमाण॥॥नावपात्र एहज कह्यां, श्रीजिनशासन मांय॥ विधिसूं दीजे तेविषे, अनंतगणुं फल
जायाख्यात चारित्रधर. कीरा मोह गुणवंतरत्नपात्र समपात्रते. सर्वोत्तम कहो तंतपणा सम्यग्ज्ञान क्रियासहित, लानालान समान ॥ मन प्रशांत अणगार ते, सुवर्णपात्र अनुमान San १० ॥ सम्यग्दर्शन शुन्नमन, हादशव्रतना धार॥रजत पात्र सरिखा कह्या, सर्व गृही सुविसार Sen ११ ॥ चोथे गुणगणे जिके, वर ते शुइ सदैव, ते श्रेणीक परे कद्या, ताम्र पात्रसम balजीव ॥१२॥ मिथ्यादृष्टि लोक सहु, मदादिपात्रसम नक्त ॥ मार्ग अनुसारी मार्गना, किणश्क गुण
संयुक्त ॥ १३ ॥ पंचास्रव आसक्त नित, अनृत मद नन्मत्त ॥ तत्वमार्ग पराङ्मुख, कह्या अपात्र प्रमत्त ॥ १४ ॥ नूख पिपासा पीडिया, दुखियाने वलि दीण ॥ दया आणि तेहने दिए, यथाशक्ति सप्रवीण ॥१५॥ नत्तमपात्र साधु कया, श्रावक मऊम पात्र ॥ सम्यग् दृष्टि अवती, जहन पात्र सुण मित्त ॥१६॥ सहस्र मिथ्यादृष्टि थकी; अव्रती कहे एक ॥ अनुव्रत्ति एक सहस्रथी,महाव्रती वर एक ॥ १७ ॥ महाव्रती एक सहस्रथी, अधिक एक जिन होय ॥ पात्र जिनेश्वर सारिखो,
॥
६॥
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| दुआ न होशे कोय ॥ १८ ॥ ज्ञान सुपात्रानय प्रमुख, जेदे दान अपार ॥ तथापि सुपात्रह दाननो कहुं इहां अधिकार ॥ ११५ ॥ सर्व सावद्यारंजना, वर्जक मुनिवर जेह ॥ सर्वोत्तम कहे तेहने, पात्र साधु गुणगेह ॥ २० ॥ ज्ञानदर्शन चारित्र तप, निर्मल आतम जास ॥ शुद्धाहार मुनिने करे, संवि नाग सो खास ॥ २१ ॥ हरिवाहन नृपनी परे, पामे जिनपद तेह | मोहतणां सुख जोगवे, ज्यां सुखनो नहीं बेह ॥ २२ ॥
॥ ढाल १ ली ॥ रसीयानी देशी ॥
जरतक्षेत्र में भूषण सारिखो, देश कलिंग इसा नाम ॥ चतुरनर ॥ इति प्रनीति नहि जिहां, प्रजा जणि लक्ष्मी सुखनुं गम ॥ च ॥ १ ॥ ज० ॥ कंचन पर्वतनी परे शोजतुं नगर कंचन पुर खास ॥ च० ॥ धण कण कंचन ऋषि समृद्धि जरयुं, जेहथि दुःख गयुं नास ॥ च० ॥ २ ॥ ज० ॥ तिणिपुरे दीपे तेजे दिनमणि, श्री हरिवाहन राय ॥ च० ॥ हरिवाहन जसरूप अनोपम, अरि सहु नमियोरे पाय ॥ च० ॥ ३ ॥ ० ॥ तास विरंचि नामे सचिवाग्रणी, धीवर आश्रित जेह ॥ च० ॥ ऋषभदेवनो चैत्य कराव्यो, सुंदर चित्रित तेह ॥ च० ॥ ४ ॥ ज० ॥ अन्यदिवस नृप जोवा श्रावतो, श्रीजिनमंदिर तेह ॥ च० ॥ शेठ धनेश्वर जिन गृहागले, दीव्रं तेहनुं गेह ॥ च० ॥ ५ ॥ ज० ॥ अधिकमहोत्सव थाय तस घरे, नारी गावे गीत ॥ च० ॥ ढोल ददामारे धुरे साहोमणा, दाने रंज्या रे चित्त ॥ च० ॥ ६ ॥ ज० ॥ श्ये देतें नृप पूबे सचिवने, एह महोत्सव रे थाय ॥ च० ॥ मंत्री नांखे रे शेक्तले घरे, पुत्र जन्म थयो राय ॥ च० ॥ ७ ॥ ० ॥ ते कारणे थाय बे वधामणां, थयो सदु सज्जन श्रानंद ॥ च० ॥ दाने मागण रलियायत कीधा, जागो सदु दुख छंद ॥ च० ॥ ॥ ज० ॥ चंद्रकिरण जिम निर्मल देहरुं, श्री जिनवरनुं देख ॥ च० ॥ नयण
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वीश
॥७॥
चकोर्र सुख फल पामीयुं, समकित पाम्यो रे विवेक ॥ च० ॥ एए ॥ ज० ॥ नमन करी जिनवर प्रतिमानणी, आणी शक्ति अपार ॥ च० ॥ श्राव्यो राजा मंदिर आपले, घरी प्रभु हृदय मोकार ॥० ॥ १॥ ० ॥ बीजे दिन प तिहां कणे सांजल्यो, करतां आक्रंद रे लोक ॥ च० ॥ रायें प्रकस्मात् श्रवणे सांजब्युं, दुखीया करतारे शोक ॥ च० ॥ ११ ॥ भ० ॥ राय कहे तदा मंत्रिने पीटें कुठें रे एम ॥ च० ॥ काले इहां नत्सव दीठो हतो, आज आक्रंद करे केम ॥ च० ॥ १२॥०॥ सचिव कहे सुत काले थयो हुतो, मरण पाम्यो तिल आज || च ॥ ते माटे ए शेट अपुत्रियो, | विश्यां एनां रे काज ॥ च०||१३|| || करे आक्रंद मिली सहु एनणी, वचन सुणीने रे तास ॥ च० ॥ राजा हृदय संवेगे पुरीयो, मनमें थयो रे नदास ॥ च० ॥ १४ ॥ जोग संयोग अनित्य संसारना, सुख ते दुखनां गम ॥ च० ॥ काचा सुखसुं राच्या प्राणीया, राजा ध्यावे रे आम ॥ च० | ॥ १५ ॥ ज० ॥ श्री धनेश्वरसूरी पधारिया, तिले अवसरें तिरों गाम ॥ च० ॥ नव्यजनांबुज बोधवा, दुख संतप्तरे विश्राम ॥ च० ॥ १६ ॥ ज० ॥ मुनिपतिने आव्या वंदननणी, बहु | परीवारे रे राय ॥ च० ॥ ते आागलें आपे धर्मदेशना, जेथी नवदुख जाय ॥ च० ॥ १७ ॥ ज० ॥ जोग तिहां जय रोगतलो घणो, सुख तिदां कायानी जीत ॥ च० ॥ वित्त विषय जय पावक नृपतलो, मानें ग्लाने रे जयरीत ॥ च० ॥ १८ ॥ ज० ॥ जयनादें रिपुनो जय जाणी, वंशे प्रकुलीन नारीरे ॥ ॥ च० ॥ दासजी जय निज स्वामितलो, शाहने जय निशाचारी रे ॥ च ॥ १७ ॥ ज० ॥ कायाने जय जमराणाथकी, सहुने जय बे रे जोय ॥ च० ॥ जय वैराग्यनली कोइनो नही, जेदश्री शिवसुख होय ॥ च० ॥ २० ॥ ज० ॥ जिम नारी स्वप्नांतर सुत जणि, दरखे
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॥ ए७॥
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मृत थयेरे खिन्न ॥ च ॥ तिम ए सुख संसारतणां सहु, सुणी जिनहर्ष महाजन ॥ चण baln २१॥ न ॥ सर्वगाथ ॥ ३ ॥
॥दोहा॥ नृप अवसर पामी कहे, नगवन् करो प्रसाद ॥ शेठ धनेश्वरने घरे, किम यो विषाद ॥१॥ गुरु नांखे राजें सुण, पूर्व कर्म फल तेह ।। सघला प्राणी नोगवे, मोहचढे मन जेह ॥२॥ शेठे णे नव पागले, धर्मार्थ धन त्याग ॥ जीव घणा संतापिया, तहेनां फल महानाग ॥३॥त्रण
सुन्नट मोहनृपतिना, मिथ्यात्व मान शोकाख्य ॥ पीझ्या सघला प्राणीया, मदोन्मत्त परित्नाष्य sany॥ मुंगाणा मिथ्यात्वमें, कृत्याकृत्य अजाण ॥ पशु नपल तरु श्रेणीने, माने करी प्रमाण॥५॥
॥ ढाल जी ॥ हंगर जले दीगे में शत्रुजातणो ॥ ए देशी ॥ al ॥ नावावर्ते मोहित आतमां, मिथ्यादर्शन मंत्री तेणेरे ॥ देवगुरुधर्म शुश्तत्वथी, थाये पराङ्: Salमुख जेणे रे ॥ ना० ॥ १॥ रोगविष रिपु हणे दुःख नणी, जगमांहे एकवार रे ॥ पण जन्म
सहस्र मिथ्यात्व ए, आपे दुःख अपार रे ॥ ना ॥ २ ॥शंकर ब्रह्मा हरि देवता, सर्वज्ञ हीन नीरागरे ॥ निश्चय प्राकृत मनुष्यश्री, असमंजस वृत्ति सरागरे ॥ ना० ॥ ३॥ निशदिन नारी पासे रहे, लोकतणी नहि लाज रे ॥ तेहने देव करी नमे, देव मिथ्यात्व महाराजरे ॥ ना ॥ ४ ॥ ब्रह्मवत जे पाले नहि, करे षटकाय आरंन्न रे ॥ मूढ ते माने गुरु करि, तरवा नवसमुश असंन्नरे ॥ ना ॥५॥ ५ ॥ धर्म सारंभ जिहां देख तो, रात्रि नोजन नहि त्याग रे ॥ लक्ष्य अन्नदय जाणे नहि, दुर्गति जाएवा मागरे ॥ना ॥६॥ रंक माणस पण निजन्नणी, मान पूस्यो महामृढ रे ॥ नूपथकी अधिक लेखवे, मेले नहि निजरूढ रे ॥ना ॥ ७ ॥ शौर्य मद षे
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वश
ए
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साहमो, रूपमद देपण संधिरे ॥ काममद नारी दर्शित दुवे, विजवमद एह जात्यंध रे ॥ जाण ॥ ८ ॥ शोक संग्रस्त चैतन्यता, हृदयथी जाय विवेक रे ॥ धन थोडे गये रांक ज्युं, रुदन ते करे अनेक रे ॥ मा० ॥ ए ॥ मोहराजाना भटथकी, तुरत मुकावे नर तेह रे || शरण करी जिनवरतणुं, दुस्तप | तप तपे जेह रे ॥ १० ॥ इष्ट गये सुख भ्रष्ट थये, कष्ट आवे निकट जोय रे ॥ श्रमूढ मनयुक्त समता नरया, वैराग्यानरण तप होय रे ॥ भा० ॥ ११ ॥ एहवी देशना गुरुतली, सांजली मोहश्री जीत |रे ॥ राय विरतो जवनोगथी, ज्ञानितणी एह रीत रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ राज्य देश निज पुत्रने, नृप गृह्यो संयम भार रे ॥ राजऋषि जोइ टाले सहु, चारित्रना अतिचार रे ॥ जा० ॥ १३ ॥ वादशांगी जणी उत्साहथी, सौम्य शीतल सुविनीत रे । समिति गुप्ति शुद्ध सांचवे, परम गुरु नपरे प्रति | रे ॥ जाणं ॥ १४ ॥ एकदिन देशनामें चाल्यो, वीश स्थानक अधिकार रे ॥ मुनि हरिवाहन सांजल्यो, पाम्यो दर्ष अपार रे, जा० ॥ १५ ॥ अन्न पाणी निज आणिने, मनश्री नक्ति धरि राग | रे | उत्तम मुनि गुणवंतने, साधु करे संविभाग रे जा० ॥ १६ ॥ ते लहे जिनतणी संपदा, तृतीय भव संयमी होय रे ॥ मुक्तितणां सुख भोगवे, जन्ममरणतणां दुःख खोयरे ॥ जा० ॥ १७ ॥ गुरुवचन एहवां सांजली, राजऋषि अभिग्रह लीध रे ॥ अन्नपानादिक सदु साधने, करूं संविभाग गुणनीध रे ॥ जा० ॥ १८ ॥ श्रहार करेवो पढे सही, नगरयो जे न ब्ये कोय रे ॥ जे संविभाग करे नहि तेहने सिद्धि न होय रे ॥ जा० ॥ १९ ॥ साधु निक्षा जे ये साधुने, देइ बहु आदरमान रे ॥ दान सदुमांदे अधिकं कह्यं, धर्मतयूं सुखदान रे ॥ जा० ॥ २० ॥ गढवासी मुनि जे होवे, जे करे नहि संविनागरे ॥ तेह नदरज्जर जिन कह्या, कदे जिनदर्ष महानागरे ॥ जा० ॥ २१ ॥ सर्वगाथा ||५||
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DEDICA
॥ दोहा ॥
निजगवास साधुने, करे सदा संविभाग ॥ अन्नपानं औषध प्रमुख, प्रापे आणी राग ॥ १ ॥ सुरपर्षदमे अन्यदा, चमरे कीधी प्रशंस || संविभाग कर्त्ता मुनि, नावे एहने अंश ॥ २ ॥ साधुरूप माया करी, सुर सुवेल इनाम ॥ करुणोज्जित आव्यो तिहां, करवा परीक्षा ताम ॥ ३ ॥ श्रीदरिवाहन राजऋषि, श्रीपुर पत्तन ताम ॥ मायावी निसदी करी, आव्यो तेरो गम ॥ ४ ॥ नक्तपान विहरी करी, आव्यो मुनिवर तेह ॥ तपनुं करवा पारगुं, की देह गुणगेह ॥ ५ ॥ ॥ ढालत्रीकजी ॥ मनोहर हीरजी रे । ए देशी ॥
तिमी निसी करि पेगे, अन्न पान सहु दीधुं || पण मनमे नदुवो अबाध ॥ १० ॥ धन धन साधु जी रे, जसु गुण समुद्र अगाध ॥ वलि नवीन आहार निमित्ते, गयो उत्तम मुनिराय ॥ वो हरि गुरु प्रागले आलोइ, बेगे करिय सजाय ॥ ध० ॥ २ ॥ तेटले देवगति प्रति दुसह, निर्वि - वेकी देव || वेदन मुनि देहे नपजावि, निर्दयनी ए टेव ॥ ६० ॥ ३ ॥ वेदन वेग अंग में जाली | महामुनीश्वर केरी ॥ खेद करण लाग्या गुर्वादिक, मनमांहे अधिकेरी ॥ ध० ॥ ४ ॥ वैद्योपदिष्ट श्रीगुरु आझाए, राजऋषीश्वरकाज || औषध शीघ्र गृहिना घरथी, लेइ श्राव्या ऋषिराज ॥ ६० ॥ ५ ॥ राजऋषीश्वर न लिये नेषज, गुरु कहे न लियो केम ॥ हरिवाहन मुनिवर कर जोमि, श्रीगुरुने कहे एम ॥ घ० ॥ ६ ॥ पुण्यपात्र सुपात्र कोइक मुनि, तेहने दीधा पांख ॥ मुजने औषध कर घटे, जो वेदन होय लाख ॥ ६० ॥ ७॥ संविभाग जे दुतो स्वामी, तर्जुनहीं प्राांत ॥ एह शरीर पके तो परुजो, मुजने बे नीरांत ॥ ६० ॥ ॥ चोराशी लाखमांहे जीव ए, कियां शरीर अनंत ॥ पण श्री जिनवर धर्म न पाम्यो, चनगतिमांहि नमंत ॥ ६० ॥ ॥ मूलोत्तर गुणदोष लगावे, खंगे
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जिनवर था। त्रिविध त्रिविध पचखीने जांजे, तेहने दुर्गति गए ॥ ६० ॥ १०॥ पोताना प्रातमनों ज्ञेही, प्राणी याये जेह ॥ चिंतामणि सरखुं व्रत लेइ, मूके मूरख तेह ॥ ११ ॥ घ० ॥ वार घणी बहु ठाकुर कीधा, आपण घरी निजशीष । पण त्रिभुवननो स्वामी माथे, धरयो नहि जगदीश ॥ ६० ॥ १२ ॥ तेहनी आणा जो लोपीजें, किम तरियें संसार ॥ तेमाटे व्रत एह न मेलुं, करूं प्राणपरिहार || ध ||१३|| संविभागं सुख जोग निदान, मुनिने होय सदीव ॥ धर्मधारिने जे नर आपे, धन्य तिके जगजीव ॥ ६० ॥ १४ ॥ संविभाग व्रतथी जे दुवो, बाहुनामा मुनिराय ॥ जरत भरत क्षेत्रनो स्वामी, नत्तम जोग लहाय ॥ ० ॥ १५ ॥ नंदिषेण दुकर तप करतो, मास मास नितमेव ॥ संविभाग व्रती सुख पाम्यो, जोग लह्या वसुदेव ॥ ध० ।। १६ ।। अधिक अधिक वेदनसुं मुनिनो पीमयो ताम शरीर । तेणे असुरे कृतांत कीधी, मुनिमनमांहि सधीर ॥ घ० ॥ १७ ॥ पण ते राजऋषीश्वर तेणे, संविभाग व्रत सार ॥ मूक्युं नहि पोतानी शकतें, गुरुने विनय विचार ॥ ६० ॥ १८ ॥ संविभाग व्रत आपदमांदे, मूक्युं नहि हितकाम ॥ तेहनो नाव तेहवो जाली, प्रगट थयो सुर ताम ॥ ६० ॥ १५ ॥ सुधा वृष्टि ते उपर कीधी, असुर ययो नृपशांत ॥ उपशमी तत्क्षण सुर कीधी, वेदन जे मरणांत ॥ ६० ॥ २० ॥ प्रणमी राजऋषीश्वर पदयुग, स्तवना करी अपार ॥ चूकाव्यो पण तुं नवि चूको, निजव्रतथकी लिगार ॥ ध० ॥ २१ ॥ निजस्वरूप कही कर जोकी, विनवे सुर सूरीश ॥ संविभाग व्रत निश्चल पाल्यो, शुंफल लघुं जगीश ॥ ६० ॥ २२ ॥ बांध्यं कर्म तीर्थंकरके रूं, | गुरुकहे इसे ऋषिराय || देव गयो पोताने स्थानक, नक् प्रणमी पाय ॥ ६० ॥ १३ ॥ बहुदिवसलगे चारित्र पाली, टाली संयमदोष ॥ संविभागव्रत शुद्ध आराधी, कीधो सद्गतिपोष ॥ ६० ॥ २४ ॥ संविभाग व्रत मुनि आराधी, लह्यो अच्युत सुरलोक || महाविदेहे जिनपद लदेशे, नमशे सुरपति
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Idlलोक ॥ध ॥५॥ सांजलि व्रत हरिवाहन नृपर्नु, पालो व्रत संविनाग॥ तीर्थंकरपद जेहश्री पामो, Relकहे जिनहर्ष सराग ॥ध ॥ २६ ॥ इति पंचदशस्थाने पात्रदानोपरि नरवाहननृपकथानकम्॥१५॥
॥दोहा॥ | अथ षोडश थानकविषे, श्रीअरिहंत प्रधानाचार्योपाध्याय मुनि, बालक वृद्ध ग्लान॥१॥तपसी चैत्यश्रीश्रमण, संघादिक दश एहसिम्यक्त्वे पूतातमा, मुनि श्रावक गुणगेह॥शानिर्मल निज आशय करी, जैन वचन धरि संच ॥ ए दशनो विधि पूर्वके, करवो वैयावच्च ॥ ३ ॥ नत्तम गुणधारीतणो, करे वेयावच सुन्नाय ॥ पमवार बीजो सहु, पण वेयावच नजाय ।। नागो पमयो समयथकी, नासे
तसुचारित्र।। सुत नासे अवगुण थकी, पण वैयावच पवित्र ॥५॥करी जिनादिकने विषे, वैयावच INEIमन शुद्ध ॥ जीमूतकेतु तणी परे, लहे जिनवर श्रिय वृक्ष ॥६॥
॥ढाल १ ली ॥ वीर वखाणे राणी चेलणाजी ॥ एदेशी॥ | जंबूदीपानिध दीपमें जी, दक्षिण जरत सुगंम ॥ पुष्पपुर नामें अति दीपतुं जी, अन्नत श्रियतणुं ठाम ॥ जं ॥१॥ राय जयकेतु जयमित्रनेजी, शत्रुने केतु समान ॥ पृथुपरे प्रथितप्रन्न नूतले जी ॥ मुख सरस्वती करदान ॥ ज ॥२॥ राणी जयमाला राजा घरेजी, शील गुण
कला सुजाण ॥ तास अंगज जगपती समो जी॥ वंशमें नगीयो नाण ॥ ज० ॥३॥ राजसगुणे Naकरि राजतो जी, जीमूतकेतु इणे नाम || धारणहार जूनारनोजी, रूपें हरावियो काम ॥ ज॥॥
लावण्य पुस्यगुण जेहनाजी, देखी देखी पुर नार ॥ सफल करे ढग आपणीजी, मोही जिम पिक सहकार ॥जंणा॥ पामियो बाप प्रसादथीजी, जुवराज जोबनमांहि॥निर्मल सद्गुणे आपणाजी, लोकरंज्या शुभ राहि ॥ जं॥६॥ पृथ्वी तल प्रसिद्ध चिंहु दिशेजी, रत्नस्थलपुर अनिराम ॥पद्मपरें
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सद्मलक्ष्मी वसेजी, सुरसेनराय इणे नाम ॥ ज ॥ ७ ॥ तेहनी पुत्री जसोमतीजी, विश्व कैरवशशी
रूप॥ सौनाग्य विद्याकलाजी, अक्षितीय नारती रूप ॥ ज० ॥ ॥ जीमूतकेतु नृप सुत तणाजी| ॥श्॥ रूप गुण विश्व विख्यात ॥ वनवनें किनरी गावती जी, आनंद धरी दिनरात ॥ जं॥॥सांनली
कीर्ति यशोमती जी, करग्रहण मन धरी आश ॥ अवर वर ते वांडे नही जी, वरुं तो वरु तास ॥ जं॥ १०॥ आशय कुमरीनो जाणीने जी, नृप कीयो विचार ॥ स्वयंवर मंझप मांझीयें जी, नृप
हां आवे अपार ॥ जण ॥ ११ ॥ जमूतकेतु पण तेमीयेंजी, फेरीयें मनतणी आधि ॥ तुरत मंझप करावीयोजी, टालवा सकल असमाधि ॥ ज० ॥ १२ ॥ देश देशाधिप तेझीया जी, तेमीयो जीमूतकेत ॥ बापनी आज्ञा शिर धरी जी, चालियो सैन्य समेत ।। जण ॥१३ ॥वीयो कुमर
ते पुरनणी जी, सिधपुर नगरनी पास ॥ कुमर मूर्ग लही ततखिणे जी, श्रयो सहु साथ नदास ॥ Vela ॥ १५ ॥ मंत्री प्रमुख मुख्य पुरुषंजी, मंत्र औषध नपचार ॥ तेहनें काजे कीधां घणाजी, salच्य व्यय कर्या अपार ॥ जंग ॥१५॥ दान कुपात्रे दीधां परेजी, फोक सघलां थयां तेम ॥ सम्यग
कान पखें क्रिया जेम. फल दिये नहि कम ॥ ज॥१६॥ सरी कलंकदेव तेणे समेजी.नरीगुण नदधि समान ।। तास पुण्योदयथी तिहांजी, आव्या आधार श्रुत ज्ञान ॥ जंग ॥ १७ ॥ तास प्रनावें
मूर्ग गश्जी, नठियो कुमर तत्काल । वांदवा राजसुत प्रावियो जी, श्र जिनहर्ष ए ढाल || जंग Ram १७ ॥ सर्वगाथा ॥ ॥
॥दोहा॥ | तेहनणी प्रतिबोधवा, श्रीगुरु करुणावंत ॥ आपे सम्यग देशना, सुणे कुमर गुणवंत ॥१॥ जीव कषाय वशे करी, आर्न रौप दुर्ध्यान ॥ सर्व योनिमें प्राणीया, नमे पशु जीम रान ॥२॥
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नहि योनि नहि जाति ते, नहिं गम कुल आचार ॥ जन्म मृत्यु न थयो जिदां, जीव अनंती वार | ॥ ३ ॥ पापी निर्दय रूप विण, नारकथकी नर होय ॥ कपटी नित नूखालुओ, तिर्यंच श्राव्यो जोय ॥ ४ ॥ मृतागत मानी सुबुद्धि, ज्ञानविवेक सहित ॥ सुन्नग प्राइ कवि श्रीयुतो, स्वर्गागत शुभचित्त ॥ ५ ॥ रौध्यान कषाय बहु, द्वेषी विषयासक्त ॥ बह्वारंज परीग्रही, पंचेंशिय बध रक्त ॥ ६ ॥ मांसाशी वासी नरक, उद्यत कूट प्रयोग || मायावी वाली कटुक, अविरति तिर्यग योग ॥ ७ ॥ सदयी दानी निष्कपट, सदाचार गुणधार ॥ सत्यवचन भाषी सदा, नरगति पामे सार ॥ ८ ॥ पात्रदान भाषा मधुर, पूजा रुचि सुविनीत ॥ सावधान सम्यक क्रिया, सुरगति बांधे प्रीत ॥ ढाल २ जी ॥ ऋषभदेव मोरा हो । ए देशी ॥ राग मारुकी ॥
