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________________ श्रीश ॥४६॥ >>>>>£££EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEDE ज० ॥ शास्त्र कला जाणे सहु, रूपें रति अभिराम रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ यौवनवय प्रापूति थइ, नरमन | मोहन वेलि रे ॥ ज० ॥ शशिवदनी मृगलोयणी, चाले गजगति गेलि रे ॥ ज० ॥ १० ॥ वीरन‍ गुण सांगली, शेव सागरदत्त साह रे ॥ ज० ॥ प्रियदर्शना कन्या तो, मेल्यो तेहशुं विवाह रे ॥ ज० ॥ ११ ॥ तात आदेश ले करी, लेइ जान विशाल रे ॥ ज० ॥ परणी जर प्रियदर्शना, प्रियदर्शना गुणमाल रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ पंच विषय सुख भोगवे, प्यारी नारी संग रे ॥ ज० ॥ मधुकर लीणो मालती, तिम लीलो सर्वांग रे ॥ ज० ॥ १३ ॥ कहे वीरन चलुं हवे, शेव कहे चित्तलाइ रे ॥ ज० ॥ वाब्दी अमनें दीकरी, विरह न खमाणो जाय रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ एक पलक पण एहनें, दीगविण न रहाय रे ॥ न तुमनें पण नवि मोकलुं, यो निज जान चलाय रे ॥ ज० ॥ १५ ॥ जान चलावी आपणी, पोतें रह्यो तिले गम रे ॥ ज० ॥ सासरीयो सरगा पुरी, तेही पण अभिराम रे ॥ भ० ॥ १६ ॥ एक दिवस मन चिंतवे, वीरभद्र गुणवंत रे ज० ॥ ससराना घरमा रह्यां, लाज लक्षण सहु जंत रे ॥ ज० ॥ १७ ॥ स्त्री पीयर नर सासरें, रहेतां शोना जाय रे ॥ ज० ॥ इहां न रहेवो ते जणी, इम चिंतवी मनमांय रे ॥ ० ॥ १८ ॥ परदेशे जा करी, कला सफल करुं एह रे ॥ ज० ॥ फल पामुं संपदतयां, जिम करसा फल मेह रे ॥ ज० | ॥ १५ ॥ केटलाएक दिन त्यां रही, मीठे वयले ताम रे ॥ ज० ॥ निज नारीनं इम कहे, तुं मुज | सुखनुं गम ॥ ० ॥ २१ ॥ जीव वदे नहीं मूकतां, तुजनें वाहाली नार रे ॥ ज० ॥ पण परदेशें जाइशुं, इहां न रहुं निरधार रे ॥ ज० ॥ २२ ॥ समजावी निज कामिनी, अनुमति लेइ तास ||रे ॥ भ० ॥ पुण्यपरीक्षा कारणे, चाल्यो जिनहरष उल्लास रे ॥ ज० ॥ २३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थान ॥४६॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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