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________________ राग शेष नाणे मनमांदे, समता रस लयलीन रे ॥ज्ञा ॥१६॥ पांचे इंची जेणे वस कीधी, टाल्या विषय कषाय रे ॥ कहे जिनहरष सदा हुं प्रणमुं, ते तपसीना पाय रे ॥झा ॥१७॥ ॥दोहा॥ एहवा तपस्वी ते नगी, आणी हरष अपार ॥ औषध वसति पात्रवस्त्र, आपे जे जे सार ॥१॥ Salकरे नक्ति बहु नावÓ, त्रीजे नव लहे तेह ॥ अरिहंत पदनी संपदा, तेहनों नावे देह ॥शाअरिहंतNaना सुख नोगवी, पोहोचे मुक्ति नोफार ॥ वीरन व्यवहारीये, लह्यो जिमजिनपद सार ॥३॥ | ॥ढाल सातम। ॥ हराया मनलागो । एदेश।। नगरी विशाल अतिनली, देश अवंती इंद रे नविका मनराखो ॥ कौतुक पूजाये जिहां, सकलत्र मुनिवर वृंद रे॥ नविका ॥१॥ मनराखो जिनधर्मशुं, हीयमे धरी आनंद रे ।। न ॥ ए आंकणी तेह पुरीमाहे रहे, वृषन्न दास धनवंत रे ॥ न ॥ मान घणुं राजा तगुं, कीरति कमला कंत रे॥ न ॥ २ ॥ दान गुणेकरी दीपतो, सहुमांहे शिरदार रे ॥ न ॥ सहुमांहे नन्नत घणो, मेरु तणो अवतार रे ॥ न ॥ ३ ॥ तास घरे सुंदरी प्रिया, वीरमती गुणधामरे ॥न नाग्यवती सूधी सती, रूपवती अनिराम रे ॥ न ॥ ४ ॥ तेहने सुत रलियामणो,NE वीरनइ अन्निधान रे ॥ न ॥ सकलकला कौशल अयो, जाणे सहु विज्ञान रे ॥न ॥ ५ ॥ यौवन पाम्यो अनुक्रमें, जाणे रतिपति रूप रे ॥नणानारी जनने मोहनी,नपावे ते अनूप रेणानणा Vain ६॥ हवे पमिनी खंग पत्तने, श्रावक सागरदत्त रे ॥न ॥ व्यवहारी धर्मातमा, जेहनें घरे बहु वित्त रे ॥ न ॥ ७ ॥ सम्यग्दृष्टि शिरोमणी, अद्भूत तेज प्रकाश रे ॥ न ॥ स्त्रीरत्नगर्ना तेहनें, नाम यथारथ तास रे॥न॥ ७ ॥ सुगुणयुता तेहनी सुता, प्रियदर्शना इण नाम रे ॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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