एहवी दीधी देशना प्रांते कर जोमी हो ॥ श्राचारजने विनवे, नृपसुत अंग मोमी हो ॥ १ ॥ कहे गरु बुको प्राणी हो, हितसुं हैमे धरजो ॥ जिनवरनी वाली हो || कहे || अकस्मात् वी इहां, मूर्खों मुज स्वामी हो ॥ श्ये कर्मे करी ते कहो, पुढं शिर नामी हो ॥ क० ॥ २ ॥ गुरु गुण अगर इम कयुं, सुण चित्त नमाहे हो ॥ परितपत्तन परगको, धातकी खंगमांहे हो ॥ क० ॥ ३ ॥ गर्व खर्व तुंगातमा, दुर्वासा कोपी हो । यति चर्यायें प्रमादियो, त्रयगारव नपीहो ॥ क० ॥ ४ ॥ साकेतपुरप्रतें अन्यदा, श्रीसूरिसंघाते हो | तृषाकांतसहु मुनि थया, मारगें। जाते हो ॥ क० ॥ ५ ॥ श्रासनग्रामे गुरु कहे, मुनि पाणी ब्यावो दो ॥ बालग्लानादिककारणे, आणीने पावो हो ॥ कण् ॥ ६ ॥ एह वचन गुरुनां सुणी, क्रोधें ऋषि जरीयो हो । जिम तिम बोले गुरुनणी, अवगुणनो दरी यो हो ॥ क० ॥ ७ ॥ स्थविरे वार्यो तेहने, मृदु मीठे वयले हो ॥ पल ते न समे क्रोधथी, जाणे पावक नयरों दो || कण् ॥ ८॥ सद्गुण माणिक पुरीयो, गुणानिधि सुप
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॥
हाणा हो॥ एहवा पण केश्क होवे, करकश पाषाणा दो॥ कण ॥ए ॥ धरतो ष गोपरें; क्रूर मानस क्रोधी हो ॥ गणतजी जीम वनमें मुओ, रौध्यान विरोधी हो ॥ कण् ॥१॥ सातमी
नरकावनि गयो, नारकीमां दुखीयो हो ॥ तेत्रीश सागर आयुखे, साधुषी न सुखीयो हो ॥ Naक ॥ ११॥ क्रोध करे कारण विना, मुनि हीले निंदे हो ॥ बांधे कर्म ते चीकणां, नवमांहे कष्टे
हो ॥ कण् ॥ १२ ॥ श्म नवमें नमीयो घणुं, जिहां तिहां दुख पायो हो ॥ सहतां परवश वेदना, alबहु कर्म खपायो हो ॥ कण् ॥ १३॥ कौटुंबिक ग्रामें अयो, मुनि मासोपवासी हो ॥ दान निदान val सुखनुं दीयु, धरी चित्त नल्हासी हो ॥ कण् ॥१॥ तेहतणा सुप्रन्नावथी, तुं नृप कुल आव्यो हो।
तेजस्वी सखीयो अयो, नत्तम फल पायो होकण॥१५॥ न्याय वृत्ति लक्ष्मी लही, सत्पात्रय जोमी हो॥पुण्यानुबंधी पुण्यश्री, पामी सुख कोमी हो॥क॥१६॥शेषकर्म गुरुषथी, मूर्ग तुज आवी हो| sal
देह व्यथोदय ए अयो, नोगवीयें कमाइ दो॥क ॥१७॥ मुनिवंदनथी ते हवे, सुद् कर्म खपाव्यां Sal Salहो ॥ पुण्योदयथी ताहरा, सुख सन्मुख आव्यां हो ॥ कण् ॥१७॥ष न धरीये केहसु, गुण देखी Salलीजें हो ॥ वली विशेष साधुसुं, किम ष धरीजें हो ॥ कण् ॥ १५ ॥ एहवी गुरुवाणी सुणी, Sal
नृपसुत प्रतिबुशे हो ॥ जातिस्मरण पामीयो, निरोगी शुशे हो ॥२०॥ मंत्रौषध व्याधीनणी,
करीये व्यवहार हो ॥ पण थाये कर्मदयथी, दायिक रोग करार हो ॥ कण ॥ २१ ॥ दान दया Iriतप जिनतणी, पूजा विधियें कीधी हो ॥ उष्टकर्मनो क्षय होवे, गुरुवंदन कीधी हो।कणाश्॥जिमू-|॥॥
तकेतु संवेगीयो, निजहाथे की, हो ॥ लुंचन चारित्र नजलु, गुरुपासे लीधुं हो ॥ क० ॥२३॥ NIदुक्कर तप कीरिया करे, सदगुरुनी पासेहो ॥ नवसायर नतारवा, तरणी जिमनासे हो ॥ कण
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॥ २४ ॥ निजपति संयम आदर्यो, सांगली मनरंगे हो ॥ चारित्र लीधुं यशोमती, जिनहर्ष सुरंगे हो ॥ क० ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ॥ ५८ ॥
॥ दोहा ॥
योगवान राजर्षिए, जण्या अंग अगियार || प्रज्ञा पदानुसारिणी, धरतो विनय विचार ॥ १ ॥ पूर्वनणतां श्रन्यदा, सांजली युं सुविलास ॥ विंशतिधानक तप तयुं, फल एवं गुरुपास ॥ २ ॥ सेवे पद बंदु मानसुं, जिनेादिक वीस ॥ सद्दर्शन मनस्थिर करी, पद पामे जगदीश ॥ ३ ॥ गुरु नपाध्याय शिष्य वली, बाल वृद्ध तपयुक्त ॥ संघग्लान कुलगा विषे, आणी आदर नक्ति ॥ ४ ॥ अन्नपान औषध विविध, वसति वस्त्रासन पात्र ॥ वैयावृत्य शोरुपपदें, करे सदा शुद्ध गात्र ॥ ५ ॥ श्री जिनेंद्र पदवी लहे, अद्भुत प्रौढ प्रकाश ॥ सुरनर असुराधिपतणे, शिर पदकज रज तास ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ३ जी ॥ देशी जलालीयानी ॥
वैयावच करवो हवे रे, दशधा फोरवी जोररे ॥ सदामया ॥ अरिहंत भक्ति पूतातमारे, ग्रह्यो निग्रह घोर रे || || वैयाव० ||१|| रायऋषीश जगीशसुं रे, करे वैयावच विशुः इरे ॥ स० ॥ बालग्लानादिक साधनो रे, गुरुनो विशेष सुबुइरे ॥ स० ॥ वै ॥ २ ॥ ई५ प्रशंसा अन्यदा रे, कीधी सना मोझार रे ॥ स० ॥ वचन सुणी चित्त चमकियोरे, सोम लोकपाल तिवार रे || स० ॥ वै ॥ ३ ॥ नू आव्यो ते देवतारे, करवा परीक्षा तासरे ॥ स० ॥ रुप की युं ग्लान साधुनुं रे, कृश दाहज्वरसास रे ॥ स० ॥ वै० ॥ ४ ॥ वसती मांहे ते राखीयो रे, बीजुं करी मुनि रूप रे ॥ ॥ मुनिवर जिहां करे गोचरी रे, तिहां गयो जोएवा स्वरूप रे ॥ स० ॥ वै० ॥ ५ ॥ नृकुटी शीष चावीने रे, | बोले वचन कठोर रे ॥ स० ॥ रे कपटी मायावी या रे, रे जिनशासन चोर रे ॥ स० ॥ वै० ॥ ६ ॥
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वीश
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नूततणी परें बोलतो रे, मुख बूटे दीये गाल रे ॥स ॥जेहने रीश न नपजे रे, तेहने पण चढे
काल रे ॥ स ॥ वै॥७॥नानुश्रेष्ठीने घरे गयो रे, मुनिवर सुगुण निरीह रे ॥ स ॥ सनोजन १०॥
गुरु कारणे रे, लेवा नणी अबीह रे ॥ स ॥ वै॥७॥ देखी राजऋषि प्रतें रे, तीखे वचन तामरे ॥सणा नालासरीखे आकरे रे, क्रोध नपावण काम रे ॥ सणावै ॥ ॥पण मुनिवर कोपे नहीं रे, IN समता सागर साध रे ॥ स ॥ तेहने वचने आवीयो रे, वसती धरतो समाध रे ॥ स ॥वै ॥१॥ वैयावच ग्लाननो रे, गुरु करे एहवी वाण रे॥ स ॥ वैद्य तेमी देखामीयो रे, जेह चिकित्सह जाण रे ॥स ॥ वै॥ ११ ॥ ज्वरोपशांति नणी कह्यो रे, पाकां फल सहकार रे ॥स०॥ तेहा
रस मरिचा जिसो रे, आणी द्यो सुखकार रे ॥ स ॥ वै ॥ १२॥ गुरु आदेशे मुनिवरु रे, ते | Iral आणेवा काज रे॥ स०॥ पुरमें नमे घरे घरे रे, शेठ मंत्री नर राज रे॥ स ॥ वैण् ॥ १३ ॥ sal
पण क्यांही पाम्या नहीं रे, देवतणे अनुन्नाव रे ॥ स ॥ विधिसुं श्म जातां थकां रे, सघलेही मुनिरायरे ।। स ॥ वै ॥ १५ ॥ करी ग्लानमायामुनि रे, कोपाटोप कराल रे ॥ स० ॥ मुख
॥१५॥ कर। राजऋषिनी तर्जना रे. दुसह दुर्वचनेह रे ॥ स ॥ प्रणमे चरण कमल मुदा रे, ग्लानतणा मुनि तेह रे ॥सण ॥ वैNal NElu १६ ॥ अमृत शीतल वयणडे रे, क्रोध गमे मुनिराय रे ॥स ॥ न थयो वैयावच तुम तणो रे, NE salमुज पोतो अंतराय रे ॥स ॥वै ॥ १७ ॥ अवधिज्ञान प्रयुजीने रे, जोवे सुर मन नावरे॥
स॥ कंचन सरीखोए सहीरे, सहे बेदन ताव धाव रे॥स॥वै ॥ १७ ॥ प्रगट थयो दुष्टातमाशा रे, कर जोमी लोकपाल रे॥सा वचन कहे राजर्षिने रे, चरणे लगावी नाल रे॥सणावै॥१॥ तुं सहु ऋषिसिर सेहरोरे, तुं महोटो अणगार रे ॥ स ॥ तुजसरीखो कोइ नही रे, तुं समता
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नंमार रे ॥ स ॥ वै॥२०॥ तुजगुण स्तुति इंडेकरीरे, ते साची थर आज रे ॥ स ॥ कीधी परीक्षा ताहरी रे, माया करी मुनिराज रे॥ स ॥ वै॥१॥ पंमित तो ने सो गमे रे, तपसी पण हो अनेक रे ॥ स ॥ ग्लानतणो वेयावची रे, तुज सरीखो तुं एक रे ॥ स ॥ वै ॥२॥ निक्ति करे जे ग्लाननी रे, नक्त पानौषध आत्म रे ॥ स ॥ नक्ति कीधी तेणे माहरी रे, तीर्थंकर
कहे वाण रे ॥स ॥ वै॥ २३ ॥ देव माया दूरे करी रे, प्रणमी गुरु मुनि पाय रे ॥ स ॥ देव । valखमावीने गयो रे, देव मन हर्ष न माय रे ॥ स॥ वै॥२४॥ दशपदनं वेयावच करी रे, अज्य
तीर्थंकर कर्म रे ॥स॥ आराध्यो संयम नलो रे, तत्पर वैयावृत धर्म रे ॥ स ॥ वै ॥ २५ ॥ करी अणसण आराधना रे, मुनि श्रया सुर विजयंत रे ॥ स ॥ जीमूत ऋषि तिहांथी चवी रे, श्रीकठ विजय महंत रे॥ स ॥ वै ॥ २६ ॥ श्राशे जगपति जिनवरु रे, सुरपति नमशे पाय रे ॥ सण ॥ समवसरणमें परषदा रे, बारह मीलशे आय रे ॥ स ॥ वै॥ ३७॥ यशोमती पण संयती रे, चारित्र निरतीचार रे ॥ स॥ तिहांहिज देव अश् चवी रे, याशे प्रन्नु गणधार रे ॥स ॥ वै ॥२॥ जीमूतकेतु व्रत सांजली रे, जिनवर कर्म निबंध रे ॥ स ॥ यत्न करे वेयावच विषे रे, कहे जिनहर्ष प्रबंध रे ॥ स ॥ वै ॥ श्ए ॥ सर्वगाथा ॥ ए३ ॥ ॥ इतिषोमश स्थाने वैयावचकरणे जीमूतकेतुकथानकम् ॥
॥दोहा॥ अथ सतरमुं थानक हवे, कहियें तास स्वरूप ॥ तत्र सकल गुण रत्ननिधि, जगमोहनी अद्भुत
१॥श्रीजिनोक्त वय यक्त अति. चनविह धर्माराधिनक्ति सहित श्रीसंघने. नुपजावी समाधि solu॥जे निराश संसारथी, तीर्थ कहीजें जास ॥ जे सरिखो बीजो नहि, जिनवरवदे उल्लास॥३॥
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स्थान
वीश जेहथि शुनफल शाश्वतुं, गुण जेतणा अनंत ॥ पूजा अर्ची नावसुं, ते श्रीसंघ महंत ॥४॥ देव
नहि जिनसारिखो, पद नहि मुक्ति समान ॥ क्षेत्र न को संघ सारिखं, त्रिभुवनमांहि प्रधान ॥१०॥
व्यथकी ने नावथी, नाखी विविध समाधि ॥ नवियणने हितकारणे, जिनवर गुणे अगाध ॥६॥ Hal दुखिया दीना जीवने, मनवांबित दाणेद ॥ नपजावियें संतोष जे, व्यसमाधि तेह ॥ ७ ॥ सारण
वारण चोयण, देश थिर थापेह ॥ जे ज्ञानादिक गुणविषे, नावसमाधि तेह ॥ ७ ॥दुखना पीड्या तप करे, यथा तथा पण नीच ॥ पर समाधिविषे धरे, ते गिरुवा जग जीव ।। ए ॥ जगपूजित श्रीसंघने, वे समाधि करे जेह ॥ लहे पुरंदरनी परे, तीर्थकरपद तेह ॥ १० ॥
॥ ढाल ली। प्रादुणमानी गीतनी ॥ए देशी। | सांभलजो रे पुरि वणारसी प्रौढ, विजय ऋद्धि विराजती ॥ सांग ॥ विजयसेन नूपाल, तेहनी कीर्ति राजती ॥ सां ॥१॥ पद्ममालाऽद्भुत वास, धर्मतणी मति अति घणी॥ सां पद्ममाला अन्निधान, पटराणी राजातणी॥ सांग ॥२॥लोग पुरंदर राय, मधुकर मोह्यो । मालती, ॥ सांग ॥ मालती कुसुम समान, बीजी राणी मालती॥ सां० ॥३॥ पद्ममालानो रे पुत्र, कुमर पुरंदर दीपतो ॥ सांग ॥ रुप पुरंदर जास, रतिपतिने पण जीपतो ॥ सां॥msal नारी हृदय नन्माद, नपावण यौवन चमयो।सांणासकल कलानो जाण, विधिना निजहाथें घमयोusa सांग ॥ ५ ॥ क्रीमा करण कुमार, वन संचरियो एकदा, ॥ सांग ॥ वनवासि एक साधु, देखी चरण
नम्यो मुदा, सांग ॥ ६॥ आगल बेगे आय, मुनि आपे रे देशना सां० ।। मीठी अमिय समान, NIसुणतां सुख लहियें घणां । सांग ॥ ७॥ एहज धर्मनुं बीज, धर्म कनक ए कसवटी ॥सां ॥ Salदुक्कर एही जास, परस्त्रीथी मन साहटी। सां॥७॥ धन्य तिके नरनारि, रूप निहाली शोन्नता
०३॥
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सांग नार जरया वृष जेम, चाले महियअलमलपता ॥ सां॥ ए॥संतोष निजनारी, जे विरता परनारिशुं॥शीलें कर ग्रहि तेह, यति सम कहियें धारशुं॥सांण॥१॥ सांभलि मुनि उपदेश, राजalसुत सुकृतोन्नति ॥ सांग ॥ परदार परित्याग, व्रत आदरी शुन्नमति ॥ सांग ॥ ११ ॥ वलि मुनि
वर कहे तास, सदर्शन अन्वित सदा ॥ सांग ॥ सफल दायक होय, शील व्रत प्रालो मुदा ॥ सांण Nam१२॥ सदर्शन दृढमूल, धर्ममहीरुह अन्निनवं॥सांग तत्वसद्दहणा रे रूप, निसर्गाधिगमोदनवम्॥
सां॥ १३॥ तिम तिम जिननी रे जोर, नक्ति युक्ति नावें करी॥ सां॥ सम्यक दर्शन शुद्ध, तिम तिम थाये बहुपरें ॥ सा ॥ १५ ॥ चित्त जिनेश्वर मांहि, नमस्कार जिनवरन्नणी ॥ सांण हृदय जिनेश्वर ध्यान, धर्मबीज कडं जगधणी ॥ सांग ॥ १५॥ आदरियुं गुरुपास, नृप सुसम्यक्त्व ॥ सांग ॥ चिंतारत्न अनर्घ्य, ते सरिखो गुण आगलो ॥ सांग ॥१६॥ प्रणमी मुनिना पाय, आव्यो नत्सुक अश् घरे ॥ सांग ॥ परदारा परिहार, व्रत सुदर्शन परें ॥ सांग ॥१७॥ त्रिविध त्रिविध निशदीश, पाले कुंवर धर्मातमा ॥ सांग || टाले व्रत अतिचार, व्रत धारीमें उपमा ॥ सां
॥ १७॥ नान्दी बहेन समान, मोटी माता सारिखी। सां॥श्म लेखवे सुजाण, इम ब्रह्मव्रत salपाले अखी ॥सां ॥ १५॥ परनारी विषवेल, परनारी जाणे राक्षसी ॥सां ॥ सामो किणहि रे Vवार, जोवे नहि मन नल्लसी, ॥ सांण र ॥ नारीकेरा रे वृंद, जोवे कुंवरने प्रेमसुं ॥ सांग कहे जिन हर्षकुमार, सन्मुख जोवे नहि किसुं॥ सांग ॥ २१॥ सर्वगाथा ॥३१॥
॥दोहा॥ .. अपरा माता मालती, अद्भुत रूपनिधान । एकदिवस दीगे कुंवर, कुंवर अनुमान ॥१॥ राग वस्यो राणीतणा, हृदय सरोवरमांहि, ॥ जिम जिम देखे सामुं हो, वाधे विरह अथाह ॥ २॥
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॥१०४॥
वीश कुमरती देखी कला, चंदनी यौवन पूर ॥ ह्रदय राग सायर वध्यो, राणीने जरपूर ॥ ३ ॥ विरह व्यथाथी उपनी, पीमा राणी देह ॥ किमे करी शमे नहीं, सूतां कदली गेह ॥४॥ बेटी राणी मालती, नाखंती निःश्वास ॥ करमाली जिम मालती, वेदन विवाय नदास ॥ ४ ॥ कामातुर थर कामिनी, चिंते चित्त मोझार ॥ कुमर इहां आवे किमे, तो सफल करूं अवतार ॥ ५ ॥ राणी आदेश करी, ब्यावी घाइ बोलाय ॥ गौरवसुं नृप सुतनणी, वचन कहे चितलाय ॥ ७ ॥
॥ ढालरजी ॥ माखीना गीतनी देशी ॥
राणी बोलावे हवे, रूमा पधारो राज || कुमरजी ॥ चितरां चिंतवियां हवे, फलशे सघलां काज कुमरजी ॥ मैं तो थासां, अरज करावां ॥ अराबां पाये पमाबां, मानो माहरा बोल ॥ कुम० ॥ ए क ॥ १ ॥ थारा दरिसारि घणेरी, मांनें ढुंती नूल || कु० ॥ दीगे दर्शन रानलो, नागी सघली ना ॥ २ ॥ कु० ॥ नपगारी जगतला, परदुख जंजण दार | कु० ॥ वचन किसुं कहां लाजरा, मेलो द्यो एक वार ॥ कु० ॥ ३ ॥ ० ॥ देह बलेबे माहरी, काम अनि रे जोर || कु० ॥ संगमजल शीतल करो, थाने करूं निहोर || कु० || ४ || में० || मेदेर करो मो नपरे, हुतो याहरी दास || कु० ॥ थाने खोलो पाथरां, पूरो अबला आश || कु० ॥ चंडे, चंदन चिंतामणि, उत्तम नर, जलधार ॥ कुण् ॥ लोकतणा नृपगारने, सरज्यां सरजणदार ॥ कुण् ॥ ६ ॥ ० ॥ श्रासरिखा साजण जिके, किम पीहडे महाराज || कु० ॥ घणो का थाने | किसो, राखो माहरी लाज || कु० ॥ ७ ॥ राजा तो गरढो दुआ, नावे माहरे दाय ॥ कु० ॥सूरत थाहरी मम वसी, प्रेम अमीरस पाय || || || || श्राव्यो वे ते प्रादुणो, जोब नियुं दिन चार ॥ कु॥ राख्योहि रहेशे नहि, ज्युं परदेशी पार || कु० ॥ ए ॥ ० ॥ थाइरो जोबन फिले रह्यो, मे पण
० ॥
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॥१०४॥
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जन
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बाली वेश || कु० ॥ ब्यो लाहो जोबनतणो, जोबन गये दरवेश || कु० ॥ १० ॥ ० ॥ मेंदो लाहा नीलां रुडां, वार न सूकातांह || कु० ॥ तन धन जोबन प्रादुलो, जासी देखी ताह || कु० ॥ ११ ॥ मे० ॥ हुं तो सुगंधी मालती, तो नमर सुजाण ॥ कुण् ॥ ब्यो रस अवसर पामिने, थाने सोप्या प्राण || कु० ॥ १२ ॥ मे० ॥ चतुर कदी चूके नहि, अवसर खेले दाव || कु० ॥ अवसर जाणे नहि जिके, सो मूरखरा राव ॥ कुण् ॥ १३ ॥ ० ॥ थें मारा शिरसेहरा, थें मारा हमारा हार || कु० ॥ थें मारा यौवनरा धणी, थें माहरा आधार ॥ कुण् ॥ १४ ॥ मे० ॥ बोलो बोल सुहामला, बोलो रे माने को || कु० ॥ प्रणबोल्यां सरशे नहि, जोडो अविचल जोम ॥ कु०॥ ॥ १५ ॥ ० ॥ कहले काज विलो किस्यो, थाने चतुरसुजाण ॥ थोडाही मे प्रीब जो, बुद्धितणा महिराण || कु० ॥ १६ ॥ मे० ॥ थाने मे मेलां नहि, प्राणें करशां प्रीत | कु० ॥ मेलुने मेले नहि, ए डाह्यारी रीत || कु० ॥ १७ ॥ मे० ॥ कामी कामवशे पडया, जिम तिम वचन चवंत | कु० ॥ कामी लाजे पण नहि, इम जिनदर्ष कहंत || कु० ॥ १८ ॥ सर्वगाथा ॥ ५६ ॥
॥ दोहा ॥
एहवां वचन सुणी करी, राणीतणां कुमार ॥ अमृत वाणी लाजसुं, प्रतिबोधे तिशिवार ॥ १ ॥ परनारीरति मातजी, कुंची दुर्गति हार || मुल अधर्मतरुतलो, तिल करवो परिहार ॥ २ ॥ परनारी संगति थकी, वंश कलंकित श्राय || इहां पण लघुता पामियें, परज्जव नरके जाय ॥ ३ ॥ परनारी माता सडु, तुं प्रत्यक्ष मुज मात ॥ हुवे वज्रगतिनी परें, संगमथी नस्म सात ॥ ४ ॥ गुरुनारी नारी पिता, चातनारि सुतनार ॥ अधम पुरुष कामी तिके, पहुंचे नरकमोकार ॥ ५ ॥ ढुंतो तादरो दीकरो, तुंतो माहरी माय ॥ मुजश्री एहवो मातजी, किम श्राये अन्याय ॥ ६ ॥ विष खाइ
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ठाण
{ ՃԱՆ
मरवू नवं, पमवू अग्नि मोकारि॥पण ए काम न कीजीयें, जूवो हृयद विचारि॥ ७॥ एहवां वचन स्यान कही कुमर, नमी तेहना पाय ॥ आव्यो पोताने घरे, रूठी अपरा माय ॥७॥
॥ ढाल ३ जी ॥ वात केम करोगे राज बेमले नार मरागं ॥ ए देशी ॥ कंचुक काम्यो हृदय वलूर्यो, नखें करी निज राणी ॥ नयणे आंसु धारा झरती, पावसऋतु जिम valपाणी ॥१॥ राणी कोपत्नराणी लाल, कुमरे कह्यो न कीधो॥ सूती जर एकांते पापणी, राजा तिहां
कणे आवी॥ मीठे वचने तास बोलावे, बोले नहि बोलावी ॥ रा ॥२॥ राजा कहे तुजने कुणे दुहवी, किणे तुज आण न मानी॥ मुज आगले कहे दुख तुज मननु, किम सूती गनी॥रा॥३॥a रायतणो आदर देखीने, बोले गदगदवाणी ॥ लामकवाया पुत्रतणी तमे, जुओ ए निशाणी ॥ रा०॥ ४ ॥ हुं मंदिरमा सुती अबला, आवी वलग्यो मुजने॥ गम कुगम न जुवे कामी, शुं कहीये पीयु तुजने ॥ राण॥ ५ ॥श्म कही राजाने नरमाव्यो, प्राणे क्रोध चमाव्यो ॥ वालो ते पण Sal थयो दुवालो, दुष्मन पणो जगाव्यो॥रा॥६॥ सुत रुमो पण मांही कुलदरा, जे अपजस जोमे ॥ वहालुं सोनुं शुं करीयें तीण, काननणी जे त्रोमे ॥ रा० ॥७॥ राजकुमरत्नणी अप-al मान्यो, देशवटो तस दीधो ॥ खमंग पाणि लेने चाल्यो, पुण्य सखा कीधो ॥राण ॥ ॥ खुशी
थs पापणी मनमांहि, हियमे हर्ष नराणी ॥ कुंवरतणी माता मूर्गणी, ए शी एकह कहाणी॥राण stal ए ॥ उख नरी रोवे दहदीशी जोवे, वहे हैयामें पाली ॥ मुज सुतने परदेश कढावण, चरित्रा कियां चिरकाली ॥रा ॥१०॥ साहस करतो मन थिर करतो, दुख कीसुं नवि आणे ॥ स्वारथ जास न होवे वैरी, थाये ते श्म जाणे॥रा॥११॥ दर्जय दर्नय पल्त्रीपतिने, जीती चाल्यो आगें ॥ नांदीपुर नद्याने पहोतो, जोतां अद्भुत लागे ॥ रा॥१२॥ ते वनमांहे ऋषनदेवनो, चैत्य
कण, जे अपजसने
Voltoए॥
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कनकमय सोहे॥ दंम कलश ध्वज लहके नपरे, सहु जननां मन मोहे ॥राण ॥१३॥वली जलमें स्नान करीने, पवित्रकमल दल ले ॥ श्रीजिनवरनी पूजा कीधी, नाव नक्ति चित्त दे ॥राण॥१॥ एक कुसुम पण जो जिनवरने, नावें करी चढावे ॥ नर सुर शिवसुखनां फल तेहना, करपल्लवमां
पावे ॥ रा ॥ १५ ॥ वृक्ष तणी शाखा अविलंबी, एक कुसुम फल पावे ॥ चित्रलून जिनपदें सम-IN Saर्पित, सफल अनेक लहावे ॥ रा ॥ १६ ॥ नलटन्नावें पूजा करीने, प्रणमी जिनवर पाया ॥
शोना प्रनुनी नयणे जोवे, तिमतिम हर्ष सवाया ॥ रा० ॥ १७ ॥ तेटले तिहां पुरुष को आव्यो, सुंदर सुर आकारे ॥ शोनित वस्त्र सकल आन्नरणे, पुण्यातम गुणधरे ॥रा ॥१॥ कुमर पुरंदर तिहने नमियो. विनय करीमन नावे ॥ मीठे वयरो अमिय समाणे, तेह नणी बोलावे॥राणा
बेजण बेसी मांहो मांदे, वात करे हितकारी ॥ तेपुरुष नृप सुतने नांखे, विकसित वदन विचारी ॥al Salरा ॥ २० ॥ सिद्धगिरे हुं वसुं महाराय, विद्या सिह कहायो॥ विद्या अधिदेवी आदेशे, विद्या देवा
आयो ॥ रा० ॥ २१ ॥ सरवारथनी दाता विद्या, त्रैलोक्य स्वामिनी नामें ॥ तुष्ट श्रइ नृपसुतने का आपे, साधन पूर्वक पामे ॥रा ॥॥ दशांश होम विधि लखजापy, कुमर पुण्य प्रनावें ॥ कहे | जिनहर्ष सिह यज्ञ विद्या, पुण्यं सहु सुख पावे ॥रा ॥२३॥ सर्वगाथा ॥७॥
॥दोहा॥ । एक चित्त सुकेत नदय, कृतज्ञता, गुरुनक्ति ॥ सुचिंता प्राये पुरुषने, विद्या लिहि प्रसक्ति ॥ १ ॥ अक्षयश्री विद्याथकी, श्र कुमरने ताम ॥ गौरी वेश्याने घरे, रहे नंदीपुर गाम ॥२॥ हेम पंचसय
व्यय करी, रहेतो वेश्याघरेह ॥ कीर्ति नगरमें विस्तरी, दाने वधे सनेह ॥३॥ दाने दुर्जन पण नमे, Nal दानं नृप दे मान ॥ दाने नूत वशे दुवे, दाता मेरु समान ॥५॥ नृपने घोमा वाहला, सतीनणी
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वीश नरतार ॥ जलधर वहालो मोरने, दुनीयां ने दातार ॥॥ लीलाए वसंतां तिहां, श्रीनंदन मंत्रीश ॥
स्थान प्रीति तेहना पुत्रसुं, अश् अधिक निश दीश ॥६॥ १०६॥
॥ ढाल ४ थी। राजा जो मीले ॥ एदेशी ॥ एकदिन कुमर पुरंदर वीर, नगरमांहे बजावे प्रवीण ॥ मनरी मोजसुं ॥ बे मित्र करे रे विनोद,NEL मनरी मोजसुं॥ए आंकणी॥ तेह अवसरें कोलाहल जोर, नृप मंदिरमें सुणीयो शोर ॥ म ॥msal Salसुरिंदनणी पूरे तिणी वार, विविधायुधधर सुन्नट अपार ॥ म० ॥ मिलीया ने नृपमंदिर एह,शाका
रणे ना कहो तेह ॥ म ॥२॥ मंत्रीसुत नांखे तेणीवार, सनिल तुजने कहुं विचार ॥ म Nal
सुरराजपुत्री गुणधार, बंधुमती शारदअवतार ॥ म॥३॥ क्रीमंती श्चाए तेह, निज आवासोपरि sd Sailसुसनेह ॥ म ॥ ले गयो व्योमचारी कोय, अवर एहवी कन्या न होय ॥ म ॥ ४॥ सोहे sal
रुप यौवन सौन्नाग्य, जेह परणशे तेहनां नाग्य ॥ म०॥ एहवी कन्या नयणें जोय, कामीपुरुष । INन मेले कोय ॥ म ॥ ५ ॥ सुन्नट करे तेणे ए अवाज, नृपकन्या मूकावण काज ॥ म ॥ पण
ते खेचर गयो आकाश, मूकावानी खोटी आश ॥ म ॥६॥ मित्रमुखे सुणी एह विचार, कुमर पुरंदर कहे तिणीवार ॥ म ॥ हुं गेडावं कन्या तेह, रायन्नणी जर कहे गुणगेह ॥ मण॥॥मंत्री-IN सुत गयो राजाधाम, देखी राये बोलाव्यो ताम ॥ म ॥ कहे ने मंत्री सुत गुणवंत, कन्या किम वलशे मतिमंत ॥ म० ॥७॥ विनय करते कहे महाराय, तमने दाखं सत्य नपाय ॥ म ॥od महारो मित्र अ शिरताज, ते कुमरी आणे महाराज॥ म ॥ ॥ तेमाव्यो देश बहु मान, नर्वी-Ramesh पतियें सुर समान ॥ म ॥ आदर देश् नृप निजपास, बेसामी कहे मीठी भास ।। म ॥१॥ कन्या धन्या ए मुजवीर, जो तुं आणे साहसधीर ॥ म ॥ तो तुजने परणावं तेह, तुजमुज वाधे परम
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| सनेह ॥ ० ॥ ११ ॥ हुं प्रणुं दिन सात मोजार, तुजपुत्री राजन श्रवधार ॥ म ॥ नृपागल ए प्रतिज्ञा कीध, राजा जाएयुं कारज सीध ॥ ० ॥ १२ ॥ विश्वस्वामीनी विद्या ध्यान, प्रसन्न करीने रच्युं विमान ॥ म० ॥ ते उपर बेसी तेलीवार, कन्यास्थानक गयो कुमार ॥ म० ॥ १३ ॥ वैताढ्य पर्वत रंगरसाल, गंध समृद्धि नगर सुविशाल ॥ म० ॥ परनारी लंपट मन कूरु, दुराचार खेचर मणिचूक | म० ॥ १४ ॥ करी नंदीश्वर पर्वतजात्र, पाठो वलीयो तेह कुपात्र ॥ म० ॥ मंदिर नपरें आव्यो रे जाम, कन्या रमती दीठी ताम ॥ म० ॥ १५ ॥ घाली विमान लइ गयो बाल, तिहां पुरंदर गयो तत्काल ॥ म० ॥ ततखिण आणी राजकुमार, नृप नपजाव्यो दर्ष अपार ॥ म ॥ १६ ॥ राजसुता देखी वर तेह, पाणी ग्रहणानो थयो सनेह ॥ म० ॥ राजा राणी पुगी प्राश, परणावी निजपुत्री तास ॥ म० ॥ १७ ॥ कुमर पुरंदर प्रत्यक्ष काम, कुमरी रतिरूपें गुणधाम ॥ म० ॥ नाग्य संजोगे सरखी जोड, विधि जोमी मत लागो खोड ॥ ० ॥ १८ ॥ लोक कहे ए नर पुण्यवंत, तो ए कुमरीनो थयो कंत ॥ म० ॥ कुमरीनुं पण वाध्युं सौभाग्य, जिस ए वर पामी | महानाग ॥ ० ॥ १७ ॥ पुण्यथकी अधिकं नहीं कोय, पुण्यतणां फल प्रत्यक्ष जोय ॥ म० ॥ पुण्यथकी परीगल ऋद्धि होय, पुण्यें माने सघलां लोय ॥ म० ॥ २० ॥ घरथी काढयो राजकुमार, पुण्यें पाम्यो ऋद्धिपार ॥ म० ॥ पुण्यतणां फलनो नहीं अंत, कहे जिनदर्ष पुण्य बलवंत ॥ म० ॥ २१ ॥ सर्वगाथा ॥ ११४ ॥
॥ दोहा ॥
राजा रहेवा प्रापियो, सप्तभूमि श्रावास ॥ सामग्री सह जोगनी, प्रिया सहित सुखवास ॥ १ ॥ जोग जोगवे पंचधा, पाम्यां नृपसनमान ॥ सकल मनोरथ पूरवे, लोकनी देश मान ॥ २॥ विद्या
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वीशण Salधर मणिचूम पण, नृपाग्रणी थयो तेह ॥ परम पुरंदरनो सखा, पुण्योदयथी जेह॥३॥आप परा
स्थान ॥१७॥
क्रमथी थयो, भासुर नाग्य कुमार ।। विद्याधरनी श्रेणीमें, लही प्रसिदिअपार ॥॥ मणिचूमान्वित नृप सुतन, शाश्वत तीरथ जेह ॥ नंदीश्वर आदिक सदु, विधिसुं वंदे तेह ॥ ५ ॥ अवधिज्ञानधर अन्यदा, समवसर्या पुरगम ॥ सूरी नूरी सद्गुण नदधी, मलयप्रन इणनाम॥६॥राय पुरंदर कुमर Nal सुं, आव्यो वंदनकाज ॥ बेठी आगल पर्षदा, धर्म कहे मुनिराज ॥ ७ ॥
॥ ढाल ए मी॥ जाटणीना गीतनी देशी ॥ ___ श्रीगुरुद्ये नपदेश सुहामणो, सहुको सुणे चित्त लाय ॥ मीगे शीतल अमृत सारिखो, सहुने NA salसुणतां आवे दाय ॥ श्री० ॥ १ ॥ पापविषय विष सारिखो आकरो, हिंसादिकथी जेह नत्पन्न ॥
शिवसुखदायक अमृत सारिखो, सेवो धर्म सदा शुन्न मन || श्री० ॥२॥ सम्यग धर्मरहित जे नर हुवे, क्रूरकर्मकारी अविचार ॥ विष वृतोपम ते नरने कह्यो, प्रेख्यो मनुष्य अवतार ॥ श्री० ॥३॥ नवकोटी पण लहेतां दोहिलो, नरन्नव पुण्य पसाय ॥ कर्मतणे अनुसारे कह्यो, प्राणीने निश्चे जिनराय ॥ श्री ॥४॥ सुकृत जिणे कांश कीधुं नहीं, सेव्यो बहुलपणे परमाद ॥ तीन वरग साधन SA न कयाँ, जिणे अवकेसी तरू सम निसवाद ॥ श्री०॥५॥ जिणे तमोमय वली बांध्युं सही, पापानबंधी पाप ॥ ते तो सौनिकादिकने जाणवो, विषतरु जिम ये दुख संताप ॥ श्री० ॥ ६॥ मिथ्यावि मिथ्यात्ववशे करे, जे पुण्य पापानुबंधी ॥ तेहने म्लेबादिकने कह्यो, किंपाक तरु समसंधी ॥ श्री ॥ ७ ॥ पुण्यानुबंधी पुण्य वखाणीयें, जीणे सुकृत कृत नूर ॥ तेहनो मनुष्यजन्म एहेवो कह्यो, सुरतरु सारिखो गुणपूर ॥ श्री॥७॥ प्राणी सघला नपरें कृपा, सुविधं पूजे श्रीजिनराय॥ valशुभन्याय वृत्ति जे सांचवे, पुण्यानुबंधी पुण्य कहेवाय ॥ श्री ॥ए । सहु प्राणी नपरें समता धरे,
॥१०
॥
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दान सुपात्रें ये चित्त लाय || ज्ञान क्रियायोग राखे निर्मला, पुण्यानुबंधी पुण्य कदेवाय ॥ श्री० ॥ १० ॥ विरमे परनुपताप थकी सदा, पाले आवश्यक षटूकाय । शुक्ललेश्या शुभध्यान हृदय धरे, पुण्यानुबंधी पुण्य कहेवाय ॥ श्री ॥ ११ ॥ श्री जिनधर्म विराधे नहीं कदा, निरवाय निरुवम जय सात ॥ जरतेश्वर राजानी परें लहे, पुण्यानुबंधी पुण्य विख्यात || श्री ||१२|| निरोगादिक गुणयुत महर्धिया कोणी कनी परें पापसंयुक्त || पापानुबंधी पुण्य होये सही, अज्ञान निष्टयकी गुरु उक्त ॥ श्री ॥ १३ ॥ जे पुण्य पापोदयश्री दरिद्री, दुखीया पण पामे जिनधर्म ॥ पुण्यानुंबंधी पाप कहीजीयें, तेथी पामे सुरनर शर्म ॥ श्री० ॥ १४ ॥ अति जारी कर्मा पापी नरा, निर्घृण निर्दय धर्म विहीण | दुखीया पाप करण नजमालीया, पापानुबंधी पाप अखी || श्री ||१५|| धर्म दिधा ते समकीत जालीयें, साधु श्रावकनो कह्यो जगमा || तेहनुं मूल सम्यत्व वखाणीयें, आठ गुणें करी शुद्ध प्रमाण ॥ श्री० ॥ १६ ॥ यावत् समकित श्राये निर्मलुं, धर्मतयुं फल शुभ सुखवृद्धि || अनुकूल वायुथकी कर्षातली, श्राये बहुपरें सम्यक्त्व वृद्धि ॥ श्री० ॥ १७ ॥ नमतां नवचक्रमांदे प्राणीयें पाम्यां जन्म मरणनां दुख || दुखगमा जिनधर्म संजारीयें, जेहथी लही यें अविचल सुख ॥ श्री० ॥ १८ ॥ धर्मकी वांवित संपत्ति मले, धर्मथकी पूगे मन आश ॥ धर्मथकी सज्जन मेलावमो, धर्मश्री लहीयें लील विलास ॥ श्री० ॥ १५ ॥ चिंतामणि सुरतरु सारिखो, कामगवी सुरघट अनुमान ॥ कहे जिनदर्ष अधिक एहथी घलो, आपे शिव सुख देव विमान || श्री ||२०|| सर्वगाथा १४१ ॥
॥ दोहा ॥
इत्यादिक देसा सुणी, गुरुमुखथकी कुमार ॥ तदा शुद्ध सम्यवत्वसुं, आदरीयां व्रत बार ॥ १ ॥ श्री जि अर्चन पवित्र, श्राद्धधर्म सुरवृक्ष ॥ कमरें आरोपीयो तदा, गुरुवचने प्रत्यक्ष ॥ २॥ नठयागुरुवांदी करी
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वीश
॥१०८॥
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जिनमंदिर महाराज ॥ कुमरसंघातें आविया, धर्मे वासित काय ॥३॥ समुइदत्तनामा अन्यदा, शेट करण व्यापार | गयो पुरी वाणारसी, लेइ वस्तु अपार ॥ ४ ॥ एक दिवस नृप मंदिरें, नृप आगल कही वात | शेठ पुरंदर कुमरनी, सघली कही विख्यात ॥ ५ ॥
॥ ढाल ६ वी ॥ मुनि मानससर हंसलो ॥ ए देशी ॥
राय विजयसेन नरपती, सांगली कुमर वदंतोरे ॥ हृदयहर्ष नरपुरीयो, मिलवा मन नलसंतोरे ॥ रा० ॥ १ ॥ लेख लखी निज पुत्रने, शीघ्र बोलावण काजोरे ॥ चाकर कर देइ मोकल्यो, श्राव्यां सरशे सदु काजोरे ॥ रा० ॥ २ ॥ लेख नृपतिनो कुमरने, आप्यो हाथे लेइ तामो रे || कागल वांचीने गहगह्यो, रहेवानो नहीं कामो रे ॥ रा० ॥३॥ कुमर नृपतिने पुर्वी करी, दयिता साथे लेइ रे ॥ विद्यासुं त्रैलोक्य स्वामिनी तास प्रजावे रचेइरे ॥ रा० ॥ ४ ॥ दिव्य विमाने बेसी करी, लेइ खेचर परिवारोरे ॥ नमतां तीरथ वाटनां, धरतां दर्ष अपारो रे ॥ रा ५ ॥ पुरी वालारसी प्राविया, बाप तले पाय नमीया रे || गुणवंत ऋद्धि पामीने, न तजे विनय नपमिया रे ॥ रा० ॥ ६ ॥ कुमर पुरंदर थापीयो, नत्सवसुं निजपाटें रे ॥ मलयप्रन मुनिपति कने, व्रत लीधुं गहगायें रे || रा० ॥ ७ ॥ कुमर पुरंदर पुरनली, विद्याने अनुभावे रे ॥ राजाधिराज पदवी लही, अनामी पाय लगावेरे ॥राणा ॥ ग्राम ग्रामे पुरवर पुरे, जिन प्रासाद करावे रे | उत्सवसुं वित्तव्यय करी, मूरती मांहे मंडावे रे || राण संघ वात्सल्य करे सदा, सहुजनने नपगारीरे ॥ पूजा जिनेश्वरनी करे, पोषे पात्र विचारीरे ॥ |रा० ॥ राज पालतां बहुदिन यया, आवती जरा नीहाली रे ॥ तेज शरीरापहारणी, आवी समता परनाली रे ॥ रा० ॥ ११ ॥ अंगज बंधुमतीतलो, नाम जयंत कुमारो रे ॥ राज्यपदे तेह थापियो, उत्सव करीय अपारो रे ॥ रा० ॥ १२ ॥ पांचसें राज साथे ग्रही, दीक्षा नलट आणी रे, पासे
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स्थान
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पोताना पितातणो, नमीयोजई गुणखाणी रे ॥राण ॥१३॥ अंग अगियार लणी करी, विधिपूर्वक गुणखाणी रे ॥ स्थानकान्निग्रह आकरो कीघो, सांजली गुरुवाणी रे ॥ राण ॥१४॥नोजना
वस्त्रादि दाने करी, संघनि आपद टालो रे ॥ तीर्थयात्रादिकने विषे, प्राज्य साहाज्य देखालो रे॥ REरा ॥ १५ ॥ साधु साध्वीने नक्तादिके, श्राइ श्राही बहुमानो रे ॥ करतो कृत्य यथोचित, नप-INE SAIजाव्यो समाधानो रे॥ रा॥१६॥ स्थानक इणी परे सतरमें, जिनपति कर्म निदानो रे ॥ जाव-III
जीव आराधियो, राजऋषि शुन्नध्यानो रे ॥रा ॥ १७ ॥ पुंकरगिरिनी यात्रानणी, संघ चल्यो देनेरी रे ॥इं आव्यो तिणे अवसरे, करण परीक्षा मुनिकेरी रे ॥रा ॥ १८ ॥ ज्ञानक्रिया
करि शोन्नतो, धनव्यय करे सुपात्रे रे ॥ श्रीसंघ इणिपरे संचरे, पादगामी गिरिजात्रे रे ॥राणारा salखरच खुटां सहु संघना, श्रया सहु लोक सचिंता रे ॥ श्रीमलयप्रन सूरिनां, चरण नमी गुणवंता
रे ॥रा ॥ २०॥ कर जोमी करे विनति, मुनिस्वामी मुने दाखो रे ॥ करो समाधि श्रीसंघने, संघ सीदाताने राखो रे ॥रा ॥ ११॥ साधु पुरंदरने तदा, तास देखाइयो गणधारी रे ॥ चरण नमी राजऋषितणां, कहे जिनहर्ष विचारी रे ॥ २२॥ सर्वगाथा ॥ १६ ॥
॥दोहा॥ | विनय करी राजर्षिनो, बोले गदगदवाणी ॥ तीर्थनणी संघ चालियो, हियमे नलट आणी ॥१॥
चोरें संध्यो संघने, पासे नथि पाथेय ॥ आपद टालो संघनी, मुनिवर शंबल देय ॥ ॥ लब्धि घसी Ra तपथकी, तुजमाहे मुनिराय ॥ संघ वात्सल्य करो हवे, जेहथी बहु फल प्राय॥ ३॥ माननीय
अरिहंतने, श्रमण संघ गुणवंत ॥ करवी सांनिध तेन्नणी, एम विनति करंत ॥ ४ ॥ देव गुरु संधी कारजे, चूरे चक्री सैन्य ॥ कोप्यो मुनीश महातमा, पुलाकलब्धी जैन्य ॥ ५॥
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वीश
१०८॥
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॥ ढाल ७ मी ॥ आवो गरबे रमिये रूमा रागसूं रे ॥ ए देशी ॥
गुरुनो आदेश पामी करी रे, कांई आणी आणी धर्मनो प्रेम रे ॥ जूवो ने लब्धि यतीतली रे, श्रीसंघमांहे आवियारे, कांइ जंगम सुरतरु जेमरे ॥ जूवो० ॥ १ ॥ कां तपनी शक्ति अपार रे, तपस्वी मांदे तपें करी रे, कांइ लब्धि अनेक प्रकार रे || जूवोने लब्धी यतीतणी रे ॥ ॥ २ ॥ कीधी वृष्टि सुवर्णनी रे, कांइ लब्धि थकी जस लीध रे ॥ जू० तीर्थ जात्रीक सडु लोकने रे, कां यथेत्र संबल दीध रे ॥ जू० ॥ ॥ ३ ॥ साधुनी संयति जीरे, कां जक्तपानादिक शुद्ध रे || ग्रामथकी आली करी रे, कां जक्ति करे महाबुध रे ॥ जू० ॥ ४ ॥ संघोपतापी चोरने रे, कां क्रूराशय सहु जेह रे ॥ जु० ॥ मुनि यंत्री राख्या तिरों रे, कांइ प्रतिबोधी मूक्या जेह ॥ जू० ॥ ५ ॥ तीर्थगामी संघ रंगसूं रे, कां पाम्यो परम प्रमोद रे ॥ जू० ॥ तास नमी आगल चल्यो रे, कांइ करतो विविध विनोद रे || जू० ॥६॥ संप्रेमी श्री संघने रे, कां आवे श्रीगुरुपास रे ॥ जू० ॥ मनमां जावे भावना रे, कांइ धरतो चित्त उल्लास रे ॥जू ॥७॥ जन्मतयूं फल तिथे गृह्यं रे, कांइ तेहज मुनि माननी करे ॥ जू० ॥ संघनक्ति कीधी जेणे रे, ॥ कां निज शक्ति तहकीक रे || जू० ॥ ८ ॥ संघ जिणंद सूरीसरू रे, कां साधु महागुणवंत जू० ॥ भक्ति करे बहु मानसूं रे, कांइ दर्शन शुद्ध होवंत रे ॥ जू० ॥ ए ॥ एहवी धरतो जावना रे, कां नाकीश्वर तिथिवार रे || जू० ॥ कांइ स्वांते विशुद्ध जाली करी रे, कांइ प्रगट थयो हितधार आरे ॥ जू० ॥ १० ॥ चरण नमी स्तवना करी रे, कांइ नक्ति घरी सुरनाय रे ॥ ज० ॥ मलयप्रन मुनिराजने रे, कां पूवे जोमी हाथ रे ॥ ० ॥ ११ ॥ वात्सल्य संघतणुं कियुं रे, गुणसायर ऋषिराज रे ॥ ज० ॥ तेहनुं फल शुं पामशे रे, कांइ गुरु कहे सुण राज रे, ॥ जू०॥ १२ ॥ तीर्थंकर
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पद संपदा रे, कां अर्जित इणे महानागरे ॥ जूए । संघवात्सल्य करतां थकां रे, कांश साधु धरी मन राग रे । जूण् ॥ १३ ॥ देवस्वामी श्म सांजली रे, कांश मुदित करी गुणग्रामरे ॥ ॥ चरण कमल गुरुनां नमी रे, कांश सुरपति गयो निजगम रे ॥ जुग ॥ १४ ॥ आराधी शुन्न नावशुं रे,
कांश सतरमुं थानक सार रे॥ ज० ॥ प्रांते महाशुक्र नपन्यो रे, कांइ शक्रपदोपम धार रे॥ ON Salm १५ ॥ बंधुमती पण साधवी रे, कां शुरू संयम प्रतिपाल रे॥जूण॥ तिणहिज दवलोके थयो रे, Halकांश देवता काक कमाल रे ॥ ॥१६॥तिहांधी चवी विदेहमां रे, कांश सुर नावी तीर्थराजरे Valmजा बंधमती सरते होशे रे, कां गणधर आद्य समाज रे ॥ज॥१७॥ एम पुरंदर रायनं रे.
कांश संघगुरु नक्ति समाधि रे ॥जूण॥ सुणी वृत्तांत सोहामणुं रे, जिनहर्ष स्थानक आराधि रे INElu जू० ॥ १८ ॥ सर्वगाथा ॥११॥
॥ इति सप्तदशस्थानके पुरंदरनृपकथानकम् ॥
॥अथ अष्टादशस्थानक प्रारंनः॥
॥ दोहा ॥
| अष्टादश थानकविषे, सुविवेकी नर जेह ॥ अपूर्वश्रुत ग्राही सदा, हुवे निर्मल देह ॥ १ ॥अंगा|नंगनेदे करी, श्रुतना दोय प्रकार ॥ अंग आचारांगादि तिहां, अनंग पूर्व अवधार ॥ २ ॥आवश्यक नत्तराध्ययन, कल्पाध्ययनादीन ॥ ए नपांग कहियें सदु, गृहि सूत्रार्थ कुलीन ॥ ३ ॥ ज्ञान अपूर्व गृह्या नणी, कर्मनिर्जरा होय ॥ तत्वातत्व प्रबोधथी, समकित निर्मल जोय ॥॥ कर्म अज्ञानी
खेपवे, वर्ष कोमि बहुजेह ॥ ज्ञानी श्वासोबवासमें, तुरत खपावे तेह ॥ ५ ॥ठ अठमदशमादिकें, Salकरे अज्ञानी सोश ॥ एहथी अनंतगुणी दुवे, ज्ञानी मुक्त पलोइ ॥ ६॥ शान बंधु कारण विना,
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स्थान
वीश
ज्ञान महातम सूर ॥ नवसमुश्तारण नणी, ज्ञान यान गुणपुर ॥ ७ ॥ सुदम बादर लोकमें,
जाणे सघला नाव ॥ ज्ञान शीखवो तेनणी, जे होय चतुरा राव ॥ ७॥ अपूर्व ज्ञान ग्रहेवा थकी, ११०॥ जिनवर पद पामंत ॥ सागर चंतणी परे, नुवनानंद महंत ॥॥
॥ ढाल पहेली ॥ चोपा ॥ इणदिज नरतसुक्षेत्र मोझार, नगर मलयपुर बहु विस्तार ॥ अमृतचं तिहां दितिपाल, शीतल अमृत चंद निहाल ॥ १॥ स्वाते ते राजाने दोय, अतिवल्लनधी वल्लन होय ॥ परनारी केरो परित्याग, परप्रार्थितपर पूर्ण सुराग ॥ २ ॥ चंकला जिम गजली, चंकला नामें निर्मली ॥d
पद्मनेत्रने अंग पवित्र, एहवी नृपने घरे कलत्र ॥३॥ तेहनो सागरचं कुमार, नत्तमवंशतको valशृंगार ॥ अद्भुत रूपकलागुणधाम, जेहने अंगे वसे अन्निराम ॥ ४ ॥ लक्षणलकित जास शरीर,
सोहे जाणे आंवे कीर ॥ लोके सहुने वहालो घणो, मान वली रायराणीतणो॥ ५ ॥ अनुक्रमें वाई
मान सुविचार, पुरयोदयथी राजकुमार ॥ यौवन याम्यो गुणनी खाण, विश्वदृष्टिमृग कानन जाणsal Bilu६॥ कीयो लघुतामें विद्यान्यास, कीधो सारदायें मुखमां वास ॥ अद्भुत तेजतणो नंमार, जाणे Salअनिनव इं अवतार ॥ ७॥ सौन्नाग्यामृत सागर नलो, सागरचंद्र कुमर कुल तिलो॥रुप निहाली
मन गहगहे, कण कण नारी विस्मय लहे॥७॥ राय निहाली सुगुण निवास, युवराज पद दीgs
तास ॥ गुण वहालो लागे सहुलणी, गुणथी प्रनुता पामे घणी ।। ए ॥ गुणश्री लहीयें आदरvailमान, गुणथी मान दिये राजान ॥ गुणथी मातपिताने गमे, गुणवंताने सहु को नमे ॥१०॥
सहुनो तेह करे नपकार, सुकृति पुंगव राजकुमार ॥ एकदिन सुत आगलें सही, किणश्क पंमितें आर्या कही ॥ ११ ॥ देश तास हेम पंचशती, ते लीधी आर्या गुणवती ॥ मनमें चिंते एह अमूल,
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लहेतां दोयतुं नंबर फूल ॥१२॥ तद्यथा ॥ अप्रार्थितमेव यथा, समेति दुःखं तथा सुखमपीह ॥ तत्त्यक्त्वा संमोहं, प्रयतध्वं धर्मएव बुधाः॥१॥अर्थ:-जेम प्रार्थना कर्या वगर दुःख आवे ने तेम सख पणा जगतने विषे वगरमाग्यं प्राप्त थाय ने.माटे हे बभिमान पुरुषो।मोहनो त्यागकरी धर्मने विषे प्रयत्न करो ॥१॥रात दिवस मनमांहि जपे, सुहणामांहि पण ते लपे॥ कण वीसारे नहीं कुमार, लोनीने जिम धननंमार ॥१३॥ मनमां पामे परम प्रमोद,युवराजा एम करे विनोद॥मनथी। महेले नहीं लिगार, मंत्राकरनी परे एकवार ॥ १५॥ लीलोद्यान गयो एकदा, मित्र सहित रमवाने
मुदा॥पूर्वजन्म वैरी तिणीवार, किणश्क नाकी हो कुमार॥१पालेश् नाख्यो सागर मांहि, नीषण Na SEलोल कलोलअगाहि ॥ क्रिया रहित गुरु प्राणी प्रेम, नव सायरमें पामे जेम ॥ १६ ॥
पाम्यो फलक पुस्योदयकरी, समकित जिम निश्चय नधरी ॥ साते दीवसे पाम्यो पार, आव्यो कुमर नवें अवतार ॥ १७ ॥ अमरदीप तिहांधी आवीया, सुर्यातप फल आस्वादीया ॥ स्वस्थ
यो मनमांहि कुमार, आर्या संन्नारी तिणीवार॥१॥सुखें नमंतां त्यां श्रीकार, फलियो दीठो एक सहकार ॥ ते देखी है गहगही, आवीने त्यां बेठो सही ॥ १५ ॥सीतल गया गुहिर गनीर, ततखिण शीतल शरीर ॥ आम्र ताहरा गुण शा नपुं, तुं तो सुरतरु कलियुगतणुं ॥ २० ॥ ताहरां फल तो अतिही रसाल, तुजने चाहे बालगोपाल ॥ ताहरा रसनो अमृतस्वाद, जमतां जमतां परमाह्लाद ॥ २१ ॥ एवा गुण आंबाना कही, कुमर विचारे मनमें सही ॥ कीहां आव्यो हुँ ए कुण गम, जाणुं नहीं हुं एहनुं नाम ॥ २२ ॥ एम चिंते कुमर मन जिसे, कन्या एक निहाली तीसें ॥ रूप अनूप जाणे आगलो, कहे जिनहर्ष हवे सांनलो ॥२३॥
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॥दोहा॥ तिरा अवसर ए कन्यका, पामी मार विकार ॥ निगरण पासो घालती, वयण कहे तिणवार ॥११॥ १॥ सहुदेव नद्यानना, सघला एकदिशि स्वाम ॥ सावधान थइ माहरी, सनिलजो कहे ताम
॥ २ ॥ नर्ता सागरचंद मुज, गुण संपूरण देह ॥ शनवतो पामी नहीं, परनव थाजो तेह ॥ ३ ॥ नाम सुणी पोतातj, हर्ष नपन्यो तास ॥ विस्मय धरी चित्त चिंतवे, विश्व मोहनी फास ॥४॥ नगी तुरत नतावलो, वेद्यो कुमरे पास ॥ सुधामधुर वाणी करी, बोलावे श्म तास ॥ ५ ॥sa
॥ ढाल २ जी ॥ बहु नेहधरी ॥ ए देशी ॥ शुं मनमें दुःख धरेने, शामाटे मरण करे ॥मनमोम धरी ॥पुढे एम कुमर सनेही,तुजने कहे Raआरति केही रे ॥ म॥१।। मुख मौनवती गुणवंती, पंकजनयणी सोहंती रे ॥ म ॥ लज्जा
करी बेठी बाला, शशिवदनी रुप रसाला रे॥ म॥२॥ तेटले विद्याधरे आवी, कोइ वचन कहे सुण नारे॥म ॥ इणि अमर हीपने राजे, सुरपुरनामें नगर बिराजे रे ॥म ॥३॥ नृप नुवनन्नानु बलवंतो, एतो नानु परे दीपंतो रे । म ॥ चंशनना तेहनी राणी, रुपे जीती इंशणी रे॥ म॥४॥हेममाला तेहनी बेटी॥ गुण लावण्य रुपनी पेटीरे॥ म ॥ अमृतचंश्नृप अंग-06 जाती, सागरचंसुं ते राती रे। म ।। ५ ॥ लीलाए वनमांहि रमेश, सुसेन खेचर गयो लेश रे॥ म ॥ यौवननो नन्माद धरंतो, कामांध दुरात्मा फिरतो रे ॥म ॥६॥ इंघ्यु करी मूकावी, तेने यम घरे पहोचावी रे ॥म खेचरमां कल सुप्राणी, नृप अमिततेज घरे आणी रे॥ म ॥७ ॥१११।। मातहना विरहागान ताती.ते राखी मरती जातीरे॥म ॥ए चंडमखी मगनयणं। हरिलक:
सारसवयणी रे॥मणा ॥ तुजआगल ए में नांखी, इण कन्या स्थिति दाखी रे ॥मणो सुपुरीस
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तुज वात सुणावो, मुज मनमें सुख नपजावो रे ॥ म॥ए। म निसुणी कुमर महाभागी, पानिज मुख कह्यो नही स्वभागी रे ॥ म ॥ निजगुण न प्रकाशे, रह्यो मौन किमपि। नवि नाषेरे ॥ मण ॥ १० ॥ हेममाला करे विचारो, ए सागरचंद्र कुमारो रे ॥ म॥ दाक्षिण्य विनय लज्जालु, निश्चय कियो विदुषी बालुरे ॥ मए ॥ ११ ॥ इणी अवसर चित्त नमाह्यो, राय अमिततेज तिहां आयो रे ॥ म ॥ विद्युतलतानामें माता, समकिता
संपतसुं राता रे ॥म ॥ १२ ॥ नृप पुत्र पवित्र निहाली, एम बोले वाणी रसालीरे॥ म॥ Raहुंनदीश्वर जिन वंदी, आवंतां मन आनंदी रे॥म 0 ॥ १३ ॥ इम मलयपुरे ए दीगे, मुज
नयणे अमिय पश्गेरे॥म ॥ ए सागर आगर गुणनो, नपगारी ए सहु जणनोरे ॥म ॥१४॥ कीगई कारण अटकलीयो. घरहंती ए नीकलीयो रे ॥ म०॥ ए इण महावनमें आयो, कुमरी पुण्य खेंची लायो रे ॥ म ॥ १५ ॥ तेमाटे एहने दीजें, ए कन्या परगावी रे ॥ म ॥ कन्याने ए वर सोहे, कन्या मन ए वर मोहे रे ॥ म॥ १६ ॥ नृप अमिततेज नन्नचारी, कन्या परणावी सारी रे ॥ म ॥ अमरापुर हवे आनीता, नत्सव करशुं तास वदीता रे॥म ||१॥ नृप नवनन्नानु हरखंतो, जामात नक्ति करतो रे ॥ म० ॥ दीधो सप्त नूमि अवासो, रहेवा ससरे नल्लासो रे ॥ म ॥ १७ ॥ ए तो हेममाला संघाते, नोगसुख तिहां दिनरात रे ॥ म ॥ सुख पाम्यो पुप्तय प्रमाणे, जिनहर्ष ते सहु जाणे रे ॥ म ॥ सर्वगाथा ॥ ५५ ॥
॥ दोहा ॥ रात्रं सुतो अन्यदा, नपामी तिणीवार ॥ किणश्क देव दुरातमा, मन धरी व अपार॥१॥नाख्यो पर्वत नपरे, श्वापद जीहां अनेक || जाण्यु ए चूरण दुशे, वैरवशे अविवेक ॥२॥ तास पुण्य अनु
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वीशण नावथी, पम्यो सरोवर मांहि ॥ पदी मरालतणी परें, निकलियो अवगाहि ॥ ३ ॥ नानूदय दुवो
जीस, सागर नमतो रान ॥ विरहें पीडयो नारीने, दुःख वेदे असमान ।। ४॥ मनमें चिंते एहवं, ॥११२॥ Nelsक दुःख नाव्यो पार ॥ बीजुं आव्युं तेटले, एवं कर्म अपार ॥ ५ ॥
॥ ढाल ३ जी॥ कोयलो पर्वत धूंधलो रे लो ।। ए देशी॥ कर्म शुनाशुन्न बांधियु रे लाल ॥ अन्यत्नवे जे जीव ॥ मोरा प्राणी ॥ न करी शके कोई अन्यया रे लाल ॥ यौवनवंत अतीव ॥ मोरा प्राणी रे ॥ कर्म ॥१॥ वजमय काया जेहनी रे लाल |
पुरुष शलाका जेह ॥ मोराण॥ कर्म विना नोगव्या श्रकी रे लाल ॥ मूकाणा नहि तेह ॥मोणाशsal REIक०॥ तो माहरो शो आशरो रे लाल ॥ई किणि ज्ञान गणाये । मो० ॥ पमती कमी
मूत्रमा रे लाल ॥ रेलामां वहि जाये॥ मो॥३॥ कण् ॥ रहेशे पण किणी परे रे लाल ॥ माहरे वियोगे नार ॥ मो॥ अशनीपात न खमी शके रे लाल ॥ कोमल कदलीसार ॥ मो० ॥ ४ ॥क ॥ अथवा आर्या में कही रे लाल ॥ते किम खोटी श्राय ॥ मो० ॥ सुख दुख बEI सङ प्राणी नणी रे लाल ॥ अणचिंतव्या लहाय ॥मो ॥५॥क ॥ श्म चिंतवी आर्यातणो रे ।
लाल ॥ अर्थ हश्यामें धार । मो० ॥ वृत्ति करे वृदने फले रे लाल ॥ पण वीसरे नहि नार ॥ मो salu६॥ कण ॥ तिहाथी आगल चालतो रे लाल ॥ पुण्योदयथी दीठ ॥ मो॥ प्रतिमाधर खेचर
मुनिरे लाल॥गण जेह मां अतीव॥मोणासागर मनि पाये नम्यो रे'लाल ॥दे बह सन्मान मो० ॥ मुनिवर पण ते आगले रे लाल ॥ धर्म कहे सुखधाम ॥ मो॥॥कणा नवमें नरन्नव दोहि लो रे लाल ॥ नत्तमकुल अवतार ॥ मो॥ तिहां वलि जिनधर्म दोहिलो रे लाल ॥ दोहिलो al
॥११शा धर्म विचार ॥ मोणाणाकण॥ वाङमय धर्म शरीरथी रे लाल ॥ वचनश्री मननो महंत ॥ मो॥
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जधन्य मध्यम नत्कृष्टता रे लाल ॥ धर्मना चार प्रकार ॥ मो ॥ तीन नेद एक एकना रे लाल ॥ सत्वांदिक चित धार ॥ मो॥११॥ कण ॥ परम श्रद्धाए नावसुं रे लाल ॥ मन वच काया विशुःला मो॥ धर्म करे कांक्षा विना रे लाल ॥ सात्विक ते कह्यो बुध ॥ मो० ॥१॥का सत्कार मानपूजारथे रे लाल ॥ धर्म करे यश काज ॥ मो॥ राजस एह कहीजीयरे लाल, कलाकांक्षी
ऋषिराज ॥मो॥१३॥क मिथ्यात्वें पडियो श्रको रे लाल ॥ करे क्रिया सहु जेह ॥मोण॥ अथवा Nalपर नजेदवारे लाल ॥ तामस सुकृत तेह ॥ मो० ॥१४ ॥ कण ॥ सात्विक सुकृत सर्वोत्तमो रे Raलाल ॥ सहु सुखनो दातार ॥ मो० ॥ त्रिधा शुद्ध नावें करयो रे लाल ॥ शालिननी परे धार ॥
मो॥१५॥ क॥ राजस सुकृत जाणिये रे लाल ॥ किंचित् शुहि वहंत ॥ मोए ॥ तेहथी स्वर्गनी संपदा रे लाल ॥ ज्ञानी एम कहंत ॥ मो ॥१६॥ कण ॥ पापानुबंधि पुण्यनो रे लाल ॥ नदय जेहथी होय॥ मो॥ तामस तेहथी कहीजीये रे लाल ॥ सांजलजो सहु कोय॥मोणार॥ जिनवरें पूजा रचे रे लाल ॥ मुनिवंदन पात्रं दान ॥ मो० ॥ सत्वथी धर्म कीधो होवे रे लाल ॥ शिवसुखन्नणी निदान ॥ मो॥१०॥ कण ॥ सम्यग दर्शन शुतुं रे लाल, क्रिया सफल सहु मान॥ मो॥ मिथ्यात्वे ते दुःखितारे लाल ॥ उगान्तरणोपमान ॥ मो० ॥ १७॥ कण् ॥ सन्निलि एहवी देसणारे लाल ॥ सागर धरिय नलास ॥ मो० ॥ श्रावकधर्म सम्यक्त्वसुंरे लाल ॥ आद
पास ॥ मो॥३०॥क०॥ गुरुवंदी आगल चल्यो रे साल ॥ नपअंगज तिणिवार ॥ मो॥ सेना दीठी आवती रे लाल ॥ कहे जिनहर्ष अपार ॥ मो॥ १ ॥ क॥ सर्वगाथा र १ सात्विक २ राजस ३ तामस
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वीश
॥११३॥
भन
॥ दोहा ॥
गज वाजी के रथ चडया, पहेरचा कवच सनाह || सुन आयुध जालियां, धरतां अंग नाह | ॥ १ ॥ सागर जीम सागरनली, वींटी वलयाकार ॥ वचन कहे मुख एहवां, रे रे इष्टगमार ॥२॥ या सामो हथियार ग्रहि, मृत्यु श्राव्यं तुज श्राज ॥ चिहुं दिश सैन्य निहालिने, हरि जिम बढ्यो गाज ॥ ३ ॥ श्रायुध पूरण देखि रथ, कुदी तिहां वश्व ॥ सुनट सारथीने दणी, सुनटे सगले दीव ॥ ४ ॥ सज्ज श्रयो आयुध गृही, सागर करण संग्राम | युद्ध करे अरिसैन्यशुं, पौरव चढियो ताम ॥ ५ ॥ एकेपासे एकलो, एके पासे कोम ॥ कण कण कीधा के विया, सबल लगामी खोम ॥ ६ ॥ नानुं लशकर दशदिशे, रह्यो न कोइ पग मांग ॥ सूरज किरणा आगले, तिमिर जाय जिम बांम ॥ ॥ पुण्य प्रजावें कुमरनी, जीत थइ संग्राम ॥ समर विजय राजानणी, जीत्यो वाधी माम ॥ ढाल ४ श्री ॥ अढियानी ॥
ति अवसर ऐक नार, आवी तिहां शिरदार | विनयान्वित रहीए, जाषे गहगही ए ॥ १ ॥ कुशवर्धन पुर राय, कमलचंद कदेवाय ॥ समरकंता प्रियाए, भुवनकांता धिया ए ॥ २ ॥ विश्वजली आनंद, नपजावे जिम चंद ॥ रूपगु करी ए, सोहे सुंदरी ॥ ३ ॥ जिनधर्ममांहे प्रवीण, जिनपूजासुं लीए ॥ पुष्य पूतातमा ए, सुरकन्योपमा ए ॥ ४ ॥ ताहरा गुण सोनाग, सांजलि | उपन्यो राग ॥ ते कन्या नली ए, इन्हा तुजतली ए ॥ ५ ॥ पाणीग्रहण उत्साह, चाहे तुजने नाह ॥ निशदिन ताहरु ए, ध्यान धरे खरं ए ॥ ६ ॥ शेलेशनगरनो स्वाम, सुदर्शन इसे नाम ॥ समर विजय सहीए, तस सुत गहगही ए ॥ ७ ॥ हरी कुमरी तिले राय, मूकी इस वन आय ॥ ते जीत्यो टिको ए, समरांगण को ए ॥ ८ ॥ परण्यो कुमरी तेह, आणी परम सनेह ॥ ब्यो गुण
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स्थानण
॥११३॥
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मोलवी ए, ख्यो ए सुखगण ए ॥ ए ॥ चंज्ञनना हुँ तास, धार आवी तुजपास॥विलंब न कीजीये ए, परणी लीजिये ए ॥ १० ॥ वचन सुणी तिणिवार, परणी राजकुमार ॥ समर विजय करे ए, नत्सव बहुपरे ए ॥ ११ ॥ मांहोमांहे सार, बांधी प्रीति अपार ॥ सागर सहित धरी ए, नार ले करी ए ॥ १२ ॥ रथे बेसी तिणिवार, धरतो हर्ष अपार ॥ चाल्यो निजपुर नणी ए, नत्कंग घणी ए ॥ १३ ॥ रत्नमंदिर फलकंत, नामंगल सोहंत ॥ दीगे आगले ए, रवि जिम मलहले ए ॥१ मूकी तिहां रथ नारि, जोवा ख्याल कुमारि ॥ वनमां संचर्यो ए, मन साहस धस्यो ए॥ १५ ॥Nal alवीणा वेणु मृदंग, नाटक गीत सुरंग ॥ करती कामणी ए, दी। पंच जणीए ॥ १६ ॥ सुंदर जास शरीर, पहेरयां निर्मल चीर ॥ घरेणे शोन्नती ए, नरमन मोहती ए ॥ १७ ॥ दीठी कन्या तत्र, जाणे लेखी चित्र ॥ सागर नलस्यो ए, मनमांहे हस्यो ए ॥ १८ ॥ नठी दीधुं मान, बेसण आसण
दान, विनय कीधो घणो ए, पांचे ए तेतणो ए॥ १७ ॥ ते मांहे ज्येष्ठा जेह, कर जोडी कहे तेह ॥ Salकुण तमे किहां रहो ए, केहना सुत कहो ए ॥ २० ॥ यथास्थित स्ववृत्तांत, सघलो कह्यो खांत ॥ Saनिसुणी कहे वली ए, कन्या मन रली ए॥ २१॥ नलो पुरुष सुजाण, कहे जिन हर्ष प्रमाणातुजने अमे ओलख्यो ए, नृपसुत अमें लिख्यो ए ॥ २२ ॥ सर्वगाथा ॥ १११ ॥
॥ दोहा ॥ । कहे कन्या विद्याधरी, सोनल चतुर सुजाण ॥ वैताढ्य पर्वत रत्नपुरे, तिहां विद्याधर राण ॥१॥ सिंहनाद नृप सिंह परे, सबल पराक्रम जास ॥ खेचर माने आगन्या, विद्यातणो निवास॥॥ नशे जयां गौरी सुगुण, तारा रंना एह ॥ सुता तवागम जाणियो, नैमित्तिक वचनेह ॥३॥ रत्नमं.
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वीश
दिर उन्नत करी, विद्यासक्तं तात ॥ पाणिग्रहणने कारणे, इहां राखी ए वात ॥ ४ ॥ कृपा धाम हवे कर, पूरय मनोरथ नाह ॥ पांचे नारी ताहरी, कर श्रमशुं विवाह ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ५ मी देशी ॥ साहेलानी ॥ रागखंभाती ॥ पांचे कन्या प्रेमसुं ए, परणी कुमर सुजालो रे || गंधर्व विवाह विधेकरी, युगपत् मेल्यो पालो रे ॥ १ ॥ कुमर विचारे हो पुण्य दशा माहेरी फुली रे, पांचे नारी हो मनमानी, मुजने | मिली रे || ए की ॥ ते नारीसाथे तिहां रे, मोदक नक्षण कीधां रे, प्रिया संयोग का सुख जज्यो रे, संसारिक फल लीधां रे || कु० ॥ १ ॥ रथ बेसामी तेहने रे, चाल्यो लेइ नारी रे ॥ सफल जन्म निजमनतनतयूं रे, वनिता प्रीति वधारी रे || कु० ॥ २ ॥ अगले जातां निरखियो रे, अरिहंत चैत्य नदारो रे || देखी मनमें हरखियो, जोवा चाल्यो कुमारो रे, क० ॥ ३ ॥ देवलमां पेठो विधे रे, निर्मल चंड्समानो रे, जैनी प्रतिमाने नम्या रे, स्तवना की धि प्रधानो रे || कु० ॥ ४ ॥ निष्पापा तेहनी प्रिया रे, तेपण जिनवर बंदी रे || जावें जावे भावना रे, सुधा गिरा आनंदी रे ॥ क० ॥ ५ ॥ राजकुमर मन कौतुकी रे, चढियो जिनगृह शृंगो रे ॥ जोवा शोना प्रासादनी रे, पाम्यो कि मिसंगो रे ॥ क० ॥ ६ ॥ गात्र अखंडित सहू रह्यां, पुर्व पुण्य पसाय रे ॥ न्यायवंत नर जे दुवे रे, चित दुख तसु न रहावे रे ॥ क० ॥ ७ ॥ नार्या जे ते जेटले रे, जिनगृहमांहि कुमारो रे || देखे नहि ते नारिनेरे, चिंते चित्तमोकारो रे ॥ कण् ॥ ८ ॥ कोइ वैरी लेइ गयो रे, इहां की मुजनारी रे || खुणे एक रह्यो चिंतवे रे, पामी निधि में हारी रे ॥ क० ॥ एए ॥ सर्वार्त्ति शांति नली तिहां रे, पवित्र यश नृपनंदो रे ॥ पूज्या अरिहंत प्रेम रे, कमले घरि आनंदो |रे ॥ क ॥ १० ॥ ष्ट दुरित दूरे ब्रजे, संपति सघली आवे रे | कीर्ति वाधे जगतमें रे, जे जिनपूजा
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त्रिनेत्रत्र
॥११४॥
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DDDD
स्थान
॥११४॥
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रचावे रे ॥ ११ ॥ तिएा अवसर तिहां आवियों रे, अमृतचं नृप मित्रो रे ॥ श्रीपुरपुरनो राजीयो रे सुता संघाते तेहोरे ॥ १२ ॥ धर्मनाम राजा घलो रे, साथे लेइ परिवारो रे || जाली नैमित्तिक गिरा रे ॥ श्रव्य सागर कुमारो रे ॥ कण् ॥ १३ ॥ सिंहनाद पण ग्रावियो रे, सुतापांचे संघाते रे ॥ जिन मंदिर दर्शन करी रे, बोलावे ते वाते रे || क||१४|| कुमर प्रथम तें निरखियो रे, अमित तेज ननचारी रे। कनकमालानो मानलो रे, समुझ तटे तिथिवारी रे ॥ क० ॥ १५ ॥ पद्मोत्पल सुत तेहनो रे, मद नत अविनीतो रे, हरी भुवनकांता प्रिया रे, तुजपझे चलचित्तो रे ॥ १६ ॥ जिनागारना शृंगी रे, तुजने नृत्पल पामी रे | पंचनार जातां हरी रे, लेइ गयो नपाडी रे || क||१७|| विद्याबल बलें कर्यो रे, मैं तेदसुं संग्रामो रे || आली प्रिया पंच ताहरी, उत्पल हणी तिणें ठामो रे ॥ क० ॥ १८॥ पद्म सद्म बहु पापनो रे, सुंदरी रुदती नारी रे, ॥ वैताढ्ये लेइ गयो रे, नुवनकांता तुजप्यारी रे ॥ क० ॥ १७ ॥ तव विजोग रोगाकली रे, निराश्रय निराहारो रे ॥ प्राणत्याग करशे तिहां रे, कहे जिनदर्ष नदारो रे ॥ क० ॥ २० ॥ सर्वगाथा ॥ १३७ ॥
॥ दोहा ॥
दुःखित तास वियोगी, कुंवर सुली थयो ताम ॥ पंचप्रिया देखी करी, ते पाम्यो विश्राम ॥१॥ तिहां परणी धर्मात्मजा, सागरचंदकुमार ॥ सिंहनाद खेचरथकी, विद्या गृई | अपार ॥ २ ॥ पाठ शुद्ध विद्या सदु, पुण्यप्रजावें तास || प्रगट थइ वर आपियो, सर्वाजेय प्रकाश ॥ ३ ॥ पूजा करि जगनाथनी, भक्तिभाव धरि ध्यान ॥ सिंहनादादिक सारथे, शोजित इंइसमान ॥ ४ ॥ वैताढ्य पर्वत नाकी पुरें, सुरपुरनपमा जास || विद्या विमानें बेशीगयो, धरतो चित्त उल्लास ॥ ५ ॥
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वीश०
॥११५॥
॥ ढाल ६ वी ॥ नीदरमी वेरण होइ रही ॥ ए देशी ॥
प्रमिततेजनिज तनणी, प्रतिबोध्यो हो सुललित वयरोह || सयल सुख पुण्यें पामियें, राणी भुवनकांता मूकावीने, आपी आपी हो सागरने लेय ॥ स० ॥ १ ॥ पुण्ये पुगें हो सघली मनप्राश | लहियें लहियें हो सघले जसवास ॥ स० ॥ वारू वारू हो धरणी सुवास, पीहर श्री कनमालाजणी, बोलावी हो सागरें तिथिवार | सागर सुखसागर रमे, आठ नारी हो । अपवर अनुहार | स० ॥ २ ॥ पंचविषयतणां सुख भोगवे, नवि जाणे हो नदयास्त किवार ॥ दीघी विद्या विद्याधरें, देश देश हो आदर सत्कार ॥ स० ॥ ३ ॥ परणी विद्याधरनी सुता, वीजी पण हो गुणरूपनिधान ॥ स० ॥ जरियाने सहु को नरे, सुखियाने हो सहु आप मान ॥ स ॥ ४ ॥ तिहां चैत्य जुहारे शाश्वता, स्नात्र महोत्सव हो करे नित्य अपार ॥ स० ॥ निज् मनुज जन्म सफलो करी, साधे साधे हो तीनवर्ग कुमार | स० ॥ ५ ॥ सागर वयरागर गुणतणो मनमांहे हो इम करे विचार ॥ सं० ॥ जइएं हवे पुर पोतातले, जइ जोनं हो नयो परिवार ॥ स ॥ ६ ॥ विद्याधर श्रेणी सेवीज तो, चाल्यो चाल्यो हो सहुसुं करि शीख ॥ स० ॥ सुर जिम सुविमाने बेशिने, सोहे प्रभुता हो जाणे इंइसरीख || स० ॥ ७ ॥ निजनगर समीपे आवियो, मन| मांहे हो धरतो नल्लास || स० ॥ निजतातने दीधी वधामणी, पूगी पूगी हो मनकेरी आश ॥ स ॥ ८ ॥ शागार्थं नगर सोहामणुं, शणगारी हो सघली बजार || स० ॥ दय गय रथ पायक परिवरयो, नप आव्यो हो सामौ तिशिवार ॥ स० ॥ ए ॥ नतरियो कुमर विमानश्री, तात केरे हो २८ ॥११५॥ लागो वली पाय ॥ जननीपाय लागो वली, हश्मासूं हो लेइ हर्ष अपार ॥ ० ॥ १०यावी वहुयर पाए पी, सासुने हो मन धरिय जगीस ॥ पुत्रवंती बहु थाजो तुमे, इम दीधी हो सासू आशीष ॥ ॥ ११ ॥
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स्थान०
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नत्सवसूं आव्यो मंदिरे, सहु मलिया हो परियण परिवार ॥ बहु दिवसें कमर निहालियो, सहु कोने हो थियो हर्ष अपार ॥ स ॥ १२ ॥ आठ तरुणी परणी आवियो, जूवो जूवो हो एहनुं सोनाग ॥
स० ॥ तिद्याधर सेवकने सगा, पुण्य पोते हो दिसे ने अथाग ॥ स० ॥ १३ ॥ सांसारिक सुख IN विलसे सदा, णी अवसर हो केवली नगवान ॥ नुवनावबोधनामे मुनि, नतरिया हो आजे सूर्यो
द्यान ॥ स ॥ १५ ॥ आव्यो नृप नयान्वित तिहां, वंदनने हो काजे मुनिपाय ॥ मुनिने दे तीन प्रदक्षिणा, बेग बेग हो प्रणमी चित लाय ॥ स ॥ १५ ॥ पुरना पण लोक आव्या तिहां, धर्मी
जिन हो सुणवा गुरुवाण ॥ मुनिराज दिये धर्म देशना, मीठी मीठी हो अमृत गुणखाण ॥ सण V१६॥ यतः॥ लक्ष्मीर्वेश्मनि नारती च वदने शौर्यं च दोष्णोर्युगे, त्यागः पाणितले सुधीश्च हृदये Naसोनाग्यशोना तनौ ॥ कीर्तिर्दिकु सपढ़ता गुणिजने यस्मान्नवेदंगिनां, सोऽयंवां नितमंगलावलिकते
धर्मः समासेव्यताम् ॥ १ ॥ अर्थः-हेनव्यजनो जेधर्मश्री घरने विषे लक्ष्मी, मुखमां सरस्वती, INDI बन्ने नुजानेविषे शौर्य, हस्तयुगलनेविषे दान, हृदयनीअंदर सुंदर बुद्धि, शरीरने विषे सौन्नाग्य शो-INE
ना, दिशाओनेविष कीर्ति, अने गुणवान पुरुषोनेविषे पक्षपात थायमे, ते आधर्मनुं वांबित मंगलNaमाला माटे सारे प्रकारे सेवन करो ॥ १॥ पूआ जिगंदे सुरश्व एसु, जूतो असामा अपो सहमी
॥ दाणं सुपत्ते नमणं सुतित्थे, सुसाहु सेवा सिवलोय मग्गो ॥३॥राजा अवसर पामी कर।, करा Nalजोमी हो पूजे तिशिवार ॥ किणकारण मुजसुत अपहयों, किण मुजने हो कह्यो एह विचार ॥ स IE ॥ १७ ॥ गुरु नाखे केत्रविदेहमें, दोए ना हो रहे अधिकसनेह ॥ स्त्री ज्येष्टनी स्नेहलासती, प्रिय सापांखे हो न शके रहि जेह॥स ॥१०॥ मोटे कारज पण नाहने, जावा न दिए हो घरथी ते नार प्रियतमविण प्राण रहे नहि, जिम माठी हो न रहे विणवार ॥ स ॥१॥ देखी स्त्रीनो नेह
NA
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वीश
॥ ११६ ॥
XXXKK
आकरो, तेहने वश यो कंतसुजाण ॥ जिनहर्ष स्नेह जिहाँ घलो, पामे पामे हो तेहथी दुख प्राण स्थान ॥ स० ॥ २० ॥ सर्वगाथा ॥ १६२ ॥
॥ दोहा ॥
गृहकार्यार्थे अन्यदा, लघुत्राता कहे गाम ॥ जाइ तुमारे चालवुं, तुमविण न सरे काम ॥ १ ॥ प्रतिबोधि निजनारिने, ज्येष्ट चल्यो तिथिवार ॥ अनुज परीक्षा कारणे, वचन कहे अविचार ॥ २ ॥ नानी सांजल बातमी, तीव्ररोग थयो तत्र ॥ जर्चा मूवो ताहरो, दुवो सबल अखत्र ॥ ३ ॥ देवर वचन सुखी करी, करवत सरिखां तेह ॥ तत्क्षण प्राण तज्या तिथे, ऐ ऐ निबिरु सनेह ॥ ४ ॥ स्नेही मही विलोइएं, स्नेही तिल पीलाय ॥ निःस्नेहिने दुख नहि, खोल तक्रने न्याय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल 9 मी ॥ कलालकीना गीतनी ॥ ए देशी ॥
सुजाण नर || पश्चात्ताप करे घणो रे लाल, लघु जाता तिशिवाररे ॥ सु० ॥ एवो राग नारीतणो हो लाल || नवि दिसे संसार ॥ सु० ॥ १॥ वचन विचारी बोलियें रे लाल, वाघे नहि अपवाद ॥ सु०॥ प्रविचारयुं श्राए दुखजली हो लाल ॥ थाए थाए मनविषवाद ॥ सु० ॥ २ ॥ व० ॥ आव्यो केटलेक दिने हो लाल, ज्येष्ट बंधव निजगेह ॥ सु०॥ लघुबंधव सदु दाखव्यो हो लाल || शोकातुर यो तेह ॥ सु० ॥ ३ ॥ ० ॥ नारीस्नेह दृश्ये दहे हो लाल || रोवे करी विलाप ॥ सु० ॥ तीव्रदुखें करि पी मियो हो लाल || मोह महासंताप ॥ सु० ॥ ४ ॥ व ॥ वैर कियुं मुजसुं इयें हो लाल ॥ शुं कीजें जगदीश ॥ ० ॥ लघु बंधव नपरे घणो दो लाल ॥ द्वेष घरे निशदीश ॥ सु० ॥५॥ तेने बोलावे नहि हो लाल । तेहसूं त्रुटो स्नेह ॥ सु० ॥ जोजन न करे तेहसुं हो लाल ॥ वाध्यो कोप प्रवेह || सु०६० अनुक्रमें मोह वैराग्यश्री हो लाल, श्रयो तापस वृद्धप्रात ॥ सु०॥ मिथ्यादृष्टि ६४ ॥ ११६ ॥
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आकरो हो लाल ॥ तप करी क्रोध संघात ॥ सु० ॥ ७ ॥ व० ॥ तप अज्ञान करी हवे हो लाल ॥थयो ते असुर कुमार ॥ सु० ॥ लघुचाता समकित युता हो लाल ॥ लीधो संयमनार ॥ सु ॥ ८ ॥ व ॥ तिरों पण तप कीधां घणां हो लाल, जितेंदिय निकषाय ॥ सु० ॥ अंग अगियार जण्यां ति हो लाल ॥ विनयें करि गुरुपाय ॥ सु० ॥ ए ॥ व० ॥ ज्येष्टनाइ जे देवता हो लाल ॥ पूरव वैर संभार ॥ सु० ॥ ते मुनिमारयो सुर थयो हो लाल || प्राणत दशम मोकार ॥ सु० ॥ १७ ॥ व || तिहांथी चवि सुत ताहरो हो बाल ॥ ए थयो पुण्यजंकार ॥ सु० ॥ ज्येष्टनाइ तिहांथी चवी हो लाल || नवमें जम्यो अपार || सु ॥ ११ ॥ व ॥ वली नरज्जव पामी करी दो लाल ॥ तापस दीक्षा लीध हो ॥ सु० ॥ अग्निकुमार थयो देवता हो लाल || दयानज्जित ए कीध ॥ सु० ॥ १२ ॥ व ॥ पूर्वजन्म वैरे करी हो लाल || सागर समुद्र मोकार ॥ सु० ॥ नृपामीने नांखियो होलाल ॥ निशिनर नि अपार ॥ सु ॥१३॥ व ॥ प्राग्भव आराध्यो इले हो लाल, चारित्र निरतीचार || सु || दुःख लह्यां न किहां इणें हो लाल ॥ सबलो पुश्य आधार || सु० ॥ १० ॥ ० ॥ त्रसथावर प्राणी तो हो लाल ॥ थाए जे प्रतिपाल ॥ सु० ॥ तेहने दुख पण सुखजली हो लाल ॥ थाए रंग रसाल ॥ सु० ॥ १५ ॥ ० ॥ एद सांजली देशना हो लाल || सागरचंद कुमार || सु० ॥ जाती समरण उपन्युं हो लाल, गुरुनली कदे तिणीवार || सु ॥ १६ ॥ ० ॥ संसार जमतां जंतुने हो लाल ॥ योनिमांहि दुखखाण || सु० ॥ कुल कोमी वलि केटली हो लाल || मुजने कहो हित आपण ॥ सु० ॥ १७ ॥ व ॥ वलतुं जांखे केवली हो लाल । सांजल राजकुमार ॥ सु० ॥ जोनीतणो कुलको डिनो दो लाल ॥ श्री जिनें कह्यो तिीवार ॥ सु० ॥ १८ ॥ व ॥ पूढव्यादिकनेद जूजुया हो लाल ॥ जीवघणा
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वोशल
स्थान
कुलकोटीसंख्या १२ पृथ्वी ७ अप
॥११
॥
तेन वायु
योनिसंख्या ७ पृथ्वीकाय ७ अप्पकाय ७ तेनकाय ७ वायुकाय १४ साधारण १० प्रत्येक २ बेइंघिय २ तेइंघिय २ चौरिंघिय ४ नारकी ४ तिर्यंच १४ मनुष्य
वनस्पति बैंक्ष्यि तेंद्रिय चौरिदि तिर्यंच नारकी
२५
मनुष्य
देवता
देव
११॥
दुश् जेण ॥ सु० ॥ तत्रापि बहु विकल्पना हो लाल ॥ जोनीकुल बहु तेण ॥ सु० ॥ सु० ॥ १ व॥ नंदगै पार्वक वार्यरो हो लाल ॥ एक एकनी सात लाख ॥ सु॥ दश प्रत्येक वनस्पति हो लाल ॥ चनद साधारण दाख ॥ सु ॥श्व ०॥ बेबे विगलेंडी तणी हो लाल ॥ नारकि सुर चार
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Nauसु० ॥ चार लाख तिर्यंचनी हो लाल ॥ चनद मनुष्यनी धार ॥ सु०॥ २१ ॥ व ॥सांनल हवे ।
पृथवीतणो हो लाल ॥ बार लाख कुलकोड ॥ सु०॥ सातलाख अँपकायनी हो लाल ॥ तेन तीन
लाख जोम ॥ सु॥ २२॥ व०॥ सात लाख कुलकोमि वायुंनी हो लाल ॥वीसा पणवीस ॥ EER॥ लाख देव नारकीतणा हो लाल ॥ नर बार लाख जगीस ॥ सुण ॥ २२॥ व॥ एक एक
प्रत्येके सही हो लाल ॥ योनी कुलही मोकार ॥ सु०॥ सर्वजीव मुखिया हो लाल ॥ पाम्या
अनंतीवार ॥ सु ॥ २५ ॥ व ॥ आदि नहि कांश कालनी हो लाल ॥ जीवो कर्म अनादि ॥ Film सु॥श्म चिंतवी करवो नहि हो लाल ॥ किणसूं मोह विषाद ॥ सु० ॥ १५॥ व ॥ विषय Salकषायवशे करी हो लाल ॥ आस्रवयुक्त अतीव ॥ सु॥ एकेश्यिादिकविषे हो लाल ॥ योनिमुख
सहे जीव ॥ सु ॥ २६ ॥ व०॥ तीव्रमोहोदय जीवने हो लाल ॥ कहे जिनहर्ष अनाण ॥ सु॥ महानय कोमल वेदनी हो लाल ॥ लहे एकेंश्यि खाण ॥सु ॥ २७ ॥ व ॥ सर्वगाथा ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ Seal नरके पामे नारकी, गोयम तीखां दुःख ॥ तेश्री अनंत निगोदमें, नांखे प्रनु निजमुख ॥१॥ alविविध रूप ए जोनिमें, नमियो वार अनंत ॥ श्रीजिनन्नाषित धर्म विण, दुखियो जीव अनंत an॥ झोन दर्शन चारित्र तँप, चार प्रकारे धर्म ॥ पंथ मुक्ति जावातणो, वारे दुर्गति मर्म ॥३॥
इत्यादिक गुरुवचन सुणि, बुग्यो सागरचंद ॥ लीधो संयम गुरुकने, धरतो मन आनंद ॥४॥ प्रिया आठ सागरतणी, लीधो संयमन्नार ॥ कर्म धर्म हलि मलि करे, ते विरला संसार ॥ ५ ॥ अमृतचं नरेश्वरू, सागरसुत निजपाट ॥ आरोप्यो श्रीसूरिने, करे नत्सव गहगाट ॥ ६ ॥ आठ
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वीश दिवस नत्सव करी, अरिहंत चैत्य नदार ॥ नवसमुश्मां नाव सम, लीधो संयमन्नार ॥ ७॥ राज- स्थान
ऋषि सागर वली, नणिया अंग अगियार ॥ अष्टादश थानकतो, गुरुमुख सुण्यो विचार ॥॥ ॥११॥
॥ ढाल मी ॥ काऊोरिया मुनिवर ॥ ए देशी ॥ sil निशने विकथा तजी जी, समिति गुप्ति धारंत ॥ साधुनणे नद्यम करीजी, विधिपूर्वक सिद्धांत saln १ ॥ धन्य धन्य ते नरवरा, जे गेमे संसार ॥ पाये नमियें तेहना, आणी प्रेम अपार ॥ गुण
गृहियें तो लहीयेंरे नवसायरनो पार ॥ ध० ॥२॥ नत्तमनी रे अनुमोदना, कीजियें नरनार ॥
दय करे क्षणमात्रमांजी, नव दुष्कर्म अनेक ॥ ज्ञान अने नपयोग बेजी, निर्जराहेतु विवेक ॥ धन Krilu ३ ॥ वीश धानकसेवाथकी जी, तीर्थकरनाम बंध ॥ अष्टादश पण सेवतांजी, जिनपद होय ।
संबंध ॥ ध॥४॥ सम्यग वाचना प्रबनांजी, चिंतनधर्माख्यानार्थ ॥ लणतां शास्त्र नवनवांजी शुनकर्म अर्जे कृतार्थ ॥ ध ॥ ५ ॥ वाणी एहवी सानली जी, गुरुनी सर्वांगीण ॥ श्रुत अपूर्व नणवातणो जी, अन्निग्रह लीधो प्रवीण ॥ ध ॥ ६ ॥ प्रथम पोरसीने विषेजी, विधिशुं करे सम्झाय ॥ बीजी पोरसिए वलीजी, अर्थ चिंतन निर्माय ॥ध ॥ ७॥ आहार पाणी गवेषणाजी
त्रीजी पोरसी करे साध ॥ श्रुत अपूर्व चोथी नणेजी, मनमें धरिय समाध ॥ ध० ॥ ७ ॥ एम Salअपूर्व श्रुतज्ञाननो जी, पाठक नद्यत चित्त ॥ ज्ञानाचार जिनाझयाजी, निरतीचार धरंत||धण्णा kaस्वामी अमरचंचातणो जी, चमरें मुनिवर तास ॥ स्थिरीन्नाव आत्मातणो जी, पर्षदामांहे प्रकाIN ॥ ध ॥ १० ॥ सागरचं मुनिसारिखोजी, श्रुतझानी नपयोगवंत || नहि कोई भरतावनि ??
जी, समतासिंधु महंत ॥ ध ॥ ११ ॥ हेमांगद सुर सानली जी, वासव वचन विलास ॥ सहवाहणा मन नाणतोजी, मिथ्यात्वोदय तास ॥ध ॥ १२ ॥ आव्यो सुर नतावलो जी, जयपुर
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नगर मोकार ॥ राजऋषीश्वर गुरुकने जी, अपूर्वनणे श्रुतसार ॥ ध ॥१३॥ अस्वाध्याय दिवानिशी जी, दोन्नन्नणी करे तेह ॥ प्रकरण सूत्र नणे तिहां जी, मुनिवरगुणमणिगेह ॥ध०॥ १॥ दोनावे ते मुनिन्नणी जी, जगतां पामे नंग॥ पण प्रमाद न करे रतिजी, पठन अन्यास अनंग ॥ ध ॥१५॥ प्रमोदवंत नाकी यो जी, प्रत्यक्ष थ मुनि पाय ॥ वंदी कर जोमी करीजी, पूरे
गुरु राय ॥ध ॥ १५ ॥ अपूर्व श्रुत पाठथी जी,शुं फल पामे साध, गुरु नाखे वासव सुणो जी, तीर्थकर कर्म बांध ॥ध ॥ १७ ॥ नमी सुरेश केवलि प्रतेजी, राजऋषि नमि पाय ॥ मान दे
वांदी करी जी, निज थानक सुर जाय ॥ध ॥१॥आराधी अढारमुं जी, स्थानक मुनि नितमेsala ॥ अपूर्व श्रुत नवाथकीजी, विजय विमाने देव ॥ ध० ॥ १७॥ तिहाथी चवि विदेहमें जी,
तीर्थकर पद पामि ॥ सागरचं मुनीश्वरजी, लहेशे मुक्ति विश्राम ॥ २०॥ कार्याहितीय विवेकियें । जी, अपूर्वापूर्व सिांत ॥ सम्यकदृष्टि जे होवे जी, साधु श्रावक गुणवंत ॥ध ॥ १ ॥ श्रुतज्ञानो
पयोगथी जी, सकल कूकर्म विनाश ॥दय पामे तत्कणथकी जी, गुप्ति तृतीय धर तास ॥ son २ ॥ सागरचं नरेंचं जी, सन्निलि चरित्र रतन ॥ अष्टादश थानकविष जी, करो जिनहर्ष NA जतन ॥ २३ ॥ सर्वगाथा ॥२५॥ ॥इतिश्री अष्टादश स्थानके सागरचं राजर्षि कथानकं ॥१७॥
॥दोहा॥ - थानक हवे ओगणीशमुं, सांजलजो सुविचार ॥ सकल श्रेयकारण नणी, निज परने नपकार
॥१॥निखिल श्रीश्रुत शाननो, आश्रय करी विशुद्ध ॥करवीनक्तिनली परें, टाली अविधि अशुभ salu २ ॥ अरिहंत नांखे अर्थथी, सूत्र रचे गणधार ॥ सूत्र कहीजें तेहने, संघनणी नपकार ॥३॥
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वीश
॥११॥
| यतः । अथं जासेतीइ अरिहा, सुतं गुती गणहरा निनां ॥ सासणस्स हि श्राइ, तो सुतं पवतहईं ॥ १ ॥ सूत्र रच्यां गणधरतणां, प्रत्येक बुध उत्पन्न ॥ रच्यां सुत्र श्रुत केवली, दशपूर्वेण अभिन्न | ॥ ४ ॥ अंगानंगादिक करी, जेहना नेद अनेक ॥ अंग आचारादि कह्याँ, हियमे धारी विवेक ॥ ५ ॥ बहाबन्ध दें करी, दोय प्रकार अनंग ॥ द्वादशांगी बक्ष तिहां, आागल सुणो सुव्यंग ॥ ६ ॥ महानिशियादिक सहु, कहियें तेह प्रबद्ध || तिहां अंगपदनी हवे, संख्या शुणो विशुद्ध ॥ ७ ॥ ॥ ढाल पेहेली ॥ वीरजिणेसरनी ॥ देश ॥
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आचारंग ढार सहस पद संख्या जाणुं, सुगंकांग बत्री सहस पद तेह वखाणुं ॥ सहस बँदुतेर तृतीय अंगांग कहीजें, समवायांगे ऐक लाख चैमाल लहीजें ॥ १ ॥ पंचम अंग दोए लाख नपरे अय्यासी, सहस बँदुतेर पांच लाख ज्ञाता प्रकाशी ॥ लीख इग्यार दुववन्न अंगपद सँत्तम कही यें, अंतर्गड लाख त्रैवी से चौर सांजली गहगहीयं ॥ २ ॥ लाख बेतालीस व अधिक पद नवमे अंगे, बाणुंलाख सहससोलें पद दशमे अंगे ॥ एकादशमे श्रुत विपाक एक कोमी चोरोंसी लाख सहस बैंत्रीश वली नपरे जिननासी ॥ ३ ॥ सर्व अंगनां पद थयां ए सधलां त्रण कोमी, अमस लाख बयाल सहस कर जोमी || हवे पूर्वपदनी कहुं संख्या सांजल जो, एहनी नक्ति करी घणी शिवश्रीने मिल जो ॥ ४ ॥ गज अंबाडी साहीये एक पूर्वक लीखाए, एम बमणा करतां थकां सदु मान गलाए । उत्पाद पूर्व प्रमाण कोमी पद कर जो संख्या, प्रग्रायणीये लाख बनुं पदनी वे संख्या ॥ ५ ॥ वीर्यप्रवादे वर्णव्या ए पद सिँ तेरलाख, अस्त प्रवाद बैंष्ठि पद लख्य ॥११८॥ | प्रजाख ॥ ज्ञानं प्रवादे कोमी एक पद नयां, षटूपद कोमी एक सत्यप्रवाद सलूसा ॥ ६ ॥ कोमी बैवीस कह्यां जिहां ए पद आत्म प्रवाद, लाख ईसी पद कोमी एक पूर्व कर्म प्रवाद ॥ नवसुं प्रत्या
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ख्यान पूर्व पद लाख चोरासी, विद्या प्रवाद ए कोमी एक दस लाख प्रकाशी ॥७॥ पद पाविस Ivalकोमी जिहां पूर्व कल्याण नाम, बारमुं प्राणीवाद पूर्व तेर'कोमी सुधाम ॥ पद कयां पूर्व क्रिया विशाल नव कोडी प्रमाण, लोक बिंदु सारे कोमी बार लख पंचास जाण ॥ ॥ इत्यादिक जिन आगमनी च्य नावे करीने, नक्ति धिा जिनवर कही ए करो नाव धरीने ॥ तत्राद्या
आगम जिनोक्त नपीयें बहु नावे, पुस्तक लेखन विविध ज्ञान नपकरण करावे ॥ ५ ॥ Sel श्रुतपाहीने वस्त्र पात्र पुस्तक बहु आपे, अन्न पानौषध दोषरहित आपे दुख कापे॥ विश्रामण अन्न्यु
त्थान दान बहु मानसुं दीजें, एपण मोहोटा लानन्नणी थाए श्म कीजें ॥१०॥ यतः ॥ पुस्तकेषु SEविचित्रेषु श्रीजिनागमलेखनं ॥ तत्पूजा वस्तुन्निः पुण्यैऽव्याराधनमुच्यते ॥ अर्थः-विचित्र प्रकारनां
पुस्तकोने विषे श्रीजिन आगमो लखाववां, तेपुस्तकोनी पवित्र वस्तुओवझे पूजा करवी ते ब्याराधन कहेवायणापापामय औषध समुं ए शास्त्र कहीजें, पुण्य निबंधन शास्त्र एह नयनोमय
दीजें ॥ शास्त्रथकी जगमां न लहे अविनाशी ए धन, शास्त्र शस्त्र कर्म कापवा ए सर्वारथ साधन Salm११॥ यतः लौकिका अप्याहुः ॥ यावदकर संख्यानं ॥ विद्यते शास्त्रसंचये ॥ तावहर्ष सहस्राणि
स्वर्गे विद्याप्रदोनवेत् ॥१॥अर्थः-कारणके लौकिको पण कीहे के, शास्त्रोना संग्रहमा जेटला
अक्षरो होय तो ते अदरनी संख्या प्रमाणे एटले जेटला अदरो होय तेटला हजार वर्ष विद्यादान। Salकरनार स्वर्गमा रहे . श्रीजिन आगम पूजा एह नाव जामय निवारे, केवलज्ञानोपजावीने दुख
सायर तारे॥ नाव नक्ति सुविधे करीए आगमार्थ नणावे, पंचप्रकार संकाय करे श्म कर्म खपावे En १२॥ यतः॥श्रवणं श्रद्दधानंच पग्नं पाठनं तथा॥तहिदां बहुमानश्च नाव नक्तिः प्रकीर्तिता ॥१॥
अर्थः-श्रवण (सांनलq ते) श्रज्ञ राखवी एटले सदहबुं ते, नण, नणाव, तथा ते शास्त्रोना
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स्था
वीशण
जाणनारने बहु मान आपq ते नावनक्ति कहेली ने ॥१॥वे व्यन्नाव प्रकारथी ए कीजें निर्व्याजे
परमन्नक्ति श्रुत ज्ञाननी ए तिम श्रुतधर काजे ॥ तीर्थकर ऐश्वर्य सही लहे मुक्ति संयोगें, रत्नचूम ॥१२॥ नरराय तणीपरें अविचल नोगे ॥ १३ ॥नरत क्षेत्र मांहे पुरीए तामलिप्त सोहे, सुंदर जिनमंदिर
करीए जननां मन मोहे ॥ नन्नत वंशाढ्य जीहां ए चरण व्यवहारी, सदमी मद श्रेय शोन्नताए । सहुना मनहारी ॥ १५ ॥राज करे राजा तिहां रत्नशेखर नामें, श्रीमंत कुवलय अति नलास देखीने पामे ॥ कर स्थिति पण मृतु जेहनी ए सहुने सुखदायी, अंधकार प्रतापे हणीयो ए नद्योत सदा ॥ १५ ॥ राणी तसु रत्नावली ए सोहे धनुष समनी, नमणी खमणी बहु गुणी ए शुध्वंश नपनी ॥ रत्नचूम नामें पुत्र ए नत्तम गुण जास, निजतेजें जिनहर्ष वंदीया खास ॥ १६ ॥
॥दोहा॥ | वर्धमान अनुक्रमें लहे, जोवन जिम सहकार ॥ तनु सौरन्य गुणें करी, प्रणीत नूमी अपार॥१॥
पुत्र सुबुद्धि मंत्रिनो सुमति सुमति नंमार ॥ श्रीपुज सारथवाहनो, तथा मंदन सुतसार ॥२॥ alश्रीधर व्यवहारी तणो, अंगजगज इणे नाम || सहकारी गयापरे, रहे मित्र सुखठाम ॥३॥
सम संपद सौन्नाग्य गुण, अंगनोग शृंगार ॥ केहने विस्मय नवि करे, निजलीलाए चार ॥४॥ वनवाडी सरोवरविषे, केलि करे जिम हंस ॥ क्षण न रहे ते वेगलो, जिणपरे नखमें मंस ॥ Ral
॥ ढाल बीजी ॥ जीराना गीतनी देशी॥ | एक दिवस मिल गया रेनशान. नत्तम रे नत्तम रेनर चारे जाणासानलजो रे वात, सांभBaलजो पुण्यवंतनी वात, पाम्योरेपाम्योरे सुख संपति घणी ॥ सां ॥१॥ वनमां दीठा श्री सिंहसुर,
गाजे रे गाजे रेसीहतगीपरे ॥सां॥ोनपदेश रसाल विशाल, पुरी जननारे हश्मां ठरेसाणाशा
॥१३॥
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चारे चतुर विचक्षण मित्र,बेगरे बेगरे गुरु प्रणमी करी ॥सां॥त्रिकरण श्रिर करी सुणे वखाण, एक लोकेरे श्लोके रे वाणी नचरी सारि॥यतः॥ नरस्य पंचकं दास्य, सौंदर्ये सति किं पुनः॥ बुद्धिः साहसीकी पुण्य प्रत्नाव सहिता पुनः॥१॥सांनली एहवो श्लोक, विस्मय मनमां लघु ॥सांगा करण परीक्षा चाल्या परदेश, संबल रे संबल रे साथे नवि प्रद्यं ॥सांग ॥ ३॥ मारग चालतां करे
कलोल, चारे रे चारे रे प्रीति वधारता | सां ॥नय नाणे कहेनो मनमांहे, चारे रे चारे रे कथा Salविस्तारता ॥ सा ॥४॥ नाना वन फलना आहार, करतारे करतारे प्राण धारण नणी॥ सां॥ Elदशदिवसे आव्या की गाम, अटवीरे अटवीरे वीचे लंधी घणी॥ सां॥॥ लब्ध लद विद्या
कला दद, ते कहे रे कहेरे शेठ नंदन प्रते॥ सां० ॥ तुंनोजन सहुने आज कराव, ताहरीरे ताहरीरे
चतुराश्यते ॥ सां॥६॥शीघ्र आव्यो ते ग्राम मोकार,नैगमरे नैगमरे शुं चतुराग्रही ॥सां salप्रणमी तिहां जश जिन गृहमांहे, प्रतिमारे प्रतिमारे ते श्री जिनवरतणी ॥सां॥॥गरढो असहायी तिहांएक, पर्वतणेरे पर्वतणेरे वासर वाणीयो॥सांणाग्राहक बहु आकुल थयो चित, तेहनुं रे तेहनु रे मन तिणे जाणीयो॥ सां॥७॥ चतुर दद लधु हस्त प्रवीण, साहज्यरे साहज्यरे दीधो तेहने। सा॥ दीधुं सहुने नोजनन्नव्य, बेगरे बेगरे पंच श्म जेहने ॥ सांग ॥ए॥ हवे बीजे दिन सार्थेश, अंगजरे अंगजरे नदधी विनयतणो ॥ सांग ॥ महासौंदर्य अनंग अनंग, अद्भुत रे अद्भुत रे रुप सोहामणो॥ सां॥१०॥आव्यो चाली ग्राममोकार, दीपेरे दीपेरे देवकमर जिसो सांतेतो
वेश्या पाटक जाय, जाणे रे जाणे रे मनमथ हो तिसो ॥ सांग ॥११॥ अनंगसेना वेश्या तिणीपवार, तेमीरे तेमीरे कृत गौरवघणो || सांग ॥ सहुने सरसां नोजन दीध, प्रगव्यो रे प्रगट्यो रे प्रगट|
कीयो हित आपणो ॥ सांग ॥ १३॥ तेहने रे नोजदान सनान, लेपनरे लेपनरे पानफूलें करी॥
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स्थान
वीशण Nalसा॥तेहनेरु मोही तेह, सोश्म रे सोश्म व्यय कीया हित घरी॥ सा ॥१३॥ सुमतिनामे
बीजेदिवसे मंत्रीनो पुत्र, चारेरे चारेरे बुद्धिजिणे धरी ॥सां॥ काचनपुर अाव्यो तेणीवार, मित्रोरे ॥१२॥ Salमित्रोरे आ देशलेश पहुतो रे राजन मंदिर ताम, बेगे रे बेगे रे दरबारे जइ ॥ सांग ॥ सांजली
तीहां एवो संवाद, करतो रे करतो रे मांहोमांहे सही ॥ सांग ॥ १॥॥ यतः॥ कोदेवः शिवदायी, कश्चनः गुरुर्नवसेतुसमः ॥ कोधर्मोविश्वहितः, सर्वेषां किं प्रियं परमं ॥ १ ॥ अर्थः-कल्याणदायी वा मुक्तिदाता देव कयो? संसाररूप समुने विषे पाजनीपेठे तारनार अर्थात सामे पार लश् जनार
गुरु कोण ? विश्वने हितकरनार धर्म कयो ? अने सर्वने परम प्रिय शुंडे ? एहवं सांतली सुमति Valप्रधान. नांखेरेनांखेरे तेहप्रतें इस्यं ॥ सां॥ एहनो उत्तर दो जे कोश, तेहने रे तेहने रे तुमे ।
आपो कीस्युं ॥ सां० ॥ १६ ॥ ते बोल्या अमे दाम हजार, तेहने रे तेहने रे तत्क्षण आपियें ॥ सांग ॥ मंत्री सुत नांखे बुध्विंत, धरजो रे घरजो रे अरथ कहुं हिये ॥ सांग ॥ १७ ॥ शिवदायी श्रीअरिहंत देव, निग्रंथी रे निग्रंथी रे गुरु नवंजल तारे ॥ सांग ॥ धर्म प्राणी करुणा जिनहर्ष, NA वजन रे वल्लन रे जीवित ने धरे ॥ सांग ॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥ ४ ॥
॥दोहा॥ | मंत्री सुत पुरी यदा, सुणी समस्या तेह ॥ राय प्रजाहर्षित थयां, नलो नलो नर एह ॥ १ ॥ सहस्रदान तेहने दीयां, मुदितथश्मनमाहे ॥ यत्र तत्र संपत्ति मिले, बुद्धितणे सुपसाये ॥ २ ॥ बुझेर न्याय निवेडीयें, बुई चाले राज ॥ बुझे आदर पामीय, बुरे सीके काज || ३ ॥ बुई वसीयें अरि ११ नणी, बुई दमीयें सिंह ॥ बुझे जलगिरि चाढीय, बुरे नागे बीह ॥ ॥ बुझे सहुने रीझव्या, पाम्या दाम हजार ॥ परने पोताना करे, बुद्धि बमी संसार ॥ ५ ॥ ते धन व्ययथी सहुन्नणी,
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लोग सामग्री प्राय ॥ तिहाथी चाल्या आगले, आरति चित्त न लाय ॥६॥ चोथे दिवसे बोलिया सुहृद्नृपात्मज आज ॥ अमने नोजन आप तुं, सुख साधक महाराज ॥७॥ वचन सहूनां सांभली मौन राजसुत लीध ॥ नोजन आणेवा नणी, नपक्रम को न कीध ॥ ॥
॥ ढाल ३ जी॥बारे गरबमो॥ एदेशी ॥ ___धर्मे सर्वत्र जय होवे रे, एहवं कही पुर बाहिरनारे गुण बमा जगमांह।सुख निशएसुश्रह्यो रे Raअशोक तरुनी गंहि ॥ १॥ गुण मोटो संसारमें रे, आप आपणी गम ॥ना॥ पुण्य सरीखो
को नहीं रे, पुण्ये सीके काम ना ॥॥पुण्ये हय गय पामीयें रे, पुण्ये राज नंमारनाणापुल्ये परीघल संपदारे, पुण्ये जस विस्तार ॥ ना ॥ ३॥ पुण्ये नारी सुलकणी रे, पुष्ये पुत्र विनीत Nanना ॥ पुण्ये सहु आशा फले रे, सबल पुण्य अजीत ॥ भा० ॥४॥ तिणहीज दिवसे तिणे
घडी रे, दैवतणे संयोग ॥ना ॥ मूओ राय अपुत्रीयो रे, श्रया अराजकलोक ॥ना ॥५॥ रत्नचूड Silपुण्योदयें रे, पंचरत्न आव्यां ताम ॥ना ॥ नमता सहु आव्या तिहां रे, राज्य दीयणने काम salना ॥ ६॥ मंत्री प्रजा मिली आपीयुं रे, रत्नचूमने राज्य ॥ ना ॥ सुकृत होय सखाश्यो रे,
तो श्यां अवरां काज ॥ ना || ॥राजा सहु आवी नम्यारे, रत्नचूमना पाय ॥ना ॥ सुमति नणी मंत्री कीयो रे, राज्य धुरंधर थाय ॥ ना॥७॥ सारथवाहना सुतन्नणी रे, कोषाधिप पद ।। दीध ॥ ना ॥ शेठतणा सुतने वली रे, शेठ नगरनो कीध ॥ना ॥ए॥ श्लोकतणो मित्रे तिहां रे अर्थ सत्यतातीत ॥ना || पुण्य नत्तम ने लोकमें रे, पुण्यसुं राखे प्रीत ॥ ना ॥१०॥ सकल Sal वस्तुमें पुण्य वॉरे, पुण्ये वांगित होय ॥ ना ॥ रत्नादिक मले पुण्यथी रे, पुण्य समुं नहीं कोय॥ ना ॥११॥ निजसंपत्ति पामी करी रे, परने जे नपगार ॥ ना ॥ ते नर देव थकी कह्या रे, मोटा
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वीश
॥१२॥
D00
| त्रिजगमोझार ॥ ना० ॥ १२॥ एवं आलोची करी रे, पृथिवीपति घीमान ॥ जा० ॥ कृतात्मा सदुने सदा रे, आपे संपददान ॥ जा० ॥ १३ ॥ पाले राज इसी परे रे, टाले रीति अन्याय ॥ भा० ॥ दुख नांगे दुखीयातणां रे, पुण्यना करे उपाय ॥ जा० ॥ १४॥ लोक सदु एम बोले रे, नपकारी नरराय॥ जा० ॥ वली विशेष दानथी रे, कीर्त्ति दिगंते जाय ॥ ज० ॥ १५ ॥ रत्नचूक निजपुत्रने रे, रत्नशेखर भूपाल ॥ जा० ॥ कांचनपुरनुं सांनब्युं रे, पाम्यो राज्य रसाल || जा० ॥ १६ ॥ मन विकस्युं तन नल्लस्युं रे, हियमे वाध्यं हेज ॥ जा० ॥ पुण्ये पुत्र सुखी थयो रे, पुण्यें वाध्युं तेज ॥ ना ॥ १७ ॥ मित्र सहित बोलावियो रे, रत्नशेखर नृप ताम ॥ ना० ॥ पितुरादेश मानी करी रे, शीघ्र आव्यो निजधाम ॥ जा० ॥ १८ ॥ रत्नचूडने प्रापी युंरे, रत्नशेखर नृप राज ॥ जा० ॥ पोते संजम आदर्यु रे, सहु सुख साधन काज ॥ ० ॥ १९ ॥ रत्नचूक नरनाथने रे, सोम सूर इसे नाम ॥ जा० ॥ जगत पूज्य बे सुत यया रे, धर्म न्याय श्रीय गम ॥ जा० ॥ २० ॥ युवराज कीधो सूरने रे, तामलिप्त नरराज ॥ जा० ॥ कंचनपुर दीयुं सोमने रे, सारे सदुनां काज ॥ जा॥२१॥ राज्य तणां सुख जोगवे रे, चारे मित्र संघात ॥ जा० ॥ कहे जिनहर्ष हवे सुणोरे, आागल रूडी वात ॥ ना ॥ २२ ॥ सर्वगाथा ॥ ७७ ॥
॥ दोहा ॥
अन्य दिवस पंडित तिहां, आव्यो नृपदरबार ॥ मिथ्यादृष्टि शास्त्रना, कहेतो मूलविचार ॥ १ ॥ २६ ॥१२॥ वेद स्मृति पुराण मुख, सकल शास्त्र सुविचार ॥ सांभलीयें संस्कृत रच्यां, पंकितने सुखकार ॥२॥ जिनागम नानागमा, सहित दुर्गतम तेह ॥ सदुने जातां दोहिलां, एहथी नहि शिवगेह ॥ ३ ॥
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मिथ्यादृग निंदा करी, आगम निसुणी राय ॥ दूनमना मौनी रह्यो, उत्तर तसु न देवाय ॥४॥ तिणे अवसर आव्या तिहां, अमरचंद्र मुनिराय ॥ समवसर्या नद्यानमें, केवलज्ञान दीपाय ॥ ५ ॥
॥ढाल ४ थी॥ आगम अर्थ हीये धरो॥ एदेशी ॥ नुलटन्नावें आवीया,गुरुने नमवा राय॥ ते पंडित साथे करी, पूरीजनसुं राय ॥ न ॥ १॥ कनककमल दल नपरे, बेठा धरम प्रकाशे ॥ नविलोक सहु सानले, निज मनमें नलासें ॥ न॥ ॥२॥लक्ष्मी रुप सुत निरमलो, शील विनय विवेको ॥ सम औदार्य न पामीयें, विण पुण्ये एको॥
न ॥३॥ धीमंत जे कुलज कमी, सत्य व्रत शीलवानो ॥ विनयैश्वर्य दयायुत, शुचि सलज Salश्रीमानो ॥ न॥४॥ सञोगी गुरु देवर्नु, नक्ति युक्तिदातारो ॥ एहजपुत्र सुकृती तणो, सफलो
जमवारो ॥ न० ॥ ५ ॥ इत्यादि दीधी देशना, नृप कहे शिरनामी ॥ प्राकृत आगम जिनवरें, किम
कीधां स्वामि || नण॥६॥नचरतां केवली कहे, अंगी सुख माने ॥लाषा श्री अरिहंतनि, अर्थ मागधी Salनामें॥न॥७॥यतः॥बालस्त्री मंदमूर्खाणां नृणां चारित्रकांदिणां ॥ अनुग्रहाय तत्वज्ञैः सिशंतः।
प्राकृतः कृतः ॥ १॥ अर्थः-कारणके कर्वा जे चारित्रनी आकांदाकरनार बालक स्त्रियो मंदबुद्धि अने मुर्खलोकोना अनुग्रह माटे तत्वना जाणनारा जिनोए सिद्धांत प्राकृत नाषामां करेलां , वचन जिनेशगमतणां, डे अर्थ अनंता ॥ अगम अगोचर ए सदा, मिथ्याइष्टि ते ब्रांता ॥ न ॥७॥
पात्र नहि जिन सारिखं, गुरु सम नपगारि॥ सुकृत जिनार्चा सम नहि, बंधु धर्म विचारि ॥ न Sen ॥ कर्मश्रकी अन्य को नहि, वैरी त्रिन्नुवनमें ॥ ज्ञानसमुं लोचन नहि, शोची जूवो मनमें Na
न॥ १०॥ श्रीसिद्धांतथकी नहि, बीजो किमपि गंजीर ॥ अमृत गुरुवाणी समुं, नहि अन्य सधीर ॥ न ॥ ११ ॥ नृप अनिप्राय जाणी करी, पूजे केवलनाणी ॥ मिथ्यात्वी पंमित नणी, लोकने
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स्थान
वीश हित आणी ॥ १० ॥१॥ सचराचर लोक ए कहो, नित्य अस्ति वा अनित्यो॥ शेरुपे नित्यानित्यने, १२३॥
नाखो तुमें सत्यो॥ न ॥ १३ ॥ प्रत्युत्तर देश नवि शक्या, केवलिने तेहो ॥ सम्यकदृष्टि सहु श्रया, |पंमित गुण एहो ॥ न ॥ १४ ॥ मूर्ख न समजे समकिते, पंमित नर सोहेला ॥ हठ डोमेन कदाग्रही, दाधा रींगा दोहेला ॥ न ॥ १५ ॥ मुनि स्वामी तेहने कहे, एम सुललित वाणी ॥ श्रेयमूल जाणीकरी, करो श्रुत नक्ति प्राणी ॥ न० ॥१६॥ सकलझाननो गुरु कह्यो, श्रुतझान विचारो॥ करे|
अवबोध स्वरूप नणी, दीप जिम विस्तारो॥न ॥१७॥ विविध धर्म जिनशासने, तेहने आराधो॥ Sel अंगोपांग सम्यकपरें, श्रुतज्ञान प्रकारो॥न॥१॥यतः॥ मोहं धियोहरति कापथमुचिनत्ति ॥ संवेग Salमुबयति सत्प्रशमं तनोति ॥स्वर्गापवर्गपदवीमुदमातनोति, जैनं वचः श्रवणतः किमु नातनोति॥१॥ NEअर्थः-बुझिना मोहने हरे , कुत्सित मार्ग पाखंडनो नबेद करे , संवेगनी वृद्धि करे , श्रेष्ट एवा Sal
प्रशमने विस्तारे , अने स्वर्ग तथा मोदनी पदवी संबंधि हर्षनो चोतरफ वधारो करे . श्रीजि-Ral ननां वचनो,श्रवण करवाश्री कर वस्तुओनो विस्तार करतां नयी ? अर्थात् सर्वपदार्थोने आपे नेते नर दुर्गति नवि लहे, मूके नहि जमन्नावो ॥ नैवांधता बुद्धिहीनता, नक्ति आगम रावो॥नारणा जे करे श्रुत आशातना, ते दुर्गति पामे ॥ तेहने जो बहु मान दे, पूज्य पद तेओ कामे ॥ न० ॥२॥ केवलझानीनी वाणीए, एहवी सुणी राजा ॥श्रुतन्नक्ति करवा व्रत लियुं, गृहेवा सुख ताजां॥kal न ॥ २१ ॥ च्यन्नाव सुप्रकारथी, श्रुतत्नक्ति नरिंदो ॥ विधिसुं नित नावे करे, क्लिष्ट रिष्ट निकंदो ॥१३॥ ॥ न० ॥ २२ ॥ श्रुतज्ञानवंतनणी सदा, वस्त्रपान अन्नदानो, आपे नक्ति करे घणी, जिनहर्ष राजानो ॥ न ॥ २३ ॥ सर्वयाथा ।। १२५ ॥
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॥ दोहा ॥
वली विशेषं श्रुतज्ञाननी, जक्ति वांबे ए राय ॥ राज्य ज्येष्ट सुत सूरने, दीधुं करी सुपसाय ॥ १ ॥ रत्नचूक राजा ग्रह्यो, अमरचंद गुरुपास ॥ संयममार्ग साधनो, बेदेवा नवपास ॥ २ ॥ अंग इग्यार जण्या नजय, सूत्र अर्थ ऋषिराय ॥ निर्मल गीतारथ थया, दर्पण जिम दीपाय ॥ ३ ॥ श्रुतनी भक्ति सुशक्तिश्री, करवी जावज्जीव॥ की यो अभिग्रह राज ऋषि, करि दृढ हृदय श्रतीव ॥४॥ श्रुतधर जे वलि श्रुतधरी, पाठक श्रुतना जेह ॥ जाव शुद्ध बहुमानसुं, भक्ति करे धरि नेह ॥ ५ ॥ अन्नपान वरौषधें, भक्ति करे निश दीस ॥ काल गयो इम केटलो, मुदित चित्त सुजगीस ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ५ मी ॥ सासु काठाहे गन पीसावा, आपण जास मालवे || सोनारी नये ॥ ए देशी ॥
अन्य दिवस गुरुपासे, श्रुतनक्ति जावित प्रातमा । श्रुतनक्ति करे, आव्या भारती पत्तनमांहे, पंचईदिय गुप्तातमा ॥ श्रु० ॥ १ ॥ देवशक्ति करी विप्ररूप, कौतुक जोवा कारणे ॥ श्रु० ॥ सुरस्वामी इशानें, आाव्या साधु परीक्षणें ॥ श्रु० ॥ २ ॥ सुरपति कहे सांजल साधु, प्राकृत संस्कृत तेहणे ॥ श्रु० ॥ जैनागम पाठ प्रभाव, भणतां दुखपमे घणे ॥ श्रु० ॥ ३ ॥ जाषा संस्कृत शास्त्र प्रमाण, देव भाषा सुखकारिणी ॥ श्रु० ॥ जो वांबे प्रात्मकल्याण, तो ए ना दुखवारणी ॥ श्रु० ॥ ४ ॥ शुणी वचन हस्या ऋषिराय, हइमामांहे नवि धर्या ॥ श्रु० ॥ श्रुतनक्ति न मुकी तेरा, बहुदिन यादरचा ॥ श्रु० ॥ ५ ॥ समता रस गर्जित वाच, तेहजणी मुनि नचरे ॥ श्रु० ॥ कां पाप नराये - रे विप्रं, जिन आगम निंदा करे ॥ श्रु ॥ ६ ॥ श्राय बंध श्राय वलि मूक, हीन योनि दुर्गति लहे ॥ श्रु० बोले सिद्धांतावर्ण्यवाद, ते प्राणी बहु दुखसहे ॥ श्रु० ॥ ७ ॥ आशातना जिननी जेद, तास वचन
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वीशहीले खरां ॥ श्रुण ॥ ते मिथ्या मूलनुं बीज, आपे दुःखपरंपरा ॥ श्रुण ॥ यतः॥ तित्प्रेयर पवयण स्थान
सुय, आयरियं गणहरं महढियं ॥ आसाएवो बहुसो, अनंत संसारिन हो॥१॥पूर्वढाल॥ करे आशा॥१ ॥
तना जेह, अरिहंत वचन तणी घणे॥श्रुणाते पामे पातक घोर, अनंत कह्या नवते नमे ॥श्रुणं॥णा महामोह निबिग अंधार, नव मारगमें चालतां ॥ श्रु ॥ अंगीने करे प्रकाश, जिन आगम दीपक समा॥ श्रु॥ १० ॥ यतः॥ अंधपारे पुरुत्तारे, घोरे संसारसागरे ॥ एसोव महादीवो, लोपालो
आवलोयणे॥१॥एसो नाहो आणाहारं, सवनूआण नावओनावबंधु श्मोचेव, सवसुरकाण कारणं Nal॥२॥ मुनिवचन सुणी इत्यादि, श्रुतन्नक्ति अमृत सारख। ॥ श्रु || यो इशानेश् खुशाल, प्रगट थियो एहतो पारखी ॥ श्रु॥११॥ दे तीन प्रदक्षिणा तास, आदरसूं मुनि प्रणमिय ॥श्रु॥
वली विनवे बे कर जोमी, सुणी मुनिनायक स्वामिय ॥ श्रु॥ ए साधु देश बहु मान, नक्ति र करे आगमतणी ॥ श्रु॥ शुं फल पाम्यो ऋषिराय, ते नांखो प्रभु मुज नणी ॥श्रु॥ १३॥al गुरु भाखे सुणो सुरराय, तीर्थंकर पद पामशे ॥ श्रु॥श्रुतभक्ति नावतणो अनुनाव, सुर सुरपति शिर नामशे, श्रु॥ १५ ॥ सांजली सुरपति ए वाण, मुनि नमी सुख पावतो ॥ श्रुण पदुतो cal निजपद श्रेणि, ते मनमांहे नावतो ॥ श्रु०॥ १५ || ओगणीशमुं स्थानक एह, मुनिवर आराधी करी ॥ श्रु॥थयो सुर प्राणत देवलोक, वीश सागर आवखं धरी ॥ श्रु॥१६॥ तिहाथी चवि विदेह मोकार, राज
र, राजा राज्य तजी करी॥श्र॥ पामी तीर्थकरपद सार, लठो मक्ति महापरी॥ रत्नचूम नृपति दृष्टांत, सांभली श्रुतन्नक्ति कीजीयें ॥ श्रुण ॥ जिनहर्ष आराधी एह, पानकजिनपद ॥१२॥ लीजीयें ॥१॥इतिश्री ननविंशतिस्थानके श्रुतभक्तिरूप रत्नचूमकथानकं ॥ १५ ॥
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॥ दोहा ॥
॥
हवे थानक कहुं वशमुं, शाश्वत सुखदातार ॥ सकलजंतु श्रानंदकर, दर्शन निर्मलकार ॥ साधु श्रावक गुणवंत जे, सघला विधिना जाएग ॥ जिनशासन सुप्रभावना, करवी धरि जिन आण ॥२॥पूर्व भवोदय नवि लह्यो, ते तीर्थोत्सवें लड़ंत ॥ श्रेणिक कृष्णतली परे, जिनपतिपद पामंत ॥३॥ श्री जिनेऽगृह नःइरे, मुर्ति भरावे प्रौढ ॥ तीर्थजली यात्रा करे, स्नात्रोत्सव आरूढ ॥ ४ ॥ प्रौढ प्रतिष्ठा कारवे, साहमी भक्ति नमेद ॥ प्रत्यनीक शासनतला, तेहनो करे नवेद ॥ ५ ॥ प्राचार्यादिक पद तथा करे महोत्सव सार ॥ लब्धि देखाने बहुपरे, जिनशासन जयकार ॥ ६ ॥ पुण्यकार्य करणी करी, रंजे सघलो लोय ॥ तथा जिनेंद चोखाइए, अष्ट प्रजाविक होय ॥ ७ ॥ यतः ॥ पावयली १ धर्म कही २ वा ३ निमित्तियो ४ तवसीवा ए विका ६ सिधोय, कवीत श्रग्ये पनावगा जलिया ॥ १ ॥ जिनशासन सुप्रज्ञावना, करे पुण्योत्सव जेह ॥ मेरुमन राजापरे, पामे जिनपद तेह ॥ ८ ॥
॥ ढाल १ ली ॥ आदर जीव कमा गुण आदर ॥ देश ॥
तत्रम पुरराजे, सूर्यपुरानिध जाजी ॥ राजा तिहां अरिदमण बिराजे, अरिनां दमीयां प्राणजी ॥ २ ॥ जूवो पुण्य सकल सुखदायी, पुण्यें कष्ट पलायजी ॥ पुष्यें विलास लहे निरंतर, अरि लागे पायजी ॥ जूवो ॥ ३ ॥ ते राजाने बे पटराणी, मदन सुंदरी नामजी ॥ मेरुमन मे - रुमन उन्नत, तेहनो सुत अभिराम जी ॥ जू० ॥ ३ ॥ रत्नमंजरी बीजी राणी, तेहने बहु मान जी ॥ महासेन नामें सुत तेहनो, प्राक्रम जीम समान जी ॥ जू० ॥ ४ ॥ पापणि तन्माता निजसुतने, राज्य इवा धारेह जी ॥ घाइ तेणे हाये मेरुप्रजने, 'विष देवरावे तेह जी ॥ ५ ॥ जू० ॥
३२
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वीश
॥१२५॥
तेलीए पुण्योदयश्री ते आगल, दाख्यं सयल स्वरुप जी ॥ पुण्यप्रवर त्रिभुवनमां मोटुं, पुण्य रयण अनूप जी ॥ जू० ॥ ६ ॥ रन वन शत्रु जलधि जलमांहे, पावक विषमे गम जी ॥ राखे पुण्य प्रबल बलवंतुं, पुण्यें सीके काम जी ॥ जू० ॥ ७ ॥ अपररूप करिने तिहांथी, बीक घरी मनमांदे जी ॥ खमग पाणि लेइने चाल्यो, देशांतर अवगाह जी ॥ जू० ॥ ८ ॥ दिशा प्रतीची चलतो पोतो, केटलेक दिने कुमार जी ॥ लक्ष्मीधाम शांतिपुर नामें, सुरपुरनो अवतार जी ॥ जू० ॥ ॥ | तेमांहे जिन चैत्य अनोपम ॥ शांतिनाथ सुखकार जी ॥ कंचनवरणी मूरत तेमां, दीपे तेज अपार जी ॥ जू० ॥ १० ॥ निसी कहीने मांहे पेगे, जलशुं करी पखाल जी ॥ पुष्प सुगंधे पूजा कीघी, आणी जाव विशाल जी ॥ जू० ॥ ११ ॥ करी प्रणाम जिनेश्वर चरणे, कर जोकी वे ताम जी ॥ स्तोत्र विचित्रे स्तवना कीधी, गाया जिनगुणग्राम जी ॥ ज० ॥ १२ ॥ त्यारपढी ते जगती शोना, देखे बाहिर प्राय जी ॥ दीगदुरितापद अपहारी, अजयघोष मुनिराय जी ॥ जू० ॥ १३ ॥ कुमर अनाथनाथपय प्रणमी, बेगे मुनिनी पास जी ॥ शर्मद्रुम पीयूष समासी, ये देशना नल्लास जी ॥ जू० ॥ १४ ॥ श्रीजिननाषित धर्म जीवने, अपूर्व सुरवृकजी ॥ स्वर्गतणां सुखने शिवसुखनां, फूलनो दाता दक्ष जी ॥ जू० ॥ १५ ॥ अथवा चिंतामणि सारिखो, द्ये सर्वारथ शर्म जी ॥ एह निधान सयल सुखकेरुं, सर्वज्ञादेश शर्म जी ॥ जू० | ॥ १६ ॥ धर्मेण कण कंचन लहियें, धर्मे नर सुर काम जी ॥ धर्म मुक्तिनां सुख पण आपे, धर्म 1 करो अभिराम जी ॥ जू० ॥ १७ ॥ एहवुं कही गुरु श्राश्वर्गने, जाखे ज्ञान प्रमाण जी ॥ नावी तीर्थकर ए जालो, राजनसुत गुणखाण जी ॥ जू० ॥ १८ ॥ शासनतलो प्रजाविक थाशे, गोपवी राखो एह जी ॥ जिम जाणे नहि बीजो कोइ, रहे अखंमित देह जी ॥ जू० ॥ १७ ॥ श्रवशे
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स्थान
॥१२५॥
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दमणां तेनी केमे, सैन्य नृपश्व देत जी ॥ अपरामाय पापणिनुं मूक्युं, हावा जाणे प्रेत जी ॥जू० ॥ २० ॥ गुरुनी वाणी अमिय समाली, शेठ धनेश्वर ताम जी ॥ गुप्त करी भूमिगृह मांहे, अरिहंत रक्षा काम जी ॥ जू० ॥ २१ ॥ मध्यान्दे गुरुनाषित आव्युं, सैन्य प्रगण्य अपार जी ॥ शोध्यं नगर कुमर न लाघो, फिरी गयुं तिथिवार जी ॥ जू० ॥ २२ ॥ मेरुप्रन रलियायत थने, नमी करी गुरुपाय जी ॥ कहे जिनहर्ष तमे सकुरुजी, टाल्यो मुऊ अपाय जी ॥ जू० ॥ २३ ॥ | सर्वगाथा ॥ २३ ॥
॥ दोहा ॥
दिदि में, सहुने वल्लन जेह ॥ तुमरो हुँ किम अनृणी, थाइश कहो प्रभु तेह ||१|| गुरुनाखे महाभाग सुण, तदा नृणी होय ॥ सद्दर्शन सूं आदरे, जो जिनधर्म सजोय ॥ २ ॥ पुण्योत्सव कारज करी, धर्म दिपावे जेह ॥ नक्ति करे सुकृत तणी, कृतज्ञ कहियें तेह ॥ ३॥ पामे ऐश्वर्य धर्मश्री, सेवे धर्म जे कोय || तेह कृतज्ञ शिरोमणि, तेहने बहुफल होय ॥ ४ ॥ श्रावकधर्म समाचरर्यो, दर्शनसहित कुमार ॥ मेरुमन बानो थको, तिदां रहे सुविचार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल १ जी ॥ चोपाइ ॥
हवे अरिदमन राय तिलीवार, रुजाक्रांत तनु थयो अपार || शांतिपुरें जाण्यो कुमार, राजा बोलाव्यो तिथिवार ॥ १ ॥ आव्यो तिहांथी नृतावलो, देखी राय थयो गलगलो ॥ राजा देवा मांड्यो राज, कुमर कहे माहरे नहि काज ॥ २ ॥ माता मनोरथ पूरो आज, महासेनने आपो राज ॥ ढुं करिश सेवा एदनी, शंका मत प्राणो केदनी ॥ ३ ॥ तत्क्षण मेरुमनने राज, दीघुं महासेन युवराज ॥ पोते लीधो संयमनार, मुनिवर पाले सतर प्रकार ॥ ४ ॥ समता शील थया
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वडा
स्थान
MEIगुणवान, पंचाश्रव विरमण शुन्नध्यान ॥ जन्म सफल पोतानो करी, पाम्यो स्वर्गपुरी सुखनरी
Milm ५ ॥ मेरुमन राजा राजता, कुरुराजानी परणी सुता ॥ रूपें जाणे देवकुमार, त्रैलोक्यसुंदरी ॥१६॥ नामें नार ॥ ६॥ सुंदर नारीसूं सुखसेज, विलसे सुरनीपरे मनहेज ॥ कल्पवेली सुरतरुसुं मिली,
शोन्ने तिम शोन्ने मन रुली ॥ ७ ॥ अन्यदिवस मेरुपन्नतणी, लीला देखी सोहामणी ॥ कुमरी कुमर रमे गहगहे, रत्नमंजरी बलती रहे ॥ ७ ॥ दुर्जन माणस न शके देख,
परसुख देखी धरे विशेष ॥ शोक्यतणा सुतना सुख घणां, देखी लागे असुहामणां ॥ ए ॥ Salएकमालीने बोलावियो, हेमार्पणे करी वश कियो॥ मेरुप्रन्नने जो तुं हणे, धन आपुं राणी श्म
नणे ॥ १० ॥ विष नावित अंनोज करेह, कुसुम मालमें गुंथ्युं तेह ॥ वात अगम्य न जाणे कोय, Naलोने लक्षण जातां जोय ॥११॥ लोन्ने मारे पोते मरे, लोने नीच कर्म आचरे ॥ लोन्ने नारीलंपट sal
होय, नीच उंच देखे नहि कोय ॥ १२॥ अति सौरनमाला लेश् करी, मेरुप्रन्न नृप आगल धरी ॥ देखी माला अति मनोहार, हरख्यो मनमें राय अपार ॥ १३॥ मोज दे तेहने अतिघणी, राय विसर्यो मालीनणी ॥ ते माला हेते अति घणे, कोटे घाली नाश्तणे ॥१५॥ तेहने जोगे मूर्ग sal
लही॥ पथ्वीए पड्यो ते सही॥स्वजन मिली आव्या सह तिहां, कमर अचेत पड्यो ने जिहां Stailn १५ ॥ राजा राणी करे विलाप, पुत्रमरण मोटो संताप ॥ मस्तक कूटे पीटे हियुं, है है दैव तें | Salकीसो कीयुं ॥१६॥ तेमया वैद्य विद्याना जाण, विषनपचार कीया तिठाण ॥ सावचेत नृप ।
अंगज कीयो, सहुने आनंद उपजावियो ॥१७॥ माली तेकी पूजे राय, कहे रे ए किणे कीयो ॥२६॥ sal नपाय ॥ मायतणुं चेष्टित सहु कडूं, सघटुं विश्व लोनमें वह्यु ॥ १७॥ तुज सुतने में देतां राज,
तो लीधुं नहीं कीणे काज ॥ दमणां तो मुजमारण नणी, एह नपाय कीधो पापणी ॥१ए ॥श्म
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लोलनो देश तास, रायतणुं मन अयुं उदास ॥ मेलो राज कह्यो ते खरो, बापन्नणी मारे दीकरो an०॥रात दिवस मनमें रहे शेह, जीम वाधे तेम अधिको मोह ॥ एहथी पाये ऽर्गति पात,
सुंणी वेदपुराणे वात ॥ २१॥ आव्यो हृदय कमल संवेग, एद राज्यथी थाय नझंग ॥ माहरे नहीं को एहसुं काज, महासेनने दी● राज ॥ २२ ॥ अन्नयघोष आचारजपास, संयम लीधो मन
उल्लास ॥ हादशांग ऋषिराय अधीत, गीतारथ थयो तेह वदीत ॥१३॥ योग्य जागी स्थाप्यो निज Kaपाट, सहुना मनमें थयो गहगाट ॥ श्रीजिनशासन नानुं समान, कहे जिनहर्ष धरो तस ध्यान र
॥दोहा॥ Nal नम्र विहारे विहरता, सोनागी सुविवेक ॥ चित्रकूट पधारिया, पृथ्वी लोचन एक ॥ १॥ नगर Raपोलने बारणे, समवसरया मुनिराय ॥ ये प्राणीने देशना, मीठी अमृत प्राय ॥ २ ॥ सांभली|
तेहनी देशना, यह थयो प्रत्यक ॥ श्रादरीयुं समकित तिणे, धर्मतणुं जे मुख्य ॥ ३॥ विश्वनणी आल्हादकर, नाटक विविध प्रकार ॥ नाकी प्रीत धरी कीयो, मुनि आगल तिणीवार ॥४॥ नृप जितारि नगरीधणी, सांभली कीर्ति विशाल ॥ नगरलोकसुं परीवरयो, वांदे मुनि नूपाल ॥ ५ usa
॥ ढाल ३ जी ॥ तुंगीया गिरि शिखर सोहे ॥ ए देशी ॥ | कनकनीरज देवें कीधो, बेसी नपरे तासरे ॥ तेहने प्रतिबोध काजे, देशना दे खास रे ॥॥१॥ पार नहि संसार सागर, दुःखनो भंडाररे ॥ एहमांहे पझ्या नरने, कोई नहीं आधार रे ॥ कण ॥॥ जन्मनुंदुःख जरानुं दुःख,मरण- दुःख जोर एह दुखथी बूटवा रे,आपणुं बल फोक रे॥क॥३॥ अंगथी परमाद परिहरी, धर्म करी चित्त लाय रे ॥ धर्म पाखे होय दुखीयो, धर्मश्री सुख प्राय रे ॥ कण् ॥ ४॥ धर्मना बेन्नेद दाख्या, सर्व देशथी जाण रे ॥ आद्य तो अणगार केरो, हितीय
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स्थान
वीशगृहस्थ वखाणरे ॥ कण् ॥ ५ ॥ देशना गुरुतणी सांनली, नृप थयो प्रतिबुझ रे ॥
आदरयो जिनधर्म नावें, बार व्रत मन शुक्ष रे ॥ क० ॥ ७ ॥ बोधबीज वधारवाने, ॥१२॥
करे जिननी नतिरे ॥ मिथ्यात्वी पण देखी मनमें, य जाये रक्तरे॥क ॥ ७॥ नावना जिन Raशासन केरी, कीधी राय अपार रे ॥ तिहाथकी मुनिराय विचर्या, अप्रतिबंध विहाररे ॥ क ॥७॥
नगरे नगरे गामे गामे, बुझवे नर नार रे ॥ वेलापुर समवसरीया, साधुने परिवार रे॥ कण्॥॥
नव्यने नपदेश आपे, वाणी अमृतधार रे ॥ देवी लक्ष्मी शुइ समकित, पामीतिहां तिणीवार रे॥ Salक ॥१०॥ सूरि आगलें तदा कीधी, रत्ननी तेणे वृष्टि रे ॥ शासनोन्नति तणे हेते, धरी प्रीति Salविशिष्ट रे ॥ कण् ॥११॥ रत्नवर्षण तदा देवी, नूमी वनमें कीध रे ॥ त्यारश्री श्र रत्नगर्ना, नाम salएह प्रसिःहरे ॥ क० ॥१२॥ अरिदमन राजा सांजली, नदय सुगुरु प्रन्नाव रे॥ तिहां आवी
चरण प्रणम्या, गुरुतणा गुरु नाव रे ॥ क० ॥१३॥ देशना तिहां सुगुरु दीधी, राय आगल ताम रे॥ कनककमलें बेसी अद्भुत, रुपसंपदधामरे ॥ कण ॥१५॥ चार अंग सरंग लहेता, दोहीला जिम जाणी रे॥ चारगतिमें मनुष्यनी गति, दोहीली गुरुवाणीरे ॥ कण ॥ १५॥ दोहीली तिम वली
श्रःक्ष, धर्म नपरे रंग रे ॥ वली 5ष्कर धर्म करवो, तजी आलस अंग रे॥ क० ॥ १६ ॥ एह चारे Balअंग पामी, तजी पंच प्रमाद रे ॥ करो धर्म जिनेनाषित, टले नव विखवादरे ॥ कण् ॥ १७ ॥
धर्म चिंतामणि सरिखो, कांश हारो बाल रे॥ एह अवसर नहीं आवे, हिये शोची निहाल रे॥ क० ॥ १८ ॥ देशना अमृत समाणी, सांजली नरराय रे ॥ बार व्रत सम्यक्त्व साथे, आदर्यां चित लाय रे ॥ क० ॥ १५ ॥ तिहां कवीश्वरतणी श्रेणी, नयप्रमाण तत्व जाण रे॥ तेह गुरु प्रति
॥१३॥
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बोधीया सहु, दृष्टिवाद प्रमाण रे ॥क ॥२०॥ तिहां महती जैनमतनी, थइ महिमा खासरे ॥ मेरुप्रन्न जिनहर्ष मुनिना, साधुतणे परिवार रे॥ क० ॥ १॥ सर्वगाथा ॥ ७॥
॥दोहा॥ महिमासागर सूरिवर, तिहाथी कीध विहार ॥ आगमरीतें चालतां, साधुतणे परिवार ॥१॥ आव्या पुरिये गणपुर, महाकवीश्वर ख्यात॥ नगरमांहे सघले थर, लोक करे मीलिवात ॥२॥ आचारज मोटा कवि, विद्याना नंमार ॥ ए सरीखो को नहीं, बीजो इणसंसार ॥३॥ निर्मलध्वज नामें तिहां, वादीश्वर सुणी तास ॥ गुरुआगल रहेवा तणो, कीहां पाम्यो अवकाश ॥५॥ पंमित
सह हराविया, न रह्यो कोश अजित ॥ कर मगनी परें रह्यो, अथवा नाव्यो चित्त ॥ ५ ॥ तांलगी alमयगल मद करे, तां लगी करे अवाज ॥ हाथ लेश नूंआफले, जो न आवे मृगराज ॥६॥
जां लगी मुज दीठो नहीं, तां लगी ने प्रतिकूल ॥ पण मुज देखी नासशे, जिम वाये अर्कतूल ॥ ७ ॥ वाद करीने हार, करी राखं निजदास ॥ राय नणी आवी कहे, अखर्वगर्व आवास॥७॥ भारति नुवनें जश् करी, पंमित सयल समद ॥ मेरुप्रन आचार्यसुं, करवो वाद प्रत्यद ॥ए॥ वाद करी आचार्यसुं, मांजु रसना खाज ॥ तेई तुमने साखीया, तिहां पधारो राज ॥१०॥
॥ ढाल थी॥हामाना गीतनी देशी॥ __पंमित ले साधे रे, मनमोहनराया ॥ तुजपासे आया, करजो अम न्याया ॥ अधिको ओगे रे मत केहने गयो, आव्यो वागदेवी गेहरे ॥ म ॥ गर्वधरतो विद्यानो घणो रे ॥१॥मुनि पतिने तम्या राय रे ॥म ॥ आव्या तिहारे मद मूकी करी रे, मंत्री शेठ सामंत रे ॥ म ॥ नगर श्रावक साथे परवरी रे॥२॥ गुण आगर नगवंत रे, म०॥ देखी रे निजगृह गुरुने प्राविया रे ॥ सुर
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वीश नर वंदित पाय रे, ॥ म ॥ समतारसें रे आतम नाविया रे॥म ॥ ३॥ नठी सारद ताम रे,
Valम ॥ जेहना गुणोत्तम जाणीया रे ॥ चरण नमे वारंवार रे, म ॥ कंचन कमल बेसारीया रे ॥१२॥
Nu॥ महिमा एहवो देखी रे म ॥ गुरुनी कीधी रे देवीनारति रे॥विस्मय लह्यो वादीन्द्ररेमा
alएतो रे जीत्यो केम जाय जती रे॥५॥आदर दे नूरी रे॥म ॥ देवीपण जेहने नमी रे॥ सुरRal समान प्रताप रे, म ॥ एहनो रे को न शके खमी रे ॥६॥ तो पण मांमयो वाद रे, म ॥
वादी रह्यो नहि पूर्व स्वादीयो रे ॥ पूग्या सुक्ष्म विचार रे ॥ म ॥ उत्तर तेहने पागे न आपीयो ।
रे॥॥ मिथ्यात मोहनी कर्म रे, ॥ म॥ दूर टल्यो रे गुरुसंयोगधी रे ॥ लियो शुभ सम्यक्त्व Kारे, मणक्य श्राय अज्ञान रोगथी रे ॥ ७ ॥ मेरुपन्न मुनिराय रे, म ॥ वादी विद्यामद नत
रियो रे ॥आवी लागो पाय रे, म ॥ आखर शुद्ध व्यवहारियो रे॥ए ॥ राजा पण थयो ताम
रे,॥ म॥ श्रावक समकित आदरयो रे॥मणानारतिए पण लीध रे,माउत्तम समकित नरयो रे saln १॥ शासन गुरुनी जोय रे, म ॥नन्नति थ जगमांहे घणी रे ॥ पाम्यो कीर्ति नल्लास रे॥
म ॥ ज्योति जिसी अहीं शशितणी रे ॥११॥अप्रमत्त व्रत मुनीन्द्र रे, म॥ तिहाथी पोहतो पामलि पुरे रे ॥ तिहां कुबेर धनाढ्य रे ॥ म ॥ गुरुवाणी श्रवणे सुपी रे ॥ १२ ॥ आदरिया गुरुपासे रे॥ म ॥ बारह व्रत श्रावकतणां रे, बीजा पण पुरलोकरे ॥मणा समकित धारी श्रया घणारे ॥ १३ ॥ तृतीयज्वर महाघोर रे ॥ मण् ॥ तेहना दर्शनथी गयो रे, यशोवर्मनो ताम रे॥
म ॥ यश पुरमांहे श्रयो धणो रे ॥ १५ ॥श्राधर्म गुरुपाले रे॥म ॥पाम्यो निर्मल नावनारे ॥ Ka यशोवर्म नरराय रे ॥ म || कीधी प्रौढ प्रत्नावना रे ॥ १५ ॥ मेरुप्रन्न गणधार रे, म ॥नोग-NEL
॥१ पुरे रे पहोता विहरतारे ॥ चतुर्थानिग्रह कीध रे, म ॥ रह्या चोमासुं मुनिवर शोन्न
॥
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ता रे ॥ १६ ॥ व्यथी मोदक प्राप्त रे म ॥ क्षेत्रथी श्ण नगरे सही रे ॥कालयकी चनमासी।
रे, म ॥ भावयकी दाता नमही रे ॥१०॥ फिरता गोचरि काजे रे, म ॥ पट्टहस्ती राजातणो रे | Ralमद वहतो स्वयमेव रे, म ॥ नाव धरी रे मनमांही घणोरे ॥ १७ ॥ अन्निग्रह पूगे एम रेमा
तो हुँ करुं रे तपनो पारणो रे ॥ तप तीव्र विण नहि मुक्ति रे, म० ॥ ज्ञानी नाखे घोर कर्म तणो रे॥१५॥ पुष्कर तप करे एम रे, ॥ म ॥ मुनि अनिग्रह पूर्वक इसो रे, बेमासी As ताम रे, पण मनमांहे आर्ति नहि किसी रे ॥ २० वयोपशमथी तास रे, ॥अंतराय कर्मतणा सुणो रे॥आलान थंन्न नपाडी रे, म ॥ मत्त महाहस्ती राजातणो रे ॥२१॥ दे थाल विशाल R,म॥ मोदक मोढासुं करी रे ॥ जुवे नगरीना लोक रे ॥ म ॥ म ॥ शुन्न कोर्दयथी करी alरे,॥ २२॥ आव्यो साधु हजुर रे, म ॥ नक्ति धरीने आप्या लाडुवा रे ॥ मुनिवर वहोरया तेह रे ॥ म || लोक सहु रे मन विस्मय दुवा रे ॥ २३ ॥ सुर कीधा पंच दिव्य रे, म० ॥ आनंद वत्यों पुरमांहे घणो रे ॥ पग पग रत्ननी श्रेणी रे॥ म ॥ वृष्टि थरे अतिशय मुनि तणो|
रे ॥ २५ ॥ मिथ्यात्वी पण के रे, म ॥ बोधरत्न दुर्लन्न लयां रे, नन्नति श्रइ बहु तासरे, म॥ SElए जिनहर्ष वचन कह्यां रे ॥ सर्वगाथा ॥ १२२ ॥
॥दोहा॥ मथुरा पहोता तिहांथकी, करतां नग्र विहार ॥ हेमध्वज राजा तिहां, प्रजापाल सुविचार ॥१॥ बौधर्म रक्तातमा, माने नहि जिनधर्म ॥ ते दाक्षिण ए लोकपण, पमिया सौगत नर्म ॥२॥अन्न
पान आपे नहि, साधुन्नणी किणिवार ॥ देखी रीश धरे घणी, गुणवेषी नर नार ॥ ३ ॥ सौगत Falगुरुने आपियें, अद्भुत महिमा जास ॥ निर्गुणजैन अणगारने, निदा नापुं तास ॥॥ एहवू जा
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वीश
॥१२॥
एली श्रीगुरु, विद्याशक्ति अनेक ॥ थंया बौद्धमती सहु, चली न शके पद एक || ५ || जैनाचार्ये अमन्नणी, थंजी राख्या राज ॥ सेना मूकी नृप तदा, गुरुने हावाकाज ॥ ६ ॥ गुरुभक्ता जे देवता, सेना थंनी ताह || चित्रलिखित जेम पूतली, जोवे मांहोमांद ॥ ७ ॥ ननवाणी थइ तेटले, जो जीवे वा प्राश ॥ तो जजो चरण गुरुतयां, पामो लीलविलास ॥ ८ ॥ चमत्कार चित्त पामि या, राजादिक तिथिवार || दियातलो हठ मेलियो, मार्ग विना नहि सार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ५ मी ॥ गलियां रये साजन मिल्या धण वारी ॥ ए देशी ॥
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राजा बौद्ध सदु मिली, गुणवंता ॥ श्रव लाग्या पाय रे ॥ गुणवंता साधु ॥ जीवदया सम्यकत्वसूं ॥ गुणवंता० ॥ सहु को श्रावक थाय रे ॥ गुण ॥ १ ॥ तुं उत्तम अमने मिल्यो ॥ गुण ॥ अमने उत्तम कीध ॥ गुण ॥ जवसायर बूमता ॥ गुण ॥ तें श्रालंबन दीघ रे ॥ गुण ॥ २ ॥ एटला | दिन अज्ञानमें ॥ गु० ॥ सेव्यो धर्म मिथ्यात्व रे ॥ गुण ॥ तुम सुपसायें अमे हवे ॥ गु० ॥ जाएगी जाति नाति रे ॥ गुण ॥ ३ ॥ धर्म पमायो श्रममणी ॥ गु० ॥ कीधो बहु उपकार रे ॥ गु० ॥ नरक पर्यंता राखिया ॥ गु० ॥ नपगारी अणगार रे ॥ गुण ॥ ४ ॥ श्रमनपरे करुणा करी ॥ गु० ॥ ब्यो अन्नपान विचार रे ॥ गुण ॥ घर घर करे आमंत्रणा ॥ गुण ॥ लीयो सुतो आहार |रे ॥ गु० ॥ ५ ॥ जिनशासन नन्नति श्रइ ॥ गु० ॥ पुरमें परमानंद रे ॥ गु | तिहांथी नागपुरें गया, || गु० ॥ मेरुप्रन्न सूरिंद रे ॥ गु० ॥ ६ ॥ देवें कमल तिहां रच्युं ॥ गुण ॥ हेमतं मनरंग रे || गु० ॥ श्राचारज बेठा तिहां ॥ गु० ॥ रवि उदयाचल संग रे ॥ गुणधर्मतल । दिये देशना || || || | वरसे अमृत धार रे ॥ गुण् ॥ श्रवापुढे चातकपरे ॥ गु० ॥ पियेलोक अपार रे ॥ गुण् ॥ ८ ॥ राजा सांजलि वियो ॥ ० ॥ वांदा गुरुना पाय ॥ गु० ॥ दय गय पायक परिवरयो ॥ गुण ॥
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स्थान०
॥१२॥
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वांदी बेगे आयरे॥ गुण॥ए॥ गुरुनी सांजलि देशना, ॥गुण॥प्रतिबुझ्यो नरराय रे॥गुण्॥ नावें समकित आदरयुं ॥ गुण ॥ मिथ्या दूर पलाय रे ॥ गुण ॥ १० ॥ कीधी धर्म प्रनावना ॥ गुण
महिमा नगर मोकार रे ॥ गुण ॥ सशुरु धर्म दीपावियो । गुण ॥ प्रतिबोध्या नर नार रे ॥ गुण SElu ११ ॥ म्लेच्चकटक दुर्जय तदा ॥ गु० ॥ आव्यु तिहां अपार रे॥ गुण ॥ कल्पांतानल सारिखं ॥ Salगुण ॥ देखी रायतिवार रे ॥ गुण ॥ १२ ॥ कृपाप्रपा प्रनो सान्नलो ॥ गुण ॥ (कृपाप्रन्ना इति पागंतरे ) तुमने कहुँ विचार रे॥गुणामुज सामान्य प्रजातयो॥गुणायाशे हवे संहार रे॥गुण॥१३॥ जय थाशे पुण्यवंतनो ॥ गुण ॥ सूरि कहे महाराज रे ॥ गुण ॥ करवो धर्मविशेषश्री ॥ गुण ॥ धर्मे कष्ट पलाय रे ॥ गुण ॥ १५ ॥ दीधी गुरु आशातना ॥ गुण ॥ पुण्यवंत प्रबलनरिंद रे॥ गु० ॥ दधि नफर वधामणं। ॥ गु० ॥ रचितांजलि सानंद रे ॥ गु० ॥ १५ ॥ स्वामी म्लेच्या सेनाग्रणी ॥ गुण ॥ मरण लघु अद्यरात रे ॥ गुण ॥ सेना नाठी यावनी ॥ गुण ॥ संनलावी तिणे वात रे ॥ गुण ॥ १६ ॥ सुणी नृप रलियायत अयो॥ गुण ॥ लागो श्रीगुरुपाय रे ॥ गुण ॥ नगर करावि वधामणी ॥ गुण ॥ जिनधर्मोन्नति थाय रे ॥ गुण ॥ १७॥ तिहांथी नोगपुरे वलि ॥ गुणा आव्या मेरुप्रन्न सूरि रे ॥ गुण ॥ साधुतणे परिवारसुं ॥ गुण ॥ नूरिमहातमपूरी रे ॥ गुण ॥१॥ आपे अनोपम देशना ॥ गुण ॥ सुणे सहु समुदाय रे ॥ गुण ॥ आद्य स्वर्गपति आविने, ॥ गुण ॥ प्रणम्या श्रीगुरुपाय रे॥गुण ॥ १५ ॥ कर जोमी बहु नक्तिसूं ॥ गुण ॥ गुणस्तुति करे । सूरिंद रे ॥ गुण ॥ श्रीजिनेश शासन तणी ॥ गुण ॥ नन्नति करे मुनींद रे॥ गुण ॥ २०॥ तीर्थकर आगले होशे ॥ गुण ॥ सुकृत सागर एह रे ॥ गुण ॥ सुरनरिंद पग पूजशे ॥ गुण ॥ धरशे एहसुं नेह रे ॥गुण ॥१॥ चरण कमल एहनां नमे ॥ गुण ॥ दुकृत जाए तास रे ॥ गुण ॥ जन्म
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जिन
वीशण कोमिनां जे कियां ॥ गुण ॥ जिम वायें अंबुद नास रे ॥ गुण ॥ २२ ॥ पोते वली एम कहे ॥
salu गुण ॥ मुनिना प्रणमी पाय रे ॥ गुण ॥ जन्म सफल निज मानतो॥ गुण ॥ निज सुरलोकें ॥१३॥
जाय रे ॥ गुण ॥२३॥ समेतशिखर जा करी ॥ गुण ॥ अणसण करे मुनिराज रे ॥ गुण॥ ब्रह्मलोक सुर नपन्यो ॥ गुण ॥ ज्योति सकल शिरताज रे ॥ गुण ॥ ॥ तिहाथी चवि जिन al होशे ॥ गुण ॥ महाविदेह मोकार रे ॥ गुण ॥ श्रीमरुपन्न महामुनि ॥ गुण ॥ लहेशे नवनोपार रे Salगुण ॥ २५ ॥श्म जिनमत नन्नत करे ॥ गुण ॥ प्रतिबोधे नरवृंद रे॥ गुण ॥ ते जिनपति पदवी लहे ॥ गुण ॥ कहे जिनहर्ष मुणिंद रे ॥ गुण ॥ २६ ॥ सर्वगाथा ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ अरिहंतधर्मना जाण जे, वीशमांहेलुं एक ॥ आराधे नावें करी, विधिपूर्वक सुविवेक ॥१॥ Salक्लिष्ट वर्गणा नूयसी, अशुनकर्मनी बेद ॥ चंचगोत्र कुल पामिने, ते होय जिन ए अवेद ॥२॥rail
वजनान्न नामें पुरी, सार्वनौम नूपति ॥ हादशांग सम्यग् विदा, चारित्रोज्वल चित्त ॥३॥ कीधा sal ए अंतर रहित, त्रिशत नोजन त्याज ॥ तेहना पुण्यप्रन्नावश्री, अयो प्रथम जिनराज ॥४॥ तीर्थनाथ श्रीवीर जिन, पोटिलनवें संलग्न ॥ त्रिशत मित कपणे करी, एकांत निःस्पृह मन ॥ ५ ॥
कर्म नपशमावता, विंशति थानक एह ॥ आराध्यां अंतरातमा, निर्मल करि निःसंदेह ॥६॥ त्यारपठी सुरपद लही, दशमे गया देवलोक ॥ वर्द्धमान स्वामी श्रया, जिन बेला विलोक ॥ ७॥
॥ढाल चोपाई॥ श्रीजिनप्रतिमानी बहुपरे, नक्तिनावरां पूजाकरे ॥ चोखे चित्त स्तुति करी सीवे, पहिलुं थानक
१ अरिहंत.
॥१३॥
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इणिपरे दुवे ||१|| सिद्धं जावनुं कीर्त्तन करे, जागरणोत्सव पण बहुपरे ॥ सिद्धमते सिद्ध थानकविषे, बीजुं थानक करे निजसुखें ॥ बोलग्लान शिष्या दिकं जेद, यतितणो वलि अनुग्रह लेह ॥ प्रवचननुं वात्सल्य करेह, त्रीजुं स्थानक पनएयुं एह ॥ ३ ॥ प्रहारौषध वस्त्र द्ये आण, आगल जोमीने रहे पाए || गुरुनुं इम वात्सल्य करेह, चोथुं स्थानक इम नचरेह ॥ ४ ॥ वीशैवर्षतणो पर्याय, साग वरसनुं जेदनुं श्राय ॥ स्थविर भक्ति करे नमह्यो, पंचम थानक एलिपरे कह्यो ॥ ५ ॥ ननणावे द्वादश अंग, सूत्र अर्थ वेथी मनरंग || अन्नवस्त्रादिकदाने करी, करे वात्सल्य बठे मन धरी ॥ ६ ॥ सुविक्लिष्ट बहु तप करे, तेह तपस्वीनि शुनपरे ॥ दान मान विश्राम नक्ति, सप्तम थानकें करे निजशक्ति ॥ ७ ॥ द्वादशांग श्रुतविषे अतीव, वाचना करे निशदीव ॥ सूत्रार्थोजय करे विचार, ज्ञानोपयोग आठमुं द्वार ॥ ८ ॥ रहित हिंसादिक दोषें करि, स्थैर्यादिक गुणनूषित सिरी ॥ सशमादिक लक्षण संयुक्त, सम्यग् दर्शन नवमुं उक्त ॥ एए ॥ झोनर्दशन चारित्र तप चार, विनय करे एहनो सुविचार || राधे ए चारे सदा, दशमो विनय को एम मुदा ॥ १० ॥ आवश्यक सामायक याद, नन्जय संध्य करवा अप्रमाद || टाले तेहतणा प्रतीचार, एकादश थानक ए धार ॥ ११ ॥ हिंसीदिक टाले मतिमंत, पाले पंच समिति गुणवंत ॥
१ सिद्ध २ प्रवचन २ सूरि ४ स्थविर ५ उवझाय ६ साधु ७ ज्ञान ८ दंसण ९ विनय १० सामायिक ११ ब्रह्मचर्य १२ क्रिया
क० देवपाल १ ख० हस्तिपाल २ ग० भरतादिक ३ घ० पुरुषोत्तम ४ ङ० पद्मोत्तर ५ च० महेंद्रपाल ६ छ० वीरभद्र ७ ज० जयंतभद्र ८ झ० हरिविक्रम ९ञ० धनो १० ८० वरुणदेव ११ ४० इंद्रवर्मा १२ ड० हरिवाहन १३ ८० कनककेतु १४ ण० हरिवाहन १५ त० जीमुतकेतु १६ थ० पुरंदर १७ द० सागरचंद्र १८ घ० रत्नचूड १९ न० मेरुप्रभ २०
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वीश
॥१३१॥
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मूलोत्तर गुणतली प्रर्वृत्ति, निरतिचार धारे शुनमति ॥ १२ ॥ कण शुभध्यान मन गृहे, लव लव समतामें रहे | करी प्रमादतणो परिहार, थानक एह त्रयोदश सार ॥ बारप्रकार निरंतर साधि ॥ तनमन वेदे नदि समाधि ॥ यथाशक्ति तप करे सुजाएा । एह चतुर्दश थानक जाए | ॥ १४ ॥ संविभाग अन्नादिकतणो, यथाशक्ति तपस्विने जो ॥ मनवच काया करी विशु.६, स्थानक एह पन्नरमुं बुद्ध ॥ १५ ॥ अरिहंतादिकती सुन्नक्ति, नक्तपानाशन आदिकशक्ति । वैयावृत्य करे नमदी, स्थानक षोमश जालो सहि ॥ १६ ॥ संघ चतुर्विध तणो अपाय, सहू निषेधे जे मुनिराय ॥ मनसमाधि नृपावणहार, स्थानक एह सप्तदश सार ॥ कैरी प्रयत्न निरंतर लदे, अर्थ सिद्धांत अपूर्व ग्रहे । आलस मूके तजे प्रमाद, स्थानक अष्टादश सुप्रसाद ॥ १८ ॥ सदासप्रवेषण प्रखेद, अवरणवादतणो नच्छेद | श्रुतज्ञानती करे भक्ति, स्थानक एकोनविंशति रक्त ॥ १७ ॥ विद्या निमि उत्तक कविता वाद, धर्म कथादिकना रसस्वाद ॥ करे प्रभावना शासनतणी, कहे जिनदर्ष विंशति दिनी ॥ २० ॥ सर्वगाथा ॥ २७ ॥ कलश ||
॥ राग धन्याश्री ॥
राहो ॥ नविण धानक आराहो ॥ श्रमितप्रभाव वीश स्थानक नाख्या, ए सेवी ब्यो लाहो रे ॥नवियण थानक प्राराहो ॥ १ ॥ वीश निदर्शन दर्शित तुमने, निजचित्तमांहे वसीया हो ॥ जो जिन पदवीनी होय इच्छा तो, रूमी परे ध्यावो रे ॥ ज० ॥ २ ॥ पुण्य तणो भंडार जरो तुमे, पातक दूरे गमावो ॥ तप करी नक्तिकरो निजशक्तें, निर्मल भावना जावोरे ॥ ज० ॥ ३ ॥ जिनवर वचनातीत कह्यं मूढपणुं असुदावो ॥ संघतली साखे ते मुजने, मिन्नादुक्कर थावो रे ॥ ज० ॥ ए तप मोटुं सहु १ तप २ गोयम ३ जिन ४ संयम ५ ज्ञान ६ श्रतपद सने
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स्थान
| ॥ १३१ ॥
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तपमाहे, तिणे एसुं लय लावो ॥ नरना सुख नोगवो प्रांते, मुक्तितणां सुख पावो रे ॥न ॥५॥ Salपुण्यप्रकाशशे एणे नामें, श्रवणे अधिक सुहावो ॥ पाये जे प्रवीण विचक्षण, बेसी सन्नामां गावो
रे ॥ ॥ ६॥ एह रास सांजलवाकाजे, नर नारी मिलि आवो ॥ नंघ प्रमाद तजी विकथादिक, एहसु चित्त लगावो रे ॥ न ॥ ७॥ नणतां नवनी नाव नाजे, सुणतां पाप पलावो ॥ नाहित आणी निज हश्मामांहे, एहना अर्थ रमावो रे॥॥॥ ग्रंथविचारामृत संग्रही, एह रच्यो । मनन्नावो ॥ अधिको ओगे जे को नाख्यो, पंमित तेह शोधावो रे॥न ॥ ॥ श्रीचंश्न चित
मांहे धारो, अनिनंदन मन नावो ॥ कुंथु जिनेश्वर स्वामीकृपाथी, अशुन्न कर्म सहु जावो रे ॥न Salm१०॥ माधवकृष्णोतर जिन पहेलो, पारण दिवस वधावो, खरतरगच जिनचं सूरीश्वर, दिनsalदिन जढतो दावो रे ॥न ॥ ११ ॥ वाचक शांतिहर्षगणिकेरो, शिष्य वचन चित लावो ॥ पुण्य
विशाल रास रस रंगं, कहे जिनहर्ष नलावो रे ॥न ॥ १२ ॥ इतिश्रीविशथानकरासःसंपूर्णः ॥
जाहेरखबर.
नीचे लखेलां पुस्तको उपाई तैयार श्रया ने. योगशास्त्र (कर्ताश्रीहेमचंद्राचार्य)" किम्मत रु. ३-४-०जलजात्रादिविधि (कर्ताश्रीरत्नशेखरमूरि)" रु. ०-६-० सामुद्रिकशास्त्र (कर्ताश्रीभद्रबाहुस्वामी)" रु. १-०-० अष्टकजी (कर्ताश्रीहरिभद्रमूरि)" रु. १-१२-० शुकनशास्त्र (कर्ताश्रीजिनदत्तमूरि)" रु. ०-६-० कल्पसूत्र ( मुखबोधिकाटीकार्नुभाषांतर)" रु.२-८-०
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जादे०
॥१३२॥
धर्मसर्वस्वाधिकार, तथा कस्तूरीप्रकरण" रु. ०-८० प्रतिष्ठाकल्प ( कर्ता श्री सकलचंद्रजी ) प्रकरण रत्नकार भाग चोथो "
रु.५-८-०
लोकप्रकाश.
( कर्ता श्री विनयविजयजी उपाध्याय )
वीसस्थानकनोरास (कर्ता श्रीजिनहर्ष सूरि ) रु. २-०-० शत्रुंजयमाहात्म्यप्रथमखंड (कर्ता श्रीधनेश्वरसूरि) रु २-४-० aadi पुस्तक तेना गुजराती भाषांतर सहित पाइने तैयार थाय बे; तथा ते मुदतमां बाहार पमशे.
आ
लोकप्रकाश - (कर्ताश्रीविनयविजयजीमहाराज ) ( घणोज मोटो तथा अत्यंत उपयोगी ग्रंथ. )
ग्रंथना मुख्य चार विभागो छे. एटले “ द्रव्य लोकप्रकाश" " " क्षेत्रलोकप्रकाश” “काललोकप्रकाश" अने" भावलोक प्रकाश" एवा तेना मुख्य चार विभागो छे. ते ग्रंथमां जैन लोकोने जाणवाने अत्यंत उपयोगी एवी अनेक बाबतो छे. तेनी श्लोक संख्या आशरे अढारहजार छे अने ते ग्रंथना मूल श्लोको अने तेनुं गुजराती भाषांतर अमारा तरफथी थोडीज मुदतमां छपाइने बहार पड़वानुं छे. वली ते साधुओने सवलथी राखी
| वैराग्यकल्पलता ( कर्ता श्रीयशोविजयजीउपाध्याय ) जैन कुमारसंभवमहाकाव्य ( कर्ता श्रीजयशेखरसूरि ) भद्रबाहु संहिता (जैननो अपूर्व ज्योतिष ग्रंथ ) कर्ता श्रीभद्र - शकाय, तेथी पानाना आकारमां छपाशे, अने तेनी बाहुस्वामी )
| मेघमालाविचार, तथा त्रैलोक्यप्रकाश, अने
प्रकरण.
उपदेशतरंगिणी.
उपदेशरत्नाकर ( कर्ता श्री मुनिसुंदररिमहाराज ) शास्त्रवार्तासमुच्चय ( कर्ता श्रीहरिभद्रसूरि ) पंचसंग्रह ( कर्ता श्रीहरिभद्रसूरि ) ऋषिमंडल (अथवा प्रभाविक पुरुषोनां चरित्रो. अत्यंतरसिक कथाओवालां.)
चोपडीओ पण बांधवामां आवशे. आवा मोटा ग्रंथ हिंगुल - माटे जैनभाइओए अवश्य अगाउथी ग्राहक थह मदद आपकी जरुरनी छे. माटे तेनां अगाउथी ग्राहको थह नामो नधाववा माटे अमो अमारा जैन भाइओने विनंती करीए छीए. अने वली अगाउथी ग्राहको थनार पाथी अमो तेनी थोडी किम्मत लेइशुं. एज. श्रावक भीमसिंह माणेक.
( मुंबई ) मांडवीबंदर. शाकगली.
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खब
॥१३२॥
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अत्यंत माहात्म्यश्री नरेलो तथा सर्व जैनीओने नपयोगी
ते
छपावी प्रसिद्ध करनार
श्रावक भीमसिंह भाणेक
श्री मुंबापुरीमध्ये
" गुजराती " छापखामामां छाप्यो.
संवत १९५६ - सने १९००
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